जन्म चंद्र से जब गोचर का शनि बारहवें भाव में आता है तब व्यक्ति की साढ़ेसाती का प्रभाव आरंभ हो जाता है. यह साढ़ेसाती का पहला चरण माना जाता है. अब जन्म चंद्र के ऊपर शनि आता है तब दूसरा चरण और जन्म चंद्र से दूसरे भाव में शनि का गोचर होने पर साढ़ेसाती का अंतिम व तीसरा चरण होता है. आज इस लेख में हम साढ़ेसाती का विभिन्न नक्षत्रों में क्या प्रभाव पड़ता है उसके बारे में बताएंगें.

जब साढ़ेसाती का आरंभ होता है तब उस समय शनि जिस नक्षत्र में है उसे देखें और जन्म चंद्रमा जिस नक्षत्र में है उसे देखें. यदि जन्म नक्षत्र गोचर के शनि के नक्षत्र से अशुभ नक्षत्रों में है तब अशुभ फल मिलते हैं अन्यथा नहीं. आइए देखें कब-कब अशुभ फलों की प्राप्ति होती है.

  • यदि जन्म नक्षत्र पहला, दूसरा या तीसरा होता है तब हानि होने की संभावना बनती है, कई प्रकार के खतरे व्यक्ति को बने रह सकते हैं, अवांछित घटनाएँ हो सकती हैं.
  • यदि चौथे, पांचवें, छठे या सातवें स्थान पर आता है तब विजय खुशियाँ तथा सफलताएँ मिलती है.
  • आठवें, नवें, दसवें, ग्यारहवें, बारहवें या तेरहवें स्थान पर होने से अवांछनीय परिवर्तन, थकाने वाली लंबी यात्राएँ.
  • चौदहवाँ, पंद्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ या अठारहवें स्थान पर होने से धन संपत्ति का आगमन होता है, व्यक्ति को शुभ समाचार मिलते है, भाग्यशाली होता है, अन्य लोगों से सहायता मिलती है.
  • उन्नीसवाँ या बीसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को मिश्रित परिणाम मिलते हैं.
  • इक्कीसवाँ, बाईसवाँ अथवा तेईसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति के लिए शुभ रहता है. अच्छे परिणाम मिलने की संभावनाएँ बनती हैं.
  • चौबीसवाँ या पच्चीसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को सुख सुविधाएँ मिलती है.
  • छब्बीसवाँ या सत्ताईसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को शारीरि, मानसिक तथा आर्थिक सभी प्रकार की चिन्ताएँ घेरे रहती हैं.


कई विद्वानों का मत है कि साढ़ेसाती का परिणाम चंद्र राशि पर निर्भर करता है. चंद्र राशिश यदि शनि का मित्र है या शनि की राशि में चंद्रमा है अथवा चंद्रमा उच्च राशि में है अन्य किसी शुभ स्थिति में है तब साढ़ेसाती के परिणाम शुभ होते हैं.

मूर्ति निर्णय | Murti Verdict

मूर्ति निर्णय की विवेचना गोचर के फलों को देखने के लिए की जाती है. इसे हम शनि, राहु अथवा बृहस्पति के लिए देख सकते हैं कि इनका गोचर व्यक्ति विशेष के लिए कैसा रहेगा? जब भी कोई ग्रह राशि परिवर्तन करता है तब उस समय का गोचर का चंद्रमा देखें कि कहाँ है. अब अपने जन्म चंद्रमा से गोचर के चंद्रमा की गणना करें कि वह कौन सी राशि में पड़ता है.

  • यदि जन्म चंद्रमा से गोचर का चंद्रमा पहली, छठी या ग्यारहवीं राशि में होता है तब स्वर्ण मूर्ति होती है. यह स्वर्ण मूर्ति सबसे अधिक शुभ परिणाम देती हैं.
  • यदि दूसरी, पांचवीं या नवीं राशि में हो तब रजत मूर्ति होती है. यह भी शुभ परिणाम देती है लेकिन स्वर्ण से कुछ कम होते हैं.
  • यदि तीसरी, सातवीं या दसवीं राशि हो तब ताम्र मूर्ति होती है.यह ज्यादा शुभ नहीं होती है.
  • यदि चौथी, आठवीं या बारहवीं राशि हो तब लौह मूर्ति होती है. यह मूर्ति सबसे अधिक अशुभ परिणाम देती है.


साढ़ेसाती का शुभ तथा अशुभ समय | Auspicious and Inauspicious Time For Sadesati

चंद्र राशि चंद्र से बारहवाँ शनि चंद्र पर शनि चंद्र से दूसरे भाव में शनि
मेष मध्यम अशुभ शुभ
वृष अशुभ शुभ शुभ
मिथुन शुभ अतिशुभ अशुभ
कर्क शुभ अशुभ अशुभ
सिंह अशुभ अशुभ शुभ
कन्या अशुभ शुभ अतिशुभ
तुला शुभ अतिशुभ अशुभ
वृश्चिक शुभ अशुभ मध्यम
धनु शुभ मध्यम शुभ
मकर शुभ मध्यम शुभ
कुंभ शुभ अशुभ मध्यम
मीन शुभ मध्यम अशुभ


शनि की ढ़ैय्या | Shani Dhaiyya

शनि द्वारा एक राशि में व्यतीत किया गया समय शनि की ढ़ैय्या कहलाता है. यह ढ़ैय्या जन्म चंद्रमा से शनि के चतुर्थ या अष्टम भाव में होने पर होती है.

कंटक शनि या अर्धाष्टम शनि | Kantak or Adharshtam Saturn

जब गोचर का शनि जन्म चंद्रमा से चतुर्थ भाव में गोचर करता है तब इसे कंटक शनि अथवा अर्धाष्टम शनि कहते हैं.

अष्टम शनि | Ashtam Saturn

जब गोचर का शनि जन्म चंद्र से आठवें भाव से गुजरता है तब इसे अष्टम शनि कहते हैं.