पेटालाईट उपरत्न | Petalite Gemstone Meaning | Petalite – Stone Of The Angels | Petalite – Metaphysical, Healing Ability

यह एक उत्तम तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न संग्रहकर्त्ताओं में अधिक लोकप्रिय है. उनके लिए यह विशेष रुप से तराशा जाता है. यह उपरत्न अन्य कई उपरत्नों से मिलता – जुलता उपरत्न है. इससे कई अन्य रत्नों का भ्रम उत्पन्न होता है. रंगहीन अवस्था में यह उपरत्न जर्कन, डायमण्ड आदि का भ्रम पैदा करता है. यह एक अत्यंत नाजुक उपरत्न है. यह एक बहुत ही खूबसूरत रत्न है. पेटालाईट का यह नाम ग्रीक शब्द पेटालॉन से लिया गया है जिसका अर्थ पेड़ का पत्ता है. जिस प्रकार पेड़ के पत्ते की एक-एक संरचना उभरकर दिखाई देती है ठीक उसी प्रकार पेटालाईट की संरचना भी पत्ते के समान स्पष्ट नजर आती हैं.

इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज 18वीं सदी में स्वीडन में हुई थी. इस उपरत्न को एंजल अर्थात देवदूत के समान माना जाता है इसलिए एंजल या देवदूत के रुप में भी जाना जाता है. इसे “Angel Stone”  अथवा “Stone of the Angels” कहा जाता है क्योंकि यह देवदूत जैसी क्रियाओं को बढा़वा देता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को विश्व के सभी क्षेत्रों से संबंधित संचार माध्यमों में सहायता प्रदान करता है अर्थात धारक दिव्य क्षेत्र से जुडे़ सभी विषयों पर संवाद करने में सक्षम होता है.

स्कॉलेसाइट(Scolecite), लेपिडोलाइट(Lepidolite), टेक्टाइट(Tektite), तुरमलीन(Tourmaline), मॉर्गेनाइट(Morganite) तथा रोज क्वार्ट्ज(Rose Quartz ) उपरत्न पेटालाइट के अनुकूल होते हैं. इन उपरत्नों को पेटालाइट के साथ धारण किया जा सकता है.    

पेटालाईट के आध्यात्मिक गुण | Petalite – Metaphysical Properties

यह उपरत्न धारक की दूरदृष्टि में वृद्धि करता है. यह धारक को गहन शांति तथा खुशी प्रदान करता है. ध्यान के समय इस उपरत्न को आज्ञा चक्र के पास रखना चाहिए. इससे धारक को विश्रान्ति मिलती है. आंतरिक अन्वेषण के लिए मन को शांत रखता है. यह एक संतुलित ऊर्जा का संचार करता है. जो व्यक्ति स्वभाव से चपल होते हैं और जिनके विचार भी कुछ बिखरे तथा असंयोजित होते हैं, वह इस अदभुत उपरत्न को धारण कर सकते हैं. यह विचारों में स्थिरता प्रदान करता है. यह धारक के प्रभामण्डल को निर्मलता प्रदान करता है. यह धारक को उसकी आध्यात्मिक क्षमताओं से परे ले जाता है. धारक आध्यात्मिकता के दौरान जिन-जिन बातों का अनुभव
करता है उन्हें बताने में सक्षम रहता है.

यह उपरत्न भावनात्मक आघातों को भरने में सहायक होता है. यह धारक को सुरक्षा प्रदान करता है तथा उसे संतुलित रखता है. धारक स्वयं के व्यक्तित्व को पहचानता है और् अपने प्रति प्रेम को जागृत करता है. यह उपरत्न धारक को एक लय में बाँधकर रखता है और उसकी चेतना को उच्च स्तर पर बढा़वा देता है. यह उपरत्न जातक को गहराई से आध्यात्मिकता के साथ जोड़ने में सहायक होता है. इस उपरत्न को अन्तर्दृष्टि में वृद्धि का उपरत्न माना गया है. यह अन्तर्दृष्टि को खोलकर मानसिक क्षमता का विकास करता है और जातक के भीतर “टेलीपैथी” का भी विकास करता है. इस उपरत्न का एक छोटा सा टुकडा़ भी अम्रत के समान कार्य करता है.

विशेषज्ञ कई लोगों को इस उपरत्न को पहनने की सलाह देते हैं विशेषकर तब, जब वह अपने ग्राहक अथवा मरीजों से बातचीत करते हैं. यह उच्च मानसिक क्षमता को संचालित करता है. इस उपरत्न के उपयोग से शीतल तथा संतुलित ऊर्जा का बहाव होता है जो जातक को ध्यान के दौरान जागरुक रखती है. कई जातक इस उपरत्न का उपयोग सू़क्ष्म आध्यात्मिक ज्ञान को बढा़ने तथा सुरक्षा प्रदान करने के लिए करते हैं. जादू का खेल दिखाने वाले के मध्य इस उपरत्न का उपयोग अधिक किया जाता है.

इस उपरत्न के उपयोग से धारक दिव्य शक्तियों के साथ जुड़ता है और साथ ही साथ यह उपरत्न धारक को अपनी पुरानी सभ्यता तथा संस्कृति से भी जोड़कर रखता है. भावनात्मक रुप से जातक का मार्गदर्शन करता है. अन्तरात्मा को परमात्मा से जोड़ने में मदद करता है. धारक की आत्मा को विश्व की भलाई के लिए प्रेरित करता है. यह फरिश्तों के साथ धारक का संबंध स्थापित कराने में मदद करता है. यह उपरत्न आत्मजागृति का बेहतर तथा अदभुत उपरत्न है.

यह शरीर के चक्रों को संतुलित रखने में सहायक होता है. यह विशुद्ध चक्र तथा सहस्रार चक्र को नियंत्रित रखता है. धारक की संचार क्षमता का विकास करता है. इन चक्रों में यदि लम्बे समय से रुकावट आ रही हो तो यह उन रुकावटों को दूर करने में सहायक होता है. यह उपरत्न शक्तिशाली है और धारक के चारों ओर की ऊर्जा को सकारात्मक रुप में रखता है. यह उसके चारों ओर के वातावरण को शुद्ध रखता है. यह उपरत्न धारक को नकारात्मक कर्मों से मुक्त रखने में सहायक होता है. यह धारक के अस्तित्व को उसकी ही नजरों में स्पष्ट करता है. धारक का परिचय वास्तविकता से कराता है.

पेटालाईट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Petalite

ऎसा माना जाता है कि यह उपरत्न धारक को शांत तथा तनावमुक्त रखता है. यह तनाव से होने वाली बीमारियों को आसानी से दूर करने में सहायक होता है. यह अत्यधिक चिन्ताओं से जातक को दूर ही रखता है. यह उपरत्न कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों को होने से रोकता है. एड्स की भी रोकथाम करता है. यह घावों को भरने में सहायक होता है. हड्डियों का विकास करता है. यह अवसादरुपी भावनाओं को धारक में पनपने नहीं देता और शांत रखने में सहायक होता है.

