वक्री ग्रहों को वैदिक ज्योतिष में शक्त अवस्था में माना गया है अर्थात वक्री ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं. वक्री ग्रह बार-बार प्रयास कराते हैं. एक ही कार्य को करने के लिए व्यक्ति को कई बार प्रयास करने पर सफलता मिलती
कुंडली में मौजूद सभी ग्रह अच्छे या बुरे फल देने वाले सिद्ध हो सकते हैं. शनि यदि कुंडली में शुभ भावों के स्वामी हैं तब वह बुरा फल नहीं देते. यदि शनि कुण्डली शुभ होकर निर्बल है तब उसे बल देना आवश्यक है. यदि शनि कुंडली में
शनि देव मार्गी हो रहे हैं और इसी के साथ ही मंगल ग्रह के साथ एक ही राशि में युति करते हुए दिखाई देंगे. इन दो मुख्य बदलावों के फलस्वरुप कुछ प्रमुख घटनाएं अवश्य ही अपना प्रभाव दिखाएंगी. ज्योतिष के अनुसार इनके मिलेजुले फल
ज्योतिष में शनि ग्रह कुंडली से लेकर गोचर, महादशा तथा साढ़ेसाती से हमें प्रभावित करते हैं. शनि ग्रह की स्थिति और उससे होने वाले लाभ या हानि से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता. शनि ग्रह को शनिदेव तथा शनैश्चर कहा