मनु संहिता- ज्योतिष का इतिहास | Manu-Samhita | History of Astorlogy | What is Manusmriti । Surya Pragyapati।

ज्योतिष के इतिहास में ऋषि मनु को विशेष आदर-सम्मान प्राप्त है,  मनु ऋषि ने कई ज्योतिष ग्रन्थों की रचना करने के साथ साथ कई धार्मिक ग्रन्थों की भी रचना की. इनके द्वारा लिखे गये कुछ ग्रन्थों में से मनु संहिता, मनुसमृ्ति प्रमुख है. ऋषि मनु के नाम पर मनाली शहर में एक विशेष मन्दिर का निर्माण किया गया है. यह प्राचीन मंदिर है, तथा यह पूर्णता देव ऋषि को समर्पित है. ऋषि मनु के संबन्ध में एक मान्यता प्रसिद्ध्द है, कि ऋषि मनु ने ही मनुष्य् जाति की फिर से रचना की थी.  

ऋषि मनु एक महान ज्योतिषी होने के साथ साथ एक प्रसिद्ध धर्मशास्त्री भी रहे है. धर्म के विधि नियमों के ज्ञाता ऋषि मनु रहे है. इन्हें कर्मकाण्ड का पण्डित माना जाता है. पूजा और हवन के लिए प्रयोग होने वाली विधियों का ज्ञान मनुस्मृ्ति से होता है. ऋषि मनु को संसार का प्रथम कर्मकान्ड पण्डित माना जाता है.  

मनुसमृ्ति क्या है. | What is Manusmriti 

मनु समृ्ति को ही मनु संहिता के नाम से जाना जाता है. मनुसमृ्ति एक प्रसिद्ध धर्म ग्रन्थ है. यह एक विस्तृ्त शास्र है, इसमें अनेक अध्याय है. इसमें जीवन जीने की कलाओं के साथ साथ व्यक्ति के सभी नियम और विधि नियमों की जानकारी दी गई है. इस ग्रन्थ में जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से जुडे कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है.

कुल मिलाकर इसके 12 अध्याय, तथा 2694 श्लोक है. मनुस्मृ्ति ग्रन्थ हिन्दू धर्म का सबसे बडा ग्रन्थ है. व्यक्ति को धर्म नियमों का पालन किस प्रकार करना चाहिए. अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अर्थ की प्राप्ति करनी चाहिए. इसके साथ ही अन्य जिम्मेदारियों के साथ साथ अपनी वैवाहिक जीवन कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए. इस प्रकार व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है.  

सूर्य प्रज्ञाप्ति 

 

सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य, सौर मण्डल, सूर्य की गति, युग, आयन तथा मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ को वेदांग ज्योतिष का प्राचीन ओर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है. यह ग्रन्थ प्राकृ्त भाषा में लिखा गया है.  इस ग्रन्थ में विशेष रुप से सूर्य की गति, आयु निर्धारण, तथा सौर परिवार का वर्णन किया गया है. 

इसके साथ ही यह ग्रन्थ यह भी कहता है, कि पश्चिम देशों में दो सूर्य और चन्द्र है. और प्रत्येक सूर्य के 28 नक्षत्र बताये गये है. क्योंकि ये सभी सूर्य और नक्षत्र एक साथ गति कर रहे है. इसलिए मात्र एक सूर्य प्रतित होता है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में दिन,मास, पक्ष, अयन आदि का उल्लेख है. 

सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ वर्णन | Surya Pragyapati Texts Description 

ज्योतिष के इस महान ग्रन्थ के अनुसार उत्तरायन में बाहरी मार्ग से पश्चिम दिशा की ओर जाता है. इस मार्ग पर चलते हुए सूर्य की गति मन्द होती है. यही कारण है, कि उत्तरायण को शुभ कार्यो के मुहूर्त के लिए प्रयोग किया जाता है. ग्रन्थ में 24 घटी का दिन माना गया है. इसके विपरीत जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तो उसकी गति मन्द होती है. इस अवधि में 12 मुहूर्त अर्थात 9 घण्टे, 36 मिनट का दिन होता है. और 18 मुहूर्त की रात होती है. 

इस शास्त्र में यह भी उल्लेख किया गया है, कि पृ्थ्वी पर सभी जगह दिनमान एक समान नहीं होता है. इस शास्त्र में कहा गया है, कि पृ्थ्वी के मध्य नदी, समुद्र, पर्वत, पहाड और महासागरों के होने के कारण सभी जगह की उंचाई, नीचाई, अक्षांश, देशान्तर एक जैसे नहीं रहते है. 

सूर्य प्रज्ञाप्ति अयन प्रारम्भ |  Surya Pragyapati Ayan 

इस ग्रन्थ के अनुसार युग का पहला अयन दक्षिणायन, श्रवण मास कृ्ष्ण पक्ष, प्रतिपदा, अभिजीत नक्षत्र है. दूसरा अयन, उत्तरायण माघ कृ्ष्ण सप्तमी को हस्त नक्षत्र, तीसरा अयन दक्षिणायन श्रावण कृ्ष्ण त्रयोदशी, मृ्गशिरा नक्षत्र, चौथा उत्तरायण माघ शुक्ला चतुर्थी को शतभिषा नक्षत्र, पांचवा अयन दक्षिणायन श्रावण शुक्ला पक्ष दशमी तिथि, विशाखा नक्षत्र, छठा अयन उत्तरायण माघ कृ्ष्णा प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र, सांतवा अयन कृ्ष्णा सप्तमी तिथि, रेवती नक्षत्र, आंठवा उत्तरायण माघ कृष्णा त्रयोदशी को मूल नक्षत्र में, नौवां दक्षिणायन श्रावण शुक्ल नवमी को पूर्वाफाल्गुणी, नक्षत्र, और दसवां उत्तरायण माघ कृ्ष्ण त्रयोदशी को कृ्तिका नक्षत्र में कहा गया है. 

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जेड उपरत्न – Substitute of Emerald

जेड उपरत्न को उर्दू में मरगज कहा जाता है. प्राचीन समय में कई शताब्दियों तक जेड को एक ही प्रकार का रत्न समझा जाता था. सन 1863 में जेड की दो किस्में स्वीकार की गई – जेडाइट और नेफ्राइट. दोनों का ही उपयोग गहने तथा पूजा की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है. जेड उपरत्न यूरोप से धीरे-धीरे सभी देशों में फैल गया. प्राचीन समय में जेड उपरत्न को औजारों को बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता था. अमरीका में जेड उपरत्न का उपयोग गुर्दों की चिकित्सा के  रुप में किया जाता था. इसलिए इस उपरत्न की कीमत सोने से भी अधिक थी. 

यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न जैसा होता है. सबसे अधिक कीमती जेड की किस्म हरे पन्ने से अत्यधिक मिलती है. अच्छी किस्म का जेड उपरत्न पारभासक होता है. इसके अतिरिक्त जेड उपरत्न अन्य कई रंगों में उपलब्ध होता है. जैसे – पीला, गुलाबी, नीले, काले रंगों में पाया जाता है. इन सभी रंगों में यह उपरत्न हल्के रंगों में मिलता है, गहरे रंगों में जेड उपलब्ध नहीं होता है. किसी-किसी उपरत्न में सभी रंगों का मिश्रण पाया जाता है. हरे रंग के अतिरिक्त अन्य रंगों में यह उपरत्न सस्ता मिलता है. 

जेड उपरत्न के गुण | Jade Properties

चीन में हर घर में जेड उपरत्न उपयोग में लाया जाता है. वहाँ की देवी कूआन-यिन(Kuan Yin) की मूर्त्ति जेड उपरत्न से ही बनी हैं. यह दया और करुणा की देवी हैं. मातृत्व तथा छोटे बच्चों की संरक्षक हैं. जेड उपरत्न से बनी उनकी मूर्त्ति, नकारात्मक  ऊर्जा से चमत्कारिक रुप में व्यक्ति की रक्षा करती है. घर के वातावरण को स्वच्छ बनाती है तथा बुरी ऊर्जा को घर में नहीं आने देती.

जेड उपरत्न उन गिने-चुने उपरत्नों की श्रेणी में आता है जिनको धारण करने के पश्चात धारणकर्त्ता को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं पहुंचाते हैं और ना ही किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का संचार पहनने वाले के अंदर करते हैं. इसलिए जेड उपरत्न को कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता है. यह उपरत्न प्यार का प्रतीक माना जाता है. चीन में इस उपरत्न से बनी तितली को अपने मनचाहे प्यार को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए धारण किया  जाता है. यह अव्यक्त शक्ति तथा सुंदरता से भरपूर उपरत्न है. 

यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए शुभ है जो अपने भाग्य को चमकाना चाहते हैं. धारणकर्त्ता के भीतर यह संतुलन, शांति तथा ज्ञान की वृद्धि करता है. यह मन को शांत करने का आसाधरण और शक्तिशाली उपरत्न है जो उच्च स्तर पर व्यक्ति की चेतना को जागृत करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता का दुर्घटनाओं से बचाव करता है. प्राचीन समय में इसे साँप के काटने से बचाव के लिए पहना जाता था. इसे लम्बे तथा शांतपूर्ण जीवन जीने के लिए धारण किया जाता था. 

आधुनिक समय में यह उपरत्न व्यक्ति के द्वारा देखे जाने वाले ख्वाब को सच्चाई में बदलने में सहायता करता है और उन सपनों का अहसास दिलाता रहता है ताकि उनको पूर्ण करने के लिए वह अपने जीवन के प्रति सत्यनिष्ठ रहें, स्वयं को धोखे में ना रखें. ऎसा विश्वास है कि इस उपरत्न को रात में अपने तकिए अथवा बिस्तर के नीचे रखने से नकारात्मक भावनाएँ सपनों के माध्यम से दूर रहती हैं. 

जेड उपरत्न के चमत्कारिक गुण | Miraculous Properties of Jade 

इस उपरत्न का उपयोग चिकित्सा के रुप में भी किया जाता है. यह मिर्गी के मरीज को अत्यधिक राहत पहुंचाता है. यह किडनी से जुडी़ समस्याओं में राहत देता है तथा किडनी विकारों को होने से रोकता है. त्वचा विकारों में इस उपरत्न का उपयोग करने से त्वचा ठीक होती है. कैल्सियम की कमी को पूर्ण करता है. रक्त को साफ करता है. आँखों का रोगों से बचाव करता है. 

यह उपरत्न प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अच्छा है. बालों से जुडी़ समस्याओं से छुटकारा दिलाता है. यह उपरत्न खराब पाचन क्रिया को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत अत्यधिक रहती है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इससे उन्हें कब्ज तथा कब्ज से होने वाले रोगों से निजात मिलेगा. 

कौन धारण करे | Who Should wear Jade

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध ग्रह शुभ भावों का स्वामी है और निर्बल अवस्था में स्थित है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इसे पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. 

कौन धारण नहीं करे | Who Should not wear Jade

जेड उपरत्न को स्वतंत्र रुप से धारण किया जा सकता है. इस उपरत्न के साथ गुरु, मंगल, राहु, केतु तथा सूर्य के रत्नों तथा उपरत्नों को धारण नहीं करें. 

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रोज क्वार्टज उपरत्न । Rose Quartz Substone

यह उपरत्न हल्के पीले रंग की आभा लिए हुए हल्के गुलाबी रंग में पाया जाता है.(This substone is found in light pink color with a hue of light yellow). लेकिन सबसे अच्छा उपरत्न हल्का गुलाबी रंग का माना गया है. इस उपरत्न को प्यार का प्रतीक माना गया है. जिनके वैवाहिक जीवन से प्यार कम होने लगता है उनके लिए यह उपरत्न लाभदायक है. यह उपरत्न देखने में पारदर्शी लगते हैं लेकिन पारभासी होते हैं. पारदर्शी रोज क्वार्टज का मिलना अत्यधिक दुर्लभ होता है. पारभासी उपरत्न आसानी से मिल जाता है. जिसका उपयोग विभिन्न चीजों में किया जाता है.

रोज क्वार्टज के गुण | Properties of Rose Quartz 

स्वयं के प्रति प्यार को बढा़ता है. जीवन के प्रति व्यक्ति को आशावादी बनाता है. भावनात्मक घावों को भरने में सहायक होता है. दिल के दर्द को कम करता है. अकेलेपन को दूर करने में मदद करता है. दमित भावनाओं को ठेस पहुंचने से रोकता है. क्षमा देने की प्रवृति को बढा़ता है. आंतरिक शांति को बढा़ता है. यह उपरत्न मुख्य रुप से दिल के लिए इस्तेमाल किया जाता है.(This substone is mainly used for heart problems) यह एक ऎसा उपरत्न है जो भावनात्मक रुप से लोगों की मदद करता है. उन्हें मजबूत बनाता है.  

इस उपरत्न को धारण करने से मन में आने वाली नकारात्मक भावनाएँ दूर होती हैं. इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति अपनी उम्र से कम दिखाई देता है. उसके अंदर यौवन बना रहता है. कई लोगों का मानना है कि रोज क्वार्टज को रात भर पानी में भिगो दें और सुबह उस पानी से चेहरा धोएँ. कुछ समय तक नियमित रुप से चेहरा धोने से चेहरे की त्वचा में कसाव आता है. चेहरे की महीन लकीरें कम हो जाती हैं.

