13वीं राशि “ओफियुकस” 13th Zodiac Sign “Ophiuchus”

ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार भ्रचक्र में एक बडा परिवर्तन हुआ है. इंगलैंड की प्रसिद्ध ज्योतिषिय संस्था के अनुसार राशियों की संख्या 12 से 13 हो गई है. अर्थात सूर्य को एक वर्ष में 12 राशियों के स्थान पर 13 राशियों में भ्रमण करना पडेगा. भचक्र राशि परिवार में शामिल होने वाली इस नई राशि का नाम “ओफियुकस” है. इस राशि को वृ्श्चिक राशि और धनु राशि के मध्य स्थान दिया गया है. इस राशि में सूर्य की अवधि को कुल 18 दिन का समय दिया गया है. वृ्श्चिक राशि से सूर्य अब 29 नवम्बर को बाहर निकल जायेगें, और इसके बाद वे अगले 18 दिन ओफियुकस राशि में रहेगें. 18 दिन ओफियुकस नामक राशि में रहने के बाद इनका गोचर धनु राशि में होगा.  

इस विषय की स्थिति अभी बहुत अधिक स्पष्ट नहीं है. अलग- अलग मत सामने आ रहे है. राशियों में एक नई राशि का सम्मिलित होना वैदिक ज्योतिष में आस्था रखने वाले ज्योतिषियों के लिये यह समस्या लेकर आ रहा है, कि अब राशियों के अंशों की गणना किस प्रकार की जायें.

भचक्र की स्थिति की माने तो पृ्थ्वी अपने स्थान से तीन डिग्री खिसक गई है. पृ्थ्वी का अपनी धूरी से खिसकना, एक नई राशि को जन्म दे रहा है. ब्रह्माण्ड का यह बदलाव, व्यक्तियों के जीवन पर क्या बदलाव लेकर आयेगा. इस विषय में अभी अनुमान लगाये जा रहे है.    

वैदिक ज्योतिष शास्त्र प्राचीन ज्योतिष शास्त्र है. इसके विशेषज्ञ पाश्चात्य  देशों के ज्योतिषिय परिवर्तनों को कभी स्वीकार नहीं करते है. इससे पूर्व भी जब यहा कहा गया कि ग्रहों कि संख्या 9 से हटकर 12 हो गई है. इस बात को भी वैदिक ज्योतिषियों ने स्वीकार नहीं किया था. ब्रह्माण्ड हों, या भचक्र हों, इनमें होने वाले बदलाव को वैदिक ज्योतिष स्वीकार नहीं करता है.  

भचक्र में 13वीं राशि जुडने की बात सत्य हो, या भ्रम इसकी इसके जानकारी सही रुप में मिलनी अभी संभव नहीं है. राशियों में 13वीं राशि को सम्मिलित करने से 360 डिग्री के भचक्र को बांटना अभी कठिन हो जायेगा. प्रत्येक राशि 13 डिग्री 20 मिनट की होती है. अभी एक राशि के लिये नए अंश क्या होगा? यह सब बदलाव ज्योतिष शास्त्र की रुपरेखा को पूरी तरह से बदल देगें. ग्रह दशा से लेकर ग्रह की स्थिति तक कुण्डली में बदल जायेगी. 

पृ्थ्वी के अपने धूरी से खिसकने की बात वैज्ञानिक संदर्भ में सही हो सकती है, परन्तु वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इसे सरलता से स्वीकार नहीं किया जायेगा.   दूसरी और पाश्चात्य ज्योतिष जगत में 13 का अंक प्रारम्भ से ही सभी की आंख का कांटा रहा है. 13 अंक पाश्चात्य जगत के ज्योतिषियों को स्वीकार्य होगा या नहीं, अभी इस विषय में कुछ कहना शीघ्रता होगी. अशुभ माने जाने वाला 13 अंक जब व्यक्ति के भावी जीवन का हाल बताने वाली राशियों में सम्मिलित होगा, तो लोगों को इसके फल शुभ मिलेगें, या अशुभ मिलेगे. इसके लिये कुछ समय प्रतिक्षा करनी पड सकती है.           

