शनिवार व्रत कथा | Shanivar Vrat Katha – Saturday Fast Story (Shaniwar ki Kahani)

एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए. और कुछ देर सोच कर बोले, देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं.

पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है. हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं. उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं.

देवराज इंद्र के आदेश पर सभी देवता पृथ्वी लोक में उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे. देवताओं के आगमन का समाचार सुनकर स्वयं राजा विक्रमादित्य ने उनका स्वागत किया. महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे. क्योकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान शक्तिशाली थे. किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी.

तभी राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के नौ आसन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा कर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा, सब देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा, आपका निर्णय तो स्वयं हो गया. जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है. राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा, राजन! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है.

तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो. मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा, सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष रहता हूं. बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है. राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा. 

उसके वंश का सर्वनाश हो गया. राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा. (lowpricebud.com) राजा विक्रमादित्य शनि देवता के प्रकोप से थोड़ा भयभीत तो हुए, लेकिन उन्होंने मन में विचार किया, मेरे भाग्य में जो लिखा होगा, ज्यादा से ज्यादा वही तो होगा. फिर शनि के प्रकोप से भयभीत होने की आवश्यकता क्या है?

उसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ वहां से चले गए, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए. राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे. उनके राज्य में सभी स्त्री पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे. कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. उधर शनिदेवता अपने अपमान को भूले नहीं थे. विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे.

राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा. अश्वपाल ने वहां जाकर घोड़ों को देखा तो बहुत खुश हुआ. लेकिन घोड़ों का मूल्य सुन कर उसे बहुत हैरानी हुई. घोड़े बहुत कीमती थे. अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया.

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुआ तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा. तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया. राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा. 

लेकिन उसे लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला. राजा को भूख-प्यास लग आई. बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला. राजा ने उससे पानी मांगा. पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी. फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से बाहर निकलकर पास के नगर में पहुंचा.

राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया. उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्ज्यिनी से आया हूं. राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई. सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया. सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था. राजा को उस कमरे में अकेला छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया.

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई, सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का सन्देह राजा पर ही किया, क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था. सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो. राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था.

इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया, राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया. राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता. इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा. शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ॠतु प्रारम्भ हुई.

राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी. उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गानेवाले को बुला लाने को कहा. दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया.

राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हुई थी. अत:उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया. राज कुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गये. राजा को लगा कि उसकी बेटी पागल हो गई है. रानी ने मोहिनी को समझाया, बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है. फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?

राजा ने किसी सुंदर राजकुमार से उसका विवाह करने की बात कही. लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया. आखिर राजा, रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पडा. विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे. उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा, आज! तुमने मेरा प्रकोप देख लिया. मैंने तुम्हें अपने अपमान का दण्ड दिया है.

राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की, हे शनिदेव! आपने जितना दु:ख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना, शनिदेव ने कुछ सोचते हुए कहा, अच्छा! मैं तेरी प्रार्थना स्वीकार करता हूं. जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत कर के मेरी कथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी. उसे कोई दुख नहीं होगा.

शनिवार को व्रत करने और चींटियों को आटा डालने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. प्रात:काल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई. उसने मन-ही-मन शनिदेव को प्रणाम किया. राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई. तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी कह सुना.

सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा. राजा ने उसे क्षमा कर दिया, क्योकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था. सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया. भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी. सबके देखते-देखते उस खूंटी ने वह हार उगल दिया. सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया.

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्ज्यिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया. उस रात उज्ज्यिनी नगरी में दीप जलाकर लोगों ने दीवाली मनाई. अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई, च्शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं. प्रत्येक स्त्री पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रत कथा अवश्य सुनें. राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए. शनिवार का व्रत करने और कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं. सभी लोग आनन्दपूर्वक रहने लगे.

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प्रतिपदा तिथि

चन्द्र मास की पहली तिथि प्रतिपदा कहलाती है. एक चन्द्र मास कुल 30 तिथियों से मिलकर बना होता है. जिसमें दो पक्ष होते है. इसका एक पक्ष शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष होता है. शुक्ल पक्ष में 14 तिथियां तथा कृष्ण पक्ष में भी 14 तिथियां होती है. प्रत्येक मास में एक बार प्रतिपदा शुक्ल पक्ष में आती है, और दूसरी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा कहलाती है. यह हिन्दू पंचाग की पहली तिथि भी है.

प्रतिपदा तिथि कैसे बनती है

शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चन्द्रमा पूर्णता की ओर बढ़ता है, शुक्ल पक्ष में सूर्य और चन्द्र का अन्तर 0 डिग्री से 12 डिग्री अंश तक होता है. यह 12 डिग्री के अंतर पर एक तिथि का निर्माण होता है जिसे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के नाम से जाना जाता है. वहीं दूसरी ओर कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा का निर्माण सूर्य और चन्द्र के मध्य 181 से 192 डिग्री तक होता है.

प्रतिपदा तिथि स्वामी

प्रतिपदा के स्वामी अग्निदेव माने गए हैं. इस प्रतिपदा तिथि को नन्दा तिथि की श्रेणी में रखा जाता है. प्रतिपदा तिथि में जन्मे जातक को अग्नि देव की पूजा अवश्य करनी चाहिए. जातक को अग्नि देव का पूजन आनन्द देने वाला कहा गया है.

प्रतिपदा तिथि योग

रविवार एवं मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मृत्युदा होती है. ऎसे में इस समय पर शुभ काम करने की मनाही होती है. इसके विपरित जब शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि होती है तो यह सिद्धा कहलाती है. इस समय पर किए गए काम शुभता और सफलता देने वाले बनते हैं.
भाद्रपद माह की प्रतिपदा शून्य कहलाती है.

शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में भगवान शिव का वास श्मशान में होने से मृत्युदायक होता है. इस समय पर शिव पूजन नहीं करना चाहिए. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में शिवपूजन शुभ माना गया है इस समय पर महामृत्युंजय जाप, रुद्राभिषेक इत्यादि कार्य शुभदायक बन जाते हैं.

प्रतिपदा तिथि व्यक्ति स्वभाव

प्रतिपदा तिथि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है. उस व्यक्ति के बुरे लोगों के संगति में रहना पड सकता है. उसके द्वारा किए गए कार्यो से उसके कुल को कलंक लगता है. ऎसा व्यक्ति गलत आदतों का आदी बन सकता है. ऎसे व्यक्ति का धर्म कार्यो में रुचि लेना उसे जीवन में मिलने वाले अशुभ प्रभावों से बचा सकता है.

जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा, प्रतिपदा को जन्मे जातक को माता की ओर से विशेष स्नेह प्राप्त होता है. व्यक्ति अपने लोगों का साथ मिलता है. अपने कार्यों से समाज में उच्च स्थान पाते हैं. जातक अपने मनोबल से मुश्किलों में भी राह निकाल लेता है.

प्रतिपदा तिथि पर्व

हिन्दू नव वर्ष –

चैत्र मास हिन्दू पंचाग का प्रथम माह होता है. इस माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को प्रतिपदा तिथि से हिन्दू वर्ष का प्रारम्भ होता है.

गोवर्धन पर्व –

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. इस के साथ ही अन्नकूट भी इसी दिन मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण भगवान की पूजा होती है और उन्हें विभिन्न पकवान भोग स्वरुप भेंट किए जाते हैं. इस उत्सव का विशेष रुप मथुरा, वृंदावन, ब्रज आदि में देखने को मिलता है.

नवरात्रि का आरंभ –

चैत्र, आश्विन, आषाढ और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नवरात्रों का आयोजन होता है. इस पर्व में प्रतिपदा तिथि के दिन ही देवी दुर्गा के अनेक रुपों का पूजन होता है. ये नवरात्रि सभी रुपों में बहुत ही प्रभावशाली होते हैं. हिन्दू नव वर्ष का आरंभ भी चैत्र प्रतिपदा तिथि के साथ ही होता है.

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मंगल राशि परिवर्तन | Mars Sign Change | Mars Transit in Aries – Effect on Taurus Moon Sign | Mars Transit Remedies for Taurus Moon Sign

वृषभ राशि वालों के लिए मंगल बारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है.धन कोष में वृद्धि होगी. दुर्घटनाओं, विवादों से पीछा छूटेगा. राजनीतिक मसले सुलझेंगे. दांपत्य जीवन में अनुकूलता आएगी. वृ्षभ राशि वालों के लिए यह मंगल मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला सिद्ध होगा. अप्रत्याशित विघ्न्र और परेशानियों का निवारण होगा. 

वृ्षभ राशि प्रभाव – मंगल राशि परिवर्तन उपाय | Mars Transit Remedies for Taurus Moon Sign

हर रोज श्रद्घानुसार साबुत हल्दी मां भगवती के मंदिर में चढाना शुभ रहेगा.

हर रोज पांच कन्याओं को श्रद्धानुसार दूध और उसके साथ-साथ पीली वस्तुओं का देना भी शुभ रहेगा.

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राहू क्या है । The Rahu in Astrology । Know Your Planets- Rahu | Which Gemstone must be hold for the Rahu.

राहू व्यक्ति को शोध करने की प्रवृ्ति देता है, राहू की कारक वस्तुओ में निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से संबन्ध, दादा,नानी, व्यर्थ के तर्क, भडकाऊ भाषण, बनावटीपन, विधवापन, दर्द और सूजन,डूबना, अंधेरा, दु:ख पहुंचाने वाले शब्द, निम्न जाति, दुष्ट स्त्री, जुआरी, विधर्मी, चालाकी, संक्रीण सोच, पीठ पीछे बुराई करने वाले, पाखण्डी. 

बुरी आदतों का आदी, जहाज के साथ जलमण्न होना, डूबना, रोगी स्त्री के साथ आनन्द, अंगच्छेदन होना, डूबना, पथरी, कोढ, बल, व्यय, आत्मसम्मान, शत्रु, मिलावट दुर्घटना, नितम्ब, देश निकाला, विकलांग,  खोजकर्ता, शराब, झगडा, गैरकानूनी, तरकीब से सामान देश से अन्दर बाहर ले जाना. जासूसी, आत्महत्या, विषैला, विधवा, पहलवान, शिकारी, दासता, शीघ्र उत्तेजित होने वाला, मलेच्छ ग्रह. 

राहू किस लिंग का प्रतिनिधित्व करता है. |  Rahu comes under which gender category 

राहू पुरुष प्रधान ग्रह है. राहू पंचम भाव में व्यक्ति को पुरुष संतान देता है. 

राहू की दिशा कौन सी है. | Which Direction  represent the Rahu.  

राहू की दिशा दक्षिण-पश्चिम है. राहू के लिए किए जाने वाले कार्य इस दिशा में करने उत्तम फल देने वाले समझे जाते है.  

राहू का भाग्य रत्न कौन सा है. | Which Gemstone must be hold for the Rahu.   

राहू का रत्न गोमेद या आँनिक्स है, आँनिक्स को सुलेमानी पत्थर के नाम से भी जाना जाता है. इस रत्न को स्त्री बायं हाथ में धारण करें, पुरुष को दुसरी या तीसरी अंगूली में धारण करना चाहिए. इस रत्न को पंचधातु में लगवा कर धारण किया जाता है.  

राहू के लिए किस देवता की पूजा करनी चाहिए. | Which god should be worshipped for the Rahu.

राहू के लिए महाशक्ति और नाग पूजा की जाती है. 

राहु का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Rahu.  

राहू का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: राहूवे नम: 

राहू का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Rahu. 

राहू का वैदिक मंत्र इस प्रकार है.  

अर्धकांयं महावीर्य़ चंद्रादित्य चिमर्दनम ।

सिंहिकाग र्भसंभूतं राहूं प्रणामाम्यहम।।

राहू के लिए कौन सी वस्तुओं का दान करना चाहिए. |  What should be given in Charity for the Rahu. 

राहू के लिए सरसों, मूली, कम्बल, तिल, सिन्दूर, केसर, सतनाज, कोयला आदि वीरवार सांय या सोमवार सुबह के समय दान करना चाहिए. 

राहू व्यक्ति को कैसा रंग-रुप देता है. | What is the form of Rahu affected people.

राहू व्यक्ति को क्रोधी, कफमय, देखने में आग जैसा, लम्बा कद, काला रुप-रंग. 

राहू शरीर में कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Rahu represents which organs of the body 

राहू शरीर में पैर, सांस प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है.  

राहू की कारक वस्तुएं कौन सी है. |  What is the specific Karaka of the Rahu. 

राहू व्यक्ति को भौतिकता, बूढा दिखना, गंजापन, सर्वातिशायी,  सिद्धान्तवादी, जहां बैठा हो उस राशि और नक्षत्र के स्वामी, राहू विदेशियों, विदेशी जातियों, विदेश ओर विदेश यात्राओं को दर्शाता है. 