यह उपरत्न अन्त:स्त्रावी ग्रंथियों को सुचारु रुप से संचालित करता है. यह शरीर की कोशिकाओं को नियंत्रित रखता है. आंखों से संबंधित विकारों को ठीक करता है. फेफड़ों से जुडी़ समस्याओं को हल करता है. माँस-पेशियों की ऎंठन अथवा अकड़न को होने से रोकता है. आंतों से संबंधित परेशानियों को दूर करता है. यह जोड़ों को लचीला बनाता है.

पेटालाईट के रंग | Color Of Petalite

यह उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. यह जिस भी रंग में पाया जाता है वह हल्के रंग होते हैं. यह रंगहीन तथा पारदर्शी अवस्था में पाया जाता है. हल्के गुलाबी रंग में यह उपरत्न पाया जाता है. यह ग्रे, लाल तथा सफेद के मिश्रण में पाया जाता है. यह उपरत्न हरे तथा सफेद के मिश्रण में भी पाया जाता है. पीलेपन की आभा लिए भी यह उपरत्न पाया जाता है. यह वायुतत्व उपरत्न है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Petalite Found

यह उपरत्न कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरीका, ब्राजील, स्वीडन, नामीबिया, अफगानिस्तान, जिम्बाब्वे, बर्मा, आस्ट्रेलिया, रुस, मोजाम्बिक, इटली आदि देशों में पाया जाता है.

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

लग्न पर साढे़साती का प्रभाव | Effects of Sadhesati on Lagna | Sadhesati and Murti Nirnay

पराशर ऋषि ने कारकाध्याय में त्रिकोण तथा केन्द्र स्वामियों को शुभ माना है. लग्न को केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से अधिक शुभफल प्रदान करने वाला माना गया है. जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि किसी भी एक त्रिकोण भाव के स्वामी होते हैं यह दोनों ग्रह विशेष रुप से शुभ फल देते हैं और शनि की साढे़साती उन व्यक्तियों के लिए अधिक खराब नहीं होती है. इन दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह के लग्नेश या त्रिकोणेश होने से भी साढे़साती का प्रभाव कम ही पड़ता है. इनकी दशाओं में इन ग्रहों का गोचर भी कष्टकारी नहीं होता है.

* मेष लग्न में चन्द्रमा तथा शनि लग्न या त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं है. इसलिए साढे़साती कष्टकारी रह सकती है. 

* वृष लग्न में शनि एक त्रिकोण भाव का स्वामी है. शनि नवमेश है. अत: शनि की साढे़साती कष्टकारी नहीं होगी.

* मिथुन लग्न में शनि त्रिकोण भाव अर्थात नवम भाव का स्वामी है. 

* कर्क लग्न में शनि त्रिकोणेश नहीं है लेकिन चन्द्रमा लग्नेश है. 

* सिंह लग्न में शनि तथा चन्द्रमा त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं हैं. 

* कन्या लग्न में शनि एक त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

* तुला लग्न में शनि त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

* वृश्चिक लग्न में चन्द्रमा त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

* धनु लग्न में शनि या चन्द्रमा किसी भी त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं है. 

* मकर लग्न में शनि लग्न भाव के स्वामी है. 

* कुम्भ लग्न में शनि लग्न भाव के स्वामी हैं. 

* मीन लग्न में चन्द्रमा त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर मेष, सिंह तथा धनु राशियों में शनि तथा चन्द्रमा किसी भी त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं हैं. अन्य सभी लग्नों में शनि या चन्द्रम अकिसी ना किसी त्रिकोण भाव के स्वामी हैं. वृष तथा तुला लग्न के लिए शनि विशेष लाभदायक हैं. यदि कुण्डली में बुरी दशा चल रही है और साढे़साती का प्रभाव भी चल रहा है तब व्यक्ति के लिए साढे़साती हानिकारक होती है. यदि कुण्डली में चन्द्रमा बहुत ही बली अवस्था में स्थित है तब शनि की साढे़साती बुरे प्रभाव नहीं देती है. 

साढेसाती तथा मूर्ति निर्णय 

मूर्ति निर्णय का अर्थ है कि जब कोई ग्रह नई राशि में प्रवेश करता है तब उस समय गोचर के चन्द्रमा की स्थिति का जायजा जन्म कुण्डली में स्थित चन्द्रमा की स्थिति से लगाया जाता है. मूर्ति निर्णय करने के लिए जब शनि अथवा किसी अन्य ग्रह का राशि परिवर्तन हो रहा हो तब उस समय के चन्द्रमा को भी देखा जाता है कि वह किस राशि में स्थित है. फिर जन्म कालीन चन्द्रमा से गोचर के चन्द्रमा की स्थिति का पता लगाया जाता है कि वह किस भाव में आ रहा है. इसके आधार पर मृ्ति निर्णय किया जाता है. 

मूर्ति निर्णय

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा यदि 1,6 या 11 भाव में आ रहा है तब साढे़साती श्रेष्ठ फल देने वाली होती है. यह स्वर्ण मूर्ति कहलाती है. 

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा यदि 2,5 या 9वें भाव में आ रहा है तब यह रजत मूर्ति कहलाती है और साढे़साती उत्तम फल देने वाली होती है. 

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा 3,7 या 10 वें भाव में आता है तब यह ताम्र मूर्ति कहलाती है और यह मध्यम फल देने वाली होती है. 

* जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा 4,8 या 12 वें भाव में आ रहा है तब यह लौह मूर्ति कहलाती है और यह निकृष्ट फल प्रदान करने वाली होती है. ह्म

हमारी वेबसाईट से शनि की साढे़साती की जानकारी हासिल करें. शनि की साढेसाती पर रिपोर्ट पाएँ. शनि की साढेसाती

Posted in gemstones, hindu calendar, jyotish, muhurat, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

कैरोआइट उपरत्न । Charoite Gemstone | Charoite – Meaning | Properties Of Charoite

कैरोआइट उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1947 में रुस में मुरुन की पहाड़ियों में यकुतिया में हुई थी लेकिन इससे भी पहले इस उपरत्न के बारे में 1940 में भी जाना जाता था. तब यह उपरत्न उत्तर से 325 मील दूर् बाइकल झील के किनारे पर पाया गया था. स्थानीय लोग इसे बकाइन पेड़ के उपरत्न के बारे में जानते थे. इस उपरत्न बारे में अधिक जानकारी 1978 से प्राप्त हुई थी.

