स्वतंत्र रुप से व्यापार करने के योग | Yogas of Doing Business Independently, Business Related Yogas, Career, Profession

कई व्यक्ति जीवन में दूसरों के अधीन रहकर कार्य करते हैं अर्थात नौकरी से अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं. बहुत से व्यक्ति ऎसे भी होते हैं जिन्हें किसी के अधीन रहकर कार्य करना रास नही आता है. ऎसे व्यक्ति स्वतंत्र रुप से कार्य करना पसन्द करते हैं. कुण्डली में व्यापार करने के लिए योग मौजूद होते हैं. यह योग निम्नलिखित हैं.

* चन्द्र कुण्डली में शुभ ग्रह केन्द्र में हो तो जातक बिजनेस से धन कमाता है.

* चन्द्रमा, गुरु तथा शुक्र परस्पर दो/बारह भावों में स्थित है तो व्यक्ति स्वयं के व्यवसाय से जीविकोपार्जन करता है.

* चन्द्र कुण्डली से गुरु तृतीय भाव में स्थित हो तथा शुक्र लाभ स्थान में स्थित हो तो व्यक्ति अपना स्वयं का व्यवसाय करता है.

* बुध ग्रह बुद्धि का कारक ग्रह है. कुण्डली में बुध, राहु या शनि से दृष्ट अथवा युत है तो व्यक्ति स्वतंत्र रुप से व्यवसाय करता है. लेकिन शनि कुण्डली में बली होकर बुध को दृष्ट कर रहा है तो व्यक्ति नौकरी करता है.

* कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी यदि धन भाव में स्थित है और बुध सप्तम भाव में स्थित है तब व्यक्ति बिजनेस करता है.

* बुध को बिजनेस का कारक ग्रह माना जाता है. बुध कुण्डली में यदि सप्तम भाव में द्वितीयेश के साथ है तब जातक बिजनेस करता है.  

* कुण्डली में बुध तथा शुक्र द्वितीय भाव अथवा सप्तम भाव में स्थित है और शुभ ग्रहों से दृष्ट है तब जातक व्यापार करता है.

* द्वितीय भाव का स्वामी शुभ ग्रह की राशि में स्थित हो और बुध या सप्तमेश उसे देख रहें हों तब व्यक्ति व्यापार करता है.

* उच्च के बुध पर द्वितीयेश की दृष्टि हो तो व्यक्ति व्यापार करता है.

* गुरु की द्वितीय भाव के स्वामी पर दृष्टि हो तब व्यक्ति व्यापार करता है.

* दशम भाव में बुध की स्थिति से व्यक्ति व्यापारी बनता है.

* दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होने से व्यापार करता है. उसे बिजनेस में धन लाभ होता है.

* लग्नेश तथा दशमेश की परस्पर दृष्टि व युति या दोनों का स्थान परिवर्तन हो तब व्यक्ति बिजनेस करता है.    

* दशम भाव का स्वामी केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित है तब भी व्यक्ति स्वतंत्र रुप से व्यापार करता है.

* कुण्डली में आत्मकारक ग्रह के नवाँश में शनि स्थित है तब व्यक्ति व्यापार में समृद्धि पाता है.

* सप्तम भाव से द्वादश भाव तक या दशम भाव से तृतीय भाव तक पाँच या पाँच से अधिक ग्रह स्थित हैं तब व्यक्ति स्वतंत्र व्यापार करता है.

व्यवसाय संबंधी अन्य योग | Business Related Other Yogas

* कुण्डली में सूर्य ग्रह से लेकर शनि ग्रह तक सभी ग्रह परस्पर त्रिकोण भाव में स्थित हैं तब व्यक्ति कृषि कार्य से अपनी आजीविका कमाता है.

* राहु/केतु को छोड़कर कुण्डली में सातों ग्रह किन्हीं चार भावों में स्थित है तो व्यक्ति भूमि अर्थात कृषि कार्य से लाभ पाता है.

* मंगल और चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्र/त्रिकोण भाव में स्थित हो या लाभ भाव में स्थित हो और दशमेश के साथ शुक्र तथा चन्द्रमा की युति हो तब व्यक्ति कृषि तथा पशुपालन से धन प्राप्त करता है.

* कुण्डली के नवम भाव में बुध, शुक्र तथा शनि स्थित है तब व्यक्ति कृषि कार्य से धन प्राप्त करता है.

* लग्न तथा सप्तम भाव में सभी ग्रह स्थित हो तब शकट योग बनता है और व्यक्ति ट्राँसपोर्ट से या लकडी़ के सामान के व्यापार से धनोपार्जन करता है.

* गुरु अष्टम भाव स्थित हो और पाप ग्रह केन्द्र में हो. किसी भी शुभ ग्रह का संबंध इनसे नहीं हो तो व्यक्ति मछली-माँस आदि का व्यापार करता है.

* बुध या शुक्र दशम भाव में दशमेश का नवाँशपति होकर स्थित है तब व्यक्ति कपडे़ का व्यापार करता है.

* गुरु से शुक्र केन्द्र भाव में स्थित है तब व्यक्ति कपडो़ का व्यवसाय करता है.

* मंगल तथा सूर्य के दशम भाव में स्थित होने से व्यक्ति अपनी कार्य कुशलता के आधार पर सफल कारीगर बनता है और धन पाता है.

* दशम भाव में चन्द्रमा तथा राहु की युति व्यक्ति को कूटनीतिज्ञ बनाती है.

* दशम भाव में मंगल स्थित हो या मंगल का दशम भाव के स्वामी के साथ दृष्टि/युति संबंध हो तब व्यक्ति कुशल प्रशासक बनता है या सेना में अधिकारी बनता है.