राहू के विशिष्ट गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Rahu. 

राहू वैराग्यकारक, ज्ञानकारक, सनक, विदेश यात्राएं देता है.  

राहू के कारण कालसर्प योग किस प्रकार बनता है. | Kalsarp Yoga 

जब कुण्डली में राहू और केतु के बीच होते है. तो कालसर्प योग बनता है. व्यक्ति के जीवन में उत्तार-चढाव लगे रहते है. जब गोचर में राहू-केतु जन्मकालीन राहू-केतु के निकट आते है, तो वह अधिक पीडीत होता है. अगर लग्न के बाद केतु आता है, और फिर राहू राहू आता है, तो यह अशुभ योग “कालामृ्ग योग” बनता है. ऎसी  स्थिति में इस योग की अशुभता समाप्त हो जाती है. 

राहू विशाखा नक्षत्र में हो तो यह योग निष्फल हो जाता है. जब कोई भी ग्रह राहू य़ा केतु की युति में हो तो कालामृ्त योग निष्क्रिय हो जाता है. सामान्यत: कालसर्प योग शारीरिक स्वस्थता या दिमागी क्षमता या आयु को क्षीण नहीं करता है. इसके प्रभावों को सामान्यत: जीवन पर्यन्त महसूस किया जाता है. या राहू-केतु की दशाओं में महसूस किया जाता है. या जब राहू-केतु जन्मकालीन लग्न या चन्द्रमा या सूर्य पर गोचर करते है, तब महसूस किया जाता है. 

लग्न या लग्नेश या राहू-केतु पर कोई भी शुभ दृष्टि इसके अशुभ प्रभावों को कम करती है. कालसर्प योग वाले व्यक्ति को उस समय अधिक कष्ट महसूस होता है. जब राहू-केतु गोचर में जन्म कालीन भोगांशों के निकटतम होते है.  

राहू के कार्यक्षेत्र कौन से है. | Rahu and Choice of Profession

राहू व्यक्ति से शोध कार्य कराता है. जोखिम के कार्य, वकील, विद्वान, औषधी, एन्टीबायोटिक, दूरभाष, बिजली, हवाई विमान सेवा, जहाज से सम्बन्धित कार्य, वायुयान चालन, कम्प्यूटर, इलेक्ट्रोनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी, कडे और क्रूर स्वभाव के व्यवसाय, मलव्यवस्था, हड्डियों का कारखाना, खाल और चमडा, जादू, शव सम्बन्धित शवग्रह वधशाला, दुर्गन्द वाले गन्दे स्थान, संपेरा, पहलवान, नीच कार्य, कसाई वाले कार्य, चोरी, जादू-टोना, जुआ खेलना, विषैली दवाईयां, इलेक्ट्रोनिक्स, नवीनतम खोजी गई वस्तुएं और उनका कार्य, वैज्ञानिक शोध और इलेक्ट्रोन के क्षेत्र में कार्य दे सकता है.  

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शतभिषा नक्षत्र | Shatabhisha Nakshatra | Shatabhisha Nakshatra Career Yoga | Shatabhisha Nakshatra Personality

शतभिषा नक्षत्र का स्वामी राहू है. 27 नक्षत्रों में से इस नक्षत्र का 24वां स्थान है. यह नक्षत्र कुम्भ राशि में आता है. इस नक्षत्र को पांच अशुभ नक्षत्रों में गिना जाता है. शतभिषा नक्षत्र काल में कोई भी शुभ कार्य शुरु करना अनुकुल नहीं समझा जाता है. चन्द्रमा जब इस नक्षत्र में गोचर कर रहे होते है, उस समय को पंचक काल का नाम दिया जाता है. 

शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को कदम्ब के पेड की पूजा करनी चाहिए. इस पेड की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं में कमी होती है. अगर ये व्यक्ति नियमित रुप से भी इस पेड की पूजा करते है, तो जीवन के विषयों में भाग्य का सहयोग मिलना भी इन्हें शुरु होता है. 

शतभिषा नक्षत्र व्यक्तित्व | Shatabhisha Nakshatra Personality

शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से चंचल प्रकृ्ति के होते है.  निर्णय लेने में इन्हें सदैव दुविधा का सामना करना पडता है. इस नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को अपने इस स्वभाव के कारण व्यवसायिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों में परेशानियों का सामना करना पडता है.  

अगर किसी व्यक्ति का जन्म शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ हो तो व्यक्ति को जल्दबाची में लिए गए फैसलों के लिए बाद में अफसोस करना पडता है. इस प्रकार की किसी भी हानि से बचने के लिए इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति को बिना सोचे-समझे कभी भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए़. इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति का जन्म शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ हो तो व्यक्ति को चंचल स्वभाव का होने के स्थान पर विद्वान और बुद्धिमान होता है. ऎसा व्यक्ति अपने जीवन में बौद्धिक कार्यो के कारण सफल होता है.   

अगर किसी व्यक्ति का जन्म शतभिषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ हो तो व्यक्ति सदाचारी प्रकृ्ति की होती है. और वह धर्म-कर्म के कार्यो में रुचि लेता है.  ऎसे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास और उन्नति होती है. 

शतभिषा नक्षत्र कैरियर योग | Shatabhisha Nakshatra Career Yoga

शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुण्डली में अगर राहू मेष राशि में स्थित होने पर व्यक्ति को गुप्त विद्याओं में कार्य करने से सफलता मिलती है. ऎसा व्यक्ति अपने साहस से अपने शत्रुओं को शान्त रखने में कामयाब होता है. (thedentalspa.com) इस योग वाले व्यक्ति को दूसरों व्यक्तियों पर विश्वास नहीं करता है. 

राहू की स्थिति अगर कुण्डली में वृ्षभ राशि में हो तो व्यक्ति को विपरीत लिंग में अत्यधिक रुचि होने की संभावना बनती है.  यही राहू अगर दूसरे भाव अर्थात वाणी भाव में हो तो व्यक्ति चतुर होता है. तथा अपनी वाणी के सहयोग से धन संचय करने में सफल होता है.  

जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहू की स्थिति मिथुन राशि में हो उस व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. ऎसा व्यक्ति वकालत के क्षेत्र में भी सफल होता है. 

