क्या है फाल्गुन माह का महत्व और फाल्गुन माह में आने वाले व्रत त्योहार

फाल्गुन माह को फागुन माह भी हा जाता है. इस माह का आगमन ही हर दिशा में रंगों को बिखेरता सा प्रतीत होता है. मौसम में मन को भा लेने वाला जादू सा छाया होता है. इस माह के दौरान प्रकृति में अनूपम छटा बिखरी होती है. इस मौसम में चंद्रमा के जन्म से संबंधित पौराणिक आख्यान भी मौजूद हैं, इसी कारण इस माह में चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है.

इस माह के दौरान भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं चंद्र देव की पूजा का महत्व बताया गया है. फाल्गुन माह के दौरान देवी लक्ष्मी और माता सीता की पूजा का विधान भी रहा है. फाल्गुन माह आखिरी महीना होता है, इस माह के दौरान प्रकृति का एक अलग रुप दृष्टि में आता है. इसी समय पर भक्ति के साथ शक्ति की आराधना भी होती है. फाल्गुन माह भी अन्य माह की भांति ही धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व रखता है.

फाल्गुन माह में जन्मा जातक

फाल्गुन माह में जन्म लेने वाला व्यक्ति गौरे रंग का होता है. दिखने में आकर्षक लगता है. बोल चाल में अधिक कुशल होता है. जातक का मन चंचल हो सकता है. बहुत अधिक चीजों को लेकर गंभीर न रह पाए. वह परोपकार के कार्यो में रुचि लेता है, तथा अपनी विद्वता से वह धन कमाने में सफल रहता है.

जातक द्वारा किए गये कार्यो में बुद्धिमानी का भाव पाया जाता है. प्रेम संबंधों के प्रति रुझान भी रखता है. वह जीवन में सभी भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करने में सफल रहता है. इसके अतिरिक्त उसे विदेश में भ्रमण के अवसर प्राप्त होते है. अपने प्रेमी के प्रति भावनात्मक झुकाव भी बहुत अधिक रखता है.

फाल्गुन माह विशेष पर्व

फाल्गुन मास मात्र इसलिए नहीं जाना जाता क्योकिं इस माह में होली का पर्व आता है. बल्कि इस माह का धार्मिक महत्व भी है. यह माह पतझड के बाद जीवन की एक नई शुरुआत का माह है. जिस प्रकार रात के बाद सुबह अवश्य आती है. उसी प्रकार व्यक्ति जीवन की बाधाओं को पार करने के बाद उन्नति की एक नई शुरुआत करता है. फागुन मास के दौरान बहुत से पर्व मनाए जाते हैं जिसमें से मुख्य होली, शिवरात्रि, फाल्गुन पूर्णिमा और एकादशी नामक उत्सव मनाए जाते हैं.

विजया एकादशी –

इस माह में आने वाली एकादशी विजया एकादशी कहलाती है. इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त कि थी.

होलाष्टक –

इस समय के दोरान होलाष्टक लग जाता है. यह आठ दिनों का समय होता है जिसमें सभी शुभ काम रुक से जाते हैं इस समय पर विवाह इत्यादि कार्य नहीं होते हैं.

होली –

होली का आगमन प्रकृति से संबंधित होता है. होली रंगों का त्यौहार है जिसमें जीवन के भी सभी रंग मिल कर एक हो जाते हैं.

महाशिवरात्रि –

फाल्गुन माह की चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का पौराणिक मान्यता अनुसार इसी दिन से सृष्टि का प्रारंभ भी माना गया है. इस शुभ दिन में महादेव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. वर्षभर में आने वाली 12 शिवरात्रियों में से फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से भी पुकारा जाता है और यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है.

फाल्गुन मास की महत्वपूर्ण बातें

  • फाल्गुन मास के दौरान व्यक्ति अपने आहा का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
  • सामान्य एवं संतुलित आहार करना ही उत्तम होता है.
  • इस मौसम में पानी को गरम करके स्नान नहीं करना चाहिए. शीतल जल से ही स्नान करना उत्तम होता है.संभव हो सके तो गंगा स्नान का लाभ अवश्य उठाएं.
  • भोजन में अनाज का प्रयोग कम से कम करें , अधिक से अधिक फल खाएं.
  • अपनी साफ सफाई और रहन सहन को लेकर भी सौम्यता और शालिनता बरतनी चाहिए.
  • इस माह के दौरान तामसिक एवं गरिष्ठ भोजन अर्थात मांस मंदिरा और तले-भुने भोजन को त्यागना चाहिए.
  • फाल्गुन माह में पूजा पाठ कैसे करें

  • इस माह के दौरान भगवान कृष्ण का पूजन करते समय फूल एवं फूलों का उपयोग अधिक करना चाहिए.
  • भगवान शिव को बेल पते चढ़ाने चाहिए.
  • फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन देवताओं को अबीर और गुलाल अर्पित करने चाहिए.
  • आर्थिक एवं दांपत्य सुख समृद्धि के लिए माता पार्वती एवं देवी लक्ष्मी की उपासना में कुमकुम एवं सुगंधित वस्तुओं का उपयोग करना शुभकारी होता है.
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    बुधवार व्रत | How to Observe Budhvar Vrat? – Wednesday Fast Aarti (Wednesday Vrat Katha) | Wednesday Fasting in Hindi

    बुधवार का व्रत करने की विधि | Wednesday Fast Method

    जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. इसके बाद नित्यक्रिया से निवृ्त होकर, स्नानादि कर शुद्ध हो जाना चाहिए. स्नान करने के बाद संपूर्ण घर को गंगा जल छिडकर शुद्ध करना चाहिए. गंगा जल ने मिलें, तो किसी पवित्र नदी का जल भी छिडका जा सकता है. 

