ज्योतिष में सम सप्तक योग क्या है?

ज्योतिष के क्षेत्र में, कई तरह के योग काम करते हैं. इनका असर मानव जीवन पर गहराई से पड़ता है. इसका असर ही समझ को आकार देती हैं. ऐसी ही एक अवधारणा दिलचस्प ‘सम सप्तम योग’ है, जो ग्रहों का एक शक्तिशाली संरेखण है जो किसी व्यक्ति के भाग्य और जीवन की घटनाओं पर गहरा प्रभाव डाल सकता है. सम सप्तम योग एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय योग है जो जीवन के अनेक क्षेत्रों पर अपना असर डालने वाला होता है. यह सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव दोनों ही दिखा सकता है. किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मौजूद विशिष्ट ग्रह योगों के निर्माण पर इसका फल निर्भर करता है. इस योग के प्रभाव को समझने से निर्णय लेने और अधिक जागरूकता के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिल सकती है.

सम सप्तम योग एक ज्योतिषीय योग है जो तब घटित होता है जब दो ग्रह आमने सामने होते हैं. दो ग्रहों का एक दूसरे से समस्पतक होना ही योग बना है उदाहरण के लिए  मेष राशि में सूर्य हो और तुला राशि में शनि बैठा हो तब यह स्थिति इस योग को बनाने वाली होती है. इस में दोनों ग्रह एक दूसरे से 7वें भाव में होते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह योग वैदिक ज्योतिष में काफी महत्व रखता है और यह किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है, खासकर रिश्तों और साझेदारी के मामलों में तथा जीवन में घटने वाली घटनाओं में इसका योगदान काफी होता है. 

समसप्तक योग का जीवन पर शुभ अशुभ प्रभाव  

सम सप्तम योग से प्रभावित प्राथमिक क्षेत्रों में से एक रिश्ते हैं. यह योग व्यक्तियों के अपने सहयोगियों, जीवनसाथी और करीबी सहयोगियों के साथ बातचीत करने के तरीके को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है इसके अलावा व्यक्तित्व की रुपरेखा भी इसमें अपना असर डालती है. इस योग के तहत पैदा हुए लोग अपने रिश्तों में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभावों का अनुभव कर सकते हैं, जो इसमें शामिल विशिष्ट ग्रहों और उनके भीतर मौजूद गुणों पर निर्भर करता है. जब शुभ ग्रह सम सप्तम योग बनाते हैं, तो यह व्यक्तियों को शुभ और संतुष्टिदायक रिश्ते प्रदान कर सकता है. अच्छे लाभ दिला सकता है. इस योग के द्वारा ऐसे लोगों में अच्छा संचार कौशल देखने को मिलता है. अच्छी गहरी समझ और साझेदारी में व्यक्ति की पकड़ काफी अच्छी होती है.

व्यक्ति की लोगों के साथ सामंजस्य बनाए रखने की स्वाभाविक क्षमता हो सकती है. रिश्ते निभाने में देखभाल करने वाले होते हैं. सहयोगी साझेदारों को आकर्षित करने की संभावना भी अच्छी दिखाते हैं. एक संतुष्ट और समृद्ध जीवन जी सकते हैं. दूसरी ओर, सम सप्तम योग बनाने वाले अशुभ ग्रह रिश्तों में चुनौती और संघर्ष ला सकते हैं. इस योग के प्रभाव में आने वाले व्यक्तियों को गलतफहमी, भावनात्मक अशांति और स्थायी साझेदारी बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. इसका सटीक प्रभाव किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मौजूद विशिष्ट ग्रह योग एवं संबंधों पर निर्भर करता है. 

रिश्तों के अलावा, सम सप्तम योग किसी व्यक्ति के करियर और सफलता को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. सातवें भाव में ग्रहों की स्थिति आपसी साझेदारी और सहयोग को प्रभावित कर सकती है, जिससे अनुकूल और चुनौतीपूर्ण दोनों परिणाम प्राप्त होंगे. जब जन्म कुंडली में शुभ ग्रह इस योग का निर्माण करते हैं, तो यह व्यक्तियों को मजबूत व्यावसायिक कौशल और सफल साझेदारी बनाने की क्षमता का सुख दे सकता है. ये व्यक्ति ऐसे करियर में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें टीम वर्क और सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे उनके करियर या पारिवारिक जीवन में महत्वपूर्ण चीजें प्राप्त होती हैं. यदि अशुभ ग्रह सम सप्तम योग पर हावी हो जाते हैं, तो यह करियर के विकास और साझेदारी में बाधा पैदा कर सकता है.  जन्म कुंडली में ऐसी स्थिति का अनुभव करने पर चुनौतियों से बचने के लिए व्यावसायिक समझौते और सहयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए.

 ग्रहों की इस योग में भूमिका 

सभी ग्रहों के द्वारा यह योग निर्मित हो सकता है. एक से अधिक ग्रहों में भी इस योग का निर्माण हो सकता है. इस योग में जब पाप ग्रह शामिल होंगे तो स्वाभाविक रुप से कष्ट को देने वाले होंगे. जब यहां शुभ ग्रह शामिल होंगे तो वह अनुकूल परिणाम देने वाले होंगे. इसके अलावा ग्रहों की शुभता एवं अशुभता की स्थिति जन्म कुंडली में बने ग्रहों के भाव योग पर भी निर्भर करती है. यदि पाप ग्रह अच्छे भाव का स्वामी होकर समसप्तक योग में शामिल होगा तो अपने अनुकूल परिणामों से प्रभावित जरुर करेगा. 

गोचर में यह योग बनता रहता है. जब गोचर में इसका असर दिखता है तो वह तात्कालिक स्थिति के अनुसार हम पर पड़ता है. ग्रहों का भ्रमण काल जब इस योग को बनाता है तो उसके अनुसार इसके फलों की प्राप्ति होती है. जीवन में आने वाले शुभ योगों या खराब घटनाओं हेतु गोचर में बनने वाला यह योग जल्द अपना असर दिखाता है. 

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मुहूर्त अनुसार खरीदें प्रॉपर्टी जीवन भर मिलेगा सुख

संपत्ति ख़रीदना एक बड़ा निर्णय होता है. एक घर को बनाने के लिए व्यक्ति अपनी ओर से बड़े प्रयास करता है.  इसमें से कुछ के लिए यह सपना पूरा करने में जीवन लग जाता है या कभी-कभी जीवन भर की बचत भी शामिल हो सकती है. पर जब हम घर लेते हैं तो इस बात को यदि समझ लिया जाए की जिस समय हम वो काम कर रहे हैं वह उपयुक्त रहेगा तब यह चीज हमारे लिए वरदान की तरह सिद्ध होती है. इसमें ज्योतिष का ज्ञान बहुत काम आता है. अपनी जीवन भर की गाढ़ी कमाई को बड़े जोखिम में डालना समझदारी है. जो संपत्ति खरीद रहे हैं वह आपके लिए सौभाग्य लाएगी या दुर्भाग्य. इसके लिए ज्योतिष की समझ काफी उपयुक्त हो सकती है. ज्योतिष में मौजुद मुहूर्त शास्त्र एवं ग्रहों की स्थिति व्यक्ति को बता सकती है कि हम जो निर्णय ले रहे हैं वह सही है या नहीं. 

संपत्ति की खरिदारी से पूर्व ग्रह नक्षत्रों की जानकारी 

जब व्यक्ति कोई संपत्ति खरीदने की योजना बना रहे होते हैं तो समय की शुभता जानना महत्वपूर्ण होता है. कभी-कभी, सब कुछ सही हो सकता है लेकिन ख़राब समय आपके मुनाफ़े को भारी घाटे में बदल सकता है. संपत्ति खरीदने के लिए शुभ तारीखें और समय पता होना चाहिए ताकि आपके छोटे निवेश से भी आपको बड़ा धन लाभ हो. संपत्ति खरीदने के पीछे का कारण व्यक्तिगत उपयोग या बिक्री और खरीद हो सकता है. किसी भी मामले में, शुभ मुहूर्त मायने रखेगा क्योंकि शुभ समय के दौरान खरीदी गई कोई भी संपत्ति निवासियों या खरीदार के लिए समृद्धि लाती है.

संपत्ति खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त क्यों देखना चाहिए

हिंदू परंपराओं में, सभी मांगलिक कार्यों या शुभ घटनाओं के घटित होने में समय का महत्वपूर्ण स्थान रहता है. चाहे, वह लंबी यात्रा पर जा रहा हो, कोई नया उद्यम शुरू कर रहा हो, घर में प्रवेश कर रहा हो, शादी पर विचार कर रहा हो या कुछ और.

हम आम तौर पर शुभ मुहूर्त पूछने के लिए मंदिर में पंडित जी या पुजारी के पास जाते हैं. जब संपत्ति खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त देखने की बात आती है, तो किसी ज्योतिषी के पास जाना चाहिए जो हिंदू पंचांग के साथ-साथ खरीदार की जन्म कुंडली का भी संदर्भ लेता है.

एक शुभ मुहूर्त लगभग सभी के लिए शुभ होता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलग जन्म कुंडली के साथ पैदा होता है. जन्म कुंडली यह तय करती है कि कोई विशेष शुभ मुहूर्त वास्तव में जातक के लिए शुभ है या नहीं. किसी जातक के लिए शुभ मुहूर्त निकालते समय जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति बहुत मायने रखती है.

इसके अलावा, जिस संपत्ति या भूमि को कोई खरीदने का इरादा रखता है उसका वास्तु भी जातक की जन्म कुंडली के अनुरूप होना चाहिए. इससे खरीदार के लिए संपत्ति की शुभता और बढ़ जाती है. हम सभी की कुंडली में चंद्रमा अलग-अलग राशियों और नक्षत्रों में होता है, यहीं पर स्थिति को ध्यान देने की जरूरत अधिक होती है. शुभता को पाने के लिए चंद्रमा को समझना बहुत जरूरी होता है.

यदि किसी ज्योतिषीय मार्गदर्शन के बिना खरीदारी के लिए शुरुआती कार्यवाही की है तब भी उस समय में अगर राशि का भुगतान करने के लिए कम शुभ मुहूर्त के अनुसार संपत्ति का पंजीकरण कराना बहुत उचित होता है.  यदि संपत्ति का पंजीकरण पहले ही हो चुका है तो भी नए घर में प्रवेश के लिए ज्योतिष द्वारा सुझाए गए सबसे अच्छे दिन पर विचार करना चाहिए. चीजें कितनी भी अलग हों लेकिन उन्हें ज्योतीष की सहायता से काफी हद तक सकारात्मका की ओर मोड़ा जा सकता है. 

