प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार, शुक्र भृगु और ख्याति के पुत्र थे. शुक्र का विवाह भगवान इंद्र की पुत्री जयंती से हुआ था. उनकी दूसरी पत्नी गो पितरों की पुत्री थीं. उन्होंने चार पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम त्वष्ठा, वरुत्रि, शण्ड और अमार्क रखा गया. शुक्र ने कठिन तपस्या से 'संजीवनी विद्या' प्राप्त की और इसका उपयोग उन्होंने मृत राक्षसों को पुनर्जीवित करने के लिए किया. अत: उन्हें राक्षसों का पुरोहित माना जाता था. शुक्र को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उशम्ना, कवि, भार्गव, भृगु, भृगुसुत, दैत्यगुरु, सीत, सूनु, कान, दान और वेज्य.

प्रत्येक ग्रह अलग-अलग प्रकार के फल देता है. जन्म कुंडली में शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह है. यह सुख प्रदान करता है क्योंकि यह सुख और सौंदर्य का कारक ग्रह है. यह रचनात्मकता का कारक ग्रह भी है. शुक्र के बिना कोई भी रचनात्मक या सौंदर्य संबंधी कार्य पूरा नहीं हो सकता. शुक्र के बिना व्यक्ति को विलासिता नहीं मिल सकती. अत: यह इन सभी चीजों का कारक है. रत्नों में हीरे का कारक ग्रह शुक्र है. शुक्र को मजबूत करने के लिए पहने जाने वाले उपरत्न ओपल और जिरकोन हैं. किसी भी सफेद या चमकीली वस्तु का संबंध शुक्र से हो सकता है. यह झरने, फूल, यौवन, संगीत, कविता आदि का कारक ग्रह भी है.

वैदिक ज्योतिष में ग्रह एक दूसरे के प्रति या तो मित्रवत, तटस्थ या शत्रु होते हैं. ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री नैसर्गिक मैत्री कहलाती है. स्थायी शत्रु नैसर्गिक शत्रु कहलाते हैं. बुध और शनि शुक्र के नैसर्गिक मित्र हैं. मंगल और बृहस्पति शुक्र के प्रति तटस्थ हैं. सूर्य और चंद्रमा शुक्र के शत्रु हैं.

नैसर्गिक मैत्री के अलावा ग्रहों के बीच तात्कालिक मैत्री भी होती है जिसे तत्कालिक मैत्री के नाम से जाना जाता है. यह कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है. शुक्र उन ग्रहों के अनुकूल रहेगा जो अपनी मूल स्थिति से तीन घर आगे और तीन घर पीछे मौजूद हैं.

पंचधा कुंडली नैसर्गिक और तत्कालिक मैत्री के आधार पर बनाई जाती है और यह उन ग्रहों के बारे में बताती है जो जन्म कुंडली में शुक्र के मित्र या शत्रु ग्रह हैं. पंचधा कुंडली के आधार पर ही शुभ या अशुभ फल का निर्धारण किया जाता है. उदाहरण के लिए, मान लें कि मंगल शुक्र का तात्कालिक मित्र है लेकिन वह शुक्र के प्रति तटस्थ है. अत: कुण्डली में शुक्र का तात्कालिक मित्र होकर तथा तटस्थ होकर, पंचधा कुण्डली में मंगल शुक्र के प्रति मित्रवत होकर शुभ फल देगा.

शुक्र गोचर के शुभ एवं अशुभ फल

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को लग्न मानकर गोचर ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है. यदि गोचर में शुक्र प्रथम भाव में हो तो व्यक्ति धन और सुख प्राप्त करता है लेकिन गलत गतिविधियों में शामिल हो सकता है. दूसरे भाव में गोचरीय शुक्र हो तो व्यक्ति को मान-सम्मान और धन की प्राप्ति होती है. तीसरे भाव में गोचर का शुक्र मौजूद होने पर व्यक्ति को सुंदर चीजें मिलती हैं. चतुर्थ भाव में होने पर शुक्र मित्रों और स्त्री समकक्षों से संबंधित सुख प्रदान करता है. पंचम भाव में शुक्र होने पर व्यक्ति धनवान और समृद्ध होता है. आठवें या नौवें भाव में गोचर का शुक्र मौजूद होने पर व्यक्ति को अपार सुख मिलता है. एकादश भाव में शुक्र व्यक्ति को धन, साहस और सफलता प्रदान करता है. यदि शुक्र बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति को वस्त्र और धन प्रदान करता है.

जागृत शुक्र पहले भाव में 

प्रथम भाव में शुक्र के जागृत अवस्था फल व्यक्ति को आकर्षक ओर हंसमुख प्रक्रति देने वाला होता है. व्यक्ति सुसंस्कृत व्यक्ति होते हैं जिनके व्यक्तित्व में आकर्षण और कामुकता का बेहतरीन संयोग होता है. व्यक्ति की उपस्थिति लोगों पर गहरा प्रभाव डालने वाली होती है.