यह दुर्लभ उपरत्न है. इस उपरत्न की खोज सबसे पहले “कारा नदी” के किनारे हुई थी. इसलिए इसका नाम कैरोआइट रखा गया है. कैरोआइट की चमक रेशम जैसी दिखाई देती है. यह उपरत्न कई रंगों में उपलब्ध होता है. इसका रंग चमकदार लैवण्डर अर्थात हल्का जामुनी होता है. यह गहरे बैंगनी रंग में भी पाया जाता है. कई बार यह उपरत्न पीले और हरे रंग की आभा लिए हुए भी पाया जाता है.

कैरोआइट उपरत्न के गुण | Properties Of Charoite Gemstone

यह उपरत्न कई गुणों की खान है. इसे धारण करने से व्यक्ति के विचार और कार्यों में दूरदर्शिता आती है. यह विवाहित जीवन में सामंजस्य बिठाने में मददगार सिद्ध होता है और दोनों के मध्य शुद्धता तथा आकर्षण को बनाए रखता है. धारणकर्त्ता के मूड को अच्छा तथा हँसमुख बनाए रखने में सहायक होता है. साथ ही यह उपरत्न दिमाग और तर्क करने की क्षमता में स्पष्टता बढा़ता है. इसे धारण करने से व्यक्ति में दार्शनिक विचार अधिक आते हैं. वह हर वस्तु को और हर बात को विज्ञान तथा दार्शनिकता के नजरिए से देखता है.

यह उपरत्न शारीरिक तथा भावनात्मक रुप से व्यक्ति की चिकित्सा करता है. यह उसे ऊर्जा प्रदान करता है. यह व्यक्ति की आत्माभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त उपरत्न है. यह उपरत्न जातक को बदलाव के लिए प्रेरित करता है. डर पर काबू पाने के लिए यह एक अनुकूल रत्न है. यह अन्तरात्मा की आवाज में वृद्धि करता है. आग्रह और मजबूरियों पर विजय पाने में सहायक है. यह व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक द्वार खोलने में मदद करता है. यह उपरत्न व्यक्ति के सहस्रार चक्र को नियंत्रित करता है. जब शरीर थक जाता है तब यह उपरत्न उसे ऊपर उठाता है और उसमें ऊर्जा का संचार करता है. यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखता है और व्यक्ति के औरा को साफ तथा स्पष्ट रखता है.

कैरोआइट के चिकित्सीय गुण | Healing Abilities Of Charoite

इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति का रक्तचाप नियंत्रित रहता है. जिन्हें अनिद्रा की परेशानी रहती है उनके लिए यह उपरत्न अनुकूल है. जिन लोगों को नशीले पदार्थों का सेवन करने से लीवर की समस्या का सामना करना पड़ता है उनके लिए यह उपरत्न असाधारण रुप से काम करता है. जीगर से संबंधित परेशानियों को दूर करने के लिए भी इस उपरत्न का उपयोग करना शुभ है. कई व्यक्ति भावनात्मक रुप से कमजोर होते हैं और उन्हें छोटी सी बात भी ठेस पहुँचा देती है. ऎसे लोगों के लिए यह उपरत्न बहुत ही उपयोगी साबित होता है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Charoite Found

यह उपरत्न पूरे विश्व में केवल रुस में पाया जाता है. यह रुस में कैरा नदी के पास पाया जाता है. यह पूर्वी साइबेरिया के केन्द्र में स्थित है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Charoite

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. विशेषकर वह जिनमें बिना कारण डर समाया रहता है. इस उपरत्न को अमेथिस्ट के साथ धारण करने से यह और अधिक शक्तिशाली हो बन जाता है.

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

प्रवासी के घर वापसी के योग | Yoga of Migrant Person to Return Home

खोये व्यक्ति के संबंध बहुत से सवाल प्रश्नकर्त्ता द्वारा पूछे जाते हैं. इन प्रश्नों का बारी-बारी से तथा समझदारी से उत्तर देना चाहिए. प्रश्न कुण्डली में खोये व्यक्ति के घर वापिस आने के लिए बहुत से योग दिए होते हैं. आइए उन योगों का अध्ययन करें. 

घर वापसी के योग |Yoga of Return Home

(1) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा चन्द्रमा केन्द्र से अन्य भाव में स्थित हों और केन्द्रस्थ ग्रह से ईशराफ कर रहें हों तो प्रवासी घर के लिए चल पडा़ है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में लग्न, तृत्तीय तथा अष्टम भाव में सभी ग्रह हों तो प्रवासी घर के लिए चल दिया है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में सप्तम भाव में बली चन्द्रमा स्थित हो तब प्रवासी घर के लिए चल दिया है. 

(4) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, 2,3,8 या 9 वें भाव में स्थित हो तो प्रवासी घर के लिए चल दिया है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में चर लग्न हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो प्रवासी घर वापिस चल पडा़ है. 

(6) यदि आठवें भाव में चन्द्रमा स्थित हो और केन्द्र में शुभ ग्रह स्थित हैं तो प्रवासी लाभ सहित वापिस आएगा. 

(7) यदि आठवें भाव में चन्द्रमा स्थित है केन्द्र में पाप ग्रह है तो सभी कुछ लुटाकर वापिस आएगा. 

(8) यदि लग्न में चन्द्रमा स्थित हो और उसका लग्नेश से इत्थशाल हो तो प्रवासी वापिस आ जाएगा. 

(9) यदि बारहवें भाव में चन्द्रमा हो और लग्नेश से इत्थशाल हो तो भी प्रवासी अथवा खोया व्यक्ति घर वापिस आ जाएगा.     

(10) प्रश्न के समय चन्द्रमा कहीं भी अच्छी हालत में स्थित हो तो प्रवासी घर आ जाएगा. 

(11) यदि सारे ग्रह 1,2,3 भावों में स्थित हैं तो खोया व्यक्ति वापिस आ जाएगा. 

(12) यदि 1,2,3 में केवल शुभ ग्रह हैं तो खोया व्यक्ति वापिस आ जाएगा. 

(13) यदि बृहस्पति तथा शुक्र एक साथ 1,2 या 3 भाव में स्थित हैं तो खोया व्यक्ति वापिस आ जाएगा. 

(14) यदि 11वें भाव में सूर्य, बुध तथा शुक्र स्थित हो तो प्रवासी वापिस आ जाएगा. 

(15) यदि त्रिकोण भाव में बुध तथा शुक्र स्थित है तो प्रवासी वापिस आ आएगा. 

(16) द्वि-स्वभाव लग्न है और सभी ग्रह पणफर भावों में स्थित है खोया व्यक्ति अथवा प्रवासी वापिस आ जाएगा. 

(17) यदि लग्नेश लग्न में बैठे ग्रह से इत्थशाल करता है तो भी प्रवासी वापिस आ जाएगा. 

(18) यदि लग्नेश 2 या 8 भाव में बैठा है और दशमेश या दशम भाव में स्थित ग्रह से इत्थशाल कर रहा हो तो भी वापसी के योग बनते हैं. 

(19) यदि लग्नेश वक्री होकर चन्द्रमा को देखे तो भी वापसी के योग बनते हैं. 