    इसके पश्चात घर के ईशान कोण में किसी एकांत स्थान में भगवान बुध या शंकर की मूर्ति अथवा चित्र किसी कांस्य के बर्तन में स्थापित करना चाहिए. मूर्ति या चित्र स्थापित करने के बाद धूप, बेल-पत्र, अक्षत और घी का दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए. इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए बुधदेव की आराधना करनी चाहिए  

    बुध त्वं बुद्धिजनको बोधद: सर्वदा नृणाम्।

    तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नम:॥

    पूरे दिन व्रत करने के बाद सायंकाल में भगवान बुध की एक बार फिर से पूजा करते हुए, व्रत कथा सुननी चाहिए. और आरती करनी चाहिए. सूर्यास्त होने के बाद भगवान को धूप, दीप व गुड, भात, दही का भोग लगाकर प्रसाद बांटना चाहिए, और सबसे अंत में स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. 

    बुधवार व्रत का महत्व | Importance of Wednesday Fast

    बुधवार का व्रत करने से व्यक्ति की बुद्धि में वृ्द्धि होती है. इसके साथ ही व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिये भी इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. व्यापारिक क्षेत्र की बाधाओं में कमी करने में भी यह व्रत लाभकारी रहता है. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध अपने फल देने में असमर्थ हो, उन व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. इसके अलावा जब कुण्डली में बुध अशुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भावों में बैठा हो, उस अवस्था में भी इस व्रत को करना कल्याणकारी रहता है. 

    बुधवार व्रत में ध्यान रखने योग्य बातें | Things to Remember for Wednesday Fast

    इस दिन भगवान की पूजा करने के बाद देव की हरे रंग की वस्तुओं से पूजा करनी चाहिए. सायंकाल में व्रत का समापन करने के बाद यथा शक्ति ब्राह्माणों को भोजन कराकर उन्हें दान अवश्य देना चाहिए. और व्रत करने वाले व्यक्ति को एक ही समय भोजन करना चाहिए. व्रत को मध्य में कभी नहीं छोडना चाहिए. तथा व्रत की कथा के मध्य में उठकर नहीं जाना चाहे. साथ ही प्रसाद भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए.  

    बुधवार व्रतकथा | Wednesday Vrat Katha

    समतापुर नगर में मधुसूदन नामक एक व्यक्ति रहता था. वह बहुत धनवान था. मधुसूदन का विवाह बलरामपुर नगर की सुंदर और गुणवंती लड़की संगीता से हुआ था. एक बार मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन बलरामपुर गया.

    मधुसूदन ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा. माता-पिता बोले- ‘बेटा, आज बुधवार है. बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते.´ लेकिन मधुसूदन नहीं माना. उसने ऐसी शुभ-अशुभ की बातों को नहीं मानने की बात कही. बहुत आग्रह करने पर संगीता के माता-पिता ने विवश होकर दोनों को विदा कर दिया.

    दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की. दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया. वहाँ से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की. रास्ते में संगीता को प्यास लगी. मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया.

    थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था. संगीता भी मधुसूदन को देखकर हैरान रह गई. वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई.

    मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा- ‘तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?´ मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- ‘अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है. मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूँ. लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?´

    मधुसूदन ने लगभग चीखते हुए कहा- ‘तुम जरूर कोई चोर या ठग हो. यह मेरी पत्नी संगीता है. मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने गया था.´ इस पर उस व्यक्ति ने कहा- ‘अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो. संगीता को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था. मैंने तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया है. अब तुम चुपचाप यहाँ से चलते बनो. नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूँगा.´

    दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे. उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहाँ एकत्र हो गए. नगर के कुछ सिपाही भी वहाँ आ गए. सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए. सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया. संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी.

    राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा. राजा के फैसले पर असली मधुसूदन भयभीत हो उठा. तभी आकाशवाणी हुई- ‘मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया. यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है.´

    मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि ‘हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए. मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई, भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करूँगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूँगा.´

    मधुसूदन के प्रार्थना करने से भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया. तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया. राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान हो गए, भगवान बुधदेव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया.

    कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई. बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था. दोनों उसमें बैठकर समतापुर की ओर चल दिए. मधुसूदन और उसकी पत्नी संगीता दोनों बुधवार को व्रत करते हुए आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे.

    भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगी. जल्दी ही उनके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ भर गईं. बुधवार का व्रत करने से स्त्री-पुरुषों के जीवन में सभी मंगलकामनाएँ पूरी होती हैं. और व्रत करने वाले को बुधवार के दिन किसी आवश्यक काम से यात्रा करने पर कोई कष्ट भी नहीं होता है.

    बुधवार व्रत की आरती | Wednesday Fast Aarti : 

    आरती युगलकिशोर की कीजै। तन मन धन न्योछावर कीजै॥
    गौरश्याम मुख निरखन लीजै। हरि का रूप नयन भरि पीजै॥

    रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥
    ओढ़े नील पीत पट सारी। कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥

    फूलन सेज फूल की माला। रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला॥
    कंचन थार कपूर की बाती। हरि आए निर्मल भई छाती॥

    श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी। आरती करें सकल नर नारी॥
    नंदनंदन बृजभान किशोरी। परमानंद स्वामी अविचल जोरी॥

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    चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों के कारक तत्व | Elements of the Planets in Medical Astrology

    जैसे भचक्र की भिन्न-भिन्न राशियों तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है, ठीक उसी प्रकार भिन्न-भिन्न ग्रह भी शरीर के विभिन अंगों से संबंधित है. इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक प्रकृति के अनुसार जातक को कष्ट देते हैं.

    अत: भावों, राशियों, नक्षत्रों तथा ग्रहों एवं विशिष्ट समय पर चल रही दशाओं के व्यापक विचार के बाद शरीर पर रोग का स्थान एवं प्रकृति, निदान तथा रोग का संभावित समय एवं परिणाम ज्ञात करना भी संभव है. चिकित्सा ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों के कारक तत्व यहाँ पर संक्षिप्त रूप में दिये जा रहे है.

    सूर्य | The Sun

    यह पित्त प्रकृति का कारक ग्रह है. इसका बलाबल किसी व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करता है. इनका अधिकार क्षेत्र ह्रदय, पेट, अस्थि तथा दाहिनी आँख है. चिकित्सीय क्षेत्र में सूर्य के अधिकार क्षेत्र में सिरदर्द, गंजापन,चि़डचिडापन, ज्वर, दर्द, जलना, पित की सूजन से होने वाले रोग, ह्रदय रोग , नेत्र रोग, पेट की बीमारियाँ आते हैं.

