उल्का योगिनी दशा | Ulka Yogini Dasha | Ulka Yogini Dasha in Astrology
योगिनी दशा क्रम के अगले चरण में उल्का दशा आती है. उल्का दशा की समय अवधि 6 वर्ष की मानी गई है. इस समय के अनुसार जातक को योगिनी दशा फलों की प्राप्ति होती है. शनि से संबंधित इस दशा में व्यक्ति को संघर्ष की स्थिति का सामना करना करना पड़ सकता है और जातक में गुस्से की स्थिति बनी रहती है.
उल्का योगिनी दशा में शनि का जुडा़व होने से विद्वानों ने इस दशा में देह कष्ट, मनोव्यथा व जैसी समस्याओं का अनुमोदन किया है. ज्योतिष विद्वानों नें शनि को एक पाप ग्रह की संज्ञा दी है. इस कारण उल्का योगिनी दशा में जातक को अनेक प्रकार की शनि से संबंधित प्रभावों को भी अपने में देखना मिल जाता है. उल्का दशा में जातक के मन में द्वंद की स्थिति देखी जा सकती है. अनैतिक आचरण और गलत कामों द्वारा धन कमाने की ओर अग्रसर रह सकते हैं. इसी के साथ कुसंगति में होने पर धन का नाश व मान समान की हानि का सामना करना पड़ सकता है. जो व्यक्ति के लिए संताप को बढा़ने वाला हो सकता है.
कुछ विद्वान उल्का दशा का संबंध अग्नि संबंधि दुर्घटनाओं, वरिष्ठ जनों के सहयोग से होने वाले कामों में सफलता मिलना, न्याय करने वाला होना, काम के प्रति रात दिन को एकाकार कर देना, धन की प्राप्ति, भ्रमण इत्यादि से जोड़ते हैं. इसी के साथ साथ यह समय राजा एवं सेवक से हानी देने वाला भी बन सकता है. परिवार से संताप मिलता है व कष्ट की अनुभूति बढ़ जाती है.
दया व परोपकारित के कामों में उन्मुख होना तथा अधिकार एवं सत्ता के सुख व सेवकों को पाना भी उल्का दशा के दौरान हो सकता है. इन दो विचधारों के मध्य उल्का दशा एक तथ्य को तो अवश्य दर्शाती है कि शनि से संबंधित फलों के मिलने की दशा प्रबल होती है इस समय में उल्का योगिनी दशा में व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है.
व्यक्ति में कान या पांव से संबंधित तकलीफ हो सकती है. उदर एवं दांतों में तकलीफ हो सकती है. व्यक्ति में क्रोद्ध करने की प्रवृत्ति अधिक बढ़ सकती है और शांति से कार्यों को निपटाने की शक्ति क्षिण होने लगती है. जिसके कारण मन अशांत रहने लगता है और शुभता में कमी आने लगती है. यह दशा उपद्रव व अशांति को बढा़ती है. कभी कभी अग्नि एवं दुर्घटना से भय दिलाती है. इस अवधि में अशुभता के लक्ष्णों को अधिकता में बताया गया है.
वैदिक ज्योतिष में अनेक दशाओं का वर्णन किया गया हैं सूर्य आत्मा का, चन्द्रमा मन का, मंगल बल का, बुध बुद्धि का, गुरु जीव का, शुक्र स्त्री का और शनि आयु का कारक है. अत: इनकी महादशाओं का फलादेश देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए फलादेश में परिस्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है.
जन्म से मृत्यु तक ग्रहों के प्रभाव से विभिन्न प्रकार की सुखद एवं दु:खद घटनाओं से प्रभावित होते है. ग्रह उच्च राशि में हो तो नाम, यश प्राप्त होता है तथा ग्रहों के अशुभ होने पर कष्ट प्राप्त होता है. जन्म नक्षत्र से दशा स्वामी किस नक्षत्र में है ये देखना आवश्यक होता है.