ज्योतिष शास्त्र से आज दो तरह के लोग जुडे हुए है, एक वो जिन्होने परम्परागत ढंग से ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा ली, ज्योतिषिय कार्य जिनकी आजीविका का आधार है. उन्हें, राशियों का 12 से 13 होना, कुछ अटपटा सा लगें, और ज्योतिष शात्र जानने वाला दूसरा वर्ग वह है, जिन्होने बडे बडे ज्योतिषिय संस्थानों में शिक्षा ली. और जीवन में होने वाले परिवर्तनों, की तरह वे ब्रह्राण्ड में होने वाले इस परिवर्तन हो भी स्वीकार करें. ऎसे लोग ज्योतिष की बारीक जानकारी पर भी नजर रखते है. और वैज्ञानिक तथ्यों को स्वीकार करने में जिन्हें कोई परहेज नहीं होता है.   

वैदिक ज्योतिष चन्द्र की स्थिति के अनुसार व्यक्ति की जन्म राशि मानता है, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति का जन्म जिस माह में हुआ होता है, उस माह, तिथि में सूर्य की जो स्थिति होती है, उसके अनुसार व्यक्ति की जन्म राशि होती है. उदाहरण के तौर पर 

सूर्य एक राशि में एक माह विचरण करता है.  उसकी गति एक दिन में एक अंश होती है. इसलिये सूर्य को पाश्चात्य ज्योतिष अपनी फलित का आधार मानता है. 

भचक्र में नई राशि जुडने के बाद पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माह-तिथि में सूर्य की स्थिति निम्न राशियों में रहेगी.  ऎसे में 29 नवम्बर से 17 दिसम्बर के मध्य जन्म लेने वाले व्यक्तियों की सूर्य जन्म राशि “ओफियुकस” कहला सकती है. 

13वीं राशि की स्थिति को स्वीकार करने के बाद वर्ष में राशियों की स्थिति भचक्र में कुछ इस प्रकार की हो सकती है.    

राशि माह तिथि से माह तिथि तक
मकर जनवरी 20 फरवरी 16
कुम्भ फरवरी 16 मार्च 11
मीन मार्च 11 अप्रैल 18
मेष अप्रैल 18 मई 13
वृ्षभ मई 13 जून 21
मिथुन जून 21 जुलाई 20
कर्क जुलाई 20 अगस्त 10
सिंह अगस्त 10 सितम्बर 16
कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
तुला अक्तूबर 30 नवम्बर 23
वृ्श्चिक नवम्बर 23 नवम्बर 29
ओफियुकस नवम्बर 29 दिसम्बर 17
धनु दिसम्बर 17 जनवरी 20
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नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र – 8/में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra

अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

* यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

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Dasha Cycles in Vedic Jyotish

जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम बिलकुल भिन्न होता है. इस पद्धति में कुल बारह दशाएँ होती हैं जो बारह राशियों पर आधारित होती हैं. आइए सबसे पहले आप बारह राशियों के बारे में जान लें. बारह राशियाँ हैं :- 

(1) मेष राशि 

(2) वृष अथवा वृषभ राशि 

(3) मिथुन राशि 

(4) कर्क राशि 

(5) सिंह राशि 

(6) कन्या राशि 

(7) तुला राशि 

(8) वृश्चिक राशि 

(9) धनु राशि 

(10) मकर राशि 

(11) कुम्भ राशि 

(12) मीन राशि 

राशियों के स्वामी ग्रह | Planetary Lord of the Signs

प्रत्येक राशि का स्वामी ग्रह अलग होता है. सूर्य तथा चन्द्रमा को एक-एक राशि का स्वामित्व मिला है जबकि अन्य बची सभी राशियों में एक-एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है. राहु तथा केतु को किसी भी राशि का आधिपत्य प्राप्त नहीं है. यह दोनों छाया ग्रह हैं. जिस राशि में होते हैं उस राशि के स्वामी ग्रह के जैसे बर्ताव करते हैं. 