संपत्ति खरीदते समय मुहूर्त विचार लाभ 

जब कोई संपत्ति खरीदने का फैसला किया जाता है, तो ज्योतिष अनुसर मुहूर्त शास्त्र का विचार बेहद जरूर होता है. मुहूर्त के लिए कई बातों पर विचार करना पड़ता है. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं जैसे तिथि को देखना, वार कौन सा है, नक्षत्र कौन सा है, करण कौन सा है ओर कौन कौन से शुभ या अशुभ योग उस मुहूर्त में मिल रहे हैं. अच्छा मुहूर्त निकालने के लिए इन चीजों को प्रथम दृष्टि से देख अजाता है. इसके साथ ही जिस व्यक्ति के नाम पर संपत्ति ली जा रही है उनके ग्रह नक्षत्रों की स्थिति दशा इत्यादि को देखते हुए काम किया जाता है. मुहूर्त में उपरोक्त सभी बातों पर विचार करना पड़ता है. उपरोक्त सभी श्रेणियों पर विचार करने पर एक उपयुक्त दिन व्यक्ति को अच्छे परिणाम प्रदान करता है. व्यक्ति की ग्रह स्थिति से मुहूर्त का मिलान करना महत्वपूर्ण कार्य होता है.जिस नक्षत्र में हमारा चंद्रमा स्थित होता है उसे जन्म नक्षत्र कहा जाता है और यह किसी व्यक्ति के लिए दिन की शुभता की पहचान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. 

मुहूर्त शास्त्र में गणना के आधार पर यदि चंद्रमा विपत, प्रत्यरी और बाधक तारा या नक्षत्र में गोचर कर रहा हो तो व्यक्ति को उस दिन कोई संपत्ति नहीं खरीदनी चाहिए या कोई अन्य शुभ कार्य नहीं करना चाहिए.

इनके अलावा भी कुछ अन्य बिंदु भी हैं जिन पर ध्यान देते हुए अच्छा और फलदायी समय अवधि पर विचार किया जाता है. इस के अनुसार व्यक्ति के लिए संपत्ति खरीदने के समय गोचर में लग्न स्वामी की स्थिति को देखना जरुरी होता है. सभी ग्रहों का गोचर, विशेष रूप से चतुर्थ और एकादशेश, क्योंकि ये दोनों संपत्ति और उससे लाभ के घर हैं इस बात पर ध्यान देने की जरुरत होती है. 

समय मुहूर्त लग्न की स्थिति की जांच करनी होती है. संपत्ति खरीदते समय गोचर में कारक मंगल और शनि का मजबूत होना जरूरी है यदि आज की कुंडली में इनमें से अधिकांश मजबूत स्थिति में हैं तो व्यक्ति को संपत्ति से बड़ा लाभ होने वाला है.

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जानिए अपने लग्न से क्या होगा आपका करियर

ज्योतिष में, लग्न की स्थिति व्यक्ति के लिए बेहद महत्व रखती है. लग्न का असर जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य पर भी अपना विशेष असर डालता है. लग्न आपके सेहत, आपके विचारों आपकी काम करने की इच्छा, आप क्या सोच रहे हैं कैसे आगे बढ़ना चाहेंगे इन सभी पर लग्न की विशेष भूमिका देखने को मिलती है. यह व्यक्ति के लिए उदय होने की स्थिति है अत: जीवन में होने वाले  हर बदलाव का यह मुख्य कारक बन जाता है. किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है. यह उस राशि को अभिव्यक्त करता है जो किसी व्यक्ति के जन्म के ठीक समय पूर्वी क्षितिज पर उदित हो रही होती है. कोई व्यक्ति खुद को दुनिया के सामने कैसे खड़ा कर सकता है. अपने आस पास की चीजों को कैसे देखता है इत्यादि बातों के अलावा काम काज की स्थिति के लिए भी यह विशेष घटक होता है. 

नौकरी या कारोबार में लग्न की भूमिका को कैसे जानें 

नौकरी या कारोबार आप क्या करना चाहेंगे, किस में आपको बड़ी सफलता मिल सकती है इस बात को हम लग्न के द्वारा भी जान सकते हैं. अपने काम के क्षेत्र में आपकी प्रतिभा कैसी रहने वाली है. कैसे बातचीत कर पाने का हुनर होगा और किस प्रकार स्थिति को डील कर पात करता है, इसे समझने के लिए लग्न एक आवश्यक कारक की भांति काम करता है. किसी व्यक्ति के लग्न की गणना करने के लिए, सटीक तिथि, समय और जन्म स्थान की आवश्यकता होती है. यह निर्धारित कर सकते हैं कि जन्म के समय कौन सा चिन्ह आ रहा था. लग्न जन्म कुंडली में यह भाव राशि एवं ग्रहों की स्थिति के साथ, किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व, व्यवहार और उपस्थिति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

करियर ज्योतिष में, लग्न किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लग्न को व्यक्तित्व माना जाता है जो कोई व्यक्ति दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है, उसका बाहरी व्यवहार और वह दूसरों को कैसा दिखता है. यह किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने और वे अपने आस-पास की दुनिया के साथ कैसे बातचीत करते हैं, यह समझने का एक अनिवार्य पक्ष है. कैरियर के संबंध में, लग्न उन व्यवसायों या कार्य की स्थिति के प्रकारों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है. किसी व्यक्ति की प्रवृत्तियों और जीवन के प्रति दृष्टिकोण के अनुकूल हो सकते हैं. किसी के करियर पथ को निर्धारित नहीं करता है. यह मार्गदर्शन और संभावित स्थितियों को प्रदान कर सकता है. व्यक्तिगत पसंद, प्रयास और परिस्थितियाँ भी कैरियर के परिणामों को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं.

आपका लग्न आपके करियर को कैसे प्रभावित कर सकता है, इसको जानने के लिए सूर्य, चंद्रमा अन्य ग्रहों के साथ कुंडली में बनने वाले योगों एवं अन्य ज्योतिषीय कारकों की स्थिति को जानने की कोशिश करनी चाहिए. यह व्यापक विश्लेषण आपकी ताकत, कमजोरियों और संभावित करियर झुकाव की प्रवृति को देखाता है.

मेष लग्न 

मेष लग्न का व्यक्ति व्यवसाय के रुप में रोमांच को लेकर उत्साहित होता है. विभिन्न क्षेत्रों में जैसे रोमांच, उत्साह, ईंधन, पेट्रोलियम, प्रोपर्टी संबंधित उद्योगों से जुड़ाव को दिखाता है. इनमें से किसी भी क्षेत्र में जुड़ने की इच्छा व्यक्ति को अनुकूल परिणाम दे सकती है. इसके अतिरिक्त, रसायन, कोयला, सीमेंट, सेना से जुड़े व्यवसाय में सफलता मिल सकती है. मेष राशि उन प्रमुख राशियों में से एक है, जो अपने काम में सदैव आगे रहने को तत्पर रहती है. इस लग्न का असर व्यक्ति को विभिन्न स्थानों से लाभ पाने की उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं. वे यात्रा और पर्यटन उद्योगों में भीीआगे बढ़ सकता है. 

वृषभ लग्न 

वृषभ लग्न में जन्मा व्यक्ति विभिन्न कलात्मक गतिविधियों में शामिल हो सकता है. नृत्य, गायन, अभिनय, ड्राइंग, पेंटिंग, फाइन आर्ट जैसी ललित कलाओं के माध्यम से व्यक्ति काम में उन्मुख हो सकता है. आजीविका के लिए यह स्थिति महंगी वस्तुओं, सुगंधित उत्पादों, रत्नों, इंटीरियर, डिजाइन, वस्त्र उद्योग से संबंधित करियर में सफलता को दिला सकता है. वृषभ लग्न के व्यक्ति को खाद्य उत्पादों से जुड़े व्यवसायों के माध्यम से भी अच्छी आय पाने में सफलता मिल सकती है. 

मिथुन लग्न 

मिथुन लग्न एक ऎसा लग्न जिसे हरफनमोला भी कहा जा सकता है. यह हर गतिविधि में शामिल दिखाई दे सकते हैं. इस लग्न से प्रभावित व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता रख सकता है. इसके अलावा लेखन, शिक्षण, रचनात्मक कलात्मक पक्ष से जुड़े काम में भी इनकी भूमिका बेहद मजबूत दिखाई दे सकती है. कई तरह के व्यवसायों के लिए उपयुक्त होता है इनका लग्न. इस लग्न के लोग अपने जीवन में साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ पाते हैं. इसके अतिरिक्त, रचनात्मकता के लिए उनकी अंतर्निहित जिज्ञासा इनके भीतर उत्कृष्ट होती है. कारोबार को अपनी संचार क्षमता से चला पाते हैं. 

कर्क लग्न 

कर्क लग्न के अनुसार व्यक्ति के करियर का क्षेत्र उसकी मानसिकता के साथ अधिक जुड़ाव रखता है. इस लग्न के अनुसार व्यक्ति नर्सिंग, फूड, पानी से संबंधित काम, वस्त्र उद्योग, दवा संस्थान, कला के क्षेत्र में अधिक बेहतर प्रदर्शन कर पाता है. उसके द्वारा किया जाने वाले व्यवसायों में वस्त्र उद्योग, फैशन , जल उद्योग, मछली उत्पादन, दूध और दूध उत्पादों की बिक्री, कृषि से जुड़े काम, ललित कला जैसे क्षेत्रों में दक्षता का होना. रचनात्मकता और सौंदर्य उत्पाद कर्क राशि से निकटता से जुड़े हुए होते हैं, और चंद्रमा स्त्रीत्व का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इस लग्न के प्रभाव द्वारा रचनात्मक पहलुओं को पूरा करते हुए सौंदर्य उत्पादों से संबंधित व्यवसायों में लाभ कमा सकता है.

सिंह राशि 

सिंह लग्न के अनुसार लीडरशिप से जुड़े सभी कार्य बेस्ट रह सकते हैं. इसके अलावा, सेना, शक्ति प्रदर्शन,  प्रकृति से जुड़े काम, विशेष रूप से जंगलों, पहाड़ों और कृषि उत्पादों के कार्य, ता है. घास, लकड़ी, कपास, जड़ी-बूटियाँ, फल, कपड़े, कागज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित व्यवसायों में अच्छा करने के अवसर इन्हें मिल सकते हैं. सिंह लग्न में व्यक्ति अपने करिश्मा और नेतृत्व क्षमताओं को प्रदर्शित करते हुए एक अभिनेता या व्यवसाय प्रबंधक के रूप में उत्कृष्टता स्थान पाता है. साहस और न्याय के गुणों का होना इन्हें कानून विभाग, सैन्य सुरक्षा, गार्ड या वकील के रूप में भी आगे बढ़ने के मौके देता है. इसके अलावा चिकित्सा में भी इन्हें अच्छे परिणाम मिल सकते हैं. 

