द्वितीया तिथि | Dwitiya Tithi

द्वितीया तिथि को कई नामों से जाना जाता है. यह तिथि दौज व दूज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है. इस तिथि के देव ब्रहा जी है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को ब्रह्मा जी पूजन करना चाहिए. इस तिथि का एक अन्य नाम सुमंगला है. अगर किसी माह में यह तिथि दोनों पक्षों में बुधवार के दिन पडती है, तो इसे ऎसे में इन्हें सिद्धिदा कहा जाता है, सिद्धा तिथि अपने नाम के अनुसार फल देने वाली मानी जाती है. अर्थात इस तिथि में किए गए सभी कार्य सिद्ध होते है.

द्वितीया तिथि से बनने वाले योग

तिथि से बनने वाले योगों में यह तिथि अनेक योग बनाती है. द्वितिया तिथि अगर सोमवार या शुक्रवार इन दोनों में से किसी भी वार को पडे, फिर चाहे कोई भी पक्ष हो तो यह मृत्युदा तिथि योग बनाती है. मृत्युदा तिथि में कोई भी शुभ कार्य करने पर मृत्यु होने की संभावना होती है. इस तिथि में किए गये सभी कार्यो की कार्यसिद्धि में कमी होती है.

यह माना जाता है, कि शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शिव जी गौरी के समीप होते है. ऎसे में भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद सरल रहता है. इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान शिव का पूजन करना शुभ नहीं होता है.

द्वितीया तिथि व्यक्ति विशेषताएं

जिस व्यक्ति का जन्म द्वितीया तिथि में होता है, उस व्यक्ति में विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षण होता है. इस कारण जातक गलत संगत में भी पड़ सकता है. जातक भावनात्मक रुप से कुछ कमजोर हो सकता है. जल्दी ही दूसरों की बातों पर आ सकता है. अपने काम को लेकर एकाग्र होता है और मेहनत से मुख नहीं मोड़ता. परिश्रम से भाग्य का निर्माता बनता है.

इस योग का व्यक्ति सत्य बोलने से बचता है. इस कारण उसे अपने निकट के लोगों से स्नेह की प्राप्ति नहीं होती है. मित्रों की अधिकता होती है. व्यक्ति को घूमने फिरने का शौकिन होता है. लम्बी यात्राओं पर जाता है. जातक अपने लोगों से अधिक दूसरों के प्रति अधिक प्रेम दिखाता है. अपनों के साथ मतभेद अधिक परेशान करते हैं.

मान-मर्यादा मे आगे कुल का नाम बढाने वाला होता है. जातक के काम समाज में उसे सम्मानित स्थान भी देते हैं. कानून का अच्छा जानकार हो सकता है. इस तिथि में जन्मे जातक को ब्रह्मा जी की उपासना करने से जीवन में मौजूद परेशानियों का नाश होता है.

द्वितीया तिथि पर्व

द्वितीया तिथि के दौरान भी पूजा-पाठ और पर्व मनाए जाते हैं. वर्ष भर के दौरान कुछ ऎसे त्यौहार और उत्सव आते हैं जो द्वितीया तिथि के अवसर पर आयोजित होते हैं.

भाई दूज –

द्वितीया तिथि में भाई दूज का पर्व विशेष रुप से उल्लेखनीय है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भैया दूज का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. भाई बहन के प्रेम का प्रतीक ये त्यौहार अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाने वाला होता है.

जगन्नाथपुरी रथ यात्रा –

यह यात्रा का आयोजन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है. इस यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनकी बहन सुभद्रा जी पूजन होता है और इनकी रथ यात्रा निकाली जाती है.

अशून्य शयन व्रत –

श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन अशून्य शयन व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान श्री विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा होती है. यह व्रत समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. स्त्री को सौभाग्य का आशिर्वाद मिलता है और सुखी दांपत्य का सुख प्राप्त होता है.

नारद जयती –

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद जयंती का पर्व मनाया जाता है. नारद जी, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं. इस दिन नारद जी की पूजा अर्चना की जाती है साथ ही भगवान विष्णु जी का पूजन भी होता है.

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जैमिनी चर दशा में पद | Padas in Jaimini Char Dasha

जैमिनी चर दशा में पदों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है. पद की गणना के विषय में कई मतभेद हैं. आपके सामने पद निर्धारण में केवल वही नियम लगाएँ अथवा बताए जाएँगें जो अधिक प्रचलित हैं. कई विद्वान पद लग्न अथवा आरुढ़ लग्न और उप-पद की ही गणना करते हैं. जबकि सभी सातों ग्रहों की गणना तथा सभी बारह राशियों की गणना महत्वपूर्ण हैं. पदों की गणना का क्रम निम्न प्रकार से है :- 

सबसे पहले देखें कि लग्न भाव से लग्नेश कौन से भाव में स्थित है. आप लग्न से गिनती करते हुए लग्न के स्वामी ग्रह तक गिनें. उसके बाद लग्न से जितने भाव दूर लग्नेश है, उतने ही भाव आगे आप फिर गिनें. जिस भाव तक गणना आती है, उस भाव में लग्न पद लिख दें अथवा आरुढ़ लग्न लिख दें. 

उदाहरण के तौर पर हम पाठ दो की कुण्डली का आंकलन करते हैं. पाठ दो की उदाहरण कुण्डली के अनुसार लग्न में कर्क राशि उदित है. कर्क राशि का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है. अब हम लग्न से चन्द्रमा तक सव्य क्रम में गणना करेगें. लग्न से चन्द्रमा तक गिनती करने पर चन्द्रमा पाँचवें भाव में स्थित है. अब हम पाँचवें भाव से फिर से गणना शुरु करेगें और पाँच भाव आगे तक गिनेगें. चन्द्रमा से पाँच भाव आगे नवम भाव तक गणना पूर्ण होती है. इसका अर्थ यह हुआ कि लग्न का पद नवम भाव में आता है. इसे आरुढ़ लग्न भी कहते हैं. नवम भाव में आप अपनी पहचान के लिए पद-लग्न लिख सकते हैं या 1P लिख दें. 

उपरोक्त तरीकें से ही अन्य सभी भावों में स्थित राशियों से गणना आरम्भ करके राशि स्वामी तक गिनेंगें. इसमें एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि राशि से राशि स्वामी जितने भाव आगे है उतने भाव आगे फिर से गणना करनी है. जिस भाव में गणना खतम होगी उस भाव में पद को चिन्हित कर दें. 

