सूर्य महादशा में बुध की अन्तर्दशा होने पर मिलते हैं ये फल
सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशा जातक के बौद्धिक व आत्मिक स्वरूप का विकास करने में सहायक होती है. इन दोनों ग्रहों का आपस में समभाव रहता है. बुध ग्रह को सूर्य से ही शिक्षा एवं आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है. सूर्य की दशा गुरू रुप में बुध का मार्गदर्शन करती सी प्रतीत होती है. बुध सदैव सूर्य के समीपस्थ रहने वाले हैं इनका महत्व इनसे भी प्रभावित रहता है. सूर्य के साथ रहने पर यह इन्हीं के प्रकाश से दीप्तमान रहते हैं.
सूर्य में बुध की इस दशा में जातक का भाषा पर अच्छा नियंत्रण होता है जिसके चलते वह लोगों पर अपना प्रभाव रख पाने में सफल भी हो सकता है. जब सूर्य का साथ इसे मिलता है तो यह उस वाणी में ओजस भाव को लाता है. बुद्धि तथा वाणी कौशल के द्वारा कठिन परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेने में सफल हो सकता है. बुद्धि कौशल और वाक चातुर्य के द्वारा कार्यों को करने में सहज व लोगों द्वारा कार्य कराने में पारंगत होता है.
किसी तर्क-वितर्क में इनसे जीत पाना आसान नहीं होता बोलने की आदत इनमें खूब होती है. बुध वाणी, चातुर्य, गणना की आवश्यकता वाले क्षेत्रों तथा उनसे जुड़े लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें सफलता प्राप्त करने के लिए चतुर हो जैसे वकील, सलाहकार, मध्यस्थ और अनुसंधान, मार्किटिंग, व्यापार राजनयिक, अध्यापक, लेखक, ज्योतिषि से जुड़े लोग इनमें बुद्ध से प्रभावित रह सकते हैं
बुध को नपुंसक ग्रह माना गया है, बुध वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. बुध के प्रबल होने पर व्यक्ति व्यवहार कुशल होता है व कूटनीति से भी काम लेता है. अपने व्यवहार के कारण यह कई बार स्वार्थी लग सकते हैं परंतु अपनी धुन के पक्के होने के कारण हीं इनका ऎसा व्यवहार दिखाई देने लगता है.
बुध कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी बलहीन हो सकते हैं जिसके कारण जातक को दिमागी परेशानी व चर्म रोग से संबंधित समस्याओं से पीड़ित होना पड़ सकता है.सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशाके विष्य में कहा गया है कि यह महादशा परेशानियों व दुख को देने वाली होती है, चर्म रोगों का भय बनता है, किंतु एक तर्क के आधारपर हम संपूर्ण दशा के फलाकर्म को खराब तो नहीं कह सकते है.
इसलिए दशाओं के प्रभाव में हमें ग्रहों की स्थिति को भी समझना होगा. क्योंकि मिलेजुले फलों कि प्रतिरूप है यह दशा फल, ज्ञान व ज्ञान का अंह दोनों अलग बातें हैं जो इस समय समझने में बहुत मददगार होती हैं क्योंकी शुभ स्थानों के स्वामित्व के कारण व्यक्ति का कार्य शुभ कर्मों की ओर अधिक ही रहता है लेकिन यदि भावों में अनुकूलता शुभता नहीं हो तो कई प्रकार की समस्याओं से दो चार होना ही पड़ जाता है तथा ज्ञान की अंह भावना से परेशानियां स्वाभाविक ही होती हैं.
सूर्य में बुध का अंतर जातक को राजनीति से जुडे़ कामों में झुकाव लाने वाला होता है, व्यक्ति में एक अलग सोच निर्मित होने लगती है, समाज में गतिविधियां तेज होने लगती हैं, आने वाले कामोम में जल्दबाजी अधिक हो जाती है. किसी भी काम में कुछ सोच विचार की आवश्यकता होती है इसलिए इस समय जातक अपने कामों की ओर अधिक सतर्क होने लगता है. अग्नि के साथ वायु का मेल अग्नि को फैलाने का काम करता है.
इस स्थिति में जातक के मन में द्वंद और उत्तेजना ई स्थिति उभर सकती है, वह अपने आप में उन्मुक्त रह सकता है और इस कारण अलग थलग भी पड़ सकता है, किसी भी रिश्ते में इनकी मौजूदगी एक अलग ही रूप में दिखाई देती है. सूर्य की ऊर्जा लेकर बुध जहाँ एक ओर बुद्धि को प्रखर बनाने में सहायक होते हैं तथा अनुशासन में रहने की आदत भी पाते हैं. बुध स्वभाव में जो लचीलापन देते हैं वह कभी-कभी नियमों व कायदों के उल्लंघन का कारण भी बन जाता है, ऎसे में सूर्य उन्हें नियमों का चलन बताने में सहायक होते हैं.