यंत्रों में शक्ति सदा विराजमान रहती है जिसके कारण यंत्र शीघ्र ही अपने प्रभावों को पूर्णतः स्पष्ट कर देते हैं. ऎसा की एक यंत्र महामृत्यंजय यंत्र है. महामृत्यंजय यंत्र अकाल मृत्यु के भय को दूर करता है तथा रोग को दूर करके व्यक्ति को दिर्घायु का वरदान देता है. इस यंत्र के माध्यम से भगवान शंकर की स्तुति की जाती है ,रोगों की निवृत्ति के लिये एवं दीर्घायु की कामना के लिये यह यंत्र उपयोग में लाया जाता है.
शास्त्रों में महामृत्युंजय यंत्र को उच्च स्थान प्राप्त है. यह यंत्र अभेद्य कवच के समान कार्य करता है. अकालमृत्यु से मुक्ति दिलाता यह यंत्र बीमारी में अथवा दुर्घटना इत्यादि से बचाव करता है. महामृत्यंजय यंत्र समस्त प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों का नाश करता है. इस यंत्र की पूजा करने के विशेष फल मिलते हैं तथा कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.
महामृत्युंजय यंत्र निर्माण और उपयोग | Formation and Uses of Maha Mrityunjaya Yantra
महामृत्युंजय यंत्र का निर्माण करना एक तांत्रिक प्रणाली है इसे बनाने के लिए रेखा गणित के प्रमेय, निर्मेय, त्रिकोण, चतुर्भुज आदि जैसी आकृति बनाकर उनमें प्रत्येक स्थान पर बीज मंत्र या शक्ति संख्या लिखी जाती है. मान्यता है. यंत्र देवता का निवास स्थल होते हैं अतः प्रत्येक देवता और उसकी शक्ति के अनुसार यंत्रों का लेखन किया जाता है. महामृत्यंजय यंत्र का निर्माण शुभ समय पर तथा शुद्ध चित किया जाना चाहिए. इसका निर्माण भोजपत्र पर, कागज पर या किसी धातु की वस्तु पर किया जा सकता है.
इसको लिखने के लिए रक्त चंदन की स्याही तथा बेल या अनार की कलम का उपयोग किया जाना चाहिए. भोजपत्र के ऊपर रक्त चंदन की स्याही तथा बेल या अनार की कलम से मंत्र लिखकर इसे धूप-दीप से पूजन करना चाहिए. अब इसे किसी ताबीज में डालकर धारण किया जा सकता है. इसे धारण करने से समस्त रोग शांत होते हैं तथा स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है. इस यंत्र को धारण करने से नकारात्मक उर्जा नष्ट होती है.
शुद्ध चित से किया गया महामृत्युंजय यंत्र एवं मंत्र प्रयोग व्यक्ति को दुर्घटना, अकालमृत्यु एवं प्राणघातक रोगों से बच सकता है.
महामृत्युंजय यंत्र पौराणिक कथा | Maha Mrityunjaya Yantra Story
महामृत्युंजय यंत्र के विषय में धार्मिक ग्रंथों में एक कथा का वर्णन है, जो इस प्रकार है:- ऋषि मुकुंद संतानहीन थे इस कारण वह सदैव चिंतातुर रहते थे तब मुकुंद मुनि और उनकी पत्नी ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान प्रदान किया किंतु बालक को अल्पआयु प्राप्त थी. मुकुंद मुनि पुत्र प्राप्ति से बहुत प्रसन्न थे उन्होंने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा. लेकिन बालक की अल्पआयु होने का उन्हें बहुत दुख था पिता को चिंतित देख पुत्र ने उनसे चिंता का कारण पूछा तो बालक को अपनी स्थिति का बोध हुआ. तब बालक पिता मुकुंद से कता है कि भगवान शिव को अपनी भक्ति से प्रसन्न करके उनसे पूर्णायु का वरदान प्राप्त करुंगा
तत्पश्चात बालक भक्ति भाव के साथ शिवलिंग की पूजा तथा मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करता है. जब बालक की आयु पुर्ण होने का समय आता है तो यमराज उसे लेने के लिए आते हैं किंतु बालक उनके साथ जाने से मना कर देता है और शिवलिंग से लिपट जाता है यम उसके प्राणों का हरण करने के लिए उद्यत होते हैं तब बालक की रक्षा करने के लिए भगवान शिव स्वयं काल पर प्रहार करते हैं, अत: यमराज हार मानकर वहां से चले जाते हैं. भगवान शिव, बालक मार्कण्डेय को अमर होने का वरदान देते हैं और उनके द्वारा जपे महामृत्यंजय मंत्र को यंत्र एवं मंत्र रुप में प्राणियों लिए उपयोगी बनाते हैं.
मृत्यंजय यंत्र लाभ और महत्व | Benefits and Importance of Maha Mrityunjaya Yantra
महामृत्युंजय यंत्र भगवान मृत्युंजय यानी शिव से सम्बन्धित है. शिव अनेक रूप धारण करने वाले हैं वे आरोग्य के देवता भी हैं. अपने भक्तों को आरोग्य तथा दीर्घायु प्रदान करने वाले हैं. महामृत्युंजय यंत्र को धारण अथवा यंत्र पूजन तथा स्थापना करने के रुप में उपयोग किया जा सकता है. महामृत्युंजय यंत्र को सम्मुख रखकर रूद्र सूक्त का पाठ एवं महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से लाभ होता है. महामृत्युंजय यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठित करके उपयोग में लाया जाता है. महामृत्युंजय यंत्र स्वास्थ्य लाभ के साथ साथ धन, यश, बुद्धि, विद्या को प्रदान करने वाला होता है.
इस यंत्र साधना से साधक को रोग से मुक्ति मिलती है तथा स्वास्थ्य उत्तम रहता है. महामृत्युंजय यंत्र का प्रयोग उपासना और मंत्र-जप के अतिरिक्त इसे कवच के रूप में भी धारण किया जा सकता है. महामृत्युंजय मंत्र एवं यंत्र, मंत्रों एवं यंत्रों में श्रेष्ठ है, अत्यंत फलदायी है, महामृत्युंजय यंत्र अभेद्य कवच है, बीमारी की अवस्था में एवं दुर्घटना इत्यादि से मृत्यु के भय को नष्ट करता है यह शारीरिक पीड़ा को ही नहीं बल्कि मानसिक पीड़ा को भी नष्ट करता है.