जानिये। अपनी कुंडली में राहु का फल

राहु ग्रह को विच्छेद कराने वाले ग्रह के रुप में जाना जाता है. वास्तविक रुप में राहु बिन्दू मात्र है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा पड़ता है जिस कारण इन्हें ग्रह की तरह ही माना जाता है. यह राहु व्यक्ति को परम्परा व संस्कारों से हटाने की ओर उन्मुख करता है. जातक अपने व्यवहार में परंपराओं से अलग जाने की चाह रखने लग सकता है इसके प्रभाव का यदि ल्ग्न अर्थात प्रथम भाव पर स्थित हो तो जातक पारम्परिक कार्यो से हतकर अन्य गैर पारंपरिक कामों में रुचि लेने की चाह रखता है. रीति-रिवाजों से दूर वह अपने नियम चाहता है

ज्योतिष में कुछ लोग राहु की दृष्टि को महत्व देते हैं तो कुछ लोग उसकी दृष्टि को नहीं मानते. ज्योतिष पद्धति में राहु का प्रभाव जानने हेतु कुण्डली में राहु पर किस ग्रह की दृष्टी पड़ रही होती है या वह किस भाव से रहकर कौन से ग्रह के साथ युति बना रहा हो उस ग्रह को देखना चाहिए. क्योंकि राहु अपने साथ स्थित ग्रह की युति के अनुसार फल देता है उस पर किस ग्रह की दृष्टि है वह उसके अनुसार फल देता है. जो ग्रह राहु के साथ स्थित हो उस ग्रह के अनुसार फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तत्पश्चात राहु जिस राशि में स्थित हो उस राशि के स्वामी के अनुसार फल देता है. अत: राहु के साथ अन्य ग्रहों के संबंधों से ही उसके फल की व्याख्या अनुकूल रूप से की जाती है.

राहु वक्री चाल में रहने वाला ग्रह रहा है इसका कारण इनका सदैव वक्री होना है इस कारण से राहु के विषय में फलादेश करते समय सावधानी का प्रयोग करना चाहिए.  राहु को सर्प का मुख कहा गया है. विषैले रसायनों में राहु की उपस्थिति मानी गई है. जहर या जहर के प्रयोग से होने वाले कार्यो में राहु का प्रभाव माना जाता है.  राहु के स्वभाव में विश्वास की कमी रहती है अर्थात, कुण्डली के जिस भाव पर राहु की स्थिति हो उस भाव से संबन्धित फलों पर संश्य बना रहता है तथा जातक को सदैव ही दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

राहु का प्रभाव होने से व्यक्ति में सत्यता के गुण की कमी देखी जा सकती है. राहु को स्वभाव से क्रूर कहा जाता है तथा इसमें अहित करने की भावना मुख्यरूप से मानी गई है. राहु को अकेले रहना पसन्द है. अत: समाज के नियमों को मानने में आनाकानी बनी रहती है. राहु को कटू वचन बोलने वाला कहा गया है. उसके स्वभाव में विश्वास की कमी होने के कारण शक का भाव बना रहता है. राहु पर जिस ग्रह की दृष्टि हो वह उसके अनुसार फल देता है. राहु का प्रभाव धर्म भाव से होने पर व्यक्ति की धार्मिक भावना में कमी देखी जा सकती है. विचारों के मतभेद उत्पन्न होने की आशंका राहु से प्रभावित होने पर अधिक ही रहती है.

परंतु इसके यदि कुछ अच्छे पहलुओं पर भी विचार बनता है क्योंकि राहु के कुण्डली में बारह भावों के फल जानने के लिए उसके विभिन्न भावों में स्थित कारकों का फल देखना होता है जिसके अनुसार वह अपने फल देने में सक्ष्म होते हैं. इसमें से कुछ ऎसा भी यदि राहु योगकारक ग्रह के साथ हो अथवा अपनी उच्च राशि में हो केन्द्र त्रिकोण भावों में हो तो राहु के प्रभावों में शुभता देखी जा सकती है.