रोज क्वार्टज के चमत्कारी गुण | Special Properties of Rose Quartz 

जिन व्यक्तियों को शारीरिक थकान अधिक होती है उन्हें अपने हाथ में कुछ देर तक रोज क्वार्टज का एक टुकडा़ रख लेना चाहिए. कुछ समय रखने के पश्चात ही शरीर की थकान दूर हो जाएगी. यह शरीर को तनाव तथा चिन्ता से मुक्त करता है.(It helps reduce stress and worries) शरीर में ऊर्जा का पुनर्संचार करता है. धारणकर्त्ता की आर्थिक रुप से भी मदद करता है. यह उपरत्न हानिकारक विकिरणों से धारणकर्त्ता का बचाव करता है. धारणकर्त्ता के मन में किसी के प्रति कोई नाराजगी अथवा द्वेष है तो उसे दूर करने में यह उपरत्न सहायक होता है.

रक्त संचार को सुचारु रुप से संचालित करने में सहायता करता है. यौन दुर्बलताओं को दूर करने में सहायक है. जननेन्द्रियों तथा प्रजनन अंगों से संबंधित बीमारियों का निदान करने में सहायक है.

कौन धारण करे | Who Should Wear

इसे सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं.(Everybody can wear it)  इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नही करे | Who Should Not Wear

बृहस्पति, सूर्य, मंगल, राहु, केतु के रत्नों तथा उपरत्नों के साथ इस उपरत्न को धारण नहीं करें.(Do not wear this substone with the gems of Jupiter, Sun, Mars, Rahu and Ketu.)

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कृतिका नक्षत्र । Kritika Nakshatra | Krittika Nakshatra – Characteristics of Person, Profession of Kritika Nakshatra Individual

27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है. इस नक्षत्र में 6 तारे माने गए हैं लेकिन प्राचीन वैदिक साहित्य में सात तारों का भी उल्लेख मिलता है. कृतिका नक्षत्र में तारों का समूह खुरपा या फरसे की आकृति के समान दिखाई देता हैं. तैत्तिरीय ब्राह्मण के नक्षत्र यज्ञ के एक प्रसँग के वाक्य में कृतिका नक्षत्र के यज्ञ में सात आहुतियाँ देने की बात कही गई है. इससे इस बात की पुष्टि अधिक हो जाती है कि उस समय कृतिका नक्षत्र में सात तारे माने जाते थे. अम्बा, दुला, नितत्नी, अभ्रयन्ती, मेघयन्ती, वर्षयन्ती, चुपुणिका ये सात तारों के नाम थे. कृतिका नक्षत्र के छ: तारों का विवरण भी बहुत है. 

कृतिका नक्षत्र जातक की विशेषताएँ | Characteristics of Kritika Nakshatra Person

कृतिका नक्षत्र का जातक यदि मेष राशि मे जन्मा है तब वह बहुत ही कम भोजन करने वाला होता है. यदि जातक का जन्म वृष राशि में हुआ है तब वह अधिक भोजन करने वाला होता है. कृतिका नक्षत्र के जातक अपनी एक अलग पहचान बनाकर रखते हैं. यह भीड़ में भी अलग दिखाई देते हैं. इनके चेहरे पर तेज दिखाई देता है. यह सभा में छाए रहते हैं. बहुत बुद्धिमान होते हैं. दान करन इनका स्वभाव होता है. स्त्री प्रसँग के शौकीन होते हैं. (Wccannabis) अपने कार्य में कुशल होते हैं. काम में अनुशासन बरतने वाले होते हैं. स्वाभिमानी व्यक्तित्व के होते हैं. इनके स्वभाव में तीक्ष्णता होती है. यह बहुत जल्दी तुनक जाते हैं. यह प्रसिद्धि पाते हैं. इनमें लगन अत्यधिक होती है. 

यह व्यक्ति धार्मिक आचरण का पालन करने वाले होते हैं. संस्कारयुक्त विचारों वाले होते हैं. स्वाध्याय में लगे रहते हैं. संस्कारों वाले होते हैं. कुलीन होते हैं. कुल के अनुसार कार्य करते हैं. कृतिका नक्षत्र जातकों की विशेषता होती है कि यह जीवन में अच्छा धन कमा लेते हैं. यदि किसी जातक की कुण्डली में कृतिका नक्षत्र पीड़ित हो तब वह परस्त्रीगामी होता है. झूठ बोलने की व्यक्ति को आदत होती है. बिना कारण घूमना इन्हें अच्छा लगता है. इनकी वाणी कठोर होती है. यह निन्दित कार्य करने वाले व्यक्ति होते हैं. 

इस नक्षत्र के जातकों की पित्त प्रवृति होती है. अधिक तला तथा गरिष्ठ भोजन करने से इनके पाचन तंत्र में विकार उत्पन्न होता है. 

कृतिका नक्षत्र जातक का व्यवसाय | Profesion of Kritika Nakshatra Individual 

कृतिका नक्षत्र के जातक अग्नि संबंधी व्यवसाय करते हैं. सुनार, लुहार, ढा़बा, रेस्तराँ और तन्दूर चलाने वाले व्यवसाय करने में दिलचस्पी रखते हैं. कपडो़ की रंगाई का काम कांच का काम करने वाले जातक भी इसी नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं. ज्वलनशील पदार्थों का काम, गैस तथा तेजाब आदि से संबंधित कार्य इसी नक्षत्र में आते हैं. ईंधन का व्यापार करने वाले व्यक्ति, सलाहकार, सफेद फूलों से संबंधित पदार्थ, खजाने में काम करने वाले व्यक्ति कृतिका नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं. सुरंग तथा वर्तमान समय में सब-वे का काम, भूगर्भ संबंधित कार्य, गटर तथा मेनहॉल के काम सभी इस नक्षत्र में आते हैं. 

नाई, ब्यूटी सैलून आदि से संबंधित कार्य भी इस नक्षत्र में आते हैं. भाषा शास्त्री भी इस नक्षत्र के अंदर आते हैं. व्याकरण जानने वाले व्यक्ति, बर्तन बनाने के कार्य, ज्योतिषी तथा पुरोहित के कार्य, खान में काम कार्ने वाले, खुदाई के कार्य, श्मशान के कार्य कृतिका नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं.   

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सरल योग विपरीत राजयोग

जन्म कुण्डली में कुछ योग इस प्रकार के बनते हैं जिनमें उन योग का फल सीधे न मिलकर विपरीत रुप से फल मिलता है, इसका अर्थ हुआ की कष्ट तो मिलेगा लेकिन उसके बाद राहत भी मिलनी संभव हो पाएगी. विपरित राजयोग के अन्तर्गत सरल नामक योग बनता है.

दु:स्थान के प्रभाव में बनने वाला यह व्यक्ति को इन भावों के कष्टों पर विजय पाने की शक्ति देता है. विपरीत राजयोग ऎसा योग है जो खराब भावों से भी जातक को अच्छे फल देने की संभावनाएं बढ़ा देता है. यह शुभ फल देने वाला योग बनता है. यह योग व्यक्ति को थोड़े सी मेहनत पर भी बेहतर फल देने की योग्यता रखता है.

