ज्योतिष में सूर्य का महत्व | Importance of Sun in Astrology
बारह राशियों में से सूर्य मेष, सिंह तथा धनु में स्थित होकर विशेष रूप से बलवान होता है तथा मेष राशि में सूर्य को उच्च का माना जाता है. मेष राशि के अतिरिक्त सूर्य सिंह राशि में स्थित होकर भी बली होते हैं क्योंकि यह इनकी मूलत्रिकोण राशि होती है. यदि जातक की कुंडली में सूर्य बलवान तथा किसी भी बुरे ग्रह के प्रभाव से रहित है तो जातक को जीवन में बहुत कुछ प्राप्त होता स्वास्थ्य उत्तम होता है. सूर्य बलवान होने से कुंडली जातक शारीरिक तौर पर बहुत चुस्त-दुरुस्त होता है.
सूर्य कि कुंडली में मजबूत स्थिति व्यक्ति को कुछ अधिक सशक्त बना देती है. व्यक्ति भावनाओं को नियंत्रण में रखना जानता है कोई भी निर्णय सोच विचार कर ही लेता है भावनाओं में बहकर नहीं लेता अपने निर्णय पर अड़िग रहते हुए कभी कभी कठोर प्रतीत होता है परंतु कई बार लोग इन्हें अभिमानी समझने लगते हैं पर ऎसा नही है. सूर्य का बली होना व्यक्ति में जिम्मेदारियों को उठाने वाले बनाता है.
कुछ राशियों में सूर्य का बल सामान्य से कम हो जाता है तथा यह बल सूर्य के तुला राशि में स्थित होने पर सबसे कम हो जाता है इसी मे आकर सूर्य नीच के माने जाते हैं तथा सूर्य कुंडली में अपनी कुछ अन्य स्थिति के कारण तथा बुरे ग्रहों के प्रभाव में आने के कारण भी बलहीन हो जाते हैं
सूर्य उज्ज्वल एवं ज्वलंत ग्रह है, इसकी शक्ति द्वारा जीव एवं सृष्टि का विस्तार होता है. सूर्य समस्त उत्पत्ति का कारण है, परिवार में सूर्य कर्ता है, राज्य में राजा है, ग्राम में मुखिया, ग्रहों में सबसे प्रमुख हैं. आध्यात्मिक विद्या, अग्नि एवं तेज है, अधीनता स्वीकार नहीं करता. वह आदेश देता है किसी के आदेश का पालन नही करता. अपने महत्व एवं मर्यादा को समझता हैं. जिसका सूर्य बलवान है, वह उन्नति, वृद्धि, निर्माण करने वाला होता है. सूर्य हृदय का कारक है तथा इसके अलावा सूर्य नेत्र ज्योती का भी कारक है
कुण्डली में सूर्य के बल के मुताबिक जीवन में शक्ति होती है जिस कुंडली में सूर्य कमजोर रहता है वह जातक शारीरिक रूप से कमजोर होता है, इसलिए दूसरे ग्रह भी पूर्ण फल नहीं दे पाते. फलित ज्योतिष में सूर्य की अन्य ग्रहों से दूरी से पता चलता है. उसका नीच, उच्च, स्वग्रही, मित्र या शत्रु ग्रही तो नहीं यह तथ्य फलित ज्योतिष में महत्वपूर्ण है. सूर्य कि लग्न में स्थिति जातक कि आकृति, शारीरिक गठन, वर्ण रंग, रूप प्रभावित करती है. दशम भाव का सूर्य अधिक बलवान माना जाता है. सूर्य का कुण्डली में कमजोर होना बुरे प्रभाव देता है. कुंडली का अध्ययन करते समय कुंडली में सूर्य की स्थिति, बल तथा कुंडली के दूसरे शुभ तथा अशुभ ग्रहों के सूर्य पर प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक होता है.
सूर्य संबंधित कुछ अन्य विचार | Other information related to Sun
सूर्य के मित्र ग्रह चन्द्रमा, मंगल,गुरु है. शनि व शुक्र सूर्य के शत्रु ग्रह है. बुध ग्रह सूर्य के साथ सम सम्बन्ध रखता है. सूर्य की मूलत्रिकोण राशि सिंह है. इस राशि में सूर्य 0अंश से 20 अंश पर होने पर सूर्य मूलत्रिकोण अंशों पर होता है. सूर्य की उच्च राशि मेष राशि है. मेष राशि में सूर्य 10 अंश पर उच्च स्थान प्राप्त करते है. सूर्य तुला राशि में 10 अंश पर नीच राशिस्थ होते है.
सूर्य पुरुष प्रधान ग्रह है. सूर्य पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करते है. सूर्य का रत्न रुबी, रक्तमणी और तामडा है. सूर्य का शुभ रंग नारंगी, केसरी, हल्का लाल रंग है. सूर्य की शुभ संख्या 1, 10, 19 है. सूर्य के लिए शिव, अग्नि, रुद्र, भगवान नारायण, सचिदानन्द. सूर्य की कारक वस्तुओं में आत्मा, स्वाभिमान, तेजस्विता, ताकत, चिकित्सा करने का सामर्थ्य. सूर्य राजनीति, राजसी, राजसिक ग्रह, एक नैसर्गिक आत्मकारक, जीवन का स्त्रोत, ह्रदय, ऊर्जा और चतुष्पद राशि स्वामी ग्रह है.
सूर्य का बीज मंत्र | Sun’s Beej Mantra
" ऊँ ह्रं ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम: "
सूर्य का वैदिक मंत्र | Sun’s Vedic Mantra
"ऊँ आसत्येनरजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतंच ।
हिरण्येन सविता रथेनादेवी यति भुवना विपश्यत ।।"
सूर्य के लिए गेहूं, तांबा, रुबी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, केसर आदि दान किये जा सकते है.
सूर्य की राशि लग्न में हो, या सूर्य लग्न बली होकर लग्न भाव में अथवा व्यक्ति की जन्म राशि सूर्य की राशि हो, तो व्यक्ति की आंखे, शहद के रंग की आंखें, शीघ्र ही क्रोधित होने वाला, कमजोर दृ्ष्टि वाला, कद में औसत होता है. सूर्य शरीर में पित्त, वायु, हड्डियां, घुटने और नाभी का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य के कारण व्यक्ति को ह्रदय रोग, हड्डियों का टूटना, माइग्रेन, पीलिया, ज्वर, जलन, कटना, घाव, शरीर में सूजन, विषाक्त, चर्म रोग, कोढ, पित्तीय संरचना, कमजोर दृष्टि, पेट, दिमागी, गडबडी, भूख की कमी जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं.