आधुनिक समय में इस भाग दौड़ और चमक की दुनिया में हर कोई व्यक्ति अमीर बनना चाहता है. इसके लिए वह ना जाने कैसे कैसे हथकंडे भी आजमाने की कोशिश करता है. कई बार तो मनुष्य अपनी अंदर केभले मानुष को रौंदते हुए आगे बढ़ता है.
यदि कोई व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना चाहता है तब पूजा पाठ तथा अपने सदव्यवहार के माध्यम से काफी हद तक सफलता हासिल की जा सकती है.
सभी जानते हैं कि भारत में प्राचीन समय से ही देवी देवताओं की पूजा का प्रचलन चला आ रहा है. सभी का अपना विशिष्ट महत्व है. देवताओं की पूजा करने के अनेकों विधान प्राचीन ग्रंथों में पाए जाते हैं. उनमें सेएक यंत्रों की पूजा करने का भी विधान है. हर अवसर तथा देवों के यंत्रों का जिक्र पौराणिक इतिहास में मिलता है लेकिन सभी यंत्रों में सर्वोपरि "श्रीयंत्र" को माना गया है. प्राचीन सभी यंत्रों में यह श्रीयंत्र सर्वाधिकलोकप्रिय है.
श्रीयंत्र की अधिष्ठात्री देवी | Goddess of Shri Yantra
श्रीयंत्र की अधिष्ठात्री देवी महात्रिपुर सुंदरी (षोडशी देवी) हैं. श्रीयंत्र के रुप में इन्हीं की पूजा की जाती है. इस यंत्र की पूजा से व्यक्ति को मोक्ष तथा भोग दोनों की ही प्राप्ति होती है. इस यंत्र की उपासना यदिभक्तजन पूर्ण श्रद्धा से करते हैं तब उन्हें आर्थिक रुप से भी लाभ मिलता है. इस यंत्र की पूजा, भगवान शिव की अर्धांगिनी महालक्ष्मी के रुप में भी की जाती है. इनकी पूजा से विशेष प्रकार के भौतिक सुखों कीप्राप्ति होती है.
माना गया है कि श्रीयंत्र की दक्षिणाम्नाय उपासना करने वाले व्यक्ति को भोग की प्राप्ति होती है और ऊर्ध्वाम्नाय उपासना करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए कहा जा सकता है कि यह श्रीयंत्र मोक्ष तथा मुक्ति के लिए भी लाभ प्रदान करता है. मूल रुप से यह श्रीयंत्र पार्वती अर्थात अंबिका हैं.
श्रीयंत्र की पूजन विधि | Rituals to Worship Shri Yantra
श्रीयंत्र को व्यक्ति अपनी सामर्थ्यानुसार कहीं भी बनवा सकते हैं. जैसे भोजपत्र, ताम्रपत्र, रजतपत्र अथवा स्वर्णपत्र बनवाया जा सकता है. इस यंत्र के समक्ष भक्तजनों को श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए. इससे उन्हें आर्थिक लाभ होगा. कनकधारा स्तोत्र का पाठ भी किया जा सकता है. जिन व्यक्तियों को नौकरी अथवा बिजनेस में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो उन्हें इस यंत्र की पूजा करने से संकटों से निकलने का मार्ग दिखाई दे सकता है.
श्रीयंत्र का निर्माण अथवा घर के पूजा स्थान में इसकी स्थापना गुरु योग, रवि पुष्य योग, नवरात्र. धनतेरस, दीपावली, बसंत पंचमी अथवा पौष माह की संक्रांति में की जानी चाहिए. इस यंत्र को शुभ मुहूर्त्त में बाजार से भी खरीदा जा सकता है.
