जानिये, मार्गशीर्ष मास का महत्व

चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान का भी उल्लेख मिलता है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा और संक्रांति के दौरान किया गया दान व्यक्ति को जीवन में सुख प्रदान करने वाला होता है. व्यक्ति के पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और पापों का नाश होता है.

इस माह की महत्ता का विषय में कहा गया है कि मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही सतयुग का आरंभ हुआ और इसी माह समय पर महर्षि कश्यप जी ने कश्मीर प्रदेश की रचना की थी. इसी के साथ भगवान कृष्ण यह भी कहते हैं की मासों में मैं मार्गशीर्ष मैं ही हूं.

मार्गशीर्ष माह का नाम कैसे पड़ा

इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होने के कारण इसे मार्गशीर्ष नाम मिला. इसके अलावा मार्गशीर्ष भगवान श्री कृष्ण का ही एक रुप भी बताया गया है. साथ ही साथ इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में होती है. अत: ऎसे में इन सभी का संयोग ही इस माह को मार्गशीर्ष माह का नाम देता है.

मार्गशीर्ष माह में जन्म लेने वाला व्यक्ति

मार्गशीर्ष माह में जिस व्यक्ति का जन्म हो, उस व्यक्ति की वाणी मधुर होती है. वह धनी होता है और उसकी धर्म-कर्म में आस्था होती है. ऎसा व्यक्ति अनेक मित्रों से युक्त होता है. साथ ही पराक्रम भाव से वह अपने सभी कार्यो को पूरा करने में सफल होता है. परोपकार के कार्यो में वह स्वत: रुचि लेता है.

इस माह में जन्मा जातक अपनी व्यवहार कुशलता से लोगों को प्रभावित कर सकता है. बाहरी संपर्क से भी जातक को लाभ मिलता है. घरेलू जीवन में संघर्ष रहता है. जीवन में आने वाली बाधाओं और अव्यवस्था से बचने के लिए जातक को भगवान दामोदर की पूजा करनी चाहिए. आर्थिक संपन्नता पाने के लिए घर में शंख रखें और उसका पूजन करना चाहिए.

मार्गशीर्ष माह में किए जाने वाले उपाय

यह माह पवित्र माह माना जाता है. इसकी शुभता का उल्लेख शास्त्रों में भी किया गया है. इस माह में एकादशी या द्वादशी का उपवास करने वाले व्यक्ति के सभी पाप दूर होते है, और उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुलते है. इसके अतिरिक्त इस माह की पूर्णिमा को चन्द्र देव की विशेष रुप से पूजा की जाती है. मार्गशीर्ष माह में आने वाली एकादशी मोक्षदा एकादशी कही जाती है. इस एकादशी को मोक्ष देने वाली कहा गया है. इस माह शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को चार धाम तीर्थ स्थलों के कपाट बन्द होते है.

अगहन माह की महत्वपूर्ण बातें.

  • अगहन माह के समय भगवान विष्णु के चतिर्भुज रुप का पूजन करना उत्तम होता है.
  • मार्गशीर्ष माह में भागवत पढ़ने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है.
  • इस माह में नदी में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है.
  • इस माह के समय पर यमुना नदी में स्नान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है.
  • इस माह तुलसी के पत्तों को जल में मिला कर स्नान करना चाहिए.
  • इस माह प्रात:काल समय ॐ नमो नारायणाय और गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए.
  • इस माह में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए.
  • अगहन माह विशेष पर्व


    मार्गशीर्ष पूर्णिमा –

    मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है की इस दिन किए गए दान का फल बत्तीस गुणा होकर मिलता है. ऎसे में इस पूर्णिमा की महत्ता खुद ब खुद स्पष्ट होती है. इस पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन होता है और अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस पूर्णिमा के दिन गंगा और यमुना नदी में स्नान करना भी उत्तम होता है.

    काल भैरवाष्टमी –

    मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कालभैरवाष्टमी मनाई जाती है. इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है. भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं का नाश होता है. भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है.

    मार्गशीर्ष एकादशी –

    मार्गशीर्ष माह में होने वाली एकादशी का व्रत भी बहुत ही महत्वपुर्ण होता है. इस एकादशी के दिन किए जाने वाला व्रत एवं दान व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और व्यक्ति जीवन में सफलता पाता है.

    पिशाचमोचन श्राद्ध –

    मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्त्ति संभव होती है. इस दिन पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

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    एलेग्जन्ड्राईट । हेमरत्न । हेमवैदुर्य । कौन धारण करे । एलेग्जन्ड्राईट के गुण । Alexandrite | supernatural ability of alexandrite

    यह क्रिसोबेरिल समूह का उपरत्न है. इस उपरत्न को संस्कृत में हेमरत्न तथा हेमवैदुर्य कहा जाता है. हिन्दी में इसे हर्षल के नाम से जाना जाता है. प्रकृति में यह उपरत्न अनेक रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की विशेषता है कि यह दिन में हरा और रात में लालिमा लिए हुए जामुनी रंग का दिखाई देता है. यह पारदर्शी होता है. रंग बदलने के कारण यह अधिक लोकप्रिय है और इसे श्रेष्ठ उपरत्न का स्थान हासिल हुआ. इसमें विविध रंग की छटाएँ देखने को मिलती हैं. 

    एलेग्जन्ड्राईट के गुण | Qualities of Alexandrite

    इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है. व्यक्ति विशेष में आत्मविश्वास बढ़ता है. केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र के विकारों में सुधार होता है. इस उपरत्न को धारण करने से तिल्ली(Spleen) तथा अग्न्याशय(Pancreas) से संबंधित विकारों से छुटकारा मिलता है. जिन व्यक्तियों को मूर्छा आती है उनके लिए यह उपरत्न लाभदायक है.

    एलेग्जन्ड्राईट के अलौकिक गुण | Extraordinary Qualities of Alexandrite

    इस उपरत्न को धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है. कई बार इस उपरत्न को धारण करते ही अचानक भाग्य परिवर्तन का अनुभव किया गया है. इसको बहुत शुभ उपरत्न माना गया है. यह शुभ शकुन प्रदान करने वाला है. धारणकर्त्ता को आत्म केन्द्रित होने में मदद करता है. आत्मसम्मान को दुबारा मजबूत करने में मददगार सिद्ध होता है. इसे धारण करने से व्यक्ति की खुशियों में वृद्धि होती है. यह उपरत्न मन को नियंत्रित करने में सहायक होता है.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Alexandrite – Should I Wear Alexandrite

    जिन व्यक्तियों को मानसिक कष्टों ने घेर रखा हो वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इसे लॉकेट में भी धारण किया जा सकता है.

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    रज्जु योग कैसे बनता है

    नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के स्वामित्व या उसकी दशा अवधि के आधार पर नहीं देखा जाता है. इन योगों से मिलने वाला फल स्वतन्त्र रुप से देखा जाता है.

    नभस योग कैसे बनते हैं

    कुण्डली में राहू-केतु को छोडकर सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि किन किन राशियों में है, इस बात को ध्यान में रखते हुए नभस योग का वर्गीकरण किया जाता है. आज हम यहां नभस योगों में आने वाले रज्जु योग को समझने का प्रयास करेंगे. सभी ग्रह चर राशियों अर्थात मेष, कर्क, तुला और मकर राशि में हो तो रज्जु योग बनता है.

    रज्जु योग फल

    ऊर्जावान होता है –

    इस राशि के प्रभाव से जातक काफी प्रभावशाली और उर्जाशील होता है. जातक अपने प्रयासों से जीवन में संघर्षशील होकर अपने भाग्य का निर्माता बनता है. जातक में चंचलता भी अधिक रहती है. साहस और पराक्रम के काम करने में आगे रहता है.

    भावनात्मक –

    जातक भावनात्मक रुप से कुछ कमजोर होता है. इमोशनली जातक को कोई भी आसानी से अपनी बातों में ला सकता है. प्रेम संबंधों में जल्द ही आकर्षित होने वाला. रिश्ते को लेकर बहुत अधिक संजीदा न हो पर भावनात्मक रुप से किसी के भी साथ बहुत जल्द से जुड़ जाते हैं.

    घूमने-फिरने वाला-

    जातक घूमने फिरने का शौकिन होता है. उसे एक स्थान पर रहना या एक जैसे काम करना पसंद नही आता है. जातक को पहाड़ों में घूमना और रोमांच से भरे हुए काम करना बहुत पसंद आता है.

    बदलाव की इच्छा रखने वाला –

    जीवन में बदलाव की इच्छा भी रखता है. अपने अनुसार जीवन जीने की इच्छा भी होती है. बदलाव के चक्कर में जातक स्वयं के लिए कई बार कुछ गलत निर्णय भी ले सकता है. किसी एक काम से जल्द ही ऊब जाता है. कई बार काम उत्साह से शुरु तो करता है लेकिन काम के अंत होने से पहले ही उसे छोड़ भी सकता है. निरसता पसंद नही करता है.