जागृत शुक्र दूसरे भाव में 

शुक्र का इस भाव में जागृत प्रभाव स्पर्श की अच्छी शक्ति देता है. शुक्र का असर व्यक्ति की भाषण कला में एक विशेष आकर्षण देता है. व्यक्ति के रूप-रंग पर भी इसका गजब असर होता है.  कला की दुनिया में शामिल दिखाई देते हैं अपनी बातों से दूसरों को आकर्षित कर लेने में कुशल होते हैं. धन संपदा का सुख पाते हैं. 

जागृत शुक्र तीसरे भाव में

शुक्र के इस स्थान में जागृत अवस्था का व्यक्ति को सुंदर परिवेश दिलाने वाली होती है. प्रेम में व्यक्ति उल्लेखनीय स्थिति को दिखाता है. अपने दिल की बातों को बड़ी सफाई से पेश करता है. प्रेम प्रदर्शित करने में आगे रहता है. संगीत और कविता जैसी चीज़ों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं. शुक्र का प्रभाव उनके व्यक्तित्व में चंचल उत्साह का स्पर्श देने वाला होता है. 

जागृत शुक्र चौथे भाव में

जागृत शुक्र का चतुर्थ भाव में असर व्यक्ति को सुख प्रदान करता है. व्यक्ति के केश घुंघराले तथा आंखों में आकर्षण भरपूर होता है. आकर्षक व्यक्ति होने के साथ साथ संवेदनशील और विनम्र स्वभाव मिलता है. दोस्तों के साथ वफादार होते हैं रिश्तों में आत्मियता को प्रदान करते हैं. 

जाग्रत शुक्र पंचम भाव में 

जागृत शुक्र का प्रभाव व्यक्ति को प्रशंसक एवं आत्म-जागरूक बनाता है. व्यक्ति अपनी योग्यता का जानकार होता है. अपने आस-पास के सभी लोगों से स्वीकृति और प्यार चाहते हैं. प्रथम भाव में शुक्र के ख़राब होने पर विवाह में देरी हो सकती है और उनके एक से अधिक साथी हो सकते हैं.

जागृत शुक्र छठे भाव में

छठे भाव में शुक्र, धन और सुख-सुविधा को प्रदान करता है लेकिन साथ में रोग का असर भी दिखाता है. शुक्र व्यक्ति की कमाई की क्षमता को बढ़ाता है. यह किसी से सलाह लिए बिना अपने दम पर चीजों को संभालने की अद्वितीय क्षमता पैदा करता है. व्यक्ति कला, सौंदर्य और मनोरंजक गतिविधियों पर भारी खर्च कर सकता है. शत्रुओं की ओर से उसे दोस्ती का रुख भी मिलता है.

जागृत शुक्र सातवें भाव में

सातवें भाव में शुक्र विवाह साझेदार के मामले में सबसे भाग्यशाली फल दिखाता हैं. आकर्षक, संपन्न और समान रूप से अनुकूल स्वभाव वाला आकर्षक जीवनसाथी भी मिलता है. रिश्तों में सुख पाता है. जीवन में सफलता की गारंटि मिलती है, भाषा से दूसरों को प्रभावित कर लेने में सक्षम होता है. 

जागृत शुक्र आठवें भाव में

जागृत शुक्र का आठवें भाव में होने से व्यक्ति को गुढ़ चीजों का फल मिलता है. शुक्र व्यावसायिक साझेदारी के लिए एक भाग्यशाली स्थिति देता है. व्यक्ति करीबी दोस्त और विश्वासपात्र होते हैं.  आठवें घर में शुक्र होने पर, व्यवसाय से लाभ होता है. व्यक्ति का पक्ष काफी मजबूत होता है.

जागृत शुक्र नवम भाव में 

नौवें भाव में शुक्र का प्रभाव व्यक्ति को यात्रा का सुख मिलता है. विदेशी स्थलों को पसंद करते हैं और दूसरी संस्कृति, संगीत और ललित कला की झलक प्रदान करते हैं. व्यक्ति सुखों को पाने में आगे रह सकता है. 

 जागृत सुख दशम भाव 

जागृत शुक्र दशम भाव में होने से पर्याप्त धन और सुख-सुविधाओं के साथ वित्तीय रूप से अच्छी तरह से सूचित साथी का सुख देती है. दसवें भाव में शुक्र व्यक्ति को लाभ और व्यवसाय में सुख देता है. कुछ गैर-जिम्मेदार बना सकता है. लोगों का इनसे अधिक आकर्षिण भी होता है. रहस्य, कामुकता और धन की प्राप्ति का सुख हमें जरुर मिलता है.