प्रशन कुण्डली में भावों का महत्व | Importance of Houses in Prashna Kundali

प्रश्न कुण्डली का प्रत्येक भाव जन्म कुण्डली के भावों की भांति ही महत्वपूर्ण होता है. प्रश्न कुंडली हर भाव प्रश्नकर्ता के जवाब को चाहे न दर्शाए किंतु उसके प्रश्न की सार्थकता एवं पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लग्न में स्थित राशि प्रश्नकर्ता का सवाल बनती है और अन्य भाव प्रश्नकर्ता के धन संपदा, भाई बंधुओं इत्यादि को दर्शाते हैं जैसा की जन्म कुण्डली के हावों में होता है.

षटपंचाशिका के पृथ्युशस अनुसार जो भाव अपने स्वामी द्वारा दृष्ट होते हैं तथा शुभ ग्रहों से संम्बधित होते हैं वह मजबूत हो जाते हैं लेकिन जब यह पाप ग्रहों के साथ युति संब्म्ध बनाते हैं तो शुभता में कमी कर देते हैं. जन्म कुण्डली के भाव के कारकतत्व प्रशनकर्ता के लिए प्रतिकत्मक प्रभाव देने वाले होते हैं.

यदि भाव शुभकर्तरी में होता है तो मजबूत हो जाता है तथा शुभता पाता है और साथ ही यदि वह केन्द्रों में भी हो तो शुभता में वृद्धि होती है. प्रश्न कुंडली में वह भाव जो गुरू, बुध, और शुक्र ग्रह द्वारा दृष्टि या युति संबंधों में होते हैं वह शुभ फल देने वाला रह जाता है. इसी प्रकार जो भाव इन से 2, 7,12, 4 और 10 में होते हैं वह भी अच्छे फल देने की क्षमता रखते हैं.

6, 8 और 12 भवों के स्वामी बुरे माने जाते हैं. यदि 6, 8 और 12 भावों के स्वामियों का शुभ स्वामीयों के साथ कोई भी संबंध बनता है तो वह उनके शुभतत्वों में कमी करते हैं.तथा भाव की शुभ प्रकृति नष्ट हो जाती है.

इसी तरह से भाव के स्वामी के प्राकृतिक शत्रु ग्रह के प्रभाव के कारण यह पीड़ित करता है. भाव या इसके स्वामी या कारक कमजोर हों तो भाव भी पीड़ित हो जाते हैं. एक भाव की प्रभाव क्षमता के पहलुओं के माध्यम से समझा जा सकता है कि वह कितना प्रभावित है बुरे प्रभाव से.

हालांकि, यह संयोजन एक साधारण तरह से ही स्थापित नहीं किए जाने चाहिए. कुछ ग्रहों के पास दो भावों का आधिपत्य होता है, इस कारण से 8, 12 या 6 के आधिपत्य के कारण दु: ख कुछ शर्तों के तहत निष्प्रभावी हो जाता है.

उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि एक भाव 21 तरीकों से पीड़ित हो सकता है. इसके अतिरिक्त एक भाव यदि एक या दो तरह से निर्बल हो सकता है तब भी वह कमजोर व उपेक्षित सा हो जाता है.

यहां एक बात ओर भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है यदि किसी भाव विशेष से आठवें भाव का स्वामी या शनि का गोचर उस भाव विशेष में होता है और दशा या अंतरदशा भी 6, 8 या 12 के स्वामियों के द्वारा प्रभावित हो तो भाव अनेक प्रकार से प्रभावित होता है. बिमारी भी इसी भावों के अंतर्गत देखी जाती है इस कारण जातक के लिए यह समय़ कष्ट देने वाला बन जाता है.