रूप चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी, नरक चौदस, रुप चौदस अथवा नरका पूजा के नामों से जाना जाता है. इस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान होता है. इस वर्ष 2024 को रूप चतुर्दशी 31 अक्टूबर के दिन मनाई जाएगी. इसे छोटी दीपावली के रुप में मनाया जाता है इस दिन संध्या के पश्चात दीपक जलाए जाते हैं और चारों ओर रोशनी की जाती है. रूप चौदस के दिन तिल का भोजन और तेल मालिश, दन्तधावन, उबटन व स्नान आवश्यक होता है.
नर्क चतुर्दशी | Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी.
रूप चतुर्दशी पौराणिक आधार | Roop Chaturdashi Mythological Basis
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा का विधान है. भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से व्यक्ति को सौंदर्य की प्राप्ति होती है. रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है मान्यता है कि प्राचीन समय पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे. एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया. अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा़.
अपनी इतनी विभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी होते हैं. तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुख का कारण पूछते हैं. योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऎसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है.
नारदजी उन्हें कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अराधना करने को कहते हैं, क्योंकि ऎसा करने से योगी का शरीर पुन: पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा. अत: नारद के कथनों अनुसार योगी ने व्रत किया और व्रत के प्रभाव स्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया. इसलिए इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा.
रूप या नरक चतुर्दशी महत्व | Roop Chaturdashi Importance
इस दिन प्रात: काल शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए. अपामार्ग अर्थात चिचड़ी की पत्तियों को जल में डालकर स्नान करने से स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. पूजन हेतु एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं तथा सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल, तथा फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें.
पूजा के पश्चात सभी दीयों को घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं. इसके पश्चात संध्या समय दीपदान करते हैं दक्षिण दिशा की ओर चौदह दिये जलाए जाते हैं जो यम देवता के लिए होते हैं. विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो प्रभु को पाता है.
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