    मेल-जोल वाला –

    जातक मिलनसार होता है. समाज के प्रति अपने दायित्व को समझता है. किसी की मदद करने में भी आगे रहता है.

    रज्जु योग में जन्मा जातक

    इस योग में जन्मा जातक काम के प्रति संघर्षशील होता है. तिकड़मबाज हो सकता है. योजनाएं बना कर काम करने का मन बना सकता है. एक स्थान पर बहुत समय तक टिक कर नहीं रह पाता है. दूर स्थानों की यात्रा करता है. विदेश से धन लाभ मिलता है. वह रोमांचक और दुसाहसिक काम करने का शौकिन होता है, साथ ही उसमें परिवर्तनशील प्रवृति होती है. साधारणत: ऎसा व्यक्ति अविश्वसनीय और अवसरवादी होता है.

    रज्जू योग में जन्मा जातक सामाजिक रुप से बहुत कार्यशील होता है. वह आसानी से कोई बात नही भूलता है. अगर कोई उसका दिल दुखाता है तो वह अपने मन में उस बात को सदैव ही रखे रखता है. जातक प्रसन्नचित होता है और अपने आस पास के लोगों को भी खुश रखने की कोशिश करता है. कुछ मामलों में स्वार्थी भी होता है. गुस्सैल स्वभाव के कारण कई बार अपनों का भी विरोधी बन जाता है. जातक अधिक जिद्दी होता है और मनमाने ढंग से काम करने की इच्छा रखता है.

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    मिथुन राशि प्रभाव – मंगल राशि परिवर्तन | Mars in Aries – Impact on Gemini Moon Sign

    मिथुन राशि वालों के लिए मंगल ग्यारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है. ये योजनाएं सफल भी होंगी. यदि आप बेरोजगार हैं तो रोजगार प्राप्त होगा. और यदि आप नौकरी में है तो प्रमोशन की प्रबल संभावना.मिथुन राशि वालों के लिए यह मंगल लाभ का संकेत दे रहा है. व्यवसाय के दृष्टिकोण से यह समय अति उत्तम व लाभदायक रहेगा. जमीन-जायदाद के कार्यो में विशेष लाभ मिलेगा. लाभदायक योजनाएं बनेंगी.

    मिथुन राशि प्रभाव – मंगल राशि परिवर्तन उपाय | Mars in Aries and Remedies for Gemini Moon Sign

    तांबे के बर्तन में एक लाल मिर्च, पांच गुलाब का फूल, श्रद्धानुसार साबूत उडद भरकर गरीब व्यक्ति को दान में दे दें.

    हर रोज केसर का तिलक करें.

    तांबे का सिक्का जेब में रखना बहुत ही अनुकूल रहता है.

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    एनस्टेटाइट उपरत्न, Enstatite Gemstone Meaning, Healing Properties Of Enstatite

    इस उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1855 में जी.ए.केनगोट(Kenngott) द्वारा की गई थी. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द “एनस्टेट” से लिया गया है जिसका अर्थ घटक अथवा अवयव है. यह उपरत्न प्रोक्सीन समूह का खनिज है. इस उपरत्न के प्रिज्मीय दरार की दो दिशाओं के कारण यह एक कठोर उपरत्न है. इस उपरत्न को आसानी से पिघलाया नहीं जा सकता है. यह उपरत्न पन्ना रत्न की भाँति दिखने वाला उपरत्न है. मैग्नेशियम की उपस्थिति के कारण कई बार यह गहरा हरा दिखाई देता है. इस उपरत्न में शीशे जैसी चमक तथा चिकनाई होती है.

    भारत में मैसूर स्थान में पाया जाने वाला यह उपरत्न गहरे भूरे रंग में अपनी अदभुत क्षमता तथा गुणों के कारण लोकप्रिय है. यह उपरत्न प्रचुरता से नहीं पाया जाता है. साधारण लोग इसके विषय में नहीं जानते हैं. इसलिए यह उपरत्न पर जानकारी कम उपलब्ध है. इस उपरत्न की सबसे अधिक माँग क्रोम एन्स्टेटाइट के रुप में की जाती है. जो कि हरे पन्ने के गुणों से मिलता है. यह उपरत्न सामान्यतया कायांतरित तथा आग्नेय चट्टानों के मध्य पाया जाता है.

    यह उपरत्न केवल रत्नों को जमा करने वालों के मध्य लोकप्रिय है. इसलिए इसे गहनों के रुप में उपयोग में कम ही लाया जाता है. पृथ्वी के रंग से मिलते हुए भूरे रंग में इस उपरत्न को अधिक पसन्द किया जाता है. इसलिए केवल इसी रंग को गहनों के रुप में उपयोग में लाया जाता है.

