सूर्य की शक्तिशाली ऊर्जा किसी भी ग्रह को जला सकती है और ग्रह की शक्ति को भड़का भी सकती है, जिसके सूर्य निकट होता है. शुक्र का अस्त होना अशांत प्रेम जीवन का प्रतीक बन सकता है. अधिकांश मामलों में प्यार का बलिदान करियर या अन्य व्यक्तिगत लक्ष्यों, आदर्शों के कारण होता है. भले ही यह स्थिति रिश्तों के मामले में दर्दनाक हो सकती है. इसमें तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना का कारण बनती है. सूर्य का अंतिम उद्देश्य किसी भी ग्रह के प्रभाव को आध्यात्मिक बनाना और शुद्ध करना होता है. ऎसे में शुक्र जो काम यौन प्रेम का प्रतिक है वह अगर सूर्य के इस असर से प्रभावित होगा तब विरोधाभास अवश्य उत्पन्न होंगे.
शुक्र ग्रह का पौराणिक खगोलिय रहस्य
शुक्र को एक ब्राह्मण, शुक्राचार्य के रूप में वर्णित किया गया है, जो विद्वान है. शुक्राचार्य ऋषि भृगु और उनकी पत्नी पुलोमा के पुत्र हैं. भगवान शिव ने उन्हें संजीवनी विद्या का ज्ञान दिया जिसके द्वारा वह मृतकों को जीवित कर सकते हैं. शिव ने शुक्र को सर्वश्रेष्ठ ग्रहों के रूप में भी आशीर्वाद दिया और यह कि शुक्र का आकाश में उदय होना अनुष्ठानों की शुभ शुरुआत होने से संबंधित हुआ. शुक्र के आकाश में उदय होने पर विवाह का समय आरंभ होने का होता है.
खगोल शास्त्र में शुक्र सबसे चमकीला तारा है और नग्न आंखों को दिखाई देता है. यह सूर्य और चंद्रमा के बाद आकाश में सबसे चमकीला पिंड है. यह सूर्य से दूसरा ग्रह है और जब इसे पृथ्वी से देखा जाता है, तो यह हमेशा सूर्य के आसपास होता है. पृथ्वी से देखने पर शुक्र हमेशा सूर्य से 48 डिग्री के भीतर होता है.
शुक्र जीवन में अधिकांश सुखद चीजों का कारक है, खासकर भौतिक चीजों का. यह प्रेम, रोमांस, सौंदर्य, विवाह, सेक्स, वीर्य, यौवन, ललित कला, रंगमंच, संगीत, इत्र, विलासिता, शानदार वाहन और सुंदर कपड़ों का प्रतीक है. शुक्र वृष और तुला राशि का स्वामी है जो कालपुरुष कुंडली के दूसरे और सातवें घर हैं. शुक्र की मूलत्रिकोण राशि तुला है. शुक्र उन तरीकों को नियंत्रित करता है जिसमें हम रिश्तों में बातचीत करते हैं और साथ ही जिस तरह से हम खुद को व्यक्त करते हैं. शुक्र इच्छा का प्रमुख कारक है. साझेदारी, जीवनसाथी, भागीदारों के रूप में कैसे व्यवहार करते हैं. क्या हमें आकर्षित करता है, इस संबंध में यह शुक्र यौन इच्छाओं, रोमांटिक जोड़ी में हमारी इच्छाओं और हमारे व्यवहारों का वर्णन करता है. यह प्रभावित करता है कि आप कैसे प्यार में पड़ते हैं और जब आप करते हैं तो आप कैसे व्यवहार करते हैं. शुक्र बेडरूम और यौन गतिविधियों को नियंत्रित करता है.
शुक्र ग्रह के अस्त होने का समय
इस युति के बाद अस्त शुक्र का परिवर्तन होता है. वह इवनिंग स्टार से मॉर्निंग स्टार या दूसरी तरफ जाती है. सूर्य/शुक्र की युति हर 18 महीने में दो बार होती है. जन्म कुंडली में या व्यक्तिगत गोचर में इसे देख सकते हैं. पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि अस्त के दौरान सूर्य की अत्यधिक शक्ति शुक्र को जला कर और नष्ट कर देती है. वह अदृश्य सा लगता है, इस खूबसूरती को न तो देखा जाता है और न ही सराहा जाता है. प्रेम जीवन अशांत हो सकता है तलाक की अधिक संभावना रहती है. पैसे, सुरक्षा या सत्ता के लिए प्यार का त्याग करना पड़ सकता है.
