वैशाख माह की स्कंद षष्ठी: जानें पूजा तिथि विधि और महत्व

वैशाख माह की स्कंद षष्ठी

भारतीय संस्कृति में व्रत एवं त्योहारों का अत्यंत महत्व है. ये न केवल धार्मिक विश्वासों का प्रतीक होते हैं बल्कि समाजिक और आध्यात्मिक विकास के भी माध्यम होते हैं. ऐसे ही एक महत्वपूर्ण व्रत एवं उत्सव का नाम है स्कंद षष्ठी, जो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भगवान स्कंद या कार्तिकेय की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और देवताओं के सेनापति के रूप में पूजित होते हैं.

इस पर्व को दक्षिण भारत में विशेष उत्साह एवं श्रद्धा से मनाया जाता है, वहीं उत्तर भारत में भी इसकी मान्यता कम नहीं है. इस दिन भगवान स्कंद के जन्म, उनके कर्तव्यों, शक्तियों एवं उनके द्वारा तारकासुर वध की कथा को श्रद्धा से पढ़ा और सुना जाता है.

स्कंद षष्ठी का संबंध भगवान स्कंद के जन्म से है. मान्यता है कि जब पृथ्वी पर राक्षस तारकासुर का अत्याचार बढ़ गया, तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे कोई उपाय करना चाहिए. ब्रह्मा जी के वरदान के कारण तारकासुर को केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा मारा जा सकता था. इसी कारण स्कंद या कार्तिकेय का जन्म हुआ. यह जन्म षष्ठी तिथि को हुआ था, इसी कारण इस तिथि को “स्कंद षष्ठी” के रूप में मनाया जाता है.

भगवान स्कंद के अन्य नाम

भगवान स्कंद को कई नामों से जाना जाता है. कार्तिकेय, कुमारस्वामी, शक्तिधर, मुरुगन (दक्षिण भारत में), सुब्रमण्यम, कुमार, शक्तिवाहन. स्कंद भगवान युद्ध और शक्ति के देवता हैं तथा वीरता, अनुशासन, न्याय और संगठन के प्रतीक माने जाते हैं. स्कंद का वाहन मोर होता है और उनके हाथों में भाला (शक्ति) होती है, जो उनकी शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है.

स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व

इस पर्व का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह संतान प्राप्ति एवं संतान सुख से जुड़ा हुआ है. जो दंपत्ति संतान सुख की इच्छा रखते हैं, वे इस दिन व्रत एवं पूजन करके भगवान स्कंद से कृपा प्राप्त कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त जो संतान कष्ट में है या किसी रोग से ग्रस्त है, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी होता है.

संतान की उन्नति होती है. संतान का सुख बना रहता है. जीवन से कष्टों का निवारण होता है.मानसिक शांति प्राप्त होती है.आर्थिक एवं पारिवारिक समस्याएं समाप्त होती हैं.

स्कंद षष्ठी की पूजा विधि

पूजा विधि बहुत ही सरल है परन्तु श्रद्धा एवं नियमों का पालन आवश्यक होता है. नीचे स्कंद षष्ठी की पूजा विधि बताई गई है: प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. पूजा स्थल की सफाई कर भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए. भगवान शिव, माता पार्वती एवं गणेश जी का भी साथ में पूजन करना चाहिए.

अखंड दीपक जलाना चाहिए. भगवान स्कंद को दूध, केसर, मेवे, मौसमी फल अर्पित करना चाहिए. स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करना चाहिए. भगवान को पुष्प अर्पण करना चाहिए और धूप-दीप से आरती करनी चाहिए और फिर पूजा के बाद प्रसाद वितरण करना चाहिए. इस दिन भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और रात को फलाहार करते हैं या केवल जल ग्रहण करते हैं.

कथा: गणेश-स्कंद प्रतियोगिता

एक प्रसंग के अनुसार नारद मुनि एक अमूल्य फल लेकर कैलाश पर्वत पर पहुंचे. उन्होंने वह फल शिव-पार्वती को अर्पित किया और कहा कि यह फल केवल एक को ही दिया जा सकता है. यह फल ज्ञान और अमरता का प्रतीक था. अब प्रश्न उठा कि वह फल किस पुत्र को दिया जाए गणेश को या स्कंद को? दोनों के बीच प्रतियोगिता रखी गई कि जो संपूर्ण पृथ्वी के तीन चक्कर सबसे पहले लगाएगा, वही विजेता होगा.

स्कंद अपने तीव्र गति वाले वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी के चक्कर लगाने निकल पड़े. गणेश जी, जिनका वाहन मूषक था, ने बुद्धि का प्रयोग करते हुए अपने माता-पिता के तीन चक्कर लगाए और कहा कि मेरे लिए मेरे माता-पिता ही संपूर्ण सृष्टि हैं. उनकी यह भावना देखकर उन्हें विजेता घोषित किया गया. जब स्कंद लौटे तो उन्हें यह अन्यायपूर्ण लगा और वे क्रोधित होकर दक्षिण भारत की ओर चले गए. तभी से दक्षिण भारत में भगवान स्कंद की पूजा विशेष रूप से होती है.

तारकासुर वध की कथा

तारकासुर एक शक्तिशाली असुर था जिसने ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु केवल शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकती है. उसने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. तब भगवान शिव और माता पार्वती के संयोग से स्कंद का जन्म हुआ.

स्कंद को देवताओं का सेनापति बनाया गया और उन्होंने देवसेना का नेतृत्व करते हुए तारकासुर से युद्ध किया. अत्यंत उग्र संग्राम के बाद स्कंद ने तारकासुर का वध किया और देवताओं को पुनः उनका स्थान दिलाया.

स्कंद देव को कुमार क्यों कहा जाता है?

भगवान स्कंद को कुमार कहा जाता है क्योंकि उन्हें देवताओं से यह वरदान प्राप्त था कि वे सदैव युवा बने रहेंगे. वे बाल रूप में भी पूजे जाते हैं और युवा रूप में भी. यह नाम विशेषतः दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है जहां उन्हें कुमारस्वामी कहा जाता है. उनकी इसी युवा ऊर्जा और शक्ति के कारण वे युद्ध के देवता माने जाते हैं और किसी भी प्रकार की बाधा, संघर्ष या प्रतियोगिता में सफलता पाने हेतु उनकी पूजा की जाती है.

दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का महत्व

दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है, इस अवसर पर मंदिरों में विशेष अनुष्ठान, भजन, कीर्तन और रथयात्राएं आयोजित की जाती हैं.तमिल भाषा में स्कंद को मुरुगन कहा जाता है और उनके कई प्रमुख मंदिर तमिलनाडु, केरल और श्रीलंका में स्थित हैं जैसे कि पलानी, स्वामीमलाई, तिरुचेंदूर, थिरुपरनकुन्द्रम, और तिरुत्तानी.

स्कंद षष्ठी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक संदेश भी देता है और बताता है कि यह शक्ति और बुद्धि का सही उपयोग ही विजय दिलाता है. अहंकार और क्रोध से बचना चाहिए. अनुशासन और परिश्रम से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है.

वैशाख मास की शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला स्कंद षष्ठी पर्व हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है. यह पर्व हमें भगवान स्कंद की महानता, पराक्रम, और भक्ति का स्मरण कराता है. उनके पूजन से केवल सांसारिक सुख ही नहीं बल्कि आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है. इस पर्व का पालन श्रद्धा, संयम और निष्ठा से करने पर जीवन में सफलता, समृद्धि और शांति का मार्ग प्रशस्त होता है.

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