    एनस्टेटाइट उपरत्न के गुण | Healing Properties Of Enstatite

    यह धारक में निष्ठा तथा विश्वास की भावना का विकास करता है. जातक में समर्पण की भावना का विकास होता है. याद्दाश्त में वृद्धि करता है. सभी ऊर्जाओं को सुचारु रुप से संचारित करता है. यह जातक को जीवंत बनाता है. उसके खराब मूड को ऊपर उठाने में मदद करता है. यह शारीरिक क्षमताओं के बहाव को बढा़ने में सहायक होता है. धारक को अपनी प्रतिभाओं को उभारने में मदद करता है. यह शरीर के मुख्य चक्रों को खोलने में मदद करता है. मूलाधार, मनीपूरक, विशुद्ध, आज्ञा तथा सहस्रार चक्र को नियंत्रित करता है.

    यह उपरत्न धारणकर्त्ता को प्रतिस्पर्धा, महत्वाकाँक्षा, इच्छाएँ, शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करता है और उनमें वृद्धि करता है. इस उपरत्न को शौर्य तथा शिष्टता का उपरत्न माना जाता है. ऎसा माना जाता है कि यह उपरत्न धारक को बहादुर बनाता है. उसके भीतर से डर को बाहर निकाल फेंकता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को अपने प्रियजनों के साथ सीधा – सपाट रिश्ता बनाए रखने में मदद करता है. धारक रिश्तों में दिखावा नहीं कर पाता है.

    एनस्टेटाइट का रंग | Color Of Enstatite Gemstone

    यह उपरत्न गहरे रंग में पाया जाता है. गहरे भूरे रंग में लाल रंग की आभा लिए मिलता है. हरे रंग में भूरे रंग की चमक लिए पाया जाता है. पीला तथा हरे रंग के मिश्रण में पाया जाता है. रंगहीन अवस्था में भी यह उपरत्न पाया जाता है लेकिन इस अवस्था में यह बहुत ही दुर्लभ रुम में पाया जाता है. भूरे रंग में मिलता है. ग्रे रंग में भी यह उपरत्न पाया जाता है. नारंगी-भूरे रंग में भी यह उपरत्न पाया जाता है. पीले रंग में पाया जाता है.

    मुख्य रुप से यह उपरत्न हरे तथा पीले रंग में पाया जाता है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Enstatite Found

    यह उपरत्न मुख्य रुप से भारत तथा श्रीलंका में पाया जाता है. यहाँ पाया जाने वाला एनस्टेटाइट बाकी स्थानों से अधिक चमकीला होता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न दक्षिण अफ्रीका, भूरे-हरे रंग में यह बर्मा, नॉर्वे, कैलीफोर्निया, में पाया जाता है. स्वीटज़रलैण्ड, ग्रीनलैण्ड, स्कॉटलैण्ड, जापान, रूस, तंजानिया, केन्या, जर्मनी, फ्राँस, आस्ट्रिया, ब्राजील, कनाडा, पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में पाया जाता है. 

    एन्स्टेटाइट की देखभाल । Care And Cleaning Of Enstatite Crystals

    इस उपरत्न को मैला होने पर हल्के गर्म पानी में जरा सी साबुन मिलाकर साफ करना चाहिए. सफ करने के लिए हल्के तथा नरम ब्रश का उपयोग किया जा सकता है. इससे इस उपरत्न पर जमी मैल तथा धूल साफ हो जाएगी. इस उपरत्न को सूर्य की तेज रोशनी से बचाना चाहिए. कैमिकल से भी इसे दूर रखना चाहिए. इसे अधिक ताप से बचाना चाहिए क्योंकि इससे उपरत्न का असली रंग फीका पड़ सकता है.

    इस उपरत्न से बने गहनों को नरम कपडे़ से बने डब्बे में रखना चाहिए. दूसरे गहनों से इसे अलग रखना चाहिए. क्योंकि इससे क्षति अथवा दरारें पड़ सकती हैं.

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    लग्नभाग्यधिपति-राजयोग योग क्या है. | Dharmakarmadhipati Yoga | Lagnakarkadhipati Yoga | Lagnabhagyadhipati Yoga | How to Formed Rajyoga | Kalpdruma Yoga | Mridanga Yoga

    धर्माकर्माधिपति योग में नवमेश और दशमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा होता है. दोनों का एक -दूसरे से दृ्ष्टि , युति संबन्ध बन रहा होता है, कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति धर्म कर्म के कार्यो में आगे बढकर भाग लेता है. तथा वह धार्मिक आस्था युक्त होता है. धर्म क्रियाओं में भाग लेने से उसके भाग्य में भी वृ्द्धि होती है. 