घर वापिस ना आने के योग | |Yoga of No Return Home

(1) प्रश्न कुण्डली में चर लग्न हो और लग्न का स्वामी लग्न को देख रहा हो या चर लग्न शुभ ग्रहों से दृष्ट हो. 

(2) प्रश्न कुण्डली में स्थिर लग्न अथवा द्वि-स्वभाव लग्न हो और वह अपने स्वामी ग्रह या शुभ ग्रह से दृष्ट अथवा युत हो. 

(3) यदि प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ तथा दशम भाव में शुभ ग्रह स्थित हैं तो प्रवासी अथवा खोया व्यक्ति वापिस आने की इच्छा नहीं रखता है.  

(4) चन्द्रमा यदि शुभ कर्त्तरी में है तो प्रवासी दोस्तों से घिरा है और आने की इच्छा नहीं रखता है. 

(5) चन्द्रमा यदि पाप कर्त्तरी में है तो शत्रुओं से घिरा है और वापिस आने में बाधा है. 

(6) यदि बारहवें भाव में सूर्य, बुध तथा शुक्र हैं तो वापिस नहीं आएगा. 

(7) यदि लग्नेश 1,2,3,11 या 12 वें भाव में स्थित है और केन्द्र में पाप स्थित है तो प्रवासी वापिस नहीं आएगा. 

(8) यदि लग्नेश दूसरे अथवा आठवें भाव में बैठकर चतुर्थ या सप्तम भाव में बैठे ग्रह से इत्थशाल करे तो प्रवासी वापिस नहीं आएगा. 

विदेश गए व्यक्ति के योग | The sum of the individual foreign

प्रश्नकर्त्ता के कई प्रश्न विदेश गए व्यक्ति के सन्दर्भ में होते हैं कि वह कब तक वापिस आएगा. आएगा या कभी नहीं आएगा. वह विदेश में कैसा होगा आदि कई प्रकार के प्रश्न होते हैं. सर्वप्रथम आपको विदेश गए व्यक्ति के वापिस आने के योग बता रहें हैं कि वह कब तक लौटेगा. 

(1) प्रश्न कुण्डली के लग्न में स्थित शुभ ग्रह जिस समय कुण्डली के तृतीय भाव में पहुंचता है उस समय प्रवासी घर लौटता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में सर्वाधिक बली ग्रह लग्न से जितने भाव दूर होगा उस संख्या को 12 से गुणा करें. भाग करने पर जो गुणनफल आता है उतने दिनों में प्रवासी घर आता है. माना गुरु कुण्डली का सर्वाधिक बली ग्रह है और लग्न से छठे भाव में स्थित है. लग्न से छठे भाव तक छ: संख्या आती है. अब छ: को 12 से गुणा करेंगें. गुणा करने पर गुणनफल 72 आता है. इसका अर्थ है कि प्रवासी विदेश से 72 दिनों बाद वापिस आएगा. 

(3) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश जिस समय लग्न में पहुंचता है या लग्नेश से इत्थशाल करता है, उस समय प्रवासी घर वापिस आता है. 

(4) प्रश्न कुण्डली के चतुर्थ भाव में चर राशि में बुध, गुरु और शुक्र हों तो प्रवासी शीघ्र घर आता है. 

(5) प्रश्न चण्डेश्वर के अनुसार प्रश्न कुण्डली में यदि चन्द्रमा सर्वाधिक बली ग्रह है तो कुछ दिनों में प्रवासी वापिस आ जाएगा. यदि सूर्य बलवान है तो उतने माह में प्रवासी घर आएगा. यदि गुरु बली है तो उतने वर्षों में प्रवासी घर आएगा. यदि मंगल बली है तो 8 माह में वापिस आता है. बुध बली है तो 1 माह में वापिस आता है. शुक्र बली है तो 1 वर्ष में आता है. राहु अथवा केतु के बली होने पर 6 माह में प्रवासी घर लौटकर आता है. 

उपरोक्त प्रश्नों के अतिरिक्त प्रश्नकर्त्ता के प्रश्न प्रवासी की सेहत अथवा कष्ट को लेकर भी होते हैं. आइए विदेश गए व्यक्ति के कष्ट में रहने के योगों का आंकलन करें. 

अपने जीवनसाथी से अपने गुणों का मिलान करने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक करें : Marriage Analysis

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

विवाद प्रश्न के सामान्य नियम | The General Rules of Conflict Question

विवाद प्रश्न में लग्न से प्रश्नकर्त्ता को देखा जाएगा या प्रश्न पूछने वाला जिस व्यक्ति का समर्थन कर रहा हो उसका विश्लेषण लग्न से किया जाएगा. आधुनिक समय में विवाद के प्रश्न भी काफी पूछे जाते हैं. इसमें घरेलू विवाद, व्यवसायिक विवाद तथा अन्य क्षेत्रों से जुडे़ सभी प्रकार के विवाद आते हैं. विवाद प्रश्न में लग्न से पृच्छक तथा सप्तम भाव से विरोधी का विश्लेषण किया जाता है. विवाद प्रश्न में पाप ग्रह का लग्न या सप्तम में स्थित होना उस पक्ष को जीत हासिल करा सकता है. आइए विवाद के प्रश्न से संबंधित सामान्य नियमों का आंकलन करें. 

* लग्न अथवा सप्तम भाव में से जिस भाव में पाप ग्रह स्थित होगें वह पक्ष जीत जाएगा. यदि दोनों ही भावों में पाप ग्रह स्थित है तो दोनों पक्षों के मध्य हिंसा तथा मार-पीट हो सकती है. प्रश्न के समय एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि राहु को पाप ग्रह माना गया है, केतु को पाप ग्रह नहीं माना गया है.  

* यदि विवाद प्रश्न के लग्न में शुभ ग्रह स्थित हो तब प्रश्नकर्त्ता दब जाएगा. यदि लग्न में पाप ग्रह तथा शुभ ग्रह की लग्न पर दृष्टि होगी तब प्रश्नकर्त्ता जीत जाएगा. विवाद प्रश्न में शुभ ग्रह की लग्न पर दृष्टि अच्छी मानी गई है. यदि यही स्थिति सप्तम भाव पर लागू हो रही हो तब विरोधी पक्ष की जीत होगी. लग्न पर पाप दृष्टि हो तो विरोधी पक्ष जीतेगा. 

* विवाद प्रश्न में लग्नेश तथा सप्तमेश में जो बली है उस पक्ष की जीत होगी. प्रश्न के समय यदि चन्द्र या लग्न या दोनों ही बली हैं तो पृच्छक की जीत होगी. 

* विवाद प्रश्न में जिस भाव से संबंधित प्रश्न है यदि वह भाव बली है तो प्रश्नकर्त्ता की जीत होगी. 