कन्या लग्न 

कन्या लग्न का प्रभाव व्यक्ति को संचार से जुड़े काम और देखभाल सुरक्षा के कामों की ओर ले जाने वाला होता है. एजेंट, शिक्षक, मनोवैज्ञानिक बनना या लेखांकन और बैंकिंग से संबंधित कार्यों में अच्छा कर सकते हैं. इनके व्यक्ति एक महान और बौद्धिक आचरण वाला होता है. धैर्य और परिश्रम उनके कर्तव्यों के प्रति उनके दृष्टिकोण को परिभाषित करते हैं, जिससे उनके काम में गलतियों की संभावना कम हो जाती है. कार्य क्षेत्र में नियुक्ति करने वाले के रुप में ये लोग काम कर सकते हैं. सावधानीपूर्वक और सक्रिय कर्मचारी के रुप में आगे बढ़ने वाले होते हैं. इन लोगों में विवेकपूर्ण व्यवसायी होने का अच्छा हुनर होता है. कई मामलों में कोषाध्यक्ष के रूप में करियर को आगे ले जाने की इनकी क्षमता अच्छी होती है. 

तुला लग्न 

तुला लग्न के होने के कारण करियर के क्षेत्र में जज, वकील या सलाहकार के रूप में अच्छा काम कर सकते हैं. शुक्र का प्रभाव और तुला राशि की प्रवृत्ति इन्हें एक सफल उद्यमी भी बनाती है.  इन लोगों को फैशन, सौंदर्य प्रसाधन, आयात-निर्यात और लक्जरी उत्पादों से संबंधित व्यवसायों में उत्कृष्टता प्राप्त हो सकती है. इन कार्यों में ये लोग अच्छा प्रदर्शन करने में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं. संगीत, नाटक, फोटोग्राफी, पेंटिंग और सौंदर्य प्रसाधन जैसे क्षेत्र इनके लिए अच्छा स्थान होते हैं. 

वृश्चिक लग्न 

वृश्चिक लग्न में आपको करियर के क्षेत्र में कई तरह के काम मिल सकते हैं. इंजीनियरिंग, सशस्त्र बल, पुलिस, विज्ञान या राजनीति में सफलता मिल सकती है. करियर को लेकर ये लोग अनुसंधानों में अच्छा कर सकते हैं. संगीत, नृत्य या गणित जैसे विषयों में अच्छा काम मिल सकता है. आत्मविश्वास और दूसरों की सेवा करने की प्रवृत्ति भी इनके काम को प्रभावित करने वाली होती है. ये लोग ऎसे काम जिनमें साहस की क्षमता देखने को मिलती है उस पर काफी अच्छा प्रयास कर सकते हैं. डॉक्टर या सर्जन बनने की भी इनमें अच्छी योग्यता होती है. पानी से संबंधित अन्य क्षेत्रों में अवसर मिल सकते हैं.  इसके अतिरिक्त, इस लग्न वालों के लिए भूमि से संबंधित कामों में भी अच्छे अवसर होते हैं. 

धनु लग्न 

धनु लग्न वालों के लिए ऎसे कार्य अच्छे रहते हैं जो ज्ञान का विस्तार करते हों या फिर एकाग्रता से संबंध रखते हैं. इन लोगों के लिए अध्यात्म से संबंधित सभी काम बेहतर होते हैं. इन चीजों में लोगों के समक्ष गुरु की भूमिका में भी संस्थान को चला सकते हैं. शिक्षा या विज्ञान में ये लोग अच्छा कर सकते हैं. दयालु, परोपकारी प्रवृति को होने के कारण इसी एन जी ओ के काम में भी इनकी भूमिका बेहतर हो सकती है. कला और ज्ञान में गहरी रुचि रखते हैं. धर्म, शिक्षा या विज्ञान का मार्ग अक्सर प्रसिद्धि और समृद्धि की ओर ले जाता है. बृहस्पति इस लग्न का स्वामी होता है और उसके प्रभाव से ही ये लोग धार्मिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं. धनु लग्न व्यक्ति को एक अच्छा परामर्शदाता, उपदेशक और वित्तीय प्रबंधन, साहित्य और दर्शन से संबंधित क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्रदान कर सकता है.

मकर लग्न 

मकर लग्न वालों में व्यावहारिकता, कड़ी मेहनत करने का अच्छा जुनून दिखाई देता है. धैर्य इनके भीतर धीरे धीरे आगे ले जाने का काम करता है. चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को सफलतापूर्वक कर लेने में बेहतर होते हैं. इस लग्न वालों के लिए कृषि, उत्पादन, खनिज और भूमि से संबंधित व्यवसायों में कम करने के अच्छे मौके मिल सकते हैं. यह कार्य क्षेत्र में बेहतर सफलता को दिलाने के लिए सहायक होता है. कुछ मामलों में इनके अपने करियर में अगर अवसाद या निराशा की भावनाओं का अनुभव हो तब स्थिति इनके लिए परेशानी का सबब हो सकती है. ये लोग शेयर मार्किट, एलआईसी से जुड़े काम में भी अच्छा कर पाने में सक्षम होते हैं. 

कुंभ राशि

कुम्भ लग्न के लोगों के लिए बौद्धिक प्रवृत्ति वाले काम बेहतरीन हो सकते हैं. कुंभ राशि के स्वामी शनि का प्रभाव इंजीनियरिंग, पुरातन वस्तुओं के कार्य, आयात निर्यात, सेवा विभाग, मजदूर वर्ग से जुड़ने वाले काम, संपत्ति एवं लेखन में पहचान दिलाने में सहायक बनते हैं.  इसके अलावा शनि व्यक्ति को मशीनरी से संबंधित व्यवसाय में भी अच्छी प्लेसमेंट दे सकता है. यह लोग अपनी खोजी प्रवृती एवं उन्मुक्त व्यवहार के चलते विद्वान और दार्शनिक के रूप में उत्कृष्ट हो सकते हैं और इंजीनियरिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में अच्छा काम कर सकते हैं. 

मीन राशि

मीन लग्न के पर बृहस्पति का असर होता है. इस लग्न के लोगों में कोमलता एवं भावनात्मक गुण भी अधिक होता है. ऎसे में यह लोग समाज कल्याण से जुड़े कामों में करियर को अपना सकते हैं. परिवहन, स्वास्थ्य सेवा और आतिथ्य उद्योग से संबंधित करियर में भी काम कर सकते हैं. सिनेमा, मनोरंजन, अभिनय, मॉडलिंग और कॉस्मेटिक उत्पादों में व्यवसाय कर सकते हैं. बृहस्पति का प्रभाव इन्हें शिक्षक, प्रोफेसर, लेखक, पत्रकार और आयात-निर्यात व्यवसायों में करियर के अवसर देता है. 

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कुंडली के ये ग्रह बन सकते हैं कर्ज का कारक

जीवन में धन की स्थिति को लेकर हर कोई किसी न किसी रुप में प्रयासरत देखा जा सकता है. आर्थिक प्रगति की इच्छा सभी के भीतर मौजूद रहती है. लेकिन हर कोई एक जैसी स्थिति को नहीं पाता है. कहीं धन की कमी इतनी बनी रहती है कि व्यक्ति कर्ज लेने के लिए मजबूत रहता है. वहीं को यदि कर्ज लेता भी है तो उसे चुका लेने में सक्षम होता है. पर कुछ मामलों में कर्ज से मुक्त हो पाना असंभव सा रहता है. कई बार तो यह स्थिति पीढ़ियों पर भी अपना असर डने वाली होती है. 

बहुत से लोग जन्म कुंडली के विभिन्न भावों में सकारात्मक ग्रहों को पाकर सुख महसूस करते हैं. वहीं कुछ लोग नकारात्मक ग्रहों को के कारण निराशा को पाते हैं  होने लगते हैं.  इसके अलावा पूर्व जन्मों के कार्य भी आपके आने वाले कार्यों का परिणाम होते हैं. कुंडली में पिछले जीवन के कर्मों से धन लाभ के संकेत मिल सकते हैं. नकारात्मक ग्रह वर्तमान जीवन में कष्ट देते हैं लेकिन सुधार का अवसर देते हैं, जो पहले नहीं कर पाए थे. जन्म कुंडली के दूसरे, नौवें, दसवें और ग्यारहवें  भाव में कुछ अच्छे ग्रहों का योग वित्तीय लाभ देता है. इसलिए सबसे पहले ग्रह और भाव पर ध्यान देना जरुरी है साथ ही धन हानि से जुड़े योगों पर नजर बनाकर रखनी भी जरुरी है. 

कुंडली में कर्ज धन हानि से संबंधित भाव ग्रह 

जन्म कुंडली में दूसरा भाव, ग्यारहवां भाव और इसके स्वामी धन की स्थिति के मुख्य वाहक बनते हैं. चंद्रमा और बृहस्पति जो धन का कारक होता इन पर अष्टमेश का नकारात्मक प्रभाव गरीबी, अचानक वित्तीय असफलताओं, दिवालियापन, कमाई में रुकावट, आय में बाधा, मुकदमेबाजी, दुर्घटना आदि के माध्यम से वित्तीय समस्याएं दे सकता है. 

दूसरे भाव, ग्यारहवें भाव और इनके स्वामी. इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति पर छठे भाव के स्वामी स्वामी का नकारात्मक प्रभाव होने से विवादों, बीमारियों, चोटों, दुश्मनों के माध्यम से कर्ज एवं वित्तीय समस्याएं जीवन पर असर डालने वाली होती हैं. चोरी, आग, धोखाधड़ी, मुकदमेबाजी आदि के माध्यम से व्यक्ति को आर्थिक नुकसान हो सकता है. .

छठा भाव पीड़ित होने के कारण व्यक्ति को भारी कर्ज देने वाला हो सकता है. व्यक्ति अनेक प्रकार के बिलों पर भुगतान के चलते बड़ी धनराशि खर्च कर सकता है. 

