ग्रहों की कई प्रकार की अवस्थाएँ होती हैं. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई नियमों के आधार पर आधारित होती हैं. इन्हीं अवस्थाओं में से ग्रहों की एक अवस्था लज्जितादि अवस्थाएँ होती हैं. इन अवस्थाओं के आधार पर ग्रह विभिन्न फलों का प्रतिपादन करते हैं. इन दशाओं में ग्रह अपनी अवस्था के अनुरुप फल प्रदान करता है. लेकिन हम सिर्फ इन अवस्थाओ से ही सारा फल कथन नही कर सकते यह तो मात्र अनुमान है.
लज्जित अवस्था | Lajjit Avastha
जब भी कोई ग्रह कुण्डली में पंचम भाव में अशुभ ग्रहों से युक्त हो तो यह ग्रह की लज्जित अवस्था होती है.
इस अवस्था में ग्रह अनुकूल फल देने में कुछ अक्षम होता है. पंचम भाव के फलों में भी कमी हो सकती है.
लज्जित अवस्था प्रभाव | Effects of Lajjit Avastha
इस अवस्था के कारण व्यक्ति के भीतर धार्मिकता का लोप होता है. किसी भी बात के मध्य अंतर को समझने की क्षमता में कमी देखी जा सकती है. छोटे बच्चों में बिमारी के लक्षण देखे जा सकते हैं. सोचने समझने की ताकत कम होती है विवेक पूर्ण कार्य नहीं हो पाता. व्यक्ति जीवन में लक्ष्यहीन सा महसूस करता है, झगडालू प्रवृत्ति होने लगती है. पांचवें भाव के प्रभाव लोप भी हो सकते हैं.
तृषित अवस्था | Trisheet Avastha
कुण्डली में ग्रह जलीय राशि(4,8,12राशि) में बैठा हो और उसे अशुभ ग्रह देख रहे हो और शुभ ग्रह नहिं देखते हों. तब यह तृषित अवस्था कहलाती है. चौथे, आठवें ओर बारहवें भाव में इस अवस्था के होने का अधिक प्रभाव पड़ता है. ग्रह पर कोई भी शुभ दृष्टि न होने पर गृह तृषित अवस्था में होता है.
तृषित अवस्था प्रभाव | Effects of Trisheet Avastha
इस अवस्था के कारण धन की हानि होती है. व्यक्ति निर्बल होता है और उसे प्रताड़ना मिल सकती है. व्यक्ति नीच कर्म करने वाला हो सकता है. स्त्रियों के संसर्ग द्वारा अनेक प्रकार की बिमारियां प्राप्त होती हैं. स्वास्थ्य में हमेशा परेशानी बनी रह सकती है.
क्षुधित अवस्था | Shudhit Avastha
इसके अनुसार यदि ग्रह शत्रु राशि या शत्रु के क्षेत्र में स्थित हो, ग्रह शत्रु से युति कर रहा हो या उससे दृष्ट हो विशेष रुप से शनि से दृष्ट हो तो यह उसकी क्षुधित अवस्था कहलाती है. इसमें शत्रु से किसी भी तरह से संबंध बन सकता है. यह मैत्री नैसर्गिक मित्रता पर आधारित होती है.
क्षुधित अवस्था प्रभाव | Effects of Shudhit Avastha
इसके प्रभाव स्वरुप व्यक्ति मानसिक रुप से विक्षिप्त, शत्रुओं से परेशानियां, धन एवं मान सम्मान की हानि, शरीर की उर्जा का ह्रास होता है. व्यक्ति में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की आदत होती है. व्यक्ति द्विअर्थी होता है और तथ्यहीन तर्क (कुतर्क) करने वाला होता है.
क्षोभित अवस्था | Shobhit Avastha
कुण्डली में ग्रह सूर्य के साथ हो, ग्रह अस्त हो या अस्त नहीं हो दोनों ही स्थितियों में या अशुभ एवं शत्रु ग्रह के साथ दृष्ट या युति में हों तो क्षोभित अवस्था होती है.
क्षोभित अवस्था प्रभाव | Effects of Shobhit Avastha
इस अवस्था के प्रभाव स्वरुप धन की हानि होती है, व्यक्ति कुतर्क करने वाला होता है. पैरों के रोग या टखने से नीचे का भाग प्रभावित हो सकता है. इस अवस्था से प्रभावित व्यक्ति को अनेक प्रकार कि मानसिक चिंताएं प्रभावित कर सकती हैं. इस योग के व्यक्ति को सरकारी प्रभाव से धन की हानि हो सकती है.
मुदित अवस्था | Mudit Avastha
कुण्डली में यदि ग्रह मित्र की राशि में हो या मित्र के क्षेत्र में हो या मित्र से युति हो अथवा मित्र से दृष्ट और गुरु के साथ स्थित हो तो यह उस ग्रह की मुदित अवस्था होती है.
मुदित अवस्था प्रभाव | Effects of mudit Avastha
इस अवस्था के कारण सुंदर वस्त्र एवं आभूषणों की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को अपने जीवन में बडा़ भवन मिलता है. जमीन जायदाद एवं अन्य सुखों की प्राप्ति होती है. शिक्षा एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. शत्रुओं का नाश होता है और भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है.
गर्वित अवस्था | Garvit Avastha
यह दीप्त अवस्था और स्वस्थ अवस्था के मिश्रित परिणाम द्वारा प्राप्त होती है. इसमें कुंडली में ग्रह उच्च का बैठा हो, अपनी मूलत्रिकोण राशि में हो या अपनी स्वराशी में स्थित हो तो यह ग्रह की गर्वित अवस्था कहलाती है.
गर्वित अवस्था प्रभाव
राजसी ठाठ बाट मिलता है, उच्च राजकीय सम्मान एवं पद की प्राप्ति होती है. भू-संपत्ति का लाभ मिलता है. व्यापार एवं व्यवसाय में वृद्धि होती है. शिक्षा एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. अनेकों प्रकार की सुख एवं सुविधाओं की प्राप्ति होती है.