पाठ दो की उदाहरण कुण्डली के अनुसार द्वित्तीय भाव में सिंह राशि आती है. सिंह राशि का स्वामी सूर्य अपने भाव से सात भाव आगे अष्टम भाव में स्थित है. अब अष्टम भाव से सात भाव आगे गणना आरम्भ करेगें. अष्टम भाव से सात भाव आगे गिनने पर द्वित्तीय पद दूसरे भाव में ही पड़ता है. इस प्रकार दूसरे भाव में 2P आता है. बाकी पदों की गणना भी इसी प्रकार की जाएगी. 

सभी बारह पदों की गणना में पद – लग्न, दारा-पद तथा उप-पद महत्वपूर्ण होता है. लग्न की गणना से पद लग्न बनता है. सप्तम भाव की गणना जिस भाव में पूर्ण होती है उस भाव में दारा-पद आता है. बारहवें भाव की राशि का पद जिस भाव में आता है उस भाव में उप-पद आता है. 

भविष्यवाणियों में पद – लग्न अथवा उप – पद की गणना का विशेष महत्व है. 

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मानक समय | Mean Time

सूर्य की गति पूरे वर्ष एक-सी नहीं रहती है. यह गति घटती-बढ़ती रहती है. इस कारण संसार के विभिन्न स्थानों पर समय – समय भिन्न होता है. हर देश का मानक समय अलग-अलग होता है. हर देश के विभिन्न क्षेत्रों का स्थानीय समय भी एक-सा नहीं होता है. पूरे विश्व के लिए ग्रीनविच के समय को औसत समय मान लिया गया है. भारत में मानक समय 82 अंश 30 मिनट को माना गया है. इस प्रकार सर्वप्रथम आप स्थानीय समय को समझे उसके बाद आप स्थानीय समय में संशोधन करना समझ पाएंगें. आइए पहले भारत के मानक समय को जानें. 

भारतीय मानक समय | Indian Mean Time

मानक देशांतर अथवा याम्योत्तर रेखा 82 अंश 30 मिनट देशांतर के ठीक ऊपर जब सूर्य आएगा तब दोपहर के 12 बजे का समय होगा. 82 अंश 30 मिनट भारत का मानक देशांतर है. 

स्थानीय औसत समय | Local Mean Time (LMT)

स्थान विशेष के लिए निर्धारित किया गया समय स्थानीय औसत समय कहलाता है. 

ग्रीनविच औसत समय |Greenwich Mean Time (GMT)

जब सूर्य ग्रीनविच याम्योत्तर(Meridian) रेखा के ऊपर स्थित होगा तब उस समय ग्रीनविच में दोपहर 12 बजे का समय होगा. उसके बाद सूर्य ग्रीनविच याम्योत्तर से पश्चिम की तरफ जितना खिसकता जाएगा, उसमें 1 अंश के अनुसार समय बढ़ता जाएगा. 1 अंश बराबर है 4 मिनट के. 

इस प्रकार निर्धारित समय ग्रीनविच औसत समय कहा जाएगा. 

15 अंश = 1 घण्टा

1 अंश = 4 मिनट 

1 मिनट = 4 सैकण्ड   

क्षेत्रीय मानक समय | Zonal Standard Time (ZST)

किसी क्षेत्र विशेष के देशांतर अथवा याम्योत्तर रेखा के आधार पर, ग्रीनविच औसत समय, के अनुसार निकाला गया समय क्षेत्रीय मानक समय कहलाता है. किसी स्थान विशेष का औसत समय निकालने के लिए आपको अपने पास एफेमरीज रखनी चाहिए. एफेमरीज में सभी प्रमुख देशों के मानक समय लिखे हैं. भारत के सभी प्रमुख शहरों के स्थानीय मानक समय भी आपको एफेमरीज में मिल जाएंगें. एफेमरीज की सहायता से आप सभी स्थानों का औसत समय जान सकते हैं. 

आपको एक उदाहरण की सहायता से औसत समय निकालने की विधि समझाने का प्रयास किया जा रहा है. आशा है आपको समझ आ जाएगा. दिसपुर का स्थानीय समय रात्रि के 11 बजकर 50 मिनट है. सबसे पहले आप दिसपुर के देशांतर(Longitude) तथा अक्षांश(Latitude) को एफेमरीज में से नोट करें. अब एफेमरीज में से स्थानीय समय संशोधन नोट करें. दिसपुर का देशांतर है : 93 48E. दिसपुर का अक्षांश है : 25 05N. स्थानीय समय संशोधन है 45 12. 

अब दिसपुर के स्थानीय समय अर्थात रात्रि के 11 बजकर 50 मिनट में 45 मिनट और 12 सेकण्ड को जमा करेंगें. रात्रि के 11:50 घण्टे भारतीय मानक समय है अर्थात IST है. इसमें अब स्थानीय समय संशोधन अर्थात LMT किया जाएगा. LMT के बाद आपको नया समय प्राप्त होगा. आपके पास अब रात्रि के 12:35:12 घण्टे का समय है. माना यह समय 30 जुलाई 2006 की रात्रि का है तो अब यह 30/31 जुलाई की रात्रि का समय हो गया है. इसे अब आप 31 जुलाई 00:35:12 घण्टे भी लिख सकते है. 

आइए इस अंतर को विस्तार से समझें. दिसपुर का देशांतर है :- 93 अंश 48 मिनट 

भारत का मानक देशांतर है :-       82 अंश  30 मिनट 

दोनों में अंतर है :-       11 अंश  18 मिनट का 

अब आप समझे कि 1 अंश = 4 मिनट (जैसा कि ग्रीनविच औसत समय में बताया गया है) 

तो        11अंश *4 = 44 मिनट 

1 मिनट = 4 सेकण्ड तो 18 सेकण्ड *4 = 72 सैकण्ड 

60 सैकण्ड = 1मिनट 

अब 1मिनट को भी 44 मिनट में जोड़ने पर 45 मिनट 12 सैकण्ड बनते है. यही LMT संशोधन हमने दिसपुर के समय में किया है. आप देशांतर के अंतर से समय संशोधन करें या एफेमरीज में से देखकर स्थानीय समय संशोधन करें, आपका उत्तर एक ही होगा. 

