भकूट कैसे देता है सफल विवाह की गारंटी ?

विवाह मिलान से जुड़े ज्योतिषीय नियमों में एक नियम भकूट भी है. भकूट का उपयोग वैवाहिक सुख को देखने हेतु विशेष रुप से किया जाता है. विवाह मिलान में भकूट मिलान का बेहद महत्व होता है. भकूट की स्थिति पर ध्यान देते हुए दोनों व्यक्तियों की विचारधार एवं उनकी अनुकूलता को देखा जाता है. विवाह पश्चात आपसी संबंध के साथ सतह घरेलू स्थिति, आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य विचार इत्यादि बातें भकूट के द्वारा बेहतर रुप से समझी जा सकती हैं. कहा जाता है कि जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं. भारतीय ज्योतिष कहता है कि जब विवाह पर विचार किया जाता है, तो सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए वर और वधू की कुंडली का गहन मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

भारतीय विवाह में कुंडली मिलान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पति-पत्नी के गुणों का पता लगाया जाता है. 36 गुणों में से 18 गुणों को एक मानक माना जाता है जो शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन की गारंटी भी देता है. ज्योतिषी अष्टकूट के माध्यम से विवाह के भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं. भकूट अष्टकूट में सातवें स्थान पर है.

इसी सात अंकों का आधार भकूट के महत्व को दर्शाता है. भकूट का सीधा संबंध पति-पत्नी के मानसिक गुणों से होता है. भकूट 6 प्रकार के होते हैं जिन्हें कहा जाता है. इनमें से कुछ सामान्य तो कुछ घातक रुप से अपना असर दिखाने वाले होते हैं. यह जिस रुप में बनते हैं वैसा ही अपना प्रभाव भी व्यक्ति पर डालते हैं. 

भकूट के प्रकार 

भकूट को निम्न रुप से जाना जाता है इसमें से प्रथम-सप्तम भकूट, द्वितीया-द्वादश भकूट, तृतीया-एकादश भकूट, 

चतुर्थ-दशम भकूट और नव-पंचम भकूट मुख्य होते हैं. इन भकूट में षडाष्टक भकूट काफी खराब माना गया है इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र कहता है कि द्वितीया-द्वादश और पंचम-नवम अशुभ भकूट होते हैं जबकि बाकी सामान्य रुप से ग्राह्य हो सकते हैं. ज्योतिष अनुसार एक की जन्म राशि से दूसरे की राशि की गणना करके और इसके विपरीत भकूट का निर्धारण करते हैं. यदि जोड़े की राशियां एक दूसरे से 5वें और 9वें स्थान पर हों तो पंचम-नवम बनता है. इसी प्रकार यदि इनकी राशियां एक दूसरे से छठे और आठवें स्थान पर हों तो षडष्टक भकूट बनता है इन को काफी अशुभ रुप से अपना असर देने वाला माना गया है. .

भकूट की शुभता एवं अशुभता कैसे जानें

द्वितीया-दादश भकूट 

दो-बारह भकूट को द्वि द्वादश भकुट के नाम से जाना जाता है. इसे एक खराब भकूट के रुप में स्थान प्राप्त है. दूसरा भाव धन का स्थान है और मारक स्थन भी है वहीं 12वां भाव व्यय का. यदि कुंडली में इस स्थिति के साथ विवाह होता है तो दंपत्ति के वैवाहिक जीवन में अत्यधिक खर्च हो सकता है. इस के चलते जीवन में व्यक्ति धन के मामलों के कारण अधिक परेशानी झेलता है. जीवन साथी की ओर से उसे अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. आवश्यकताओं की पूर्ति सहजता से नहीं हो पाती है. खर्च की स्थिति किसी भी रुप से असर डाल सकती है कभी स्वास्थ्य मसलों पर अधिक धन खर्च हो सकता है , तो कभी व्यर्थ के खर्चों के कारण संबंधों पर असर पड़ सकता है. व्यक्ति अपने जीवन में परिवार से दूरी की स्थिति को अधिक झेल सकता है.

नव पंचक भकूट

मिलान में नवपंचम भकूट को वैवाहिक जीवन में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने वाला मान अजाता है. वैसे नौवां और पंचम भाव शुभ स्थान होता है किंतु यहां पर वैचारिक मतभेदों के चलते स्थिति अलगाव को अधिक दिखाने वाली होती है.  यह आध्यात्मिक, धार्मिक सोच को जन्म देता है जो दंपत्ति के दिमाग को प्रभावित कर सकता है और यहां तक कि बच्चे की उनकी इच्छा में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है. यह स्थान शुभ होकर काम सुख को कमजोर कर देने वाला होता है. इसमें व्यक्ति को अपने साथी के साथ प्रेम एवं संसर्ग के सुख की कमी का अनुभव हो सकता है. विवाह की आधारशीला में आपसी संबंध का सुख बेहद अहम होता है इसी के द्वारा परिवार की नींव को बल मिलता है और संसार बनता है. पर नव पंचम की स्थिति अरुचि ओर अनिच्छा को उपन्न कर सकती है. इसका असर व्यक्ति अपने परिवार को बढ़ाने से अधिक स्वयं के आध्यात्मिक विकास को लेकर उत्साहित दिखाई देता है. इस स्थिति में जीवन का अहम पहलू उपेक्षा का शिकार हो सकता है. इस कारण से आपसी रिश्तों में खटास भी उत्पन्न हो सकती है. 

षडाष्टक भकूट 

षडाष्टक भकूट छठे और आठवें भाव के द्वारा निर्मित होता है. यह एक अशुभ भकूट है जो सब से अधिक खराब फल देने वाला भकूट माना गया है. सबसे अधिक कठोर खतरनाक होने के कारण ही इसे पूर्ण रुप से ध्यान देने की जरुरत होती है. इससे शादी के बाद जोड़े में से किसी एक की मृत्यु हो सकती है. षष्टक दंपत्ति के बीच कई समस्याओं और भ्रम को जन्म देता है और विवाह को नष्ट कर सकता है. यदि कुंडली षष्टक भकूट से पीड़ित है तो अलगाव आम बात है और आत्महत्या का प्रयास भी हो सकता है.

शुभ भकूट 

भकूट की स्थिति में कुछ भकूट ग्राह्य रुप से देखे जाते हैं. इसमें से प्रथम-सप्तम, तृतीया-एकादश और चतुर्थ-दशम भकूट को वर और वधू के लिए शुभ माना जाता है यह भकूट अपनाए जा सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि गणना करते समय यदि जोड़े की राशियां एक-दूसरे से पहले और सातवें स्थान पर हों तो उन्हें अच्छे बच्चों के साथ सुखी वैवाहिक जीवन मिलता है.

इसी प्रकार यदि उनकी जन्म राशि एक दूसरे से तीसरे और ग्यारहवें स्थान पर होती हैं तो उन्हें शादी के बाद आर्थिक रूप से स्थिर जीवन मिलता है. शादी के बाद यह जोड़ा समृद्ध होता है. इस प्रकार जब उनकी जन्म राशि चौथे और दसवें स्थान पर होती है तो उनके बीच हमेशा प्यार और देखभाल का रिश्ता बना रहता है.

भकूट की शुभता को ध्यान में रखते हुए यदि काम किया जाए तो यह बेहतर फलों को देने में सक्षम होता है. भकूत के प्रभाव से वैवाहिक जीवन के सुख दुख की स्थिति को काफी उचित रुप से देख पाना संभव होता है. 

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जन्म कुंडली में भाव स्वामी के अस्त होने का प्रभाव

कुंडली में अस्त ग्रह की स्थिति कई मायनों में असर दिखाती है. अस्त अगर शुभ ग्रह हुआ है तो उसके फल पाप ग्रह के अस्त होने से विपरित होंगे. अस्त ग्रह सामान्य रह सकता है तो कहीं वह विद्रोह की स्थिति को भी दिखाता है. अपने गुणों के अनुरुप जब वह फल नहीं देता है तो व्यक्ति को उस ग्रह से संबंधित चीजों के लिए काफी प्रयास भी करने होते हैं. जब कोई ग्रह कुंडली में या गोचर में अस्त होता है तो इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है. कुंडली में अस्त भाव के स्वामी के परिणाम आपके जीवन पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं. आईये जानने की कोशिश करते हैं इसका हर भाव से कैसा संबंध होगा.

प्रथम भाव का स्वामी अस्त

यदि किसी कुंडली के पहले घर में लग्न का स्वामी अस्त हो तो व्यक्ति को बंधन जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है. किसी न किसी कारण से उसे स्वयं की स्वतंत्रता के लि संघर्ष अधिक करना पड़ सकता है. अक्सर डर, बीमारी और तनाव का सामना करना पड़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप जीवनशैली में कमी, धन संकट और सफलता के रास्ते में बाधाएं आ सकती हैं.

द्वितीय भाव का स्वामी अस्त

यदि द्वितीय भाव का स्वामी अस्त हो तो व्यक्ति अनुचित व्यवहार कर सकता है. जीवन में आत्मविश्वास की कमी भी रह सकती है. कुछ अकल्पनीय कृत्य भी कर सकता है जिसको लेकर अन्य भरोसा नहीं कर पाते हैं आंखों में दर्द, हकलाना और व्यर्थ का तनाव जैसे कारण परेशानी पैदा कर सकते हैं. जीवन समस्याग्रस्त अधिक दिखाई पड़ सकता है.

तृतीय भाव का स्वामी अस्त

यदि कुंडली के तीसरे घर का स्वामी अस्त है तो यह व्यक्ति के संघर्ष को कम कर सकता है. आलसी बना सकता है. बंधुओं के लिए दूरी का कारण बन सकता है. उसे किसी बुरे सलाहकार और शत्रु की ओर से ही अधिक सलाह मिलती है. मानसिक तनाव महसूस कर सकता और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती है. जीवन में व्यर्थ की भागदौड़ उसे हरा सकती है.

चतुर्थ भाव का स्वामी अस्त

चतुर्थ भाव के स्वामी के अस्त होने का मतलब है कि सुख कमजोर हो जाना, सुख मिलने में कमी होना. व्यक्ति अपनी माता को कष्ट में देख सकता है उनसे दूरी हो सकती है. व्यक्ति की भूमि संपत्ति या पालतू जानवर का उसे अधिक लाभ नहीं मिल पाता है. धोखा और दूसरों के साथ शत्रुता अधिक देखने को मिल सकती है. जल और वाहन से खतरा हो सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति का व्यक्तिगत सुख बाधित होता है.

पंचम भाव का स्वामी अस्त

इस भाव में अस्त स्वामी संतान संबंधी कष्ट, योजनाओं की विफलता, पैरों में समस्या और अनावश्यक धन हानि का कारण बन सकता है. जीवन में कुछ मामलों में प्रेम की कमी भी रह सकती है. अपनों की ओर से उसे रुखा व्यवहार मिल सकता है. काम काज में अरुचित एवं रचनात्मकता की कमी रह सकती है. 

छठे भाव का स्वामी अस्त

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में छठे घर में अस्त स्वामी है तो ऎसे में विजय को पाना मुश्किल हो सकता है. निराशा, साजिश का सामना करना पड़ सकता है. शत्रुओं की ओर से तनाव एवं भय अधिक रहता है. प्रतिकूल परिस्थितियों में दूसरों के अधीन काम करना पड़ सकता है. आहत हो सकता है, चोरी से पीड़ित हो सकता है और बुद्धिमानी से निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकता है.

सातवें भाव का स्वामी अस्त

इस घर में अस्त स्वामी जीवन साथी से प्रेम की कमी को पाता है. अलगाव का संकेत मिल सकता है. विपरीत लिंग से परेशानी हो सकती है. अवैध संबंध बन सकते हैं जिनके कारण गुप्त रोगों से पीड़ित हो सकता है. सामाजिक रुप से अपनी प्रतिष्ठा के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ सकता है. 

आठवें घर का स्वामी अस्त

कुंडली के आठवें घर में अस्त स्वामी कुछ बेहतर होता है लेकिन वह स्वास्थ्य में कमजोरी, असफलता, निराशा, भूख, बीमारी और कष्ट क अकारण बन सकता है. अपने आपसी संबंधों में उसे दूरों का हस्तक्षेप अधिक परेशानी देता है. अचानक होने वाली घटनाएं उसे अधिक प्रभावित कर सकती हैं गुप्त संबंधों के कारण मानहानि उठानी पड़ सकती है.

नवम भाव का स्वामी अस्त

नवम भाव में अस्त स्वामी के कारण भगय में कमी का रुख दिखाई देता है. संघर्ष अधिक रहता है. अपनों से दूरी होती है. दुर्भाग्य, दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है. मूर्खतापूर्ण व्यवहार अधिक देखने को मिल सकता है. जिन व्यक्तिों की कुंडली में यह योग होता है उन्हें बड़े लोगों और शिक्षकों से सहयोग कम मिल पाता है. 

दसवें भाव का स्वामी अस्त

कुंडली के दसवें घर का स्वामी अस्त है तो व्यक्ति काम काज में अधिक संघर्ष करता है. आसानी से सफलता नहीं मिल पाती है. असफलता अधिक मिलती है. नौकरी में प्रगति के लिए लम्बा इंतजार रह सकता है. कठिन जीवनशैली हो सकती है. अक्सर अप्रिय घटनाएं घटित हो सकती हैं. अधिकारियों का सहयोग कम रहता है.

एकादश भाव का स्वामी अस्त

लाभ का स्वामी अस्थ होने पर धन की कमी रहती है. अस्त स्वामी का अर्थ है व्यक्ति के बड़े भाई के सहयोग की कमी का शिकार हो सकता है. धन की हानि, कान से संबंधित रोग और दोस्तों से अलगाव जैसी स्थितियां अधिक प्रभवैत कर सकती हैं.

व्यय भाव का स्वामी अस्त

कुंडली में यह स्थिति है कुछ अच्छे तो कुछ कमजोर परिणाम दे सकती है. खर्च कुछ कम हो सकते हैम या फिर व्यक्ति कंजूस हो सकता है. बीमारियों से जल्द पीड़ित हो सकता है, और ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जिसमें उन्हें बंधन का अनुभव हो सकता है. विदेश में लम्बे निवास का अवसर कम मिलता है. 

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मंगल सिंह और शनि कुंभ राशि में मिलकर बनाएंगे समस्पतक योग

ज्योतिष शास्त्र कहता है कि मंगल और शनि के योग को अच्छा संकेत नहीं माना जाता  है. इन दोनों का संयोग हर किसी के जीवन में कष्ट और संघर्ष लेकर आता है. मंगल ग्रह और शनि योग क अप्रभाव व्यक्ति की कुंडली के साथ साथ विश्व को प्रभावित करता है, इतना ही नहीं यह समाज में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अचानक बदलावों को भी प्रभावित करती है. मंगल और शनि का समसप्तक तक योग जब जब बनता है इससे देश-दुनिया की सभी राशियों के लोगों के जीवन में निश्चित ही बदलाव देखने को मिलता है. 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और मंगल की युति का प्रभाव

सभी ग्रह समय-समय पर अपनी राशि बदलते रहते हैं. प्रत्येक ग्रह का प्रत्येक राशि पर भ्रमण करने का अलग-अलग समय होता है. कुछ अपना संकेत जल्दी बदल लेते हैं और कुछ लंबे समय तक एक ही स्थान पर बने रहते हैं. नौ ग्रहों में शनि ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो एक राशि में कई दिनों तक रहता है. इसी प्रकार, वक्री अवस्था में ग्रह किसी न किसी समय एक-दूसरे से संबंधित हो जाते हैं, जिस प्रकार अभी मंगल और शनि युति बना रहे हैं. ज्योतिष के अनुसार मंगल और शनि दोनों को दुष्ट ग्रह कहा जाता है, जबकि मंगल को अहंकारी, क्रोधी और काले स्वभाव वाला माना जाता है.

दूसरी ओर, शनिदेव अपनी धीमी वक्री गति से राशियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं, ये दोनों ग्रह अपनी उत्कृष्ट शक्ति से राशियों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. ये ग्रह ऊर्जावान कार्रवाई, अति आत्मविश्वास और अहंकार के नेता हैं. शनि और मंगल वास्तव में एक दूसरे के शत्रु हैं. शनि मृत्यु का सूचक है और मंगल रक्त का सूचक है; इन दोनों ग्रहों का मिलन स्पष्ट रूप से व्यक्ति के जीवन में बहुत सारी परेशानियों को आमंत्रित करता है.

कुंडली के अनुसार शनि-मंगल समस्पतक योग का प्रभाव

कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति का बहुत महत्व होता है. जन्म कुंडली में यदि शनि और मंगल एक साथ हों तो यह बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है. वक्री अवस्था में भी कुछ ऐसे संयोग बनते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका राशियों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है. ये प्रतिद्वंद्वी ग्रह हैं और इन्हें किसी भी राशि में एक साथ नहीं दिखना चाहिए. शनि और मंगल समस्पतक योग दुर्घटना और बदलाव की स्थिति पैदा करती है. समस्पतक योग कठिन समय और अलौकिक घटनाएँ लाता है. मंगल, शनि के समस्पतक योग के कारण परेशानियों, आपदाओं और दुर्घटनाओं की स्थिति देखने को मिल सकती है. 

मंगल का सिंह राशि में होना और शनि का कुंभ राशि में होना दोनों के बीच समसप्तक नामक योग बनाता है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग का प्रभाव विशेष फल देने वाला माना गया है। ग्रहों की समकोणीय स्थिति कई मायनों में खास हो सकती है. इसमें विभिन्न प्रकार के फलों को दर्शाया गया है। समसप्तक योग का अर्थ है जब ग्रह आमने-सामने हों। जब कोई ग्रह जिस स्थान पर स्थित होता है उस स्थान से सातवें भाव में बैठता है तो इस कारण दोनों ग्रहों के बीच परस्पर यह योग बनता है। समसप्तक योग शुभ ग्रहों की स्थिति में बनता हुआ देखा जा सकता है, फिर यह अशुभ ग्रहों की स्थिति में भी बनता है और कभी-कभी यह शुभ और अशुभ ग्रहों के मध्य भी बनता है।

यह योग सभी नौ ग्रहों के बीच बन सकता है, लेकिन जब इसका संबंध कुछ विशेष ग्रहों से हो तो यह अलग-अलग परिणाम देता है। उदाहरण के तौर पर यदि गुरु और चंद्रमा के बीच समसप्तक योग बनता है तो यह भी एक प्रकार का गजकेसरी योग होता है जिसे बहुत ही शुभ योगों में से एक माना जाता है। वहीं जब राहु और चंद्रमा के बीच समसप्तक योग बनता है तो यह ग्रहण नामक अशुभ स्थिति का संकेत होता है।

मंगल का सिंह राशि में बैठना और शनि का कुंभ राशि में होना समसप्तक योग का निर्माण करता है। शनि और मंगल दोनों को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। अब ऐसे में जब दो अशुभ ग्रह आमने-सामने होंगे तो स्वाभाविक है कि उनके परिणाम भी बेहद खास होंगे। जब भी ये दोनों ग्रह युति में या किसी अन्य रूप में एक साथ होते हैं तो अपना प्रभाव अवश्य दिखाते हैं, जिसका असर मन के साथ-साथ स्वभाव पर भी दिखाई देता है। इन आयोजनों का स्वरूप कई प्रकार से देखा जा सकता है। इस समय धार्मिक तौर पर कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे। राजनीतिक दृष्टि से संघर्ष अधिक रहेगा। मौसम की कुछ घटनाओं का असर देश-दुनिया पर पड़ेगा, बदलाव स्वाभाविक रूप से देखने को मिलेंगे।

सिंह राशि में मंगल और कुम्भ राशि में शनि का प्रभाव

कोई भी योग किसी एक कारण से अपना प्रभाव नहीं दिखाता बल्कि उसमें कई पहलू काम करते हैं। यह युति विनाशकारी होती है क्योंकि इस मंगल शनि समसप्तक योग के समय बाबरी मस्जिद जैसी अत्यंत विनाशकारी घटना भी घटित होती है, लेकिन यह युति कई अन्य योग राशियों के प्रभाव से अपना प्रभाव कम या ज्यादा कर सकती है। ऐसे में मंगल सिंह राशि है जो कि अग्नि तत्व वाली राशि है और मंगल स्वयं भी अग्नि तत्व वाला ग्रह है तो इस कारण मंगल के गुणों में धर्म की वृद्धि होगी वहीं शनि का कुंभ राशि में होना भी नियंत्रण में रखने का काम करेगा स्थिति। ऐसे में घटनाएं तो घटेंगी ही, लेकिन उनके निपटारे की स्थिति भी सकारात्मक रूप से मददगार बन सकती है.

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सिंह लग्न के लिए सभी ग्रह दशा प्रभाव

सिंह लग्न के लिए सभी ग्रहों की स्थिति कुछ शुभ और कुछ कठोर बनती है. ग्रह जिस भाव के स्वामी होते हैं और जैसी स्थिति में होते हैं उसी के अनुरुप अपना असर दिखाते हैं. सिंह लग्न  महत्वाकांक्षी, साहसी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले, सकारात्मक, स्वतंत्र और आत्म विश्वास से भरे हुए होते हैं.  इस लग्न में जब कोई शुभ ग्रह अच्छी स्थिति में हो तब इसके चलते अनुकूल फल प्राप्त होते हैं. इस लग्न के लिए हनि एक कठोर फल अधिक देता है, वहीं मंगल शुभ फल देने में सक्षम होता है.

सिंह लग्न में सूर्य दशा प्रभाव

सूर्य लग्न का स्वामी होने के कारण सूर्य देव इस लग्न कुंडली में सबसे शुभ एवं प्रभावी ग्रह हैं. सूर्य इस लग्न में अगर  प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम, एकादश भाव में होने पर यथाशक्ति शुभ फल देते हैं. सूर्य देव तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में अनुकूल फल प्रदान करने वाले होते हैं. इनका दान और पाठ करने से इनकी अशुभता कम हो जाती है. सूर्य की  दशा का प्रभाव व्यक्ति को क्रोध की अधिकता देता है. सूर्य देव की शक्ति बढ़ती है और व्यक्ति अच्छे फल प्रदान करता है.सूर्य महादशा का असर व्यक्ति को जीवन में प्रसिद्धि और पद प्राप्ति दिलाने वाला होता है.

सिंह लग्न में बुध दशा प्रभाव

सिंह लग्न की कुंडली में बुध की दशा प्रभाव आर्थिक समृद्धि को देने वाला होता है. कुंडली के दूसरे और एकादश भाव का स्वामी होकर आर्थिक समृद्धि दिलाने में सहायक बनता है. इस ग्रह की स्थिति लग्नेश सूर्य का परम मित्र होने के कारण बेहतर फलों को देने में सहायक होती है. इस लग्न की कुंडली में बुध को जीवन में महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उचित माना जाता है. बुध ग्रह प्रथम, द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव, नवम भाव, दशम भाव तथा एकादश भाव में बुध ग्रह अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में शुभ फल देने वाला होता है. तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ फल देता है. इस दशा में व्यक्ति को ग्रह की स्थिति के अनुसार प्रभाव दिखाई देते हैं. 

सिंह लग्न में शुक्र दशा प्रभाव

सिंह लग्न कुंडली में शुक्र तीसरे भाव और दसवें भाव का स्वामी होता है. हुक्र की दशा व्यक्ति के जीवन में कर्म की प्रधानता का समय होती है. शुक्र का प्रभाव मिलेजुले फलों को देने वाला होता है. शुक्र की दशा के दोरान जातक अपने काम धंधे के अलावा जीवन में रिश्तों के प्रभाव से भी  दिखाई देता है.शुक्र का प्रभाव प्रथम, चतुर्थ भाव, पंचम भाव्, सप्तम भाव, नवम भाव, दशम भाव तथा एकादश भाव मेंच्छे परिणाम देने वाला होता है. इस दशा के दौरान व्यक्ति को कुछ मान सम्मान एवं आर्थिक लाभ मिलता है. शुक्र दशा अपनी स्थिति में यथाशक्ति शुभ फल देती है. . शुक्र दशा दूसरे भाव, तीसरे भाव, छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव में अशुभ परिणाम दिखाती है. 

सिंह लग्न में मंगल दशा का प्रभाव

सिंह लग्न कुंडली के चतुर्थ और नवम भाव में मंगल दो अच्छे भावों का स्वामी है. लग्नेश सूर्य का अत्यंत प्रिय मित्र होने के कारण इस कुंडली में मंगल दशा को शुभ फल देने वाली माना गया है. मंगल अगर दशा में प्रथम भाव, द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव, नवम भाव, दशम भाव एकादश भाव में होने पर अपनी दशा में यथाशक्ति शुभ फल देते हैं. इसके अलावा तीसरे, छठे भाव में भी मंगल बेहतरीन दशा प्रभाव दिखाता है. आठवें और बारहवें भाव में मंगल अशुभ होता इस स्थान पर दशा का फल कमजोर होता है. मंगल दशा का समय व्यक्ति के साहस को बढ़ाता है मंगल संपत्ति के मामलों में कुछ अच्छे लाभ देता है.

सिंह लग्न में बृहस्पति दशा प्रभाव

सिंह लग्न कुंडली में बृहस्पति दशा का प्रभाव मिलेजुले रुप में दिखाई देता है. गुरु इस लग्न के लिए  पंचम और अष्टम भाव का स्वामी है. सूर्य देव का मित्र होने के कारण बृहस्पति को एक लाभकारी ग्रह माना जाता है. बृहस्पति प्रथम भाव, द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव, नवम, दशम तथा एकादश भाव में अपनी स्थिति में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में उदित स्थिति में बृहस्पति मारक होता है और इस दशा के समय अशुभ फल देता है.  बृहस्पति के फलों में स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है . व्यक्ति आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल रहता है. 

सिंह लग्न में शनि दशा का प्रभाव

सिंह लग्न कुंडली में शनि दशा का प्रभाव छठे और सातवें भाव के स्वामी के रुप में मिलता है. लग्नेश सूर्य का शत्रु होने के कारण शनि अपनी दशा में खराब फल अधिक देता है. सिंह के लिए कुंडली का सबसे मारक ग्रह शनि ही माना जाता है. शनि दशा कुंडली के सभी भावों में अशुभ फल देने में आगे अधिक रह सकती है. शनि दशा में खराब फलों से बचने के लिए शनि से संबंधित उपायों को अवश्य करना चाहिए. इसके अलावा शनि जब छठे, आठवें और बारहवें भाव में विपरीत राजयोग में होता है तो कुछ शुभ फल देने की क्षमता रखता है. शनि दशा समय स्वास्थ्य को लेकर चिंता रह सकती है. शत्रुओं की ओर से परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है.

सिंह लग्न में चन्द्रमा दशा का प्रभाव

सिंह लग्न के लिए चंद्रमा बारहवें भाव का स्वामी होता है. इस दशा का असर भी कमजोर ही माना जाता है. इस कुंडली में चंद्र का असर व्यक्ति को खर्चों से परेशानी देने वाला हो सकता है. स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र देव अपनी स्थिति में क्षमता के अनुसार दशा का फल देता है. छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव में स्थित चंद्रमा खराब असर के बाद अपना कुछ शुभ दशा असर दिखाता है जिसे विपरीत राजयोग में गिना जाता है.  

सिंह लग्न में राहु और केतु दशा का प्रभाव

राहु दशा का प्रभाव कुंडली में भाव स्थिति और ग्रह स्थिति के अनुसार पड़ता है. इस दशा के समय परिवार की स्थिति अधिक प्रभावित करती है. इस समय नाक, गला, कान, आवाज पर राहु का असर पड़ता है. दशाकाल में राहु के शुभ प्रभाव में रहने से कुछ अच्छे फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवं अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

इसी प्रकार केतु भी अपना असर दिखाता है. जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्री यात्रा, नास्तिक विचार, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुप्त स्थान, जेल यात्रा, अस्पताल, जादू-टोना जीवन के दुःख इस समय अधिक असर दिखाते हैं. कुंडली में  दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से अच्छे फल देता है  लेकिन कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं. 

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जैमिनी ज्योतिष में राजयोग का आप पर प्रभाव

ज्योतिष में शुभता का प्रभाव योग के फलों के द्वारा समझा जा सकता है. किसी भी ग्रह की शुभता अकेले से ही निर्मित नही होती है अपितु उसके साथ कई अन्य फैक्टर भी काम करते हैं. इसी श्रेणी में वैदिक पराशर ज्योतिष से अलग जैमिनी ज्योतिष की बात करें तो इसमें कई तरह के शुभ योगों का असर जातक की कुंडली में पड़ता है. कुंडली में राजयोग को सर्वोत्तम योग माना गया है. यह एक बहुत ही दुर्लभ योग है जो भाग्यशाली लोगों की कुंडली में पाया जाता है या यह कहा जा सकता है कि जिनकी कुंडली में यह योग होता है वे भाग्यशाली होते हैं. इस योग के बारे में जैमिनी ज्योतिष की अपनी मान्यताएं हैं. जैमिनी ज्योतिष पद्धति से बनने वाले राजयोगों की स्थिति कई रुपों से अपना असर डालने वाली होती है. 

जैमिनी से कुंडली में बनने वाले शुभ राजयोग .

यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह आपके जन्म लग्न को देख रहा है, वही ग्रह होरा लग्न में भी उस स्थान को देख रहा है तथा घटिका लग्न में भी वही स्थिति है तो इसे कुंडली में प्रबल राजयोग समझना चाहिए. इस योग के बनने से आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है और हर तरफ से तरक्की मिलती है. प्रजा को सम्मान मिलता है और राजा के समान सुखी जीवन मिलता है. इसी प्रकार यदि राशि कुंडली, नवमांश कुंडली, द्रक्कन कुंडली, लग्न कुंडली, सप्तम कुंडली में एक निश्चित स्थान पर एक ही ग्रह की दृष्टि हो तो भी राजयोग बनता है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए कुंडली में इन सभी कारकों का होना अनिवार्य है. यदि इनमें से कोई भी कारक मौजूद नहीं है तो पूर्ण परिणाम प्राप्त करना मुश्किल है.

द्रेष्काण और नवमांश कुंडली राजयोग 

जैमिनी ज्योतिष के अनुसार अगर् द्रेष्काण और नवमांश कुंडली में यदि कोई ग्रह लग्न, होरा लग्न और घटिका लग्न को देख रहा हो या संबंध बना रहा हो तो व्यक्ति की जन्म कुंडली में राजयोग बनता है. परंतु इन सभी कारकों का होना आवश्यक है, किसी भी कारक का अभाव अच्छा प्रभाव नहीं देता है. इसी प्रकार यदि मंगल, शुक्र और केतु एक दूसरे से तीसरे भाव में स्थित हों और एक दूसरे से दृष्टि संबंध बना रहे हों तो कुंडली में वैधनिक योग बनता है. यह योग व्यक्ति के जीवन में उन्नति और प्रसिद्धि का कारक होता है. कई बार कुछ स्थानों पर अपरोक्त बातें अगर लागू नहीं हो पाती हैं तो उस के प्रभाव से योग के फलों में कमी भी आती है. किंतु यदि सभी बातें पूर्ण रुप से दिखाई दे रही हों तो यह शुभता को देने वाली होती हैं. 

यदि नवांश कुंडली में चंद्रमा बृहस्पति से चतुर्थ या एकादश भाव में स्थित हो तो राजयोग बनता है. कुंडली में इस प्रकार के योग के बनने से व्यक्ति को व्यावसायिक जीवन में अधिकार और प्रसिद्धि मिलती है. यदि जन्म राशि और नवमांश कुंडली के दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह स्थित हों तो सामान्य प्रकार का राजयोग बनता है. लेकिन यह राजयोग उन्नत जीवन भी प्रदान करता है.

कारकों से बनने वाले राजयोग 

जैमिनी ज्योतिष में कारकों से बनने वाले योग भी शुभ फलों को देते हैं. इन में आत्म कारक, अमात्य कारक से बनने वाले कुछ योग राजयोग जैसा फल देने वाले होते हैं. यदि अमात्यकारक से द्वितीय, चतुर्थ और पंचम भाव समान रूप से बली हों और उनमें शुभ ग्रह स्थित हों तो यह व्यक्ति के लिए व्यावसायिक दृष्टि से बहुत शुभ होता है. इसी प्रकार यदि कोई ग्रह अमात्यकारक ग्रह के समान बलवान है और तीसरे या छठे भाव में स्थित है और उसका संबंध सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु से बन रहा है तो यह संकेत है कि व्यक्ति को प्रति दिन प्रगति के अवसर मिलते हैं. कार्य क्षेत्र में व्यक्ति सदैव सफलता की ओर अग्रसर होता है. .

जैमिनी में अमात्यकारक ग्रह से दूसरे और चौथे भाव में शुक्र, मंगल और केतु स्थित हों तो सुखी जीवन मिलता है. यह भी एक प्रकार से राजयोग कारक की भूमिका का निर्वाह करते देखे जा सकते हैं. लग्न, सप्तम और नवम भाव के बली होने से कुशल नेता के गुण विकसित होते हैं, आप राजनेता बन सकते हैं. यदि लग्न में दो ग्रह मौजूद हों और वे दोनों समान रूप से बली हों तो यह भी बुढ़ापे में सुख देने वाला राजयोग माना जाता है.

यदि लग्न और चतुर्थ भाव में समान संख्या में ग्रह स्थित हों तो कुंडली में राजयोग भी बनता है, जो जीवन में सफलता और प्रसिद्धि देता है. यदि लग्न और एकादश भाव में गुरु और चंद्रमा स्थित हों या लग्न और सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो राजा के समान सुखी जीवन मिलता है. राजयोग के संबंध में जैमिनी ज्योतिष में बताया गया है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध और बृहस्पति लग्न या एकादश भाव में स्थित हों तो राजयोग बनता है. इस योग के प्रभाव से बचपन के दिन सबसे सुखद होते हैं.

यदि अमात्यकारक से दसवें घर में शुक्र और चंद्रमा की युति हो और वे अमात्यकारक पर दृष्टि डालें तो यह एक बहुत ही शुभ राजयोग होता है. इससे विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत होता है. यदि कुंडली में चंद्रमा किसी शुभ ग्रह के साथ युति बनाता है तो राजनीतिक लोगों के साथ काम करने का अवसर मिलता है. यदि शुभ ग्रह पहले भाव, पंचम भाव, नवम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव दशम भाव केंद्र में स्थित हों तो जनहित में कार्य करने का अवसर मिलता है. यह सामाजिक रुप से प्रशंसा दिलाने वाला योग बनता है. 

यदि लग्न या अमात्यकारक राशि में शुभ ग्रह स्थित हो या उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो राजसी जीवन का सुख मिलता है. यदि आत्मकारक लग्न की नवमांश राशि, जन्म राशि और जिस राशि में बृहस्पति स्थित हो, एक ही हो तो यह भी सर्वोत्तम राजयोग माना जाता है. यदि लग्न और नवमांश राशि के नवम भाव में शुभ ग्रह अरुधा समान संख्या में स्थित हो तो व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकता है. यदि आत्मकारक या आरूढ़ लग्न से तीसरे या छठे भाव में कोई ग्रह शुभ हो तो जीवन सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होता है.

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राहु चंद्रमा का का युति फल, हेरफेर का समय

राहु के साथ चंद्रमा का प्रभाव विभिन्न फल प्रदान करने वाला होता है. इसका असर गहराई से पड़ता है. राहु एक पाप ग्रह है चंद्रमा एक शुभ ग्रह है. ग्रह के साथ का प्रभाव मिलकर कई तरह से अपना असर दिखाने वाला होता है. जन्म कुंडली में राहु-चंद्र का प्रभाव उस घर पर निर्भर करता है जिसमें वह स्थित है, अन्य ग्रहों के संबंध में उसकी स्थिति के साथ-साथ अन्य कारक भी. जब राहु चंद्रमा साथ युति में हो तो ये भ्रम और दुविधा को अधिक दे सकते हैं. चीजों को अलग से देखता है, बुनियादी वास्तविकताओं को स्वीकार करने में कठिनाई हो सकती है. 

आध्यात्मिक बातों का अध्ययन करके नई चीजें लाने में आगे रह सकते हैं. व्यक्ति कल्पनाशील, दिवास्वप्न देखना पसंद कर सकता है, उसके पास कई रचनात्मक और अद्भुत विचार भी हो सकते हैं. आध्यात्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं. अध्यात्म के विचार से आकर्षित होकर परम्पराओं में परिवर्तन के समर्थक भी अधिक दिखाई दे सकते हैं. स्वयं को एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना पसंद कर सकते हैं. इस दौरान आप ध्यान कर सकते हैं, दर्शनशास्त्र आदि पढ़ सकते हैं, लेकिन खुद को अनुशासित तरीके से संचालित करना कठिन हो सकता है.

मेष राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु-चंद्रमा की युति उपस्थिति कुछ हद तक अच्छी और कुछ हद तक खराब रहेगी. अच्छे संपर्कों से लाभ मिलेगा और ख़राब संपर्कों से गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. यह ऐसा समय होगा जब विशेषकर स्वास्थ्य को लेकर मानसिक स्थिति अधिक बेचैन रह सकती है. आपको अधिक खर्च करना पड़ सकता है. अचानक दुर्घटना होने की आशंका है. वाहन आदि के संबंध में सावधानी पूर्वक यात्रा करना अधिक अनुकूल रहेगा.

वृष राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु के साथ चंद्रमा का युति प्रभाव लाभ पर प्रभाव डालेगा. इस समय किसी भी रूप में सफलता प्राप्त हो सकती है. अन्य लोगों के दृढ़ संकल्प की परीक्षा होगी इसलिए चुनौतियों का सामना करने और नई अवधारणाओं के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार रहें. अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए यह अच्छा समय रहने वाला है और आप अपने प्रतिस्पर्धियों पर जीत हासिल करने में सक्षम रहेंगे. अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो पदोन्नति की भी संभावना अच्छी है. भावनात्मक तौर पर स्थिति कुछ कमजोर हो सकती है, इसलिए प्यार और रिश्तों के मामले में सावधानी बरतें.

वृष राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु और चंद्रमा युति प्रभाव साहस में वृद्धि करेंगे, ऐसे में आप कुछ साहसी कार्यों को करने में आगे रह सकते हैं. आप अपने छोटे भाई-बहनों, संचार, दस्तावेज़, साहस, संघर्ष और छोटी यात्राओं से ही अधिक प्रभावित दिखाई दे सकते हैं. यह समय भी सकारात्मक परिणाम लेकर आएगा. नए रास्ते खुलेंगे जो भविष्य की ओर ले जाएंगे और सफलता प्राप्त करने में मदद करेंगे. सफलता के लिए आपको अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन आपको सफलता भी मिलेगी.

मिथुन राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु चंद्र युति का प्रभाव करियर, नाम, स्थिति, शक्ति को दर्शाता है. यह गोचर सामान्य रह सकता है. राहु उन बाधाओं पर काबू पाने में आपकी मदद करेगा जो आपको अपने जीवन के करियर क्षेत्र में सफल होने से रोक रही हैं. वहीं चंद्रमा के प्रभाव से तेजी से बदलाव दिख सकता है. शांति से काम करना और ज्यादा तनाव लेने से बचना जरूरी है. वरिष्ठ अधिकारियों के साथ काम करना आसान नहीं होगा, इसलिए आप जितना धैर्य रखेंगे, आपको उतना अधिक लाभ मिलेगा.

कर्क राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु-चंद्र युति प्रभाव विदेश यात्रा के साथ-साथ धार्मिक स्थानों के दर्शन का भी अवसर मिलेगा. उच्च शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी अनुकूल समय मिल सकता है. भाग्य और आध्यात्म के लिए समय विशेष रहने वाला है और ऐसे में दूसरे धर्म के लोगों के साथ मिलकर काम करना होगा. इस गोचर के दौरान कुंडली के नौवें घर में राहु राह में ऐसी बाधाएं पैदा करता है, लेकिन चंद्रमा का प्रभाव भी सफलता के लिए बहुत मददगार हो सकता है.

सिंह राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

चंद्रमा राहु युति प्रभाव लाभ या हानि, ससुराल, विरासत, दुर्घटना जैसी चीजें दर्शाने वाला है. यह समय खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रखने का है. इस समय कोई भी निर्णय लेने से पहले निर्णयों को स्थगित कर देना ही उचित रहेगा. चोट लगने की संभावना बहुत अधिक है, इसलिए लापरवाही न बरतें, खासकर गाड़ी चलाते समय. आवश्यक होने पर ही यात्रा करें और साहसिक गतिविधियों में शामिल होने से बचें. अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें तभी आपको बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.

कन्या राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

चंद्रमा राहु के साथ युति प्रभाव मुख्य रूप से जीवन साथी, व्यापार और साझेदारी पर पड़ेगा. कुंडली के सातवें घर में उनका गोचर दांपत्य जीवन में तनाव और विवाद भी ला सकता है. आप अपने प्रियजनों के साथ तीखी बहस या मनमुटाव में पड़ सकते हैं, इसलिए इस समय सावधानी से काम करने की जरूरत होगी. साझेदारी क्षेत्र को जीवन से अत्यधिक प्रभावित होने से बचाने के लिए इस समय समझदारी अधिक उपयोगी रहेगी.

तुला राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु चंद्रमा का युति प्रभाव मुख्य रूप से नौकरी, प्रतियोगिता, शत्रु, मुकदमा, कर्ज जैसे कारकों पर पड़ेगा. राहु का प्रभाव बहुत सकारात्मक हो सकता है. शत्रुओं पर विजय पाने का समय है, लेकिन स्वास्थ्य के मामले में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत रहेगी. यदि आप इस समय मुकदमेबाजी या कानूनी मामलों से गुजर रहे हैं तो परिणाम आपके पक्ष में हो सकता है. नौकरी चाहने वालों के साथ-साथ नौकरी बदलने की तलाश कर रहे लोगों के लिए भी यह अच्छा समय हो सकता है. अवसर प्राप्ति के लिए अनुकूल समय रहेगा.

वृश्चिक राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु और चंद्रमा का युति प्रभाव स्वास्थ्य और मानसिक सोच को प्रभावित कर सकता है. किसी चीज़ की बिक्री या खरीद में शामिल होने का यह अच्छा समय नहीं है. कुछ भी नहीं. साथ ही यदि संभव हो तो नया वाहन खरीदने की योजना को स्थगित कर देना चाहिए. यह अवधि आकस्मिक व्यय का संकेत देती है. इस दौरान घर में सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने की आपकी क्षमता की परीक्षा होगी. आने वाले समय में समर्पित और सच्चे प्रयासों से अच्छे परिणाम मिलेंगे. अनावश्यक जोखिम से बचना उचित रहेगा.

धनु राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु के साथ चंद्रमा का युति गोचर प्रभाव, जिसका प्रभाव मुख्य रूप से प्रेम संबंधों, धन, शिक्षा और संतान पर पड़ेगा. इस समय यह स्थिति मासिक तौर पर एकाग्रता की कमी का कारण बन सकती है. विद्यार्थियों के लिए यह परेशानी भरा समय है इसलिए ध्यान भटकने से बचें और शांत रहकर निर्णय लें. बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है. गर्भवती महिलाओं को अपना खास ख्याल रखने की जरूरत है. किसी के साथ अनावश्यक वाद-विवाद से बचने के लिए उनसे बातचीत करते समय धैर्य की आवश्यकता होगी.

मकर राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु और चंद्रमा का युति प्रभाव इस अवधि के दौरान भाई-बहनों के साथ संबंधों में कुछ बदलाव ला सकता है. लोगों से प्रभावी ढंग से संवाद करते समय सावधानी बरतने की जरूरत होगी. अपना समय और ऊर्जा रचनात्मक प्रयासों में लगाने से आपको सफलता मिलेगी. वाहन को लेकर थोड़ी परेशानी हो सकती है, बार-बार छोटी यात्राएं भी बढ़ सकती हैं और इसके कारण बोझिलता महसूस हो सकती है.

कुंभ राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

राहु और चंद्रमा युति परिवार, बैंक बैलेंस, धन, वाणी और खान-पान पर प्रभाव डालेगा. दूसरे भाव में राहु और चंद्रमा धन पर प्रभाव डालेंगे और धन को खर्च भी कर पाएंगे. आप कठोर बोलेंगे जिससे परिवार के सदस्यों के साथ आपके संबंधों में कड़वाहट बढ़ सकती है. एक अच्छे तरीके से यह विदेश जाने वालों को अवसर देगा. खान-पान की गलत आदतें अपनाने की संभावना अधिक है, इसलिए ध्यान रखें कि यह आपके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. खान-पान में सावधानी रखें, गले में संक्रमण हो सकता है.

मीन राशि के लिए राहु-चंद्र युति 

जब राहु और चंद्रमा युति में गोचर करते हैं तो इसका प्रभाव विशेष रूप से व्यक्तित्व और सार्वजनिक स्थिति पर पड़ता है. इस समय व्यक्तित्व एवं समाज के प्रति समग्र दृष्टिकोण में परिवर्तन संबंधी प्रभाव दिखेगा. आप जीवन में वास्तव में क्या चाहते हैं, इस बारे में भ्रमित होने की संभावना भी इस दौरान अधिक रहने वाली है. कुछ मामलों में, यह दृष्टिकोण में निराशा भी बढ़ा सकता है और चिंतित भी कर सकता है. इसलिए जरूरी है कि समस्याओं पर ध्यान दें और शांत मन से अपनी मेहनत करें. ऐसा करने से परिणाम आपके पक्ष में होंगे.

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शुक्र चंद्रमा और मंगल का त्रि ग्रही योग

चंद्रमा और शुक्र दो जलीय ग्रह है लेकिन मंगल अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. चंद्र शुक्र स्त्रैण ऊर्जाएं हैं और मंगल पौरुष ऊर्जा है. यह तीनों जब एक साथ होते हैं तो असरदायक रुप से प्रभावित करते हैं. शक्तिशाली, उग्र और गर्म ग्रह मंगल का अन्य दो शांत और भावनात्मक ग्रहों के साथ जब योग होता है तो इसके दुरगामी असर भी दिखाई देते हैं. इस बात की प्रबल संभावना है कि कुंडली में इस प्रकार की युति वाले व्यक्ति का संबंध काफी जटिल होते हैं. भावनात्मक रुप से यह योग परेशानी और दुविधाओं को देने वाला होता है. 

व्यक्ति जल्दबाज़ी के निर्णय लेता है. जीवन में परेशानियों और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति को रिश्तों में परेशानी, जुनून में वृद्धि, उग्रता और अवैध संबंधों के प्रति झुकाव देखने को मिल सकता है. व्यक्ति किसी भी प्रकार से सफलता को लेकर उत्साही होता है. व्यक्ति बौद्धिक और तर्कसंगत होता है. अधिक कमाने और इच्छाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष कर सकता है. जीवन में स्थिरता का अभाव होता है. 

शुक्र चंद्र मंगल त्रि ग्रही योग का सभी भावों पर प्रभाव 

कुंडली के प्रथम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

पहले भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति के लिए अनुकूल होता है. प्रथम भाव में चंद्रमा और शुक्र की युति जोश उत्साह देने वाली और लाभ देती है. यह भाव आकर्षण, शरीर की ताकत, रंग और चेहरे का प्रतिनिधित्व करता है, अगर शुक्र-चंद्र-मंगल युति पहले घर या लग्न में युति करते हैं तो यह एक आकर्षक रूप, सुव्यवस्थित सुंदर और आकर्षक प्रभाव देता है. इस दौरान व्यक्ति को अपने प्रयासों में सफलता मिलती है. व्यक्ति का स्वस्थ तन और मन कार्य में सफलता का कारक होता है.

कुंडली के दूसरे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

दूसरे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति अच्छा वित्तीय लाभ प्रदान करती है. इस दौरान व्यक्ति अच्छी प्रभावशाली आवाज को पाता है उसके भाषण द्वारा लोग आकर्षित होते हैं. वह अपने संचार द्वारा अपना काम पूरा करने में सक्षम हो जाता है. इस युति वाले लोग हमेशा अच्छे वक्ता बनते हैं. इस योग से सुख-सुविधाओं पर खर्च अधिक होता है. व्यक्ति जल्दबाजी या हड़बड़ी में काम अधिक करता है. 

कुंडली के तीसरे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

तृतीय भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति होने से व्यक्ति को लाभ मिलता है. व्यक्ति में अपनी क्षमातों को दिखाने का अच्छा अनुभव होता है. व्यक्ति की ओर लोग जल्द आकर्षित हो जाते हैं. व्यक्ति कई तरह की चीजें सोचता है ओर उनमें शामिल रहता है. इस युति के कारण व्यक्ति को धन खर्च का अवसर मिलता है ओर धार्मिक सामाजिक गतिविधियों में उसकी भागीदारी भी अधिक रहती है. 

कुंडली के चौथे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

चतुर्थ भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति अच्छे परिणाम देती है. अनेक प्रकार के सुखों को पाने का अवसर मिलता है. स्त्री पक्ष के साथ मधुर संबंध बने रह सकते हैं. भूमि, घर और वाहन के सुखों से व्यक्ति सुखी होता है. इस योग में व्यक्ति की जीवनशैली काफी अच्छी होती है. सहनशीलता का गुण होता है, लेकिन दूसरों के कारण परेशानी भी अधिक रह सकती है. कारोबार में नाम कमाते हैं. लोगों का जनसंपर्क अधिक है और अपनी ही धुन में लगे रहने वाले होते हैं. 

कुंडली के पांचवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

पंचम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति के प्रभाव से व्यक्ति प्रेम एवं कल्पनाओं में अधिक खुद को पाता है. ध्यान में भटकाव की स्थिति भी अधिक रहती है. शिक्षा में बाधा या रिश्तों में अटकाव भी अधिक परेशान करता है. इस युति के कारण प्रेम में बाधा और करियर में बाधा भी परेशानी दे सकती है. आकर्षण और मौज मस्ती की दुनिया में अधिक लगे रह सकते हैं. कला प्रेमी तथा रचनात्मक गुणों से संपन्न होते हैं. 

कुंडली के छठे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

छठे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति के दौरान व्यक्ति अपने जीवन में चुनौतियों को लेकर अधिक परेशान होता है. उदार और परोपकारिता के गुण परेशानी दे सकते हैं. कर्ज से परेशान हो सकता है. भय की भावना अकारण उत्पन्न होती है. मानसिक शांति में परेशानी, माता को परेशानी और व्यक्ति को स्त्री सुख में कमी होती है. अपनी ही गलतियों के कारण विपरीत परिस्थिति का सामना करना पड़ता है.  

कुंडली के सातवें भाव में चंद्रमा और शुक्र की युति

सप्तम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का असर व्यक्ति को भावनात्मक रिश्तों के लिए अधिक उत्साहित करता है. जीवन में धन और वैभव के साथ-साथ किसी मधुर संबंध भी प्राप्त होते हैं. जीवन साथी का प्रेम प्राप्त होता है लेकिन क्रोध एवं व्यर्थ की इच्छाएं आपसी रिश्तों को परेशानी में डाल सकती हैं. व्यापार एवं कार्य क्षेत्र में बड़े लाभ जीवन में प्राप्त होते हैं. मन में चंचलता भी अधिक रहती है. 

कुंडली के आठवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

आठवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का योग कष्ट और चुनौतियों को अधिक देने वाला हो सकता है. व्यक्ति गुढ़ विद्या का जानकार होता है. इस दौरान व्यक्ति स्त्री के कारण कष्ट भी पा सकता है. व्यर्थ ही खर्च की अधिकता बनी रहती है. भावनाओं में बहकर कई तरह के गलत कार्यों में भी संलग्न हो सकता है. जीवन में अपनों की ओर से धोखे की स्थिति चिंता देने वाली हो सकती है. 

कुंडली के नवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

नवम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का प्रभाव शुभता प्रदान करने वाला होता है. जीवन में सौभाग्य, लाभ और श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त होती है. परिश्रम के द्वारा भाग्य का निर्माण कर पाने में सक्षम होते हैं. सामाजिक रुप से सहयोग की प्राप्ति भी होती है. अच्छी जीवन शैली को पाने में सक्षम होते हैं. पराक्रमी, मधुर व्यक्तित्व, भाग्यवान होते हैं. 

कुंडली के दसवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

दशम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का प्रभाव व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए उत्साहित करने वाला होता है. सुख, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. व्यक्ति एक से अधिक कार्यों से पैसा कमाता है. व्यापार के क्षेत्र में नाम कमाने में सफल होता है. संगीत, नृत्य और गायन जैसे कार्यों में मेहनत द्वारा प्रसिद्धि भी प्राप्त होती है. जीवन का आनंद लेता है. माता या नानी की संपत्ति भी मिल सकती है.

कुंडली के ग्यारहवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

एकादश भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति अनेक लाभ दिला सकती है. कई तरह से धन की प्राप्ति संभव हो सकती है. मित्रों का लाभ मिलता है. जीवन में लोगों से प्रेम के सहयोग की प्राप्ति होती है. आमदनी के स्रोत अच्छे प्राप्त हैं. वाहन और नौकर का सुख होता है. भवन और वस्त्र से व्यक्ति धनवान बनता है. 

कुंडली के बारहवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

कुंडली के बारहवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति व्यक्ति को यात्रा का लाभ दिलाता है. आर्थिक रुप से खर्चों की अधिकता बनी रहती है. व्यक्ति अधिक परिश्रम से बचता भी है. सुख-भोग आदि में व्यय करने के लिए आगे रह सकता है. अचानक खर्चे की स्थिति बनती है. नेत्रों में विकार अथवा निद्रा की कमी के कारण स्वास्थ्य पर असर भी पड़ सकता है. भय या चिंता का प्रभाव भी जीवन को प्रभावित करने वाला होता है. 

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जन्म कुंडली में शुभ अशुभ राज योग क्या दर्शाता है?

ज्योतिष शास्त्र कहता है कि राज योग एक ऐसा योग है जो व्यक्ति को राजा जैसा भाग्य प्रदान करता है, इस कारण से ही इसे राजयोग कहा गया है. जिसकी कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति को कई तरह के फल प्राप्त होते हैं. लेकिन इसमें कुछ बातें विशिष्ट भी हैं क्योंकि राजयोग केवल सुख ही देगा यह भी मुश्किल होगा, या फिर हम किसी शुभ रुप से ही अपने जीवन में लाभ प्राप्त कर पाएंगे यह भी इस के द्वारा परिभाषित नहीं हो सकता है. क्योंकि राजयोग अनुसार धन प्रसिद्धि का योग व्यक्ति को मिलता है ओर ऎसे में तो कई गलत कार्यों से भी व्यक्ति प्रसिद्धि ओर धन को पा लेता है तह इस स्थिति में उस राजयोग का क्या अर्थ निकाला जाए.

इस स्थिति में योग तो फलित होता है लेकिन जीवन में वह किन परिस्थितियों के द्वारा मिल रहा है इसे भी जान लेना भी आवश्यक हैं. इसी के साथ सुख की प्राप्ति तब होन अजब जीवन से हर खुशी गायब होना या कष्ट इतना मिलना की मिलने वाले सुख का अनुभव ही न हो पाना भी इसी योग में देखने को मिल सकता है. इसी कारण से कुंडली में बनने वाले योग कैसे बन रहे हैं कौन से ग्रह कहां स्थित हैं इन सभी बातों का अध्ययन करने के बाद ही इसे समझना उचित जान पड़ता है. 

व्यक्ति सुखी जीवन चाहता है लेकिन खुशियां सभी के नसीब में बराबर मात्रा में नहीं होती. किसी व्यक्ति के सुख-दुःख का अंदाजा उसकी कुंडली में ग्रहों और योगों की स्थिति से लगाया जा सकता है.राज योग शब्द के दो भाग हैं. राज और योग. ज्योतिष की शब्दावली में राज योग का अर्थ है राजा के समान सुख प्रदान करने वाला योग. राज योग कुंडली में ग्रहों की विशेष युति से बनता है. योग के फल का निर्णय करने के लिए ग्रहों, कारक, युति, दृष्टि जैसे प्रमुख कारक की शुभता और अशुभता का निरीक्षण करना आवश्यक है.

राजयोग के बनने के कारक 

ग्रहों की नैसर्गिक शुभता या अशुभता का ध्यान राजयोग के फल को जानने के लिए विशेष रुप से रखना चाहिए. राज योग के लिए केंद्र भाव में उच्च ग्रह, भाग्य रेखा में उच्च का शुक्र और नवांश और दशमांश के बीच संबंध महत्वपूर्ण होता है. नीच राशि में ग्रह का मतलब यह नहीं है कि वे अशुभ परिणाम प्रदान करेंगे क्योंकि यदि कोई ग्रह नीच राशि में स्थित है. इस घटनाक्रम का परिणाम अन्य ग्रहों के संबंधों पर भी निर्भर करेगा.

राज योग किसी कुंडली में किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता बल्कि इसके बनने के लिए सभी ग्रह समान  रूप से जिम्मेदार होते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चंद्रमा अपने विभिन्न स्थानों में योग पर भारी प्रभाव डालता है. नीच का चंद्रमा हो या फिर पाप ग्रहों से त्रस्त चंद्रमा हो यह सकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले ग्रह के लिए बाधा बन सकता है. यदि त्रिकोण या केंद्र भाव पर शुक्र या गुरु की दृष्टि हो तो राज योग अपना पूर्ण फल देता है और जातक को राजा के सुख से तुलना की जा सकती है.इस प्रकार यह देखा गया है कि विभिन्न डिग्री के परिणामों के साथ राज योग के कई योग हैं. यह मान लेना उचित नहीं है कि कुंडली में इस योग के होने मात्र से व्यक्ति राजा जैसा हो जाएगा. कई अन्य सकारात्मक और नकारात्मक कारक हैं जो व्यक्ति की जीवनशैली कैसी होगी, इसमें भूमिका निभा सकते हैं.

केन्द्र त्रिकोण से बना शुभ राजयोग 

कुंडली में विभिन्न प्रकार के राज योग बन सकते हैं जिनमें से केन्द्र और त्रिकोण में बनने वाले योग अच्छे राजयोग को दर्शाते हैं. जब किसी कुंडली में लग्न की युति केंद्र या त्रिकोण भाव के स्वामी के साथ होती है तो यह राज योग बनता है. केंद्र और त्रिकोण घरों में देवी लक्ष्मी त्रिकोण का प्रतीक हैं और भगवान विष्णु केंद्र घर के प्रतीक हैं. यह योग व्यक्ति को भाग्य का सहयोग प्रदान करता है. यह राज योग जातक को धन, यश और वैभव प्रदान करता है. इस योग में शुभ ग्रहों की भूमिका होने के कारण ही ये शुभ फल देने में सक्षम माना गया है. किंतु इसमें भी एक बात जिसमें ग्रहों की नैसर्गिकता का गुण देख लेना अच्छा होता है. इस में गुरु शुक्र चंद्रमा बुध जैसे ग्रहों की शुभता उच्च स्तर की हो तथा यह कुंडली के लिए भी शुभ ग्रह बनते हैं तो इसमें काफी सकारात्मक असर देखने को मिलते हैं. 

विपरीत राज योग

राजयोग में एक विपरित राजयोग भी विशेष है, इस योग का प्रभाव हमारे जीवन पर संघर्षों के पश्चात जब फल की प्राप्ति का अवसर मिलता है वही विपरित राजयोग का परिणाम होता है. इस योग में त्रिक भाव का स्वामी त्रिक भाव में हो या किसी भी स्थिति में योग या दृष्टि बनाने की स्थिति में हो तो विपरीत राजयोग बनता है. उदाहरण के लिए यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम में छठे में या बारहवें में हो,  इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो, छठे या बारहवें भाव में हो तो इन भाव के स्वामियों की युति या उनके बीच का संबंध इस योग को दर्शाता है. 

इसी प्रकार नीचभंग राजयोग भी इसी श्रेणी में स्थान पाता है. जिसमें ग्रह के नीच भंग होने की स्थिति ही इस योग का प्रभाव मिलता है. इन योगों के बनने से व्यक्ति को जीवन में कष्ट भी अधिक मिलते हैं उसके बाद स्थिति में अच्छे फल मिलते हैं इसी अनुसार खराब ग्रहों का योग भी इनमें हो तो व्यक्ति को कई प्रकार के गलत कार्यों से भी लाभ मिल सकते हैं. इस प्रकार के अन्य कई योग हैं जो दर्शाते हैं की एक शुभ तरह से बना राजयोग कितने बेहतर परिणाम दे सकता है तो खराब भाव एवं खराब ग्रहों से बने राजयोग जीवन में विपरित रुप से अपना फल देने वाले होते हैं 

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गुरु का अष्टकवर्ग में निर्बल होने का फलकथन

अष्टकवर्ग में त्रिकोण शोधन एक महत्वपूर्ण शोधन होता है. यह ग्रह की स्थिति एवं उसकी क्षमता को दर्शाता है. अष्टकवर्ग के सिद्धांतों का सही प्रकार से उपयोग करने के बाद कुण्डली की विवेचना करने में ओर उसके परिणाम समझने में सहायता मिलती है. इस के लिए यह देखा जाना चहिए कि किस ग्रह ने कितने बिन्दु किस भाव में दिए हैं और ग्रह स्वयं जिस राशि में स्थित है उसे उस स्थान में कितने बिन्दु मिल रहे हैं. जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपने भिन्नाष्टक में 5 या अधिक बिन्दुओ के साथ होता है और सर्वाष्टक में 28 या अधिक बिन्दुओं के साथ होता है तब वह ग्रह बहुत ही श्रेष्ठ व उत्तम परिणाम देता है. कई बार कोई ग्रह किसी भाव में 4 या इससे भी कम अंक प्राप्त करता है और उसी भाव में अपनी उच्च में स्थित होता है तब भी ज्यादा शुभ परिणाम ग्रह से नहीं मिलते हैं. कई बार ग्रह अपनी नीच अथवा शत्रु राशि में 4 या इससे से भी कम बिन्दुओ के साथ होता है तब भी जातक को अशुभ परिणाम नहीं मिलते हैं. 

अब बृहस्पति की स्थिति अगर अष्टक वर्ग में कमजोर है तो इसके कई खराब प्रभाव मिल सकते हैं. बृहस्पति की स्थिति को समझने के लिए दशा-अन्तर्दशा और कुण्डली में उस समय में चलने वाला गोचर देखा जाना चाहिए कि क्या है. अष्टकवर्ग से हम जीवन के किसी भी क्षेत्र के फलों का अध्ययन कर सकते हैं. बृहस्पति के गोचर से शुभ फलों को जाना जा सकता है. नौकरी कब लगेगी, विवाह कब होगा आदि बहुत से प्रश्नो का उत्तर अष्टकवर्ग के द्वारा जाना जा सकता है. अष्टकवर्ग में जिस ग्रह के पास जितने अधिक बिन्दु होते हैं वह उतने ही शुभ फल प्रदान करता है और परिणम उतना ही श्रेष्ठ भी होता है. माना किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में सप्तमेश के पास 5 से अधिक बिन्दु है और सप्तमेश जिस राशि में स्थित है और सप्तम भाव में 28 से अधिक बिन्दु हैं तब व्यक्ति को अपने जीवन में विवाह का सुख मिलता है. 

बृहस्पति का निर्बल होना 

बृहस्पति ग्रह 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित होने पर निर्बल माना जाता है. बृहस्पति को शुभ ग्रह होने के लिए जाना जाता है, लेकिन जब यह जन्म कुंडली में एक प्रतिकूल  स्थिति में होता है, तो बृहस्पति समस्या और आपदाओं को दिखाने वाला हो सकता था. बृहस्पति ग्रह और उसकी ऊर्जा को समझते हुए यदि हम अष्टक वर्ग में इसे देखते हैं हैं तो इस पर कई तरह से समझना बहुत आवश्यक होता है. बृहस्पति वैदिक ज्योतिष के अनुसार नैतिकता, सम्मान और ज्ञान का ग्रह है. यह ग्रह एक स्त्री के लिए उसके जीवन साथी का प्रतिनिधित्व करता है. बृहस्पति उस सद्गुण को प्रदान करता है जो व्यक्ति अपने अंदर विकसित करता है और बाहर फैलता है. प्रत्येक व्यक्ति के भीतर, बृहस्पति दुनिया में जारी होने वाली अच्छाई को जगाता है. लेकिन कमजोर बृहस्पति के प्रभाव और दुर्बल बृहस्पति के चलते कई तरह के प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं. 

अष्टकवर्ग में कमजोर बृहस्पति का विभिन्न भावों पर प्रभाव 

जब बृहस्पति प्रथम भाव में नीच का हो तो जातक में आत्मविश्वास की कमी होती है. ऐसा व्यक्ति महत्वपूर्ण निर्णय लेने में हिचकिचाहट का अनुभव करता है. कमजोर और दुर्बल बृहस्पति के प्रभाव से समझने की क्षमता को सीमित कर देता है. 

दूसरा भाव संपत्ति के मुद्दों को दूसरे घर में बृहस्पति की दुर्बलता के कारण लाया जाता है. फलस्वरूप धन की हानि हो सकती है. कड़ी मेहनत करके ही धनवान बन सकता है. पारिवारिक विवाद भी हो सकता है.

तीसरे भाव में निर्बल बृहस्पति, व्यक्ति को भाई-बहन का सुख नहीं लेने देता है या उसके भाई-बहन अच्छी स्थिति में नहीं होंगे. ऐसा व्यक्ति हमेशा मेहनत करना बंद करने की कोशिश करता है.

चौथे भाव में बृहस्पति की कमजोर और दुर्बल स्थिति अनुकूल परिणामों को उत्पन्न करने से रोकती है. इसके प्रभाव से माता का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. ऐसा व्यक्ति प्राय: हर समय बेचैनी महसूस करता है.

पंचम भाव में कमजोर बृहस्पति शिक्षा पर नकारात्मक परिणाम दे सकता है. यह संभव है कि ऐसे व्यक्ति में असाधारण बुद्धि का अभाव हो और कार्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए संघर्ष करता हो.

छठे भाव में बृहस्पति कमजोर और दुर्बल होने पर मामा पक्ष के मामा कट जाते हैं. इसके अतिरिक्त, यह शत्रु, दायित्व और बीमारी पैदा कर सकता है

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सप्तम भाव में बृहस्पति के प्रभाव से विवाह में देरी होती है. इस घर में बृहस्पति की कमजोर एवं दुर्बल स्थिति के कारण भी वैवाहिक संघर्ष हो सकता है. इसके अतिरिक्त, यह रिश्ते में अलगाव  का कारण बन सकता है.

आठवें भाव में बृहस्पति की कमजोर स्थिति ससुराल वालों के साथ परेशानी का कारण बनती है. ऐसे व्यक्ति को शारीरिक कमजोरी और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं.

नवम भाव में कमजोर बृहस्पति के कारण धार्मिक गतिविधियों में रुचि की कमी होती है; व्यक्ति किसी भी धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं होता है. ऐसे व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों का सामना भी करना पड़ सकता है.

दशम भाव में निर्बल बृहस्पति के कारण व्यवसाय में व्यक्ति को कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति बार-बार व्यवसाय बदल सकता है. ऐसे में स्थिरता एक समस्या बन जाती है.

एकादश में बृहस्पति कमजोर होकर बड़े भाई या दोस्तों के साथ अलगाव और विवाद को दिखाता है. लाभ के अभाव की स्थिति भी झेलनी पड़ सकती है. 

बारहवें घर में नीच बृहस्पति की स्थिति के कारण आय से अधिक व्यय होने लगता है. साथ ही इससे आंखों की समस्या भी होती है.

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कर्क लग्न के लिए सभी ग्रहों का दशा फल

कर्क लग्न को एक अत्यंत ही शुभ लग्न के रुप में जाना जाता है. यह चंद्रमा के स्वामित्व की राशि का लग्न होता है. इस पर चंद्रमा के गुणों के साथ राशि गुणों का भी गहरा असर देखने को मिलता है. कर्क लग्न में ग्रहों की दशाओं का प्रभाव सभी ग्रहों के भाव स्वामित्व एवं उनकी लग्न अनुसार स्थिति के अनुरुप ही उन्हें प्राप्त होता है. इस लग्न के लिए प्रत्येक ग्रह की स्थिति अलग अलग तरह से अपना असर दिखाने वाली होती है. आइये जानते हैं की कर्क लग्न में नव ग्रहों की दशाएं अपना असर किस प्रकार से डाल सकती हैं.  

कर्क लग्न में चंद्र दशा का प्रभाव

कर्क लग्न के लिए चंद्रमा लग्न यानि के प्रथम भाव का स्वामी होता है. अब इस लग्न का लग्नेश होकर चंद्रमा शुभ फल देने वाला होता है. चंद्रमा की महादशा लग्न महादशा के नाम से जानी जाती है. इस महादशा के आने के साथ ही जीवन में अनेक बदलाव भी देखने को मिलते हैं. यह दशा व्यक्ति को शांत लेकिन बेचैन बनाने वाली होती है. इस दशा के दोरान व्यक्ति को आर्थिक लाभ प्रेम एवं सुख की प्राप्ति होती है. अगर चंद्रमा की स्थिति कुंडली में शुभ हो तो इस दशा में व्यक्ति कई तरह के शुभ फलों को पाता है लेकिन यदि चंद्रमा कमजोर है पाप प्रभावित होता है तो उस स्थिति में अच्छे फल कमजोर हो जाते हैं.  इस दशा में दान और पाठ करने से इनका अशुभ फल दूर हो जाता है.  

कर्क लग्न में सूर्य दशा का प्रभाव

कर्क लग्न में सूर्य दूसरे भाव के स्वामी बनते हैं. सूर्य कर्क लग्न के साथ मित्र भाव होता है लेकिन मारक भाव का स्वामी भी बनता है. इस कारण से इसके फल भी कुछ कम ही दिखाई देते हैं. दूसरे भाव को मारक भाव कहा जाता है, इसलिए सूर्य कर्क लग्न में मारक ग्रह बन जाता है. सूर्य की महादशा जब भी इस लग्न में चलती है तो स्वभाव में क्रोध की अधिकता दे सकती है. शरिर में पित्त की अधिकता के कारण स्वास्थ्य परेशानी हो सकती है. कुछ धन का आगमन भी होता है लेकिन खर्चों की अधिकता से यह अधिक सहायक नहीं बन पाती है. कुल मिलाकर यह कम ही शुभता देने वाली दशा होती है. इस समय के दोरान व्यक्ति को सरकार की ओर से कुछ बेहतर लाभ मिल सकता है लेकिन यह तभी संभव होता है जब सूर्य की स्थिति कुछ अच्छी हो. पाप ग्रहों के प्रभाव होएन पर यह निर्बल दशा बन सकती है. 

कर्क लग्न में बुध दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बुध महादशा तीसरे और बारहवें भाव की दशा कहलाती है. इस लग्न के लिए बुध की दशा अधिक अनुकूल नहीं होती है. बुध दशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में परिश्रम की अधिकता के साथ साथ बाहरी संपर्क से लाभ को दिखाने वाला समय होता है. यह दशा लगातार होने वाली यात्राएं भी देने में सहायक बनती है. बुध का संबंध चंद्रमा के साथ शत्रुता का होता है और इस कारण भी यह दशा अधिक अनुकूलता नहीं दे पाती है. लेकिन इसके बावजूद यदि बुध कुंडली में अनुकूल स्थिति में है शुभ ग्रहों के साथ है तो उस स्थिति में यह दशा संतोषजनक फलों को देने में सक्षम होती है. किंतु यदि बुध पाप प्रभवैत होता है तो उस स्थिति के कारण गलत संगत और गलत कार्यों के चलते कई तरह से नकारात्मक फलों को दिखाने वाली होती है. 

कर्क लग्न में शुक्र दशा प्रभाव

शुक्र दशा का प्रभाव कर्क लग्न वालों के लिए मिलाजुला होता है. शुक्र एक शुभ भाव स्थान का स्वामी होकर आर्थिक लाभ घर की प्राप्ति सुख दे सकता है. शुक कर्क लग्न के लिए चौथे और एकादश भाव का स्वामी होता है. इस लग्न कुंडली में शुक्र को सम फल देने वाला ग्रह माना गया है. यह केन्द्र का स्वामी होकर शुभ हो जाता है ओर एकादश का स्वामी होकर कमजोर बन जाता है. यहां इच्छाएं अनियंत्रित दिखाई दे सकती हैं. अगर  कर्क लग्न कुंडली में शुक्र शुभ स्थिति में हो तो अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. लेकिन अगर शुभ नीचस्थ हो या पप प्रभाव में खराब भाव स्थानों में बैठा हो तब खराब फल ही देता है. अगर शुक्र की दशा खराब फल देती है तो सुख की कमी जीवन भर व्यक्ति का पिछा करने वाली होती है. 

कर्क लग्न में मंगल दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए मंगल दशा को बहुत ही शुभदायक माना गया है.  कुंडली में मंगल केन्द्र त्रिकोण का स्वामी होने के कारण ही अत्यंत शुभ होता है. कर्क लग्न के लिए मंगल को पंचम भाव का स्वामित्व मिलता है. इसके अलावा दशम भाव का स्वामीत्व प्राप्त होता है. मंगल की चंद्रमा के साथ अच्छी मित्रता भी होती है इसलिए मंगल दशा जीवन में शुभ फलों के आगमन को दर्शाने वाला समय होती है. कर्क लग्न के लिए मंगल को योग कारक ग्रह भी कहा जाता है. कुंडली में मंगल अगर शुभ स्थिति में है तो इस दशा में व्यक्ति अच्छे लाभ पाता है. अपनी क्षमताओं को बेहतर कर पाता है. सामाजिक प्रतिष्ठा का विशेष समय होता है. लेकिन य्दि मंगल किसी खराब स्थिति में हो पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो उस स्थिति में मंगल दशा का अधिक फल नहीं मिल पाता है. 

कर्क लग्न में शनि दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए शनि ग्रह को काफी खराब माना गया है. शनि इस लग्न के लिए सातवें और आठवें भाव के स्वामी होते हैं और इस कारण से शनि का प्रभाव काफी कठोर फलों को देने वाला भी होता है. शनि की दशा का प्रभाव भी इस लग्न के लिए खराब फल देने वाला होता है. कुंडली में किसी भी भाव में शनि हों वह अशुभ फल ही अधिक दिखाने वाले होते हैं. लेकिन यदि शनि छठे, आठवें और बारहवें भाव में हों तो उस स्थिति में विपरीत राजयोग बना कर कुछ सकारात्मक परिणाम देने की क्षमता भी रखते हैं. शनि दशा का समय आने पर विशेष रुप से ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. शनि की दशा में शांति पाठ एवं दान पुण्य के कार्य करते रहना ही उचित होता है. 

कर्क लग्न में गुरु दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बृहस्पति छठे और नवम भाव का स्वामी होता है. बृहस्पति चंद्रमा के साथ मित्र संबंध भी बनाता है इस कारण इस लग्न के लिए शुभ भी माना गया है. भाग्येश होकर अत्यंत शुभ होता है लेकिन साथ में छठे का स्वामी होकर कुछ खराब भी होता है. यदि कुंडली में बृहस्पति अच्छी स्थिति में हो तब इस दशा के दौरान भाग्य का सहयोग मिलता है. व्यक्ति अपने जीवन में कई तरह के सकारात्मक परिणाम दिखाता है. 

कर्क लग्न में राहु/केतु दशा का प्रभाव

कर्क लग्न के लिए राहु केतु दशा भी एक गंभीर दशा समय होता है. लग्नेश के साथ शत्रु भाव की स्थिति होने के कारण यह दशाएं कई बार अपने नकारात्मक परिणाम दिखाती हैं. लेकिन यदि यह दोनों ग्रह कीसी विशेष स्थान पर हों जहां इनका होना अनुकूल माना गया है, तब उस स्थिति में राहु केतु दशा का प्रभाव अपने प्रभाव में कुछ नरमी दिखाता है और लाभ के संकेत भी देता है. 

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