* गुरु तथा केतु के संबंध से व्यक्ति होम्योपैथिक डॉक्टर बनता है.

* चन्द्रमा, बुध के नवाँश में स्थित हो और सूर्य से दृष्ट हो तब व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफलता हासिल करता है.

* कुण्डली का पंचम भाव बली हो और शुक्र, बुध तथा लग्नेश का परस्पर दृष्टि/युति संबंध हो तो फिल्मों में व्यक्ति को सफलता मिलती है.

* चन्द्रमा या शुक्र की युति लग्नेश से हो तब व्यक्ति लेखक, कवि या पत्रकार बनता है.

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एपिडोट उपरत्न | Epidote Gemstone Meaning, Epidote – Metaphysical And Healing Properties, Epidote Crystals

इस उपरत्न की जानकारी 18वीं सदी से प्राप्त होती है.  यह एक टिकाऊ उपरत्न है. यह पारदर्शी, पारभासी अथवा अपारदर्शी तीनों ही रुपों में पाया जाता है. इस उपरत्न का रंग लौह सांद्रता के आधार पर होता है. कई बार यह गहरा हरा, भूरा अथवा पूरा काला भी होता है. यह दिखने में एक चमकदार उपरत्न है. इस उपरत्न का तत्व जल तथा पृथ्वी तत्व है. यह उपरत्न अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. भौतिक रुप में यह उपरत्न आंतरिक अंत:स्त्रावी ग्रंथियों का विकास करता है. भावनाओं को स्थिर रखता है. 

एपिडोट के आध्यात्मिक गुण | Epidote – Metaphysical, Spiritual Properties

यह उपरत्न आध्यात्मिक विकास के द्वार खोलने में मदद करता है. आध्यत्मिकता का विकास करता है. भावनात्मक शरीर के आभामण्डल को साफ करने में सहायक होता है. सभी पुरानी दमित भावनाओं को शुद्ध रखने में सहायक होता है. यह उपरत्न व्यक्ति के चहुंमुखी विकास में मदद करता है. यह धारक को अहसास दिलाता है कि वह कौन है और फिर उसकी सकारात्मक छवि लोगों के सामने लाता है. यह उपरत्न धैर्य को बढा़वा देता है. जातक के भीतर बढ़ी बेचैनी को भी कम करता है.

यह उपरत्न धारणकर्त्ता को मुसीबतों से बचाने का कार्य करता है. दुख तथा तकलीफों को कम करने में सहायक होता है. उदासी से जातक को उबारने का कार्य करता है. जो व्यक्ति हमेशा अपने ऊपर तरस खाते रहते हैं उनकी सहायता करता है. उन्हें भीतर से मजबूत बनाता है. उनके आत्मविश्वास में बढा़वा करता है. विद्वानों के मध्य ऎसी धारणा है कि यह उपरत्न बातचीत के तरीकों में बढो़तरी करता है. धारक को अन्य लोगों से मिल-जुल कर रहना सिखाता है. यह धारक को सामाजिक रुप से भी जागरुक रखता है.

यह उपरत्न हर प्रकार से वृद्धि करने वाला उपरत्न है. एपिडोट के प्रभाव में चाहे कुछ भी आए, चाहे वह भौतिक हो अथवा वह अन्य कोई और वस्तु हो, एपिडोट के छूने से सकारात्मकता आती है. यह उपरत्न भावनात्मक तथा आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि करने में मदद करता है. यह निजी ऊर्जा को बढा़ने में भी मदद करता है. यह उपरत्न आलोचनाओं को दूर करने का काम करता है. उदार बनाता है. यह धारक को जागरुक बनाता है और धारक की पहचान स्वयं से कराता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को तत्काल निर्णय लेने में सहायता करता है.

एपिडोट के चिकित्सीय गुण | Epidote Crystals – Healing Abilities

यह धारणकर्त्ता के अंदर रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है. यह सभी चिकित्सा प्रक्रियाओं का समर्थन करता है अर्थात हर बीमारी को सही रखने की क्षमता रखता है. इस उपरत्न का उपयोग पाचन क्रिया को नियंत्रित रखने के लिए भी किया जा सकता है. विशेषतौर पर उन लोगों के लिए जो भोजन में अनियमितता बरतते हैं. यह तनाव तथा चिन्ता से धारक को मुक्त रखता है.

अकारण भय को समाप्त करता है. मानसिक थकान से निजात दिलाने में सहायक होता है. जातक के चारों ओर सुरक्षा चक्र बनाकर रखता है और नकारात्मक ऊर्जा को नजदीक नहीं आने देता. यह उपरत्न हृदय संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए अनुकूल है. यह दिल को मजबूत रखता है. यह शरीर के सभी अंगों को सुचारु रुप से कार्य करने के लिए संतुलित रखता है. यह साँस से संबंधित विकारों को कम करता है. थायरॉयड को होने से रोकता है. धारक की त्वचा को नरम रखता है. 

एपिडोट के रंग | Colors Of Epidote Gemstone

यह उपरत्न गहरे हरे, भूरे तथा काले रंग में भी मिलता है. हरे रंग में पीलेपन की आभा लिए भी यह उपरत्न पाया जाता है. पीले तथा ग्रे रंग में भी यह उपलब्ध है.

एपिडोट कहाँ पाया जाता है | Where Is Epidote Found

यह उपरत्न मुख्य रुप से आस्ट्रिया, ब्राजील, फिनलैण्ड, चीन, फ्राँस तथा मेक्सिको में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा मोजाम्बीक में भी पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Epidote

इस उपरत्न को जातक अपनी सुविधाओं तथा आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं. यह उपरत्न किसी भी मुख्य रत्न का उपरत्न नहीं है. इसलिए इसे स्वतंत्र रुप से पहनना चाहिए.

