वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की कई प्रकार की अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. यह अवस्थाएँ ग्रहों के अंश अथवा अन्य कई तरह के बलों पर आधारित होती हैं. बालादि अवस्था में ग्रहों को बल उनके अंशो के आधार पर मिलता है जबकि दीप्तादि में राशि के आधार पर मिलता है. जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि ये अवस्थाएँ ग्रह के प्रकाश को बताती हैं. जब ग्रह अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि और स्वराशि में होते हैं तो राशियों की स्थिति के अनुकूल फल देते हैं और इन्हें ही दीप्तादि अवस्था कहते हैं .
जिस प्रकार समाज में व्यक्ति एक-दूसरे के मित्र या शत्रु होते हैं उसी प्रकार ग्रह भी आपस में मित्रता, शत्रुता और समभाव रखते हैं उसी के अनुसार वह फल भी देते हैं. यह अवस्थाएँ ग्रहों की नैसर्गिक तथा तात्कालिक मित्रता को को मिलाकर पंचधा मैत्री से देखा जाता है.
दीप्त अवस्था | Dipta Avastha
जब भी कोई ग्रह कुण्डली में उच्च का हो या अपनी उच्च राशि में स्थित हो अथवा उच्च के अंश में स्थित हो तो वह उसकी दीप्त अवस्था होती है. इसमें वह अपने सम्पूर्ण फल देने में सक्षम होता है. इस अवस्था में ग्रह अपने पूर्ण प्रकाश युक्त होता है. दीप्त अवस्था में स्थित ग्रह की दशा आने पर वह ग्रह अपार सम्पदा प्रदान करता है.
दीप्त अवस्था प्रभाव | Effects of Dipta Avastha
इस अवस्था से साहस, वैभव, धन संपत्ति, भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, दीर्घकालिक खुशी, राजकीय मान सम्मान, राजकृपा, प्राप्त होती है. व्यक्ति शक्तिशाली, गुणवान व पुरूषार्थी होता है. उसके कार्यों में शालीनता होती है.
स्वस्थ अवस्था | Svastha Avastha
जब भी ग्रह कुण्डली में अपनी मूलत्रिकोण राशि में या स्वराशि में होता है तब वह स्वस्थ अवस्था में होता है. इसमें वह अच्छे फल देता है. व्यक्ति समाजिक यश प्राप्त करता है और हर क्षेत्र में उसे सफलता मिलती है. वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और यश, सम्पदा, सम्मान प्राप्त करता है.
स्वस्थ अवस्था प्रभाव | Effects of Svastha Avastha
इस अवस्था में ग्रह अपने ही घर में माना जाता है. इस अवस्था में ग्रह अपने सारे फल देने में सक्षम होता है. ग्रह जिस भाव में स्थित होता है और जिन भावों का स्वामी होता है उनसे संबंधित सभी अशुभ व शुभ फल प्रदान करता है. जातक को धन, वाहन, भवन, आभूषण सभी कुछ प्राप्त होता है. भौतिक सुख, विलास पूर्ण वस्तुएं, आभूषण, अच्छा स्वास्थ्य, आराम-परस्त जीवन, भूमि सुख, दांपत्य सुख, संतान, धार्मिक विचारों से परिपूर्ण, पद्दोन्नति आदि मिलती है.
मुदित अवस्था | Mudita Avastha
जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपनी मित्र की राशि में स्थित होता है तब वह उस ग्रह की मुदित अवस्था होती है. जिस प्रकार व्यक्ति अपने अच्छे मित्रों के साथ खुश रहता है ठीक उसी प्रकार ग्रह भी अपनी मित्र राशि में मुदित अर्थात प्रसन्न रहते हैं. मुदित अवस्था के प्रभाव से व्यक्ति धन-सम्पत्ति व धार्मिक कार्यो में रुचि दर्शाता है. जातक किसी की सहायता से भी कार्य कर सकता है. इस अवस्था में स्थित ग्रह की दशा होने पर जातक जीवन में सफलता प्राप्त करता है तथा जीवन में नई ऊचाईयों को छूता है.
मुदित अवस्था प्रभाव | Effects of Mudita Avastha
कुण्डली में यदि ग्रह अपनी मुदित अवस्था में स्थित है तब व्यक्ति को आर्थिक लाभ और धन प्राप्ति होती है. व्यक्ति सभ्य व्यवहार करने वाला होता है और उसे मानसिक संतोष की प्राप्ति होती है. उसे आभूषण, वस्त्र, वाहन का सुख मिलता है. धार्मिक प्रवृति जागृत होती है और मित्र के व्यवहार द्वारा अच्छे गुणों की प्राप्ति होती है.
शान्त अवस्था | Santa Avastha
कोई ग्रह कुण्डली में शुभ ग्रह की राशि में हो और वर्गो (सप्तमांश् नवांश, दशमाशं इत्यादि ) में अपने शुभ वर्गों में होता है तो वह उसकी शान्त अवस्था होती है. जातक धैर्यवान व शान्त प्रकृति का होता है. वह शास्त्रों का ज्ञाता होता है और दानी होता है. व्यक्ति बहुत से मित्रों से परिपूर्ण हो सकता है. व्यक्ति सरकारी अधिकारी होकर किसी उच्च पद पर आसीन हो सकता है.
शांत अवस्था प्रभाव | Effects of Santa Avastha
यह अवस्था मानसिक संतोष की अनुभूति प्रदान करने वाली होती है. जातक मित्रता पूर्ण व्यवहार करने वाला होता है. एक अच्छे सलाहकार की भूमिका निभाने वाला होता है. लेखन कार्य में रुचि होती है. अधिक पाने की लालसा रहती है. मकान एवं जायदाद संबंधी सुख की प्राप्ति होती है. धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना एवं योग ध्यान में रुचि उत्पन्न होती है.
शक्त अवस्था | Shakt Avastha
कुण्ड्ली में जब कोई ग्रह उदित अवस्था अर्थात ग्रह के अस्त होने से पहले की अवस्था में होता है तब यह ग्रह की शक्त अवस्था होती है. इस अवस्था में ग्रह इतना शक्तिशाली नहीं होता और पूर्ण फल देने में समर्थ नही होता है परन्तु वह अपने कार्य में सक्षम, शत्रु का नाश करने वाला, शौकीन मिजाज़ होता है. इस अवस्था में स्थित ग्रह की दशा होने पर जातक जीवन में कठिनाईयो के साथ सफलता प्राप्त करता है.
शक्त अवस्था प्रभाव | Effects of Shakt Avastha
इस अवस्था के प्रभाव के परिणामस्वरुप व्यक्ति को मान सम्मान की प्राप्ति होती है, उसे जीवन में खुशी मिलती है. व्यक्ति को अपने कामों के लिए प्रसिद्धि मिलती है, उसके पुरुषार्थ में वृद्धि होती है, कार्यों को संपन्न करने की दक्षता होती है. व्यक्ति को अचानक से मिलने वाले परिणाम प्राप्त होते हैं. उतार- चढाव से भरी जिंदगी भी हो सकती है. लेकिन बहुत बुरे परिणाम नहीं मिलते हैं.
पीड़ित अवस्था | Peedit Avastha
कुण्डली में जब भी ग्रह सूर्य के समीप आते है तब वह अस्त हो जाते है. इस अवस्था में ग्रह अपना प्रभाव खो देते है. अस्त ग्रह की अवस्था उसकी पीडित अवस्था होती है. इस अवस्था में ग्रह अशुभ फल प्रदान करता है. जातक बुरे व्यसनों में लिप्त हो सकता है. यदि लग्नेश होकर ग्रह अस्त होगा तो जातक जीवन मे रोग ग्रस्त हो सकता है. जातक को अपने जीवन काल मे बदनामी मिल सकती है. पीडित ग्रह जातक को कार्य में असफलता देता है.
पीड़ित अवस्था प्रभाव | Effects of Peedit Avastha
व्यक्ति को जीवन में धन हानि हो सकती है. जीवन साथी एवं बच्चों से अनबन और कलह की स्थिति उत्पन्न हो साक्ती है व्यक्ति रोग एवं व्याधि से प्रभावित हो सकता है, विशेषकर नेत्र संबंधी रोग परेशानी दे सकते हैं. व्यक्ति की किसी कारण से बदनामी हो सकती है अथवा वह पाप पूर्ण या अनैतिक कामों में लिप्त हो सकता है. व्यक्ति को अपने द्वारा किए प्रयासों में विफलता मिलती है और वह बुरी लत से प्रभावित हो सकता है.
दीन अवस्था | Deen Avastha
जब भी ग्रह कुण्डली में अपनी नीच राशि में होता है वह उसकी दीन अवस्था होती है. यहाँ ग्रह अपनी सारी शक्ति खो चुका होता है. व्यक्ति को अपने जीवन काल में संघर्षो से गुजरना पडता है. जीवन में निर्धनता का सामना करना पडता है. व्यक्ति सरकारी अधिकारियों से दुखी, भयभीत, अपने लोगो से शत्रुता, कानून व सामाजिक नियमों की अवहेलना करने वाला होता है.
दीन अवस्था प्रभाव | Effects of Deen Avastha
ग्रह की इस अवस्था में व्यक्ति के बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं. व्यक्ति कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक हो जाता है. हर परिस्थिति से डरने वाला, शोक संताप से पीड़ित, शारीरिक क्षमता में गिरावट का अनुभव होता है. संबंधियों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है और घर परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न होने की नौबत तक आ सकती है. व्यक्ति बिमारियों से ग्रस्त होता है एवं लोगों द्वारा तिरस्कृति भी हो सकता है.
विकल अवस्था | Vikal Avastha
जब भी कुण्डली के किसी भी भाव या राशि में ग्रह पाप (अशुभ) ग्रहों के साथ होता है तब वह ग्रह की विकल अवस्था होती है. जिस तरह से एक साधारण व्यक्ति यदि किसी ताकतवर या पाप कर्म करने वाले व्यक्ति के साथ बैठ जाता है तब वह स्वयं को बेचैन महसूस करता है. इसी तरह ग्रह भी पाप ग्रहों के साथ बेचैनी महसूस करते हैं और यही अवस्था ग्रह की विकल अवस्था होती है. ग्रह अपने फलानुसार फल नही दे पाता और वह साथ बैठे ग्रहों के अनुरुप फल देता है. इसके फल स्वरुप जातक नीच प्रकृति वाला होता है. जातक शक्तिहीन होकर दूसरों का सेवक होता है और बुरी संगति का संग करने वाला होता है.
विकल अवस्था प्रभाव | Effects of Vikal Avastha
ग्रह की विकल अवस्था के परिणामस्वरुप व्यक्ति शक्तिहीन तथा बलहीन होता है. व्यक्ति की आत्म-सम्मान की हानि भी हो सकती है. मित्रों एवं सगे संबंधियों से अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. आत्मिक दुख, मानसिक प्रताड़ना, जीवन साथी तथा बच्चों से हानि एवं कष्ट की स्थिति पैदा हो सकती है. व्यक्ति को चोरों द्वारा हानि भी हो सकती है. उसके स्तरहीन लोगों से संबंध बनते हैं.
खल अवस्था | Khal Avastha
जब भी कुण्डली के किसी भी भाव या राशि में दो ग्रह या दो से अधिक ग्रह आपस में 1 अंश के अन्तर में हों तो यह गृह युद्ध की स्थिति होती है. इसमे से अधिक अंशो वाला ग्रह युद्ध में परास्त होता है. परास्त ग्रह खल अवस्था में माना जाता है वह जातक को निर्धन बनाता है और जातक क्रोधी स्वभाव वाला होता है. जातक दूसरों के धन पर बुरी दृष्टि रखने वाला होता है.
खल अवस्था प्रभाव | Effects of Khal Avastha
ग्रह की इस अवस्था के प्रभाव से व्यक्ति के अंदर शत्रुता की भावना पनपती है. वह अपने ही लोगों द्वारा प्रताड़ित होता है. स्वभाव से झगडालू हो सकता है. अपने पिता से व्यक्ति की अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. धन- संपत्ति एवं जायदाद की हानि हो सकती है. व्यक्ति गलत कार्यों द्वारा धन एकत्रित करना चाहेगा तथा अपना हित करने वाला व स्वार्थी प्रवृत्ति का हो सकता है.
दुखी अवस्था | Dukhi Avastha
जन्म कुण्डली में जब कोई ग्रह शत्रु ग्रह के क्षेत्र में हो अथवा शत्रु ग्रह की राशि में बैठा हो तो वह दुखी अवस्था में होता है. जिस तरह से यदि कभी किसी व्यक्ति को अपने शत्रु के घर में जाना पड़े तो वह वहाँ जाकर परेशानी का अनुभव करता है. इसी तरह से ग्रह भी शत्रु के घर में परेशान होता है. ग्रह की इस अवस्था के कारण व्यक्ति को अनेक कष्ट मिलते हैं. उसे परिस्थतियों के कारण कष्ट की अनुभूति होती है.
दुखी अवस्था प्रभाव | Effects of Dukhi Avastha
ग्रह की इस अवस्था के कारण व्यक्ति का स्थान परिवर्तन होता है. अपने प्रिय जनों से अलग रहने की स्थिति पैदा हो सकती है. आग लगने का भय तथा चोरी का होने का भय व्यक्ति को सताता है. व्यक्ति के साथ सदा असमंजस की स्थिति बनी रहती है.