इत्थशाल योग का उपयोग ताजिक शास्त्र में देखा जा सकता है. ताजिक ज्योतिष वर्ष फल बताने की एक पद्धति है. इत्थशाला योग का ताजिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान है. इत्थशाला शब्द का अर्थ है अवश्य संभावी अर्थात निश्चित सीमा तक जल्द मिलने वाला शुभ फल. ग्रहों के जिस तेजोमय के द्वारा शुभाशुभ फलों की प्राप्ति होती है उसी का नाम इत्थशाल है. इत्थशाल केवल सात ग्रहों में ही होता है इसमें राहु-केतु को स्थान प्राप्त नहीं है.इस योग को समझने के लिए ग्रहों की ताजिक दृष्टियों व सूर्यादि ग्रहों के दीप्तांशों की जानकारी होना जरूरी है.
प्रश्न कुण्डली में ताजिक योगों तथा ताजिक दृष्टियों का बहुत महत्व है. इनके बिना प्रश्न कुण्डली का आधार नहीं है. राहु-केतु के अतिरिक्त सात ग्रहों में से चन्द्रमा की गति सबसे अधिक है और शनि की गति सबसे कम है. चन्द्रमा शीघ्रगामी तो शनि मंदगामी ग्रह है. इत्थशाल योग का पहला नियम यही है कि जब कोई दो ग्रह आपस में इत्थशाल करते हैं तो शीघ्रगामी ग्रह के अंश मंदगामी ग्रह के अंशों से कम होने चाहिए.
इत्थशाल नियम | Ithasala Rules
शीघ्रगामी ग्रह, मंदगामी ग्रह से पीछे होना चाहिए. साथ ही यह दीप्ताँशों के भीतर होने चाहिए तभी इत्थशाल योग होता है. इत्थशाल योग में शामिल ग्रहों की आपस में दृष्टि होनी चाहिए. ग्रहों के दीप्ताँश निम्नलिखित हैं :-
सूर्य - 15 अंश, चन्द्रमा - 12 अंश, मंगल - 8 अंश, बुध - 7 अंश, गुरु - 9 अंश, शुक्र - 7 अंश, शनि - 9 अंश. होता है और ग्रहों के चलने का क्रम चंद्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल, गुरू एवं शनि रुप में होता है.
यदि मंदगामी ग्रह के अंश, शीघ्रगामी ग्रह के अंशों से अधिक हैं. दोनों ही ग्रहों की आपस में दृष्टि है और यदि दोनों ग्रहों के भोगांश का अंतर, दोनों ग्रहों के दीप्तांश के योग के आधे से कम है होना चाहिए. यदि यह नियम पूर्ण हैं तब ग्रह इत्थशाल योग में शामिल है. बुध, गुरू, शुक्र एवं चंद्रमा का आपस में इत्थशाल निर्मित हो तो अच्छे फल प्राप्त हो सकते हैं. इसके साथ ही साथ लग्नेश जिस ग्रह के साथ इत्थशाल करता है, उस ग्रह के प्रभाव जातक को मिलते रहते हैं. शीघ्रगामी ग्रह अपना प्रभाव आगे वाले मंदगति ग्रह को देता है इस कारण दोनों ग्रहों से कार्य सिद्धि हो सकता है.
इत्थशाल भाव | Itthasala houses
ताजिक के अनुसार जो ग्रह कुंडली के जिस भाव में स्थित होते हैं वहां से चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव को शत्रु दृष्टि से और तीसरे, नौंवें और एकादश भाव को मित्र दृष्टि से देखते हैं. इसलिए कुंडली का ताजिक दृष्टि से विचार कते समय यह याद रखें कि ताजिक में ग्रहों का कोई निश्चित मित्र-शत्रु नहीं है. जो ग्रह आपस में दृष्टि रखते हों या एक ही राशि में हों अथवा अगली-पिछली राशियों में स्थित हों तो उन्हें शीघ्रगति व मंदगति ग्रह के क्रम से देखें. चंद्र सबसे तेज और शनि सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह होते हैं.
इत्थशाल से राज योग | Itthasala Raj Yoga
यदि कुण्डली के वृष लग्न में शुक्र 15 अंशों पर हो और शनि नवम भाव में 21 अंशों पर स्थित है तो दोनों ग्रहों में मित्र दृष्टि होने से शुभ प्रभाव प्राप्त हो सकते हैं और यह एक उच्च स्तर का इत्थशाल योग माना जाएगा. यह यह एक प्रकार से राजयोग का भी निर्माण करेगा और जातक को सम्मान एवं धन संपत्ति प्रदान करने वाला होगा.
कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भावों के स्वामियों को छोड़कर अन्य भावों के स्वामी ग्रहों से यदि लग्नेश चंद्रमा या सूर्य मित्र दृष्टि का इत्थशाल करें तो शुभता की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. परंतु इसके विपरित यदि शत्रु दृष्टि का इत्थशाल निर्मित हो रहा हो तो कार्यों में सफलता पाने के लिए अत्यधिक प्रयत्न एवं बार बार प्रयास करना पड़ सकता है.