छठा भाव –

जन्म कुण्डली में छठा भाव जातक के जीवन में होने वाली बीमारी, दुर्घटना, कर्ज, लड़ाई झगड़ों की स्थिति को दर्शाता है. इस भाव के प्रभाव का जातक के जीवन पर बहुत अहम रोल होता है. कुण्डली में इस भाव को कष्ट स्थान कहा जाता है क्योंकि इस भाव से जातक के जीवन के दुख इत्यादि का पता चलता है. इस स्थान के प्रभाव से बनने वाला सरल नामक विपरीत राजयोग व्यक्ति को बहुत कुछ सकारात्मक फल देने में बहुत सक्षम होता है.

आठवां भाव –

जन्म कुण्डली का आठवां भाव, एक ऐसा अंधकारमय स्थान हैं जिसकी गहराई को नहीं जाना जा सकता है. यह स्थान जातक की आयु को बताता है. इस भाव से जातक के जीवन में आने वालीकठिनाइयां, व्यवधान अर्थात रुकावटें, गड़ा हुआ धन या कहें की ऐसा धन जिसके विषय में किसी को पता ही नहीं चल पाता है. अचानक से घटने वाली घटनाएं, गुप्त रहस्य एवं बातें इत्यादि. इस स्थान की शुभता का प्रभाव भी जातक को इस सरल नामक विपरीत राजयोग में मिलता है.

बारहवां भाव –

जन्म कुण्डली का बारहवां भाव व्यक्ति के खर्चों को दिखाता है. जातक के जीवन में होने वाले सभी प्रकार के व्यय अर्थात खर्चे इसी भाव से देखे जाते हैं. इस भाव से जेल यात्रा, विदेश यात्रा, चिकित्साल्य, आपके यौन संबंधों की संतुष्टि, निंद्रा इत्यादि चीजें आप इसी से देख सकते हैं. सरल योग में इस भाव का भी बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव होता है और इस भाव से मिलने अच्छे प्रभावों को इस योग से मिल पाता है.

सरल योग विपरीत राज योगों में से एक योग है. यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की योग्यता देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना कुशलता के साथ करता है तथा संघर्ष की स्थिति में वह घबराता नहीं है.

सरल योग कैसे बनता है

जन्म कुण्डली में जब आठवें भाव का स्वामी छठे या बारहवें भाव में, स्थित हो तो यह सरल नामक राजयोग कहलाता है.

सरल योग में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरल योग हो, वह व्यक्ति विद्वान होता है, अपने प्रयासों से वह अतुलनीय धन प्राप्त करने में सफल रहता है. इसके साथ ही वह संपति का भी स्वामी होता है. व्यक्ति प्रसिद्ध होता है. वह अपने सिद्धांतों पर अटल रहने वाला होता है, निर्णय लेने में कुशल होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति आदर्शवादी होता है. वह व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला तथा दीर्घायु होता है. जातक को अपने शत्रुओं से भी लाभ मिलता है वह उसके लिए फ़ायदेमंद हो सकते हैं.

सरल योग एक शुभ विपरीत राजयोग कहा जा सकता है. इस योग में जन्मा जातक अपने भाग्य और अपने कर्मों के शुभ फलों को प्राप्त कर सकेगा. इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में आने वाला कष्ट तो होगा लेकिन उस कष्ट से बाहर निकलते हुए जातक को सुख भी मिल सकेगा. इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं की एक होगा राजयोग जिसमें व्यक्ति को शुभ स्थिति ही मिलेगी. जीवन में परेशानी नहीं आएगी. लेकिन विपरीत राजयोग के कारण जातक के जीवन में कठिनाईयां तो होंगी पर वह अपने भाग्य और कर्म द्वारा उस कष्ट से निकलते हुए जीवन के शुभ फलों को पा सकेगा.

सरल योग फल

सरल नामक विपरीत राजयोग अपने नाम के अनुरूप होता है. वह सरल रुप अर्थात साधारण रुप में होते हुए भी एक असाधारण प्रभाव देता है. जातक को इसके असरदायक प्रभाव दिखाई देते हैं. यह योग ऐसे समय पर जातक को फल देता है जब व्यक्ति एक ऐसे स्थान पर अटक जाता है किसी परेशानी में पड़ जाता है और उसे महसूस होता है की वह इस स्थिति से निकल नहीं पाएगा तो उस स्थिति में व्यक्ति यह योग अपना प्रभाव दिखाता है और व्यक्ति अचानक से उस स्थिति से उबर जाता है और अप्रत्याशित फल पाता है.

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रत्नों का औषधि के रुप में उपयोग | Medicinal Properties of Gemstone | Ash of Ruby | Ash of Pearl | Ash of Coral

रत्नों तथा उपरत्नों के उपयोग के बारे में सभी जानते हैं. ज्योतिष तथा आयुर्वेद दोनों में ही प्रमुख नौ रत्नों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध हैं. आयुर्वेद में रत्नों का औषधि के रुप में भी   उपयोग किया जाता है. वैदिक ग्रंथों में रत्नों के औषधि के रुप में उपयोग की विधियाँ दी गई है. रत्नों का उपयोग भस्म के साथ-साथ उसकी पिष्टी(पीसकर) बनाकर भी किया जाता है. हर प्रकार के रोगों में इन रत्नों की भस्म का उपयोग बताया गया है. सामान्य तथा कठिन सभी रोगों का निवारण इन भस्मों द्वारा होता है. 

प्राचीन समय से वैद्य तथा हकीम बहुमूल्य रत्नों की भस्म बनाते आ रहें हैं. सभी अच्छे रत्न इस भस्म को बनाने में उपयोग में लाए जाते हैं. इन भस्मों को बनाने के लिए कई जटिल प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है. सभी प्रमुख रत्नों की भस्म का उपयोग अलग-अलग है. 

माणिक्य की भस्म | Ash of Ruby

इस रत्न को पिष्टी और भस्म दोनों ही प्रकार से औषधि के रुप में उपयोग में लाया जाता है. माणिक्य रत्न शरीर से वायु विकारों का नाश करता है. इससे रक्त में वृद्धि होती है. पेट से जुडे़ विकारों को दूर करता है. इस रत्न की भस्म के सेवन से आयु में वृद्धि होती है. माणिक्य की भस्म में वात, पित्त तथा कफ को शांत करने की शक्ति होती है. यह रत्न क्षय रोग, दर्द, उदरशूल, आंखों से संबंधित रोगों के निवारण में लाभकारी है. शरीर में होने वाली जलन को इस रत्न के उपयोग से दूर किया जाता है. 

भाव प्रकाश तथा रस रत्न समुच्चय के अनुसार माणिक्य कषाय और मधुर रस प्रधान द्रव्य है. यह शीतलता प्रदान करने वाला रत्न है. नेत्रों की ज्योति को बढा़ने में मदद करता है. इस रत्न की भस्म नपुंसकता को नष्ट करती है. 

