ज्योतिष में कई वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. लग्न कुण्डली मुख्य कुण्डली होती है जिसमें 12 भाव स्थिर होते हैं और इन बारह भावों के बारे में विस्तार से जानने के लिए वर्ग कुण्डलियों का सूक्ष्मता से अध्ययन अवश्य करना चाहिए. कई बार लग्न कुण्डली में घटना का होना स्पष्ट रुप से दिखाई देता है पर फिर भी व्यक्ति को परेशानियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है या लग्न कुण्डली में कई बार ग्रह बली होते हैं और वही ग्रह वर्ग कुण्डली में निर्बल हो जाता है तब अनुकूल फल मिलने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस प्रकार वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक होता है.
वर्ग कुण्डलियों में | Varga Kundli
D-1, D-2, D-3, D-4, D-7, D-9, D-10, D-12, D-16, D-20, D-24, D-27, D-30, D-40, D-45, D-60. इन सभी कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है.
जन्म कुण्डली | Janma Kundali (D-1)
यह लग्न कुण्डली है. जीवन के सभी क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है. इस कुण्डली में 12 भाव तथा नौ ग्रहों का आंकलन किया जाता है. इसमें एक भाव 30 अंश का होता है. वर्ग कुण्डली में ग्रह किसी भी भाव या राशि में जाएँ लेकिन सभी वर्ग कुण्डलियों के लिए गणना जन्म कुण्डली में ही की जाती है
होरा कुण्डली | Hora Kundali (D-2)
इस कुण्डली से जातक के पास धन-सम्पत्ति का आंकलन किया जाता है. इस कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश को दो बराबर भागों में बाँटेंगें. 15-15 अंश के दो भाग बनते हैं. कुण्डली दो भागों, सूर्य तथा चन्द्रमा की होरा में विभाजित किया जाता है. समराशि में 0 से 15 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है. 15 से 30 अंश तक सूर्य की होरा मानी जाती है. विषम राशि में यह गणना बदल जाती है. 0 से 15 अंश तक सूर्य की होरा और 15 से 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा मानी जाती है.
द्रेष्काण कुण्डली | Dreshkana Kundali (D-3)
यह कुण्डली जातक के भाई-बहनों का अध्ययन करने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इस वर्ग कुण्डली में 30 जन्म कुण्डली में 0 से 10 अंश के बीच में कोई ग्रह है तो वह द्रेष्काण कुण्डली में उसी राशि में लिखा जाएगा जिस राशि में वह जन्म कुण्डली में है. जन्म कुण्डली में10 से 20 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो वह अपनी राशि से पाँचवीं राशि में जाएगा और यदि जन्म कुण्डली में 20 से 30 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में वह ग्रह अपनी राशि से नवम राशि में जाएगा.
चतुर्थांश कुण्डली | Chaturthansh Kundali (D-4)
इस कुण्डली से चल-अचल सम्पत्ति तथा भाग्य का अनुमान लगाया जाता है. इससे बनाने के लिए 30 अंश के 4 बराबर भाग किए जाते हैं. एक भाग 7 अंश 30 मिनट का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि पहले चतुर्थांश में स्थित है तो वह उसी राशि में चतुर्थांश कुण्डली में जाएगा. ग्रह दूसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में स्थित है, उससे चौथी राशि में जाएगा. ग्रह यदि तीसरे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में है उससे सातवीं राशि में जाएगा. ग्रह यदि चौथे चतुर्थांश में स्थित है तो वह जिस राशि में स्थित है उससे दसवीं राशि में जाएगा.
सप्तमांश कुण्डली | Saptamansh Kundali (D-7)
इस कुण्डली से संतान का अध्ययन किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के सात बराबर भाग किए जाते हैं. जो ग्रह विषम राशि में होगें उनकी गिनती वहीं से आरम्भ होगी जिस राशि में वह ग्रह स्थित हहोते हैं. जो ग्रह जन्म कुण्डली में सम राशि में स्थित होगें उनकी गिनती स्थित राशि से, सातवीं राशि से होती है.
नवाँश कुण्डली | Navansh Kundali (D-9)
नवांश कुण्डली अत्यधिक महत्वपूर्ण कुण्डली है. इससे वैवाहिक जीवन का आंकलन किया जाता है. जीवन के सभी क्षेत्रों का अध्ययन भी किया जाता है. इस कुण्डली का निर्माण करते समय सबसे पहले तो कुछ बातों पर ध्यान देना होत अहै इसमें सभी बारह राशियों को तीन भागों में बाँटा जाता है.
दशमांश कुण्डली | Dashmansh Kundali (D-10)
दशमांश कुण्डली को D - 10 कहा जाता है. दशमांश कुण्डली का उपयोग व्यवसाय मे उन्नति , प्रतिष्ठा, सम्मान और आजीविका में बढोत्तरी, समाज में सफलता को देखने के लिए किया जाता है. इस कुण्डलि में दशम भाव दशमेश का सर्वाधिक महत्व है. इसके साथ ही साथ दश्मांश से माता पिता के सुख दुख एवं आयु का विचार होता है.
द्वादशांश कुण्डली | Dwadshansh Kundali (D-12)
द्वादशांश को D-12 कुण्डली भी कहा जाता है. द्वादशांश कुण्डली बनाने के लिए 30 अंश के 12 बराबर भाग किए जाते हैं. इसका प्रत्येक भाग 2 अंश 30 मिनट का होता है.इस कुण्डली का अध्ययन करने से माता पिता के जीवन के उतार चढावों के बारे में जानकारी मिलती है. इसके साथ ही साथ इससे हमें आयु के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है.