राहू की स्थिति कर्क लग्न में होने पर व्यक्ति को नितिकार्यों से कैरियर में सफलता प्राप्त होती है. इस योग युक्त व्यक्ति राजनीतिक गुरु विद्या में कुशल होता है. राहू की स्थिति 3, 6, 11 भावों में से किसी में हो तो व्यक्ति को राहू की दशा में शुभ फल मिलते है. 

अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहू सिंह राशि में हो तो व्यक्ति अपनी विद्या और बुद्धि के बल पर आगे बढता है.  

कन्या राशि में राहू अपने प्रतियोगियों को परास्त कर शत्रुओं से भी प्रशंसा प्राप्त करने में सफल होता है.

कुण्डली में राहू अगर तुला राशि में हो तो व्यक्ति को न्यान क्षेत्रों में कार्य करने से सफलता प्राप्त होती है.  परन्तु कुंण्डली में राहू कुण्डली वृ्श्चिक राशि में हो तो व्यक्ति को गुप्त विद्याओं और तांत्रिक कार्यो में रुचि होती है.  जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहू धनु राशि में हो तो व्यक्ति का ज्ञान और विद्या क्षेत्रों से जुडकर कार्य करना अनुकुल रहता है. 

जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहू मकर राशि में हो तो व्यक्ति को मेहनत और लग्न से कार्य करने से यथोचित उन्नति मिलती है. 

राहू की स्थिति कुण्डली में कुम्भ राशि में हो तो व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वकांक्षी हो जाता है. राहू मीन राशि में हो तो व्यक्ति को धर्म कर्क के कार्यो में रुचि हो सकती है.  

शतभिषा नक्षत्र स्वभाव | Shatabhisha Nakshatra Behaviour

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वयं को सुरक्षा के प्रति अधिक सतर्क रहता है. ऎसा व्यक्ति बुरे कार्यो में शीघ्र फंस सकता है. उसके जीवन में अत्यधिक उतार चढाव रहते है. अपनी योग्यता सिद्धि करने की ऎसे व्यक्ति को जिद हो सकती है.  इस नक्षत्र के व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल होता है. इन व्यक्तियों को चिकित्सा क्षेत्र में अत्यधिक सफलता प्राप्त हो सकती है. परन्तु इनका स्वयं का स्वास्थय प्रभावित रह सकता है. 

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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अमला-सरस्वती-पापादि-सिंहासन योग -ज्योतिष और योग | Amala Yoga in Astrology | Saraswati Yoga | Papadhi Yoga | Sinhashan Yoga

अमला योग को कई नामों से जाना जाता है, कुछ लोग इसे अमल योग भी कहते है. यह योग व्यक्ति को स्थिर बुद्धि का बनाने में सहयोग करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति के स्वभाव में स्थिरता का भाव देखने में पाया जाता है. 

अमल योग कैसे बनता है | How is Amala Yoga Formed 

जब लग्न अथवा चन्द्र से दशम भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो अमल योग बनता है. अमला योग लग्न और चन्द्र दोनों से देखा जाता है. अमला योग विशेष रुप से आजीविका क्षेत्र से संबन्धित होने के कारण, यह योग विशेष रुप से व्यक्ति के कैरियर में शुभता बनाये रखने में सहयोग करता है. 

अमल योग फल | Amala Yoga Results 

अमल योग से युक्त व्यक्ति गुणवान और सात्विक विचारों वाला होता है. वह दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता है, और सामाजिक कार्यो में आगे बढकर सहयोग करता है. उसे जीवन के सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती है. इसके अतिरिक्त वह अपने सगे-संबन्धियों में प्रिय होता है. समाज व अपने कार्यक्षेत्र में उसे उसके द्वारा किए गये कार्यो के लिए सम्मानित किया जाता है. 

सरस्वती योग | Saraswati Yoga 

सरस्वती योग शिक्षा से जुडा योग है. माता सरस्वती शिक्षा की देवी मानी गई है. इसलिए जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरस्वती योग हो उस व्यक्ति पर शिक्षा की देवी का आशिर्वाद बना रहता है. 

सरस्वती योग कैसे बनता है. | How is Saraswati Yoga Formed 

जब गुरु, शुक्र और बुध, लग्न से केन्द्र स्थानों अर्थात 1, 4, 7. 10 भावों, त्रिकोण स्थानों पंचम, नवम और लग्न स्थान में से किसी भी भावों में अकेले या संयुक्त रुप से हो तो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है.  

सरस्वती योग होने पर व्यक्ति का शैक्षिक स्तर उत्तम रहता है.  उसे ज्ञान अर्जन की अधिक से अधिक चाह रहती है. यह योग व्यक्ति की विद्वता में बढोतरी करता है.  

पापाधि योग | Papadhi Yoga 

चन्द्र से छठे,सातंवे और आठवें स्थान मेंकोई पाप ग्रह हों तो पापाधि योग बनता है.  अपने नाम के अनुसार यह योग शुभ योगों में से नहीं है.  अत: इस योग से मिलने वाले फल भी व्यक्ति के लिए शुभ नहीं रह्ते है. जो ग्रह इस योग में शामिल हो, उन ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में व्यक्ति को रोग आदि हो सकते है, तथा इन ग्रहों की दशा हानिप्रद होती है.

 पापाधि ग्रह दशा फल | Papadhi Yoga Results 

विशेष रुप से सप्तम भाव में बैठे पाप ग्रह की दशा.  अगर इस पाप ग्रह पर किसी शुभ ग्रह का दृष्टि संबन्ध न बन रहा हो तो, स्थिति गंभीर होती है. इस योग में शुभ ग्रहों की युति-दृष्टि संबन्ध बनने पर यह योग भंग हो जाता है. और इस योग के अशुभ फल निष्क्रय हो जाते है. 

सिहांसन योग | Sinhashan Yoga

सिंहासन योग त्रिक भाव और मारक भाव अर्थात धन भाव के योग से बनता है, इसलिए यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी हौंसला बनाये रखने का सामर्थय देता है. ऎसा व्यक्ति अपनी सारी ऊर्जा शक्ति अपने लक्ष्य प्राप्ति में लगा देता है. सामान्यत: ज्योतिष में त्रिक भावों को अशुभ माना जाता है. ज्योतिष के सभी प्रमुख शास्त्रों में इसकी अवहेलना भी की गई है. परन्तु त्रिक भावों के संयोग से बनने वाले योग सदैव अशुभ फल देने वाले नहीं होते है.  