दूसरे भाव ग्यारहवें भाव, दूसरे भाव के स्वामी या एकादश भाव के स्वामी पर बारहवें भाव का या इसके स्वामी का असर, इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति पर बारहवें भाव के स्वामी का नकारात्मक प्रभाव भारी वित्तीय नुकसान, अत्यधिक व्यय, पैसे बचाने में असमर्थता या अस्पताल में भर्ती होने और कारावास के माध्यम से वित्तीय समस्याएं दे सकता है.

जन्म कुंडली में ग्रह हमारे जीवन के बारे में छोटी से छोटी जानकारी का संकेत देते हैं. हम जिस ग्रहों की स्थिति के साथ पैदा हुए हैं, जिसे ज्योतिष में योग कहा जाता है, वह जीवन में हमारी संपत्ति, रिश्ते, आशीर्वाद और दुखों का प्रभाव हमें बताते हैं. इससे बनने वाले ज्योतिषीय योग हमारे जीवन में शुभ या अशुभ का वादा करते हैं.  यदि धन योग अच्छा है तो उस स्थिति में जीवन में कितना धन और संपत्ति प्राप्त होगी इसका एक बेहतर परिणाम गणना द्वारा सामने लाया जा सकता है. 

ग्रहों का योग व्यक्ति के कर्मों के परिणामों को फलित करने के लिए भी होता है. इसी के द्वारा अच्छे या बुरे योग भी बनते हैं. जन्म कुंडली में धन देखने के लिए सबसे पहले कुंडली में धन योग का होना आवश्यक है. हर कोई धन योग के साथ पैदा नहीं होता है, लेकिन जिसके पास भी है, वह निश्चित रूप से जीवन में अपार धन अर्जित करेगा. ज्योतिष ग्रंथों में बताए अनुसार धन के विशिष्ट घर होते हैं. ये मुख्य रूप से जन्म कुंडली के दूसरे और ग्यारहवें भाव से देखे जाते हैं. यह भाव निश्चित रूप से धन के आगमन को दर्शाते हैं, लेकिन धन हानि के लिए इन भावों का सूक्ष्म अध्ययन ही हमारे लिए काफी सटीक बन पाता है. यदि धन का का योग खर्च में अधिक हो तो ऎसे में  हानि, निवेश में घाटा, चोरी आदि के संदर्भ में धन की स्थिति को कमजोर करने वाले भावों को जान लेना जरुरी होता है. 

कौन से ग्रह देते हैं धन हानि

कर्ज या धन हानि का कारण कुछ विशेष ग्रहों की स्थिति के कारण पड़ता है. 

राहु धोखाधड़ी, लालच, वासना, अतिभोग और सट्टेबाजी की प्रवृत्ति के माध्यम से वित्तीय समस्याएं दे सकता है. खराब राहु के कारण व्यक्ति को अकस्मात होने वाले जीवन के सबसे बुरे दुखों का सामना करना पड़ जाता है. यह स्थिति उस काम में अधिक होती है जो जोखिम भरे निवेशों से जुड़े होती है. राहु का प्रकोप चाहे वे एक समय के सबसे बड़े शेयर बाजार में दिखाई देता है, तथाकथित आध्यात्मिक गुरु, बड़े नौकरशाह और राजनेता कोई भी इसके प्रकोप से बचा नहीं है.

केतु एक अभौतिकवादी ग्रह है, इसलिए यह धन या आय के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकता है.

शनि गरीबी, बीमारी, कमाई में बाधा और गलत दिशा में प्रयास या गलत कर्म के माध्यम से वित्तीय नुकसान दे सकता है.

 कौन सा भाव कर्ज को दर्शाता है 

कर्ज को दर्शाने वाले भाव वही होते हैं जो धन की प्राप्ति में बाधा बनते हैं यह धन भाव और लाभ भाव के कमजोर होने के कारण भी हो सकता है. धन भाव का छठे भाव या बारहवें भाव के साथ संबंध होना भी आर्थिक स्थिति को कमजोर कर देने वाला होता है. कुंडली का दूसरा भाव व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और धन संचय करने की क्षमता को दर्शाता है. जीवन में कितना धन संचय करेंगे यह जन्म कुंडली के दूसरे भाव से पता चलता है. यह भी एक अर्थ त्रिकोण भाव है दूसरा, छठा भाव, दसवां भाव अर्थ त्रिकोण भाव होते हैं. इस प्रकार, यदि किसी कुंडली में द्वितीय भाव, द्वितीयेश और कारक बृहस्पति मजबूत स्थिति में हों तो यह भाव जातक को आर्थिक समृद्धि प्रदान करता है.

एकादश भाव व्यक्ति की आय का मुख्य भाव होता है. जन्म कुंडली में ग्यारहवां भाव जीवन में लाभ या लाभ के विभिन्न स्रोतों को दर्शाता है. यह मनोकामना पूर्ति का भाव स्थान होता है. ऎसे में इस भाव का शुभ होना सभी इच्छाओं को पूरा कर सकता है. जन्म कुंडली में नौवें घर को लक्ष्मी स्थान या देवी लक्ष्मी का स्थान कहा जाता है. ज्योतिष में पंचम और नवम भाव को लक्ष्मी स्थान कहा जाता है. नौवें घर को भाग्य का भाव भी कहा जाता है क्योंकि यह जीवन में भाग्य के बारे में जानकारी देता है. जीवन में धन संचय और आर्थिक समृद्धि में भाग्य अहम भूमिका निभाता है. इस प्रकार, यदि नवम भाव, नवमेश और कारक बृहस्पति मजबूत स्थिति में हैं, तो वे जीवन में लाभ और समृद्धि प्रदान कर सकता है. 

दशम भाव हमारे कर्म और कार्यक्षेत्र के बारे में जानकारी देता है. कौन सा कार्य हमें धन लाभ या धन लाभ देगा? यह भाव इस जानकारी को इंगित करता है. इसके अलावा नवम भाव हमारी कड़ी मेहनत और उससे मिली पहचान को भी दर्शाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति को प्राप्त उच्च पद, सम्मान, मान्यता और प्रसिद्धि के लिए नवम भाव देखा जाता है. इस प्रकार, यह भाव किसी के जीवन में वित्तीय लाभ निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अब इन सभी भावों के द्वारा व्यक्ति के कर्ज की स्थिति का भी बोध होता है. 

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शुक्र का शुभ या अशुभ प्रभाव कैसे करता है आपको प्रभावित

कुंडली में मौजूद आपके लिए शुभ है या अशुभ इस बात को जानने के लिए जरुरी है की, इसके द्वारा मिलने वाले प्रभावों को समझ लिया जाए. शुक्र के कारक तत्वों की प्राप्ति जीवन में किस रुप में होती है उसके द्वारा इस बात को जान पाना संभव है की शुक्र की स्थिति हमारी कुंडली में अच्छे है या फिर परेशानी का कारण बन रही है. वैदिक ज्योतिष में शुक्र का असर सुखों की अनुभूति देने वाला होता है. वैवाहिक और यौन जीवन का सुख मिलना इसके शुभ होने का संकेत होता है, जीवनसाथी के साथ संबंध और उनकी उपस्थिति, व्यवहार, महिलाओं के साथ संबंध, बेटियों, भोजन और पेय पदार्थों का स्वाद, आराम, जीवन शैली, ग्लैमर जैसी चीजों पर शुक्र का ही प्रभाव सबसे अधिक दिखाई देता है. 

शुक्र का ज्योतिष प्रभाव 

शुक्र प्रत्येक राशि में लगभग एक माह तक रहता है.  एक राशि चक्र को पूरा करने में लगभग एक वर्ष लगाता है. शुक्र अपने गति में वक्री एवं मार्गी भी होता है. अस्त एवं उदय भी होता है इसी प्रकार कई तरह से वह अपनी स्थिति में बदलाव को दिखाता है. सामान्य तौर पर, शुक्र और वृष के लिए यह अत्यंत शुभ होता है क्योंकि यह इसकी राशियां होती हैं. इसके अलावा मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ राशियों पर भी इसका असर अनुकूल परिणाम देने वाला माना गया है. इसके अलग अन्य राशियों में इसकी स्थिति कुछ कमजोर असर दिखाने वाली हो सकती है.

कुंडली में शुक्र ग्रह के शुभ और अशुभ 

कुंडली में यदि शुक्र शुभ हो तो उसके असर का प्रभाव आपएक जीवन को पूर्ण रुप से बदल सकता है. जीवन में व्यक्ति सुखों को पाने में सक्षम होता है. शुक्र के शुभ फलों की स्थिति तब प्राप्त होती है जब कुंडली में शुक्र एक अच्छी स्थिति में होता है. शुक्र का स्वराशिगत होकर शुभ भाव स्थानों में होना. शुभ ग्रहों के द्वारा इस पर दृष्टि या प्रभाव हो, वर्ग कुंडली में शुक्र की स्थिति शुभ हो तब शुक्र से मिलने वाले कारक तत्वों बेहतरीन रुप से जीवन में शुभता का संचार करने वाले होते हैं. 

शुक्र के कारक तत्वों में मुख्य बात विलासितापूर्ण जीवनशैली का होना है. जब शुक्र शुभ हो तो व्यक्ति को ऎसा जीवन आसानी से प्राप्त होता है. वह धनवान लोगों की श्रेणी में होता है. उसके पास हर प्रकार की वैभवशाली चीजें होती हैं और उन्हें भोगने की उसकी प्रवृत्ति भी अत्यंत शुभ होती है.  टेलीविजन सितारे, कलाकार, मॉडल, फैशन डिजाइनर, बुद्धिजीवी जो अपने भाषण या लेखन से समाज को प्रभावित करते हैं, करिश्माई राजनेता, शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव से ही होते हैं. इन लोगों एवं इनसे जुड़े लोगों की कुंडली शुक्र की स्थिति ही इस जगह इन्हें ले जाती है. 

शुक्र भी ज्ञान को देने वाल ग्रह है, इसका असर व्यक्ति को ऎसी चीजों में रुझान देता है जो बदलाव और नवीनता को अपनाने के लिए आगे रखे. व्यक्ति का दिमाग तेज़ होता है और वे सामान्य से अधिक तेज़ सोच सकते हैं. परिपक्व निर्णय, सहजता का गुण इनमें शुक्र की शुभता के द्वारा ही प्राप्त होता है. 