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जैमिनी ज्योतिष-आधारभूत सिद्धांत | Jaimini Astrology-General Principles

जैमिनी ज्योतिष | Jaimini Astrology

ज्योतिष के संसार में दो महर्षियों की महान देन रही है. महर्षि पराशर तथा महर्षि जैमिनी. महर्षि पराशर ने वैदिक ज्योतिष से लोगों को परिचित कराया तो जैमिनी ज्योतिष महर्षि जैमिनी की देन है. इन्होंने लगभग 11,00 सूत्रों में पूरा फल कथन सरल तथा स्पष्ट शब्दों में कह दिया है. यह सभी सूत्र व्यवहारिकता की कसौटी पर खरे उतरे हैं. जो सरल नियम, सिद्धांत तथा पद्धतियाँ इस ग्रँथ में मिलती हैं वह अन्य किसी ग्रँथ में नहीं पाई जाती हैं. 

आधारभूत सिद्धांत | General Principles 

जैमिनी ज्योतिष, पराशरी पद्धति से एकदम भिन्न है. पराशरी ज्योतिष में दशाक्रम नक्षत्रों के आधार पर होता है. जैमिनी ज्योतिष में नक्षत्रों का कोई महत्व नहीं होता है. इस पद्धति में केवल राशियों के आधार पर सारा ज्योतिष आधारित होता है. जैमिनी में भी एक से अधिक कई दशाओं का उल्लेख मिलता है. जिनमें चर दशा, स्थिर दशा, मण्डूक दशा, नवांश दशा आदि का प्रयोग मुख्य रुप से किया जाता है. इनमें से भी चर दशा का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है. आपको आगे के पाठों में सबसे पहले चर दशा से अवगत कराया जाएगा. चर दशा, जैमिनी पद्धति की प्रमुख दशा है.

इस दशा में आपको क्रम से जैमिनी कारक, स्थिर कारक, राशियों की दृष्टियाँ, राशियों का दशाक्रम, दशाक्रम की अवधि, जैमिनी योग, कारकाँश लग्न, पद अथवा आरूढ़ लग्न, उप-पद लग्न आदि के विषयों के बारे में विस्तार से तथा सरल तरीके से समझाने का प्रयास किया जाएगा. 

जैमिनी चर दशा में जैमिनी कारक | Jaimini Karaka in Jaimini Char Dasha

भचक्र में राहु/केतु को मिलाकर कुल नौ ग्रह पाए जाते हैं. जैमिनी ज्योतिष में राहु/केतु को छोड़कर अन्य सभी सातों ग्रहों को उनके अंश, कला तथा विकला के आधार पर अवरोही क्रम में लिखा जाता है. इस प्रकार सात कारक हमें प्राप्त होते हैं. 

  1. जैमिनी ज्योतिष में सभी ग्रहों के अंश, कला तथा विकला आदि की गणना भली-भाँति कर लेनी चाहिए. 
  2. सभी सातों ग्रहों को उनके अंशों के आधार अवरोही क्रम में लिखें(घटते हुए क्रम में लिखें) लिखकर एक तालिका बना लें. यदि किसी ग्रह के अंश तथा कला बराबर है तब आपको ग्रह का मान विकला तक देखकर निर्णय करना चाहिए कि कौन-सा ग्रह किस क्रम में आएगा. 
  3. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को तालिका में सबसे ऊपर लिख देना चाहिए. उसके बाद उससे कम अंश वाले ग्रह को लिखना चाहिए और इसी प्रकार अन्य सभी ग्रहों को भी क्रम से लिखें. 
  4. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक कहा जाता है. 
  5. उसके बाद वाले ग्रह को अमात्यकारक कहते हैं. 
  6. अमात्यकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह भ्रातृकारक कहलाता है. 
  7. भ्रातृकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह मातृकारक कहलाता है. 
  8. मातृकारक के बाद वाले ग्रह को पुत्रकारक कहते हैं. 
  9. पुत्रकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह ज्ञातिकारक कहलाता है. 
  10. सबसे कम अंश वाला ग्रह दाराकारक कहलाता है. 
  • आपको समझाने के लिए हम एक उदाहरण कुण्डली बना रहें हैं. 

जन्म विवरण है :- 

  • जन्म तिथि – 19/02/1998
  • जन्म समय – 15:40Hours
  • जन्म स्थान – Delhi

 

आप स्वयं कुण्डली बनाने के लिए astrobix.com पर इस लिंक का प्रयोग कर सकते है.  इस कुण्डली में ग्रहों के कारक अंशों के अनुसार इस प्रकार बन रहे हैं.  

  • सूर्य़ उदाहरण कुण्डली में 06अंश-43कला-07विकला का है.
  • चन्द्रमा उदाहरण कुण्डली में 04अंश-08कला-38विकला का है.
  • मंगल उदाहरण कुण्डली में 25अंश-50कला-19विकला का है.
  • बुध उदाहरण कुण्डली में 04अंश-20कला-07विकला का है. 
  • गुरु उदाहरण कुण्डली में 09अंश-44कला-58विकला का है.
  • शुक्र उदाहरण कुण्डली में 27अंश-59कला-03विकला का है.
  • शनि उदाहरण कुण्डली में 23अंश-15कला-34विकला का है. 

 

उपरोक्त अंशों के आधार पर ग्रहों को अवरोही क्रम(घटते हुए क्रम में) में लिखें. आपको निम्न प्रकार से एक तालिका प्राप्त हो जाएगी. 

