जन्म कुंडली में किसी घटना के घटने में बहुत से कारक काम करते हैं. सबसे पहले तो किसी भी घटना के होने में योग होने आवश्यक होते हैं. यदि जन्म कुंडली में किसी कार्य के होने के योग ही नहीं होगें तब दशा/अन्तर्दशा आने पर भी वह काम नहीं बनता है. इसलिए जन्म कुंडली में किसी भी घटना के होने के लिए सबसे पहले योग होते हैं, फिर दशा देखी जाती है और घटना घटित होने के समय ग्रहों का गोचर देखा जाता है. यह सब मिलकर ही किसी काम के होने का इशारा करते हैं.
आज हम एक उदाहरण कुंडली के माध्यम से कार्य के सिद्ध होने को समझने का प्रयास करते हैं. किसी भी घटना के होने में जन्म कुंडली में मौजूद योगो के साथ संबंधित वर्ग कुंडली में भी योग होने चाहिए और जिस वर्ष घटना फलीभूत होती है उस वर्ष की वर्ष कुंडली में भी उसके लक्षण उभरकर नजर आते हैं. इस प्रकार हम कार्य होने के लिए जन्म कुंडली, संबंधित वर्ग कुंडली, वर्ष कुंडली, दशा तथा उस समय के गोचर का आंकलन करेगें.
उदाहरण कुंडली में आज हम एक जातक की कुंडली लेगें जिसने अपनी पढ़ाई के दौरान ही अपना इन्टरव्यू पास किया और पढ़ाई पूरी होते ही उसकी नौकरी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में लग गई. बच्चे ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है और इसे फील्ड इंजीनियर की नौकरी मिली. जिसके लिए इसे घर से दूर जाना पड़ा और यह समुद्र के किनारे अधिक रहता है. अपनी नौकरी के सिलसिले मे ही यह कम उम्र में ही विदेश यात्राएँ भी कर चुका है. नौकरी लगने के चार माह बाद ही जातक अमेरिका चला गया था दो महीने के लिए. आइए कुंडली पर एक नजर डालने का प्रयास करें.
जन्म कुंडली | janma kundali
जातक की कुंडली तुला लग्न की है और चंद्रमा कुंभ राशि में पंचम भाव में स्थित है. जातक का इन्टरव्यू 8 दिसम्बर 2006 को हुआ और उसने अपनी नौकरी 18 अगस्त 2007 को ज्वाइन की. कुंडली के बाकी ग्रहों को देखते हैं. जिस समय इन्टरव्यू हुआ उस समय जातक की कुंडली में बृहस्पति/शनि/शनि की दशा चल रही थी. बृहस्पति जन्म कुंडली में तीसरे व छठे भाव के स्वामी है. तीसरा भाव छोटी यात्राएँ तथा छठे भाव से नौकरी देखी जाती है. शनि इस कुंडली के लिए योगकारी ग्रह है और लग्न में अपनी उच्च राशि में स्थित है, भाग्येश व द्वादशेश बुध के साथ और साथ में ही लाभेश सूर्य भी हैं. इस दशा में हमें योग नजर आते हैं कि जातक को भाग्य से संबंधित कुछ फल मिलने चाहिए और उसके भाग्य का संबंध विदेश से भी बनता है. गुरु स्वराशि का धनेश व सप्तममेश मंगल के साथ स्थित है. लाभ का संबंध विदेशों से बन सकता है क्योकि मंगल सप्तमेश है जो कि विदेश को दिखाता है. साथ ही जातक छोटी यात्राएँ भी अधिक करेगा क्योकि महादशानाथ बृहस्पति तीसरे भाव में स्वराशि के हैं. तीसरा भाव छोटी यात्राओ के लिए देखा जाता है.
जातक ने अपनी नौकरी 18 अगस्त 2007 में ज्वाइन की. उस समय दशा थी बृहस्पति/शनि/बुध की. बृहस्पति छठे भाव का स्वामी है ही जिसे सर्विस भाव भी कहते हैं. शनि योगकारी ग्रह होकर शुभ हैं जो दशम भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं और छठे भाव के स्वामी पर भी दृष्टि डाल रहे हैं. बुध भाग्य भाव के स्वामी हैं अर्थात इस समय भाग्य से संबंधित कुछ अच्छा होने की संभावना बनती है.