स्वाद की यदि अनुभूति देखें तो यह शुक्र के शुभ होने पर ही मिल सकती है. एक शुभ शुक्र का असर व्यक्ति को सबसे अच्छे स्वाद की प्राप्ति कराने वाला होता है. व्यक्ति खान पान का शौकिन होगा और उसमें भी उसे सबसे अच्छी चीजों की ही प्राप्ति होती है. जीवन में हर चीज़ का स्वाद चखने वाला होता है लेकिन किसी भी चीज़ की लत उसे प्रभावित नहीं करती है. शुक्र अगर पीड़ित होगा तब ही वह व्यक्ति को लत से प्रभावित करने वाला होता है. अन्यथा शुक्र शुक्र अनुभव देगा लेकिन उनके पीछे भागने की ललक से बचाता है. 

शुक्र की शुभता का असर व्यक्ति को अपने अनुसार जीने की क्षमता प्रदान करता है. कुछ लोग अपने कार्य में स्वयं को लेकर ही जवाबदेही करना पसंद करते हैं.चीजों को खोजने को लेकर उत्साह होता है,  प्राचीन आभूषण, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स चीजों को एकत्र करना पसंद करते हैं. उन्हें छोटी-छोटी बातों की परवाह नहीं होती जैसे शादियों में शामिल होना, दोस्तों और रिश्तेदारों को उनके जन्मदिन पर बधाई देना, सालगिरह याद करना आदि.

चीजों उनके लिए बहुत अधिक महत्व न रखें. दूसरों के अनुसार ढल पाना मुश्किल होता है. अपनी छाप हर ओर छोड़ते चले जाते हैं. जीवनसाथी और बच्चे उन्हें न तो समझ सकते हैं और न ही नियंत्रित कर सकते हैं. वह खुद के मालिक होते हैं तथा अपनी शर्तों पर जीवन जीना पसंद करते हैं. 

कुछ ही ग्लैमरस बाबा या गुरु बनेंगे जिनके पास कोई आध्यात्मिक शक्ति नहीं है लेकिन वे अपने भाषणों से लाखों लोगों को आश्वस्त कर सकते हैं. जब तक वे विवाहेतर संबंधों में नहीं पड़ेंगे, उनकी जीवनशैली और व्यावसायिक सफलता अच्छी रहेगी. इनमें नैतिक मूल्यों, ईमानदारी आदि की कमी हो सकती है, फिर भी स्थिति आने पर वे नैतिकता के लिए आदर्श भी सिद्ध होते हैं. 

कुंडली में शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभाव

कुंडली में अशुभ शुक्र की स्थिति तब निर्मित होती है जब वह कुंडली में कमजोर होता है. इस स्थिति के कई कारण हो सकते हैं. शुक्र कुंडली में नीच स्थिति में होने पर खराब फल दे सकता है. शुक्र का पाप ग्रहों के साथ युति या दृष्टि संयोग, शुक्र का खरब भाव स्थानों पर बैठना एवं वर्ग कुंडली में शुक्र की खराब स्थिति ही शुक्र के अशुभ फलों को प्रदान करने वाली होती है. 

शुक्र जब कुंडली में खराब होता है तो इसके घातक प्रभाव जीवन पर पड़ सकते हैं. इसके द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में सुखों की कमी सबसे अधिक परेशान करने वाली हो सकती है. 

शुक्र के कुंडली में यदि कन्या राशि में होता है तो इसके कारण शुक्र के नीच फल व्यक्ति को प्राप्त होते हैं शुक्र का राहु केतु जैसे पाप ग्रहों के साथ होना अपराध जगत और गंभीर रोगों का असर देने वाला हो सकता है. 

व्यक्ति को अपने जीवन में चाहे आरामदायक वस्तुएं प्राप्त हों लेकिन उनका उपभोग करना उसके लिए मुश्किल होता है. वह अपने आस पास की चीजों को पाने में असमर्थ हो सकता है. किसी बड़े घटनाक्रम में वह अचानक सारी से पैतृक संपत्ति खो सकता है. दीवालिया होने जैसी घटना शुक्र के अशुभ फल का कारण बनती है. 

शुक्र का कमजोर होना व्यक्ति को रचनात्मक क्षेत्र में अच्छी सफलता नहीं दिलवा पाता है. व्यक्ति खेल, साहित्य या किसी रचनात्मक क्षेत्र में कौशल हासिल कर लेता है लेकिन यह लंबे समय तक उपयोगी नहीं होता है. संघर्ष की स्थिति जीवन में बनी रहती है. 

व्यक्ति नौकरी में तो अच्छा कर पाता है लेकिन जब बात आती है बिजनेस कि तो उस स्थिति में वह कामयाबी के लिए तरस सकता है. व्यक्ति को दूसरों का सहयोग नहीं मिल पाता है. 

शुक्र का कमजोर होना व्यक्ति के भावनात्मक पक्ष को भी कई बार कमजोर कर देने वाला होता है. आलस्य, अनुशासन की कमी, व्यसनों की ओर झुकाव व्यक्ति में बना रहता है. अशुभ शुक्र व्यक्ति को गंभीर लत के परिणामों से प्रभावित कर सकता है. किसी चीज को शौक किया होगा लेकिन उसे छोड़ पाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता है. 

 शुक्र का अशुभ होना व्यक्ति को यौन संक्रमण जैसे रोगों से जल्द प्रभावित करता है. कैंसर, शुगर, संक्रमण से होने वाले रोग, एडस जैसी बीमारी भी शुक्र के अशुभ होने के कारण हो सकती है. 

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कुंडली मे शनि के कमज़ोर होने झेलनी पड़ सकती है ये परेशानियां

ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह की स्थिति अत्यंत ही विशिष्ट मानी गई है. शनि हमारे जीवन के अधिकांश भाग पर अपने असर दिखाता है. अन्य सभी ग्रहों से अधिक शनि का प्रभाव हम सभी के जीवन पर अधिक पड़ता है. शनि की दशा हो या उसकी साढ़ेसाती, गोचर की स्थिति सभी कुछ जब भी जिस भी समय व्यक्ति को प्रभावित करती हैं तभी इनका असर हम पर अधिक पड़ता है. 

शनि एक धीमी गति का ग्रह है और महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. यह किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है, और इसकी ताकत या कमजोरी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि कमजोर होता है, तो यह चुनौतियां और अवसर दोनों पैदा कर सकता है. कमजोर शनि के अर्थों को समझने के लिए इसकी कुंडली में स्थिति को समझना जरुरी और साथ में अन्य अर्थों का पता लगाने की जरुरत होती है. जब कोई ग्रह अपना असर नहीं दे पाता है तो इसके पीछे कई सारी बातें काम कर सकती है. जब शनि कम प्रभाव डालता है तो जीवन में कई तरह के परिणामों की उम्मीद कर सकता है.

राशि चक्र का कर्म गुरु है शनि 

शनि ग्रह को राशि चक्र में कर्म का प्रधान माना जाता है.  इस कारण से इस ग्रह को एक टास्क मास्टर के रुप में भी नाम दिया जाता है. शनि एक ऎसा ग्रह है जो जीवन में होने वाले बदलावों के केन्द्र में रहता है.इसके कारण ही अनुशासन, जिम्मेदारी और जीवन के अच्छे बुरे अनुभवों को व्यक्ति करीब से जान पाता है. ज्योतिष में, शनि कर्म प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है, जो किसी के पिछले कार्यों के परिणामों को दर्शाता है. यह पूर्व और वर्तमान जन्मों की कर्म अवधारणा का केन्द्र है. जब शनि मजबूत होता है, तो यह धैर्य, दृढ़ता और लचीलेपन के साथ चुनौतियों का सामना करने की क्षमता जैसे गुण प्रदान करता है. कमजोर शनि जीवन के विभिन्न पहलुओं में बाधाएं उत्पन्न कर सकता है. यह जीवन में उन चीजों की कमी को मुख्य रुप से सामने ला देता है जो जीवन के आगे बढ़ने के लिए बेहद जरुरी रही होगी. व्यक्ति लापरवाही के कारण ही अपने अच्छे मौकों को गवां देता है और फिर पश्चाताप के अलावा उसके पास कुछ नहीं होता है. 

करियर और व्यावसायिक जीवन में चुनौतियाँ

कमजोर शनि करियर और व्यापार के जीवन में कठिनाइयों का कारण बन सकता है. व्यक्तियों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधाओं का अनुभव हो सकता है और अपने काम में किए जाने वाले प्रयासों में असफलताओं का सामना करना पड़ सकता है. यह किसी की कड़ी मेहनत और कौशल के लिए मान्यता और सराहना की कमी भी पैदा कर सकता है. ऐसे व्यक्तियों को कॉर्पोरेट सीढ़ी पर चढ़ना चुनौतीपूर्ण लग सकता है और करियर में उन्नति में देरी का अनुभव हो सकता है.

नौकरी में नीच का शनि आसानी से स्थिरता नहीं देता है. यहां कार्य क्षेत्र में कई तरह के व्यवधान तो होते ही हैं साथ ही कुछ गलत कार्यों का असर भी कर्म क्षेत्र को प्रभावित करने वाला होता है. जमाखौरी, काम में लापरवाही, नौकरों के साथ विवाद, व्यर्थ की हानि जैसी बातें व्यक्ति को परेशान कर सकती है. नौकरी में व्यक्ति अपने अधिकारियों के साथ बेहतर ताल मेल को पाने में कमजोर होता है. वह अपने आस पास के लोगों की राजनीति से भी जल्द ही प्रभावित होता है. 

आर्थिक स्थिति को लेकर संघर्ष रहता है

शनि के कमजोर होने पर वित्तीय स्थिरता एक गंभीर चिंता का विषय हो सकती है. धन की बचत कर पाना उसे लेकर अधिक लाभ पाना जैसी बातें परेशानी अधिक दे सकती हैं. वित्त प्रबंधन के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ सकता है. धन का संयोजन कर पाना कठिन ही रहता है. व्यक्तियों को अप्रत्याशित खर्च या वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. कई बार निवेश से अनुकूल परिणाम नहीं मिल पाते हैं. इसके अलावा गलत रुप से निवेश की स्थिति भी चिंता को बढ़ा देने वाली होती है. वित्तीय असुरक्षा की भावना व्याप्त हो सकती है इसके अलावा जीवन में दूसरों से कर्ज लेने की स्थिति भी व्यक्ति पर असर डालने वाली होती है.

सेवा भाव की कमी 

शनि जब कमजोर होता है तो व्यक्ति को कार्यों में लापरवक़ह बना सकता है. अपनी जिम्मेदारियों को लेकर वह अनभिज्ञ रह सकता है. वह दूसरों को अपने काम दे सकता है. सेवा भाव जैसे काम वह आसानी से नहीं कर पाता है. उसके भीतर अहम की भावना भी अधिक रह सकती है. कार्यों से छुटकारा पाने की प्रवृत्ति में उसमें हो सकती है.