सिंहासन योग कैसे बनता है. | How is Sinhanshan Yoga Formed 

जिस व्यक्ति कि कुण्डली में लग्न से 6, 8, 12 व 2रें भाव में सब ग्रह बैठे हो तो सिंहासन योग बनता है. यह योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को उच्च पद और सम्मान दिलाने में सहायक रहता है. 
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टाइगर आई । चिती । चिति । Tiger Eye | Chiti | Chitih | Healing Ability of Tiger Eye | Ketu

यह उपरत्न गहरे पीले रंग में पाया जाता है. हिन्दी में इस उपरत्न को “चिति” कहते हैं. इसमें सुनहरे भूरे रंग की धारियाँ पाई जाती हैं. इस उपरत्न को चमकाने के लिए पॉलिश की जाती है तब इसमें बहुत बढ़िया चमक आती है. यह उपरत्न देखने में बाघ(Tiger) की आँख जैसा है इसलिए टाइगर आई कहा जाता है. इस उपरत्न के बारे में धारणा है कि यह उपरत्न व्यक्ति विशेष के जीवन से अंधकार को दूर करने का काम करता है. जीवन में खुशहाली लाता है. इस उपरत्न को अंतदृष्टि बढा़ने के लिए पहना जा सकता है. इसे धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है. 

यह उपरत्न व्यक्ति के मस्तिष्क के विकास लिए अच्छा है. व्यक्ति के बाहरी व्यक्तित्व से इस उपरत्न का कोई संबंध नहीं है. यह व्यक्ति के अंदर एकता की भावना का विकास करता है. सभी विचारों का प्रत्यक्ष रुप से व्यक्ति को अनुभव कराता है. धारणकर्त्ता दूसरों की जरुरतों से सीख लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्त्ति के लिए जागरुक होता है. नक्काशीदार चिन्ह वाला टाइगर आई धारण करने से व्यक्ति को ध्यान तथा आध्यात्मिक ज्ञान को उन्नत करने में सहायता मिलती है.

टाइगर आई के गुण | Qualities Of Tiger Eye

इस उपरत्न को पहनने से मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है. मानसिक क्षमता को बढा़ता है. यह इच्छा शक्ति और इरादों को पक्का करने में सहायता करता है. इस उपरत्न में कई चमत्कारी गुण हैं. प्राचीन समय में लडा़ई के मैदान में सैनिकों द्वारा इस उपरत्न को धारण किया जाता था क्योंकि ऎसी धारणा थी कि यह उपरत्न सैनिकों को जीवनदान देने में सहायता करता है. यह उपरत्न व्यक्ति का ध्यान केन्द्रित करने में सहायता करता है. विश्वास को मजबूत करता है. व्यापार को आगे बढा़ने में सहायता करता है. यह आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायता करता है. सत्ता के सदुपयोग में सहायक होता है. यह अखंडता और इच्छाशक्ति को बढा़ता है.

यह व्यक्ति विशेष के जीवन में सुख तथा समृद्धि लाता है. आर्थिक रुप से व्यक्ति को मजबूत बनाता है. धारणकर्त्ता के पास धन का अभाव नहीं होने देता. जिन व्यक्तियों का मनीपूरक चक्र(Solar Plexus chakra) कमजोर है उन्हें यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से पेट से जुडी़ समस्याओं में लाभ मिलता है. जिन व्यक्तियों को वाणी दोष है उन्हें भी इस रत्न से लाभ मिलता है. जो व्यक्ति अपनी बात को करने में झिझकते हैं और आत्मविश्वास की जिनमें कमी होती है उन्हें यह उपरत्न धारण करने से अत्यंत लाभ मिलता है. दुस्वप्न में कमी करता है. व्यक्ति चैन की नींद सोता है. यह बीमार और कमजोर व्यक्तियों के लिए लाभदायक उपरत्न है.

टाइगर आई के चिकित्सीय गुण | Medicinal Properties Of Tiger Eye

इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति का उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है. यह पाचन क्रिया को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. यह पेट तथा आँतों से संबंधित बीमारियों में राहत दिलाता है. यह व्यक्ति की घबराहट को शांत करता है. पेट के अल्सर को ठीक करता है. यह उपरत्न चोटों को शीघ्र ठीक करने में सहायता करता है. जिन व्यक्तियों को हड्डियों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या है, उनसे यह जल्द राहत दिलाता है. किसी की हड्डी टूट गई है उसे जल्द तथा सही रुप से जोड़ने में सहायक होता है.
 
यात्रा पर जाने वाले व्यक्तियों को इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. इससे वह सुरक्षित रहेगें. जो व्यक्ति अत्यधिक यात्राओं पर ही रहते हैं उनके लिए यह रत्न बहुत उपयोगी है. जिन व्यक्तियों को गुर्दे(Kidney) से संबंधित समस्या है उनके लिए यह उपरत्न उपयोगी है. यदि किडनी में दमे की समस्या हो तब यह उपरत्न धारण करने से समस्या से राहत मिलती है. दिल से संबंधित समस्याओं में भी यह राहत देता है. वात रोगों से निजात दिलाता है. यह कानों से जुडे़ रोगों में राहत प्रदान करता है. छालों से जुडी़ समस्याओं के लिए लाभदायक है. 

कौन धारण करे | Who Should Wear

इस उपरत्न को वह व्यक्ति धारण कर सकते हैं जिनकी कुण्डली में केतु शुभ भावों में स्थित है और केतु का प्रभाव दशा में चल रहा है.

कौन धारण नहीं करे | Who Should not Wear

टाइगर आई उपरत्न के साथ किसी अन्य रत्न अथवा उपरत्न को धारण ना करे.

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(Jordan-anwar)

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त्रिकोण भाव | Trine House | Trikon Bhav | Kona Bhav | Analysis of Trine Houses

वैदिक ज्योतिष में राशि, भाव, नक्षत्र तथा ग्रहों के आधार पर सम्पूर्ण फलित टिका हुआ है. बारह राशियाँ, बारह भाव तथा नौ ग्रह का वर्णन सभी स्थानों पर मिलता है. ग्रहों की स्थिति के आधार पर हजारों योग बने हुए हैं. कुण्डली के बारह भावों को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है. प्रथम भाव, तनु भाव कहलाता है. द्वितीय भाव, धन भाव कहलाता है. तृतीय भाव सहज भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव को सुख भाव कहते हैं. पंचम भाव को संतान भाव कहते हैं. छठा भाव, ऋण भाव कहलाता है. सप्तम भाव को दारा भाव कहते हैं. अष्टम भाव को आयु स्थान कहते हैं. नवम भाव को भाग्य भाव कहते हैं. दशम भाव को कर्म स्थान के नाम से जाना जाता है. एकादश भाव को सभी लाभ भाव से भी जानते हैं और द्वादश भाव, व्यय भाव भी कहा जाता है. 