दशमांश कुंडली | Dashmansh Kundali
आइए अब एक नजर दशमांश कुंडली पर डालते हैं. इस कुंडली में मिथुन लग्न उदय हो रहा है. महादशानाथ बृहस्पति दशम भाव के स्वामी होकर द्वादश भाव में स्थित है, कर्म का संबंध विदेश से. अन्तर्दशानाथ शनि दशमांश कुंडली के भाग्येश होकर लग्न में ही स्थित है और दशम भाव को देख रहे हैं. बुध दशमांश कुंडली के लग्नेश है और धन भाव में स्थित है. इस समय कर्म से संबंधित काम दिख ही रहा है.
वर्ष कुंडली | Varsha Kundali
आइए अब इस वर्ष की वर्ष कुंडली देखें. हमने 23वें वर्ष की कुंडली बनाई है. वर्ष कुण्डली के लग्न में कर्क राशि उदय हो रही है जो कि जन्म कुंडली का दशम भाव है. जन्म कुंडली का जो भाव वर्ष कुंडली का लग्न बनता है उस वर्ष उस भाव से संबंधित कोई ना कोई घटना अवश्य ही घटित होती है. वर्ष कुण्डली का वर्षेश चंद्रमा है जो भाग्य भाव में स्थित है. मुंथा सिंह राशि में है जो दूसरे भाव में स्थित है और मुंथेश सूर्य हैं जो चतुर्थ भाव में स्थित होकर दशम भाव को देख रहे हैं. सभी ग्रहो का प्रभाव नवम, दशम व एकादश भावों पर है. कर्क लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में शनि हैं जो दसवीं दृष्टि से एकादश भाव को देख रहे हैं. सूर्य, बुध, मंगल व शुक्र चतुर्थ भाव में है और दशम भाव को देख रहे हैं. वर्ष कुंडली में जब भी सूर्य व मंगल का प्रभाव दशम भाव पर पड़ता है तब उस वर्ष व्यक्ति को व्यवसाय संबंधी अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है. चंद्रमा वर्ष कुण्डली के नवम भाव में स्थित है.
नौकरी ज्वाइन के दिन ग्रहों का गोचर | Transit Kundali
जन्म कुंडली में किसी भी घटना के होने के लिए पहले दशा का अनुकूल होना आवश्यक है फिर वर्ष कुंडली में उसके होने का संकेत मिलता है और अंत में जिस भाव से संबंधित फल मिलने वाले होते हैं, गोचर के अधिकतर ग्रह उस भाव के आसपास ही होते हैं. विशेष तौर पर गुरु व शनि के बिना कोई भी काम कुंडली में घटित नहीं होता है. इसे शनि व गुरु के दोहरे गोचर के नाम से जाना जाता है. इन दोनो के साथ अन्य ग्रह भी संबंधित भाव के आसपास ही होते हैं.
जिस दिन जातक ने अपनी नौकरी ज्वाइन की उस दिन के गोचर पर नजर डालते हैं. जातक की तुला लग्न की कुंडली है और इसने 18 अगस्त 2007 को अपनी नौकरी ज्वाइन की. तुला लग्न में इस दिन के ग्रहों को स्थापित करते हैं. बृहस्पति वृश्चिक राशि में दूसरे भाव में स्थित हैं और नवम दृष्टि से दशम भाव को देख रहे हैं. शनि एकादश भाव में स्थित है. मंगल अष्टम में स्थित होकर एकादश भाव को देख रहे हैं. चंद्रमा द्वादश भाव में स्थित है जो कि एकादश के पास ही है. सूर्य, शुक्र, बुध, केतु चारो ही ग्रह एकादश में है. सभी ग्रहो का प्रभाव एकादश भाव पर पड़ रहा है और जैसा कि हमने ऊपर कहा ही है कि घटना के दिन अधिकतर ग्रह संबंधित भाव के पास ही होते हैं. नौकरी से लाभ की प्राप्ति होना जातक की कुंडली में स्पष्ट रूप से नजर आता है.