षोडशाँश कुण्डली | Shodshansh Kundali (D-16)
इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 16 बराबर भाग करते हैं. इससे वाहन सुख के बारे में जाना जा सकता है. वाहन से संबंधित कष्ट, दुर्घटना तथा मृत्यु का आंकलन करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है. इसका एक भाग 1 अंश 52 मिनट 30 सेकण्ड का होता है. इसके अनुसार यदि चर राशि(1,4,7,10) में ग्रह है तो गणना का आरम्भ मेष राशि से होता है. यदि स्थिर राशि(2,5,8,11) में ग्रह है तो गणना का सिंह राशि से होती है. यदि ग्रह द्वि-स्वभाव राशि(3,6,9,12) में स्थित है तो गणना का धनु राशि से होती है. एक अन्य मतानुसार यदि ग्रह विषम राशि में स्थित है तो गणना उसी राशि से आरम्भ होगी जिसमें ग्रह स्थित है. यदि ग्रह सम राशि में स्थित है तो गणना, जिस राशि में ग्रह स्थित है उससे चौथी राशि से अपसव्य(विपरीत) क्रम में आरम्भ होगी.
विशाँश कुण्डली | Vishansh Kundali (D-20)
इस कुण्डली का अध्ययन करने के लिए 30 अंश के 20 बराबर भाग किए जाते हैं. एक भाग 1 अंश 30 मिनट का होता है. इस कुण्डली के अध्ययन से जातक कितना धार्मिक होगा इस बात का आंकलन किया जाता है उसकी. इसमें ग्रह यदि चर राशि में स्थित हैं तो गणना मेष से आरम्भ होती है. ग्रह यदि स्थिर राशि में है तो गणना धनु राशि से आरम्भ होती है. यदि ग्रह द्वि-स्वभाव राशि में है तो गणना सिंह राशि से मानी जाती है.
चतुर्विशांश कुण्डली | Chaturvishansh Kundali (D-24)
इस वर्ग कुण्डली में 30 अंश को 24 बराबर भागों में बांटा जाता है. एक भाग 1 अंश 15 मिनट का होता है. इस कुण्डली का अध्ययन शिक्षा, दीक्षा, विद्या तथा ज्ञान के लिए किया जाता है. यदि ग्रह विषम राशि में स्थित है तब सिंह राशि से गणना आरम्भ होती है. सम राशि में गणना कर्क राशि से आरम्भ कि जाती है.
सप्तविशाँश कुण्डली | Saptavishansh Kundali (D-27)
इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 27 बराबर भाग किए जाते हैं. प्रत्येक भाग 1 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड का होता है. इसक उपयोग जातक के दैहिक बल और योग्यता देखने के लिए किया जाता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि अग्नि तत्व(1,5,9 राशि) राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होती है. पृथ्वी तत्व(2,6,10 राशि) राशि में स्थित ग्रह की गणना कर्क से आरम्भ होती है. वायु तत्व राशि(3,7,11 राशि) में स्थित ग्रह की गणना तुला से गणना आरम्भ होती है. जल तत्व राशि(4,8,12 राशि) में स्थित ग्रह की गणना मकर राशि से आरम्भ होती है.
त्रिशाँश कुण्डली | Trishansh Kundali (D-30)
त्रिशांश कुण्डली का अध्ययन भी लगभग जीवन में जातक के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए किया जाता है. इसमें कुण्डली को 30 भागों में विभाजित किया जाता है. त्रिशाँश कुण्डली के बनाने में एक भिन्न तरीके का प्रयोग किया जाता है. इस कुण्डली को बनाने में सम राशि तथा विषम राशियों की गणना अलग-अलग की जाती है.
खवेदांश कुण्डली | Khavedansh Kundali (D-40)
इस वर्ग कुण्डली को चत्वार्यांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंशों को 40 बराबर भागों में बाँटा जाता है. इससे व्यक्ति के शुभ या अशुभ फलों का विश्लेषण किया जाता है. एक भाग 0 अंश 45 मिनट का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि विषम राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होगी. ग्रह यदि सम राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से आरम्भ होगी.
अक्षवेदांश कुण्डली | Akshavedansh Kundali (D-45)
इस वर्ग कुण्डली को पंच चत्वार्यांश भी कहते हैं. इस कुण्डली के 30 अंश को 45 बराबर भागों में बाँटा जाता है. इस कुण्डली से जातक के चरित्र के बारे में जान अजाता है. कुण्डली में ग्रह यदि चर राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होती. ग्रह यदि स्थिर राशि में स्थित है तो गणना सिंह राशि से शुरु होती . ग्रह यदि द्वि-स्वभाव राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से आरम्भ होती है.
षष्टियांश कुण्डली | Shashtiyansh Kundali (D-60)
षष्टियांश वर्ग कुण्डली में 30 अंश को 45 बराबर भागों में बाँटा जाता है. इस वर्ग का उपयोग जीवन में होने वाली शुभ तथा अशुभ घटनाओं को जानने के लिए किया जाता है. इसमें ग्रह रेखांश को 2 से गुणा किया जाता है और जो संख्या आती है उसे 12 से भाग दिया जाता है. जो संख्या शेष होती है वह संख्या ग्रह जहां स्थित हो वहां से आरंभ करते हैं. जहां पर यह संख्या समाप्त होती है उस भाव में ग्रह इस वर्ग में स्थित माना जाता है.