* यदि लग्न से 3,6,11 भावों में पाप ग्रह है तो पूछने वाला लम्बी लडा़ई के लिए भी तैयार है. 

* यदि सप्तम भाव से 3,6,11 भाव में पाप ग्रह है तो विरोधी जीत जाएगा. 

* यदि 12वें भाव में पाप ग्रह हैं तो वह विवाद से संबंधित अनावश्यक खर्चा कराएंगें. 

* प्रश्न के समय यदि 8वें भाव का स्वामी दूसरे भाव में स्थित है तब विरोधी का धन पृच्छक के पास आ जाएगा. आठवाँ भाव सप्तम से दूसरा भाव है. आठवें भाव से विरोधी का धन देखा जाता है. 

* सप्तमेश यदि लग्न में स्थित है तो विरोधी पृच्छक के पास समझौते के लिए आएगा. 

* लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो तो प्रश्नकर्त्ता विरोधी के पास जाएगा. 

* द्वित्तीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तो पूछनेवाले का धन विरोधी के पास जाता है. 

* द्वित्तीय भाव बली और शुभ दृष्ट है तो भी पृच्छक को फायदा होता है. 

* अष्टम भाव बली और शुभ दृष्ट है तो विरोधी को लाभ होगा. 

* प्रश्न के समय लग्नेश तथा सप्तमेश में राशि परिवर्तन होगा तो दोनों पक्ष समझौता कर सकते हैं. 

* प्रश्न के समय कोर्ट-केस के बारे में यह तय करना है कि यह कितने समय और चलेगा तो लग्न के अंशों को देखा जाएगा कि कितने नवाँश बीत चुके हैं. जितने नवाँश बीत चुके होगें उतने वर्ष केस के भी बीत चुके होगें और जितने नवाँश बचे होगें उतने वर्ष अथवा माह अथवा दिन अभी विवाद और चलेगा. 

अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
Posted in jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

सिंह राशि क्या है । Leo Sign Meaning | Leo – An Introduction | What are the lucky colours for Leo.

सिंह राशि के व्यक्ति तेजयुक्त, सक्रिय और दुसरों पर शीघ्र प्रभाव डालने वाले होते है. इस राशि के व्यक्तियों में उच्च अभिलाषा, गर्मजोशी और सर्जनात्मकता पाई जाती है. अपनी उर्जा शक्ति का सही उपयोग करने वाले होते है. सिंह राशि जिस व्यक्ति की हो वह साहसी और खुले दिमाग वाला होता है. आईये सिंह राशि से परिचय करते है. 

सिंह राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of  Leo

सिंह राशि पर सूर्य ग्रह का स्वामित्व है. 

सिंह राशि का निशान क्या है. | What is the Symbol of Leo Sign . 

सिंह राशि का निशान सिंह है. 

सिंह राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देते है.| Which planets are considered auspicious for Leo

सिंह राशि के लिए सूर्य, मंगल, गुरु शुभ फल देते है.

सिंह राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. | Which Planets are inauspicious for Leo 

सिंह राशि के लिए बुध, शुक्र, शनि अशुभ फल देने वाले ग्रह है. 

सिंह राशि के लिए सम फल देने वाले कौन से ग्रह है.| Which are Neutral planets for Leo.

सिंह राशि के लिए चन्द्रमा शुभ फल देने वाला ग्रह है. 

सिंह राशि के लिए कौन सा ग्रह मारक ग्रह है.| Which  are the Marak planets for Leo

सिंह राशि के लिए बुध, शनि मारक ग्रह होते है.

सिंह राशि के लिए कौन सा भाव बाधक भाव होता है.| Which is the Badhak Bhava for Leo. (thedentalspa)

सिंह राशि के लिए नवम भाव बाधक भाव है. 

सिंह राशि के लिए बाधक भाव का स्वामी कौन सा ग्रह है.| Which planet is Badhkesh for Leo 

सिंह राशि के लिए मंगल बाधकेश होते है. 

सिंह राशि के लिए योगकारक ग्रह कौन से है.| Which planet is YogaKaraka for Leo

सिंह राशि के लिए मंगल, गुरु योगकारक ग्रह है.

सिंह राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है.| Which Planet of Leo, is placed in exalted position 

सिंह राशि में कोई ग्रह उच्च का नहीं होता है.

सिंह राशि किस ग्रह कि नीच राशि है.| Leo  is which planet’s Debilitated Sign

सिंह राशि किसी ग्रह की नीच राशि है.

सिंह राशि में चन्द्रमा कितने अंशो पर होने पर सर्वाधिक शुभ फल देता है. | At which Degree Moon is auspicious for the Leo  Sign. 

सिंह राशि में चन्द्रमा 19 अंश का होने पर शुभ फल देता है.

सिंह राशि में चन्द्रमा किस अंश पर अशुभ फल देता है. | At which degree Moon is inauspicious for the Leo Sign.

सिंह राशि में चन्द्रमा 21 अंश और 24 अंश पर अशुभ फल देता है. 

सिंह राशि के व्यक्तियों के लिए कौन सा इत्र शुभ होता है.| Which fragrance is auspicious for Leo

सिंह राशि के लिए आलीबनम इत्र शुभ रहता है.

सिंह राशि के लिए शुभ अंक कौन से है.| Which are the Lucky numbers for Leo Sign. 

सिंह राशि के लिए शुभ अंक 1, 4, 5, 9 है.

सिंह राशि के लिए शुभ वार कौन सा है. | Which are the lucky days for  Leo Sign.

सिंह राशि के लिए रविवार, मंगलवार, बुधवार शुभ दिन होते है.

सिंह राशि के लिए शुभ रत्न कौन सा है.| Which is the lucky stone for Leo .

सिंह राशि के लिए माणिक्य आदि रत्न शुभ रहते है. 

सिंह राशि के लिए शुभ रंग कौन सा है.| What are the lucky colours for Leo.

सिंह राशि के लिए लाल, नारंगी, हरा रंह शुभ है.

सिंह राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास करना चाहिए. | On which day Leo People should fast .

सिंह राशि के लिए सोमवार के दिन का व्रत करना शुभ रहता है.

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

11th भाव-आय भाव क्या है. | Labha Bhava Meaning | Ekadasha House in Horoscope | 11th House in Indian Astrology

11th भाव-आय भाव क्या है. | Labha Bhava Meaning | Ekadasha House in Horoscope | 11th House in Indian Astrology

एकाद्श भाव लाभभाव है. इस भाव को उपचय भाव और त्रिषडाय भाव भी कहा जाता है. चर राशि के व्यक्तियों के लिए यह स्थान बाधक स्थान होता है. एकादश भाव को धन भाव, ज्ञान भाव के नाम से भी जाता है. इस भाव से बडे भाई या बहन, धन-सम्पति, पति की उन्नति, माता की दीर्घायु, ससुर से लाभ, धन का बहाव, अपने से बडी आयु के मित्र, आशायें, इच्छायें, आकांक्षायें, योजनाओं में सफलता, लाभ, चुनाव, मुकदमेबाजी, सट्टेबाजी से लाभ, अस्पताल से छुट्टी, कान, व्यापार, समाज, समुदाय, बिमारी से ठिक होना, दुर्दशा से मुक्ति, अभिलाषायें, इच्छायें और उनकी पूर्ति, विवाह, रोग और चोट का भाव. 

