होटल व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता का निर्धारण कुण्डली के दूसरे भाव, चौथे भाव और एकादश भाव से करना चाहिए. यह स्थान जातक के लिए विशेष प्रभावशाली माने जाते हैं. इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में सफलता के लिए शुक्र का होना महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके अतिरिक्त केतु, मंगल व राहु का संबंध भी आने पर यह योग निर्धारित हो सकता है. दशम भाव उच्च व्यवसाय का भाव है तो दशम से सप्तम जनता से संबंधित भाव हैं.
वहीं द्वितीय भाव वाणी का स्थान और भोजन से संबंधी भी होता है. अत: इनका इस व्यवसाय में विशेष योगदान रहता है. राहु और शुक्र का अन्य ग्रहों से संबन्ध व्यक्ति को होटल व्यवसाय की ओर लेकर जाता है. दशमेश का शुक्र के साथ होना या दशमेश शुक्र बली अवस्था में स्थित हो तो व्यक्ति को होटल के काम में अच्छा करने के मौके देता है. मंगल अग्नि तत्व होने से इसके लिए महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है जो काम करने की योग्यता देता है.
जन्म कुण्डली में मंगल, शुक्र, और राहु का सप्तम भाव में अच्छी स्थिति में होना और जनता कारक शनि का अच्छी स्थितियों में होना इस क्षेत्र में अनुकूल माना जाता है.
जन्म कुण्डली में यदि इस उद्योग के कारक ग्रह शुक्र, मंगल, राहु, शनि इत्यादि में से दो या दो से अधिक ग्रह जातक के धन भाव में स्थित होकर धन प्राप्ति में सहायक हो रहे तो जातक के लिए इस व्यवसाय द्वारा लाभ की प्राप्ति होती है.
होटल व्यवसाय में बुध का योगदान भी आता है क्योंकि यह व्यापार का कारक है और जनता से जुडे़ होने के कारण जनता कारक शनि चौथे भाव का स्वामी की केन्द्र या त्रिकोण स्थान में लग्नेश के साथ या कर्म भाव के स्वामी के साथ हो तो जातक इस व्यवसाय में अच्छा करने में सक्षम हो सकता है.
यदि जन्म कुण्डली का लग्न मेष राशि का हो और दशमेश और एकादशेश शनि उच्च राशि का होकर नवम में स्थित मंगल को देखे और मंगल की दृष्टि पराक्रम भाव पर पड़ती हो तो जातक को इस व्यवसाय की ओर रूझान रख सकता है.
जन्म कुण्डली में नवें, दसवें और ग्यारहवें भाव के स्वामी शुभ स्थानों में कारक ग्रहों मंगल, शुक्र आदि के साथ संबंध बनाता हो तो जातक को इस क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त होती है और व्यक्ति को इसमें अच्छे लाभ की प्राप्ति होती है.
जातक की कुण्डली में लग्नेश चौथे भाव में शनि क साथ बैठा हो अथवा चौथे भाव के स्वामी के साथ हो और दशम भाव में स्थित मंगल व शुक्र के साथ संबंध स्थापित कर रहा हो तो जातक को होटल व्यापार करने की चाह रहती है और वह इस कार्य में दक्षता हासिल करने में सफल भी रहता है.
जन्म कुण्डली में धनेश और लग्नेश अगर बुध और शुक्र हों तो यह स्थिति अनुकूल प्रभाव देने वाली रह सकती है. इस स्थिति में यदि बुध भाग्य स्थान को दृष्टि देता हो और गुरू लाभेश होकर बुध पर दृष्टि दे रहा हो. सुख भाव का स्वामी स्वगृही होकर कर्म भाव को प्रभावित करता हो व इसके अतिरिक्त मंगल किसी भी प्रकार से शुक्र और भाग्यभाव या भाग्येश को प्रभावित करता हो तो जातक को होटेल के काम में काफी सफलता मिलती है.
कुण्डली में लग्न में व्यापार का कारक बुध अगर मंगल, शुक्र, और शनि की राशि में हो या इनके ही नक्षत्रों में स्थित हो और दूसरे भाव का स्वामी व एकादश भाव पाप मुक्त होकर लग्न भाव, धन भाव या लाभ भाव में स्थित हो और चतुर्थेश कर्म भाव या लाभ भाव या लग्न को प्रभावित करता हो तो व्यक्ति होटल व्यवसाय से जुड़कर प्रसिद्धि प्राप्त करता है.
जातक की जन्म कुण्डली में लग्नेश मंगल, शुक्र से संबंध बनाते हुए पंचम भाव में बैठकर धनेश गुरू के साथ संबंध बनाते हुए परस्पर दृष्टि संबंध बनाए हुए कर्मेश सूर्य और भाग्येश चंद्र की धन स्थान में युति निश्चित ही होटल के कार्यों में रूचि देती है और सफल भी बनाती है.
चतुर्थ भाव का स्वामी शनि कारक ग्रह शुक्र और राहु के साथ होकर लग्न में स्थित होकर राहु के साथ मंगल से दृष्टि संबंध बनाता है तो जातक को इस काम में बहुत सफलता मिलती है. यदि जातक की कुण्डली में इस प्रकार के योग कुछ अधिक हों तो प्रबल संभावना होटेल के क्षेत्र में उन्नती पाने वाली होती है.
होटल से संबंधित काम को करने में कारक ग्रह शुक्र, मंगल, राहु, शनि आदि में से जितने ग्रहों का आपस में संबन्ध होगा तो यह स्थिति बहुत फायदेमंद रहती है. इसके अतिरिक्त लग्न, नवम, दशम, व एकादश के स्वामी शुभ स्थानों में होकर मंगल व शुक्र आदि से संबध बनाये तो व्यक्ति को इस क्षेत्र में उच्च सफलता प्राप्त होती है.