    चन्द्र | The Moon

    यह ग्रह वात तत्व, कफ प्रकृति का है. यह मन की स्थिरता तथा पुष्टता को प्रतिबिंबित करता है. मन के प्रतिनिधित्व के अतिरिक्त इसका अधिकार क्षेत्र शरीर में बहने वाले द्रव, रक्त तथा बायीं आँख है. यह मानसिक रोग संबंधी समस्याएं, मानसिक विचलन, भावात्मक अशांति, घबराना, अतिनिद्रा आदि भी दे सकता है.

    चन्द्र के अधिकार क्षेत्र में क्षयरोग, रक्ताल्पता, अतिसार, रक्त विषाक्तता, पीलिया, जल और जलीय जंतुओं से होने वाले रोग आते हैं. चन्द्र तथा मंगल मिलकर स्त्रियों में माहवारी चक्र, प्रजनन प्रणाली आदि सम्बन्धी रोग देते है. 

    मंगल | The Mars

    यह ग्रह पित्त प्रकृति का कारक है. उर्जा शक्ति, उत्साह और जोश का प्रतीक है. तेज व चेतना की प्रबलता को प्रतिबिंबित करता है. इसके अधिकार क्षेत्र है – सिर, अस्थि मज्जा, पित्त, हिमोग्लोबिन, कोशिकाएं, गर्भाशय की अंत: दीवार, दुर्घटना, चोट, शल्य क्रियाएँ, जल जाना, रक्त विकार, तन्तुओं की फटन, उच्च रक्त चाप, पित्त जनित सूजन तथा उसके कारण होने वाला ज्वर. अत्यधिक प्यास, नेत्र विकार, मिरगी, अस्थि टूटना, गर्भाशय के रोग, प्रसव तथा गर्भपात, सिर में चोट, लड़ाई में चोट आदि.

    बुध | The Mercury

    बुध वात, पित्त तथा कफ तीनों प्रकृति का कारक है. बुध बुद्धि, तर्क तथा विवेक देता है. प्रतिकूल बुध पापी चन्द्र के साथ मिलकर किसी की विचारधारा को व्यग्र कर सकता है. मानसिक विचलन का कारण बन सकता है. इसका अधिकार त्वचा, गला, नाक, फेफड़ा तथा धैर्य हीनता, मानसिक अस्थिरता, मानसिक जटिलता, अभद्र भाषा, दोषपूर्ण वाणी, चक्कर आना, श्वेत कुष्ठ रोग, नपुंसकता और बहरेपन पर है.

    गुरु | The Jupiter

    गुरु कफ प्रकृति के है. शुभ ग्रह होने के कारण रोगों से रक्षा करता है. इसका अधिकार क्षेत्र यकृत विकार, पित्त की थैली के रोग, तिल्ली के रोग, मोटापा, रक्ताल्पता, ज्वर, मूर्छा, कर्ण रोग, मधुमेह इत्यादि है. अग्नाशय का कुछ क्षेत्र तथा शरीर में चर्बी पर भी गुरु का अधिकार है. इसके अतिरिक्त गुरु आलस्य का भी कारक है.

    शुक्र | The Venus

    शुक्र वात तथा कफ प्रकृति का है. यह व्यक्ति की यौन क्रियाओं को नियंत्रित करता है. यदि अधिक पीड़ित हो अथवा अशुभ स्थान में हो तो जननांग सम्बन्धी रोग देता है. इसका अधिकार क्षेत्र चेहरा, दृष्टि, वीर्य, जननांग, मूत्र प्रणाली, अश्रुग्रंथी पर है. यह अग्नाशय के कुछ भाग का भी कारक है.इसके द्वारा शरीर की हारमोनल प्रणाली नियंत्रित होती है. शुक्र यौन विकार, नेत्र रोग, मोतिया बिन्द, श्वेत कुष्ठ, गुप्त रोग, मधुमेह आदि रोग दे सकता है.

    शनि | The Saturn

    यह ग्रह वात और कफ प्रकृति का है. यह असाध्य अथवा अतिदीर्घ कालिक रोग देते है. शनि के अधिकार क्षेत्र में टाँगे, नाडी, बड़ी आंत का अंतिम भाग, गुदा आते हैं. इसके प्रभाव के कारण व्यक्ति को पक्षाघात, पागलपन, कैंसर, अति परिश्रम, थकान, टांग तथा पैर के रोग, चोट, अवसाद तथा खिन्नता के कारण मानसिक अव्यवस्था, पेट के रोग, पेड़ से गिरने तथा पत्थर से चोट आदि  लगने की संभावना बनती है.

    राहु | The Rahu

    राहु के अधिकार क्षेत्र में कार्य को मंदगति से करना, फूहड़पन, हिचकी, उन्माद, कुष्ठ रोग, शक्तिहीनता, असाध्य रोग, विषाक्ता, सर्प दंश, पैरों के रोग आदि आते है. यह शनि के समान होने के कारण शनि के रोग भी देता है.

    केतु | The Ketu

    राहु के सभी रोग केतु भी दे सकता है, इसके अतिरिक्त केतु अनिश्चित कारण वाले रोग, महामारी, छाले युक्त ज्वर, जहरीले संक्रमण से होने वाले संक्रामक रोग, बहरापन, दोषपूर्ण वाणी, शल्यक्रिया आदि भी दे सकता है.

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    क्या हीरा अनुकुल रहेगा? | Is Heera Stone Good for Me (Can I Wear Diamond)

    शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि होती है. यह सुंदरता, कलाकौशल, शौक व वाहन प्राप्ति के लिये मुख्य रुप से धारण किया जाता है. 

    हीरा रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Heera Stone

    हीरा रत्न अपनी अद्वितीय सुंदरता व बेजोड गुणों के कारण आज भी सभी रत्नों में सबसे अधिक लोकप्रिय है. हीरे के विषय में एक मान्यता है, कि इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति को जादू, तंत्र-मंत्र व करणीबाधा, भूत आदि पराविधा में कमी होती है. लग्न के अनुसार किसी व्यक्ति के लिये यह रत्न किस प्रकार का फल देता है, आईये इसका विचार करते है.    

