बालादि अवस्था क्या होती हैं, जानिये.

वैदिक ज्योतिष में ग्रहो की कई प्रकार की अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई तरह के बलों पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था बालादि अवस्थाएँ होती हैं. जिनमें ग्रहों को उनके अंशों के आधार पर बल मिलता है.

बालादि अवस्था में सम राशि में स्थित ग्रह का बल तथा विषम राशि मे स्थित ग्रह का बल अलग होता है. इन बलों के अनुसार ही जातक अपने जीवन में ग्रहो के फलो को भोगता है. बालादि अवस्था में ग्रहो के बल उनके अंश तथा राशि पर आधारित होते है. राशि का महत्व इसलिए है क्योंकि सम राशि में स्थित ग्रह का फल विषम राशि में स्थित ग्रह से एकदम अलग हो सकता है.

जब भी दशा अनूकूल या प्रतिकूल होती है तो उन दशाओ में ग्रह अपनी अवस्था के अनुरुप फल प्रदान करता है. लेकिन हम सिर्फ इन अवस्थाओ से ही सारा फल कथन नही कर सकते यह तो मात्र अनुमान है. पूरे फल कथन में ग्रहों की यह अवस्थाएँ भी महत्व रखती हैं.

बालादि अवस्था को जानने के लिए राशि के 30 अंशो को 5 बराबर-बराबर भागो में बांटा जाता है. एक भाग 6 अंश का होता है. बालादि अवस्था का बल सम राशि तथा विषम राशि में अलग-अलग होता है.

विषम राशि में ग्रह की अवस्था | Awastha of a planet in an uneven sign

  • 0 से 6 अंश तक बाल अवस्था
  • 6 से 12 अंश तक कुमार अवस्था
  • 12 से 18 अंश तक युवा अवस्था
  • 18 से 24 अंश तक वृद्ध अवस्था
  • 24 से 30 अंश तक मृत अवस्था


सम राशि में ग्रह की अवस्था | Awastha of a planet in a neutral sign

  • 0 से 6 अंश तक मृत अवस्था
  • 6 से 12 अंश तक वृद्ध अवस्था
  • 12 से 18 अंश तक युवा अवस्था
  • 18 से 24 अंश तक कुमार अवस्था
  • 24 से 30 अंश तक बाल अवस्था


बाल अवस्था में ग्रह की स्थिति | Planet in Baal awastha

जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि बाल अवस्था में स्थित है तब वह ग्रह छोटे बालक के समान निर्बल होता है. अपना फल देने में ग्रह पूर्ण रुप से सक्षम नही होता है. बाल अवस्था में स्थित ग्रह जिस भाव तथा जिस राशि मे बैठा होता है उसी के अनुसार कार्य करता है.

कुमार अवस्था में स्थित ग्रह | Planet in Kumaar awastha

जन्म कुण्डली में ग्रह यदि कुमार अवस्था में किसी भी भाव या किसी भी राशि में स्थित है तब यह स्थिति बाल अवस्था से कुछ बेहतर मानी जाती है. इस अवस्था में ग्रह के भीतर कुछ फल देने की क्षमता होती है. इस अवस्था में ग्रह अपना एक तिहाई फल प्रदान करता है.

युवा अवस्था में स्थित ग्रह | Planet in Yuva awastha

ग्रह की युवा अवस्था अत्यधिक शुभ तथा बली मानी गई है. इस अवस्था में ग्रह अपने सम्पू्र्ण फल प्रदान करता है. इसमें ग्रह एक युवा के समान बली होता है तथा दशा अनुकूल होने और कुण्डली विशेष के लिए वह ग्रह अनुकूल होने पर जातक को सारे सुख प्रदान करता है. उदाहरण के लिए कुण्डली में अगर दशमेश की दशा हो और ग्रह युवा अवस्था में स्थित हो तो जातक इस दशा मे उन्नति करता है.

वृ्द्ध अवस्था में स्थित ग्रह | Planet in Vriddh awastha

इस अवस्था में स्थित ग्रह एक वृद्ध के समान निर्बल होता है. ग्रह फल देने मे सक्षम नही होता और यदि उसी ग्रह की दशा भी चल रही हो तब वह व्यक्ति के लिए शुभफलदायी नहीं रहेगी. माना किसी व्यक्ति की कुण्डली में उच्च राशि में ग्रह स्थित है लेकिन वह वृद्धा अवस्था में है तो जातक उस ग्रह की दशा में अधिक उन्नति नहीं कर पाएगा.

मृत अवस्था में स्थित ग्रह | Planet in Mrit awastha

मृत अवस्था में स्थित ग्रह अपने पूरे फल नहीं दे पाता क्योंकि ग्रह मृत व्यक्ति के समान मूक होता है. ग्रह  अपनी दशा में अपने स्वरुप फल नही देता. वह जिस भाव में तथा जिस राशि में होता है उसी के अनुसार फल प्रदान करता है. यदि लग्नेश कुंडली मे बली होकर भी मृत अवस्था में स्थित हो तो वह जातक को शारीरिक सुख में कमी प्रदान कर सकता है.