  • आत्मकारक – शुक्र 
  • अमात्यकारक – मंगल 
  • भ्रातृकारक – शनि 
  • मातृकारक – बृहस्पति 
  • पुत्रकारक – सूर्य 
  • ज्ञातिकारक – बुध 
  • दाराकारक – चन्द्रमा

 

उदाहरण कुण्डली में बुध तथा चन्द्रमा के अंश समान हैं. इसलिए हमने दोनों ग्रहों का कला के आधार पर विभाजन किया तो बुध की कला चन्द्रमा की कला से अधिक होने से बुध को ज्ञातिकारक का स्थान मिला और चन्द्रमा को दाराकारक का स्थान मिला. 

Meaning 

  • अंश – डिग्री(Degree)
  • कला – मिनट(Minute) 
  • विकला – सेकण्ड(Second) 
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अक्षवेदाँश तथा षष्टियाँश कुण्डली | Akshavedansha and Shastiyansha Kundali

अक्षवेदांश चतु:चत्वारिशांश या D-45 | Akshavedansha or Chatu Chatvariyansha Kundali or D-45

इस वर्ग कुण्डली को पंच चत्वार्यांश भी कहते हैं. इस कुण्डली से व्यक्ति विशेष का चरित्र देखा जाता है. सामान्यतया अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के प्रभाव देखे जाते हैं. इस कुण्डली का निर्माण करने के लिए 30 अंश को 45 बराबर भागों में बाँटा जाता है. एक भाग 0 अंश 40 मिनट का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि चर राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होगी. ग्रह यदि स्थिर राशि में स्थित है तो गणना सिंह राशि से शुरु होगी. ग्रह यदि द्वि-स्वभाव राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से आरम्भ होगी. 

अक्षवेदांश कुण्डली बनाने के लिए 30 अंशों के 45 भाग निम्नलिखित हैं :- 

1) 0 से 40मिनट

2) 40 मिनट से 1अंश 20 मिनट 

3) 1अंश 20 मिनट से 2 अंश 

4) 2अंश से 2अंश 40 मिनट 

5) 2अंश 40 मिनट से 3अंश 20 मिनट 

6) 3अंश 20 मिनट से 4अंश 

7) 4अंश से 4अंश 40 मिनट 

8) 4अंश 40 मिनट से 5अंश 20 मिनट 

9)  5अंश 20 मिनट से 6 अंश 

10) 6 अंश से 6 अंश 40 मिनट 

11) 6 अंश 40 मिनट से 7 अंश 20 मिनट 

12) 7 अंश 20 मिनट से 8 अंश 

13) 8 अंश से 8 अंश 40 मिनट 

14) 8 अंश 40 मिनट से 9 अंश 20 मिनट 

15) 9 अंश 20 मिनट से 10 अंश 

16) 10 अंश से 10 अंश 40 मिनट 

17) 10 अंश 40 मिनट से 11 अंश 20 मिनट 

18) 11 अंश 20 मिनट से 12 अंश 

19) 12 अंश से 12 अंश 40 मिनट 

20) 12 अंश 40 मिनट से 13 अंश 20 मिनट 

21) 13 अंश 20 मिनट से 14 अंश 

22) 14 अंश से 14 अंश 40 मिनट 

23) 14 अंश 40 मिनट से 15 अंश 20 मिनट 

24) 15 अंश 20 मिनट से 16 अंश 

25) 16 अंश से 16 अंश 40 मिनट 

26) 16 अंश 40 मिनट से 17 अंश 20 मिनट 

27) 17 अंश 20 मिनट से 18 अंश 

28) 18 अंश से 18 अंश 40 मिनट 

29) 18 अंश 40 मिनट से 19 अंश 20 मिनट 

30) 19 अंश 20 मिनट से 20 अंश 

31) 20 अंश से 20 अंश 40 मिनट 

32) 20 अंश 40 मिनट से 21 अंश 20 मिनट 

33) 21 अंश 20 मिनट से 22 अंश 

34) 22 अंश से 22 अंश 40 मिनट 

35) 22 अंश 40 मिनट से 23 अंश 20 मिनट 

36) 23 अंश 20 मिनट से 24 अंश 

37) 24 अंश से 24 अंश 40 मिनट 

38) 24 अंश 40 मिनट से 25 अंश 20 मिनट 

39) 25 अंश 20 मिनट से 26 अंश 

40) 26 अंश से 26 अंश 40 मिनट 

41) 26 अंश 40 मिनट से 27 अंश 20 मिनट 

42) 27 अंश 20 मिनट से 28 अंश 

43) 28 अंश से 28 अंश 40 मिनट 

44) 28 अंश 40 मिनट से 29 अंश 20 मिनट 

45) 29 अंश 20 मिनट से 30 अंश  

षष्टियांश कुण्डली या D-60 | Shastiyansha Kundali or D-60

इस कुण्डली का उपयोग जीवन की सभी बातों के अध्ययन के लिए किया जाता है. इस वर्ग से जीवन के सभी समान्य तथा असामान्य फल देखे जाते हैं. इस वर्ग कुण्डली में ग्रह यदि शुभ षष्टियांश में स्थित है तो शुभ है. यदि अशुभ षष्टियांश में स्थित है तो अशुभ है. इस कुण्डली का आंकलन बहुत कम किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 60 बराबर भाग किए जाते हैं. इस वर्ग कुण्डली में ग्रहों की गणना एकदम से भिन्न है. जन्म कुण्डली में ग्रह जिस राशि में स्थित होते हैं उस राशि को छोड़कर ग्रह जितने अंश पर स्थित होते हैं उसे नोट करें. ग्रह का जो भोगांश है उसे 2 से गुणा करें और जो संख्या प्राप्त हो उसे 12 से भाग दें. अब जो संख्यां शेष बचेगी उसमें 1 जोड़ दें. अब जो संख्या प्राप्त होगी उतने भाव आगे की राशि में ग्रह षष्टियांश कुण्डली में जाएगा. 