रिश्तों और परिवार पर प्रभाव

कमजोर शनि व्यक्तिगत संबंधों और पारिवारिक सुख की कमी को भी दिखा सकता है. यह आपसी रिश्तों में अविश्वास को पैदा कर सकता है. गर्मजोशी की कमी रह सकती है. अपनों की उपेक्षा उसके लिए परेशानी का सबब देने वाली होती है. व्यक्तियों को परिवार के सदस्यों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे बार-बार झगड़े और गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं. भावनात्मक अलगाव की भावना हो सकती है, जिससे सार्थक संबंध बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

स्वास्थ्य विकार और लंबे समय के रोग का असर

जन्म कुंडली में शनि के कमजोर होने पर स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं परेशानी देती हैं. स्नायु तंत्र से जुड़ी समस्या अधिक रह सकती है. इसके कारण वात की समस्या भी शरिर को लम्बे समय तक प्रभावित करने वाली होती है. शनि का नीच का प्रभाव व्यक्ति को ऎसे रोग देता है जो लम्बे समय तक प्रभाव डालते हैं. एक प्रकार से लाइलाज बिमारियां इस के कारण अधिक प्रभावित दिखाई दे सकती हैं. व्यक्ति पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो सकता है. मानसिक रुप से चिंता उसे छोड़ नहीं पाती है. ठीक होने में देरी का अनुभव कर सकते हैं. ऐसे व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी भलाई पर अतिरिक्त ध्यान दें और संभावित स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने के लिए स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं.

शनि का प्रभाव मनोवैज्ञानिक क्षेत्र तक भी फैला हुआ है. जब शनि कमजोर होता है, तो व्यक्ति को आत्म-संदेह, चिंता और अवसाद की भावना का अनुभव हो सकता है. व्यक्ति को तनाव से निपटने में कठिनाई हो सकती है.  आत्मविश्वास की कमी हो सकती है. इन चुनौतीपूर्ण भावनाओं से निपटने के लिए परामर्श या सहायता लेना फायदेमंद हो सकता है.

शनि जब भी कमजोर हो तो कई तरह की परेशानी जीवन में असर डालती है. नीच के शनि की दशा भी खराब फल देती है. शनि को अनुकूल बनाने के लिए जरुरी है कि उसके लिए उपायों को अवश्य किया जाए. शनि मंत्रों का जाप करना सबसे उत्तम उपायों में से एक काम होता है. 

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शेयर मार्केट का ज्योतिष द्वारा विश्लेषण

धनार्जन से जुड़े कई कार्य जीवन में दिखाई देते हैं लेकिन जब बात आती है अचानक से मिलने वाली सफलता तो उसमें शेयर बाजार का नाम सबसे आगे रहता है. बड़े रिस्क से जुड़ी मार्किट का विश्लेषण करें तो इसमें ज्योतिष अनुसार इसमें सफलता के कई मापदंड काम करते हैं. शेयर बाजार में निवेश धन का निर्माण करना आकर्षक अवसर हो सकता है, लेकिन इसमें जोखिम भी होता है. यदि आप खुद को अनिश्चित पाते हैं कि शेयर बाजार में निवेश करना चाहिए या नहीं, तो ज्योतिषीय जानकारी प्राप्त करना एक अतिरिक्त सहायक मार्गदर्शन के रुप में काम कर सकता है. शेयर बाजार में निवेश के मामले में ज्योतिष किस प्रकार मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है. यह ज्योतिषीय कारकों पर विचार करके तथा ग्रहों की स्थिति एवं गोचर का असर इस पर असर डालता है.   

ज्योतिष अनुसार निवेश का निर्णय 

ज्योतिष एक प्राचीन पद्धति है जो ग्रहों के प्रभावों और मानव जीवन पर उनके असर को बेहद गहरे रुप में दिखाती है. इनके अध्ययन द्वारा कई चीजों को समझ कर यदि कार्यों को किया जाए तो परिणामों की बेहतर रुप से अपेक्षा की जा सकती है.  जब आर्थिक लाभ एवं उससे संबंधित कार्यों को देखते हैं तो उसमें सही समय पर किए गए फैसले ही बेहतर परिणाम दिला सकते हैं. आर्थिक सुरक्षा का लाभ हम ज्योतिष अनुसार जान सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र वित्त सहित जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समय, संभावित अवसरों और चुनौतियों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है. जब निवेश निर्णयों की बात आती है, तो ज्योतिष ग्रहों की स्थिति, गोचर और किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली का विश्लेषण करके मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है. वित्तीय मामलों को प्रभावित करने वाले ज्योतिषीय कारकों को समझकर, आने वाले संभावित परिणामों की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं और अधिक जानकारीपूर्ण निर्णय ले सकते हैं.

शेयर मार्किट में कोई भी निवेश आसान नहीं होता है इसी जोखिम पूर्ण निवेश की उचित समझ को पाकर बेहतर निर्णय ले पाना संभव होगा.

शेयर मार्किट के लिए ज्योतिषीय कारक

शेयर मार्किट को समझने के लिए कुंडली में मौजूद कुछ मत्वपूर्ण ज्योतिषिय कारक, ग्रह एवं भाव स्थिति को समझने की जरुरत होती है. इस मामले में कुंडली के वह भाव मुख्य होते हैं जो धन की स्थिति के लिए देखे जाते हैं और इसके अलावा अचानक होने वाले परिणाम से जुड़े भाव तथा फैसला लेने की शक्ति का निर्णय लेने वाले भाव सभी मिलकर इस ओर अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं. कुंडली के मुख्य भाव एवं उनके स्वामियों का शेयर मार्किट की स्थिति को जानने की बेहतर दृष्टि देने वाला होता है. 

दूसरा भाव 

ज्योतिष के अनुसार कुंडली का दूसरा भाव धन का घर कहलाता है. वित्त और भौतिक संपत्ति को नियंत्रित करता है. दूसरे घर में ग्रहों और राशियों की स्थिति का विश्लेषण करने से वित्तीय स्थिति को समझा जा सकता है. धन संचय की क्षमता के बारे में जानकारी मिल सकती है. दूसरे घर में मजबूत और सहायक स्थिति शेयर बाजार में निवेश के लिए अनुकूल समय का संकेत दे सकती है. इस भाव की खराब स्थिति शेयर मार्किट से होने वाले घाटे का संकेत   देने वाली होती है. 

पंचम भाव

शेयर मार्किट के संदर्भ में पांचवां भाव भी बहुत महत्व रखता है. यह भाव अचानक होने वाले लाभ की प्राप्ति एवं निर्णय लेने की स्थिति पर असर डालता है. कुंडली का पंचम भाव व्यक्ति के फैसलों को बहुत अधिक प्रभावित करने वाला स्थान होता है. इस स्थान में मौजूद ग्रह एवं इस भाव का स्वामी यदि उपयुक्त रुप से अष्टम के साथ संबंध में हैं तो व्यक्ति के लिए शेयर मार्किट में लाभ पाने की अच्छी संभावनाएं भी प्राप्त होती हैं. 

एकादश भाव

यह भाव लाभ का स्थान होता है. जीवन में मिलने वाले लाभ की स्थिति कैसी होगी होगी कम या अधिक लाभ हमें किस रुप में मिलेगा इसके लिए यह भाव अपना विशेष स्थान रखता है. 

अष्टम भाव 

अष्टम भाव जीवन में होने वाली अचनक घटनाओं का केन्द्र स्थान होता है. इस भाव की भूमिका का शेयर मार्किट पर गहरा असर दिखाई देता है. शेयर मार्किट जोखिम और अप्रत्याशित परिणाम को दर्शाता है ओर इस भाव के साथ मिलकर शेयर मार्किट के जोखिम को समझ पाना संभव होता है. यदि कुण्डली में अष्टम भाव पंचम लाभ इत्यादि भावों के साथ अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति अपने जीवन में शेयर मार्किट का लाभ जरूर पाता है. यदि दशम का संबंध इस भाव से हो और राहु बुध की स्थिति भी साथ हो तो व्यक्ति शेयर मार्किट में काम करने वाला भी हो सकता है. 

ग्रहों का शेयर मार्किट पर असर 

बृहस्पति ग्रह – बृहस्पति विस्तार, अधिकता और वित्तीय विकास से जुड़ा ग्रह है. जन्म कुंडली में इसकी स्थिति और इसका वर्तमान गोचर पर प्रभाव . मिलने वाले संभावित वित्तीय अवसरों और लाभ के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है. बृहस्पति की अनुकूल दृष्टि शेयर बाजार में निवेश पर विचार करने के लिए अनुकूल समय का संकेत दे सकती है. बृहस्पति का वक्री अस्त या पाप प्रभावित होना मुश्किलों को दर्शाता है. यह निवेश में परेशानी या घाटे की स्थिति भी दे सकता है.

शनि ग्रह – शनि ग्रह की स्थिति दीर्घकालिक परिणामों, अनुशासन, जिम्मेदारी पर असर डालने वाला होता है. इसका स्थान और गोचर जोखिम सहनशीलता के स्तर और वित्तीय मामलों में स्थिरता की आवश्यकता पर असर डाल सकता है. शनि के प्रभाव का विश्लेषण करने से यह निर्धारित करने में मदद मिल सकती है कि शेयर बाजार में निवेश दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप हो सकता है या नहीं.

बुध ग्रह – बुध संचार, बुद्धि और विश्लेषणात्मक सोच का प्रतिनिधित्व करता है. इसका प्रभाव सूचित निवेश निर्णय लेने और बाजार के रुझान का आकलन करने की आपकी क्षमता का संकेत दे सकता है. बुध की मजबूत स्थिति और अनुकूल पहलू शेयर बाजार के प्रति स्वाभाविक झुकाव और अच्छे वित्तीय विकल्प चुनने की क्षमता का संकेत दे सकते हैं.

इस प्रकार ग्रहों के गोचर की स्थिति तथा ग्रहों का वक्री मार्गी होने का असर भी शेयर मार्किट को गंभीर रुप से प्रभावित करने वाला होता है. 

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हायर एजुकेशन के बारे में जानें अपनी कुंडली से

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की इच्छा किसी छात्र के मन में बहुत अधिक देखने को मिल सकती है तो कई बार हम अपने करियर को बेहतर बनाए के लिए भी उच्च शिक्षा की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. आप अपने जीवन में शिक्षा का कौन सा स्तर पाने में सफल रह सकते हैं. जीवन में उच्च शिक्षा आपको मिल सकती है या नहीं इन बातों का विश्लेष्ण ज्योतिष के द्वारा काफी बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 

उच्च शिक्षा से संबंधित भाव और ग्रह 

जन्म कुंडली में मौजूद कुछ भाव विशेष उच्च शिक्षा के लिए मुख्य रुप से देखे जाते हैं. इस में कुंडली का पांचवां भाव, चतुर्थ भाव, नौवां भाव, दसवां भाव अत्यंत जरुर होते हैं. यह भाव विशेष के अलावा शिक्षा देश में होगी या विदेश में तो उसके लिए द्वादश भाव की स्थिति पर भी ध्यान देने जरुरी होता है. उच्च शिक्षा की खोज में, छात्र अक्सर अपनी शैक्षणिक सफलता को पाने के लिए उचित मार्गदर्शन और अंतर्दृष्टि को चाहते हैं. उच्च शिक्षा को पता लगाने में ज्योतिष बेहतर सहायक रुप में उभर सकता है. 

पांचवां भाव और उच्च शिक्षा 

वैदिक ज्योतिष में, जब शिक्षा की बात आती है तो जन्म कुंडली का पंचम भाव महत्वपूर्ण होता है. इस भाव स्थान से व्यक्ति की बुद्धि, रचनात्मकता और शैक्षणिक गतिविधियों को समझ पाना आसान होता है. पंचम भाव व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताओं, सीखने की क्षमता और उच्च अध्ययन के प्रति झुकाव के बारे में उसे बेहतर समझ प्रदान करने वाला स्थान होता है. 

एक मजबूत और अच्छी तरह से स्थिति में पंचम भाव शिक्षा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण देने में सहायक बनता है. ज्ञान प्राप्त करने में गहरी रुचि का संकेत इस भाव की शुभता देने वाली होती है. इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. 

नवम भाव और उच्च शिक्षा 

नौवां घर उच्च शिक्षा, आध्यात्मिकता और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. यह विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और उच्च शिक्षा संस्थानों का प्रतीक है. नवम भाव व्यक्ति की दार्शनिक और बौद्धिक गतिविधियों में रुचि को भी दर्शाता है. सकारात्मक ग्रहों के प्रभाव के साथ एक अच्छी स्थिति वाला नवम भाव उच्च शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल और ज्ञान की प्यास का संकेत देता है. नवम भाव पर सकारात्मक ग्रहों का प्रभाव, विशेष रूप से इस भाव स्थान में बृहस्पति या बुध जैसे शुभ ग्रहों का होना. व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताओं को बढ़ा सकता है. 

 उच्च शिक्षा के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकता है. इन शुभ ग्रहों के शुभ स्थान पर होने से व्यक्तियों में तेज़ दिमाग, विश्लेषणात्मक कौशल और गहरी शिक्षा की प्यास हो सकती है.नवम भाव अकेले किसी की शैक्षिक यात्रा की संपूर्णता का निर्धारण नहीं करता है. उच्च शिक्षा में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अन्य भावों का प्रभाव भी इसमे शामिल होना चाहिए. इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. 

चतुर्थ भाव और उच्च शिक्षा 

कुंडली में चतुर्थ भाव को ज्ञान और बौद्धिक आधार का प्रतिनिधित्व माना जाता है. यह प्राथमिक शिक्षा, सीखने के माहौल और शैक्षणिक स्थिरता को इंगित करता है. एक अच्छी तरह से स्थित और सकारात्मक रूप से प्रभावित चौथा भाव एक मजबूत शैक्षिक नींव को रखने में सहायक होता है.  व्यक्ति के भीतर सीखने का हुनर पैदा करता है, उसे अच्छा माहौल दे सकता है. उच्च अध्ययन के लिए एक ठोस आधार का सुझाव दे सकता है. उदाहरण के लिए, एक अच्छी तरह से स्थित और सकारात्मक रूप से प्रभावित बुध, बुद्धि और सीखने का ग्रह, चतुर्थ भाव का स्वामी होकर यदि दशम में स्थिति हो तो वह व्यक्ति को असाधारण शैक्षणिक क्षमताओं को देने वाला तथा उच्च शिक्षा में सफलता दिलाने का संकेत दे सकता है.

इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. 

दसवां भाव और उच्च शिक्षा 

दसवां घर किसी के करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा को नियंत्रित करता है. इसका उच्च शिक्षा से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन एक मजबूत दसवां घर अध्ययन के चुने हुए क्षेत्र में सफलता का संकेत दे सकता है. दसवां भाव उच्च शिक्षा के माध्यम से कैरियर का बेहतर निर्माण करने का संयोग दिखाता है. इस भाव का स्वामी ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि यह ग्रह अच्छी तरह से कुंडली में बैठा हुआ है और सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है, तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में व्यक्ति की क्षमता को और मजबूत करता है. यदि दसवां भाव द्वादश भाव का संबंध पंचम भाव से बन जाए तो उच्च शिक्षा के साथ साथ करियर की स्थिति भी इसी के द्वारा मजबूती को पाने में सफल होती है.

ग्रह का असर ज्ञान अर्जित करने का समय

ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति के द्वारा शिक्षा सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उनके प्रभाव पर जोर देता है. माना जाता है कि कुछ ग्रह बौद्धिक क्षमताओं, एकाग्रता और सीखने के प्रति समग्र ग्रहणशीलता को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, जब संचार और बुद्धि से जुड़ा ग्रह बुध अच्छी दृष्टि में होता है, तो यह अध्ययन, सीखने और ज्ञान को प्राप्त करने के लिए अनुकूल समय का संकेत दे सकता है.

इसी प्रकार, बुद्धि और उच्च ज्ञान के ग्रह, बुध और बृहस्पति के बीच अनुकूल दृष्टि, एक अनुकूल शैक्षिक यात्रा का संकेत दे सकती है. दूसरी ओर, पाप ग्रह शिक्षा में बाधाएं या देरी पैदा कर सकते हैं. पांचवें घर पर अशुभ प्रभाव, जो बुद्धि और सीखने का प्रतिनिधित्व करता है, शैक्षणिक गतिविधियों में कठिनाइयां पैदा कर सकता है. शनि या राहु से जुड़े नकारात्मक प्रभाव अगर इस ओर दृष्टि देते हैं तो उच्च शिक्षा में असफलताओं या बाधाओं का कारण बन सकते हैं.

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ग्रहों की शक्ति के लिए नवांश का प्रभाव

ग्रहों की शक्ति कई तरह से हमारे समक्ष हम कई तरह के सूत्रों को उपयोग में लाते हैं. ग्रहों की शक्ति के लिए नवमांश कुंडली भी एक बेहद मजबूत सूत्र की तरह काम करता है. वैदिक ज्योतिष में अत्यधिक महत्व दिया गया है. प्रत्येक राशि 30 अंशों से बनी होती है और जब इसे 9 भागों में बांटा जाता है. प्रत्येक भाग को नवांश के रूप में जाना जाता है. मुख्य जन्म कुंडली या राशि चार्ट के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण कुंडली मानी जाती है.  नवमांश कुंडली की मदद से ग्रहों और  भावों की शक्ति को जाना जाता है. यह कुंडली व्यक्ति के संपूर्ण कार्यों पर असर डालती है और विशेष रुप से विवाह के सुख पर इसकी स्थिति अधिक प्रभावित करने वाली होती है. नवमांश का मतलब है राशि के नवम भाग से है. इसे D-9 चार्ट के नाम से भी जाना जाता है. कुंडली का 9वां घर धर्म का स्थान भी है. इस कारण से यह धर्मांश के नाम से भी जाना जाता है. इसका उपयोग हमारे जीवन विशेषकर करियर, विवाह, भाग्य के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए किया जाता है.

नवमांश चार्ट का ग्रह बल में महत्व 

नवांश  यह जन्म कुंडली हमारे जीवन के हर क्षेत्र के बारे में जानकारी देता है, यह स्वभाव , कार्य के प्रति हमारी प्रवृत्ति, करियर, विवाह, धन, भाग्य, स्वास्थ्य आदि पर अपना असर डालता है.   जीवन के सभी क्षेत्रों के बारे में जानकारी के लिए डिविजनल चार्ट बहुत सहायक होते हैं. इसी में नवांश कुंडली भी है. इसका निर्माण प्रत्येक राशि को 9 भागों में विभाजित करके किया जाता है.  नवांश लग्न 13-14 मिनट के अंतराल में बदल जाता है. नवांश का निर्माण मुख्य जन्म कुंडली से होता है. इसलिए यह वह परिणाम नहीं दे सकता जो मुख्य जन्म कुंडली में मौजूद नहीं है. जन्म कुंडली में कमजोर या अस्पष्ट संकेत होने पर यदि नवांश में उनका अच्छा प्रबल प्रभाव दिख रहा है तो चीजों के होने की संभावना होती है.   

नवांश गणना कैसे करें

हर राशि 30 डिग्री की होती है अतः नवांश की गणना के लिए 30 अंशों को 9 भागों में विभाजित करते हैं. ऎसा करने से प्रत्येक भाग 3 डिग्री 20 मिनट का हो जाता है. उदाहरण के लिए जन्म मेष लग्न में हुआ है और लग्न का अंश 10 डिग्री है. अब मेष राशि को 9 बराबर भागों में विभाजित करते हैं. तो मेष राशि का पहला 3 डिग्री 20 मिनट पहला नवांश होगा जो मेष राशि में ही होगा. 3 डिग्री 21 मिनट से 6 डिग्री 40 मिनट तक दूसरा नवांश होगा जो वृषभ है, 6 डिग्री 41 मिनट से 10 डिग्री तक तीसरा नवांश होगा जो मिथुन होगा. और इसी तरह. लग्न 10 डिग्री का मेष राशि में है, इसलिए मेष राशि की गणना मेष से होती है नवांश लग्न मिथुन होगा.

नवमांश लग्न कैसे पहचानें 

नवमांश कुंडली के प्रथम भाव को नवमांश लग्न या कारकांश लग्न के रूप में जाना जाता है. वैदिक ज्योतिष में नवांश का अर्थ है राशि चक्र का नौवां भाग. लग्न की डिग्री के अनुसार, नवांश लग्न या नवांश लग्न निर्धारित किया जाता है. नवमांश लग्न स्वामी का अर्थ है राशि स्वामी या उस राशि का स्वामी जहां नवमांश लग्न या नवमांश लग्न स्थित है. यह नवमांश कुंडली में प्रथम भाव का लग्न स्वामी या स्वामी है. उदाहरण के लिए आपका नवांश लग्न मेष है. मेष राशि का स्वामी मंगल है. अतः मंगल नवमांश लग्न स्वामी बन जाता है.