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अक्वामरीन – Aquamarine | Aquamarine Gemstone – Aquamarine Qualities (Who Should Wear Aquamarine Sub-Stone)

यह उपरत्न नीले रंग में पाया जाता है. पीले रंग में हरे तथा नीले रंग की आभा लिए यह उपरत्न मिलता है. किसी उपरत्न में हरे नीले रंग से लेकर गहरे नीले रंग तक की आभा होती है. गहरे नीले रंग के अक्वामरीन बहुत दुर्लभ पाए जाते हैं. यह एक नरम रत्न है. बडे़ अक्वामरीन में रंगों की तीव्रता अधिक होती है जबकि छोटे में कम होती है.

अक्वामरीन के गुण | Qualities of Aquamarine 

इस उपरत्न के धारण करने से व्यक्ति विशेष की नसें मजबूत रहती हैं. उसे नसों से संबंधित दर्द की शिकायत कम होती है. अंत:स्त्रावी ग्रंथियाँ, दाँतों का दर्द, गले, गर्दन तथा जबडे़ से संबंधित विकारों से निजात मिलती है. यह लीवर और किडनी को बली बनाता है. इस उपरत्न को धारण करने से आँखों, कान और पेट के विकार कम होते हैं. सर्दी-जुकाम से राहत मिलती है. यह उपरत्न समुद्रिय खतरों से व्यक्ति विशेष की रक्षा करता है. यह दु:खों और अवसादों को भी कम करता है.   

अक्वामरीन के अलौकिक गुण | Supernatural Qualities of Aquamarine Stone

यह उपरत्न नव-विवाहित जोडे़ को धारण करना चाहिए. इससे उनके विवाहित जीवन पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है. यह उनके वैचारिक मतभेदों को कम करता है. नवविवाहित एक अच्छा, सुखी और आरामदायक जीवन व्यतीत करते हैं. जिन लोगों के विवाह को कई वर्ष बीत गये हैं और उनका जीवन नीरस हो गया है, तब इस उपरत्न को धारण करने से उनके दाम्पत्य जीवन में फिर से बहार आ जाएगी. यह नए दोस्त बनाने में भी सहायक होता है.

यह व्यक्ति के मनोबल तथा इच्छाशक्ति को दृढ़, बली तथा मजबूत बनाता है. यह बुरे ख्यालों को व्यक्ति से दूर रखता है. कुछ विचारधाराओं के अनुसार अक्वामरीन में योग तथा ध्यान लगाने के लिए चमत्कारी गुण हैं.

कौन धारण करे | Who Should Wear Aquamarine Stone – Should I Wear Aquamarine Sub-Stone

अक्वामरीन को पन्ना रत्न का उपरत्न माना गया है. अत: इस उपरत्न को वह व्यक्ति धारण कर सकते हैं जिनकी कुण्डलियों में बुध ग्रह शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित होता है.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Aquamarine Gemstone

गुरु, सूर्य, मंगल, राहु, केतु तथा चन्द्रमा का रत्न तथा उपरत्न के साथ इस उपरत्न को धारण ना करें.

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बेरिल उपरत्न । Beryl Gemstone – Colorless Beryl – Properties Of Beryl

बेरिल बहुत ही लोकप्रिय उपरत्न हैं.(Beryl is a very popular sub-stone) बेरिल एक उपरत्न ना होकर कई उपरत्नों का एक समूह है. बेरिल में कई रंग के उपरत्न आते हैं. यह कई उपरत्नों की जड़ है. बेरिल नाम को भारत की देन माना गया है. यह संस्कृत के शब्द “वेरुलियम” से उपजा है. यह एक लोकप्रिय उपरत्न है. यह रंगहीन अवस्था से लेकर अन्य कई रंगों में पाया जाता है. रंगहीन बेरिल को बढ़िया माना गया है. गुलाबी रंग के बेरिल को भी अच्छा माना जाता है. बेरिल समूह के हर बेरिल की अपनी विशिष्ट पहचान तथा विशेषता है. बेरिल समूह के कुछ उपरत्न निम्नलिखित हैं :-

गुलाबी बेरिल अथवा मोर्गेनाइट | Pink Beryl Or Morganite

मोर्गेनाइट नामक बेरिल को “रोज बेरिल” “गुलाबी पन्ना” और ” सेसियम बेरिल” के नाम से भी जाना जाता है. मोर्गेनाइट उपरत्न हल्के गुलाबी रंग से लेकर गहरे गुलाबी रंग में पाया जाता है. नारंगी अथवा पीले रंग में भी मोर्गेनाइट पाया जाता है. इन रंगों में रंगीन धारियाँ भी बहुतायत में पाई जाती हैं. इस उपरत्न को आग में तपाया जाता है (This substitute is heated in fire). आग में तपाने से इसकी पीली धारियाँ और विकिरणें खतम हो जाती हैं और उपरत्न में चमक आती है.

लाल बेरिल अथवा बिक्सबाइट | Red Beryl Or Bixbite

यह उपरत्न लाल पन्ना अथवा स्कारलेट पन्ना के नाम जाना जाता है. यह बेरिल समूह में लाल रंग का उपरत्न है. इसके बारे में सर्वप्रथम 1904 में पता चला था. विशेषज्ञो का मानना है कि इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति में ऊर्जा शक्ति का विकास होता है और रचनात्मक क्रिया-कलापों में वह दिलचस्पी रखता है. इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति विशेष पहले से अधिक सतर्क तथा चौकन्ना रहता है (By wearing this substitute, a person becomes more alert and vigilant). यह व्यक्ति के महत्वपूर्ण संबंधों में और अधिक प्रगाढ़ता और तालमेल स्थापित करता है. धारणकर्त्ता को दिल संबंधी समस्याओं से दूर रखता है. यह फेफडो़ के लिए भी लाभदायक उपरत्न है. पाचन क्रिया से संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिलता है.

यह उपरत्न धारणकर्त्ता के जीवन में चमत्कारिक रुप से बदलाव लाता है. 

नीला बेरिल | Blue Beryl

बेरिल के इस समूह में नीले रंग के बेरिल आते हैं. अक्वामरीन और फीरोजा(Turquoise) बेरिल समूह के उपरत्न है. यह नीले रंग और नीले रंग में हरे रंग का मिश्रण लिए हुए होते हैं. इसे धारण करने से व्यक्ति का मानसिक विकास होता है. उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है. अपने बुद्धि – कौशल से वह कार्यों में सफलता हासिल करता है.

हरा बेरिल | Green Beryl

यह उपरत्न हरे रंग में पाया जाता है. यह हरे पन्ने का उपरत्न भी माना जाता है (This sub-stone is also considered as the substitute of emerald). इसलिए इसे हरे पन्ने के उपरत्न के रुप में धारण किया जाता है. यह मस्तिष्क को संतुलित रखने में सहायक होता है. व्यक्ति विशेष में आध्यात्मिकता का विकास करता है.