    लग्नकर्माधिपति योग क्या है. । What is Lagna Karmadhipati Yoga 

    लग्नकर्माधिपति योग में लग्नेश व दशमेश की एक -दूसरे पर दृ्ष्टि या आपस में राशि परिवर्तन या दोनों की लग्न या दसवें भाव में युति हो रही होती है. यह योग व्यक्ति के स्वास्थय सुख में वृ्द्धि कर, उसे आजीविका क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहयोग करता है.  ऎसे व्यक्ति के स्वभाव में सकारात्मक दृ्ष्टिकोण पाया जाता है. जीवन के उतार-चढावों से वह व्यक्ति शीघ्र विचलित नहीं होता है.  

    लग्नभाग्यधिपति योग कैसे बनता है. | What is Lagna Bhagyadhipati Yoga

    लग्नभाग्यधिपति योग में लग्नेश और नवमेश की एक-दूसरे से दृ्ष्टि सम्बन्ध या आपस में राशि परिवर्तन, या दोनों की लग्न या नवें भाव में युति हो रही हो तो लग्नभाग्यधिपति योग बनता है. इस योग से व्यक्ति के शरीर में आरोग्य शक्ति में वृ्द्धि होती है. यह योग व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के अनेक कार्य भाग्य के सहयोग से पूरे होते है.  

    राजयोग कब और कैसे फल देते है. | How are Rajayogas Formed

    जब ग्रहों में आपस में राशि परिवर्तन या एक -दूसरे पर दृ्ष्टि संबन्ध हों, केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों के मध्य सम्बध बन रहा हो तो राजयोग बनता है. 

    राजयोग में ग्रह शुभ ग्रहों से सम्बन्ध बनाये और अशुभ ग्रहों से संबन्ध न बना रहे हों, तो राजयोग के फलों में शुभता की वृ्द्धि होती है.  

    राजयोग में शामिल होने वाले ग्रह अगर अशुभ ग्रह हों तो ग्रहों के अशुभता भाव में कमी होती है.  

    एक वक्री ग्रह राजयोग में शुभ फल दे सकता है. परन्तु उसका नक्षत्र स्वामी वक्री अवस्था में नहीं होना चाहिए. इस तरह से एक वक्री ग्रह जिस भाव में बैठता है या दृष्ट होता है. या जिसका स्वामी होता है. उसको अपनी दशा या उसके नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा में अच्छा फल देती है.

    जब संबन्धित ग्रह या लग्नेश इन स्थानों में गोचर करता है. तो राजयोग महायोग बनता है. 

    जब योग बनाने वाले ग्रह की दशा चलती है और यह ग्रह लग्न या लग्नेश से अनुकुल स्थिति में बैठा हों तभी पूर्ण रुप से फल देते है.  

    जब सम्बन्धित ग्रह शत्रु भाव में हो या नीच के हों, जब अष्टमेश या एकादशेश इन ग्रहों से संबन्धित हो, तो राजयोग भंग जो जाता है. 

    एक योगकारक ग्रह को तीसरे, छठे और बारहवें भाव का स्वामी भी नहीं होना चाहिए. या तृ्तीयेश, अष्टमेश और एकादशेश या द्वादशेश के साथ युति में नहीं होना चाहिए. 

    जब एक योगकारक ग्रह के पास आंठवें और ग्यारहवें भाव का स्वामित्व भी होता है. तो राजयोग फल में कमी हो जाता है. 

    एक ग्रह तृ्तीयेश,एकादशेश षष्टेश होने के कारण या किन्हीं अन्य कारणों से अशुभ होने पर योगकारक ग्रह से संबन्धित होता है. तो इसकी अन्तर्दशा में यह व्यक्ति को राजयोग के पूरे परिणाम प्रदान नहीं करता है. (Alprazolam) लेकिन तृ्तीयेश दशमेश भी होता है. और तीसरे या दसवें भाव में स्थित हों, तो राजयोग सुरक्षित रहता है. 

    कल्पद्रुम योग कैसे बनता है. | How to Formed Kalpdruma Yoga 

    जब कुण्डली में लग्नेश, उसका राशिश, इस राशिश का राशिश और उसका नवांशेश ये चारों राशि कुण्डली में स्वराशि या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठे हों.  