जन्म कुण्डली में कई भावों को शुभ तो कई भावों को अशुभ माना जाता है. कई भाव सम स्वभाव के भी होते हैं. कुण्डली के 12 भावों को केन्द्र, त्रिकोण, पणफर, अपोक्लिम, त्रिक, त्रिषडाय आदि बहुत से नामों से जाना जाता हैं. इन भावों में केन्द्र तथा त्रिकोण भाव शुभ माने जाते हैं. केन्द्र से भी अधिक शक्तिशाली तथा शुभ त्रिकोण भावों को माना जाता है. कुण्डली में तीन भाव हैं जिन्हें त्रिकोण का दर्जा दिया गया है. प्रथम भाव को पहला त्रिकोण माना गया है. इसे केन्द्र भी कहते हैं. इसलिए इसकी शक्ति कुछ कम है. पंचम भाव को दूसरा त्रिकोण कहते हैं. यह पहले त्रिकोण से अधिक बली होता है. नवम भाव को तीसरा त्रिकोण कहा जाता है. यह भाग्य भाव भी कहलाता है. तीनों त्रिकोण भावों में यह त्रिकोण सबसे अधिक बली माना गया है. 

त्रिकोण भावों का अध्ययन | Analysis of Trine Houses

पहला त्रिकोण भाव लग्न है. लग्न से जातक के बारे में समस्त जानकारी मिलती है. उसका रंग – रुप, व्यक्तित्व, साहस तथा पराक्रम करने की क्षमता आदि के विषय में जानकारी मिलती है. पंचम भाव दूसरा त्रिकोण भाव है. इस भाव से पूर्व जन्म के कर्म देखे जाते हैं. जातक अपने साथ क्या लाया और क्या नहीं लाया है. मंत्रों की सिद्धि का अध्ययन भी इस भाव से ही किया जाता है. यह भाव व्यक्ति की शिक्षा, संतान आदि का भी है. नवम भाव तीसरा त्रिकोण भाव है. इससे जातक के पिता की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है. आचार्यों तथा गुरुओं का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है. इस भाव से व्यक्ति की धर्म में आस्था भी देखी जाती है. उच्च शिक्षा का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है. 

त्रिकोण का संबंध केन्द्र के साथ | Relationship of Trine House With Kendras

त्रिकोण भावों को लक्ष्मी स्थान कहा गया है. कुण्डली में त्रिकोण भावों के स्वामी शुभ संबंध में हैं तब व्यक्ति इन त्रिकोण भावों की दशा/अन्तर्दशा में धन प्राप्त करता है. यह त्रिकोण भाव यदि कुण्डली में केन्द्र भावों से संबंध स्थापित करते हैं तो जातक को जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ मिलती हैं. केन्द्र तथा त्रिकोण भाव के स्वामियों के संबंध से राजयोग बनता है. यह योग कई प्रकार से बनता है. केन्द्र तथा त्रिकोण भावों के स्वामी का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा है तब राजयोग बनता है. केन्द्र भाव तथा त्रिकोण भाव के स्वामी एक साथ किसी शुभ भाव में स्थित है तब राजयोग बनता है. त्रिकोण भाव का स्वामी तथा केन्द्र भाव का स्वामी एक-दूसरे पर दृष्टि डाल रहें हैं तब भी राजयोग बनता है.   

त्रिकोण के संबंध से धनयोग | Dhanyoga – Relationship with Trine Houses 

यदि कुण्डली में त्रिकोण भावों का संबंध धन भाव या लाभ भाव से बन रहा है तो व्यक्ति को जीवन में कभी भी धन की कमी का सामना करना नहीं करना पड़ता है. धनयोग में शामिल ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आने पर जातक को धन की प्राप्ति होती है. कुण्डली में धन योग का निर्माण कई प्रकार से होता है. लग्न भाव का संबंध 5,9 या 11 भावों से बन रहा है. पंचम भाव का संबंध 2,9 या 11 वें भाव से बन रहा हो. नवम भाव का संबंध 2,5 या 11वें भाव से बन रहा हो.  

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आयोलाइट । काका नीली । Iolite | Kaka Neeli | Substitute of Blue Sapphire | Saturn | Vikings’ Compass

आयोलाइट, नीलम रत्न का उपरत्न है. इसे हिन्दी में “काका नीली” के नाम से जाना जाता है(Iolite is called kaka-Nili in Hindi). यह नीले रंग और बैंगनी रंग तक के रंगों में पाया जाता है. जैसे नीला रंग, गहरा नीला रंग, बैंगनी रंग, जामुनी रंग और नीले रंग की आभा लिए हुए बैंगनी रंग आदि रंगों में प्रकृति में उपलब्ध है. इस उपरत्न का संबंध शरीर के सहस्रार चक्र से है. सहस्रार चक्र(Crown Chakra) का रंग बैंगनी होता है. इसलिए इस उपरत्न का संबंध इस चक्र से है. जिन व्यक्तियों का सहस्रार चक्र कमजोर है और याद्दाश्त कमजोर है वह आयोलाइट उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

आयोलाइट का प्राचीन महत्व

प्राचीन समय में आयोलाइट एक आकर्षक रत्न के रुप में मशहूर था. प्राचीन काल में नाविकों द्वारा इस उपरत्न का प्रयोग समुद्र में कमपास(Compass) के रुप में दिशा निर्धारण में किया जाता था (In ancient times, Iolite sub-stone was used as a compass to determine the direction in seas). इसकी मदद से वह दूर देशों की यात्रा करते थे और अपने गंतव्य तक पहुँचते थे.

नाविकों ने यह देखा कि जब आयोलाइट को उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में आकाश में देखा जाता है तब वह विभिन्न प्रकार की नीली आभा लिए बैंगनी रंग की तरंगें छोड़ता है. इससे उन्हें दिशा का ज्ञान हो जाता था. पुराने समय में यह धारणा थी कि इस उपरत्न को यदि कलाकार धारण करता है तो उसकी रचनात्मक क्षमता का अत्यधिक विकास होता है.

यह उपरत्न व्यक्ति की आंतरिक आत्म शक्ति के द्वार खोलने में सहायता करता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष के आंतरिक भागों को खोजने में सहायता करता है अर्थात यह आंतरिक शारीरिक क्षमताओं का विकास करता है. कई विद्वानों का मत है कि यह उपरत्न पिछले जन्म की जानकारी प्रदान करने में सहायक होता है. यह आत्म दृष्टि तथा रचनात्मक व सर्जनात्मक अभिव्यक्ति का उपरत्न माना जाता है.

आयोलाइट के गुण

यह उपरत्न धारणकर्त्ता के जीवन में खुशियाँ लाता है(Iolite brings happiness in life). इसमें दूसरों से रिश्ता जोड़ने के तमाम गुण मौजूद हैं. इसे धारण करने से गले के विकार दूर होते हैं. नसों में यदि सूजन है तब इस उपरत्न को धारण करने से लाभ मिलता है. त्वचा विकारों से छुटकारा दिलाने में यह उपरत्न उपयोगी है. शरीर पर छाले अधिक पड़ते हों तो इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति को छालों से निदान मिलता है. बुद्धि को तीव्र करता है. इस रत्न का उपयोग हीलिंग थैरिपी में भी किया जाता है. जिसमें ये मन-मस्तिष्क को शांत रखने में बहुत सहायक बनता है.

कौन धारण करे

आयोलाइट उपरत्न को नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे

सूर्य, मंगल, बृहस्पति ग्रहों के रत्न अथवा उपरत्नों के साथ इस उपरत्न को धारण नहीं करें.

कैसे धारण करें

काका नीली को शुक्ल पक्ष के शनिवार के दिन पहनें, रत्न को कच्चे दूध ओर गंगाजल से धोकर इसे धूप दीप दिखाएं इसके बाद ऊं शं शनैश्‍चराय नम: मंत्र का जाप करते हुए इसे धारण करें.

काका नीली के फायदे

  • काका नीली रत्न का उपयोग जातक को जल्दी से फल देने में सहायक होता है.
  • काका नीली रत्न जीवन में उन्नति दिलाने में बहुत सहायक बनता है.
  • इस रत्न के पहनने से व्यक्ति को समृद्धि, खुशहाली और अच्छा समय लेकर आता है.
  • आपको मानसिक रुप से संतोष और सकारात्मकता देता है.
  • इस रत्न का उपयोग सेहत के नजरिये से भी बहुत अच्छा माना गया है.
  • ये रत्न जीवन शक्ति और उत्साह में बढ़ावा देने में बहुत सकारात्मक भूमिका निभाता है.
  • ये रत्न व्यक्ति को गलत चीजों और तंत्र-जादू-टोना-टोटका जैसी नकारात्मक चीजों से बचाता है.
  • इस रत्न का उपयोग व्यक्ति में कुशलता को बढ़ाता है.
  • व्यक्ति किसी भी कार्य को गम्भीरता से करने में सक्षम होते हैं.
  • जटिल चीज़ों को भी सरल करता है और जीवन में शांति आती है.
  • पाचन क्रिया को सुधारता है, आलस्य की भावना को दूर होती है.
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    मेलाकाइट उपरत्न | Malachite Gemstone | Malachite – Metaphysical Properties | Malachite – Healing Ability

    यह उपरत्न “दहाना फरहग” भी कहलाता है. यह उपरत्न मुख्यत: हरे रंग में पाया जाता है. इस उपरत्न को काटने के बाद इसमें शैल के समान गोल आकृति दिखाई देती है. यह उपरत्न बहुत ही छोटे क्रिस्टल में पाया जाता है. बडे़ आकार में इसके क्रिस्टल कम ही पाए जाते हैं. यह उपरत्न रेशायुक्त तथा अपारदर्शक होता है. इस उपरत्न में हरे रंग में हल्के तथा गहरे रंग की धारियाँ दिखाई देती है. यह धारियाँ ही इस उपरत्न को एक अलग पहचान देती है और इसे एक अद्वित्तीय उपरत्न बनती है. इसे जब चमकाया जाता है तब यह रेशमी दिखाई देता है. यह बहुत ही नाजुक उपरत्न है इसलिए इसे गर्मी, अम्ल तथा गर्म पानी से दूर ही रखना चाहिए.

    यह बहुत ही लोकप्रिय उपरत्न है. इसे इसके हरे रंग के कारण लोकप्रियता हासिल हुई है. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द “मैलो”(mallow) के नाम पर रखा गया है. जिसका अर्थ है – जडी़-बूटी या औषधि.

    मेलाकाइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Malachite

    यह उपरत्न मानव शरीर के सभी अवरुद्ध चक्रों को खोलने में सहायक होता है और सभी चक्रों की ऊर्जा को नियंत्रित रखता है. यह जातक की आध्यात्मिकता तथा तर्कशीलता में वृद्धि करता है. यह सच्चे प्यार को पाने, उसमें संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है. यह धारक को स्वयं की भलाई के लिए प्रोत्साहित करता है. यह उपरत्न अच्छे तथा बली भाग्य का सूचक है. धारक को समृद्धि प्रदान करता है. यह उपरत्न धारक को सुरक्षा प्रदान करता है. गर्भवती महिलाओं के गर्भ की सुरक्षा करता है. छोटे बच्चों की सुरक्षा करता है. यह बुराई से सुरक्षा करता है. हवाई यात्रा तथा अन्य यात्राओं में यह धारक को सुरक्षित रखता है. यह धारक को भावनात्मक रुप से भी सुरक्षा प्रदान करता है. जो व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, उनके लिए यह उपयोगी उपरत्न है.

    जब कोई व्यक्ति विशेष किसी समस्या से गुजरता है तब उसके लिए यह उपरत्न काफी उपयोगी सिद्ध होता है. मेलाकाइट क्रिस्टल व्यक्ति के मस्तिष्क को संतुलित रखने में सहायक होता है और वह समस्याओं का समाधान आसानी से खोज निकालता है. इसकी ऊर्जा व्यक्ति को समस्या की जड़ तक ले जाने में सहायक होती है. समस्या का अवलोकन तेजी से करता है. धारक की अन्तर्दृष्टि तथा अन्तर्ज्ञान में वृद्धि करता है. यह उपरत्न जानकारी बढा़ने के लिए मानसिक क्षमता में वृद्धि करता है जटिल अवधारणाओं अर्थात समस्याओं को समझने में सहायता करता है. 