    मेष लग्न- हीरा रत्न | Diamond Stone for Aries Lagna

    मेष लग्न में शुक्र दूसरे व सप्तम भाव के स्वामी है. कुंडली की इन दोनों को मारक भाव कहा गया है. इसलिये मेष लग्न के व्यक्तियों को जहां तक हो सके हीरा धारण करने से बचना चाहिए. जरूरी होने पर केवल शुक्र महादशा में ही इसे धारण करना चाहिए. 

    वृ्षभ लग्न-हीरा रत्न | Effect of Heera Stone on Taurus Lagna

    इस लग्न में शुक्र लग्नेश व पंचमेश होते है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों को हीरा सदैव धारण करके रखना चाहिए. यह रत्न व्यक्ति को आयु वृ्द्धि, सर्वागींण विकास व आर्थिक प्रगति देता है.    

    मिथुन लग्न-हीरा रत्न | Influence of Heera on Gemini Lagna

    मिथुन लग्न में शुक्र व्ययेश व पंचमेश होते है. इस लग्न के व्यक्ति हीरा सदैव धारण करें.  

    कर्क लग्न-हीरा रत्न | Diamond for Cancer Lagna

    इस लग्न के शुक्र चतुर्थेश व एकादशेश शुक्र होते है. यहां पर ये लग्नेश चन्द्र के मित्र भी नहीं है. इसलिये केवल शुक्र महादशा अवधि में ही इसे धारण करना चाहिए.    

    सिंह लग्न-हीरा रत्न | Impact of Heera Gemstone on Leo Lagna

    सिंह लग्न के लिये शुक्र तीसरे व दशम भाव के स्वामी है. इसलिये सिंह लग्न वालों को हीरा धारण नहीं करना चाहिए. फिर भी बेहद जरूरी होने पर इसे केवल शुक्र महादशा में धारण करना चाहिए.  

    कन्या लग्न-हीरा रत्न | Heera Stone – Effect on Virgo Lagna

    कन्या लग्न में धनेश व भाग्येश शुक्र है. इस लग्ने के लिये शुक्र सबसे अधिक शुभ फल देने वाले ग्रह है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों को लिये शुक्र रत्न हीरा सदैव धारण करना चाहिए. 

    तुला लग्न-हीरा रत्न | Influence of Diamond Stone on Libra Lagna

    तुल लग्न के लिए शुक्र लग्नेश तथा अष्टमेश बनते है. तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये हीरा स्वास्थय कवच का काम करेगा. इसलिये इस लग्न के व्यक्ति हीरा अवश्य धारण करें.  

     

    वृ्श्चिक लग्न-हीरा रत्न | Diamond Gemstone for Scorpio Lagna

    वृ्श्चिक लग्न के लिए शुक्र सप्तम व व्यय भाव के स्वामी होने के कारण मध्यम स्तरीय शुभ होते है. इसलिये वृ्श्चिक लग्ने के व्यक्ति हीरा नहीं पहनें. 

     

    धनु लग्न-हीरा रत्न | Effect of Heera Stone on Sagittarius Lagna

    धनु लग्न के लिये शुक्र छठे व ग्यारहवें, स्थान का स्वामी होते है. इस लग्न के व्यक्ति भी आय वृ्द्धि के अलावा अन्य विषयों के लिये हीरा न पहनें.    

    मकर लग्न-हीरा रत्न | Diamond Stone – Influence on Capricorn Lagna

    मकर लग्न के लिये शुक्र पंचमेश व दशमेश होते है. इस लग्न के लिये शुक्र शुभ फल देने वाले ग्रह है. अत: इस लग्न के व्यक्ति हीरा अवश्य धारण करें.   

    कुम्भ लग्न-हीरा रत्न | Benefits of Diamond for Aquarius Lagna

    कुंभ लग्न के लिये शुक्र चतुर्थेश व नवमेश होते है. शुक्र यहां योगकारक ग्रह होने के कारण बेहद शुभ हो जाते है. अत: कुंभ राशि के व्यक्ति हीरा अवश्य धारण करें.    

    मीन लग्न-हीरा रत्न | Heera Gemstone for Pisces Lagna

    मीन लग्ने के लिये शुक्र तृतीय भाव व अष्टम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति हीरा धारण न करें.   

    हीरा रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Heera Stone

    हीरा रत्न के साथ पन्ना और नीलम व इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण किये जा सकते है. 

     

    हीरा रत्न के साथ क्या न पहने? | What Not to Wear with Diamond

    हीरा रत्न के साथ कभी भी व्यक्ति को माणिक्य व मोती व पुखराज धारण नहीं करने चाहिए.इसके अतिरिक्त इन्हीं रत्नों का उपरत्न धारण करना भी शुभ फल नहीं देगा.     

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    साईं बाबा व्रत पूजा | Shri Sai Baba Vrat – Shirdi Sai Baba (Sai Vrat Udyapan)

    साई बाबा व्रत को कोई भी व्यक्ति कर सकता है. इस व्रत को करने के नियम भी अत्यंत साधारण है. साई बाबा अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करते है. उनकी कृ्पा से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है. मांगने से पहले ही वे सब कुछ देते है. उनके स्मरण मात्र से जीवन में आ रही बाधाओं में कमी होती है. कहा भी जाता है, कि शिरडी वाले श्री साईं बाबा कि महिमा का कोई और ओर छोर नहीं है. साईं बाबा पर पूरा विश्वास करने वालों को कभी निराशा का सामना नहीं करना पडता है. 

    साई बाबा 9 गुरुवार व्रत | 9 Thursday Sai Vrat 

    साई बाबा व्रत को कोई भी साधारण जन कर सकता है. यहां तक की बच़्चे भी इस व्रत को कर सकते है.  साई बाबा अपने भक्तों में किसी प्रकार का कोई भेद भाव नहीं करते है. उनकी शरण में अमीर-गरीब या किसी भी वर्ग का व्यक्ति आये  उसकी कार्य सिद्धि अवश्य पूरी होती है.  साई बाबा व्रत एक बार शुरु करने के बाद नियमित रुप से 9 गुरुवार तक किया जाता है. इस व्रत को कोई भी व्यक्ति साई बाबा का नाम लेकर शुरु कर सकता है. 