माना जन्म कुण्डली में ग्रह वृष राशि में स्थित है. ग्रह के भोगांश के आधार पर गणना करने पर माना 3 शेष बचता है तो इसमें 1 जोड़ने पर 4 संख्या प्राप्त होती है. अब षष्टियांश कुण्डली में ग्रह वृष राशि से चार राशि आगे अर्थात सिंह राशि में जाएगा. 

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान
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गर्भ संबंधी विचार | Analysis of Pregnancy Related

जीवनसाथी के विषय से जुडे़ अनेक प्रश्न होते हैं, उनके साथ ही विवाह संबंधी प्रश्न के बाद प्रश्नकर्त्ता का अगला प्रश्न संतान से संबंधित होता है. संतान कब तक होगी? कैसी होगी? सब ठीक होगा? आदि प्रश्नों का कई बार ज्योतिषी को जवाब देना पड़ता है. आप प्रश्न कुण्डली में जीवनसाथी तथा गर्भ से संबंधित प्रश्नों का आंकलन करना सीखें. पहले जीवनसाथी का विचार करें. 

(1) प्रश्न कुण्डली के लग्न में या सप्तम भाव में स्वराशि अथवा उच्च राशि का चन्द्रमा, गुरु और शुक्र से दृष्ट हो तो जीवनसाथी सुंदर तथा सम्पन्न परिवार से होता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुक्र हो तो जीवनसाथी सुंदर होता है. प्रश्न कुण्डली के लग्न में गुरु हो तो जीवनसाथी धनवान होता है. प्रश्न कुण्डली के लग्न में बुध हो तो जीवनसाथी कुटिल बुद्धि वाला होता है. प्रशन कुण्डली के लग्न में मंगल हो तो जीवनसाथी रोगी होता है. शनि हो तो विवह का सुख बहुत कम मिलता है. प्रश्न कुण्डली के लग्न में सूर्य हो तो क्रूर स्वभाव वाला जीवनसाथी होगा. प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा हो तो जीवनसाथी मंदबुद्धि हो सकता है. 

(3) प्रश्न कुण्डली के सप्तम अथवा दशम भाव में उच्च राशि का चन्द्रमा हो और उस पर गुरु या शुक्र की दृष्टि हो तो जीवनसाथी रुपवान, सम्पन्न तथा सुशिक्षित होता है. 

(4) प्रश्न कुण्डली में द्वितीय भाव में सूर्य, मंगल तथा शनि हो तो जीवनसाथी कलह करने वाला तथा आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ नहीं होता है. 

(5) प्रश्न कुण्डली के द्वितीय भाव में चन्द्रमा हो तो अनेक पुत्र होते हैं. 

(6) प्रश्न कुण्डली के तृत्तीय स्थान में राहु और गुरु हो तो स्त्री बन्ध्या होती है. 

(7) प्रश्न कुण्डली के द्वितीय भाव में राहु हो तो जीवनसाथी व्यभिचारी हो सकता है. 

(8) प्रश्न कुण्डली में लग्न, सूर्य, चन्द्रमा तथा गुरु विषम राशियों में हो तो पुत्र का जन्म होता है. 

(9) प्रश्न कुण्डली में लग्न, सूर्य, चन्द्रमा तथा गुरु सम राशियों में हो तो कन्या का जन्म होता है. 

(10) प्रश्न कुण्डली में लग्न, सूर्य, चन्द्रमा तथा गुरु सम तथा विषम दोनों ही राशियों में स्थित हो तो इन ग्रहों के अनुसार पुत्र या कन्या का जन्म कहना चाहिए. 

(11) प्रश्न कुण्डली में लग्न से विषम भावों(3,5,7,9,11) में शनि हो तो पुत्र का जन्म होता है. एक बात का ध्यान रखना है कि विषम स्थान में लग्न को नहीं लिया जाएगा. 

(12) प्रश्न कुण्डली में लग्न, सूर्य, चन्द्रमा तथा गुरु चारों विषम राशियों(मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु तथा कुम्भ) में स्थित हों तो पुत्र का जन्म होता है. और यदि यह चारों ग्रह सम राशियों(वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर तथा मीन) में स्थित हों तो कन्या का जन्म होता है. 

गर्भ है अथवा नहीं है | Pregnancy is There or Not

वर्तमान समय में प्रश्नकर्त्ता ज्योतिषी के पास संतान के प्रश्न के लिए आता है. तब ज्योतिषी प्रश्नकर्त्ता के प्रश्नों का उत्तर प्रश्न कुण्डली के अनुसार देता है. कई बार प्रश्नकर्त्ता को पता नहीं होता कि गर्भ कुछ दिन का हो चुका है. ऎसे में प्रश्न कुण्डली के अनुसार गर्भ की जानकारी प्राप्त हो जाती है. गर्भ है या नहीं है का उत्तर प्रश्न कुण्डली के कुछ योगों पर आधारित है. 

(1) प्रश्न कुण्डली में लग्न और पंचम भाव में शुभ ग्रह हों तो स्त्री गर्भवती होती है. पंचम भाव संतान प्राप्ति का है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश तथा सप्तमेश, लग्न या पंचम स्थान में हों तो स्त्री गर्भिणी होती है. 