मोती की भस्म | Ash of  Pearl 

इस रत्न की भस्म को भी औषधि के रुप में खाया जाता है. जिन लोगों के शरीर में कैल्शियम की कमी होती है उन्हें मोती की भस्म खाने से लाभ मिलता है. मोती की भस्म ठण्डी होती है. यह आँखों के लिए गुणकारी होती है. इससे शक्ति तथा बल में वृद्धि होती है. मोती की भस्म को मुक्ता भस्म के नाम से जाना जाता है. मुक्ता भस्म से क्षय रोगों का इलाज होता है. पुराना बुखार, कृशता, खांसी तथा श्वास से जुडे़ विकारों में लाभ दिलाता है. रक्तचाप, ह्रदय रोग, जीर्णतआदि में मोती की भस्म से लाभ मिलता है. 

मूँगा की भस्म | Ash of Coral 

विद्वान व्यक्तियों का मानना है कि यदि मूंगे की शाखा को केवडा़ या गुलाब जल में घिसकर गर्भवती स्त्री के पेट पर लगाने से गिरता हुआ गर्भ भी रुक जाता है. इस रत्न की भस्म से कफ तथा पित्त संबंधी विकारों में राहत मिलती है. कुष्ठ रोग के लिए यह लाभाकारी है. खाँसी, बुखार तथा पांडु रोगों को ठीक करने के लिए यह एक उत्तम तथा बढ़िया औषधि है. इसके सेवन से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है. मूंगे की भस्म का उपयोग पान के साथ करने से कफ तथा खांसी में लाभ मिलता है. 

पन्ना की भस्म | Ash of Emrald 

इस रत्न की भस्म को केवडा़ या गुलाब जल के साथ घोटकर बनाया जाता है. इसकी भस्म से रक्त से जुडी़ सभी बीमारियाँ समाप्त होती है. यह मूत्र संबंधी रोगों के लिए उपयोगी है. ह्रदय रोग में भी लाभदायक है. पन्ने की भस्म ठण्डी तथा मेदवर्धक है. इससे सेवन से व्यक्ति की भूख बढ़ती है. अम्ल तथा पित्त में आराम मिलता है. शरीर में होने वाली गर्मी से राहत मिलती है. अधिक उल्टी होने पर पन्ना की भस्म लाभकारी होती है. दमा, अजीर्ण तथा बवासीर में यह लाभकारी तथा गुणकारी होती है. 

पुखराज की भस्म | Ash of Yellow Sapphire

पुखराज की भस्म को पीलिया, खाँसी, साँस से संबंधित कष्ट को दूर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह आमवात तथा बवासीर के रोगों में उपयोगी भस्म है. इसकी भस्म से कफ तथा वायु संबंधी रोग दूर होते हैं. इस रत्न की भस्म शरीर के विष तथा विषाक्त कीटाणुओं की क्रिया को नष्ट करती है. इस भस्म से मिचली में आराम मिलता है. 

हीरा की भस्म | Ash of Diamond 

विद्वानों का मत है कि हीरे को पीसकर नहीं खाना चाहिए. इस रत्न की भस्म को शुद्ध रुप से बनाए जाने पर ही खाना चाहिए. हीरे की भस्म से मधुमेह, रक्त की कमी, सूजन, भगन्दर, जलोदर, क्षय रोग, आदि में लाभ मिलता है. इसकी भस्म चेहरे की सुन्दरता को बढा़ने का काम करती है. रस रत्न समुच्चय के अनुसार हीरे में एक विशिष्ट गुण यह होता है कि यदि रोगी जीवन की अंतिम साँसे ले रहा है तो हीरे की केवल एक ही भस्म देने से उसमें चेतना लौट आती है. 

हीरे की भस्म में वीर्य बढा़ने की शक्ति भी होती है. यह शरीर के तीनों दोषों को समाप्त करने के साथ रोगों का अंत करता है. नपुंसकता को जड़ से समाप्त करता है.  

कभी यदि गलती से हीरे का कोई कण पेट में चला भी जाता है तब व्यक्ति को दूध में घी मिलाकर पिलाना चाहिए. इससे उल्टी होकर कण बाहर आ जाएगा. कण पेट में रहने से आँतों में जख्म हो सकता है. जो प्राणों के लिए भी हानिकर हो सकता है.  

नीलम की भस्म | Ash of Blue Sapphire 

नीलम के चूरे को केवडा़ के जल या गुलाब जल या वेद मुश्क के जल में घोटना चाहिए. जब यह बहुत ही अच्छी तरह से पावडर के समान घुट जाए तब इसे खाने के उपयोग में लाया जाता है. इस भस्म को शहद, मलाई, अदरक के रस, पान के रस आदि के साथ मिलाकर लेते हैं. यह बहुत ही भयंकर बुखार में लाभकारी होता है. मिरगी, मस्तिष्क की कमजोरी, उन्माद तथा हिचकी आदि में राहत मिलती है. इसके उपयोग से गठिया, संधिवात, उदर शूल, स्नायुविक दर्द, भ्रान्तियाँ, गुल्म, तथा बेहोशी आदि बीमारियाँ दूर होती है. 

गोमेद की भस्म | Ash of Onyx Or Hessonite

इसकी भस्म बनाने से वायु शूल के कष्टों में राहत मिलती है. चर्म रोगों में लाभ मिलता है. कृमि रोगों की रोगथाम होती है. बवासीर आदि में लाभ मिलता है. 

लहसुनिया की भस्म | Ash of Cat’s Eye 

इसे पिष्टी के रुप में काम में लाया जाता है. इससे कफ, खाँसी, आदि रोगों में लाभ मिलता है. लहसुनिया को वैदूर्य भी कहा जाता है. यह मधुर रस प्रधान होता है. इस भस्म में शीत वीर्य गुण अधिक होता है. यह भस्म बुद्धि को तीव्र करती है. आयु बलवर्धक है. यह पित्त नाशक है. यह आँखों के रोगों को हरने वाली है. इस भस्म को विशेष रुप से पित्त से उत्पन्न रोगों को दूर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है.  

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क्राइसोकोला उपरत्न । Chrysocolla Gemstone – Chrysocolla Metaphysical Properties

क्राइसोकोला उपरत्न एक चिकना तथा रेशेदार रत्नीय पत्थर है. यह उपरत्न चिकना होता है. कई बार यह पारभासी रुप में भी पाया जाता है. कई बार यह अपारदर्शी रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को देखने पर फिरोजा उपरत्न का आभास होता है. यह फिरोजा से मिलता-जुलता उपरत्न है. कई बार इसे देखकर रंगें हुए कैल्सीडोनी व तुरमलीन उपरत्न का भी भ्रम पैदा होता है. स्फटिक ओपल के साथ प्राप्त हुए क्राइसोकोला उपरत्न को ही आभूषण बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इस उपरत्न में ताँबे का समिश्रण होता है. इसलिए यह ताँबे की खानों के आसपास पाया जाता है. एलात(Eilat) उपरत्न, क्राइसोकोला की ही एक श्रेणी है और यह विभिन्न श्रेणियों में हरे तथा नीले रंगों के मिश्रण में पाया जाता है.