    व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करने के बाद साई बाबा की फोटो की पूजा कि जाती है. साई बाबा की फोटों लगाने के लिये सबसे पहले पीले रंग का वस्त्र बिछाया जाता है. इस पर साई बाबा की प्रतिमा या फोटो लगाई जाती है. इसे स्वच्छ पानी से पोंछ कर इसपर चंदन का तिलक लगाया जाता है. 

    साई बाबा की फोटों पर पीले फूलों का हार चढाना चाहिए. अगरबती और दीपक जलाकर साई व्रत की कथा पढनी चाहिए. और साई बाबा का स्मरण करना चाहिए. इसके बाद बेसन के लड्डूऔं का प्रसाद बांटा जाता है. इस व्रत को फलाहार ग्रहण करके किया जा सकता है. या फिर के समय में भोजन करके किया जा सकता है. इस व्रत में कुछ न कुछ खाना जरुरी है, भूखे रहकर इस व्रत को नहीं किया जाता है. 

    इस प्रकार व्रत करने के बाद 9 गुरुवार तक साईं बाबा के मंदिर जाकर दर्शन करना भी शुभ रहता है. घर के निकट साई बाबा मंदिर न होने पर घर में भी साई फोटों की पूरी श्रद्वा से पूजा करनी चाहिए. किसी भी स्थान पर हों, व्रत की संख्या 9 होने से पूर्व इसे मध्य में नहीं छोडना चाहिए. 

    साई बाबा व्रत उद्धापन | Sai Baba Vrat Udyapan 

    शिरडी के साई बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन और सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. इसके साथ ही साई बाबा की कृ्पा का प्रचार करने के लिये 7, 11, 21 साई पुस्तकें, अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहिए.  इस प्रकार इस व्रत को समाप्त किया जाता है.    

    शिरडी साई बाबा चमत्कार | Sai Baba Miracles

    भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक आस्था और पूजा-उपासना में विश्वास करने वाला देश रहा है. यहां कई धर्म और वर्ग और संस्कृ्तियां अलग – अलग होकर भी एक साथ रहती है. इसके साथ ही भारत में अनेक संत-महापुरुषों ने जन्म लिया. कई संतों के द्वारा किये गये चमत्कार आज भी चर्चा का विषय रहे है. 

    शिरडी के साई बाबा के चमत्कार की अनेक कथाएं प्रचलित है.  शिरडी के साई बाबा पर देश के करोडों लोगों की अगाध श्रद्धा है. सभी धर्मों के लोग यहां साई बाबा दर्शन के लिये आते है. यही कारण है कि साई बाबा संस्थान की प्रसिद्धि भी इसके साथ ही बढती जा रही है.   

    यह साई बाबा का चमत्कार नहीं तो और क्या है.  कि आज भी देश भर में बाबा के नाम पर छोटे बडे अस्सी हजार से अधिक मंदिर हो गये है.

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    रोमक सिद्वान्त- ज्योतिष का इतिहास | Romaka Siddhanta – History of Astrology

    प्राचीन काल में ज्योतिष अपने सर्वोत्तम स्तर पर था. मध्य काल में इस विद्या के शास्त्रों को न संभाल पाने के कारण उस समय के सही प्रमाण हमारे पास आज पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं है. उस समय के के शास्त्री ग्रहों कि गति, कालों आकलन आदि करना बखूबी जानते थे. 

    उस समय के गणित नियमों को सिद्धान्तों का नाम दिया गया. सिद्धान्त ज्योतिष में अनेका आचार्यों ने अनेक ग्रन्थ लिखें. इन्हीं में से कुछ शास्त्र सूर्य सिद्धान्त, पराशर सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्वान्त आदि है. इसी में से एक रोमक सिद्धान्त पर आज हम प्रकाश डालेंगें.    

    रोमक सिद्धान्त क्या है. | What is Romaka Siddhanta 

    यह प्राचीन् काल का गणितीय सिद्धान्त शास्त्र है. यह शास्त्र यमन ज्योतिष के नियमों पर आधारित है. यमन ज्योतिष मुख्यत: यूनान, मिश्र आदि देशों में विशेष रुप से प्रचलित था. 

    रोमक सिद्धान्त शास्त्र में क्या है. | Romaka Siddhanta Scripture

    रोमक सिद्वान्त में सूर्य व चन्द्र के बारे में आंकडे दिए गये है. इसके अतिरिक्त यह शास्त्र अधिक मास, क्षय मास, तिथि और क्षय तिथि का विस्तार से वर्णन् किया गया है. 

    बेबीलोन के निवासी ग्रहों में पांच ग्रह देवताओं का पूजन करते थें. ये पांच ग्रह बुध, शुक्र, मंगल, गुरु  व शनि ग्रह थे. इन्हीं सभी ग्रहों की पूजा का वर्णन रोमक सिद्धान्त में भी मिलता है.  

    रोमक सिद्धान्त लोमश सिद्धान्त का ही अपभ्रन्श रुप है, प्राचीन शास्त्रों में रोग देश के नागरिको के लिए रोमक शब्द प्रयुक्त किया गया है.  यह शास्त्र ज्योतिष की गणना से जुडे प्रमुख सिद्धान्त शास्त्रों में से एक है. इस सिद्धान्त का जन्म रोमण से होने के कारण इसे रोमक सिद्धान्त का नाम  दिया गया.  

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    ग्रहों के गुण-धर्म और मूक प्रश्न | Nature of Planet and Mook Prashna

    राशियों की भाँति ग्रहों के भी गुण-धर्म होते हैं. ग्रहों की दिशाएँ तथा निवास स्थान भी होते हैं. आपने पिछले अध्याय में राशियों के बारे में कुछ जानकारी हासिल की है. अब आप इस पाठ में ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें.

    ग्रहों के गुण-धर्म | Nature of Planet

    ग्रह           पदवी         प्रवृति

    सूर्य          राजा         सात्विक

    चन्द्रमा      रानी          सात्विक

    मंगल        सेनापति        तामसिक

    बुध             राजकुमार       राजसिक

    बृहस्पति        मंत्री            सात्विक

    शुक्र             मंत्री            सात्विक

    शनि     दास            तामसिक     

     

    सात्विक(जानने वाला) – शरीर में तेज होगा. सुखी होगा, सही-गलत की पहचान होगी.

    राजसिक(करनेवाला) – राग-द्वेष प्रधान, काम करने में प्रयत्नशील, मेहनत अधिक तो फल कम मिलते हैं. सांसारिक होगा.

    तामसिक(ना जानने वाला) – सही को भी गलत तरीके से देखना, प्रमाद, आलस्य, निद्रा, मोह.

    ग्रहों की दिशाएँ | Direction of Planet

    ग्रह     दिशा

    सूर्य पूर्व

    चन्द्र   उत्तर-पश्चिम

    मंगल        दक्षिण

    बुध          उत्तर

    बृहस्पति     उत्तर-पूर्व

    शुक्र          दक्षिण-पूर्व

    शनि          पश्चिम

    राहु/केतु     दक्षिण-पश्चिम

    (केतु को राहु की तरह लेगें. इसलिए केतु की दिशा भी दक्षिण-पश्चिम होगी.)

     

    ग्रहों के निवास स्थान, रंग तथा उनके वस्त्रों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगें.

    ग्रह     रंग     वस्त्र      निवास स्थान

    सूर्य     ताम्र वर्ण     मोटा कपडा़     देवस्थान, मुखिया का स्थान

    चन्द्रमा     सफेद     नया तथा स्वच्छ वस्त्र   जलयुक्त भूमि

    मंगल       लाल   जला हुआ                 अग्नियुक्त भूमि, फैक्टरी, किचन

    बुध     हरा     भीगा वस्त्र                  खेल का मैदान, बगीचा

    बृहस्पति     पीला     सादा वस्त्र       कोषागार, बैंक, तिजोरी

    शुक्र     सफेद     रेशमी तथा रंगीन वस्त्र        शयनकक्ष, मनोरंजन स्थल

    शनि     काला   पुराना वस्त्र     कूडा़घर, कूडे़दान

    राहु/केतु   नीला,धूम्र   गुदडी़                  कोने वाली जगहें.  

    बारह राशियाँ और मूक प्रश्न |12 Signs and Mook prashna

    प्रश्न कुण्डली में लग्न में आई राशियों का अपना महत्व होता है. प्रत्येक राशि की अपनी अलग पहचान तथा लक्षण हैं. इन लक्षणों के आधार पर मूक प्रश्न का निर्धारण किया जाता है. प्रश्न कुण्डली में एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्न लग्न अपने स्वामी ग्रह से युत या दृष्ट हो तब लग्न बली हो जाता है अथवा प्रश्न लग्न में शुभ ग्रह स्थित हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तब भी शुभ होता है. आइए आपको सरल विधि से मूक प्रश्न की गणना के विषय में बता दें.

    (1) मेष राशि लग्न में हो तो द्वि-पद अथवा मनुष्य के बारे में प्रश्न होता है.

    (2) वृष राशि लग्न में हो तो पालतू पशु के बारे में जातक का प्रश्न होता है. वृष राशि चौपाया राशि है. अत: आधुनिक समय में आप वृष राशि से चौपाया वाहन का भी विश्लेषण कर सकते हैं. प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न वाहन से संबंधित हो सकता है.

    (3) मिथुन राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो गर्भ अथवा संतान से संबंधित प्रश्न हो सकता है.

    (4) कर्क राशि लग्न में हो तो विवाद, लडा़ई, मुकदमा या चुनाव के बारे में प्रश्न होता है.

    (5) प्रश्न कुण्डली के लग्न में सिंह राशि हो तो नौकरी, राज्य, सरकारी काम य राजनीति के विषय में जातक प्रश्न करता है.

    (6) प्रश्न कुण्डली के लग्न में कन्या राशि हो तो किसी व्यक्ति के विषय में प्रश्न होत है.

    (7) तुला राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो व्यापार, रोजगार या लाभ से संबंधित प्रश्न होता है.

    (8) वृश्चिक राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो भय, अपयश, भ्रष्टाचार या सरकारी अभियोग के बारे में जातक प्रश्न करता है.

    (9) धनु राशि यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो चोरी, घर से भागे व्यक्ति अथवा घरेलू मतभेद के बारे में प्रश्न होता है.

    (10) मकर राशि यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो पापकर्म, अन्याय, षडयंत्र या तस्करी के बारे में प्रश्न होता है.

    (11) कुम्भ राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो धर्म अथवा परोपकार के बारे में प्रश्न होता है.

    (12) मीन राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो घर-गृहस्थी, निजी स्थिति अथवा मांगलिक कार्य के विषय में प्रश्न होता है.

     अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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    किंस्तुघ्न करण

    किंस्तुघ्न करण को कौस्तुभ करण के नाम से भी जाना जाता है. इस करण की महत्ता किसी भी शुभ योग का साथ पाकर और भी बढ़ जाती है. शुक्ल पक्ष की पहली तिथि प्रतिपदा को जब दिन के समय किंस्तुघ्न करण के साथ कोई शुभ योग आए जैसे की हर्ष इत्यादि हो तब यह योग प्रबलता से शुभ फल देता है. शुभ कार्यों को करने के लिये यह करण ग्राह्य है.

    किंस्तुघ्न करण कब होता है

    शुक्लपक्ष प्रतिपदा के पूर्वार्द्ध में किंस्तुघ्न नामक करण होता है. यह समय नए काम करने और नवीन चीजों के निर्माण को दिखाता है. इस समय को उज्जवल रुप से लिया जाता है, क्योंकि अंधकार के पश्चात प्रकाश का आगमन इसी के साथ आरंभ होता है. यह नव जीवन की प्रेरणा देता है.