(3) प्रश्न कुण्डली के लग्न, पंचम तथा एकादश भाव में शुभ ग्रह हों तो स्त्री गर्भवती होती है. 

(4) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और चन्द्रमा पंचम भाव में हों अथवा ये दोनों लग्न को देख रहें हों तो स्त्री गर्भवती होती है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा चन्द्रमा में इत्थशाल योग हो तो स्त्री गर्भवती होती है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में पाप ग्रह के साथ इशराफ योग बन रहा हो तो स्त्री गर्भवती नहीं होती है. 

(7) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश अपोक्लिम भाव में स्थित हो और उसका चन्द्रमा व लग्नेश के साथ इत्थशाल हो तो स्त्री गर्भवती नहीं होती. 

(8) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश वक्री, नीच राशि अथवा अस्त हो तो गर्भ नहीं होता है.   

(9) लग्न में बुध है तो स्त्री गर्भवती है. 

(10) प्रश्न के समय पंचम भाव तथा पंचमेश पीड़ित है, आठवें भाव में सूर्य तथा शनि है तो स्त्री बंध्या है. संतान नहीं होगी. 

(11) पंचम भाव पीड़ित है. आठवें भाव में चन्द्रमा, बुध हैं तो स्त्री काक बंध्या होगी अर्थात एक संतान होने के बाद दूसरी नहीं होगी. 

(12) दूसरे, आठवें तथा बारहवें भाव में पाप ग्रह स्थित है तो एक संतान के बाद आगे संतान नहीं होगी. 

(13) चन्द्रमा. शुक्र तथा बुध द्वि-स्वभाव राशि में स्थित हैं तो एक संतान के बाद दूसरी संतान नहीं होगी. 

(14) धनु राशि में चन्द्रमा, बुध तथा शुक्र है तो एक संतान के बाद दूसरी नहीं होगी. 

अपने जीवनसाथी से अपने गुणों का मिलान करने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक करें : Marriage Analysis

 

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सन स्टोन, ब्लड स्टोन या रक्ताश्म

रत्न, खनिज का एक सुंदर टुकडा़ होता है. खानों से निकालने के बाद रत्नों को संवारा जाता है. इन्हें अलंकृत किया जाता है. कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद रत्नों को गहनों के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. जो व्यक्ति रत्न खरीदने में असमर्थ होते हैं वह रत्नों के उपरत्न पहनते हैं. यह उपरत्न भी उतने ही लाभदायक हैं जितने कि मुख्य रत्न होते हैं. सभी रत्नों के कई-कई उपरत्न उपलब्ध हैं. इन उपरत्नों की श्रृंखला में सूर्य का उपरत्न रक्ताश्म भी शामिल है. रक्ताश्म को सन स्टोन और ब्लड स्टोन भी कहा जाता है.

सन स्टोन, ब्लड स्टोन पहचान

रक्ताश्म उपरत्न कठोर होता है. यह पीला और नीला रंग लिए हुए, गहरे हरे रंग का होता है. इसमें कालेपन की झलक भी दिखाई देती है. इसमें लाल रंग के धब्बे अथवा छींटे भी मौजूद होते हैं. यह एक सुंदर आकर्षक रत्न है. इसका उपयोग आभूषण बनाने में भी होता है साथ ही घर की सज्जा बढ़ाने और घर को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने के लिए भी उपयोग में किया जाता है.

इस रत्न का उपयोग वास्तु दोष दूर करने के लिए भी किया जाता है. वास्तु में इस रत्न को घर की पूर्व दिशा में रखने से ऊर्जा से का संचार बिना किसी रुकावट के प्रवाहित रहता है.

ब्लड स्टोन या सनस्टोन का स्वास्थ्य पर प्रभाव

ब्लड स्टोन की खासियत है कि इसके प्रभाव से व्यक्ति अधिक ऊर्जावान और आत्मविश्वास से भरा रहता है. इस रत्न को पहनने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है और मजबूती मिलती है. यह शरीर की विषाक्ता को दूर करने में सहायक होता है. यह एनिमिया, कोलेस्ट्राल को नियंत्रित रखने में सहायक होता है. शरीर में हडि़यों में होने वाले दर्द से भी बचाता है. इस रत्न का प्रभाव प्रभामण्डल पर पड़ता है. व्यक्ति को ऊर्जावान करता है. इस रत्न का प्रभाव व्यक्ति के रक्तसंचार को बेहतर करने में सक्षम होता है. रत्न का प्रभाव नकारात्मक विचारों को दूर करने में सहायक बनता है. कैंसर से जुड़े रोगों को दूर करने में सहायक होता है. त्वचा से संबंधित रोगों को दूर करता है. नेत्र रोग में लाभ मिलता है.

रक्ताश्म, सन स्टोन अथवा ब्लड स्टोन कौन धारण करे?

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य शुभ भावों का स्वामी है और कमजोर अवस्था में स्थित है वह सूर्य के उपरत्न रक्ताश्म को धारण कर सकते हैं. यह उपरत्न औषधीय गुणों के कारण लोकप्रिय है. इसे बहुत से लोगों द्वारा धारण किया जाता है. जो व्यक्ति सूर्य को बल प्रदान करना चाहते हैं अथवा जिन लोगों में आत्मविश्वास की कमी है वह सूर्य के इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण ना करें?

हीरा तथा नीलम रत्न अथवा इन रत्नों के उपरत्न के साथ रक्ताश्म उपरत्न को धारण ना करें.

