Articles in Category Vedic Astrology

क्या आप व्यवसाय में सफल होंगे? ज्योतिष द्वारा जानिये

कुण्डली के बारह भावों में जलग्न को प्रमुख स्थान दिया जाता है. जातक परिजात के अनुसार लग्न, लग्नेश एवं लग्न के कारक सूर्य के बलवान होने पर जातक सुख सुविधा से संपन्न जीवन व्यतीत करता है. लग्न पर यदि

कुण्डली में विवाह योग कैसे बनते हैं | How are marriage yogas formed in a Kundali | Marriage Yogas in Kundali | Marriage Yogas

विवाह के समय का निर्धारण करने में कुण्डली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते है. किसी व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में कितना सुख मिलेगा यह सब कुण्डली के योगों पर निर्भर करता है. शुभ ग्रह, शुभ भावों के

गण्डमूल नक्षत्र का प्रभाव | Effect of Gandmool Nakshatra | Gand Mool Nakshatra Effects

ज्योतिष ग्रंथों में अनेक स्थानों पर गंडांत अर्थात गण्डमूल नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है. रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ और अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही जाती हैं. ज्योतिष शास्त्र

पितृ दोष के विशेष योग और उपाय | Yogas for Pitra Dosha and Remedies for it

जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है. यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते

क्या आप धनवान बनेंगे? अपनी कुण्डली से स्वयं जानिये

ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में धन वैभव और सुख के लिए कुण्डली में मौजूद धनदायक योग या लक्ष्मी योग काफी महत्वपूर्ण होते हैं. जन्म कुण्डली एवं चंद्र कुंडली में विशेष धन योग तब बनते हैं जब जन्म व चंद्र

कुण्डली में अरिष्ट योग | Reasons for the formation of inauspicious yogas in a Kundali

जन्मकुंडली के माध्यम से जातक के अरिष्ट होने के योग या कारण को जाना जा सकता है. जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति, गोचर तथा दशा-अन्तर्दशा से अरिष्ट योगों को समझा जा सकता है. रोगों का विचार अष्टमेश और आठवें

क्या होता है गण्डमूल नक्षत्र और क्या होगा उसका प्रभाव

वैदिक ज्योतिष के अनुसार भचक्र में कुल 27 नक्षत्र होते हैं. इन सत्ताईस नक्षत्रों में कुछ नक्षत्र ऎसे होते हैं जिनका क्षेत्र अति संवेदनशील होता है और इन्हीं नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है.

जानिये कि योनि मिलान क्यों जरूरी है

इस संसार में जितने भी जीव हैं वह किसी ना किसी योनि से अवश्य ही संबंध रखते हैं. वैदिक ज्योतिष में भी इन योनियों के महत्व पर बल दिया गया है और इनका संबंध नक्षत्रों से जोड़ा गया है. योनियों के वर्गीकरण

क्या होगा आपके ग्रहों की शयनादी अवस्था का प्रभाव? ज्योतिष से जानिए

वैदिक ज्योतिष में बहुत से योगों तथा अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. इन अवस्थाओं को भिन्न - भिन्न नामों से जाना जाता है. इन अवस्थाओं के नाम के अनुसार ही इनका प्रभाव भी होता है और व्यक्ति को अपने जीवन में

ज्योतिष में ग्रह कि जाग्रतादि अवस्थाओं की महत्ता

ग्रहों की कई प्रकार की अवस्थाएं होती हैं. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई नियमों के आधार पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था जाग्रत या जाग्रतादि अवस्थाएँ होती हैं.

लज्जितादी अवस्थाओं का महत्व और प्रभाव. पूर्ण विवरण देखिये

ग्रहों की कई प्रकार की अवस्थाएँ होती हैं. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई नियमों के आधार पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था लज्जितादि अवस्थाएँ होती हैं. इन अवस्थाओं

क्या होगा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने का प्रभाव? संपूर्ण जानकारी

आकाश में कुंभ राशि में 20 अंश से मीन राशि में 3 अंश 20 कला तक पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र रहता है. क्रान्ति वृ्त्त से 19 अंश 24 कला 22 विकला उत्तर में और विषुवत रेखा से 15 अंश 11 कला 21 विकला उत्तर में

ज्योतिष में दीप्तादी अवस्थाओं का क्या महत्व है?

वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की कई प्रकार की अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई तरह के बलों पर आधारित होती हैं. बालादि अवस्था में ग्रहों को बल उनके अंशो के आधार पर मिलता

बालादि अवस्था क्या होती हैं, जानिये.

वैदिक ज्योतिष में ग्रहो की कई प्रकार की अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई तरह के बलों पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था बालादि अवस्थाएँ