शेयर मार्केट का ज्योतिष द्वारा विश्लेषण

धनार्जन से जुड़े कई कार्य जीवन में दिखाई देते हैं लेकिन जब बात आती है अचानक से मिलने वाली सफलता तो उसमें शेयर बाजार का नाम सबसे आगे रहता है. बड़े रिस्क से जुड़ी मार्किट का विश्लेषण करें तो इसमें ज्योतिष अनुसार इसमें सफलता के कई मापदंड काम करते हैं. शेयर बाजार में निवेश धन का निर्माण करना आकर्षक अवसर हो सकता है, लेकिन इसमें जोखिम भी होता है. यदि आप खुद को अनिश्चित पाते हैं कि शेयर बाजार में निवेश करना चाहिए या नहीं, तो ज्योतिषीय जानकारी प्राप्त करना एक अतिरिक्त सहायक मार्गदर्शन के रुप में काम कर सकता है. शेयर बाजार में निवेश के मामले में ज्योतिष किस प्रकार मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है. यह ज्योतिषीय कारकों पर विचार करके तथा ग्रहों की स्थिति एवं गोचर का असर इस पर असर डालता है.   

ज्योतिष अनुसार निवेश का निर्णय 

ज्योतिष एक प्राचीन पद्धति है जो ग्रहों के प्रभावों और मानव जीवन पर उनके असर को बेहद गहरे रुप में दिखाती है. इनके अध्ययन द्वारा कई चीजों को समझ कर यदि कार्यों को किया जाए तो परिणामों की बेहतर रुप से अपेक्षा की जा सकती है.  जब आर्थिक लाभ एवं उससे संबंधित कार्यों को देखते हैं तो उसमें सही समय पर किए गए फैसले ही बेहतर परिणाम दिला सकते हैं. आर्थिक सुरक्षा का लाभ हम ज्योतिष अनुसार जान सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र वित्त सहित जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समय, संभावित अवसरों और चुनौतियों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है. जब निवेश निर्णयों की बात आती है, तो ज्योतिष ग्रहों की स्थिति, गोचर और किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली का विश्लेषण करके मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है. वित्तीय मामलों को प्रभावित करने वाले ज्योतिषीय कारकों को समझकर, आने वाले संभावित परिणामों की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं और अधिक जानकारीपूर्ण निर्णय ले सकते हैं.

शेयर मार्किट में कोई भी निवेश आसान नहीं होता है इसी जोखिम पूर्ण निवेश की उचित समझ को पाकर बेहतर निर्णय ले पाना संभव होगा.

शेयर मार्किट के लिए ज्योतिषीय कारक

शेयर मार्किट को समझने के लिए कुंडली में मौजूद कुछ मत्वपूर्ण ज्योतिषिय कारक, ग्रह एवं भाव स्थिति को समझने की जरुरत होती है. इस मामले में कुंडली के वह भाव मुख्य होते हैं जो धन की स्थिति के लिए देखे जाते हैं और इसके अलावा अचानक होने वाले परिणाम से जुड़े भाव तथा फैसला लेने की शक्ति का निर्णय लेने वाले भाव सभी मिलकर इस ओर अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं. कुंडली के मुख्य भाव एवं उनके स्वामियों का शेयर मार्किट की स्थिति को जानने की बेहतर दृष्टि देने वाला होता है. 

दूसरा भाव 

ज्योतिष के अनुसार कुंडली का दूसरा भाव धन का घर कहलाता है. वित्त और भौतिक संपत्ति को नियंत्रित करता है. दूसरे घर में ग्रहों और राशियों की स्थिति का विश्लेषण करने से वित्तीय स्थिति को समझा जा सकता है. धन संचय की क्षमता के बारे में जानकारी मिल सकती है. दूसरे घर में मजबूत और सहायक स्थिति शेयर बाजार में निवेश के लिए अनुकूल समय का संकेत दे सकती है. इस भाव की खराब स्थिति शेयर मार्किट से होने वाले घाटे का संकेत   देने वाली होती है. 

पंचम भाव

शेयर मार्किट के संदर्भ में पांचवां भाव भी बहुत महत्व रखता है. यह भाव अचानक होने वाले लाभ की प्राप्ति एवं निर्णय लेने की स्थिति पर असर डालता है. कुंडली का पंचम भाव व्यक्ति के फैसलों को बहुत अधिक प्रभावित करने वाला स्थान होता है. इस स्थान में मौजूद ग्रह एवं इस भाव का स्वामी यदि उपयुक्त रुप से अष्टम के साथ संबंध में हैं तो व्यक्ति के लिए शेयर मार्किट में लाभ पाने की अच्छी संभावनाएं भी प्राप्त होती हैं. 

एकादश भाव

यह भाव लाभ का स्थान होता है. जीवन में मिलने वाले लाभ की स्थिति कैसी होगी होगी कम या अधिक लाभ हमें किस रुप में मिलेगा इसके लिए यह भाव अपना विशेष स्थान रखता है. 

अष्टम भाव 

अष्टम भाव जीवन में होने वाली अचनक घटनाओं का केन्द्र स्थान होता है. इस भाव की भूमिका का शेयर मार्किट पर गहरा असर दिखाई देता है. शेयर मार्किट जोखिम और अप्रत्याशित परिणाम को दर्शाता है ओर इस भाव के साथ मिलकर शेयर मार्किट के जोखिम को समझ पाना संभव होता है. यदि कुण्डली में अष्टम भाव पंचम लाभ इत्यादि भावों के साथ अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति अपने जीवन में शेयर मार्किट का लाभ जरूर पाता है. यदि दशम का संबंध इस भाव से हो और राहु बुध की स्थिति भी साथ हो तो व्यक्ति शेयर मार्किट में काम करने वाला भी हो सकता है. 

ग्रहों का शेयर मार्किट पर असर 

बृहस्पति ग्रह – बृहस्पति विस्तार, अधिकता और वित्तीय विकास से जुड़ा ग्रह है. जन्म कुंडली में इसकी स्थिति और इसका वर्तमान गोचर पर प्रभाव . मिलने वाले संभावित वित्तीय अवसरों और लाभ के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है. बृहस्पति की अनुकूल दृष्टि शेयर बाजार में निवेश पर विचार करने के लिए अनुकूल समय का संकेत दे सकती है. बृहस्पति का वक्री अस्त या पाप प्रभावित होना मुश्किलों को दर्शाता है. यह निवेश में परेशानी या घाटे की स्थिति भी दे सकता है.

शनि ग्रह – शनि ग्रह की स्थिति दीर्घकालिक परिणामों, अनुशासन, जिम्मेदारी पर असर डालने वाला होता है. इसका स्थान और गोचर जोखिम सहनशीलता के स्तर और वित्तीय मामलों में स्थिरता की आवश्यकता पर असर डाल सकता है. शनि के प्रभाव का विश्लेषण करने से यह निर्धारित करने में मदद मिल सकती है कि शेयर बाजार में निवेश दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप हो सकता है या नहीं.

बुध ग्रह – बुध संचार, बुद्धि और विश्लेषणात्मक सोच का प्रतिनिधित्व करता है. इसका प्रभाव सूचित निवेश निर्णय लेने और बाजार के रुझान का आकलन करने की आपकी क्षमता का संकेत दे सकता है. बुध की मजबूत स्थिति और अनुकूल पहलू शेयर बाजार के प्रति स्वाभाविक झुकाव और अच्छे वित्तीय विकल्प चुनने की क्षमता का संकेत दे सकते हैं.

इस प्रकार ग्रहों के गोचर की स्थिति तथा ग्रहों का वक्री मार्गी होने का असर भी शेयर मार्किट को गंभीर रुप से प्रभावित करने वाला होता है. 

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हायर एजुकेशन के बारे में जानें अपनी कुंडली से

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की इच्छा किसी छात्र के मन में बहुत अधिक देखने को मिल सकती है तो कई बार हम अपने करियर को बेहतर बनाए के लिए भी उच्च शिक्षा की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. आप अपने जीवन में शिक्षा का कौन सा स्तर पाने में सफल रह सकते हैं. जीवन में उच्च शिक्षा आपको मिल सकती है या नहीं इन बातों का विश्लेष्ण ज्योतिष के द्वारा काफी बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 

उच्च शिक्षा से संबंधित भाव और ग्रह 

जन्म कुंडली में मौजूद कुछ भाव विशेष उच्च शिक्षा के लिए मुख्य रुप से देखे जाते हैं. इस में कुंडली का पांचवां भाव, चतुर्थ भाव, नौवां भाव, दसवां भाव अत्यंत जरुर होते हैं. यह भाव विशेष के अलावा शिक्षा देश में होगी या विदेश में तो उसके लिए द्वादश भाव की स्थिति पर भी ध्यान देने जरुरी होता है. उच्च शिक्षा की खोज में, छात्र अक्सर अपनी शैक्षणिक सफलता को पाने के लिए उचित मार्गदर्शन और अंतर्दृष्टि को चाहते हैं. उच्च शिक्षा को पता लगाने में ज्योतिष बेहतर सहायक रुप में उभर सकता है. 

पांचवां भाव और उच्च शिक्षा 

वैदिक ज्योतिष में, जब शिक्षा की बात आती है तो जन्म कुंडली का पंचम भाव महत्वपूर्ण होता है. इस भाव स्थान से व्यक्ति की बुद्धि, रचनात्मकता और शैक्षणिक गतिविधियों को समझ पाना आसान होता है. पंचम भाव व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताओं, सीखने की क्षमता और उच्च अध्ययन के प्रति झुकाव के बारे में उसे बेहतर समझ प्रदान करने वाला स्थान होता है. 

एक मजबूत और अच्छी तरह से स्थिति में पंचम भाव शिक्षा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण देने में सहायक बनता है. ज्ञान प्राप्त करने में गहरी रुचि का संकेत इस भाव की शुभता देने वाली होती है. इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. 

नवम भाव और उच्च शिक्षा 

नौवां घर उच्च शिक्षा, आध्यात्मिकता और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. यह विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और उच्च शिक्षा संस्थानों का प्रतीक है. नवम भाव व्यक्ति की दार्शनिक और बौद्धिक गतिविधियों में रुचि को भी दर्शाता है. सकारात्मक ग्रहों के प्रभाव के साथ एक अच्छी स्थिति वाला नवम भाव उच्च शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल और ज्ञान की प्यास का संकेत देता है. नवम भाव पर सकारात्मक ग्रहों का प्रभाव, विशेष रूप से इस भाव स्थान में बृहस्पति या बुध जैसे शुभ ग्रहों का होना. व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताओं को बढ़ा सकता है. 

 उच्च शिक्षा के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकता है. इन शुभ ग्रहों के शुभ स्थान पर होने से व्यक्तियों में तेज़ दिमाग, विश्लेषणात्मक कौशल और गहरी शिक्षा की प्यास हो सकती है.नवम भाव अकेले किसी की शैक्षिक यात्रा की संपूर्णता का निर्धारण नहीं करता है. उच्च शिक्षा में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अन्य भावों का प्रभाव भी इसमे शामिल होना चाहिए. इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. 

चतुर्थ भाव और उच्च शिक्षा 

कुंडली में चतुर्थ भाव को ज्ञान और बौद्धिक आधार का प्रतिनिधित्व माना जाता है. यह प्राथमिक शिक्षा, सीखने के माहौल और शैक्षणिक स्थिरता को इंगित करता है. एक अच्छी तरह से स्थित और सकारात्मक रूप से प्रभावित चौथा भाव एक मजबूत शैक्षिक नींव को रखने में सहायक होता है.  व्यक्ति के भीतर सीखने का हुनर पैदा करता है, उसे अच्छा माहौल दे सकता है. उच्च अध्ययन के लिए एक ठोस आधार का सुझाव दे सकता है. उदाहरण के लिए, एक अच्छी तरह से स्थित और सकारात्मक रूप से प्रभावित बुध, बुद्धि और सीखने का ग्रह, चतुर्थ भाव का स्वामी होकर यदि दशम में स्थिति हो तो वह व्यक्ति को असाधारण शैक्षणिक क्षमताओं को देने वाला तथा उच्च शिक्षा में सफलता दिलाने का संकेत दे सकता है.

इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. 

दसवां भाव और उच्च शिक्षा 

दसवां घर किसी के करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा को नियंत्रित करता है. इसका उच्च शिक्षा से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन एक मजबूत दसवां घर अध्ययन के चुने हुए क्षेत्र में सफलता का संकेत दे सकता है. दसवां भाव उच्च शिक्षा के माध्यम से कैरियर का बेहतर निर्माण करने का संयोग दिखाता है. इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. यदि दसवां भाव द्वादश भाव का संबंध पंचम भाव से बन जाए तो उच्च शिक्षा के साथ साथ करियर की स्थिति भी इसी के द्वारा मजबूती को पाने में सफल होती है.

ग्रह का असर ज्ञान अर्जित करने का समय

ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति के द्वारा शिक्षा सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उनके प्रभाव पर जोर देता है. माना जाता है कि कुछ ग्रह बौद्धिक क्षमताओं, एकाग्रता और सीखने के प्रति समग्र ग्रहणशीलता को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, जब संचार और बुद्धि से जुड़ा ग्रह बुध अच्छी दृष्टि में होता है, तो यह अध्ययन, सीखने और ज्ञान को प्राप्त करने के लिए अनुकूल समय का संकेत दे सकता है.

इसी प्रकार, बुद्धि और उच्च ज्ञान के ग्रह, बुध और बृहस्पति के बीच अनुकूल दृष्टि, एक अनुकूल शैक्षिक यात्रा का संकेत दे सकती है. दूसरी ओर, पाप ग्रह शिक्षा में बाधाएं या देरी पैदा कर सकते हैं. पांचवें घर पर अशुभ प्रभाव, जो बुद्धि और सीखने का प्रतिनिधित्व करता है, शैक्षणिक गतिविधियों में कठिनाइयां पैदा कर सकता है. शनि या राहु से जुड़े नकारात्मक प्रभाव अगर इस ओर दृष्टि देते हैं तो उच्च शिक्षा में असफलताओं या बाधाओं का कारण बन सकते हैं.

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ग्रहों की शक्ति के लिए नवांश का प्रभाव

ग्रहों की शक्ति कई तरह से हमारे समक्ष हम कई तरह के सूत्रों को उपयोग में लाते हैं. ग्रहों की शक्ति के लिए नवमांश कुंडली भी एक बेहद मजबूत सूत्र की तरह काम करता है. वैदिक ज्योतिष में अत्यधिक महत्व दिया गया है. प्रत्येक राशि 30 अंशों से बनी होती है और जब इसे 9 भागों में बांटा जाता है. प्रत्येक भाग को नवांश के रूप में जाना जाता है. मुख्य जन्म कुंडली या राशि चार्ट के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण कुंडली मानी जाती है.  नवमांश कुंडली की मदद से ग्रहों और  भावों की शक्ति को जाना जाता है. यह कुंडली व्यक्ति के संपूर्ण कार्यों पर असर डालती है और विशेष रुप से विवाह के सुख पर इसकी स्थिति अधिक प्रभावित करने वाली होती है. नवमांश का मतलब है राशि के नवम भाग से है. इसे D-9 चार्ट के नाम से भी जाना जाता है. कुंडली का 9वां घर धर्म का स्थान भी है. इस कारण से यह धर्मांश के नाम से भी जाना जाता है. इसका उपयोग हमारे जीवन विशेषकर करियर, विवाह, भाग्य के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए किया जाता है.

नवमांश चार्ट का ग्रह बल में महत्व 

नवांश  यह जन्म कुंडली हमारे जीवन के हर क्षेत्र के बारे में जानकारी देता है, यह स्वभाव , कार्य के प्रति हमारी प्रवृत्ति, करियर, विवाह, धन, भाग्य, स्वास्थ्य आदि पर अपना असर डालता है.   जीवन के सभी क्षेत्रों के बारे में जानकारी के लिए डिविजनल चार्ट बहुत सहायक होते हैं. इसी में नवांश कुंडली भी है. इसका निर्माण प्रत्येक राशि को 9 भागों में विभाजित करके किया जाता है.  नवांश लग्न 13-14 मिनट के अंतराल में बदल जाता है. नवांश का निर्माण मुख्य जन्म कुंडली से होता है. इसलिए यह वह परिणाम नहीं दे सकता जो मुख्य जन्म कुंडली में मौजूद नहीं है. जन्म कुंडली में कमजोर या अस्पष्ट संकेत होने पर यदि नवांश में उनका अच्छा प्रबल प्रभाव दिख रहा है तो चीजों के होने की संभावना होती है.   

नवांश गणना कैसे करें

हर राशि 30 डिग्री की होती है अतः नवांश की गणना के लिए 30 अंशों को 9 भागों में विभाजित करते हैं. ऎसा करने से प्रत्येक भाग 3 डिग्री 20 मिनट का हो जाता है. उदाहरण के लिए जन्म मेष लग्न में हुआ है और लग्न का अंश 10 डिग्री है. अब मेष राशि को 9 बराबर भागों में विभाजित करते हैं. तो मेष राशि का पहला 3 डिग्री 20 मिनट पहला नवांश होगा जो मेष राशि में ही होगा. 3 डिग्री 21 मिनट से 6 डिग्री 40 मिनट तक दूसरा नवांश होगा जो वृषभ है, 6 डिग्री 41 मिनट से 10 डिग्री तक तीसरा नवांश होगा जो मिथुन होगा. और इसी तरह. लग्न 10 डिग्री का मेष राशि में है, इसलिए मेष राशि की गणना मेष से होती है नवांश लग्न मिथुन होगा.

नवमांश लग्न कैसे पहचानें 

नवमांश कुंडली के प्रथम भाव को नवमांश लग्न या कारकांश लग्न के रूप में जाना जाता है. वैदिक ज्योतिष में नवांश का अर्थ है राशि चक्र का नौवां भाग. लग्न की डिग्री के अनुसार, नवांश लग्न या नवांश लग्न निर्धारित किया जाता है. नवमांश लग्न स्वामी का अर्थ है राशि स्वामी या उस राशि का स्वामी जहां नवमांश लग्न या नवमांश लग्न स्थित है. यह नवमांश कुंडली में प्रथम भाव का लग्न स्वामी या स्वामी है. उदाहरण के लिए आपका नवांश लग्न मेष है. मेष राशि का स्वामी मंगल है. अतः मंगल नवमांश लग्न स्वामी बन जाता है.

नवमांश कुंडली में ग्रहों के बल को देखने की स्थिति 

कुंडली में ग्रह की स्थिति जैसी भी हो वह नवांश कुंडली में किस भाव या किसी स्थिति में है इसके द्वारा ग्रह बल को समझ पाना और उसके फलों को जान पाना संभव होता है. यदि कोई ग्रह राशि कुंडली या मुख्य जन्म कुंडली में उच्च का है, लेकिन नवांश कुंडली में नीच का हो जाता है, तो यह अच्छा परिणाम देने में विफल रहता है. इसके विपरीत अगर नवमांश कुंडली में उच्च ग्रह स्वराशि या मित्र राशि में हों तो यह बहुत अच्छे परिणाम देता है. यहीम ग्रह के बल की उपयुक्त स्थिति का पता चल पाता है. हम कई बार ऎसे ग्रहों की दशा को पाते हैं जो कुंडली में उच्च के होते हैं लेकिन उनका असर उस रुप में नहीं मिल पाता है जैसा कि मिलना चाहिए. इस स्थिति में नवांश कुंडली में ग्रह खी स्थिति यदि नीच अवस्था की है या पाप ग्रहों से प्रभावित होती है तो ग्रह का बल कमजोर हो जाता है. 

नवंश कुंडली उच्च ग्रह और नीच ग्रह की शक्ति को समझने का एक विशेष तरीका है. जब कोई ग्रह उच्च का हो जाता है तो उसे बलवान माना जाता है. लेकिन उच्च ग्रह हमेशा अपेक्षित या वांछित परिणाम नहीं देते हैं. इसका कारण नवांश या अन्य मंडलीय कुंडली में इसकी कमज़ोरी है.

इसके अलावा उच्च ग्रह को शत्रु राशि पर नहीं होना चाहिए और नवांश कुंडली में अशुभ या शत्रु ग्रह से पीड़ित भी नहीं होना चाहिए. यदि कोई ग्रह राशि कुंडली में उच्च का है लेकिन नवांश कुंडली में नीच का हो जाता है, तो उसकी शक्ति काफी हद तक कम हो जाती है. अतः यह अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाता.

इसीलिए हम कुंडली जांचते समय नवमांश और अन्य मंडल कुंडली में ग्रहों की ताकत की जांच करते हैं. अन्यथा आपको हमेशा आश्चर्य होगा कि आपको वांछित परिणाम क्यों नहीं मिल रहे हैं. आप मुझसे कुंडली विश्लेषण भी बुक कर सकते हैं.

यदि कोई नीच ग्रह नवमांश कुंडली में उच्च का हो जाता है तो उसकी नीच स्थिति समाप्त हो जाती है. यह दुर्बलता या नीचभंग को रद्द करने के मुख्य मानदंडों में से एक है. कई अन्य सिद्धांत भी हैं जिनके द्वारा ग्रह की दुर्बलता को समाप्त किया जाता है.

ऐसी परिस्थिति में नीच का ग्रह आपको लाभकारी परिणाम देगा. उदाहरण के लिए आपका जन्म सिंह लग्न में हुआ है और शनि आपका सप्तमेश है. लेकिन शनि मेष राशि में स्थित है जहां वह नीच का हो जाता है लेकिन शनि तुला नवांश में है. इस स्थिति में शनि आपको शुभ फल देगा और आपको शनि के अशुभ फल नहीं मिल पाते हैं. इस तरह से नवांश कुंडली ग्रह के बल को समझने में बहुत सहायक बनती है. 

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कुंडली से जानिए संतान जन्म में देरी का कारण

ज्योतिष के अनुसार कई ऎसे योग हैं, जिनके अनुसार व्यक्ति की संतती के बारे में जाना जा सकता है. शादी के बाद किसी भी व्यक्ति के जीवन में वंश वृद्धि का प्रयास बना रहता है.  कई दंपतियों को समय पर अपनी संतान का सुख मिल जाता है तो कई बार कुछ कारणों से कई लोगों को इंतजार करना पड़ता है. ऎसे में संतान के होने का योग कई संघर्षों से भी होकर गुजरता है.  ऎसे में संतान का देर से होना या नहीं होना संघर्ष का कारण बनता है. इसी के चलते कुंडली में यह योग देरी से बच्चे होने का कारण बनते हैं या फिर योगों का खराब असर कुछ को निःसंतान भी बना देने वाला होता है.  ज्योतिष के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है. इनके द्वारा संतान की स्थिति को जान पाना संभव हो पाता है. 

कुंडली से जानिए संतान जन्म में देरी का कारण

संतान के जन्म में देरी के कारणों को ज्योतिष द्वारा जाना जा सकता है. किसी व्यक्ति की कुंडली से संतान न होने का कारण जान सकते हैं. संतान जन्म में देरी के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ कुंडली के कुछ विशिष्ट भावों और कुंडली के उन भावों में बैठे ग्रहों की स्थिति की समीक्षा करते हुए जाना जा सकता है. कुंडली में संतान का सुख पाने या देखने के लिए पंचम भाव मुख्य भाव होता है. इसी के साथ अन्य भावों की स्थिति भी इसी पर असर डालती है.  इन अन्य भावों में दूसरा भाव, ग्यारहवां भाव, नवम भाव को भी देखते हैं. यह भाव सहायक के रूप में काम करते हैं. इसके साथ ही कुंडली में शुक्र, सूर्य और मंगल के साथ-साथ संतान के लिए मुख्य कारक बृहस्पति की स्थिति भी देखनी होती है. 

कभी-कभी, पिछले जन्म के दोषपूर्ण कर्म और नाड़ी दोष भी बच्चे के जन्म में देरी का कारण बनते हैं. ऐसी अधिकांश चीजें तब देखी जा सकती हैं. इन के आधार पर ज्योतिष आपको बच्चे के जन्म में देरी के ऐसे सभी कारणों के बारे में बता सकता है. 

राशिफल के अनुसार बच्चे का योग 

कुंडली से बच्चे की योजना बनाने का सबसे अच्छा समय जान सकते हैं. जन्म कुंडली के अनुसार बच्चे के जन्म होने के समय की योजना कैसे बनाई जाए, इसका थोड़ा सा ज्ञान दशाओं और गोचर के माध्यम से जाना जा सकता है. मंगल, शनि, राहु और केतु जैसे ग्रह काफी खराब माने जाते हैं या कहें की पाप ग्रहों की श्रेणी में आते हैं.  ऎसे में दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें और दसवें घर में ग्रहों की स्थिति को देखा जाता और जब पाप ग्रहों का प्रभाव यहां नहीं हो तब गर्भधारण की योजना बनाने के लिए अनुकूल समय जाना जा सकता है. इसी तरह, इन संयोजनों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके संतान होने की योजना बनाने के लिए विशिष्ट दिनों और यहां तक कि विशिष्ट घंटों के बारे में ज्योतिष द्वारा जाना जा सकता है. अब यदि पाप ग्रहों का असर अधिक है तो उस स्थिति में संतान न होने की संभावना या गर्भपात जैसी स्थितियां असर डाल सकती हैं. 

ज्योतिष में संतान प्राप्ति में देरी के कारण 

संतान में देरी के मामले में ज्योतिष के अन्य सूत्र 

यदि अष्टकूट मिलान में उचित मिलान बिंदु नहीं हो पाया है और इसमें भकूट मिलान नहीं हुआ हो, तो दंपत्ति को संतान प्राप्ति में देरी का सामना करना पड़ सकता है.

यदि कुंडली में संतान स्थान अशुभ प्रभाव उत्पन्न कर रहा हो तो भी संतान प्राप्ति में देरी होती है.

कुंडली में मौजूद सर्प श्राप के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है और ऐसे में सर्प श्राप शांति पूजा करना अच्छा होता है.

पितृ श्राप या पितृ दोष के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है और ऐसे में पितृ दोष शांति पूजा जरूर होनी चाहिए. 

मातृ श्राप के कारण भी बच्चे के जन्म में देरी होती है.

कई बार कमजोर ग्रह स्थिति के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है.

यदि दंपत्ति के साथ गृह देवी या गृह देवता का आशीर्वाद न हो तो भी जीवन में ये समस्याएं और अन्य परेशानियां आती हैं.

बुरी नजर, दोष के प्रभाव के कारण स्वस्थ बच्चा होने में भी देरी का सामना करना पड़ता है.

पहला कारण जो मैंने पाया वह यह है कि जन्म कुंडली स्वयं ही बच्चे के जन्म के मामले में कमजोर है और फलदायी दशा अवधि आने तक इसमें देरी हो जाती है. दूसरा कि जन्म कुंडली बच्चे के जन्म के मामले में कमजोर होती है और फलदायी समय अवधि विवाह की प्रमुख आयु में आती है लेकिन किन्हीं कारणों से शादी में देरी होती है और फलदायी समय अवधि तब समाप्त हो चुकी है. ऎसे में एक नई संतान दशा अवधि के लिए कई वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है और ऎसे में डॉक्टरी इलाज भी काम नहीं आ पाता है. यदि पत्नी की कुंडली कष्ट रहित है तो देरी का कारण जानने के लिए पति की कुंडली देखना आवश्यक हो जाता है. पति की कुंडली में कष्ट होने से संतान उत्पन्न करने की क्षमता प्रभावित होती है. कुंडली के योग 

बच्चे के जन्म में देरी परिस्थितियों या ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकती है. कुछ मामलों में, प्रक्रिया शुरू करने में देरी के कारण बच्चे के जन्म में जटिलताएं भी हो सकती हैं. आज के समय में, करियर या यहां तक कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बहुत अधिक ध्यान देने से भी बच्चे के जन्म में उसकी प्राकृतिक प्रक्रिया में देरी या इनकार हो सकता है. ऐसे कई मामलों में, कई बार लोग  , इन बातों के चलते भी संतान के सुख को पाने में सक्षम नहीं होते हैं और उन्हें आईवीएफ जैसे तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. इस स्थिति में आईवीएफ की योजना कब बनानी चाहिए. इस बात की सफलता के लिए ज्योतिष का सहारा लिया जाना उचित होता है. 

इस प्रकार संतान के सुख की चाह में कमी किन कारणों से बन रही है पहले इस बात को समझना जरूरी होता है. इसके अलावा अन्य सूत्रों को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष अनुसार जाना जा सकता है की संतान कब होगी और कैसे होगी. 

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बुध का सिंह राशि में होना साहस और बौद्धिकता का बेहतर समय

ज्योतिष में बुध की स्थिति हमारे संचार, बुद्धि और अनुकूलन क्षमता के लिए बहुत विशेष होती है. संचार और मानसिक कौशल पर इसका बेहतरीन नियंत्रण होता है. बुध व्यक्ति के सोचने और काम करने की प्रवृत्ति को गहराई से प्रभावित करने वाला ग्रह है. इस ग्रह के द्वारा शिक्षा, वाणिज्य, गणित, वाणी, लेखन, बोलचाल, बुद्धि, ज्ञान, चिकित्सा पद्धति, छोटे भाई-बहन, संतुलित स्वभाव, मामा और कंप्यूटर कौशल को देखा जाता है. सूर्य के सबसे निकट ग्रह के रूप में, बुध को उसका साथ बहुत अधिक मिलता है. जन्म कुंडली में बुध की स्थिति विचारधारा, बोलने और सीखने के पैटर्न पर असर डालने वाली होती है. 

सिंह राशि एक राजसत्ता का प्रतीक है यह निडर राशि है. इसमें अग्नि तत्व की प्रमुखता होती है. सिंह राशि के लोगों में लीडरशीप का भाव भी बहुत अधिक होता है. इनका चुंबकीय व्यकित्व, जीवंत दर्शन, आत्मविश्वास और निष्ठा सभी को प्रभावित कर लेने वाली होती है. बुध जब इस राशि में जाता है तो इन विशिष्ट विशेषताएं से भी जुड़ता है और अद्वितीय गुणों तथा प्रभावों को दिखाने का काम करता है. सिंह राशि की ऊर्जा के साथ बुध के प्रभाव का योग एक अच्छे बदलाव को दिखाने का काम करता है. इस अवधि के दौरान परिवर्तनकारी अनुभव और अंतर्दृष्टि दे सकता है.  

सिंह राशि में बुध के होने का मेष राशि पर असर 

बुध के सिंह राशि में गोचर के प्रभाव से मेष राशि के जातकों पर उनके बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. संतान को लेकर प्राथमिकता दे सकते हैं. बात प्रेम रिश्तों कि तो चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. अविवाहित लोग अपने प्यार की तलाश कर सकते हैं. अपनी बोलचाल द्वारा विद्वानों को अपने ओर कर सकते हैं. नई सोस्ती विकसित हो सकती है. मौजूदा दोस्तों के साथ यात्राएं भी हो सकती हैं. बुद्धिमत्ता बेहतर होगी जो उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्रदान करने वाली होगी. नया शौक विकसित होगा. प्रेम संबंधों में भावनात्मक उथल-पुथल और चिंताओं का अनुभव कर सकते हैं. इस समय शेयर मार्किट या सट्टा उद्यमों से लाभ मिल सकता है. नए विषयों को लेकर उत्सुकता रहने वाली है. 

सिंह राशि में बुध के होने का वृषभ राशि पर असर 

वृषभ राशि के लोगों को इस समय कुछ मामलों में सहयोग मिल सकता है. उनकी बातों को सम्मान मिल सकता है. पारिवारिक रिश्तों पर सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद कर सकते हैं. माता-पिता से सुख मिलने का संकेत दिखाई देगा. विरासत और संपत्ति के मामलों में कुछ चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं. संतान के मामले में उन्हें बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. वित्तीय संसाधन सहायक होंगे. कृषि भूमि या रियल एस्टेट में निवेश के प्रति रुचि रख सकते हैं. प्रेम संबंध विकसित होंगे रिश्तों में कुछ धीमा लेकिन सुधार हो सकता है. संगीत और नृत्य जैसी ललित कलाओं से जुड़े लोगों के लिए समय बेहतर होगा. विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना होगा. दोस्तों के साथ विवाद से बचना चाहिए. कुछ चीजों को लेकर बदलाव की इच्छा हो सकती है, 

सिंह राशि में बुध के होने का मिथुन राशि पर असर 

मिथुन राशि के लोग बुध के सिंह राशि में होने का अच्छा लाभ पा सकते हैं. इस समय प्रसिद्धि के मौके मिल सकते हैं. इस समय ख़ुशीयों के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है,  अपने प्रयासों से योजनाओं को सफल बनाने में आगे रहने वाले हैं. कार्य-संबंधी योजनाओं की अधिकता के कारण व्यस्त महसूस करते हैं.इस समय साहस बढ़ेगा और उन्हें अधीनस्थों, सहकर्मियों और मित्रों से समर्थन प्राप्त होगा. अपनी व्यावसायिकता और विशेषज्ञता के साथ, मिथुन राशि के जातक जल्दी ही नई अवधारणाओं को समझ लेने में कुशल रहेंगे. इस समय अधिक अध्ययनशील और मानसिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं. नई मित्रता का समय होगा और भाई-बहनों से समर्थन प्राप्त होगा. यह अवधि संपत्ति खरीदने के लिए भी अच्छे अवसर दे सकती है. 

सिंह राशि में बुध के होने का कर्क राशि पर असर 

सिंह राशि में बुध का गोचर कर्क राशि के लोगों के लिए एक अनुकूल समय लेकर आता है. भाग्य उनका साथ दे सकता है. धन आगमन में वृद्धि होती है. नई चीजों को सीख के अवसर होंगे, जो लंबे समय में फायदेमंद सिद्ध होंगी. इस दौरान कर्क राशि के लोगों के ज्ञान में वृद्धि होगी. संतुष्टि और आराम की भावना का अनुभव अधिक रहने वाला है. सक्रिय रूप से शुभ कार्यों में संलग्न होंगे. आंतरिक सुंदरता का विकास कर सकते हैं.  विद्यार्थियों में अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान बढ़ेगा. वाक्पटु वाणी का गुण प्रयासों के लिए अच्छा होगा. उच्च अध्ययन के लिए नए रास्ते खुलेंगे. कुछ लम्बी दूरी की यात्रा करने का भी अवसर होगा. व्यापार, प्रचार और विज्ञान से संबंधित व्यावसायिक कामों में अच्छे लाभ के मौके मिल सकते हैं. इस दौरान अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है.

सिंह राशि में बुध के होने का सिंह राशि पर असर 

जब बुध सिंह राशि में होता है, तो यह समय शांति, उदारता, धैर्य और बुद्धिमत्ता का अनुभव हो सकता है. कुछ मामलों में अहंकार का संकेत भी व्यवहार में झलक सकता है. धार्मिक मामलों के प्रति मजबूत झुकाव दिखाई दे सकता है. व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में प्रभाव मिल सकता है. करियर में प्रगति का संकेत मिलता है, और जो लोग विवाह की इच्छा रखते हैं वे सकारात्मक परिणाम की उम्मीद कर सकते हैं. नई चीज़ें सीखने और अपने लक्ष्य हासिल करने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है लेकिन प्रगति के अवसर भी प्राप्त होंगे. आत्मसंतुष्ट होने और शॉर्टकट पर निर्भर होने से बचना इस समय जरुरी होगा. सिंह राशि के लोग खुद को सीखने और प्रगति के चरण में पाएंगे. कला और शिल्प से संबंधित व्यवसाय अच्छा कर सकते हैं. 

सिंह राशि में बुध के होने का कन्या राशि पर असर 

गोचर के दौरान जब बुध सिंह राशि में प्रवेश करेगा तो कन्या राशि के जातकों को कुछ वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. भौतिक सुखों की इच्छा महसूस हो सकती है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि इनकी कमी तनाव बढ़ा सकती है. रिश्तेदारों और करीबी सामाजिक दायरे के हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है. छात्रों को अपनी शिक्षा में धीमी प्रगति का अनुभव हो सकता है. प्रबंधन के तरीके ढूंढने से काम बनेगा. ख़र्चे सामान्य से अधिक हो सकते हैं, और जीवन के विभिन्न पहलुओं में तनाव की प्रवृत्ति अधिक स्पष्ट हो सकती है.जानकारी के बावजूद निर्णय लेने की क्षमता में बाधा आ सकती है. सीखने के पर्याप्त अवसर होंगे लेकिन स्थिति कुछ कमजोर भी होगी. जोखिम से भरी गतिविधियों में शामिल होने से बचने की सलाह दी जाती है. 

सिंह राशि में बुध के होने का तुला राशि पर असर 

तुला राशि के लोगों का ध्यान आर्थिक रुप से अधिक सहयोगात्मक हो सकता है.  ललित कलाओं में रुचि बढ़ेगी. छात्र शिक्षा और उच्च अध्ययन में गहरी रुचि दिखा सकते हैं. धन संचय करने का अवसर होगा. महत्वपूर्ण कठिनाइयों का सामना किए बिना विभिन्न स्थितियों का कुशलतापूर्वक प्रबंधन कर सकते हैं. कई क्षेत्रों में प्रगति के अवसर भी प्राप्त हो सकते हैं.  प्रेम संबंधों के मामलों के लिए समय विशेष होगा. नई चीजों की खरीदारी के अवसर मिलेंगे. धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने का समय होगा. कर्ज धीरे-धीरे कम होगा और दोस्तों पर सकारात्मक रुप से साथ मिलेगा.  दूसरों के साथ अच्छी तरह तालमेल बिठा पाएंगे. आय के कई स्रोत खुलेंगे, जिससे उन्हें अपने लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है. 

सिंह राशि में बुध के होने का वृश्चिक राशि पर असर 

बुध के सिंह राशि में होने से वृश्चिक राशि के लिए अवसरों का अच्छा समय होगा. बौद्धिकता का बेहतर अनुभव होगा जो सर्वांगीण विकास और कार्यों को सफल बनाने में योगदान देगी. सीखने के अवसर मिलेंगे. आभूषण और संपत्ति की प्राप्ति का अच्छा संकेत दिखाई देता है. नया आकर्षण सामने होगा. आय के अनेक स्रोत सामने आएंगे. व्यक्ति धर्मार्थ कार्यों में संलग्न रह सकते हैं. अपने सामाजिक क्षेत्र में काम के लिए आगे रहेंगे. धार्मिक अनुष्ठानों में सक्रिय रूप से भाग लेंगे. शिक्षण, कला, शिल्प, संगीत, कानून, लेखन, कविता, प्रौद्योगिकी या राजनीति से जुड़े लोगों को प्रगति और सफलता का अनुभव होंगे. एक ईमानदार दृष्टिकोण उन्हें अपने लक्ष्य और उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा.

सिंह राशि में बुध के होने का धनु राशि पर असर 

बुध के सिंह राशि में होने पर धनु राशि के जातकों को संतान सुख और धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने की खुशी मिल सकती है. परिवार के सदस्य उनकी उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर पाएंगे. व्यक्ति उदार और विनम्र स्वभाव से युक्त होगा. विज्ञान और संगीत जैसे रचनात्मक कार्यों में शामिल हो सकते हैं. गणित, कानूनी मामलों और प्रौद्योगिकी में प्रगति की उम्मीद है. इनके पिता के स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है. प्रशंसनीय कार्य कर पाएंगे. उत्साही होंगे और धनवान बनेंगे. ख़ुद को कई ज़िम्मेदारियों में शामिल पाएंगे.  काम से पहचान और लाभ मिल पाएगा. बातचीत की कला में निखार आएगा. नये रिश्ते विकसित होंगे. कुछ व्यक्ति पारंपरिक मान्यताओं और मूल्यों को चुनौती दे सकते हैं.

सिंह राशि में बुध के होने का मकर राशि पर असर 

बुध प्रभाव से मकर राशि के लोगों को अच्छा नाम, प्रसिद्धि और संपत्ति का लाभ हो सकता है. कई कार्यों में नेतृत्व की भूमिका भी हो सकते हैं. कुछ व्यक्तियों को अवैध संबंधों के कारण हानि उठानी पड़ सकती है. वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. सावधानी बरतना और अवैध गतिविधियों से बचना इस समय महत्वपूर्ण है. मानसिक रुप से तनाव का अनुभव अधिक कर सकते हैम इसलिए सेहत का ख्याल रखना होगा. ज़्यादा सोचने से बचना ही उचित होगा. कुछ कार्यों की  प्रगति में बाधा हो सकती है. उच्च अधिकारी सहयोग देंगे. व्यापार के माध्यम से धन में वृद्धि होगी. इस समय अपने बोलने के लहजे पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होगी. भाई-बहनों के बीच मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं. अनुबंधों पर हस्ताक्षर करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. कफ या वात संबंधी विकारों का अनुभव हो सकता है, जिसके लिए उचित स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होगी. प्रेम संबंधों में रुकावट आ सकती है.

सिंह राशि में बुध के होने का कुंभ राशि पर असर 

कुंभ राशि के लोग पर बुध का गोचर आत्मविश्वास का संचार करने वाला होगा. जीवन साथी के साथ संबंधों को लेकर नई परिभाषाएं रचते दिखाई दे सकते हैं. अपने आपसी सौहार्दपूर्ण रिश्ते का आनंद ले पाएंगे. आर्थिक दृष्टि से धन संचय में वृद्धि होगी. अपने जीवनसाथी के साथ बेहतर स्थिति में रहेंगे. अपने साथी के वित्तीय मामलों को लेकर चिंता हो सकती है. विभिन्न कलाओं में अपने कौशल को बढ़ा पाएंगे. अपने जीवनसाथी के लाभ का अनुभव कर पाएंगे. इस समय अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. धन और करियर में भी प्रगति होगी. नए रिश्ते भी विकसित होंगे. 

सिंह राशि में बुध के होने का मीन राशि पर असर 

बुध के सिंह राशि में होने का प्रभाव मीन राशि वालों को अपने तर्कशील स्वभाव में वृद्धि का अनुभव देने वाला होगा. दूसरों के साथ मतभेद हो सकते हैं इसलिए शांत रहकर काम करने की इस समय विवादों में शामिल होने से बचना ही सही निर्णय होगा. मानसिक शांति बनाए रखने की जरूरत है. साथ ही उन्हें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत होगी. रिश्तेदारों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखने की उम्मीद कर सकते हैं. गुप्त शत्रु होने की संभावना से सावधान रहना चाहिए. छात्रों को बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है और धीमी शैक्षिक प्रगति का सामना करना पड़ सकता है, जिससे मानसिक तनाव हो सकता है. जो लोग कानूनी क्षेत्र में अपना करियर बना रहे हैं, वे सकारात्मक प्रगति की उम्मीद कर सकते हैं. 

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मकर लग्न के लिए सभी ग्रहों का प्रभाव

मकर लग्न शनि के स्वामित्व का लग्न है, इस लग्न के प्रभाव में जब जो ग्रह आता है वह अपने भाव स्वामित्व के आधार पर असर दिखाता है.  इस लग्न के लिए शुक्र पंचम और दशम का स्वामी है इस कारण से ण शुक्र मकर लग्न के लिए राजयोग कारक बन जाता है. बुध इस लग्न के लिए छठे और नौवें भाव पर अधिकार रखता है बुध मिलेहुले परिणाम देता है. मंगल मकर लग्न के लिए  चतुर्थ और एकादश का स्वामी होने के कारण कमजोर होता है. मंगल चतुर्थ भाव में मूलत्रिकोण बनता है लेकिन ग्यारहवां भाव अच्छा नहीं है.

मंगल और शनि शत्रु भी हैं. बृहस्पति इस लग्न के लिए तीसरे और बारहवें भाव का स्वामी होने के कारण नकारात्मक परिणाम देता है. चंद्रमा मकर लग्न वालों के लिए मारक बन सकता है. सूर्य आठवें भाव का स्वामी है, यह तटस्थ परिणाम देता है. शनि शनि पहले और दूसरे घर पर शासन करता है. दूसरे घर में शनि का मूलत्रिकोण है, यह एक मारक घर है इसलिए शनि तटस्थ फल देता है. राहु और केतु अपनी स्थिति के अनुसार परिणाम देते हैं.

मकर लग्न में चन्द्रमा का प्रभाव

मकर लग्न की कुंडली में चंद्रमा सप्तम भाव का स्वामी होता है. यह कुंडली में धन, स्वास्थ्य, विवाह, साझेदारी, झगड़ा, विघ्न, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्नि आदि का प्रतिनिधि होता है. इसकी कुंडली में लग्न होने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फल प्राप्त होते हैं. अपनी दशा अवधि के दौरान चंद्रमा का मजबूत और लाभकारी प्रभाव देगा लेकिन चन्द्रमा कमजोर एवं अशुभ प्रभाव में होने से अशुभ फल देने वाला होगा. 

मकर लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

मकर लग्न के लिए सूर्य अष्टम भाव का स्वामी होता है. यह इस लग्न के लिए खराब परिणाम अधिक दे सकता है. यह व्यक्ति के जीवन में अप्रत्याशित कार्य, रोग, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्री यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुप्त स्थान, जेल यात्रा आदि को दर्शाता है.  यह जादू-टोना, जीवन के भीषण दुःख आदि विषयों का प्रतिनिधि भी बनता है. जन्म कुंडली या अपने दशा काल में सूर्य के प्रबल प्रभाव के कारण व्यक्ति को कई तरह के उतार-चढ़ाव दिखा सकता है. कमजोर और अशुभ प्रभाव होने पर सूर्य अशुभ फल देता है.

मकर लग्न में मंगल का प्रभाव

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है. मंगल इस लग्न वालों के लिए माता, भूमि भवन, वाहन, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम, प्यार एकादशेश होने के कारण संबंध, प्रेम विवाह से संबंधित विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. इसके साथ ही यह यह लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतानहीनता, पुत्री संतान, ताऊ, चाचा, भाई, बड़े भाई-बहन, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी जैसे विषयों का प्रतिनिधि भी करता है. जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में मंगल के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से इन चीजों के परिणाम अनुकूल रुप से मिल सकते हैं. लेकिन कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

मकर लग्न में शुक्र का प्रभाव

मकर लग्न में शुक्र पंचम और दशम भाव का स्वामी होता है. पंचमेश होने से व्यक्ति को बुद्धि, स्मृति, ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंधन प्रणाली का महत्व अधिक दिखाई देता है. नौकरी का त्याग, धन प्राप्ति के उपाय, अनायास धन प्राप्ति, जुआ, लॉटरी मिलती है. अनुष्ठान, संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत, स्वाभिमान, अहंकार आदि विषयों पर इसका विशेष असर दिखाई देता है. व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र का प्रभाव अपने असर दिखाता है. दशा काल में शुक्र के प्रबल एवं शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं.  अगर शुक्र कमजोर एवं अशुभ प्रभाव में रहता है तो दशा में अशुभ फल देता है. मकर लग्न में शुक्र का केंद्र व त्रिकोण का स्वामित्व होना अत्यंत लाभकारी होता है.

मकर लग्न में राहु-केतु का प्रभाव

मकर लग्न में राहु केतु जिस स्थान भाव का स्वामी होता है उसी प्रकार अपने प्रभाव देता है. कुण्डली में राहु या दशा काल के प्रबल एवं शुभ प्रभाव के कारण विशेष शुभ फल प्राप्त होते हैं. जबकि राहु कमजोर है और अशुभ प्रभाव में अशुभ परिणाम देता है. इसी प्रकार केतु का असर भी इसी तरह के फल देने वाला होता है. 

मकर लग्न में बृहस्पति का प्रभाव

मकर लग्न के लिए बृहस्पति बारहवें भाव का स्वामी होता है, इस कारण बृहस्पति खर्च को, नींद, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, बेहोशी, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग, ऐश्वर्य, वासनापूर्ण चाल, अपव्यय, व्यर्थ यात्रा विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. इसी के साथ बृहस्पति तीसरे भाव का स्वामी होकर साहस और कार्य कुशलता दिखाता है. व्यक्ति की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में बृहस्पति के शुभ प्रभाव में रहने से उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्रदान कर सकता है लेकिन कमजोर और अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

मकर लग्न में बुध का प्रभाव

मकर लग्न की कुंडली के अनुसार बुध छठे भाव का स्वामी होकर रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, संदेह, पीड़ा, मातृ, मिथ्या भाषण, व्यसन, का कारण बन सकता है. व्यक्ति की जन्म कुण्डली या अपने दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से व्यक्ति को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं. कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से बुध का प्रभाव मिशिर्त फल देता है. 

मकर लग्न में शनि का प्रभाव

मकर लग्न में शनि प्रथम और द्वितीय भाव का स्वामी होता है. यह लग्न शरीर, आयु, सुख, दुख, विवेक, मन, स्वभाव, आकार तथा संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधि होता है तथा कुल, आंख, नाक, गला, कान आदि का द्वितीयेश होकर स्वामी होता है. व्यक्ति जन्म कुंडली या उसके दशा काल में शनि के प्रबल एवं शुभ प्रभाव के कारण जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं. उपरोक्त विषयों में फल देता है जबकि कमजोर एवं अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फल प्राप्त होता है.

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कुंडली में उच्च और नीच ग्रह कैसे काम करते हैं

वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति बहुत असर दिखाती है. सभी ग्रह कुंडली में अपनी अपनी स्थिति के अनुसार परिणाम दिखाते हैं. कुछ ग्रह कुंडली में शुभ ग्रह दिखाते हैं तो कुछ ग्रह खराब फल देते हैं. वहीं कुछ ग्रह अपनी अवस्था के अनुसार उच्च या नीच का प्रभाव दिखाते हैं. ग्रह की अवस्था यदि शुभ होकर नीच हो तो उसके फलों में कमी मिलती है. इसके विपरित पाप ग्रह अगर उच्च का हो तो उसका असर अलग रुप में देखने को मिलता है. 

जन्म कुंडली में किसी ग्रह के प्रभाव और क्षमता को निर्धारित करने में मदद करती हैं. प्रत्येक ग्रह एक राशि में उच्च का और दूसरे में नीच का होता है, जो व्यक्ति के जीवन पर उसकी अभिव्यक्ति और प्रभाव को प्रभावित करता है.

सूर्य का प्रभाव 

सूर्य मेष राशि में उच्च का होता है, जो उसके अग्नि युक्त आधिकारिक गुणों को बढ़ाता है. सूर्य की स्थिति सबसे आगे रह कर काम करने की प्रवृत्ति देने वाला है. इसे ग्रह चक्र में राजा कहा जाता है. उच्च सूर्य वाले व्यक्ति में मजबूत नेतृत्व कौशल, जीवन शक्ति और आत्मविश्वासी व्यक्तित्व होने की संभावना होती है. सूर्य की प्रबलता के द्वारा कार्यों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें दृढ़ता और आत्म-अभिव्यक्ति की आवश्यकता होती है.

सूर्य के उच्च होने का एक प्रमुख परिणाम आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता में वृद्धि है. व्यक्तियों को आत्म-आश्वासन में वृद्धि का अनुभव हो सकता है और परिस्थितियों पर नियंत्रण रखना आसान हो सकता है. दूसरों द्वारा उनका सम्मान और प्रशंसा किए जाने की संभावना अच्छी होती है. यह जीवन शक्ति को बढ़ा सकता है. लेकिन जब सूर्य तुला राशि में नीच का होता है, तो उसकी आत्म-अभिव्यक्ति और व्यक्तित्व के गुणों को चुनौती मिल सकती है. 

चंद्रमा का प्रभाव 

चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च का होता है, जो उसके शुभ एवं भावनात्मक गुणों को बढ़ाता है. उच्च चंद्रमा वाले व्यक्ति अक्सर भावनात्मक रूप से स्थिर दिखाई देते हैं. इनके भीतर देखभाल करने और सुरक्षा की मजबूत भावना भी रहती है. आपसी सामंजस्यपूर्ण वातावरण बनाने और भावनात्मक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए आगे रहते हैं.

इसके विपरीत, चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीच का होता है.इस दुर्बलता के परिणामस्वरूप भावनात्मक अस्थिरता, बढ़ी हुई संवेदनशीलता और ईर्ष्या या स्वामित्व की प्रवृत्ति अधिक असर डाल सकती है. चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च का होता है, जो इसके सकारात्मक गुणों को बढ़ाता है और व्यक्ति के भावनात्मक रूप से ग्रहणशील स्वभाव को बढ़ाता है. जब चंद्रमा उच्च राशि में होता है, तो संवेदनशीलता, भावनात्मक स्थिरता और दूसरों के साथ गहरा जुड़ाव का अनुभव हो सकता है. नीच के चंद्रमा में असुरक्षा की भावना अधिक देखने को मिल सकती है. 

मंगल का प्रभाव 

मकर राशि में मंगल उच्च का होता है, मंगल की उच्चता का प्रभाव व्यक्ति को मुखर, महत्वाकांक्षी और अनुशासित स्वभाव वाला बनाता है. उच्च मंगल वाले व्यक्ति प्रेरित, केंद्रित और दृढ़ निश्चय से भरपूर दिखाई देते हैं. काम करने और बाधाओं पर काबू पाने में निपुण होते हैं. अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की उत्कृष्टता भी उच्च के मंगल के कारण देखने को मिल सकती है.

कर्क राशि में मंगल अवस्था का होता है, मंगल का कमजोर होना दिशा की कमी को प्रदर्शित कर सकता है. यह निष्क्रिय बनाता है आक्रामकता तथा अपनी ऊर्जा को प्रभावी ढंग से प्रसारित करने में कठिनाई देता है. मकर राशि में उच्च के मंगल वाले व्यक्ति अक्सर असाधारण नेतृत्व गुण, रणनीतिक सोच और बाधाओं को दूर करने की क्षमता प्रदर्शित करते हैं. इसके विपरीत, मंगल कर्क राशि में नीच का होने पर साहस की कमी को दिखा सकता है. 

बुध का प्रभाव 

बुध कन्या राशि में उच्च का होता है, बुध के मजबूत होने के कारण विश्लेषणात्मक गुण मौजूद होते हैं, संचार और बौद्धिक क्षमताओं को मजबूत बनाता है. उच्च बुध वाले व्यक्ति तीव्र बुद्धि, उत्कृष्ट समस्या के समाधान का कौशल रखने वाले होते हैं. विचारों को व्यक्त करने में स्पष्ट होते हैं. उन क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें विस्तार, अनुसंधान और संचार की आवश्यकता होती है.

इसके विपरीत, बुध मीन राशि में नीच का होता है और इसके कमजोर होने के कारण भ्रम, फोकस की कमी और संचार में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. जब बुध कन्या राशि में उच्च का होता है, तो बौद्धिक क्षमता, कौशल और वाणी का अच्छा लाभ मिलता है. व्यक्ति को उत्कृष्ट संगठनात्मक कौशल और प्रभावी संचार के साथ सशक्त बनाता है, उसे लेखन, अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त होती है. बुध का नीच होना स्पष्ट सोच, निर्णय लेने को कमजोर करने वाला बना सकता है.

शुक्र का प्रभाव 

शुक्र मीन राशि में उच्च का होता है, शुक्र के प्रबल होने से कलात्मक, रोमांटिक और सामंजस्यपूर्ण विशेषताओं को बढ़ावा मिलता है. उच्च शुक्र वाले व्यक्ति आमतौर पर आकर्षक, रचनात्मक और सौंदर्य बोध के जानकार होते हैं. उनके पास एक चुंबकीय व्यक्तित्व होता है. अपने परिवेश में सुंदरता और सद्भाव पैदा करने की क्षमता इनमें बेहतरीन होती है.

कन्या राशि में नीच होने पर, शुक्र को आत्मसम्मान, रिश्तों का अत्यधिक लगाव और स्नेह पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. मीन राशि में, शुक्र अपनी कलात्मक और प्रेमपूर्ण ऊर्जा भर देने का काम करता है, भावनात्मक संबंध और आध्यात्मिक गहराई को बढ़ावा भी मिलता है. कन्या राशि का विश्लेषणात्मक और व्यावहारिक स्वभाव शुक्र की सुख और भोग की इच्छा को चुनौती दे सकता है. यह स्थान शुक्र के गुणों की अभिव्यक्ति को कमजोर कर सकता है, जिससे रिश्ते में चुनौतियां पैदा हो सकती हैं

शनि ग्रह का प्रभाव 

शनि तुला राशि में उच्च का होता है. शनि के प्रबल होने पर अनुशासित, संगठित और व्यावहारिक स्वभाव को मजबती प्राप्त होती है. उच्च शनि वाले व्यक्तियों में मजबूत कार्य नैतिकता, दृढ़ता और जिम्मेदारी की भावना होती है. व्यक्ति ऐसे करियर में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं जिनमें दीर्घकालिक योजना, संरचना और विस्तार पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है.

मेष राशि में नीच राशि में होने पर, शनि का प्रभाव आत्म-संदेह, आत्मविश्वास की कमी और वैराग्य की प्रवृत्ति के रूप में प्रकट हो सकता है. जब शनि तुला राशि में होता है, तो उसकी ऊर्जा अनुशासित और संतुलित मानी जाती है. इस स्थिति वाले व्यक्ति निष्पक्षता, कूटनीति और न्याय की मजबूत भावना जैसे गुणों का प्रदर्शन कर सकते हैं. शनि मेष राशि में नीच का है, जो कमज़ोर स्थिति का संकेत देता है. 

बृहस्पति का प्रभाव 

बृहस्पति कर्क राशि में उच्च का होता है, जिसके चलते विस्तार, परोपकारी और दार्शनिक गुणों को बढ़ावा मिलता है. उच्च बृहस्पति का प्रभाव व्यक्ति को अक्सर उदार, आशावादी और दृढ़ विश्वास वाला बना सकता है.

ज्ञान, आध्यात्मिकता और सामाजिक सद्भाव के प्रति उनका स्वाभाविक झुकाव होता है. दूसरी ओर, बृहस्पति मकर राशि में नीच का होता है. इस दुर्बलता के परिणामस्वरूप आत्मविश्वास की कमी, भौतिकवादी गतिविधियों पर अत्यधिक जोर और निराशावाद की प्रवृत्ति हो सकती है. 

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ग्रहों की शांति के लिए दान करने से जुड़े नियम

दान करने के लिए प्रत्येक ग्रह से जुड़ी चीजों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है. यदि ग्रह की शांति के लिए दान करना शुभ है तो कई बार दान की स्थिति नकारात्मक फलों को भी देने वाली हो जाती है. इसके लिए जरूरी है की समझा जाए कि दान कब करना है और किस ग्रह के लिए दान करना जरूरी होगा. ग्रह विशेष से संबंधित वस्तुओं का दान करने से कुंडली में अशुभ ग्रहों के कारण होने वाली जीवन की परेशानियों और कष्टों से राहत मिल सकती है. ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जन्म के साथ ही उसके जीवन पर प्रभाव डालना शुरू कर देता है. ऎसे में कुछ ग्रह आपकी कुंडली में अच्छे हो सकते हैं तो कुछ खराब हो सकते हैं. 

कुंडली में ग्रह की स्थिति और दान प्रभाव

ग्रह स्थिति के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के योग बनते हैं. कुंडली में प्रत्येक ग्रह का अपना-अपना महत्व होता है. ग्रह जीवन को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते हैं. कमजोर ग्रह अच्छे परिणाम देने में सक्षम नहीं होता है, जबकि मजबूत ग्रह व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है. पर कमजोर और मजबूत ग्रह की स्थिति को भी देख लेने की जरूरत होती है. पता चले की मजबूत ग्रह कुंडली में मारक बन रहा है तो ऎसी स्थिति में दान कैसे किया जाए इस बात को जान लेना भी आवश्यक होता है. 

उचित रुप से ग्रह शांति के लिए किया गया दान सफलता और उपलब्धियां प्रदान करने में सहायक बनता है. इसलिए जरूरी है कि किसी भी तरह के उपाय एवं दान कार्य को करने से पूर्व थोड़ा सजग होकर इसे समझ लिया जाए. अपनी कुंडली को जान कर आप उचित रुप से अपने ग्रहों की शांति के लिए उपाय करके शुभ फलों को पाने में सफल होते हैं, अन्यथा बिना कुंडली में ग्रहों की जानकारी के दान का फल आपको उचित परिणाम नहीं दे पाएगा. 

ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण और दान की महत्ता

अशुभ फलों को कम करने के लिए अशुभ ग्रहों की दृष्टि होने या अशुभ भाव में बैठने से संबंधित वस्तुओं का दान करना लाभकारी माना जाता है. पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए दान करते समय उपाय पर पूरा विश्वास रखना चाहिए.

सूर्य ग्रह के लिए दान

सूर्य की शुभता प्राप्त करने के लिए सोना, गेहूं, गुड़, केसर, पीतल, लाल वस्त्र या फूल दान में देना चाहिए इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में सूर्य की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में सूर्य की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

चंद्र ग्रह के लिए दान

चंद्रमा के लिए दान करने योग्य वस्तुएं चांदी, सफेद वस्तुएं, चावल, दूध, दही, चीनी, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र आदि हैं. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में चंद्र की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभ फल प्रदान करता है. कुंडली में चंद्र की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

मंगल ग्रह के लिए दान

मंगल के लिए तांबा, घी, गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, मसूर दाल, लाल फूल, लाल चंदन और लाल वस्त्र का दान करना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में मंगल की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

बुध ग्रह के लिए दान

बुध ग्रह की शांति के लिए हाथी दांत, चीनी, हरे वस्त्र, हरे फूल, मूंग की दाल, कपूर और तारपीन का तेल, हरे फल, केसर, कपूर, घी और धार्मिक पाठ्यपुस्तकें आदि का दान करना चाहिए. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में बुध की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में बुध की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

बृहस्पति ग्रह के लिए दान

बृहस्पति की शुभता को बढ़ाने के लिए इसके अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए बृहस्पति से संबंधित चीजें जैसे सोना, पीतल, हल्दी, शहद, चना दाल, पीले कपड़े, केसर, पीले फूल, धार्मिक पाठ्यपुस्तकें आदि का दान करना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में बृहस्पति की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभ फल प्रदान करता है. कुंडली में गुरु की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

शुक्र ग्रह के लिए दान

शुक्र के लिए हीरा, चांदी, चावल, घी, कपूर, दही, चीनी, सफेद वस्त्र या फूल आदि दान में देना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में सूर्य की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में सूर्य की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

शनि ग्रह के लिए दान

शनि के लिए लोहा, सरसों का तेल, नीलम, कंबल, चमड़ा आदि दान में देना चाहिए. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में शनि की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

राहु ग्रह के लिए दान

राहु के शुभ फल के लिए उससे संबंधित वस्तुएं जैसे तिल, तिल का तेल, कंबल, सप्तरत्न आदि का दान करना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में राहु की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में राहु की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

केतु ग्रह के लिए दान

केतु के अशुभ प्रभाव को शांत करने के लिए सप्त धान्य, काली मिर्च, काला कपड़ा, तिल, लोहा का दान करना चाहिए. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में केतु की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में केतु की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

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कन्या लग्न के लिए सभी ग्रह दशा का प्रभाव

कन्या लग्न के प्रभाव से व्यक्ति में संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है. यह राशि पृथ्वी तत्व की राशि मानी जाती है इसलिए यह परिस्थिति से उबरने में सक्षम होती है. बुध इसके लग्न का स्वामी  होता है. बुध बौद्धिक क्षमता का कारक माना जाता है इसलिए बुध के प्रभाव से आप बुद्धिमान और व्यवहारकुशल व्यक्ति बनते हैं. लोग दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं इसलिए शरीर का इस्तेमाल कम से कम करने की कोशिश करें. उन्हें आराम करना पसंद है. अब इस लग्न के ग्रह की स्थिति अपनी दशा अवधि में अपने फलों को दर्शाती है. ऎसे में जो ग्रह इस लग्न के लिए बेहतर होंगे उस दशा का असर भी अनुकूल रहेगा. 

कन्या लग्न के लिए सभी ग्रहों का दशाफल 

कन्या लग्न में बुध का प्रभाव

कन्या लग्न में बुध ग्रह प्रथम और दशम भाव का स्वामी होता है. कन्या लग्न की कुंडली में लग्न का स्वामी बुध होता है. कन्या लग्न के लिए बुध एक लाभदायक ग्रह है. लग्नेश इनकी कुंडली में जहां भी बैठा हो वह सदैव अनुकूल रहने में सहायक होता है, अत: यह लग्न होने के कारण कुंडली में सबसे शुभ ग्रह माना जाता है. लग्नेश बुध प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम एवं एकादश भाव में अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. बुध तीसरे, छठे, सातवें नीच, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ हो जाता है. इसकी दशा-अन्तर्दशा का प्रभाव व्यक्ति को इसकी कुंडली में शुभ अशुभ स्थिति से मिलता है. 

कन्या लग्न में शुक्र का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में शुक्र द्वितीय और नवम भाव का स्वामी होने के कारण अत्यंत योगकारक ग्रह है. कन्या लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में तुला राशि होती है, जिसका स्वामी शुक्र होता है. शुक्र, बुध के साथ मित्रता रखता है इसलिए कन्या लग्न की कुंडली में शुक्र एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुक्र अपनी दशा और अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. प्रथम , तृतीय, षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव में शुक्र उदित अवस्था में मारक होकर अशुभ फल देता है. शुक्र अपनी कुंडली में स्थिति के अनुसार परिणाम देने वाला ग्रह बनता है.

कन्या लग्न में मंगल का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में मंगल ग्रह तीसरे और आठवें भाव का स्वामी है. कन्या लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में वृश्चिक राशि होती है, जिसका स्वामी मंगल होता है, कन्या लग्न की कुंडली में अष्टम भाव में मेष राशि होती है, जिसका स्वामी मंगल होता है, मंगल को अष्टमेश मिलने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में मंगल सबसे मारक ग्रह बन जाता है. मंगल की बुध से शत्रुता के कारण कन्या लग्न की कुंडली में मंगल एक मारक ग्रह बन जाता है. लग्न बुध का अत्यंत शत्रु होने के कारण कुंडली में इसे अत्यंत मारक ग्रह माना गया है. कुंडली के किसी भी भाव में मंगल अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देता है. कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में भी मंगल विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने की क्षमता रखता है. 

कन्या लग्न में बृहस्पति का प्रभाव

कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ और सप्तम केंद्र का स्वामी होता है. सप्तमेश होने के कारण बृहस्पति मारकेश भी है. कन्या लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में धनु राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी बृहस्पति होता है, कन्या लग्न की कुंडली में सप्तम भाव में मीन राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी बृहस्पति होता है. बृहस्पति की बुध से मित्रता के कारण कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति एक शुभ ग्रह बन जाता है. बृहस्पति लग्न से सम भाव में होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति सकारात्मक प्रभाव देने वाला ग्रह बन जाता है. इस लग्न की कुंडली में बृहस्पति अपनी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा फल देता है. बृहस्पति अपनी दशा-अंतर्दशा में पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. यदि कुंडली के किसी भी भाव में गुरु देव अस्त अवस्था में बैठे हों तो उनका बेहतर फल नहीं मिल पाता है.

कन्या लग्न में शनि का प्रभाव

कन्या लग्न की कुंडली में शनि देव पंचम और षष्ठ भाव के स्वामी होते हैं. शनि देव लग्न बुध के मित्र भी हैं इसलिए इन्हें कुंडली का योगकारक घर माना जाता है. कन्या लग्न की कुंडली में पंचम भाव में मकर राशि होती है, जिसका स्वामी शनि है, शनि की बुध से मित्रता होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में शनि योगकारक ग्रह बन जाता है.कन्या लग्न की कुंडली में छठे भाव में कुंभ राशि होती है, जिसका स्वामी शनि है, शनि की बुध से मित्रता होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में शनि एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. शनि देव प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश भाव में अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में उदय अवस्था में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देते हैं. कुंडली के तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में उदित अवस्था में हों तो अशुभ हो जाते हैं और सहा में अनुकूल परिणाम मिलने कमजोर होते हैं. 

कन्या लग्न में चन्द्रमा का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में चंद्र देव एकादश भाव के स्वामी हैं. कन्या लग्न की कुंडली में ग्यारहवें घर में कर्क राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी चंद्रमा होता है. कन्या लग्न की कुंडली में चंद्रमा की बुध से शत्रुता के कारण चंद्रमा एक मारक ग्रह बन जाता है. बुध के अत्यंत शत्रु होने के कारण लग्न को चंद्र कुंडली का क्रूर ग्रह माना जाता है. कुंडली के सभी भावों में चंद्र देव अपनी दशा और अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देने वाला बनता है. चन्द्रमा की दशा अन्तर्दशा में ध्यान पूर्वक कार्यों को करने की सलाह दी जाती है.

कन्या लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में सूर्य देव बारहवें भाव के स्वामी होते हैं इसलिए इन्हें कुंडली में सबसे मारक ग्रह माना जाता है. कन्या लग्न की कुंडली में बारहवें घर में सिंह राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी सूर्य है, सूर्य की मित्रता बुध के साथ होती है, लेकिन सूर्य व्यय का स्वामी होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में सबसे अधिक खास ग्रह बन जाता है.कुंडली के सभी भागों में सूर्य देव अशुभ फल देते हैं

कन्या लग्न में राहु केतु का प्रभाव 

कन्या लग्न के लिए राहु केतु दशा का प्रभाव उनकी लग्न अनुसार स्थिति से दिखाई देता है. राहु केतु अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में अपनी योग्यता के अनुसार फल देता है. लेकिन कुंडली के तीसरे, छठे और बारहवें घर में स्थित यह ग्रह बैठ कर विजय की क्षमता रखते हैं, इसके लिए बुध का मजबूत और शुभ होना बहुत जरूरी है.    