रंगहीन बेरिल | Colorless Beryl

रंगहीन बेरिल को गोशेनाइट(Goshenite) भी कहा जाता है. जिन बेरिल में रंग होता है वह दोषपूर्ण होते हैं. रंगहीन बेरिल दोषरहित तथा शुद्ध होता है. प्राचीन समय में यह उपरत्न इसकी पारदर्शिता के कारण आँखों के चश्मे तथा लेंस के रुप में इस्तेमाल किया जाता था. आधुनिक समय में रंगहीन बेरिल का उपयोग उपरत्न के रुप में किया जाता है. यह कांच की तरह चमकने वाला उपरत्न है. 

हेलिओडोर – सुनहरा बेरिल । Heliodor Or Golden Beryl

यह सुनहरे रंग का बेरिल है. यह पीले रंग की आभा से सुनहरे रंग तक के रंगों में उपलब्ध होता है. इसमें पन्ना रत्न के उपरत्न के जैसे कई दोष भी मौजूद होते हैं. गोल्डन बेरिल हेलीओडोर का पर्याय है. “Helios” का अर्थ ग्रीक में सूर्य होता है. सुनहरा बेरिल पीले रंग में अथवा सुनहरे रंग में पाया जाता है. यह उपरत्न सुनहरे रंग में पीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. 

बेरिल के गुण । Qualities Of Beryl

यह उपरत्न तनाव को दूर करने में सहायक होता है. मस्तिष्क को शांत रखता है( It gives menatl peace). बेरिल समूह के प्रत्येक रंग के उपरत्न का संबंध शरीर के हर चक्र से जुडा़ है. हरे रंग के बेरिल को धारण करने से व्यक्ति सभी प्रकार के माहौल में रह सकता है. हर तरह के वातावरण को स्वीकारता है. व्यक्ति की सभी प्रकार से चिकित्सा करता है. नीले रंग का बेरिल व्यक्ति में संचार क्षमता का विकास करता है. व्यक्ति के बोलने की क्षमता को प्रोत्साहित करता है. गुलाबी रंग का बेरिल विवाहित व्यक्तियों के नीरस जीवन में एक बार दुबारा रस घोलता है. सुनहरे रंग का बेरिल और रंगहीन बेरिल व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में वृद्धि करता है. पीले रंग का बेरिल धारणकर्त्ता को शक्ति और ताकत प्रदान करता है. (Yellow color Beryl gves powera and energy to an individual) 

यह उपरत्न पेट के विकारों को दूर करने में उपयोग में लाया जाता है. पाचन क्रिया से जुडी़ बीमारियों में इस उपरत्न का उपयोग किया जाता है. तंत्रिका तंत्र, रीढ़ तथा हड्डियों से संबंधित परेशानियों को दूर करता है. शरीर के संचार तंत्र तथा फुफ्फुस तंत्र में वृद्धि करता है. आँख तथा गले की बीमारियों को दूर करने में सहायक है. बेरिल उपरत्न को दर्द भगाने वाली औषधि के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है. 

कौन धारण करे | Who Should Wear

रंगहीन बेरिल को बेरिल समूह के अन्य उपरत्नों में सबसे अधिक अच्छा माना गया है. इसे सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं (Everyone can wear this sub-stone).

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पराशर सिद्धान्त – ज्योतिष का इतिहास

नारद और वशिष्ठ के फलित ज्योतिष सिद्धान्तों के संबन्ध में आचार्य पराशर रहे है. आचार्य पराशर को ज्योतिष के इतिहास की नींव कहना कुछ गलत न होगा. यह भी कहा जाता है, कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री नहीं हुआ. ज्योतिष शास्त्रों का अध्ययन करने वालों के लिए इनके द्वारा लिखे ज्योतिष शास्त्र ज्ञान गंगा के समान है. इनके द्वारा लिखे गए ज्योतिष शास्त्र, जिज्ञासा शान्त करते है. तथा व्यवहारिक सिद्धान्तों के निकट होते है. 

इसी संदर्भ में एक प्राचीन किवदंती है, कि एक बार महर्षि मैत्रेय ने आचार्य पराशर से विनती की कि, ज्योतिष के तीन अंग है. इसमें होरा, गणित, और संहिता में होरा सबसे अधिक मह्त्वपूर्ण है. होरा शास्त्र की रचना महर्षि पराशर के द्वारा हुई है. अपने ज्योतिष गुणों के कारण आज यह ज्योतिष का सर्वाधिक प्रसिद्ध शास्त्र बन गया है. 

आचार्य पराशर के जन्म समय और विवरण की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. कौटिल्य शास्त्र में भी महर्षि पराशर का वर्णन आता है. पराशर का नाम प्राचीन काल के शास्त्रियों में प्रसिद्ध रहे है. पराशर के द्वारा लिखे बृ्हतपराशरहोरा शास्त्र 17 अध्यायों में लिखा गया है. 

पराशर का ज्योतिष में योगदान

इन अध्यायों में राशिस्वरुप, ग्रहगुणस्वरुप, लग्न विश्लेषण, षोडशवर्ग, राशिदृ्ष्टि, अरिष्ट,अरिष्टभंग, भावविवेचन, द्वादश भावों का फल निर्देश, अप्रकाशग्रह, ग्रहस्फूट, कारक,कारकांशफल,विविधयोग, रवियोग, राजयोग, दारिद्रयोग,आयुर्दाय, मारकयोग, दशाफल, विशेष नक्षत्र, कालचक्र, ग्रहों कि अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, त्रिकोणदशा, पिण्डसाधन, ग्रहशान्ति आदि का वर्णन किया गया है.

निम्न महत्वपूर्ण सिद्धांत सूत्र

फलित ज्योतिष के क्षेत्र में पराशर द्वारा दिए गए सिद्धांतों को बहुत उपयोग किया जाता है. पराशर द्वारा दिए गए सिद्धांतो को कुछ सूत्रों के रुप में बनाया गया है. संस्कृत श्लोक के रुप में निर्मित यह सूत्र कुण्डली विश्लेशण में बहुत महत्वपूर्ण सहायक होते हैं. वृहदपाराशर होराशास्त्र पर दिए गए नियमों को का निष्कर्ष एक बहुत ही संक्षिप्त रुप से हमें उनके दिए हुए इन सूत्रों में प्राप्त हो जाता है.