शुद्ध रुप में पाया जाने वाला क्राइसोकोला गहने बनाने के उद्देश्य से बहुत ही नर्म होता है, लेकिन यह क्वार्टज रुप में पाए जाने से कुछ सख्त हो जाता है. यह उपरत्न नीले-हरे रंग में पाया जाता है. फिरोजा जैसे रंग में पाए जाने से क्राइसोकोला कई कीमती रत्नों के उपरत्न के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है. इस उपरत्न से बने गहनों की देखरेख ध्यान से करनी चाहिए. इस उपरत्न को साबुन वाले गुनगुने पानी से धोना चाहिए और नर्म सूती कपडे़ से सुखाना चाहिए. जब इस उपरत्न का उपयोग ना हो रहा हो तब इसे अन्य गहनों से अलग रखना चाहिए अन्यथा इस पर महीन लकीरें पड़ सकती हैं, क्योंकि यह बहुत ही नर्म उपरत्न है. 

क्राइसोकोला के आध्यात्मिक तथा चमत्कारिक गुण | Metaphysical And Mystique Properties Of Chrysocolla

यह बहुत ही सुन्दर उपरत्न है और इसमें कई लाभदायक ऊर्जा पाई जाती हैं. यह रचनात्मकता में वृद्धि करता है. संचार माध्यमों को सुनियोजित करता है. यह शांति तथा सौहार्द बनाए रखने में मदद करता है. यह धैर्य तथा अन्तर्ज्ञान में बढो़तरी करता है. धरणकर्त्ता बिना किसी शर्त के अथवा बगैर किसी लालच के दूसरों को प्यार करता है. यह सौम्य तथा आरामदायक गुणों की खान है. धारणकर्त्ता के स्वभाव में सौम्यता लाता है. यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है. यदि कोई व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक रुप से परेशान है तब यह उपरत्न पहनने से व्यक्ति को सुख तथा शांति का अनुभव होता है.

यह उपरत्न शांति, सौहार्द, बुद्धि तथा विवेक का सूचक माना जाता है. यह अशांति के समय व्यक्ति को शांत रखता है और विचारों में उग्रता नहीं आने देता. यह व्यक्ति को अध्यक्षता करने के लिए बढा़वा देता है. विचारों में तटस्थता तथा स्पष्टता लाता है. यह घबराहट तथा चिड़चिडे़पन में कमी करता है. जब व्यक्ति बहस, लडा़ई और रिश्ता टूटने से मानसिक रुप से परेशान होता है और रहने के स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा अधिक हो जाती है तब इस उपरत्न को उपयोग में लाने से वातावरण तथा व्यक्तिगत भावनाएँ शुद्ध हो जाती हैं. 

इस उपरत्न को घर में रखने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है. आफिस में रखने से सभी व्यक्ति आपस में मिलकर काम करते हैं. इस उपरत्न को आफिस के कैश रजिस्टर या कैश रखने वाले लॉकर के पास रखा जाए तो धन में वृद्धि होती है. जातक का भाग्य बली होता है. वातावरण में खुशहाली रहती है. मानसिक स्तर अच्छा रहता है. यदि व्यक्ति विशेष को किसी बात से अकारण डर लगता है अथवा तनाव या अपराध भावना जागृत होती है तब इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से जातख को आंतरिक ऊर्जा प्राप्त होती है और वह स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल ढा़लने में सक्षम होता है.

यह व्यक्ति को हर कार्य सुचारु रुप से चलाने में वृद्धि करता है. साथ ही यह कब, क्या तथा कैसे बोलना चाहिए यह सिखाता है. परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने की क्षमता का विकास करता है. यदि किसी व्यक्ति विशेष के गुणों का समुचित विकास नहीं होता है तब उसे यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से उसके व्यक्तित्व में निखार आएगा. लेखकों के लेखों में निखार आता है. उनकी रचनाओं को प्रसिद्धि मिलती है. नए-नए विचार मस्तिष्क में आते हैं. यह उपरत्न लेखक की अभिव्यक्तियों को लेखन कार्य के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने में मदद करता है.

यह शिक्षा प्रदान करने वाले व्यक्तियों के अंदर ऎसी विचारधारा पैदा करता है जिसके उपयोग से अध्यापक अपनी बातों तथा ज्ञान को सरल शब्दों में विद्यार्थियों तक पहुंचाने में कामयाब होते हैं. व्यक्ति में धैर्य की कमी होने से इस उपरत्न को धारण किया जा सकता है. धैर्य किसी को दिखाने वाली चीज नहीं है, यह व्यक्ति को स्वयं अपने भीतर महसूस होता है. इसे धारण करने से धैर्य में वृद्धि होती है. यह आध्यात्मिकता को बढा़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

क्राइसोकोला उपरत्न का एक छोटा-सा टुकडा़ आँखें बन्द करके हाथ में पकड़कर एकाध मिनट तक गहरी साँस लेने से इसकी सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के भीतर तक जाती है और इस ऊर्जा का फैलाव नख से शिख तक होता है. इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराने पर यह व्यक्ति का तारतम्य ब्रह्माण्ड से जोड़ता है. इस तारतम्य से जानकारी भेजने तथा पाने की क्षमता रखी जा सकती है. कई व्यक्तियों की धारणा है कि इस उपरत्न का टुकडा़ हाथ में रखने से उसका मनचाहा प्यार उसकी ओर आकर्षित हो सकता है अथवा गुलाबी या लाल बर्तन में क्राइसोकोला उपरत्न का टुकडा़ रखें और इस बर्तन को पानी से आधा भर दें. फिर इसमें तीन लाल गुलाब भी डाल दें. जब यह गुलाब खराब होने लगे तब इसे बदलते भी रहें. व्यक्ति का मनचाहा प्यार उसे प्राप्त हो जाएगा.

क्राइसोकोला के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Chrysocolla

यह उपरत्न जोड़ों के दर्द से निजात दिलाता है. शरीर के जिस हिस्से में दर्द रहता है उस हिस्से में इलास्टिक पट्टी बाँधकर उसमें दो अथवा तीन क्राइसोकोला उपरत्न रख दें. इससे संबंधित भाग में समस्या से छुटकारा मिल जाएगा. यह सिरदर्द तथा माँस-पेशियों के दर्द में भी राहत दिलाता है. जिन्हें फेफड़ों से जुडी़ समस्याएँ हैं उन्हें भी यह उपरत्न धारण करने से लाभ मिलता है. इसे फेफड़ों के नजदीक पहना जा सकता है. इससे फेफड़ों को ऊर्जा प्राप्त होगी. यह अल्सर को रोकने में सहायक है. 