राशि ग्रह स्वामी

मेष मंगल 

वृष शुक्र

मिथुन बुध 

कर्क चन्द्रमा

सिंह सूर्य

कन्या बुध 

तुला शुक्र 

वृश्चिक मंगल 

धनु बृहस्पति

मकर शनि 

कुम्भ शनि 

मीन बृहस्पति 

राशियों का दशाक्रम | Rashidasha Kram 

पिछले अध्याय में आपने राशियों तथा राशि स्वामियों के बारे में जानकरी हासिल की. जैमिनी चर दशा में  यह बारह राशियाँ पूरे भचक्र का एक चक्कर 24 घण्टे में पूर्ण करती हैं. हर राशि के आगे लिखी संख्या उस राशि की स्वामी है. जैसे पिछले अध्याय में 1 संख्या की स्वामी मेष राशि है. बाकी राशियाँ भी इसी प्रकार क्रम से स्वामी हैं. प्रत्येक राशि की अपनी स्वतंत्र दशा होती है. चर दशा में एक राशि की दशा कम-से-कम एक वर्ष तक रहती है और अधिक-से-अधिक बारह वर्ष तक की दशा व्यक्ति को मिलती है. 

दशा निर्धारण के लिए जैमिनी ऋषि ने कुछ नियम निर्धारित किए हैं. चर दशा में छ: राशियों का दशाक्रम सव्य(Direct) होता है और बाकी छ: राशियों का दशाक्रम अपसव्य(Indirect) होता है. 

सव्य वर्ग की राशियाँ | Direct category signs

यदि किसी व्यक्ति के लग्न में मेष, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ तथा मीन राशि आती है तो वह सव्य वर्ग की राशियाँ कहलाती हैं. माना लग्न में मेष राशि है तब सबसे पहले मेष राशि की दशा आरम्भ होगी. उसके बाद वृष राशि की दशा होगी. उसके बाद मिथुन राशि आदि की दशाएँ क्रम से चलेगीं. (thedentalspa) अंत में मीन राशि की दशा होगी. उसके बाद पुन: वही चक्र आरम्भ हो जाएगा. 

अपसव्य वर्ग की राशियाँ | Indirect category signs

जन्म कुण्डली के लग्न में यदि वृष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु तथा मकर राशियाँ आती हैं तो दशा का क्रम अपसव्य होगा. उदाहरण के लिए लग्न में मकर राशि है तब सबसे पहली दशा मकर राशि की होगी. उसके बाद धनु राशि की दशा होगी. धनु के बाद वृश्चिक राशि, फिर तुला राशि, कन्या राशि, सिंह राशि, कर्क राशि, मिथुन राशि, वृष राशि, मेष राशि, मीन राशि और अंतिम दशा कुम्भ राशि की होगी. इसके बाद फिर से दशाक्रम उसी प्रकार चलेगा.  

अन्तर्दशाक्रम | Antardasha Kram

जैमिनी पद्धति में प्रत्येक राशि की महादशा में अन्तर्दशा क्रम भी महादशा क्रम की तरह हैं. जैसे अपसव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम अपसव्य चलेगा और सव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम सव्य चलेगा परन्तु चर दशा में एक बात पर विशेष ध्यान यह देना होगा कि हर राशि की महादशा में उसी राशि की अन्तर्दशा सबसे अंत में आएगी. माना मेष राशि जन्म कुण्डली के लग्न में है तो मेष राशि की दशा में वृष राशि की अन्तर्दशा सर्वप्रथम होगी. उसके बाद मिथुन राशि की अन्तर्दशा होगी. मिथुन के बाद क्रम से सभी राशियों की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में मेष राशि की महादशा में मेष राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी. 

अपसव्य वर्ग में यदि धनु राशि की महादशा चल रही है तो धनु राशि की महादशा में सर्वप्रथम वृश्चिक राशि की अन्तर्दशा चलेगी. उसके बाद तुला राशि. फिर कन्या राशि की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में धनु राशि की महादशा में धनु राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी. 

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