कुण्डली मिलान में दोष परिहार - किन कारणों से आपकी कुण्डली के दोष खत्म होते हैं
कुंडली मिलान को अधिकतर व्यक्ति एक सरसरी निगाह से देखते हैं. उनकी नजर में जितने अधिक गुण मिलते हैं उतने अच्छा होता है जबकि यह पैमाना बिलकुल गलत है. कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि गुण मिलान तो हो गया लेकिन जन्म कुंडली का आंकलन नहीं हुआ. सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की अपनी कुंडली में वैवाहिक सुख कितना है? तब उसे आगे बढ़ना चाहिए.
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आजकल आँख मूंदकर यही देखा है कि गुण कितने मिल रहे हैं और जातक मांगलिक है या नहीं. बस इसके बाद सब कुछ तय हो जाता है. यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है अर्थात अधिकतर दोष कैंसिल हो जाते हैं लेकिन इतना समय कौन बर्बाद करें. आइए आपको कुछ दोषों के परिहार के विषय में जानकारी देने का प्रयास करते हैं.
कुंडली मिलान में एक से चार नंबर तक के दोषों का कुछ विशेष परिहार नहीं है. मुख्य रुप से गण मिलान से परिहार आरंभ होता है.
गण दोष का परिहार | Cancellation of Gana Dosha
यदि किन्हीं जन्म कुंडलियों में गण दोष मौजूद है तब सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें :
- चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर भी गणदोष नहीं रहता है.
- ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार होता है.
- यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं तब किसी तरह का दोष नहीं माना जाता है.
भकूट दोष का परिहार | Cancellation of Bhakut Dosha
भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं. जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वार्दश दोष होता है. इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न - भिन्न प्रकार से हो जाता है.
षडाष्टक परिहार | Cancellation of Sashtak
- यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है.
- यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए.
- मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए.
- यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है.
नव पंचम का परिहार | Cancellation of Navpanchak
नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है.
- यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है.
- मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए.
- यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है.
द्वि-द्वार्दश योग का परिहार | Cancellation of Dwi-Dwardasha Dosha
- लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है.
- द्वि-द्वार्द्श योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है.
- मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है.
नाड़ी दोष का परिहार | Cancellation of Nadi Dosha
नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है. आइए विस्तार से जानें :-
- वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है.
- दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है.
- दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है.
- शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है.
- ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृ्गशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है.