श्रीयंत्र को बनवाने के बाद शुभ समय में इसका पूजन आरंभ करना चाहिए और उसके बाद नियमित रुप से इसकी पूजा करनी चाहिए. सबसे पहले व्यक्ति को स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके स्वच्छ आसन पर बैठना चाहिए. अब श्रीयंत्र को पंचामृ्त अर्थात कच्चा दूध, दही, शहद, शुद्ध घी तथा गंगाजल से स्नान कराना चाहिए. इसके बाद ईशान कोण में एक आसन पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर श्रीयंत्र को स्थापित करना चाहिए. अब यंत्र की पूजा करनी चाहिए. श्रीसूक्त, कनकधारा या दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जा सकता है. श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा के लिए निम्नलिखित मंत्र का 21 माला जप करना चाहिए. मंत्र है:-
"ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं नम्:"
"ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महा लक्ष्म्यै नम्:"
यह उपरोक्त मंत्र श्रीयंत्र का मूलमंत्र है. अपनी किसी भी अभीष्ट सिधि के लिए इस मंत्र की एक माला का जाप प्रतिदिन करना चाहिए.
श्रीयंत्र के सामने शुद्ध घी का दीया जलाकर लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप करना चाहिए. इसे कोई भी मनुष्य अपने आफिस अथवा घर में विधिपूर्वक स्थापित कर सकता है.
श्रीयंत्र को कई व्यक्ति रेखागणित की एक जटिल आकृति से अधिक कुछ नही समझते हैं. इस जटिल तथा गूढ़ यंत्र के रहस्य को समझने के लिए आदि शंकराचार्य द्वारा रचित "सौंदर्य लहरी" आदि ग्रंथ का अध्ययन अवश्य करना चाहिए. यदि ध्यान से देखा जाए तो इस आकृति में दो त्रिकोण बने हुए हैं. एक भगवान शिव का रुप है तो दूसरा शक्ति का रुप है. दोनों ही एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं. इस प्रकार एक श्रीयंत्र की पूजा से मनुष्य दोनों को ही पाने की क्षमता रखता है. इसलिए विभिन्न प्रकार की कामनाओं की सिद्धि के लिए श्रीयंत्र की पूजा की जाती है. इस यंत्र को कामधेनु गाय के समान माना गया है जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है. जो व्यक्ति इस यंत्र की नियमित रुप से पूजा करता है वह एक प्रकार से तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का पूजन करता है क्योंकि इस यंत्र में इन सभी का वास माना गया है.
वास्तु शास्त्र में भी इस श्रीयंत्र का अत्यधिक महत्व है. जिस घर में कलह रहता है या दांपत्य जीवन अच्छा नहीं है या आर्थिक परेशानियों के कारण घर का वातावरण दूषित रहता है तब इस श्रीयंत्र की स्थापना घर के पूजा घर में अवश्य करनी चाहिए. वास्तु शास्त्र के नियमानुसार इस यंत्र की स्थापना से सुख, समृद्धि, मान, यश, धन आदि की प्राप्ति होती है.
श्रीयंत्र से जुड़ी कथा | Shri Yantra Methodology
श्रीयंत्र के विषय में अनेकों कथाएँ मिलती है. जिनमें एक कथा देवी लक्ष्मी के रुष्ट होने की भी है. एक अन्य कथा के अनुसार आदि शंकराचार्यजी ने भगवान शिव को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया. भगवान शिव ने उन्हें वर माँगने को कहा. इस पर शंकराचार्य जी ने विश्व का कल्याण करने के बारे में पूछा तब शिव भगवान लक्ष्मी स्वरुप श्रीयंत्र की महिमा के बारे में बताते हैं. वह कहते हैं कि इस श्रीयंत्र के पूजन से मनुष्य का पूर्ण रुप से कल्याण होगा. भगवान शिव ने बताया कि यह त्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है. श्रीयंत्र में बना चक्र ही देवी का निवास स्थान है और उनका रथ भी यहीं है. इस यंत्र में देवी स्वयं विराजती हैं. तभी से इस श्रीयंत्र की पूजा का विधान चला आ रहा है.
श्रीयंत्र को सिद्ध करने के लिए वैशाख, ज्येष्ठ, कार्तिक, माघ आदि चांद्र मासों को उत्तम माना गया है. जो व्यक्ति दीपावली की रात्रि में इस यंत्र को सिद्ध करता है वह पूरे साल आर्थिक रुप से संपन्न रहता है.