  • विंशोत्तरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए.
  • ग्रह जिस भाव में बैठा हो, उससे सातवें भाव को देखता है. इसके अलाव तीन ग्रह ऎसे हैं जिन्हें अतिरिक्त दृष्टि मिली है. शनि 3-10, गुरु 5-9 और मंगल 4-8 भाव स्थान को विशेष देखते हैं.
  • त्रिकोण(1-5-9) के स्वामी शुभ फलदायक होते हैं. त्रिषडाय(3-6-11) के स्वामी पाप फलदायक होते हैं.
  • त्रिषडाय का स्वामी अगर त्रिकोण का भी स्वामी हो तो अशुभ फल ही देगा.
  • बुध, गुरु, शुक्र और बली चंद्रमा अगर केन्द्र के स्वामी हैं तो शुभदायक नहीं होते हैं.
  • रवि, शनि, मंगल, कमजोर चंद्रमा और पाप प्रभाव युक्त बुध अगर केन्द्र के स्वामी हो तो अशुभ फल नहीं देते हैं.
  • लग्‍न से दूसरे और बारहवें भाव के स्‍वामी अन्य ग्रहों के संयोग से शुभ व अशुभ फल देते हैं.
  • गुरु और शुक्र को केन्द्राधिपति लगता है.
  • सूर्य और चंद्रमा को आठवें भाव का स्वामी होने पर दोष नहीं लगता.
  • राहु-केतु जिस भाव में जिस राशि में हों और जिस ग्रह के साथ बैठे हैं उसके अनुरुप फल देते हैं.
  • केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी की दूसरी राशि अगर केन्द्र और त्रिकोण में ही हो तो यह स्थिति शुभफलदायक होती है.
  • नौवें और पांचवें भाव के स्वामी साथ केन्द्र के स्वामी का संबंध राजयोग कारक स्थिति को दर्शाता है.
  • केन्द्र और त्रिकोण के स्वामियों की दशा शुभदायक होती है.
  • एक ही ग्रह केन्द्र व त्रिकोण दोनों का स्वामी हो तो योगकारक होता है.
  • द्वितीय एवं सप्तम भाव मारक स्थान माने गए हैं.
  • मारक ग्रहों की दशाओं में मृत्यु नही हो तो जन्म कुण्डली में बली पाप ग्रह की दशा मृत्यतुल्य कष्ट देती है.
  • ग्रह अपनी अपनी दशा और अंतरदशा में जिस भाव के स्वामी होते हैं उसके अनुसार फल देते हैं.
  • नवें भाव का स्वामी दसवें भाव में और दसवें भाव का स्वामी नवें भाव में हो तो राजयोग कारक स्थिति होती है. शुभ फल मिलते हैं.
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    चन्द्रमा ज्योतिष में । The Moon in Astrology । Know Your Planets-Moon | Which is the Vedic mantra of the Moon

    चन्द्रमा ग्रहों में मां का प्रतिनिधित्व करता है. इसे शरीर में दिल का स्थान दिया गया है. इसके साथ ही चन्द्र व्यक्ति की भावनाओं पर नियन्त्रण रखता है. वह जल तत्व ग्रह है. सभी तरल पदार्थ चन्द्र के प्रभाव क्षेत्र में आती है. इसके अतिरिक्त चन्द्र बाग-बगीचे,  नमक, समुद्री औषधी, परिवर्तन, विदेश यात्रा, दूध, मान आदि को ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र से देखा जा सकता है. आईये ज्योतिष के क्षेत्र में चन्द्रमा क्या है, जानने का प्रयास करते है. 

    चन्द्रमा के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Moon

    चन्द्रमा के मित्र ग्रह सूर्य और बुध है. 

    चन्द्रमा के शत्रु ग्रह कौन से है.| Which are the enemy planets of the Moon

    चन्द्रमा किसी ग्रह से शत्रु संबन्ध नहीं रखता है. 

    चन्द्रमा से सम् संबन्ध रखने वाले ग्रह कौन से है. | Which planet forms neutral relation with the Moon

    चन्द्रमा मंगल, गुरु, शुक्र व शनि से सम संबन्ध रखते है. 

    चन्द्र किस राशि का स्वामी है. | Moon is Which sign Lord 

    चन्द्र कर्क राशि का स्वामी है. 

    चन्द्र किस राशि में उच्च स्थान प्राप्त करते है. | Which is the exalted sign of the Moon

    चन्द्र वृ्षभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है.  

    चन्द्र की नीच राशि कौन सी है. | Which is the debiliated sign of the Moon

    चन्द्र वृ्श्चिक राशि में होने पर नीच राशि में होते है.  

    चन्द्र ग्रह की कौन सी दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है. | Which way represent the Moon

    चन्द्र ग्रह उत्तर-पश्चिम दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है. 

    चन्द्र का भाग्य रत्न कौन सा है. | Which gem must be hold for the Moon

    चन्द्र का भाग्य रत्न मोती है. 

    चन्द्र का शुभ रंग कौन सा है. | What is the colour of the Moon

    चन्द्र ग्रह का रंग श्वेत, चांदी माना गया है. 

    चन्द्र का शुभ अंक कौन सा है. | Which are the lucky numbers of the Moon

    चन्द्र का शुभ अंक 2, 11,  20 है.  

    चन्द्र ग्रह के लिए किस देव की पूजा की जाती है. | Which god should be worshipped for the Moon

    चन्द ग्रह के लिए दुर्गा, पार्वती और देवी गौरी की उपासना करनी चाहिए. 

    चन्द्र ग्रह का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Moon

    चन्द्र ग्रह का बीज मंत्र ” ऊँ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: (संकल्प संख्या 11000) 

    चन्द्र ग्रह का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Moon

    चन्द्र ग्रह का वैदिक मंत्र इस प्रकार है.

    ” ऊँ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम ।

    भाशिनं भवतया भाम्भार्मुकुट्भुशणम।। “

    चन्द्र दान उपाय कौन से है. | What should be given in Charity for the Moon

    चन्द्र की दान योग्य वस्तुएं चावल, दूध, चांदी, मोती, दही, मिश्री, श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल या चन्दन. इन वस्तुओं का दान सोमवार के दिन सायंकाल में करना चाहिए. 