बल्ड स्टोन के चमत्कारिक गुण

बल्ड स्टोन पश्चिम देशों में अधिक प्रचलित रहा है. कुछ के अनुसार यह रत्न ईसा मसीह से संबंधित भी कहा गया है. इस रत्न को लेकर पूर्वी और पश्चिम देशों में बहुत अधिक उत्साह के साथ उपयोग में लाया जाता है. कई चमत्कारिक लाभ के कारण बहुत पुराने समय से ही ये रत्न लोकप्रिय रहा है. इस पत्थर का उपयोग सुरक्षा के लिए भी होता है. मान्यता है की इस पत्थर का उपयोग व्यक्ति के आने वाले संकट को रोक देने की क्षमता भी रखता है.

यदि छोटे बच्चों में बहुत अधिक डर दिखाई दे या वह छोटी छोटी चीजों को लेकर बहुत जल्दी सहम जाते हैं, तो ऎसे में इस रत्न को बच्चे के कमरे में रख देने से बच्चे का भय समाप्त होता जाता है. इसी प्रकार यदि व्यक्ति में साहस की कमी है तो इस रत्न को धारण करने से साहस और उत्साह आता है.

यदि व्यक्ति मानसिक रुप से अस्थिर है, बोलने में हिचकिचाता है ऎसी कई जटिलताओं को दूर करने में इस रत्न का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है. किसी भी निर्णय को लेने में दुविधा में रहना, विश्वसनियता से दूर होना, शरीर में थकान का अनुभव होना ऎसा होने पर सन स्टोन का यूज बेहतर होता है.

मेडिटेशन में भी इस रत्न का उपयोग बहुत किया जाता है. यह ध्यान की प्रक्रिया को मजबूत करती है. आपकी एकाग्रता को बढ़ाता है. आध्यात्मिक स्तर पर आपको आगे तक ले जाने में सहायक होता है. इसका उपयोग करने पर जीवन के लक्ष्य के प्रति व्यक्ति निडर होता है साथ ही तनाव से मुक्त होने में भी इस रत्न का सहयोग बहुत अधिक होता है.

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जानिए, राक्षस गण क्या होता है?

वर-वधू की कुण्डली का मिलान करते समय मांगलिक दोष व अन्य ग्रहों दोषों के साथ साथ अष्टकूट मिलान भी किया जाता है. अष्टकूट मिलान के अलावा इसे कूट मिलान भी कहा जाता है. कूट मिलान करते समय आठ मिलान प्रकार के मिलान किए जाते है. जिसमें वर्ण मिलान, वैश्य मिलान, तारा मिलान, योनि मिलान, ग्रह मिलान, गण मिलान, भकूट मिलान व नाडी मिलान है. गण मिलान में राक्षस गण में जन्म लेने वाले व्यक्ति कौन से जन्म नक्षत्र के हो सकते है. आइये जानने का प्रयास करते है.

गण मिलान क्यों किया जाता है

गण मिलान करने पर वर-वधू का वैवाहिक जीवन सुखी ओर सामान्य भलाई के कार्यो में व्यतीत होने की संभावनाएं देता है. विवाह पश्चात इस प्रकार की कोई परेशानी न हो, इसीलिए गण मिलान किया जाता है. ज्योतिष शास्त्रों में यह मान्यता है, कि जिन वर-वधू का विवाह गण मिलान करने के बाद किया जाता है, उनके वैवाहिक जीवन में परस्पर कम विरोधाभास रहते हैं.

गण मिलान से व्यक्ति स्वभाव और व्यवहार को समझने में सहायता मिलती हैं. जब सोच में एक जैसी अनुभूति दिखाई देगी तो व्यक्ति एक दूसरे के प्रति सहयोगात्मक नजरिया रख सकता है. एक दूसरे के साथ मिलकर जीवन में आने वाले विभिन्न पड़ावों को मिल कर पार करने में भी सक्षम होता है.

राक्षस गण नक्षत्र

जिन व्यक्तियों का जन्म कृतिका नक्षत्र, मघा नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र और मूल नक्षत्र में हुआ होता है, वे सभी व्यक्ति राक्षस गण के अन्तर्गत आते है.

राक्षस गण फल

राक्षस गण के अंतर्गत कठोरता की स्थिति अधिक दिखाई देती है. राक्षस गण में जातक कुछ मनमर्जी अधिक करने वाला होता है. वह अपनी जिद के आगे दूसरों की चलने नहीं देना चाहता है. इन नक्षत्रों में जिन व्यक्तियों का जन्म होता है, उन व्यक्तियों को कलह करने की आदत हो सकती है. वह कठोर भाषण करने का आदी होता है.

कई बार व्यक्ति अपनी काम से दूसरों के साथ साथ खुद के लिए भी संकट खड़ा कर सकता है. व्यक्ति साहसी होता है और वाद विवाद में आगे रहता है. आसानी से हार नहीं मानना चाहता है. अपने काम को निकलवाने के लिए हर स्तर का प्रयास करने की कोशिश भी करता है.

राक्षस गण के प्रभाव से व्यक्ति में जल्दबाजी का गुण भी होता है. वह हर चीज को उत्साह ओर जोश के साथ सबसे पहले कर लेने की इच्छा भी रखता है. व्यक्ति को चोट अधिक लगती है. दुसाहसिक काम करने में सदैव आगे रहता है. (stylerecap.com) अपने कठोर कर्म के कारण उसके खुद के लिए भी स्थिति परेशानी की हो सकती है.

गण मिलान में गुण किस प्रकार निर्धारित करें

वर ,कन्या का गण समान हो तो 6 गुण, वर का देव तथा कन्या का मानव गण हो तो 6 गुण , कन्या का देव तथा वर का राक्षस गण हो तो 1 गुण, कन्या का राक्षस तथा वर का देव गण हो या एक का मानव व दूसरे का राक्षस गण हो तो 0 गुण मिलता है.