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आपकी कुंडली के विभिन्न भावों में चंद्रमा और बुध की युति

बुध के साथ चंद्रमा की युति दो शुभ ग्रहों की युति का योग होती है. चंद्रमा और बुध दोनों को ही ज्योतिष शास्त्र में शुभ ग्रहों के रुप में देखा जाता है. इसके अलावा इन दोनों ग्रहों का आपसी संबंध भी बहुत विशिष्ट माना गया है. इन दोनों ग्रहों की कुंडली में यदि एक साथ किसी एक राशि में युति बन रही हो तो उसका असर कई मायनों में खास बन जाता है. व्यक्ति की सोच एवं उसके काम करने की क्षमता भी इस युति से प्रभावित होती दिखाई दे सकती है. दोनों के बीच संबंध मित्रता से कुछ कम हैं क्योंकि जहां चंद्रमा अपना मित्र पूर्ण व्यवहर दिखाता है वहीं बुध शत्रु पूर्ण व्यवहार के साथ चलने वाला होता है. दोनों ग्रहों के आपसी मिलाप के नजरिये में भेद है. जब कुंडली में ये दोनों ग्रह एक साथ आते हैं तो व्यक्ति अक्सर अत्यधिक बुद्धिमान होता है. किंतु इसी के साथ उसे किसी बात को लेकर अत्यधिक भय भी सता सकता है यह युति फोबिया का कारण भी बन सकती है.  

यदि कुंडली में चंद्रमा और बुध एक साथ एक ही घर में बैठे हों तो व्यक्ति को व्यवसाय अथवा अपने कार्य क्षेत्र में बहुत से लोगों का साथ मिलता है. भ्रमण के अवसर भी उसे अपने काम के दौरान अधिक मिल सकते हैं. लेखक, पत्रिका, समाचार पत्र, मीडिया अथवा सिनेमा जैसे क्षेत्रों में काम करने का उसे अवसर मिल सकता है. गैरकानूनी कार्य भी कर सकता है या फिर कहें की सही ओर गलत के मध्य का भेद वो अपने मन अनुसार अधिक रख सकता है.  व्यक्ति कम मेहनत में अधिक सफलता प्राप्त करने की ओर अधिक उत्साहित होता है. 

कुंडली के प्रथम भाव में चंद्रमा और बुध की युति

प्रथम भाव में चंद्रमा और बुध की युति को एक अच्छा सुंदर आकर्षक व्यक्तित देने में सहायक बनती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति मित्र बनाने में कुशल होता है. समाजिक दायरा विस्तृत रहता है. स्वभाव में सौम्यता का गुण भी होता है. व्यक्ति के पास अच्छी अच्छी मौखिक क्षमता हो सकती है. अपनी बातों के द्वारा दूसरों को बहला लेने में सक्षम होगा. कविता और अन्य कलात्मक प्रतिभाओं में अच्छा हो सकता है. व्यक्ति झूठे आरोपों से पीड़ित हो सकता है. उन्हें धोखा भी मिल सकता है. व्यक्ति को फेफड़े और तंत्रिका संबंधी समस्या हो सकती है.

कुंडली के दूसरे घर में चंद्रमा और बुध की युति

दूसरे भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को आकर्षक दिखने में मदद कर सकती है. व्यक्ति को बोलने का तरीका जता है. अपनी बातों को घुमावदर बना सकता है. वाणी के द्वारा बुद्धिमानी  और कौशल का बोध होता है. स्वाभाविक रुप से कोई कलात्मक प्रतिभा उसमें हो सकती हैं.  अच्छा अभिनेता, कवि या वक्ता बन सकता है. आर्थिक स्थिति कुछ अस्थिर बनी रहती है. व्यक्ति को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद मिल सकती है. खर्च अधिक होता है. मानसिक तनाव और अशांत मन से परेशानी मिलती है.

कुंडली के तीसरे घर में चंद्रमा और बुध की युति

तीसरे भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को चतुर बनाती है. सुंदर और आकर्षक बना सकती है. व्यक्ति स्वभाव से चंचल एवं बुद्धिमान हो सकता है. कल्पनाशील कार्यों में निपुण हो सकता है. अपने कार्यों को पूरा करने का जोश होता है लेकिन अस्थिर स्वभाव के कारण काम अधूरे भी रह सकते हैं. उसकी प्रवृत्ति किसी भी काम को खत्म करने की होती है. व्यक्ति को अपने छोटे भाई-बहनों से सम्मान मिल सकता है. एलर्जी और फेफड़ों से संबंधित समस्या से पीड़ित हो सकते हैं.

कुंडली के चौथे घर में चंद्रमा और बुध की युति

चतुर्थ भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को सुख सुविधाओं को देने वाली होती है. आकर्षक मुस्कान व्यक्ति के लिए वरदान होती है. इस दौरान व्यक्ति प्रसिद्ध को भी पाने में सफल होता है. व्यक्ति का अपनी माता से अधिक लगाव हो सकता है. व्यक्ति को अच्छा भौतिक सुख प्राप्त हो सकता है. इन्हे मातृ संपत्ति मिल सकती है. व्यक्ति के अच्छे मित्र और रिश्तेदार हो सकते हैं. इन्हें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद मिल सकती है. व्यक्ति को श्वास से संबंधी दिक्कतें उत्पन्न हो सकती है.

कुंडली के पंचम भाव में चंद्रमा और बुध की युति

पंचम भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को रचनात्मक गुण देती है. बुद्धिमान और चतुर बनाती है. व्यक्ति में सीखने और बोलने की क्षमता बेहतर हो सकती है. मानसिक रुप से चंचलता के कारण एक से अधिक चीजों पर लगाव रहता है. शिक्षा के क्षेत्र में एकाग्रता रह सकती है. व्यक्ति धार्मिक और ईश्वर में अच्छी आस्था रखने वाला हो सकता है. व्यक्ति का प्रोफेशन अस्थिर हो सकता है, प्रोफेशन में उतार-चढ़ाव आते रह सकते हैं. मित्रों की संख्या अच्छी होति है. व्यक्ति को मानसिक तनाव और तंत्रिका संबंधी समस्याओं से परेशान होना पड़ सकता है.

कुंडली के छठे भाव में चंद्रमा और बुध की युति

छठे भाव में चंद्रमा और बुध की युति अनुकूलता की कमी दिखाती है. मानसिक व्याधियां दे सकती है. व्यक्ति को दयालु और सम्मानित स्वभाव देती है. व्यक्ति बुरी नजर के प्रभाव में आसानी से आ सकता है. व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अस्थिर रहेगी. प्रतियोगिताओं में सफलता मिल सकती है. आप अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. व्यक्ति को पेट और पाचन संबंधी समस्या हो सकती है.

कुंडली के सातवें घर में चंद्रमा और बुध की युति

सप्तम भाव में चंद्रमा और बुध की युति वैवाहिक मसलों का कारण बनती है.  व्यक्ति को भावुक और संवेदनशील बना सकती है.  व्यक्ति की शादी होती है लेकिन साथी की ओर से संदेह भी रहता है. जीवन साथी सुंदर और बुद्धिमान हो सकता है. अपने जीवन साथी के कारण कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यदि चंद्रमा और बुध खराब हो तो अलगाव हो सकता है. नौकरी में परिवर्तन के बाद इनके नाम, यश और समृद्धि में वृद्धि होगी. बिजनेस में आपको सफलता मिल सकती है.

कुंडली के आठवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति परेशानी और कठोरता देने वाली होती है. इस युति का प्रभाव जल से संबंधित रोग देने वाला होता है. व्यक्ति आध्यात्मिक मन वाला हो सकता है. इस दौरान व्यक्ति वाणी में मधुर और अच्छा वक्ता हो सकता है. यदि चंद्रमा और बुध की स्थिति खराब हो तो मानसिक रोग होता है. अष्टम भाव में चंद्रमा का बुध के साथ होना माता के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. इस अवधि में आपको पैतृक संपत्ति मिल सकती है लेकिन परिवार का सुख कमजोर होता है.

कुण्डली के नवम भाव में चंद्रमा और बुध की युति

नवम भाव में चंद्रमा और बुध की युति का प्रभाव ग्क़ुउ जनों का सानिदध्य  व्यक्ति को बुद्धिमान और समझदार बना सकती है. आपको नौकरी और बिजनेस में अच्छी सफलता मिलेगी. व्यक्ति और उसके पिता के बीच अच्छे संबंध बन सकते हैं. व्यक्ति को मित्रों, रिश्तेदारों और परिवार का सहयोग मिलेगा. इस दौरान संतान सुख मिलेगा.

कुंडली के दसवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

दशम भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को अच्छा नाम और प्रसिद्धि दिलाती है. व्यक्ति का सामाजिक मान-सम्मान अच्छा होता है. रिश्तेदारों और सहकर्मियों की मदद से सफलता मिल सकती है. इस दौरान कारोबार में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है. व्यक्ति को व्यवसाय में मानसिक तनाव हो सकता है. करियर के 

कुंडली के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

एकादश भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है. इस दौरान चंचल मन कुछ देर के लिए भ्रमित भी हो सकता है. धोखेबाज और धोखा देने में माहिर हो सकता है. इन्हें बिजनेस या शेयर बाजार से लाभ मिल सकता है. पदोन्नति और उच्च पद मिल सकता है. व्यक्तिों को अपने शत्रुओं पर विजय मिल सकती है.

कुंडली के बारहवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

बारहवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को खर्च की अधिकता से परेशानी करती है.इस योग के असर में व्यक्ति अच्छा वक्ता हो सकता है. पढ़ाई में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति को व्यवसाय में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों वाला हो सकता है. उन्हें दृष्टि संबंधी समस्या हो सकती है.

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