    चन्द्र राशि के व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा होता है. | What is the Features of Moon person 

    चन्द्र राशि लग्न भाव में हो या चन्द्र जन्म राशि हो, अथवा चन्द्र लग्न भाव में बली अवस्था में हो, तो व्यक्ति को कफ रोग शीघ्र प्रभावित करते है, शरीर की गोलाकार प्रकृ्ति का होता है. मन प्रसन्न कर देने वाली आंखे, विनोदी, अतिकामुक, अस्थिर विचारधारा.  

    चन्द्र शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Moon represents which organs of the body

    चन्द्र शरीर में बाईं आंख, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं आंख, पेट, भोजन नली, गर्भाशय, अण्डाशय, मूत्राशय. 

    चन्द्र से कारण कौन से रोग हो सकते है. | When the Moon is at weaker position , what diseases can affect a person.

    चन्द्र कुण्डली में कमजोर या पिडित हो, तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफडे, दमा, अतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग, रक्त की कमी, नाडी मण्डल, निद्रा, खुजली, रक्त दूषित होना, फफोले, ज्वर, तपेदिक, अपच, बलगम, जुकाम, सूजन, जल से भय, गले की समस्याएं, उदर-पीडा, फेफडों में सूजन, क्षयरोग.  

    चन्द्र की कारक वस्तुएं क्या है. | What is the Moon Karaka 

    चन्द्र व्यक्ति की सोच, दिल, मन का प्रतिनिधित्व करता है.  

    चन्द्र के विशिष्ट गुण कौन से है. | Which is the Moon factor items.

    चन्द्र प्रभावित व्यक्ति बार-बार विचार बदलने वाला होता है. 

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    शिक्षा और ज्योतिष | Education and Astrology | Education Astrology

    आधुनिक समय में सभी अपनी शिक्षा का स्तर उच्च रखने की चाह रखते हैं. अभिभावक भी अपने बच्चो की शिक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं. प्राचीन समय में ब्राह्मण का कार्य शिक्षा प्रदान करना था. विद्यार्थीगण आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे. लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में काफी बदलाव आया है. (clubdeportestolima.com.co) वर्तमान समय में तो विद्या का स्वरुप बहुत बदल गया है. आज अच्छी आजीविका पाने के लिए अच्छी शिक्षा ग्रहण करना आवश्यक समझा जाता है. जबकि विद्यार्थियों को उनकी क्षमतानुसार तथा उनकी मानसिकता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करानी चाहिए. जो आगे चलकर उनके आजीविका प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सके.

    आधुनिक समय में बच्चा शिक्षा कुछ पाता है और आगे चलकर व्यवसाय कुछ होता है. ज्योतिष के आधार पर बच्चे की शिक्षा के क्षेत्र में सहायता की जा सकती है. शिक्षा का आंकलन करने के लिए शिक्षा से जुडे़ भावों का आंकलन करना आवश्यक है. कुण्डली के दूसरे, चतुर्थ तथा पंचम भाव से शिक्षा का प्रत्यक्ष रुप में संबंध होता है. आइए इन भावों का विस्तार से अध्ययन करें.

    द्वित्तीय भाव | Second House

    इस भाव को कुटुम्ब भाव भी कहते हैं. बच्चा पांच वर्ष तक के सभी संस्कार अपने कुटुम्ब से पाता है. पांच वर्ष तक जो संस्कार बच्चे के पड़ जाते हैं, वही बाकी जीवन की आधारशिला बनते हैं. इसलिए दूसरे भाव से परिवार से मिली शिक्षा अथवा संस्कारों का पता चलता है. इसी भाव से पारीवारिक वातावरण के बारे में भी पता चलता है. बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे में इस भाव की मुख्य भूमिका है. जिन्हें बचपन में औपचारिक रुप से शिक्षा नहीं मिल पाती है, वह भी जीवन में सफलता इसी भाव से पाते हैं. इस प्रकार बच्चे की एकदम से आरंभिक शिक्षा का स्तर तथा संस्कार दूसरे भाव से देखे जाते हैं.

    चतुर्थ भाव | Fourth House

    चौथा भाव कुण्डली का सुख भाव भी कहलाता है. आरम्भिक शिक्षा के बाद स्कूल की पढा़ई का स्तर इस भाव से देखा जाता है. इस भाव के आधार पर ज्योतिषी भी बच्चे की शिक्षा का स्तर बताने में सक्षम होता है. वह बच्चे का मार्गदर्शन, विषय चुनने में कर सकता है. चतुर्थ भाव से उस शिक्षा की नींव का आरम्भ माना जाता है, जिस पर भविष्य की आजीविका टिकी होती है. अक्षर के ज्ञान से लेकर स्कूल तक की शिक्षा का आंकलन इस भाव से किया जाता है.

    पंचम भाव | Fifth House

    पंचम भाव को शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण भाव माना गया है. इस भाव से मिलने वाली शिक्षा आजीविका में सहयोगी होती है. वह शिक्षा जो नौकरी करने या व्यवसाय करने के लिए उपयोगी मानी जाती है, उसका विश्लेषण पंचम भाव से किया जाता है. आजीविका के विषय में सही विषयों के चुनाव में यह भाव महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

    शिक्षा प्रदान करने वाले ग्रह | Planets Helpful in Imparting Education

    बुध ग्रह को बुद्धि का कारक ग्रह माना गया है. गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक ग्रह माना गया है. बच्चे की कुण्डली में बुध तथा गुरु दोनों अच्छी स्थिति में है तब शिक्षा का स्तर भी अच्छा होगा. इन दोनों ग्रहों का संबंध केन्द्र या त्रिकोण भाव से है तब भी शिक्षा क स्तर अच्छा होगा.

    वर्ग कुण्डलियों से शिक्षा का आंकलन | Category of Horoscope in Assessment of Education

    अभी तक शिक्षा से जुडे़ भाव तथा ग्रहों के विषयों में जानकारी प्राप्त की गई है. लेकिन इन भावों के स्वामी और शिक्षा से जुडे़ ग्रहों की वर्ग कुण्डलियों में स्थिति कैसी है? इसका अध्ययन करना भी बहुत आवश्यक होता है. कई बार जन्म कुण्डली में सारी स्थिति बहुत अच्छी होती है, लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा नहीं होता है. क्योंकि वर्ग कुण्डलियों में संबंधित भाव तथा ग्रह कमजोर अवस्था में स्थित होते हैं.

    शिक्षा के लिए नवाँश कुण्डली तथा चतुर्विंशांश कुण्डली का उपयोग अवश्य करना चाहिए. जन्म कुण्डली के पंचमेश की स्थिति इन वर्ग कुण्डलियों में देखनी चाहिए. चतुर्विशांश कुण्डली को डी – 24 तथा सिद्धांश भी कहा जाता है.