शुभ गण मिलान

वर और वधु दोनों अगर समान गण वाले हों तो यह स्थिति अच्छी मानी जाती है. समान गण होने पर पूरे 6 अंक मिलते हैं.

अशुभ गण मिलान

लड़का व लड़की दोनों देव-राक्षस और राक्षस-देव गण के हों तो यह गण मिलान अच्छा नहीं माना जाता है. इस मिलान में सिर्फ 1 अंक दिया जाता है. इसके अतिरिक्त मनुष्‍य के साथ राक्षस अथवा या राक्षस के साथ मनुष्‍य गण मिलान बहुत खराब माना जाता है. इसमें 0 अंक मिलते हैं.

गण दोष फल

गण दोष होने पर दोनों विवाह सुख बाधित होता है. वैचारिक मतभेद उभर सकते हैं. अलगाव और रिश्ते में तलाक की स्थिति भी प्रभावित कर सकते हैं.

गण दोष परिहार कैसे करें

जब वर-वधू की कुण्डलियों में जन्म राशि के स्वामी या नवाशं कुण्डली के लग्नेशों में मैत्री संबन्ध हो, तो यह गण दोष का परिहार हो रहा होता है. ऎसे में विशेष रुप से यह ध्यान रखा जाता है, कि दोनों की कुण्डलियों में भकूट दोष नहीं होना चाहिए.

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सूर्य सिद्धांत | Surya Siddhanta – History of Astrology | Ancient Indian Astrology| Pitahma Siddhanta Description

वैदिक ज्योतिष के गर्भ में झांकने पर ज्योतिष के अनसुलझे रहस्य परत दर परत खुलते जाते है. वैदिक ज्योतिष से परिचय करने में वेद और प्राचीन ऋषियों के शास्त्र, सिद्धान्त हमारे मार्गदर्शक का कार्य करते है. ज्योतिष शास्त्र के सर्वोपरि ग्रन्थ को सूर्य सिद्धान्त के नाम से जाना जता है. इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले ऋषि सूर्य रहे है. आईए संक्षेप में हम ज्योतिष शास्त्र के इतिहास के पन्ने पलटते है, देखते है, कि क्या मिलता है. 

प्राचीन भारतीय ज्योतिष | Ancient Indian Astrology

पौराणिक काल को ज्योतिष काल का स्वर्णिम काल माना जाता है. इस काल को स्वर्णिम बनाने में 18 ऋषियों ने अपना विशेष योगदान दिया था. इन 18 ऋषियों में सबसे पहला नाम ऋषि सूर्य का था. इन्होने सूर्य सिद्धान्तों का प्रादुर्भाव किया. 

इन सिद्वान्तों में ग्रहों का औसत भोगांश और ग्रहों की गति के सिद्धान्त की विधि का अच्छे ढंग से वर्णन किया गया है. यह दूसरे ग्रन्थों से अच्छा और विस्तृ्त है,  किन्तु आजकल इस पुस्तक में कुछ् संशोधन किये गए है. इस शास्त्र में मुख्यत” ज्योतिष के खगोलशास्त्र पर आधारित है. तथा इसे एक टीका के रुप में लिखा गया है. 

इस शास्त्र के नियमों को कई शास्त्रियो ने सम्पादित किया. परन्तु इसके सम्पादित अंश अभी उपलब्ध नही है. इस शास्त्र में जो नियम दिए गये है उसमें ब्रह्माण्डीय पिन्डों की गति को वास्तविक माना गया है. यह विभिन्न तारों की स्थितियों, चन्द्र और नक्षत्रों भी ज्ञान करता है. साथ ही इन नियमों का पालन करते हुए सूर्य ग्रहण का भी आकलन किया जा सकता है.  

पितामह सिद्धान्त

 

ज्योतिष के तीन स्कन्ध ज्योतिष की तीन भाग है. इसमें भी सिद्वान्त ज्योतिष सर्वोपरि है. सिद्वान्त ज्योतिष को बनाने में पौराणिक काल के उपरोक्त 18 ऋषियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इन सभी ऋषियों के शास्त्रों के नाम इन ऋषियों के नाम पर रखे गए है. इन्हीं में से एक शास्त्र पितामह सिद्धान्त है. इसे बनाने वाले ऋषि पितामह थे.   

पितामह सिद्धान्त ज्योतिष् के पौराणिक काल 8300 ईसा पूर्व से 3000 वर्ष ईसा के पूर्व तक माना जाता है. इस काल में ज्योतिष के क्षेत्र में अनेक ऋषियों ने विशेष कार्य किया. इन महान ऋषियों का नाम निम्न है. 

सिद्धान्त ज्योतिष के 18 ऋषियों के नाम- Siddhanta Jyotish : Name of 18 Rishi

 

सूर्य: पितमहो व्यासो वशिष्ठोअत्रि पराशर: ।

कश्यपो नारदो गर्गो मरिचिमनु अंगिरा ।।

लोमश: पोलिशाशचैव च्यवनो यवनों मृगु: ।

शोनेको अष्टादशाश्चैते ज्योति: शास्त्र प्रवर्तका ।।

अर्थात वैदिक ज्योतिष को ऊंचाईयों पर ले जाने वाले ऋषियों में ऋषि सूर्य, ऋषि पितामह, ऋषि व्यास, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि अत्रि, ऋषि पराशर, ऋषि कश्यप, ऋषि नारद, ऋषि गर्ग, ऋषि मरीचि, ऋषि मनु, ऋषि अंगीरश, ऋषि लोमश, ऋषि पोलिश, ऋषि चवन, ऋषि यवन, ