वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा जाता है और इसी के प्रभाव से प्रभावित हो व्यक्ति का मन हर समय चलायमान रहता है. उत्तर कालामृत में चंद्रमा को बुद्धि पुष्य सुगंध कहा है अर्थात चंद्रमा को बुद्धि (मन) का कारक कहकर संबोधित किया है. ज्योतिष में चंद्रमा चंद्रकला के रुप में देवी देवताओं के आभूषण रुप में अलंकृत है. चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है तो दूसरी ओर देवी चंद्रघंटा के मस्तक को शोभित करता है. जन्म कुण्डली में दशा पद्धति चंद्रमा पर आधारित होती है विशोंतरी दशा में चंद्रमा की नक्षत्र गति देखी जाती है.
मानव जीवन को वैसे तो सभी ग्रह प्रभावित करते हैं, लेकिन व्यक्ति के दैनिक जीवन पर चंद्रमा का प्रभाव सबसे अधिक महत्व रखता है. ज्योतिष अनुसार चंद्रमा एक राशि में सवा दो दिन तक रहता है और इससे अधिक तेज चलने वाला अन्य कोई ग्रह नहीं है जो इतनी शीघ्रता से राशि परिवर्तन करता हो चंद्रमा मन का कारक है इसलिए मन के विचारों में भी तीव्र परिवर्तन देखा जा सकता है.
मन से तेज को कोई नही इस मन की सीमा नही अभी यहां तो क्षण भर में आकाश के अनंत को छू ले इसे रोकने के लिए ही तो अनेक साधु संत अपने को वर्षों की तपस्या में रत रखते है तब भी कोई कोई ही इसे काबू में रख पाने में सफल हो पाता है और जब साधक इसे इसे अपने नियंत्रण कर लेता है उसे मोक्ष का मार्ग दिखाई दे जाता है.
चंद्रमा के राशि परिवर्तन के कारण अलग-अलग भाव एवं राशि में भ्रमण के कारण व्यक्ति दुखी एवं प्रसन्न होता है. गोचर में जब भी चंद्रमा अपनी राशि से छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति की मानसिक स्थित ठीक नहीं होती व्यक्ति चिंताशील एवं अत्यधिक भावुक दिखाई देगा. चंद्रमा कर्क राशि में बली होता है और वृष राशि में उच्च बली तथा वृश्चिक राशि में नीच का होता है. चंद्रमा मित्र क्षेत्रीय, मित्र ग्रहों या गुरू से युति करता है तो व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति होती है और ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं.
कुण्डली में यदि चंद्रमा की स्थिति ठीक हो तो जातक में स्थिरता एवं विचारों का समायोजन दिखाई देगा. वह अपने को संयमी रखने में सशक्त होगा तथा धीरोदात्त गुणों से पूर्ण होगा. कुंडली में चंद्रमा उच्च का होने पर व्यक्ति को समाज में सम्मान की प्राप्ति हो पाएगी. व्यक्ति का स्वभाव चंचल होगा तथा उसकी प्रकृति विलासितापूर्ण हो सकती है.
नीच का चंद्रमा होने पर व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकता है तथा जातक का मन अस्थिर रहेगा. कोई भी निर्णय लेने में वह डांवाडोल रह सकता है. स्वराशि का चंद्रमा होने पर व्यक्ति तेजस्वी होता है एवं अचानक धन की प्राप्ति करता है. व्यक्ति में सही गलत का निर्णय लेने की क्षमता होती है.
मित्र राशि में स्थित चंद्रमा जातक को सुखी, गुणवान और धनवान बनाता है.
इसके विपरित चंद्रमा का शत्रु राशि या क्षेत्र में होने पर जातक बीमारियों से ग्रसित हो सकता है. आत्मसंयम की कमी हो सकती है तथा नकारात्मकता का प्रभाव देखा जा सकता है.
शुभ एवं बली चंद्रमा व्यक्ति को भाग्यवान, सुंदर तथा सुखी बनाता है. जन्म कुण्डली में बल युक्त चंद्रमा का उल्लेख इस प्रकार देखा जा सकता है. प्रधाना बल संयुक्त: संपूर्णशश लांछना। एकोपि कुरूते जातम नराधिप मरिन्दमान। आरोग्यं प्रददातु नो दिनकर: श्यचन्द्रों।। अत: कह सकते हैं कि बलयुक्त मजबूत चंद्रमा भाग्य को मजबूत करता है.
कुंडली में चंद्रमा क्षीण हो, 6, 8, 12 भाव में हो, उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, राहु-केतु से ग्रसित हो तो यह जातक के लिए कष्टकारक होता है. अत: ऎसे चंद्रमा को बली बनाने के लिए कुछ उपाय करना लाभप्रद रहता है. जैसे कि मोती चांदी की अंगूठी में जड़वाकर शुक्लपक्ष के सोमवार के दिन प्राण प्रतिष्ठा कराकर धारण करने से चंद्रमा की शुभता में वृद्धि होती है इसके अतिरिक्त सोमवार या पूर्णिमा के दिन उपवास रखेने से भी चंद्रमा शुभ फल देता है. भगवान शिव का पूजन एवं शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से भी चद्रमा की शुभता प्राप्त कि जा सकती है.