    अपने भाग्य के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: भाग्य रिपोर्ट

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    पेटालाईट उपरत्न | Petalite Gemstone Meaning | Petalite – Stone Of The Angels | Petalite – Metaphysical, Healing Ability

    यह एक उत्तम तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न संग्रहकर्त्ताओं में अधिक लोकप्रिय है. उनके लिए यह विशेष रुप से तराशा जाता है. यह उपरत्न अन्य कई उपरत्नों से मिलता – जुलता उपरत्न है. इससे कई अन्य रत्नों का भ्रम उत्पन्न होता है. रंगहीन अवस्था में यह उपरत्न जर्कन, डायमण्ड आदि का भ्रम पैदा करता है. यह एक अत्यंत नाजुक उपरत्न है. यह एक बहुत ही खूबसूरत रत्न है. पेटालाईट का यह नाम ग्रीक शब्द पेटालॉन से लिया गया है जिसका अर्थ पेड़ का पत्ता है. जिस प्रकार पेड़ के पत्ते की एक-एक संरचना उभरकर दिखाई देती है ठीक उसी प्रकार पेटालाईट की संरचना भी पत्ते के समान स्पष्ट नजर आती हैं.

    इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज 18वीं सदी में स्वीडन में हुई थी. इस उपरत्न को एंजल अर्थात देवदूत के समान माना जाता है इसलिए एंजल या देवदूत के रुप में भी जाना जाता है. इसे “Angel Stone”  अथवा “Stone of the Angels” कहा जाता है क्योंकि यह देवदूत जैसी क्रियाओं को बढा़वा देता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को विश्व के सभी क्षेत्रों से संबंधित संचार माध्यमों में सहायता प्रदान करता है अर्थात धारक दिव्य क्षेत्र से जुडे़ सभी विषयों पर संवाद करने में सक्षम होता है.

    स्कॉलेसाइट(Scolecite), लेपिडोलाइट(Lepidolite), टेक्टाइट(Tektite), तुरमलीन(Tourmaline), मॉर्गेनाइट(Morganite) तथा रोज क्वार्ट्ज(Rose Quartz ) उपरत्न पेटालाइट के अनुकूल होते हैं. इन उपरत्नों को पेटालाइट के साथ धारण किया जा सकता है.    

    पेटालाईट के आध्यात्मिक गुण | Petalite – Metaphysical Properties

    यह उपरत्न धारक की दूरदृष्टि में वृद्धि करता है. यह धारक को गहन शांति तथा खुशी प्रदान करता है. ध्यान के समय इस उपरत्न को आज्ञा चक्र के पास रखना चाहिए. इससे धारक को विश्रान्ति मिलती है. आंतरिक अन्वेषण के लिए मन को शांत रखता है. यह एक संतुलित ऊर्जा का संचार करता है. जो व्यक्ति स्वभाव से चपल होते हैं और जिनके विचार भी कुछ बिखरे तथा असंयोजित होते हैं, वह इस अदभुत उपरत्न को धारण कर सकते हैं. यह विचारों में स्थिरता प्रदान करता है. यह धारक के प्रभामण्डल को निर्मलता प्रदान करता है. यह धारक को उसकी आध्यात्मिक क्षमताओं से परे ले जाता है. धारक आध्यात्मिकता के दौरान जिन-जिन बातों का अनुभव
    करता है उन्हें बताने में सक्षम रहता है.

    यह उपरत्न भावनात्मक आघातों को भरने में सहायक होता है. यह धारक को सुरक्षा प्रदान करता है तथा उसे संतुलित रखता है. धारक स्वयं के व्यक्तित्व को पहचानता है और् अपने प्रति प्रेम को जागृत करता है. यह उपरत्न धारक को एक लय में बाँधकर रखता है और उसकी चेतना को उच्च स्तर पर बढा़वा देता है. यह उपरत्न जातक को गहराई से आध्यात्मिकता के साथ जोड़ने में सहायक होता है. इस उपरत्न को अन्तर्दृष्टि में वृद्धि का उपरत्न माना गया है. यह अन्तर्दृष्टि को खोलकर मानसिक क्षमता का विकास करता है और जातक के भीतर “टेलीपैथी” का भी विकास करता है. इस उपरत्न का एक छोटा सा टुकडा़ भी अम्रत के समान कार्य करता है.

    विशेषज्ञ कई लोगों को इस उपरत्न को पहनने की सलाह देते हैं विशेषकर तब, जब वह अपने ग्राहक अथवा मरीजों से बातचीत करते हैं. यह उच्च मानसिक क्षमता को संचालित करता है. इस उपरत्न के उपयोग से शीतल तथा संतुलित ऊर्जा का बहाव होता है जो जातक को ध्यान के दौरान जागरुक रखती है. कई जातक इस उपरत्न का उपयोग सू़क्ष्म आध्यात्मिक ज्ञान को बढा़ने तथा सुरक्षा प्रदान करने के लिए करते हैं. जादू का खेल दिखाने वाले के मध्य इस उपरत्न का उपयोग अधिक किया जाता है.

    इस उपरत्न के उपयोग से धारक दिव्य शक्तियों के साथ जुड़ता है और साथ ही साथ यह उपरत्न धारक को अपनी पुरानी सभ्यता तथा संस्कृति से भी जोड़कर रखता है. भावनात्मक रुप से जातक का मार्गदर्शन करता है. अन्तरात्मा को परमात्मा से जोड़ने में मदद करता है. धारक की आत्मा को विश्व की भलाई के लिए प्रेरित करता है. यह फरिश्तों के साथ धारक का संबंध स्थापित कराने में मदद करता है. यह उपरत्न आत्मजागृति का बेहतर तथा अदभुत उपरत्न है.

    यह शरीर के चक्रों को संतुलित रखने में सहायक होता है. यह विशुद्ध चक्र तथा सहस्रार चक्र को नियंत्रित रखता है. धारक की संचार क्षमता का विकास करता है. इन चक्रों में यदि लम्बे समय से रुकावट आ रही हो तो यह उन रुकावटों को दूर करने में सहायक होता है. यह उपरत्न शक्तिशाली है और धारक के चारों ओर की ऊर्जा को सकारात्मक रुप में रखता है. यह उसके चारों ओर के वातावरण को शुद्ध रखता है. यह उपरत्न धारक को नकारात्मक कर्मों से मुक्त रखने में सहायक होता है. यह धारक के अस्तित्व को उसकी ही नजरों में स्पष्ट करता है. धारक का परिचय वास्तविकता से कराता है.