    यह उपरत्न मोबाइल तथा कम्प्यूटर से निकलने वाली विकिरणों से धारक का बचाव करता है. यह इन विकिरणों को वातावरण से हटाकर उसे शुद्ध करता है. इस उपरत्न को किसी अच्छे रत्न विशेषज्ञ की सलाह के उपरान्त ही धारण करना चाहिए. यह उपरत्न धारक को नकारात्मकता तथा दर्दनाक दुखों से उबरने में सहायक होता है. जो व्यक्ति मानसिक अवसाद से गुजर रहें हैं उनके लिए यह एक अनुकूल उपरत्न है. कई विद्वानों का मत है कि यह उपरत्न पुनर्जन्म के लिए धारक की सहायता करता है. इसे केवल एक मत ही माना जा सकता है.

    जब धारक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नया रास्ता चुनता है तब यह उपरत्न उसे आसानी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने में मदद करता है. हरे तथा काले रंग का यह उपरत्न पिछली दुखदायी घटनाओं से निजात दिलाता है और नकारात्मक भावनाओं को कम करता है तथा धारक के जीवन में खुशियों को बढा़ने का काम करता है. यह धारक के मिजाज में संतुअलन बनाकर रखता है. धारणकर्त्ता के अड़ियल स्वभाव को लचीला बनाने में सहायक होता है.

    यह मस्तिष्क को शांत रखता है. इस उपरत्न को धारण करने से नेतृत्व की भावना का विकास होता है. यह हर प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है. यह जातक में बुद्धिमत्ता का विकास करता है. यह धारक को सुख-सुविधाओं की प्राप्ति में सहायक होता है. मानसिक तथा शारीरिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है. स्वयं को समझने में सहायक होता है. सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होता है. उपचार करने में सहायक होता है.

    यह उपरत्न धारक के संचार तथा संवाद माध्यमों को बढा़वा देता है और अन्य लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने में सहायक होता है. यह उपरत्न धारक के भीतर समाई नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में सहायक होता है और शरीर के आंतरिक असंतुलन के प्रति धारक को सचेत करता है. रचनात्मक कार्यों को करने के लिए यह एक अदभुत उपरत्न है. धारक के जीवन में पोषणता लाता है. धारक में धैर्य तथा सहनशीलता में वृद्धि करता है. यह मस्तिष्क को एकाग्रचित्त रखने में मदद करता है. बुद्धि-कौशल को बढा़ता है. स्वयं को किसी बात के लिए दोषी समझने की भावना को कम करता है.

    मेलाकाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Malachite

    इस उपरत्न से बने गहने पहनने से जातक को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. इस उपरत्न से सकारात्मक ऊर्जा बहकर जातक के सम्पूर्ण बाहरी तथा आंतरिक शरीर में संचार करती है. यह महिलाओं में माहवारी से जुडी़ समस्याओं की रोकथाम करता है. प्रसव पीडा़ तथा माहवारी के दर्द को कम करने में सहायक होता है. धारक के तंत्रिका तंत्र तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढा़ देता है. रक्तचाप को नियंत्रित रखता है. यह गठिया, अस्थमा, हड्डियों का टूटना, जोड़ों में सूजन, मिरगी आदि बीमारियों को होने से रोकता है.

    नेत्र संबंधी समस्याओं का निदान करता है. अग्नाश्य(pancreas), चक्कर आना, तिल्ली तथा  पैराथॉयराइड से धारक का बचाव करता है. यह लीवर को मजबूत बनाता है और लीवर में विषाक्त पदार्थों को जाने से अथवा विषाक्त पदार्थों को बनने से रोकता है. यह उपरत्न धारक के शरीर के उत्तकों के पुनर्निर्माण में सहायक होता है. यह हड्डियों में होने वाले दर्द से मुक्ति दिलाता है. यह अनिद्रा से दूर रखता है और धारक को चैन की नींद सुलाता है. मानसिक चिन्ता तथा तनाव से मुक्त रखने में सहायक होता है. संचार प्रणाली को तंदुरुस्त रखता है.
     

    एक विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस उपरत्न का उपयोग छोटी समस्याओं की रोकथाम अथवा किसी समस्या को होने से पहले रोकने की कोशिश की जा सकती है लेकिन बडी़ तथा गंभीर समस्या के लिए धारक को चिकित्सक की सलह अवश्य लेनी चाहिए. इस उपरत्न को पॉलिश करने के बाद ही उपयोग में लाया जाना चाहिए.

    इस उपरत्न में ताँबे की मात्रा पाई जाती है इसलिए गठिया तथा जोड़ों के दर्द से राहत के लिए इसे उपयोग करने से लाभ मिलता है. यह सूजन तथा जलन को कम करता है. शरीर के जिस भाग में समस्या है, उस भाग में कुछ समय तक इस उपरत्न का एक छोटा टुकडा़ रखना चाहिए. यह 10 से 30 मिनट तक रखना चाहिए. इससे जातक को राहत मिलेगी. इस उपरत्न को नेकलेस में दिल के पास पहनना चाहिए. इससे अनाहत चक्र बली बनता है. 

    मेलाकाइट के रंग | Colors Of Malachite

    यह उपरत्न मुख्य रुप से हरे रंग में पाया जाता है. यह गहरे हरे तथा हल्के हरे रंग में पाया जाता है. यह काले रंग में भी पाया जाता है. इस उपरत्न में हल्के तथा गहरे रंग के बैण्ड अथवा धारियाँ पाई जाती है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Malachite Found

    यह उपरत्न चिली, अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी आस्ट्रेलिया, काँगों, नामीबिया, रुस, मेक्सिको, इंगलैण्ड, एरीजोना, फ्राँस, साइबेरिया, इजराइल, जाम्बिया, यूरल आदि स्थानों पर पाया जाता है. 

    मेलाकाइट की देखभाल | Care And Cleaning Of Malachite Crystals

    इस उपरत्न को धारण करने के पश्चात यदि इसका रंग बदल जाता है तो इसका अर्थ यह है कि इस उपरत्न ने नकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर सोख लिया है. ऎसी स्थिति में मेलाकाइट को दुबारा शुद्ध करना चाहिए. यह एक बहुत ही नाजुक उपरत्न है इसलिए इसे साबुन, एसिड अथवा नमकीन पानी से नहीं धोना चाहिए. इस उपरत्न को बहते पानी में धोना चाहिए. धोते समय इसकी पॉलिश का ध्यान रखना चाहिए. दूसरा नियम यह है कि इस उपरत्न को हीमेटाइट उपरत्न के टुकड़ों में एक रात के लिए रख देना चाहिए. इससे यह उपरत्न शुद्ध हो जाएगा. इस उपरत्न को अधिक समय तक धूप में रखने से भी यह फीका पड़ जाता है. 

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