जैन धर्म एक अत्यंत अनुशासित और तप साधना से संपन्न पंथ है, जिसमें आत्मशुद्धि का विशेष स्थान है. इस पंथ में अनेक व्रत, उपवास और तपस्या की जाती हैं, जिनमें से वर्षी तप एक अत्यंत कठोर और श्रद्धापूर्ण व्रत माना जाता है. इस तपस्या के समापन दिवस को वर्षी तप पारण कहा जाता है जो अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर पड़ता है.
वर्षी तप, जिसका अर्थ है एक वर्ष तक किया जाने वाला तप, जैन अनुयायियों द्वारा बड़ी श्रद्धा और कठिन परिश्रम से किया जाता है. यह तप 13 महीने तक चलता है, जिसमें साधक एक दिन उपवास करते हैं और दूसरे दिन सीमित भोजन ग्रहण करते हैं. यह सिलसिला लगातार चलता रहता है, और अंतिम दिन यानि अक्षय तृतीया के शुभ दिन को व्रत का पारण किया जाता है.
इस व्रत के पीछे मूल प्रेरणा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ या ऋषभदेव से जुड़ी हुई है, जिन्होंने स्वयं कठोर तप करके इस व्रत की नींव रखी थी. जैन समाज उन्हें एक आदर्श योगी और आत्मशुद्धि के पथिक के रूप में मानता है.
वर्षी तप कब से शुरू होता है?
यह तप चैत्र कृष्ण अष्टमी से आरंभ होकर वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) पर संपन्न होता है. यह तिथि बेहद पावन मानी जाती है और इसी दिन वर्षी तप का पारण विधिपूर्वक किया जाएगा.
वर्षी तप एक प्रकार का एकांतर उपवास है. इसका तात्पर्य है कि साधक एक दिन पूर्ण रूप से उपवास करता है, और अगले दिन सूर्योदय से पूर्व एवं सूर्यास्त के बाद सीमित मात्रा में सात्विक भोजन करता है. यह क्रम लगातार 13 महीनों तक चलता है. इस दौरान साधक मानसिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार की कठोर साधना करते हैं.
व्रत का पारण आखिरी दिन, जब तप समाप्त होता है, तब विशेष विधि से किया जाता है. भगवान आदिनाथ की पूजा, अभिषेक, ध्यान, और प्रक्षाल आदि के साथ यह दिवस एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
वर्षी तप का पौराणिक महत्व
वर्षी तप के पीछे जो कथा प्रचलित है, वह अत्यंत प्रेरणादायक है. कथा के अनुसार, भगवान ऋषभदेव ने जब अपना समस्त राज्य त्यागकर संयम और साधना का मार्ग अपनाया, तब वे अन्न ग्रहण किए बिना तपस्या में लीन हो गए. वे जब भिक्षा मांगने नगर-नगर गए, तो उन्हें भोजन के स्थान पर बहुमूल्य वस्तुएं, आभूषण या धन मिलते, लेकिन किसी ने उन्हें अन्न नहीं दिया क्योंकि लोगों को भिक्षा देने की परंपरा ज्ञात नहीं थी. इस प्रकार उन्होंने लगातार 400 दिनों तक उपवास किया.
जब वे हस्तिनापुर पहुंचे, उनके पौत्र श्रेयांश कुमार ने उन्हें गन्ने का रस अर्पित किया, जिसे पाकर उन्होंने अपना उपवास समाप्त किया. यह दिन ही अक्षय तृतीया था, जो आज तक जैन समाज में वर्षी तप के पारण के रूप में मनाया जाता है.
इस घटना से यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे श्रद्धा और सेवा से ही तप का सार पूर्ण होता है. गन्ने का रस जो कि एक सामान्य पेय है, भगवान के लिए सबसे उत्तम भोग बन गया, क्योंकि उसमें श्रद्धा और शुद्धता समाहित थी.
पारण का तरीका
अक्षय तृतीया के दिन, व्रती प्रातः काल स्नान करके पूजा-पाठ करते हैं और भगवान आदिनाथ की मूर्ति का अभिषेक एवं प्रक्षाल करते हैं. इसके बाद वे इक्षु रस अर्थात गन्ने के रस का सेवन कर तप का समापन करते हैं. इसे पारण कहा जाता है. कुछ अनुयायी इस दिन हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश) या पालीताना (गुजरात) जैसे प्रमुख तीर्थस्थलों पर जाकर विशेष आयोजन में भाग लेते हैं.
इस दिन बड़े स्तर पर सामूहिक पारण महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें व्रती, तपस्वी, साधु-साध्वियाँ और श्रद्धालु एकत्रित होकर भगवान की आराधना करते हैं और तप का फल प्राप्त करते हैं.
आध्यात्मिक महत्व
वर्षी तप केवल शारीरिक व्रत नहीं, बल्कि यह एक मानसिक और आत्मिक अनुशासन का नाम है. इस तप में व्यक्ति न केवल भोजन का त्याग करता है, बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसी मानसिक दुर्बलताओं से भी दूर रहने का प्रयास करता है. यह साधना आत्मा की शुद्धि, संयम, त्याग और सेवा की भावना को सुदृढ़ करती है.
जैन दर्शन में यह माना जाता है कि ऐसे कठिन तप से आत्मा के कर्म नष्ट होते हैं और मोक्ष के मार्ग की ओर गति प्राप्त होती है. जिन साधकों के लिए यह तप कठिन होता है, वे भगवान की पूजा, मंत्र-जप, स्वाध्याय और दान के माध्यम से भी इसका पुण्य प्राप्त कर सकते हैं.
वर्षी तप करने वालों के लिए निर्देश
तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांसाहार आदि से पूर्ण दूरी बनाई जाती है.
हर प्रकार के नकारात्मक विचारों, झूठ, निंदा, क्रोध आदि से बचने का प्रयास किया जाता है.
नियमित रूप से ध्यान, जप और स्वाध्याय का अभ्यास किया जाता है.
सेवा, दया और परोपकार की भावना के साथ जीवन व्यतीत किया जाता है.
विशेष आयोजन और श्रद्धालुओं का उत्साह
हर वर्ष हजारों की संख्या में जैन अनुयायी इस व्रत को करते हैं या व्रतीजनों को सेवा और सहयोग प्रदान करते हैं. अक्षय तृतीया के दिन जिन तीर्थों पर पारण होता है, वहां पर विशेष उत्सव जैसा माहौल रहता है. पालकी यात्राएँ, भगवान की शोभायात्रा, भजन संध्या, प्रवचन और भक्ति के विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है. यह दिन केवल व्रती के लिए नहीं, अपितु पूरे जैन समाज के लिए एक विशेष पर्व की भांति होता है, जहाँ आस्था, तप, त्याग और भक्ति का संगम देखने को मिलता है.
वर्षी तप और उसका पारण जैन धर्म के उन अध्यात्मिक रत्नों में से एक है, जो जीवन को अनुशासन, संयम और आत्मोन्नति की ओर ले जाता है. यह केवल शरीर की भूख पर नियंत्रण नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति की दिशा में किया गया प्रयास है. जब यह पर्व आता है तब लाखों अनुयायी इस तपस्या के पारण में भाग लेते हैं और भगवान आदिनाथ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। अगरआप स्वयं इस तप में भाग नहीं ले सकते, तो भी इस दिन भगवान ऋषभदेव की आराधना, जप, ध्यान, और जरूरतमंदों को अन्न दान करके इस पुण्य दिवस का लाभ प्राप्त कर सकते हैं.