    मृ्दंग योग कैसे बनता है | How to Formed Mridanga Yoga 

    जब कुण्डली में उच्च ग्रह का नवांशेश राशि कुण्डली में केन्द्र या त्रिकोण में एक स्वक्षेत्री या उच्च के ग्रह के साथ बैठा हों, और लग्न बली हो तो मृ्दंग योग बनता है.  यह योग भी राजयोगों के समान फल देता है.  

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    स्थिर दशा की गणना | Calculation of Sthir Dasha

    महादशा | Maha Dasha

    जैमिनी स्थिर दशा की गणना सीधी तथा सरल है. कुण्डली में जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होते हैं उस भाव से स्थिर दशा का दशा क्रम आरम्भ होता है. इस गणना में चर,स्थिर तथा द्वि-स्वभाव राशियों की गणितीय गणना करने की आवश्यकत नहीं होती. इसमें चर राशियों की दशा सात वर्ष की होती है. स्थिर राशियों की दशा आठ वर्ष की होती है. द्वि-स्वभाव राशियों की नौ वर्ष की दशा होती है. स्थिर राशियों के दशा वर्ष निर्धारित होते हैं. इस दशा में कोई अंक नहीं घटाया जाता है. इस दशा में सभी राशियों का क्रम सीधा चलता है. 

    चर राशियाँ(1,4,7,10) 7 वर्ष 

    स्थिर राशियाँ(2,5,8,11) 8 वर्ष 

    द्वि-स्वभाव राशियाँ(3,6,9,12) 9 वर्ष 

    स्थिर दशा में अन्तर्दशा की गणना | Calculation of Antardasha in Sthir Dasha

    इस दशा में अन्तर्दशा का क्रम भी महादशा की तरह सीधा चलता है. यदि मेष राशि की महादशा आरम्भ हुई है तो पहली अन्तर्दशा भी मेष राशि की ही होगी. बाकी दशाएँ क्रम से चलेगीं. चर राशियों में प्रत्येक राशि की अन्तर्दशा सात माह की होगी. स्थिर राशियों में प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा आठ माह की होगी. द्वि-स्वभाव राशियों में प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा नौ माह की होगी. इस दशा में अन्तर्दशा क्रम भी निश्चित होता है. 

    प्रत्यन्तर दशा क्रम | Sequence of Pratyantar Dasha

    प्रत्यन्तर दशा क्रम में प्रत्येक अन्तर्दशा का 12वाँ भाग हर राशि की प्रत्यन्तर दशा होगी. इस प्रकार चर राशियों की प्रत्यन्तर दशा 17 दिन, 2 घण्टे की होगी. स्थिर राशियों की प्रत्यन्तर दशा 20 दिन की होगी. द्वि-स्वभाव राशियों की प्रत्यन्तर दशा 22 दिन, 12 घण्टे की होगी. 

    अभ्यास कुण्डली | Exercise Kundalini

    जैमिनी स्थिर दशा में पिछले अध्याय के आधार पर एक सारिणी में राशि बल के सभी बल लिखें और ग्रह बल के सभी बल लिखें. अब इन सभी बलों का कुल जोड़ ज्ञात करें. अब आप लग्न तथा सप्तम भाव के कुल अंक देखें. उसमें यह देखें कि दोनों भावों में से किस भाव में अधिक अंक है. जिस भाव में अधिक अंक होगें उस भाव से छठे, आठवें और बारहवें भाव की राशियों को नोट करें. इसमें शनि की राशि की गणना नहीं होगी. अब छठे, आठवें तथा बारहवें भाव के स्वामियों का ग्रह बल देखें. इन तीनों भावों के राशि स्वामियों में से जिस राशि के स्वामी के ग्रह बल में अधिक अंक होगें, उस राशि के स्वामी को ब्रह्मा की उपाधि प्रदान की जाएगी. अब यह देखें कि कुण्डली में ब्रह्मा किस भाव में स्थित है. जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होगा उस भाव में पड़ने वाली राशि से दशा क्रम आरम्भ होगा. दशा क्रम सीधा चलेगा.  

    फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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    वास्तविक प्रश्न की जाँच | Enquiry of Real Prashna

    प्रश्न कुण्डली के लिए कई तरीकों का उपयोग विभिन्न स्थानों पर किया जाता है. इस बारे में आपको आरम्भ के अध्याय में बताया गया है. कई बार प्रश्नकर्त्ता मजाक में प्रश्न में भी प्रश्न कर लेता है और कई बार कई मूर्ख तथा अज्ञानी व्यक्ति ज्योतिषी के ज्ञान की परीक्षा हेतु भी प्रश्न कर लेते हैं. यदि प्रश्नकर्त्ता इस विद्या की हँसी उडा़ने वाला, पाखण्डी अथवा धूर्त है तो कोशिश करें कि प्रश्न कुण्डली नहीं लगानी चाहिए. प्रश्नकर्त्ता वास्तविक है या नहीं है इसकी जानकारी प्रश्न कुण्डली से मिलती है. यदि आपको प्रश्नकर्त्ता के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होती है और आप प्रश्न कुण्डली लगाते हैं तब प्रश्न कुण्डली के कुछ योग होते हैं जिनसे आपको पता चल जाता है कि प्रश्नकर्त्ता ज्योतिषी का समय नष्ट कर रहा है. इन कुछ योगों की जानकारी आपको दी जा रही है. यह योग हैं :-

     
    (1) यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में अथवा सप्तम भाव में बलवान पाप ग्रह स्थित हो तब प्रश्न करने वाला व्यक्ति धूर्त अथवा कुटिल ह्रदय का व्यक्ति होता है.
     
    (2) यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा स्थित है. कुण्डली के केन्द्र स्थानों में से किसी एक स्थान में सूर्य, बुध तथा शनि एक साथ स्थित हैं तब प्रश्न करने वाला जातक धूर्त है. वह बेकार ही प्रश्न कर रहा है.
     
    (3) प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा और केन्द्र स्थान में शनि हो और बुध अस्त हो तो प्रश्न करने वाले जातक का ह्रदय कुटिल होता है.

    (4) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा को मंगल तथा बुध पूर्ण दृष्टि से देख रहें हों तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति केवल उपहास के लिए प्रश्न कर रहा है.

    (5) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश पर चन्द्रमा तथा गुरु की शत्रु दृष्टि हो तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति मजाक के लिए प्रश्न कर रहा है.

    (6) प्रश्न कुण्डली में मंगल ग्रह, छठे भाव का स्वामी होकर लग्न में शनि के साथ स्थित हो तो प्रश्नकर्त्ता दुष्ट होता है.

    (7) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश को चन्द्रमा तथा गुरु मित्र दृष्टि से देख रहे हों तो प्रश्नकर्त्ता सरल स्वभाव का व्यक्ति होता है.

    (8) प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रहों की दृष्टि लग्न पर हो तो प्रश्नकर्त्ता सज्जन व्यक्ति होता है.

    (9) प्रश्न कुण्डली के सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति धूर्त नहीं होगा.

    (10) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा तथा गुरु दोनों ही केन्द्र व त्रिकोण स्थान में मित्र राशि में हों अथवा बुध तथा गुरु लग्न या सप्तम भाव में हों तो प्रश्नकर्त्ता सरल होता है.

    (11) प्रश्न कुण्डली में मंगल, चन्द्रमा तथा बुध को देखता हो तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति ज्योतिषी की परीक्षा लेने के लिए प्रश्न कर रहा है.

    यदि इन दोनों ग्रहों को गुरु या शुक्र देख रहें हों तो प्रश्नकर्त्ता अपनी यथार्थ स्थिति के बारे में ज्योतिषी से परामर्श लेना चाहता है.

    एक समय में अनेक प्रश्नों का निर्णय
    प्रश्न कुण्डली किसी एक विषय को लेकर बनाई जाती है लेकिन कई बार ऎसा होता है कि प्रश्नकर्त्ता जब ज्योतिषी के पास आता है तब परिस्थितिवश वह एक बाद दूसरा तथा तीसरा प्रश्न भी कर लेता है. ऎसे में ज्योतिषी को उत्तर देते समय तथा कुण्डली का आंकलन करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.

    प्रश्नकर्त्ता के पहले प्रश्न का उत्तर प्रश्न कुण्डली के लग्न से देखना चाहिए. दूसरे प्रश्न का उत्तर चन्द्रमा का विश्लेषण करके देना चाहिए. तीसरे प्रश्न का उत्तर सूर्य जिस भाव में स्थित हो उससे देना चाहिए. चौथे प्रश्न का उत्तर गुरु ग्रह जिस भाव में स्थित हो उस भाव का विश्लेषण करने के बाद देना चाहिए. पांचवें प्रश्न का उत्तर बुध तथा शुक्र में से जो ग्रह बली हो और वह जिस भाव में स्थित हों उस भाव से देना चाहिए.   

     अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
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    कुम्भ राशि क्या है । Aquarius Sign Meaning | Aquarius- An Introduction । Which is the lucky Colour for the Aquarius people

    कुम्भ राशि के व्यक्ति मानवतावादी प्रकृ्ति के होते है. उन्हे स्वतन्त्र रुप से कार्य करना पसन्द होता है. इसके अतिरिक्त इस राशि के व्यक्तियों में उत्तम मित्र बनने का गुण विद्यमान होता है. ये वास्तविकता के निकट रहकर जीवन व्यतीत करना पसन्द करते है. कठोर परिश्रम करने में समर्थ होते है. सिद्धान्तवादी होते है. तथा समझदार भी. कुम्भ राशि के व्यक्ति अपने जीवन साथी के प्रति निष्ठावान रहते है. शीघ्र मित्र बनाने की प्रवृ्ति रखते है. तथा अपने परिवार के प्रति समर्पित होते है.  आईये कुम्भ राशि से परिचय करते है. 

    कुम्भ राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Aquarius sign

    कुम्भ राशि का स्वामी शनि है. 

    कुम्भ राशि का चिन्ह क्या है. | | What is the Symbol of the Aquarius Sign .

    कुम्भ राशि का चिन्ह घडा है.  

    कुम्भ राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देते है. | Which planets are considered auspicious for the Aquarius sign

    कुम्भ राशि के लिए सूर्य, शुक्र व शनि शुभ फल देते है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. | Which Planets are inauspicious for the Aquarius sign 

    कुम्भ राशि के लिए चन्द्रमा, गुरु व मंगल शुभ फल देते है.  

    कुम्भ राशि के लिए कौन से ग्रह सम फल देते है. | Which are Neutral planets for the Aquarius sign

    कुम्भ राशि के लिए बुध सम फल देने वाले ग्रह है.  

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा ग्रह मारक ग्रह होता है.| Which  are the Marak planets for the Aquarius sign

    कुम्भ राशि के लिए गुरु, सूर्य, मंगल मारक ग्रह होते है.

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा भाव बाधक भाव होता है. | Which is the Badhak Bhava for the Aquarius sign

     कुम्भ राशि के लिए नवम भाव बाधक भाव कहलाता है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा ग्रह बाधक भाव का स्वामी होता है. | Which planet is Badhkesh for the Aquarius sign

    कुम्भ राशि के लिए शुक्र बाधक भाव का स्वामी होने के कारण “बाधकेश” होता है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा ग्रह योगकारक ग्रह है. | Which planet is YogaKaraka for the Aquarius sign 

    कुम्भ राशि के लिए शुक्र ग्रह योगकारक ग्रह है. 

    कुम्भ राशि किस ग्रह की मूलत्रिकोण राशि है.| Aquarius sign is which Planet’s Multrikon.

    कुम्भ राशि शनि 0 अंश से लेकर 20 अंश तक अपनी मूलत्रिकोण राशि में होते है. 

    कुम्भ राशि के कौन से अंशों पर चन्द्र सबसे अधिक शुभ फल देता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Aquarius.

    कुम्भ राशि में चन्द्र जब 19 अंशों पर होते है, तो सबसे अधिक शुभ फल देते है. 

    कुम्भ राशि में कौन से अंशों पर चन्द्र अशुभ फल देते है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Aquarius.

     कुम्भ राशि में चन्द्र 5 अंश या 21 अंश पर होने पर अशुभ फल देते है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा इत्र शुभ रहता है.  | Which fragrance is auspicious for the Aquarius sign

    कुम्भ राशि के लिए गलबनम इत्र शुभ रहता है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन से अंक शुभ है. | Which are the Lucky numbers for the Aquarius sign

    कुम्भ राशि के लिए 3, 9, 2, 7, 6 अंक शुभ रहते है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन से वार शुभ रहते है. | Which are the lucky days for the Aquarius people

    कुम्भ राशि के लिए सोमवार, वीरवार, शुक्रवार, मंगलवार शुभ वार है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा रत्न धारण करना शुभ रहता है. | Which is the lucky stone for the Aquarius people

     कुम्भ राशि के लिए नीलम रत्न धारण करना शुभ रहता है. 

    कुम्भ राशि के लिए कौन सा रंग शुभ रहता है. | Which is the lucky Colour for the Aquarius people

    कुम्भ राशि के लिए पीला, लाल, सफे़द, क्रीम शुभ रंग है. 

    कुम्भ राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास करना चाहिए. | Which is the lucky stone for the Aquarius  people

    कुम्भ राशि के व्यक्तियों को शनिवार का उपवास करना चाहिए.  

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