    पेटालाईट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Petalite

    ऎसा माना जाता है कि यह उपरत्न धारक को शांत तथा तनावमुक्त रखता है. यह तनाव से होने वाली बीमारियों को आसानी से दूर करने में सहायक होता है. यह अत्यधिक चिन्ताओं से जातक को दूर ही रखता है. यह उपरत्न कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों को होने से रोकता है. एड्स की भी रोकथाम करता है. यह घावों को भरने में सहायक होता है. हड्डियों का विकास करता है. यह अवसादरुपी भावनाओं को धारक में पनपने नहीं देता और शांत रखने में सहायक होता है.

    यह उपरत्न अन्त:स्त्रावी ग्रंथियों को सुचारु रुप से संचालित करता है. यह शरीर की कोशिकाओं को नियंत्रित रखता है. आंखों से संबंधित विकारों को ठीक करता है. फेफड़ों से जुडी़ समस्याओं को हल करता है. माँस-पेशियों की ऎंठन अथवा अकड़न को होने से रोकता है. आंतों से संबंधित परेशानियों को दूर करता है. यह जोड़ों को लचीला बनाता है.

    पेटालाईट के रंग | Color Of Petalite

    यह उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. यह जिस भी रंग में पाया जाता है वह हल्के रंग होते हैं. यह रंगहीन तथा पारदर्शी अवस्था में पाया जाता है. हल्के गुलाबी रंग में यह उपरत्न पाया जाता है. यह ग्रे, लाल तथा सफेद के मिश्रण में पाया जाता है. यह उपरत्न हरे तथा सफेद के मिश्रण में भी पाया जाता है. पीलेपन की आभा लिए भी यह उपरत्न पाया जाता है. यह वायुतत्व उपरत्न है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Petalite Found

    यह उपरत्न कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरीका, ब्राजील, स्वीडन, नामीबिया, अफगानिस्तान, जिम्बाब्वे, बर्मा, आस्ट्रेलिया, रुस, मोजाम्बिक, इटली आदि देशों में पाया जाता है.

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    लग्न पर साढे़साती का प्रभाव | Effects of Sadhesati on Lagna | Sadhesati and Murti Nirnay

    पराशर ऋषि ने कारकाध्याय में त्रिकोण तथा केन्द्र स्वामियों को शुभ माना है. लग्न को केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से अधिक शुभफल प्रदान करने वाला माना गया है. जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि किसी भी एक त्रिकोण भाव के स्वामी होते हैं यह दोनों ग्रह विशेष रुप से शुभ फल देते हैं और शनि की साढे़साती उन व्यक्तियों के लिए अधिक खराब नहीं होती है. इन दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह के लग्नेश या त्रिकोणेश होने से भी साढे़साती का प्रभाव कम ही पड़ता है. इनकी दशाओं में इन ग्रहों का गोचर भी कष्टकारी नहीं होता है.

    * मेष लग्न में चन्द्रमा तथा शनि लग्न या त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं है. इसलिए साढे़साती कष्टकारी रह सकती है. 

    * वृष लग्न में शनि एक त्रिकोण भाव का स्वामी है. शनि नवमेश है. अत: शनि की साढे़साती कष्टकारी नहीं होगी.

    * मिथुन लग्न में शनि त्रिकोण भाव अर्थात नवम भाव का स्वामी है. 

    * कर्क लग्न में शनि त्रिकोणेश नहीं है लेकिन चन्द्रमा लग्नेश है. 

    * सिंह लग्न में शनि तथा चन्द्रमा त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं हैं. 

    * कन्या लग्न में शनि एक त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

    * तुला लग्न में शनि त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

    * वृश्चिक लग्न में चन्द्रमा त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

    * धनु लग्न में शनि या चन्द्रमा किसी भी त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं है. 

    * मकर लग्न में शनि लग्न भाव के स्वामी है. 

    * कुम्भ लग्न में शनि लग्न भाव के स्वामी हैं. 

    * मीन लग्न में चन्द्रमा त्रिकोण भाव का स्वामी है. 

    उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर मेष, सिंह तथा धनु राशियों में शनि तथा चन्द्रमा किसी भी त्रिकोण भाव के स्वामी नहीं हैं. अन्य सभी लग्नों में शनि या चन्द्रम अकिसी ना किसी त्रिकोण भाव के स्वामी हैं. वृष तथा तुला लग्न के लिए शनि विशेष लाभदायक हैं. यदि कुण्डली में बुरी दशा चल रही है और साढे़साती का प्रभाव भी चल रहा है तब व्यक्ति के लिए साढे़साती हानिकारक होती है. यदि कुण्डली में चन्द्रमा बहुत ही बली अवस्था में स्थित है तब शनि की साढे़साती बुरे प्रभाव नहीं देती है. 

    साढेसाती तथा मूर्ति निर्णय 

    मूर्ति निर्णय का अर्थ है कि जब कोई ग्रह नई राशि में प्रवेश करता है तब उस समय गोचर के चन्द्रमा की स्थिति का जायजा जन्म कुण्डली में स्थित चन्द्रमा की स्थिति से लगाया जाता है. मूर्ति निर्णय करने के लिए जब शनि अथवा किसी अन्य ग्रह का राशि परिवर्तन हो रहा हो तब उस समय के चन्द्रमा को भी देखा जाता है कि वह किस राशि में स्थित है. फिर जन्म कालीन चन्द्रमा से गोचर के चन्द्रमा की स्थिति का पता लगाया जाता है कि वह किस भाव में आ रहा है. इसके आधार पर मृ्ति निर्णय किया जाता है. 

    मूर्ति निर्णय

    * जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा यदि 1,6 या 11 भाव में आ रहा है तब साढे़साती श्रेष्ठ फल देने वाली होती है. यह स्वर्ण मूर्ति कहलाती है. 

    * जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा यदि 2,5 या 9वें भाव में आ रहा है तब यह रजत मूर्ति कहलाती है और साढे़साती उत्तम फल देने वाली होती है. 

    * जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा 3,7 या 10 वें भाव में आता है तब यह ताम्र मूर्ति कहलाती है और यह मध्यम फल देने वाली होती है. 

    * जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्रमा 4,8 या 12 वें भाव में आ रहा है तब यह लौह मूर्ति कहलाती है और यह निकृष्ट फल प्रदान करने वाली होती है. ह्म

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