विवाह में त्रिबल शुद्धि | Tribal in a Marriage
विवाह में त्रिबल शुद्धि का महत्व | Importance of Tribal in a marriage
विवाह मुहूर्त का विचार करते समय त्रिबल का विचार करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है. त्रिबल अर्थात तीन बल इसमें हम सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का बल देखते हैं. त्रिबल में वर के लिए सूर्य का बल, कन्या के लिए बृहस्पति (गरू) का बल और वर-कन्या दोनों के लिए चंद्रमा बल पर विचार किया जाता है.
स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम।
तयोश्चन्द्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम।।
यदि मिलान में सूर्य, चंद्रमा तथा बृहस्पति का बल कुछ कम या पूर्ण नहीं हो तो विवाह नहीं किया जाता है.
गुरू को जीवन एवं भाग्य का कारक माना जाता है. चंद्रमा धन एवं मानसिक शांति प्रदान करता है तथा सूर्य तेज प्रदान करने का कार्य करते हैं इसलिए यदि विवाह के समय यह ग्रह पूर्ण अनुकूल हों तो वर एवं वधु का आने वाला जीवन सूख पूर्वक व्यतीत होता है.
वधु के लिए गुरु एवं चंद्रमा का बल और पुरुष के लिए सूर्य तथा चंद्रमा के बल का विचार किया जाता है. यह तीनों बल अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं. शरीर एवं धन का संबंध पुरुष से बनता है और बुद्धि का बल ही इन्हें नियंत्रित करने में सक्षम बनता है. इसलिए कन्या के लिए गुरू का बल देखा जाता है क्योंकि शरीर और धन के संवर्धन में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. यदि गृहलक्ष्मी का बुद्धि बल श्रेष्ठ है तो गृहस्थ जीवन सुखद रह पाएगा.
गुरू-सूर्य तथा चंद्र विचरण | Analysis of Sun, Moon and Jupiter
त्रिबल विचार के लिए वर-वधु की जन्म राशि से विवाह के समय गुरू-सूर्य तथा चंद्र जिन राशियों में विचरण कर रहे हैं, वहां तक गिनती की जाती है. जैसे पुरूष के लिए सूर्य का विचार करने हेतु देखते हैं कि उसकी चंद्र राशि से वर्तमान राशि में गतिशील सूर्य यदि गिनती करने पर चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में आता है तो इस समय विवाह का त्याग करना उचित होता है. यदि पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें या नवें स्थान में सूर्य स्थित हो तो सूर्य का दान और पूजादि करके विवाह किया जा सकता है. यदि सूर्य तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें स्थान में हों तो विवाह का होना बहुत शुभप्रद माना जाता है.
कन्या की चंद्र राशि से गोचर का गुरू यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में भ्रमण कर रहा है तो विवाह नहीं करना चाहिए व ऎसे समय का विवाह के लिए त्याग करना ही उचित होता है. इसके अतिरिक्त यदि पहले, तीसरे, छठे या दशवें स्थान में गुरू हों तो उसकी पूजा एवं दान कराके ही विवाह का विचार शुभकारक होता है. यदि दूसरे, पांचवे, सातवें, नौवें या ग्यारहवें स्थान में गुरू हों तो विवाह करना शुभप्रद माना जाता है.
चंद्र विचार के लिए वर एवं वधु की चंद्र राशि से गोचर का चंद्रमा यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में पड़े तो अशुभ माना जाता है. अन्य सभी स्थानों पर चंद्रमा के गोचर को विवाह के लिए शुभ माना जाता है.
सूर्य-चंद्र तथा गुरू तीनों ही विवाह के समय यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में भ्रमण कर रहे हों तो अशुभ होते हैं. इस समय विवाह नहीं करना चाहिए. कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वर के लिए चंद्रमा को बारहवें में शुभ मानते हैं, लेकिन कन्या के लिए बारहवां चंद्रमा पूर्ण रुप से निषिद्ध माना गया है. इसी प्रकार त्रिबल में सूर्य-चंद्र तथा गुरू का विचार करते हुए ग्यारहवां स्थान सर्वथा शुभ माना जाता है.
त्रिबल पूजा विधान | Procedure of Tribal Worship
त्रिबल में वर-वधु की राशि के आधार पर तीनों ग्रहों को देखा जाता है. यदि यह तीनों ग्रह शुभ हैं तो विवाह करना शुभ होता है परंतु यदि किसी ग्रह की शांति की जानी हो तो उस ग्रह की पूजा एवं शांति के साथ उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करने के पश्चात विवाह किया जा सकता है.
लाल पूजा - इन ग्रहों से संबंधित पूजा में सूर्य की पूजा को लाल पूजा कहा जाता है.
पीली पूजा - बृहस्पति की पूजा को पीली पूजा कहा जाता है. यदि विवाह में लाल एवं पीली पूजा करना अनिवार्य है तो उक्त पूजा को करने के बाद ही विवाह किया जाना चाहिए. यदि संभव हो तो लाल पूजा करने पर विवाह को कुछ समय के लिए टाल देना ही हितकर व शुभ होता है.
भावी वर एवं वधु की पत्रिका के आधार पर गोचर में ग्रहों की क्या स्थिति है उसे इस सारणी के आधार पर देखा जा सकता है.
त्रिबल पूजा | शुद्ध | पूज्य | नेष्ट |
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वर की राशि से सूर्य | 3, 6, 10, 11 | 1, 2, 5, 7, 9 | 4, 8, 12 |
कन्या की राशि से गुरू | 2, 5, 7, 9, 11 | 1, 3, 6, 10 | 4, 8, 12 |
दोनों की राशि से चंद्र | 3, 6, 7, 10, 11 | 1, 2, 5, 9, 11 | 4, 8 |