आधुनिक ज्योतिषी इस योग को एक आदर्श भी मानते हैं जो सुंदर, आकर्षक, दयालु, रचनात्मक, सामंजस्यपूर्ण, लोकप्रिय और समृद्ध बनाता है.
जब शुक्र अस्त हो रहा हो सूर्य के 10 डिग्री के भीतर तो वह रूपांतरित हो जाता है. यदि शुक्र वक्री है, तो वह भोर का तारा बनता है. अगर वह मार्गी है, तो वह इवनिंग स्टार बनता है. मॉर्निंग स्टार को सूर्योदय से निकटता को देखते हुए, प्रकाश, अग्नि, जीवन शक्ति, शक्ति, पीछा और युद्ध के साथ इसका जुड़ाव देखा जाता है. इवनिंग स्टार के रूप में, शुक्र एक वनस्पति देवी है, जो कृषि से संबंधित माना जाता है जो उपजाऊ और पोषण का प्रतीक बनता है.
ज्योतिष शास्त्र में सभी भौतिक और सांसारिक सुखों का कारक शुक्र को माना जाता है. शुक्र अस्त होने पर कुछ विशेष कामों को रोक भी दिया जाता है. यह मुख्य रुप से सभी शुभ कार्यों और विवाह जैसे कार्यों पर विराम लगाने का समय होगा. जब भी कोई ग्रह परिभ्रमण के दौरान सूर्य के इतने करीब जाता है, तो सूर्य के प्रकाश और उसकी चमक के कारण उस ग्रह का प्रकाश कमजोर पड़ने लगता है. इसके प्रभाव से चमक गायब हो जाती है. इस दौरान ग्रह सूर्य से एक विशेष अंश की दूरी पर होता है, जिसके कारण सूर्य की ऊर्जा उस ग्रह के प्रभाव को कमजोर कर देती है, इस घटना को ज्योतिष में ग्रह के अस्त होने के रूप में जाना जाता है. कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक विशेष दूरी पर होता है, जिसके कारण सूर्य की ऊर्जा उस ग्रह के प्रभाव को कमजोर कर सकती है तो ये स्थिति अस्त बन जाती है.
अब यदि हम शुक्र ग्रह की बात करें, जिसे भोर का तारा कहा जाता है, तो जब भी यह परिक्रमा करते हुए सूर्य के निकट आता है, तो कुछ विशेष परिस्थिति होती हैं, जब सूर्य की ऊर्जा के सामने शुक्र की ऊर्जा कमजोर हो जाती है, जिसके कारण जिसमें शुक्र दिखाई नहीं देता है और इस स्थिति को शुक्र दहन के रूप में जाना जाता है. जब भी कोई ग्रह अस्त होता है तो उस ग्रह की अपने कारक के अनुसार फल देने की क्षमता कम हो जाती है. शुक्र भी इस स्थिति में अपवाद नहीं होता है. वह भी जब अस्त होता है तो उसके कारक तत्व समाप्त होते दिखाइ देते हैं.
शुक्र के अस्त होने का फल
वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को सभी सुखों का कारक माना गया है. कुंडली में शुक्र ग्रह के अस्त होनी की स्थिति होने पर व्यक्ति को जीवन भर विवाह से संबंधित विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
शुक्र अस्त के इस चरण के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश पूजा, आदि करना सख्त वर्जित होता है, क्योंकि शुक्र इनका कारक होता है इसलिए अस्त होने पर इन कारक फलों की शुभता भी कमजोर हो जाती है, जिसके फलस्वरुप इस समय इन कामों को करने से रोक देने का नियम बना हुआ है.
कुण्डली में शुक्र ग्रह अस्त अवस्था में होना, यौन रोगों, गर्भाशय रोग अथवा स्त्री रोग से संबंधित समस्या हो सकती है, क्योंकि शुक्र जननांग या यौन संबंधों का कारक होता है.
शुक्र के अस्त होने के कारण रिश्तों में एक से अधिक साथी की भागीदारी हो सकती है, अनैतिक संबंधों में भी व्यक्ति अधिक लिप्त हो सकता है.
इसके अलावा, इन लोगों को गुर्दे, आंख, मूत्राशय और त्वचा से संबंधित शारीरिक समस्याएं होना भी परेशानी का कारण होता है.
विवाहित रिश्तों में जीवन साथी के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ सकता है.
यदि किसी जातक की कुण्डली के आठवें भाव में शुक्र का गोचर होता है तो जातक को वैवाहिक जीवन में विवाह संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.