यह रोगों का संक्रमण व्यक्ति के शरीर में होने से रोकता है. निम्न रक्तचाप से बचाव करता है. लीवर में विष फैलने को रोकता है. यदि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंग जल गया है तो यह उस भाग को अति शीघ्र ठीक करता है. शरीर को अकड़न अथवा ऎंठन से बचाता है. ऎंठन को दूर करता है. बुखार में व्यक्ति को शीतलता प्रदान करता है. यह उपरत्न गले से संबंधित विकारों को दूर करने में मदद करता है. दिल की बीमारियों तथा डायबिटिज को नियंत्रित करता है. ब्लड शुगर से बचाव करता है. अस्थमा से दूर रखता है. ल्यूकेमिया से निजात दिलाता है. यह शरीर के पाँचवें चक्र को नियंत्रित करता है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Chrysocolla Found 

क्राइसोकोला उपरत्न जायरे, चिली, चीन, इंगलैण्ड, नामीबिया, रुस, ग्रीक, इजराइल, आस्ट्रेलिया, चेक-रिपब्लिक, मेक्सिको, फ्राँस, अफ्रीका, अमेरीका के कुछ देशों में पाया जाता है. अकाबा की खाडी़, जो लाल सागर के उत्तर – पश्चिम में स्थित है, वहाँ पाया जाता है. दक्षिण – पश्चिम अमेरीका के कुछ भागों में भी यह उपरत्न पाया जाता है.

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नवमी तिथि महत्व

नवमी तिथि हिन्दू मास की नवीं तिथि. यह तिथि चन्द्र मास के दोनों पक्षों में आती है. इस तिथि की स्वामिनी देवी माता दुर्गा है. तथा साथ ही यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इस तिथि के नाम के अनुसार इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्यसिद्धि रिक्त होती है. यहीं कारण है, कि इस तिथि में समस्त शुभ कार्य वर्जित है.

नवमी तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव पूजन करना अशुभ माना गया है. इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि में शिव पूजन करना अनुकूल रहता है.

नवमी तिथि वार योग

जिस मास में नवमी तिथि शनिवार के दिन आती है, उस दिन सिद्धिदा योग बनता है. सिद्धिदा योग अपने नाम के अनुसार फल देता है. अर्थात इस तिथि में किए गए सभी कार्यो में कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है.

नवमी तिथि में जन्मा जातक

नवमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति देवों का भक्त होता है. वह पुत्रवान होता है. विपरीत लिंग व धन दोनों के लिए महत्वकांक्षी होता है. वह व्यक्ति कई विद्याओं में निपुण होता है. इस तिथि में जन्मा जातक धनार्जन में कुशल होता है. व्यक्ति जोड़ तोड़ करते हुए जीवन में बहुत आगे तक पहुंच पाने में सफल भी होता है.

जातक अपने भाई बंधुओं के प्रति प्रेम भाव रखने वाला होता है. अपने पिता एवं वरिष्ठ लोगों से सुख और सहयोग भी पाता है. गुढ़ रहयों के प्रति लगाव रखने वाला होता है. कठिन कामों को करने में समर्थ होता है. जातक अपने बाहुबल से विजय पाने की कोशिश करता है.

नवमी तिथि में जन्मा जातक त्याग और समर्पण की भावनाओं से युक्त होता है. कई मामलों में दूसरों पर अधिकार जताने से भी नहीं चूकता है. अपनी विजय के लिए हर संभव कोशिशें करता है. प्रेम संबंधों के प्रति सामान्य भाव रखता है. अपने साथी के प्रति निष्ठा भी रखता है.

नवमी तिथि में किए जाने वाले काम

नवमी तिथि को शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नही माना गया है. इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात कहीम गई है. किसी भी प्रकार के युद्ध में विजय पाने के लिए ये तिथि अनुकूल मानी गई है. इसके साथ ही अन्य प्रकार के क्रूर कर्म जिनमें साहस की आवश्यकता होती है इस तिथि में किए जा सकते हैं. शिकार करना, वाद विवाद करना, हथियार का निर्माण करना जैसे काम इसमें किए जा सकते हैं.

नवमी तिथि उपाय

नवमी तिथि की स्वामी देवी दुर्गा हैं ऎसे में जातक को दुर्गा की उपासना अवश्य करनी चाहिए. जीवन में यदि कोई संकट है अथवा किसी प्रकार की अड़चनें आने से काम नही हो पा रहा है तो जातक को चाहिए की दुर्गा सप्तशती के पाठ को करे और मां दुर्गा से अपने जीवन में आने वाले संकटों को हरने की प्रार्थना करे.

नवमी तिथि पर्व

नवमी तिथि पर भी अन्य तिथियों की भांति उत्सवों एवं व्रत इत्यादि मनाए जाते हैं. इस तिथि को भगवान राम के जन्म समय से भी संबंधित माना गया है और साथी ये तिथि अक्षय फल देने वाली भी कही गई है. इसी तिथि के दौरान माँ सिद्धिदात्री का पूजन भी किया जाता है.

अक्षय नवमी –

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी अक्षय एवं आंवला नवमी के नाम से मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है और आंवले के वृक्ष की पूजा भी की जाती है. स्नान, दान, व्रत-पूजा का विधान रहता है. यह संतान प्रदान करने वाली ओर सुख समृद्धि को बढ़ाने वाली नवमी होती है.

राम नवमी –

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को राम नवमी के रुप में पूरे भारत वर्ष में उत्साह और हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान श्री राम के जन्म उत्सव के रुप में यह तिथि राम नवमी कहलाती है.

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विपरीत राज योग – ज्योतिष और योग | Viparita Raja Yoga | When Vipreet Raj Yoga is formed | What is Vipreeta Raja Yoga | Harsh Vipreet Raj Yoga

ज्योतिष शास्त्र में छठे, आंठवें ओर बारहवें भाव और इसके स्वामियों की सदैव से आलोचना होती आई है.  इन भावों के स्वामियों के विषय में यह तक कहा गया है, कि अगर इन भावों का स्वामी किसी अन्य भाव में शामिल होता है, तो उस भाव के कारकतत्वों की शुभता में कमी होती है. और इन भावों के स्वामियों से संबन्ध बनाने वाला ग्रह इस ग्रह के प्रभाव में आ जाता है. परन्तु 

विपरीत राज योग कैसे बनता है | When Vipreet Raj Yoga is formed 

इन तीनों भावों छठे, आंठवे और बारहवें भाव का स्वामी जब परस्पर स्थन परिवर्तन करते है, जैसे- छठे भाव का स्वामी ग्रह, आंठवें या बारहवें भाव में या बारहवें स्थान का स्वामी छठे भाव में आ जाता है. या फिर आंठवें भाव का स्वामी छठे भाव या बारहवें भाव में चला जायें तो, विपरीत राज योग बनता है.

त्रिक भावेशों के स्थान परिवर्तन से बनने वाला यह योग शुभ फल देता है. यह तीन प्रकार का होता है.

हर्ष योग विपरीत राज योग | Harsh Vipreet Raj Yoga 

 

विपरीत राज योग त्रिक भावों के स्वामियों के परस्पर स्थान परिवर्तन से बनता है. यह योग तीन प्रकार से बन सकता है. तीनों प्रकारों के नाम अलग अलग है. इन्हीं तीनों योगों में से एक योग है, हर्ष योग..

हर्ष योग कैसे बनता है. | How is Formed Harsh Vipareeta Raja Yoga 

जब कुण्डली में छठे भाव में पाप ग्रह हो या पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अथवा छठे भाव का स्वामी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो हर्ष योग बनता है.  इसे हर्ष विपरीत राज योग भी कहते है. 

हर्ष योग फल । Harsh Yoga Result 

इस योग में छठे भाव का संबन्ध आंठवें भाव या बारहवें भाव से बनता है. इसलिए यह योग व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता देता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति का शरीर सुडौळ होता है. उस व्यक्ति के पास धन -संपति होती है. वह समाज के गणमान्य व्यक्तियों की संगति में रहता है. इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को जीवन साथी और संतान और मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है. 

सरल विपरीत राज योग | Vipreet Saral Raj Yoga

सरल योग विपरीत राज योगों में से एक योग है. यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की योग्यता देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना कुशलता के साथ करता है. तथा संघर्ष की स्थिति में वह घबराता नहीं है. 

सरल योग कैसे बनता है. | How is formed Sarala Yoga

कुण्डली में जब छठे, आठवें और बारहवें भाव का स्वामी आंठवें भाव में हो अथवा, आंठवें घर का स्वामी छठे या बारहवें भाव में हो तो सरल योग बनता है. 

सरल योग फल | Sarala Yoga Result 

जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरल योग हो, वह व्यक्ति विद्वान होता है, अपने प्रयासों से वह अतुलनीय धन प्राप्त करने में सफल रहता है. इसके साथ ही वह संपति का भी स्वामी होता है. व्यक्ति प्रसिद्ध होता है. वह अपने सिद्धान्तों पर अटल रहने वाला होता है, निर्णय लेने में कुशल होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति आदर्शवादी होता है. वह व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला तथा दीर्घायु होता है. 

विमल विपरीत राज योग | Vipreet Vimal Raj Yoga

जब कुण्डली में छठे, आंठवें और बारहवें भावों मे से किसी भाव का स्वामी इन्ही भावों से से किसी एक में स्थित हो, तो विपरीत राजयोग बनता है. विपरीत राज योग तीन प्रकार से बनता है.  विमल योग विपरीत राज योग का एक भाग है. 

विमल योग कैसे बनता है. | How is Formed Vimala Yoga

जब कुण्डली में छठे, आंठवें या बारहवें भावों के स्वामी ग्रह, बारहवें घर में हों, अथवा बारहवेम भाव के स्वामी छठे, आठवें य़ा बारहवें भाव में हो तो विमल योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति स्वतन्त्र विचार धारा वाला होता है. वह सदैव प्रसन्नचित रहने का प्रयास करता है. इसके अतिरिक्त वह धन संचय करने में चतुर होता है. उसका जीवन एक सदाचारी का जीवन होता है. व सामाजिक कार्यो में उसका सहयोग सराहनीय होता है. 

 

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गर्भपात के योग | Yogas for Abortion

संतान के प्रश्न में कई बार प्रश्न कुण्डली में गर्भपात होने के योग भी बने होते हैं. योग बहुत से हैं आपको मुख्य योगों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. बाकी आप प्रश्न कुण्डली का जितना अभ्यास करेंगें, आपकी प्रश्न कुण्डली पर पकड़ मजबूत होती जाएगी. गर्भपात होने अथवा ना होने के योग हैं :- 

(1) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त होकर केन्द्र में हो तो गर्भपात होता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में पंचम भाव में पाप ग्रह हों और लग्नेश पाप ग्रहों के साथ हो तो गर्भपात होता है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में पाप ग्रहों के साथ चन्द्रमा का इत्थशाल हो तो गर्भपात होता है.  

(4) प्रश्न कुण्डली में वक्री लग्नेश का चन्द्रमा अथवा पाप ग्रहों से इत्थशाल हो तो गर्भपात होता है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश त्रिक भावों में पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो गर्भपात होता है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश, पंचम भाव तथा लग्नेश एकादश भाव में हो गर्भपात नहीं होता है. 

(7) प्रश्न कुण्डली में नवमेश तथा पंचमेश केन्द्र तथा त्रिकोण स्थान में शुभ ग्रहों से दृष्ट हों या युत हों तो प्रसव सकुशल होता है. 

(8) प्रश्न कुण्डली में पंचम भाव और पंचमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो गर्भ सामान्य रहता है. किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती है. 

(9) प्रश्न के समय कुण्डली के आठवें भाव में यदि मंगल स्थित है तो गर्भपात होता है. चन्द्रमा का मंगल से इत्थशाल हो तब भी गर्भपात होता है. 

(10) द्वादशेश यदि अपोक्लिम भावों में स्थित है तो गर्भस्थ शिशु की मृत्यु होती है. यदि लग्नेश भी अपोक्लिम भावों में स्थित हो तब भी गर्भस्थ शिशु को पीडा़ होती है. 

(11) पंचम तथा अष्टम भाव का किसी भी प्रकार का संबंध बन रहा है तो संतान हानि होगी.  

गर्भ के प्रश्न से ही जुडा़ दूसरा प्रश्न यह भी है कि पैदा होने के बाद शिशु कैसा रहेगा. कई बार पैदा होने के बाद नवजात शिशु को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन परेशानियों से जुडे़ कुछ योग प्रश्न कुण्डली में दिखाई देते हैं. यह योग हैं. 

(1) यदि प्रश्न कुण्डली में शुक्र और सूर्य आठवें भाव में स्थित हों तब नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में लग्न से 2,8 तथा 12 वें भाव में पाप ग्रह हों तो शिश की मृत्यु हो जाती है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश पाप ग्रह होकर दग्ध हो तथा वह अपोक्लिम भाव में हो तो नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है या स्त्री का गर्भपात हो जाता है. (दग्ध से अर्थ है ग्रह सूर्य के साथ हो)

(4) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश पाप ग्रहों से युत होकर अपोक्लिम भाव में हो तो नवजात शिशु मृत्यु को पाता है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युत हो और केन्द्र में स्थित हो तो नवजात शिशु जीवित रहता है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युत हो तो शिशु दीर्घायु होता है. 

  अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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