वैदिक ज्योतिष का आधार नौ ग्रह, बारह राशियां एवं बारह भाव होते हैं. इसके बिना हम ज्योतिष शास्त्र में गणना एवं भविष्यवाणी नहीं कर सकते. इसी में ग्रहों के अंश बल की स्थिति के अनुसार कुंडली में ग्रह की अवस्था को देखा जाता है. ग्रहों का आकलन करके व्यक्ति के भविष्य के समय और अनुकूल तथा प्रतिकूल घटनाओं सहित घटनाओं की गणना करते हैं. वैदिक ज्योतिष में कुल नौ ग्रह माने गये हैं और इनका अम्श बल यदि मृत अवस्था में हो तो स्थिति गंभीर होती है. यहां ग्रह अपना परिणाम देने में कमजोर हो जाता है. सभी ग्रहों कि मृत अवस्था का प्रारुप अलग रुप से दिखाई दे सकता है.

ग्रह की मृत अवस्था को जानकर इसके सही परिणाम को समझा जा सकता है. कई बार कुंडली में ग्रह अच्छा होता है लेकिन मृत अवस्था में होने के कारण आपना परिणाम नही दे पाता है. अंश बल में मृत ग्रह की स्थिति ग्रहों के संदर्भ में भविष्य क्या हो सकता यह निर्धारित करने में एक विशेष भूमिका निभाते हैं.

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा ग्रह

वैदिक ज्योतिष में दूसरा ग्रह चंद्रमा है. इसे मातृ कारक माना जाता है. इसके साथ ही इसका असर हमारे दिमाग पर भी पड़ता है. आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि चंद्रमा का हमारे समुद्रों, जलाशयों, नदियों और उच्च या निम्न ज्वार जैसे प्रमुख जल निकायों पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है. चंद्रमा को रानी के रूप में भी जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्रमा मृत अवस्था में होगा तो यह अनुकूल परिणाम नहीं देगा. इसके द्वारा मिलने वाले फल भी व्यक्ति को नहीं मिल पाएंगे.

वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह

वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को बौद्धिकता का प्रतीक माना जाता है. बुध एक ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति की तार्किक क्षमता को दर्शाता है. ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का बुध मजबूत होता है उसके अंदर किसी भी तरह की गणना करने की क्षमता अन्य लोगों से काफी अलग होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि बुध का संबंध गणित से है और यह खगोलीय ज्ञान भी प्रदान करता है. यह ग्रह अपनी स्थिति के अनुसार सूर्य के बहुत करीब होता है. इसके साथ ही यह व्यक्ति की वाणी पर भी प्रभाव डालता है और हमारी संचार क्षमता से संबंधित होता है. ज्योतिष शास्त्र में अगर बुध मृत अवस्था में होगा तो इसके द्वारा मिलने अवले फल कमजोर हो जाएंगे. मृत अवस्था में ग्रह अपने प्रभावों को देने में सक्षम नहीं होगा. इसका असर कुंडली पर गहरे रुप से पड़ने वाला होगा. मृत अवस्था के चलते इस ग्रह की स्थिति निराशाजनक असर दे सकती है.

वैदिक ज्योतिष में शुक्र

वैदिक ज्योतिष में शुक्र एक ऐसा ग्रह है जिसके बारे में हर कोई चाहता है कि वह उसकी कुंडली में प्रबल हो. ज्योतिष शास्त्र में शुक्र प्रेम, रोमांस, सौंदर्य आदि का कारक है. किसी भी व्यक्ति के जीवन में सभी प्रकार के रिश्ते होते हैं. यह पुरुषों की कुंडली में पत्नी, प्रेमिका या किसी लड़की का प्रतिनिधित्व करता है. यह विवाह क्षेत्र को भी नियंत्रित करने वाला माना जाता है. इसके साथ ही यह व्यक्ति के जीवन में खुशियों का भी ख्याल रखता है और समृद्धि को दर्शाता है.  ज्योतिष शास्त्र में अगर शुक्र मृत अवस्था में होगा तो इसके द्वारा मिलने अवले फल कमजोर हो जाएंगे. मृत अवस्था में ग्रह अपने प्रभावों को देने में सक्षम नहीं होगा. इसका असर कुंडली पर गहरे रुप से पड़ने वाला होगा. मृत अवस्था के चलते इस ग्रह की स्थिति निराशाजनक असर दे सकती है.