    किंस्तुघ्न करण – स्वामी

    किंस्तुघ्न करण के स्वामी देव वायु हैं. वायु देव की प्रभाव क्षमता हमे इस करण में भी दिखाई देती है. इनके प्रभाव से ये करण तीव्रगामी फल देने वाला होता है. जिस जातक का जन्म इस करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को जीवन में होने वाली विफलताओं से बचने के लिए वायु देव की पूजा करनी चाहिए. यदि जातक किसी प्रकार के शारीरिक कष्ट से परेशान है तो वायु देव की उपासना करे. करण स्वामी की उपासना से देव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

    किंस्तुघ्न करण – स्थिर संज्ञक करण

    किंस्तुघ्न करण स्थिर संज्ञक करण और ध्रुव करण कहलाता है. यह करण ऊपर की ओर स्थिति प्राप्त करने वाला होता है. इसमें जातक को जीवन में सदैव आगे बढ़ने की उन्नती की प्रेरण भी मिलती है. इस करण का प्रभाव जोश और उत्साह को बनाए रखने वाला होता है.

    किंस्तुघ्न करण में जन्मा जातक

    किंस्तुघ्न करण में जिस व्यक्ति का जन्म हो, वह व्यक्ति शुभ कार्यो को करने के लिए तत्पर रहता है. वह अपने पुरुषार्थ से अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहता है. तथा इस योग के व्यक्ति के द्वारा किए गये सभी प्रयास सफल होते है. जीवन की अभीष्ट सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए उसे अपनी धार्मिक आस्था को बनाये रखना चाहिए, तथा धर्म कर्म के कार्यो के लिए समय निकालने के साथ साथ अपने पिता का आशिर्वाद समय समय पर प्राप्त करते रहना चाहिए.

    जातक शत्रुओं से घबराता नही है वह अपने साहस के बल पर काम करता है और उन्हें परास्त भी कर सकता है. मित्र की सहायत अके लिए भी सदैव आगे रहता है. जातक मनमौजी किस्म का हो सकता है. खेल कुद में रुचि रखने वाला और प्रसन्नता के साथ जीवन को जीने की कोशिशों में लगा रहने वाला होता है.

    किस्तुघ्न करण कार्य

    सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए अनुकूल माना जाता है. इस करण के दौरान व्यक्ति ऎसे कामों को कर सकता है जो किसी कारण से रुके पड़े थे. यह करण अवरोध से मुक्ति देता हुआ आगे की ओर प्रस्थान करने की शिक्षा ही देता है. इस करण में जातक जोश के साथ अपने कामों को करता है.

    इस करण के समय देव पूजा के कार्य, जप, तप, दान इत्यादि काम भी इस करण के समय पर किए जा सकते हैं. इस करण में कठिन से कठिन कार्य सरलता पूर्वक हो जाते हैं.

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    रूचक योग – पांच महापुरुष योग | Ruchaka Yoga – Panch Mahapurusha Yoga | Malavya Yoga | Hans Yoga | Bhadra Yoga | What is The Budhaditya Yoga | Shash Yoga Result

    पांच महापुरुष योग पांच ग्रहों के अपने राशि में स्थित होने अथवा उच्च के होकर केन्द्र में होने पर बनते है. इस प्रकार बनने वाले पांच योगों में से एक योग है. रुचक योग. 

    रूचक योग किस प्रकार बनता है | How is Ruchaka Yoga Formed

    जब कुण्डली में मंगल स्वराशि( मेष, वृ्श्चिक) अथवा मंगल अपनी उच्च राशि (मकर राशि ) में होकर केन्द्र में हो तो रुचक योग बनता है. 

    रुचक योग के फल | Ruchaka Yoga Result

    जिसके जन्म कुण्डली में रुचक योग बन रहा हो, वह व्यक्ति दीर्घायु वाला होता है. उसकी त्वचा साफ और सुन्दर होती है. शरीर में रक्त की मात्रा अधिक होती है. वह बली, और साहसी होता है. इसके साथ ही उसे सिद्धियां प्राप्त करने में विशेष रुचि हो सकती है. 

    इस योग से युक्त व्यक्ति सुन्दर, भृ्कुटी, घने केश, हाथ-पैर सुडौल, मंत्रज्ञ, रक्तश्याम वर्ण, बडा शूर, शत्रुजित, शंख समान कण्ठ, बडा पराक्रमी, दुष्ट, ब्राह्माण, गुरु के सामने विनयशील, जनता से प्रेम करने वाला होता है. 

    व्यक्ति में इन सभी गुणों के साथ साथ यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की शक्ति देता है. इस योग से युक्त व्यकि अपने शत्रुओं को परास्त करनें में कुशल होता है.  

    Hans Yoga

    हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है. तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है. उसमें सात्विक गुण पाये जाते है. 

    हंस योग कैसे बनता है | How is Hans Yoga Formed

    हंस योग उस समय बनता है, जब कुण्डली में लग्न, पंचम, नवम, सप्तम भाव में सभी ग्रह स्थित हो, जिस व्यक्ति की कुण्डली में हंस योग होता है, उस व्यक्ति में सही – गलत का निर्णय करने की योग्यता होती है. वह व्यक्ति उत्तम् कार्य करने वाला व उच्च कुल में जन्म लेने वाला होता है. 

     यह योग व्यक्ति में निर्णय योग्यता में बढोतरी करता है. 

    Bhadra Yoga 

    पांच महापुरुष योगों में से एक अन्य योग है. भद्र योग, यह योग भी शुभ योगों की श्रेणी में आता है. तथा इस योग से युक्त व्यक्ति धन, कीर्ति, सुख-सम्मान प्राप्त करता है. 

    कुण्डली में जब बुध स्वराशि (मिथुन, कन्या) में हो तो यह योग बनता है. साथ ही बुध का केन्द्र अमें होना भी आवशय है. कुछ शास्त्र इसे चन्द्र से केन्द्र में भी लेते है. भद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को फल देता है.

    भद्र योग फल | Bhadra Yoga Result

    भद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सिंह के समान फुर्तीला होता है. उसकी चाल हाथी के समान कहीं गई है. वक्षस्थल पुष्ट होता है. गोलाकारक सुडौळ बाहें, कामी, विद्वान, कमल के समान हाथ-पैर होते है. सत्वगुण, कान्तिमय त्वचा युक्त होता है. 

    इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल,  बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते है. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृ्कुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है.  

    भद्र योग वाला व्यक्ति सब कार्य को स्वतन्त्र रुप से करने में समर्थ होता है. अपने जन को भी क्षमा न करने वाला तथा उसकी संपति को अन्य भी भोगते है. 

    Malavya Yoga

    पांच महापुरुष योगों को पंच-महापुरुष योग भी कहते है. यह योग पांच श्रेष्ठ योगों का समूह है. पांच महापुरुष योग में रुचक योग, हंस योग, मालव्य योग, भद्र योग व शश योग आते है. इन पांचों योगों को एक साथ पंच महापुरुष योग के नाम से जाना जाता है. 

    मालव्य योग कैसे बनता है | How is Malavya Yoga Formed

    शुक्र जब कुण्डली में स्वराशि (वृ्षभ, तुला) राशि में हो, तो मालव्य योग बनता है. 

    मालव्य योग फल | Malavya Yoga Result

    मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को विदेश स्थानों की यात्रा करने के अवसर प्राप्त होते है. मालव्य योग में उत्पन्न व्यक्ति पतले होंठ वाला होता है, अंगों की संधियां रक्त रहित, दुर्बल, चन्द्रमा के समान कान्ति, दीर्घ नासिका, सुन्दर गाल, उत्तम तेज दृष्टि, सर्वत्र पराक्रमी, लम्बी बाहें, और दीर्घायु वाला होता है.

    Budhaditya Yoga | Budhaaditya Yog Result | What is The Budhaditya Yoga”/>कुण्डली में ग्रहों अपनी विशेष स्थिति में होने पर विशेष रुप से शुभ या अशुभ फल देने वाले हो जाते है.  इस स्थिति को योग कहा जाता है. योग बनाने वाले ग्रहों की फल देने की क्षमता बढ जाती है.  योग शुभ हो तो व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते है. इसके विपरीत योग अशुभ बन रहा हो तो व्यक्ति को योग के परिणाम अशुभ रुप में प्राप्त होते है.   

    बुद्धादित्य योग क्या है | Budhaditya Yoga Meaning | What is The Budhaditya Yoga 

    जब कुण्डली में सूर्य और बुध किसी भी रशि में एक साथ हो तो बुद्धादित्य योग बनता है. बुद्धादित्य योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति बुद्धिमान, विद्वान, और तेजस्वी होता है. उसमें साहस भाव भी भरपूर पाया जाता है. तथा अपने बौद्धिक कार्यो से वह उन्नतिशील बनता है. इसके अतिरिक्त ऎसा व्यक्ति अपने सिद्धान्तों पर स्थिर रहकर् जीवन व्यतीत करता है. 

    Shash Yoga Result”/>शश योग शनि से बनने वाला योग, जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हो, उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएं शनि देव से प्रभावित रहती है. शश योग विशेष योगों की श्रेणी में से आता है. साथ ही यह योग पांच महापुरुष योग भी है. 

    शश योग कैसे बनता है | How is Shash Yoga Formed

    कुण्डली में जब शनि स्वराशि (मकर,कुम्भ) में हो,  अथवा शनि अपनी उच्च राशि तुला में होकर, कुण्डली के केन्द्र भावों में स्थित हो, उस समय यह योग बनता है. एक अन्य मत के अनुसार इस योग को चन्द्र से केन्द्र में भी देखा जाता है. 

    शशक योग फल | Shash Yoga Result

    शश योग को शशक योग के नाम से भी जाना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसकें छोटे छोटे दांत होते है. उसे घूमने-फिरने के शौक होता है. वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है. शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है. उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है. इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है. व उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है. 

    ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है. धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है. चंचल नेत्र होते है. विपरीत लिंग का भक्त होता है. दूसरे का धन का अपव्यय करता है. माता का भक्त होता है. सुन्दर पतली कमर वाला होता है.  सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है. 

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    एकादशी जी की आरती | Ekadashi Aarti

    ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ऊँ।।

    तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ऊँ।।

    मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष की “उत्पन्ना | Utpanna” विश्वतारनी का जन्म हुआ।
    शुक्ल पक्ष में हुई “मोक्षदा | Mokshada”, मुक्तिदाता बन आई।। ऊँ।।

    पौष के कृ्ष्णपक्ष की, “सफला | Saphala” नामक है। 
    शुक्लपक्ष में होय “पुत्रदा | Putrada”, आनन्द अधिक रहै ।। ऊँ।।

    नाम “षटतिला | Shatila” माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
    शुक्लपक्ष में “जया | Jaya” कहावै, विजय सदा पावै ।। ऊँ।।

    “विजया” फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला “आमलकी | Amalaki” ।
    “पापमोचनी | Papmochani” कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ऊँ।।

    चैत्र शुक्ल में नाम “कामदा | Kamada” धन देने वाली ।
    नाम “बरुथिनी | Varuthini” कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ऊँ।।

    शुक्ल पक्ष में होये”मोहिनी | Mohini”, “अपरा” ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
    नाम”निर्जला | Nirjala” सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।। ऊँ।।

    “योगिनी | Yogini” नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
    “देवशयनी | Devshayani” नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरी ।। ऊँ।।

    “कामिका | Kamika” श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
    श्रावण शुक्ला होय “पवित्रा | Pavitra”, आनन्द से रहिए।। ऊँ।।

    “अजा” भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, “परिवर्तिनी | Parivartini” शुक्ला।
    “इन्द्रा | Indra” आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ऊँ।।

    “पापांकुशा | Papamkusha” है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
    “रमा | Rama” मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।ऊँ।।

    “देवोत्थानी | Devotthani” शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
    लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।। ऊँ।।

    “परमा | Parama” कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
    शुक्ल लौंद में होय “पद्मिनी | Padmini”, दु:ख दारिद्र हरनी ।। ऊँ।।

    जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
    जन “गुरदिता | Gurdita” स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।ऊँ।।

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