नवमांश कुंडली में ग्रहों के बल को देखने की स्थिति 

कुंडली में ग्रह की स्थिति जैसी भी हो वह नवांश कुंडली में किस भाव या किसी स्थिति में है इसके द्वारा ग्रह बल को समझ पाना और उसके फलों को जान पाना संभव होता है. यदि कोई ग्रह राशि कुंडली या मुख्य जन्म कुंडली में उच्च का है, लेकिन नवांश कुंडली में नीच का हो जाता है, तो यह अच्छा परिणाम देने में विफल रहता है. इसके विपरीत अगर नवमांश कुंडली में उच्च ग्रह स्वराशि या मित्र राशि में हों तो यह बहुत अच्छे परिणाम देता है. यहीम ग्रह के बल की उपयुक्त स्थिति का पता चल पाता है. हम कई बार ऎसे ग्रहों की दशा को पाते हैं जो कुंडली में उच्च के होते हैं लेकिन उनका असर उस रुप में नहीं मिल पाता है जैसा कि मिलना चाहिए. इस स्थिति में नवांश कुंडली में ग्रह खी स्थिति यदि नीच अवस्था की है या पाप ग्रहों से प्रभावित होती है तो ग्रह का बल कमजोर हो जाता है. 

नवंश कुंडली उच्च ग्रह और नीच ग्रह की शक्ति को समझने का एक विशेष तरीका है. जब कोई ग्रह उच्च का हो जाता है तो उसे बलवान माना जाता है. लेकिन उच्च ग्रह हमेशा अपेक्षित या वांछित परिणाम नहीं देते हैं. इसका कारण नवांश या अन्य मंडलीय कुंडली में इसकी कमज़ोरी है.

इसके अलावा उच्च ग्रह को शत्रु राशि पर नहीं होना चाहिए और नवांश कुंडली में अशुभ या शत्रु ग्रह से पीड़ित भी नहीं होना चाहिए. यदि कोई ग्रह राशि कुंडली में उच्च का है लेकिन नवांश कुंडली में नीच का हो जाता है, तो उसकी शक्ति काफी हद तक कम हो जाती है. अतः यह अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाता.

इसीलिए हम कुंडली जांचते समय नवमांश और अन्य मंडल कुंडली में ग्रहों की ताकत की जांच करते हैं. अन्यथा आपको हमेशा आश्चर्य होगा कि आपको वांछित परिणाम क्यों नहीं मिल रहे हैं. आप मुझसे कुंडली विश्लेषण भी बुक कर सकते हैं.

यदि कोई नीच ग्रह नवमांश कुंडली में उच्च का हो जाता है तो उसकी नीच स्थिति समाप्त हो जाती है. यह दुर्बलता या नीचभंग को रद्द करने के मुख्य मानदंडों में से एक है. कई अन्य सिद्धांत भी हैं जिनके द्वारा ग्रह की दुर्बलता को समाप्त किया जाता है.

ऐसी परिस्थिति में नीच का ग्रह आपको लाभकारी परिणाम देगा. उदाहरण के लिए आपका जन्म सिंह लग्न में हुआ है और शनि आपका सप्तमेश है. लेकिन शनि मेष राशि में स्थित है जहां वह नीच का हो जाता है लेकिन शनि तुला नवांश में है. इस स्थिति में शनि आपको शुभ फल देगा और आपको शनि के अशुभ फल नहीं मिल पाते हैं. इस तरह से नवांश कुंडली ग्रह के बल को समझने में बहुत सहायक बनती है. 

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कुंडली से जानिए संतान जन्म में देरी का कारण

ज्योतिष के अनुसार कई ऎसे योग हैं, जिनके अनुसार व्यक्ति की संतती के बारे में जाना जा सकता है. शादी के बाद किसी भी व्यक्ति के जीवन में वंश वृद्धि का प्रयास बना रहता है.  कई दंपतियों को समय पर अपनी संतान का सुख मिल जाता है तो कई बार कुछ कारणों से कई लोगों को इंतजार करना पड़ता है. ऎसे में संतान के होने का योग कई संघर्षों से भी होकर गुजरता है.  ऎसे में संतान का देर से होना या नहीं होना संघर्ष का कारण बनता है. इसी के चलते कुंडली में यह योग देरी से बच्चे होने का कारण बनते हैं या फिर योगों का खराब असर कुछ को निःसंतान भी बना देने वाला होता है.  ज्योतिष के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है. इनके द्वारा संतान की स्थिति को जान पाना संभव हो पाता है. 

कुंडली से जानिए संतान जन्म में देरी का कारण

संतान के जन्म में देरी के कारणों को ज्योतिष द्वारा जाना जा सकता है. किसी व्यक्ति की कुंडली से संतान न होने का कारण जान सकते हैं. संतान जन्म में देरी के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ कुंडली के कुछ विशिष्ट भावों और कुंडली के उन भावों में बैठे ग्रहों की स्थिति की समीक्षा करते हुए जाना जा सकता है. कुंडली में संतान का सुख पाने या देखने के लिए पंचम भाव मुख्य भाव होता है. इसी के साथ अन्य भावों की स्थिति भी इसी पर असर डालती है.  इन अन्य भावों में दूसरा भाव, ग्यारहवां भाव, नवम भाव को भी देखते हैं. यह भाव सहायक के रूप में काम करते हैं. इसके साथ ही कुंडली में शुक्र, सूर्य और मंगल के साथ-साथ संतान के लिए मुख्य कारक बृहस्पति की स्थिति भी देखनी होती है. 

कभी-कभी, पिछले जन्म के दोषपूर्ण कर्म और नाड़ी दोष भी बच्चे के जन्म में देरी का कारण बनते हैं. ऐसी अधिकांश चीजें तब देखी जा सकती हैं. इन के आधार पर ज्योतिष आपको बच्चे के जन्म में देरी के ऐसे सभी कारणों के बारे में बता सकता है. 

राशिफल के अनुसार बच्चे का योग 

कुंडली से बच्चे की योजना बनाने का सबसे अच्छा समय जान सकते हैं. जन्म कुंडली के अनुसार बच्चे के जन्म होने के समय की योजना कैसे बनाई जाए, इसका थोड़ा सा ज्ञान दशाओं और गोचर के माध्यम से जाना जा सकता है. मंगल, शनि, राहु और केतु जैसे ग्रह काफी खराब माने जाते हैं या कहें की पाप ग्रहों की श्रेणी में आते हैं.  ऎसे में दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें और दसवें घर में ग्रहों की स्थिति को देखा जाता और जब पाप ग्रहों का प्रभाव यहां नहीं हो तब गर्भधारण की योजना बनाने के लिए अनुकूल समय जाना जा सकता है. इसी तरह, इन संयोजनों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके संतान होने की योजना बनाने के लिए विशिष्ट दिनों और यहां तक कि विशिष्ट घंटों के बारे में ज्योतिष द्वारा जाना जा सकता है. अब यदि पाप ग्रहों का असर अधिक है तो उस स्थिति में संतान न होने की संभावना या गर्भपात जैसी स्थितियां असर डाल सकती हैं. 

ज्योतिष में संतान प्राप्ति में देरी के कारण 

संतान में देरी के मामले में ज्योतिष के अन्य सूत्र 

यदि अष्टकूट मिलान में उचित मिलान बिंदु नहीं हो पाया है और इसमें भकूट मिलान नहीं हुआ हो, तो दंपत्ति को संतान प्राप्ति में देरी का सामना करना पड़ सकता है.

यदि कुंडली में संतान स्थान अशुभ प्रभाव उत्पन्न कर रहा हो तो भी संतान प्राप्ति में देरी होती है.

कुंडली में मौजूद सर्प श्राप के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है और ऐसे में सर्प श्राप शांति पूजा करना अच्छा होता है.

पितृ श्राप या पितृ दोष के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है और ऐसे में पितृ दोष शांति पूजा जरूर होनी चाहिए. 

मातृ श्राप के कारण भी बच्चे के जन्म में देरी होती है.

कई बार कमजोर ग्रह स्थिति के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है.

यदि दंपत्ति के साथ गृह देवी या गृह देवता का आशीर्वाद न हो तो भी जीवन में ये समस्याएं और अन्य परेशानियां आती हैं.

बुरी नजर, दोष के प्रभाव के कारण स्वस्थ बच्चा होने में भी देरी का सामना करना पड़ता है.

पहला कारण जो मैंने पाया वह यह है कि जन्म कुंडली स्वयं ही बच्चे के जन्म के मामले में कमजोर है और फलदायी दशा अवधि आने तक इसमें देरी हो जाती है. दूसरा कि जन्म कुंडली बच्चे के जन्म के मामले में कमजोर होती है और फलदायी समय अवधि विवाह की प्रमुख आयु में आती है लेकिन किन्हीं कारणों से शादी में देरी होती है और फलदायी समय अवधि तब समाप्त हो चुकी है. ऎसे में एक नई संतान दशा अवधि के लिए कई वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है और ऎसे में डॉक्टरी इलाज भी काम नहीं आ पाता है. यदि पत्नी की कुंडली कष्ट रहित है तो देरी का कारण जानने के लिए पति की कुंडली देखना आवश्यक हो जाता है. पति की कुंडली में कष्ट होने से संतान उत्पन्न करने की क्षमता प्रभावित होती है. कुंडली के योग 

बच्चे के जन्म में देरी परिस्थितियों या ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकती है. कुछ मामलों में, प्रक्रिया शुरू करने में देरी के कारण बच्चे के जन्म में जटिलताएं भी हो सकती हैं. आज के समय में, करियर या यहां तक कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बहुत अधिक ध्यान देने से भी बच्चे के जन्म में उसकी प्राकृतिक प्रक्रिया में देरी या इनकार हो सकता है. ऐसे कई मामलों में, कई बार लोग  , इन बातों के चलते भी संतान के सुख को पाने में सक्षम नहीं होते हैं और उन्हें आईवीएफ जैसे तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. इस स्थिति में आईवीएफ की योजना कब बनानी चाहिए. इस बात की सफलता के लिए ज्योतिष का सहारा लिया जाना उचित होता है. 

इस प्रकार संतान के सुख की चाह में कमी किन कारणों से बन रही है पहले इस बात को समझना जरूरी होता है. इसके अलावा अन्य सूत्रों को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष अनुसार जाना जा सकता है की संतान कब होगी और कैसे होगी. 

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