वैदिक ज्योतिष में मंगल

वैदिक ज्योतिष में मंगल को साहस का कारक माना गया है. इसके साथ ही यह व्यक्ति के पराक्रम के साथ साथ क्रोध को भी बढ़ाने का काम करता है. मंगल ग्रह जीवन में सभी खतरों से लड़ने की क्षमता और आक्रामकता को दर्शाता है. यह हमें हर प्रकार की परिस्थिति से निपटने की हिम्मत देता है. इसी कारण शुभ स्थिति में मंगल ग्रह का होना व्यक्ति को लड़ने के लिए तैयार रखता है. यदि कुंडली में मंगल सकारात्मक रूप से प्रभावी है तो सेना, पुलिस, सुरक्षा और अग्निशमन दल जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को बहुत मान्यता मिलती है.  ज्योतिष शास्त्र में अगर मंगल मृत अवस्था में होगा तो इसके द्वारा मिलने अवले फल कमजोर हो जाएंगे. मृत अवस्था में ग्रह अपने प्रभावों को देने में सक्षम नहीं होगा. इसका असर कुंडली पर गहरे रुप से पड़ने वाला होगा. मृत अवस्था के चलते इस ग्रह की स्थिति निराशाजनक असर दे सकती है.

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह

गुरु ज्ञान और विस्तार का कारक ग्रह है, इसे सभी ग्रहों में से यह सबसे शुभ ग्रह है. यह ज्ञान देने वाला ग्रह होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति ग्रह की कृपा से लोगों की कुंडली में कई प्रतिकूल समय का प्रभाव कम हो जाता है. गुरु या कहें बृहस्पति ग्रह मीन और धनु राशि का स्वामी है, यह कर्क राशि में उच्च का और मकर राशि में नीच का होता है. स्त्री की कुंडली में बृहस्पति पति का प्रतिनिधित्व करता है. इसके साथ ही यह व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिकता के कारक का भी प्रतिनिधित्व करता है.  ज्योतिष शास्त्र में अगर बृहस्पति मृत अवस्था में होगा तो इसके द्वारा मिलने अवले फल कमजोर हो जाएंगे. मृत अवस्था में ग्रह अपने प्रभावों को देने में सक्षम नहीं होगा. इसका असर कुंडली पर गहरे रुप से पड़ने वाला होगा. मृत अवस्था के चलते इस ग्रह की स्थिति निराशाजनक असर दे सकती है.

वैदिक ज्योतिष में शनि

वैदिक ज्योतिष में शनि को न्याय का प्रतिनिधि ग्रह माना जाता है. इसे कर्मफलदाता भी कहा जाता है. शनि व्यक्ति के कर्मों के अनुसार फल देता है. शनि वह ग्रह है जो ज्योतिष में न्याय के लिए जाना जाता है. शनि वर्तमान समय में किए गए कर्मों के अनुसार व्यक्ति का न्याय करते हैं और उसी के अनुसार फल देते हैं. शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमी गति से चलने वाला ग्रह है और इस कारण व्यक्ति को फल देने में समय लगता है. ज्योतिष शास्त्र में अगर शनि मृत अवस्था में होगा तो इसके द्वारा मिलने अवले फल कमजोर हो जाएंगे. मृत अवस्था में ग्रह अपने प्रभावों को देने में सक्षम नहीं होगा. इसका असर कुंडली पर गहरे रुप से पड़ने वाला होगा. मृत अवस्था के चलते इस ग्रह की स्थिति निराशाजनक असर दे सकती है.