एकादश भाव का कारक ग्रह कौन सा है.  | What are the Karaka things of 11th Bhava   

एकादश भाव का कारक ग्रह गुरु है. इस भाव से गुरु व्यक्ति के लाभ और बडे भाई के कारकतत्व प्रकट करता है.  

एकादश भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है.  |  What does the House of Income  Explain.  

एकादश भाव से व्यक्ति के लाभ देखे जाते है. 

एकादश भाव से सूक्ष्म रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है | What does the House of Income accurately explains.

एकादश भाव से व्यक्ति के द्वारा अधिग्रहित वस्तुओं का विश्लेषण किया जाता है. 

एकादश भाव कौन से संबन्धों का प्रतिनिधित्व करता है. | 11th House represents which  relationships. 

 एकदश भाव से व्यक्ति के चाचा, बडे भाई-बहन, मित्र, जीजा, चौथा बच्चा, दादी, दामाद, चचेरा दादा आदि का विश्लेषण किया जाता है.  

एकादश भाव शरीर के कौन से अंगों को प्रकृ्ट करता है. | 11th House is the Karak House of which body parts. 

एकादश भाव से पैर, घुटना, बायां पांच, बायां हाथ आदि सम्बन्धित विषय देखे जाते है. द्रेष्कोण पद्वति के अनुसार इस भाव से बायां कान, बायीं भुजा आदि का विचार किया जाता है.  

किस राशि के लिए लाभ भाव बाधक भाव है. | For which sign income house is Badhaka bhava. 

चर राशियों के लिए लाभ स्थान बाधक स्थान होता है.  

एकादशेश और अन्य भावेश परिवर्तन योग किस प्रकार के फल देते है.  

एकादशेश और द्वादशेश जब परिवर्तन योग में शामिल हों, तो व्यक्ति को ऋण लेकर कार्य पूरे करने पडते है. उसकी आय और व्यय दोनों समान हो सकते है.

स्थिर और द्विस्वभाव राशि के व्यक्तियों के लिए इस भाव में सभी ग्रह शुभ फल देते है.  

एकादश भाव में बैठे नवमेश ओर दशमेश व्यक्ति को नियमित आय देते है.  

एकादश भाव में बैठे नवमेश, दशमेश और एकादशेश माता-पिता से, व्यवसाय से लाभ देते है, और व्यक्ति को मित्रों कि सहायता करने वाला बनाता है. 

11वें भाव का स्वामी जिस भाव में स्थित हों, वह भाव भी शुभ फलदायक होता है.  

जब कुण्डली में अष्टमेश व एकादशेश दोनों की दशा चल रही हों, तो व्यक्ति को उसके ऋणों से मुक्ति मिलती है. 

गोचर में सभी ग्रह चन्द्र से एकादश भाव में शुभ फल देते है. 

ग्यारहवें भाव से संबन्धित ग्रहों की दशा में भौतिक समृ्द्धि प्राप्त होती है.  परन्तु इस दशा में व्यक्ति के आध्यात्मिक सुखों में कमी होती है.

एकादश भाव में बैठा एकाद्शेश व्यक्ति को दिन – प्रतिदिन उन्नति देता है. यह व्यक्ति को एकादश भाव से जुडे सभी विषयों की प्राप्ति के अवसर देता है. 

एकादशेश की दशा स्वास्थय के पक्ष से अनुकुल नहीं है. लेकिन अर्थ व्यवस्था एक लिए शुभ है.  

धनु लग्न एक लिए ग्यारहवेम भाव में बैठा शनि शुभ होता है.  

एकादश भाव में तुला राशि का मंगल व्यक्ति को विनोदी स्वभाव देता है. यह योग व्यक्ति को जीवन के मध्य भाग में को आघात देता है. 

एकादश भाव में सूर्य, चन्द्रमा की युति के साथ एक व्यक्ति को उच्च पद प्राप्ति में सहयोग देती है.  

एकदश भाव में शनि ग्रह आयु में वृ्द्धि करने में सहयोग करता है. 

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

चोरी का सामान कहाँ है | Place Where Stolen Goods are Kept

प्रश्न कुण्डली के द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि चोरी किया सामान कहाँ हैं. शहर में ही है या शहर से दूर चला गया है अथवा घर के आस-पास ही है.

* मेष लग्न यदि प्रश्न कुण्डली में उदय होता हो तो चोरी का सामान भूमि के नीचे होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में वृष लग्न उदय होता हो तो गऊशाला में चोरी का सामान छिपाया जाता है. वर्तमान समय में चौपाया वाहनों में भी चोरी का सामान छिपाया जा सकता है. 

* प्रश्न कुण्डली में मिथुन लग्न हो तो नृत्य-संगीत अथवा मनोरंजन के स्थानों पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कर्क राशि हो तो चोरी का सामान जल के निकट छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में सिंह राशि हो तो किसी जंगल अथवा सुनसान स्थान पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कन्या राशि हो तो रसोई घर में अथवा शयनकक्ष में चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में तुला राशि हो तो दुकान अथवा किसी गोदाम में चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में वृश्चिक राशि हो तो चोरी का सामान किसी बर्तन में रखकर जमीन में दबाकर छिपा दिया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में धनु लग्न हो तो जंगल में अथवा ऊँचाई वाली जगह पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में मकर लग्न हो तो किसी तालाब अथवा पानी के पास वाले स्थान पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कुम्भ लग्न हो तो चोरी का सामान हो तो घडे़ जैसी वस्तु में चोरी का सामान छिपाया जाता है अथवा ऎसी जगह पर छिपाया जा सकता है जहाँ से ऊपर का स्थान तंग हो और नीचे का स्थान चौडा़ हो. प्याऊ आदि जगह पर भी सामान छिपाया जा सकता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में मीन राशि हो तो चोरी का सामान तालाब या जलीय स्थान, मंदिर अथवा किसी अन्य पवित्र जगह पर छिपाया जा सकता है. 

उपरोक्त विश्लेषण के अतिरिक्त कुण्डली के अन्य योग भी हैं जिनसे चोरी के सामान का पता चलता है कि वह कहाँ छिपाया गया होगा. कुण्डली में चतुर्थ भाव में स्थित ग्रह से चोरी की वस्तु का पता चलता है कि वह कहाँ छिपाई गई होगी. 

चतुर्थ भाव में ग्रहों का फल कथन | Prediction of Planets in Fourth House

* चन्द्रमा यदि चतुर्थ भाव में हो तो चोरी का सामान नहाने के स्थान या जलाशय के निकट या वर्तमान समय में पानी की टंकी के पास होता है. 

