मृत्यु भाग के ग्रह ऎसे बनते हैं मृत्यु तुल्य कष्ट कारण
वैदिक ज्योतिष में जीवन के हर पहलू का विश्लेषण किया गया है. जन्म से लेकर मृत्यु तक का फलकथन किया जाता है. जीवन की सभी घटनाओं की जानकारी का अध्ययन सूक्ष्मता से किया जा सकता है बशर्ते कि ज्योतिषी अत्यधिक कुशल हो. व्यक्ति को अपने भविष्य में होने वाली घटनाओं में बहुत रुचि रहती है.
कुछ व्यक्ति ऎसे भी हैं जिन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब उन्हें ज्योतिषीय सलाह की आवश्यकता पड़ती है. शारीरिक अथवा मानसिक परेशानी भी व्यक्ति के लिए घातक सिद्ध हो जाती है. बहुत बार अचानक से व्यक्ति को शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ता है. ऎसा क्या होता है कि व्यक्ति को अचानक बुरी बातों का सामना करना पड़ता है. ज्योतिषीय कारण ढूंढते हैम तो कई कारण नजर आते हैं. उस बुरी घटना के योग, प्रतिकूल दशा/अन्तर्दशा, प्रतिकूल गोचर और एक मुख्य कारण दशा/अन्तर्दशानाथ का मृत्यु भाग पर स्थित होना.
वैदिक ज्योतिष में सभी ग्रहों के मृत्यु भाग के अंश दिए गए हैं. सभी नौ ग्रहों के साथ लग्न और मांदी भी मृत्यु भाग पर स्थित होती है. ग्रहों के मृत्यु भाग के यह अंश स्थिर होते हैं. इनमें कोई बदलाव नहीं होता है. यदि जन्म समय में कोई ग्रह मृत्यु भाग अथवा मृत्यु भाग के अंशों पर स्थित है तब उस ग्रह से संबंधित दशा/अन्तर्दशा आने पर व्यक्ति को मानसिक अथवा शारीरिक परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है. ग्रह जिस भाव का स्वामी है अथवा जिस भाव में मृत्यु भाग में स्थित है उस भाव से संबंधित कष्ट का सामना करना पड़ सकता है. मुख्यतया ज्योतिष में मृत्यु भाग के ग्रहों की गणना स्वास्थ्य के आंकलन के लिए की जाती है.
राशि/ग्रह | लग्न | सूर्य | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | राहु | केतु | मांदी |
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मेष | 1 | 20 | 26 | 19 | 15 | 19 | 28 | 10 | 14 | 8 | 23 |
वृष | 9 | 9 | 12 | 28 | 14 | 29 | 15 | 4 | 13 | 18 | 24 |
मिथुन | 22 | 12 | 13 | 25 | 13 | 12 | 11 | 7 | 12 | 20 | 11 |
कर्क | 22 | 6 | 25 | 23 | 12 | 27 | 17 | 9 | 11 | 10 | 12 |
सिंह | 25 | 8 | 24 | 28 | 9 | 6 | 10 | 12 | 24 | 21 | 13 |
कन्या | 2 | 24 | 11 | 28 | 18 | 4 | 13 | 16 | 23 | 22 | 14 |
तुला | 4 | 16 | 26 | 14 | 20 | 13 | 4 | 3 | 22 | 23 | 8 |
वृश्चिक | 23 | 17 | 14 | 21 | 10 | 10 | 6 | 18 | 21 | 24 | 18 |
धनु | 18 | 22 | 13 | 2 | 21 | 17 | 27 | 28 | 10 | 11 | 20 |
मकर | 20 | 2 | 25 | 15 | 22 | 11 | 12 | 14 | 20 | 12 | 10 |
कुंभ | 10 | 3 | 5 | 11 | 7 | 15 | 29 | 13 | 18 | 13 | 21 |
मीन | 10 | 23 | 12 | 6 | 5 | 28 | 19 | 15 | 8 | 14 | 22 |
पाठकगणो को मृत्यु भाग के ग्रहों की तालिका भी हम उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन इस सारणी को देखकर किसी तरह के वहम में ना पड़े क्योकि किसी एक योग से कुछ नही होता है. उसके लिए बहुत सी अन्य बातों पर गौर करना पड़ता है तब कहीं किसी नतीजे पर पहुंचा जाता है. जन्म कुण्डली में सबसे पहले तो लग्न/लग्नेश को देखा जाता है कि वह बली हैं या नहीं. अगर यह दोनो बली हो गए तब समस्या अगर आती भी है तो वह ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएगी. आइए मृत्यु भाग के ग्रहों को स्वास्थ्य के नजरिए से देखने का प्रयास करते हैं.
- जन्म कुण्डली में यदि लग्नेश बली है तब मृत्यु भाग में स्थित ग्रहों का प्रभाव ज्यादा नहीं होगा.
- यदि लग्नेश कमजोर है तब मृत्यु भाग में स्थित ग्रह स्वास्थ्य के लिए हानि कर सकता है.
- लग्नेश बलहीन है और मृत्यु भाग में स्थित ग्रह की दशा/अन्तर्दशा के साथ गोचर भी प्रतिकूल चल रहा है तब स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है.
- कई बार मृत्यु भाग के ग्रह जातक की बजाय उसके संबंधी के लिए खराब हो सकते हैं अर्थात जिस भाव का स्वामी मृत्यु भाग में है उस भाव से संबंधित व्यक्ति को कष्ट हो सकता है. उदाहरण के लिए नवमेश यदि छठे भाव में मृत्यु भाव में स्थित है तब पिता का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.
- जो ग्रह मृत्यु भाग स्थित हैं उनकी दृष्टि जिन भावों में स्थित है या जिन ग्रहों के साथ संबंध बना रहे हैं उन्हें भी पीड़ित कर देते हैं.
- जन्म कुण्डली में लग्न के अंश मृत्यु भाग के अंशों पर स्थित है तब शारीरिक अथवा मानसिक दोनो ही प्रकार की परेशानियाँ हो सकती हैं.
- लग्नेश अथवा आत्मकारक अगर मृत्यु भाग के अंशों पर स्थित है तब स्वास्थ्य संबंधी कोई ना कोई परेशानी बनी रह सकती है.
- यदि जन्म कुण्डली में एक से अधिक ग्रह मृत्यु भाग पर स्थित है तब उस ग्रह की दशा/अन्तर्दशा में गंभीर बीमारी होने की संभावना बन सकती है.
- कई बार बच्चे के जन्म समय में जो दशा/अन्तर्दशा मिलती है वह ग्रह मृत्यु भाग पर स्थित होने से जन्म से ही स्वास्थ्य संबंधी विकार दे देता है.
- कोई ग्रह यदि मृत्यु भाग के अंशो के आसपास स्थित है तब भी वह अपनी दशा/अन्तर्दशा में कष्ट दे सकता है.
- मृत्यु भाग वाला ग्रह जिस भाव में है उसके फलों में कमी करता है साथ ही ग्रह के अपने कारकत्व भी नष्ट होते हैं.
- यदि जन्म कुण्डली में 6,8 या 12वें भावों से संबंधित ग्रह की दशा और मृत्यु भाग में स्थित ग्रह की अन्तर्दशा चल रही है तब स्वास्थ्य संबंधी कष्ट हो सकते हैं.
- जन्म कुण्डली में यदि ग्रह मृत्यु भाग पर स्थित है और वह गोचर के पाप ग्रह से संबंध बना रहा है तब स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है.