अष्टकवर्ग में उपयोग होने वाले शब्द | Terminologies used in Ashtak Varga

अष्टकवर्ग की पद्धति प्राचीन काल से ही ज्योतिषशास्त्र में अपनी एक सशक्त भूमिका दर्शाती आई है. इस विद्या के नियमों को समझने से पूर्व हमें यह जानने की आवश्यकता है कि हम इसमें उपयुक्त होने वाले शब्दों को समझें तभी हम इसके उपयोग को उचित प्रकार से समझ पाएंगे अष्टकवर्ग में बिन्दु, रेखा, कक्ष्या, प्रस्तारक, भिन्नाष्टक, सर्वाष्टक, समुदाय अष्टकवर्ग मुख्य नाम हैं. अष्टकवर्ग में प्रयुक्त होने वाले शब्दों को हम यहां विस्तार पूर्वक बता रहे हैं जो इस प्रकार हैं.

बिन्दु | Bindu

सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू और शनि समस्त सातों ग्रह और लग्न अपनी शुभाशुभ ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं, इस प्रकार ग्रह अपनी मूल स्थित से कुछ निश्चित स्थानों पर शुभ ऊर्जा व अशुभ ऊर्जा छोड़ता है. यही ऊर्जा यदि शुभ हो तो बिंदु कहलाती है. उत्तर भारत में शुभ स्थानों में प्राप्त ऊर्जा बिन्दु कहलाती है तथा अशुभ को रेखा कहा जाता है, वहीं दक्षिण भारत में इसके विपरित नियम हैं वहां शुभ को रेखा से दर्शाया जाता है.

कक्ष्या | Kakshya

कक्ष्या राशि का एक निश्चित भाग होता है तथा प्रत्येक कक्ष्या का स्वामी भी एक निश्चित ग्रह होता है. राशि की कक्ष्या के स्वामी ग्रह शनि, गुरू, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्रमा तथा लग्न होते हैं. राशि का मान 30 डिग्री होता है. इसे आठ भागों में विभाजित करने पर आठ कक्ष्याएं बनती हैं. एक कक्ष्या का मान 3 डिग्री 45 मिनट का होता है. प्रत्येक ग्रह अपनी निश्चित कि हुई कक्ष्या में जन्म कुण्डली में अपनी स्थिति के अनुरूप निश्चित भाव में बिन्दु देता है.

प्रस्तारक चक्र | Prastarak Chakra

प्रस्तारक चक्र द्वारा सभी बारह भावों की आठ कक्ष्याओं में दिए बिन्दुओं के योग के को तालिका के रूप में दर्शाया जाता है और सभी ग्रहों के लिए अलग - अलग प्रस्तारक चक्र बनता है.

भिन्नाष्टक | Bhinna Ashtak

ग्रहों के प्रस्तारक चक्र में सभी ग्रह द्वारा सभी बारह भावों में दिए गए बिन्दुओं के कुल योग को भावों के अनुसार जन्म कुण्डली में लिखकर दर्शाया जाता है. इस तरह से सभी सातों ग्रहों का अपने- अपने प्रस्तारक चक्र के अनुसार भिन्न भिन्न वर्ग तैयार हो जाता है, जो उक्त ग्रहों का भिन्नाष्टक वर्ग कहलाता है.

सर्वाष्टक | Sarva Ashtak

ग्रहों द्वारा सभी बारह भावों में दिए गए बिन्दुओं या कहें कि शुभ अंकों के कुल योग को सर्वाष्टक वर्ग कहा जाता है. प्रत्येक ग्रह द्वारा अपने भिन्नाष्टक वर्ग में भाव विशेष में दिए गए बिन्दुओं को जोड़कर एक वर्ग बनाया जाता है जो सर्वाष्टक का काम करता है. सर्वाष्टवर्ग को समुदाय वर्ग के नाम से भी जाना जाता है परंतु इसमें एक अंतर अवश्य आता है, जो इस प्रकार से परिलक्षित होता है कि भिन्नाष्टक वर्ग बनाए बिना भी सर्वाष्टक वर्ग बनाया जा सकता है जिसे समुदाय अष्टकवर्ग कहते हैं.

रेखा सर्वाष्टकवर्ग | Rekha Sarva Ashtak Varga

किसी भी भाव को सभी सात ग्रह व लग्न आठ प्रकार की ऊर्जाएं देते हैं. इस प्रकार प्रत्येक भाव में कुल 56 अंक होते हैं. यदि शुभ अंकों को 56 से घटाते हैं तो उस भाव में ग्रहों द्वारा दिए गए अशुभ अंक शेष बचते हैं. जिन्हें उत्तर भारत में रेखा के नाम से जाना जाता है.