* सूर्य यदि चतुर्थ भाव में हो तो चोरी का सामान शयनकक्ष में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में मंगल चतुर्थ भाव में हो तो चोरी का सामान पशुओं के रहने के स्थान पर अथवा कारीगरों के रहने की जगह पर या अग्नि संबंधित स्थानों पर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में बुध स्थित हो तो चोरी का सामान बैठक(drawing Room) या विद्यालय या पुस्तकालय में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में गुरु स्थित हो तो चोरी का सामान धार्मिक स्थानों पर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में शुक्र स्थित हो तो चोरी का सामान मनोरंजन के स्थानों पर होता है या उन स्थानों पर होता है जहाँ स्त्रियों का प्रभाव अधिक हो. 

* प्रश्न कुण्डली में शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो चोरी का सामान किसी अन्धेरे स्थान में गडा़ होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में राहु हो तो किसी खण्डहर हुए स्थान पर सामान होता है या किसी पेड़ के नीचे भी सामान हो सकता है. 

* प्रश्न कुण्डली में केतु चतुर्थ भाव में हो तो सामान किसी चांडाल, कसाई या मलाहों के पास होता है. 

 अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

Posted in jyotish, saint and sages, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

Saptami Fast Procedure – Story | Santan Saptami Fast Method (Rath Saptami Fast Story)

Saptami fast is observed on seventh date of Shukla Paksha of every month. This fast is specially for, conceiving a child, safety of child, and growth of child. Although, every month’s fast on Shukl Paksha is significant, but, fast of Saptami on Bhadrpad’s(sixth month of Hindu calender) Shukl Paksha has its own special significance.

Santan Saptami Fast Procedure

The fast of Saptami is observed by mothers for their children. Mother observing this fast should take bath early in the morning and complete her routine work and wear clean clothes. After this, in the morning, she should worship Lord Vishnu and Shiva. And, should take the resolution of Saptami fast.

Keeping the Nirahar Vrat, in the afternoon, Lord Shiva and Goddess Parvati should be worshiped with Chauk Purkar Sandalwood, Akshat(rice used in worship), incense, small lamp, Prashad, betel nut and coconut etc.

In Saptami Tithi fast, Kheer, Puri and Pua of jaggery are prepared as Prasadam. Wishing for child’s safety, Lord Shiva is offered a red color thread. After offering it to God Shiva, the thread is worn and story related to fast is heard. The story of Saptami Tithi is as follows.

Saptami Vrata Story 

An ancient legend is famous regarding the Saptami fast. As per this narration, once Lord Krishna told Yuddhistra “at some time, Lomash Rishi came to Mathura. My parents Devika and Vasudev, served him devotedly, then the Rishi ordered them to get over the grief of their sons, killed by Kansa”. Rishi said “Hey Devika!

Kansa killed many of your sons and gave you the sorrow of sons’ death. To be free from this pain, keep the fast of ‘Santan(child) Saptami’. King Nahusha’s queen, Chandramukhi, also kept this fast. Then, Chandramukhi’s children also did not die. Devika, this fast will also make you come out of the grief of sons’ death.”

Devika said, “O God! Please tell me the methods of observing this fast. So that I could complete it in a systematic way.” Lomash Rishi, explained her the procedure of worshiping and also narrated the story of fast.

Nahusha was a glorious king of Ayodhya. His wife’s name was Chandramukhi. In his kingdom, there lived a Brahman, named Vishnudat. His wife was Rupwati. Queen Chandramukhi and Rupwati had a good friendship. One day both of them went to take bath in river Sarayu. Other women were also having a bath at that place.The ladies, had made an idol of Shiva and Parvati there and worshiped them in a systematic way. Then, queen Chandrmukhi and Rupwati asked those ladies, the procedure and name of the Puja.

One of those ladies said “we worshiped Lord Shiva and Goddess Parvati. We tied a thread to Lord Shiva with a resolution that, we will observing this fast up till the time we are alive. This ‘Muktabhran Fast’ is the giver of happiness and child.”

After listening to the theme behind the fast, both the friends took the resolution of observing this fast for their lifetime and, tied a thread in name of God Shiva. But, after reaching home, they forgot the pledge. As a result, after death, queen was born as female monkey and Brahmani as a chicken.

Over the time, both of them left the animal form and were born as humans. Chandramukhi, became the queen of king Prithvinath, and, Rupwati was again born in a Brahman’s house. In this birth, queen’s name was Eshwari and Brahmani’s name was Bhushna. Bhushan was married to Rajpuohit(oldest Hindu Brahman), Agnimukhi. In this life also both the ladies had a very good friendship.

Because of forgetting about the fast, queen was deprived from the happiness of getting a child, in this life also. In mature state, she gave birth to a deaf and dumb son. But, he also died on becoming nine years old. Bhushna remembered about the Vrat, and gave birth to good looking and healthy eight sons.

As a gesture of sympathy, Bhusna went to meet queen Eshwari, who was in the grief of not getting son. Looking at Bhusna, envy grew in the mind of queen. After Bhusna’s departure, queen called her sons for a meal and added poison in their food. But, as a result of fast kept by Bhusna, nothing happened to her children.

By this, queen got more angry. She ordered her servants, to take Bhusna’s children at the bank of Yammuna with an excuse of Puja and through them in deep water. But, this time also, by the blessings of Lord Shiva and Goddess Parvati, sons of Bhusana had no effect.

As a result, queen called executioners and ordered them to kill the Brahman sons at the slaughter place. But, they also got failed in their attempts. Listening this news, queen got surprised. She called Bhusna, narrated the whole story and asked for forgiveness. Then, she asked why weren’t her children dieing.

Bhusna said “don’t you remember the incident of past birth?” Queen got surprised and said “no I don’t remember.”

Then Bhusna said “listen, in our past birth, you were the wife of king Nahusha and i was your friend. Once, both of us had tied a thread in name of Lord Shiva and took a resolution that in whole of our life we will observe the fast of Saptami. But, unfortunately we forgot and neglected the fast. As a result, we took birth in different forms and then we were born as human. Now, I remembered about the Vrat, and so, started observing it. By its effect only, you could get by children killed.”

Hearing this, queen Eshwari also observed this fast, Muktabhran, in a systematic way to get a child. Then, by the grace of this Vrat, queen again became pregnant and gave birth to a beautiful child. From that time, for conceiving a child and his safety, this fast got popularity.

After listening to the story, in the evening Lord Shiva and Goddess Parvati are worshiped with incense, small lamp, flowers, fruits and Prasadm is offered. And, Lord Shiva’s Aarti should be recited,which is as follows.

Aarti of Lord Shiva

जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा,
ब्रह्‌मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा।
एकानन चतुरानन पंचानन राजै
हंसानन गरुणासन वृषवाहन साजै।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै,
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी,
चन्दन मृगमद चंदा सोहै त्रिपुरारी।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे,
सनकादिक ब्रह्‌मादिक भूतादिक संगे।
कर मध्ये च कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी,
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी।
ब्रह्‌मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे॥

Posted in fast and festival, hindu calendar, rituals, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

रविवार व्रत आरती | Sunday Fast – Ravivar Vrat (Sunday Vrat Aarti) | Sunday Fast Story – Sunday Fast in Hindi

शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य पीडित अवस्था में हो, उन व्यक्तियों के लिये रविवार का व्रत करना विशेष रुप से लाभकारी रहता है. इसके अतिरिक्त रविवार का व्रत आत्मविश्वास मे वृ्द्धि करने के लिये भी किया जाता है. इस व्रत के स्वामी सूर्य देव है (Sun is the lord of Sunday fast). नवग्रहों में सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिये रविवार का व्रत किया जाता है. यह व्रत अच्छा स्वास्थय व तेजस्विता देता है.  

शास्त्रों में ग्रहों की शान्ति करने के लिये व्रत के अतिरिक्त पूजन, दान- स्नान व मंत्र जाप आदि कार्य किये जाते है. इनमें से व्रत उपाय को सबसे अधिक महत्व दिया गया है. पुरे नौ ग्रहों के लिये अलग- अलग वारों का निर्धारण किया गया है. रविवार का व्रत समस्त कामनाओं की सिद्धि, नेत्र रोगों में मी, कुष्ठादि व चर्म रोगों में कमी, आयु व सौभाग्य वृ्द्धि के लिये किया जाता है.  

रविवार व्रत महत्व | Importance of Sunday Fast

यह व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारम्भ करके कम से कम एक वर्ष और अधिक से अधिक बारह वर्ष के लिये किया जा सकता है (This fast may be started from first Sunday of Shukla Paksha of any month and should be observed for at least one year and maximum upto 12 years). रविवार क्योकि सूर्य देवता की पूजा का दिन है. इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से सुख -समृ्द्धि, धन- संपति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिये इस व्रत का महत्व कहा गया है.

रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से व्यक्ति कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इस उपवास करने वाले व्यक्ति को मान-सम्मान, धन, यश और साथ ही उतम स्वास्थय भी प्राप होता है. रविवार के व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है. तथा स्त्रियों के द्वारा इस व्रत को करने से उनका बांझपन भी दूर करता है. इसके अतिरित्क यह व्रत उपवासक को मोक्ष देने वाला होता है.   

रविवार व्रत विधि-विधान | Procedure of Sunday Vrata

रविवार के व्रत को करने वाले व्यक्ति को प्रात: काल में उठकर नित्यकर्म क्रियाओं से निवृ्त होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. घर में किसी एकान्त स्थान में ईशान कोण में भगवान सूर्य देव की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए. इसके बाद गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि से भगवान सूर्य देव का पूजन करना चाहिए. 

पूजन से पहले व्रत का संकल्प लिया जाता है. दोपहर के समय फिर से भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर पूजा करे, और कथा करें. और व्रत के दिन केवल गेहूं कि रोटी अथवा गुड से बना दलिया, घी, शक्कर के साथ भोजन करें. भगवान सूर्य को लाल फूल बेहद प्रिय है. इसलिये इस दिन भगवान सूर्य की पूजा काल रंग के फूलों से करना और भी शुभ होता है.   

रविवार व्रत कथा | Sunday Vrat Katha 

कथा के अनुसार एक बुढिया थी, उसके जीवन का नियम था कि व प्रत्येक रविवार के दिन प्रात: स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर शुद्ध करती थी. इसके बाद वह भोजन तैयार करती थी, भगवान को भोग लगा कर स्वयं भोजन ग्रहण करती थी. यह क्रिया वह लम्बें समय से करती चली आ रही थी. ऎसा करने से उसका घर सभी धन – धान्य से परिपूर्ण था. 

वह बुढिया अपने घर को शुद्ध करने के लिये, पडौस में रहने वाली एक अन्य बुढिया की गाय का गोबर लाया करती थी. जिस घर से वह बुढिया गोबर लाती थी, वह विचार करने लगी कि यह मेरे गाय का ही गोबर क्यों लेकर आती है. इसलिये वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधले लगी. बुढिया गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से लीप कर शुद्ध न कर सकी. इसके कारण न तो उसने भोजन ही बनाया, और न ही भोग ही लगाया. इस प्रकार उसका उस दिन निराहार व्रत हो गया. रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गई. 

रात्रि में भगवान सूर्य देव ने उसे स्वप्न में आकर इसका कारण पूछा. वृ्द्धा ने जो कारण था, वह बता दिया. तब भगवान ने कहा कि, माता तुम्हें सर्वकामना पूरक गाय देते है, भगवान ने उसे वरदान में गाय दी, धन, और पुत्र दिया. और मोक्ष का वरदान देकर वे अन्तर्धान हो गयें. 

प्रात: बुढिया की आंख खुलने पर उसने आंगन में अति सुंदर गाय और बछडा पाया. वृ्द्धा अति प्रसन्न हो गई. जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय बछडे़ को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी. साथ ही देखा, कि गाय ने सोने का गोबर किया है. उसने वह गोबर अपनी गाय्त के गोबर से बदल दिया. रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी ना लगी. 

भगवान ने देखा, कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है, तो उन्होंने जोर की आंधी चला दी. इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया. सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही. अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी. उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी, कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है. 

राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली. बुढ़िया ने वियोग में, अखंड व्रत रखे रखा. उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया. राजा ने रात को उसे स्पने में गाय लौटाने को कहा. प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया. साथ ही पड़ोसन को उचित दण्ड दिया. राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया. तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे. (kbeautypharm.com) और वे खुशियों को प्राप्त हुए.

रविवार के व्रत के विषय में यह कहा जाता है कि इस व्रत को सूर्य अस्त के समय ही समाप्त किया जाता है. अगर किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाये, और व्रत करने वाला भोजन न कर पाये तो अगले दिन सूर्योदय तक उसे निराहार नहीं रहना चाहिए. अगले दिन भी स्नानादि से निवृ्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए.  

सूर्यास्त में सूर्य देव की पूजा करने के बाद निम्न आरती का श्रवण व गायन करना चाहिए.

आरती | Aarti

कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकी जोत विराजे। ।।टेक।।
सात समुद्र जाके चरणनि बसे, कहा भये जल कुम्भ भरे हो राम।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।
भार अठारह रामा बलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा गयो नैवेद्य धरे हो राम।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम।
चार वेद जाको मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्म वेद पढ़े हो राम।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।
हिम मंदार जाके पवन झकोरें, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम।
लख चौरासी बंध छुड़ाए, केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment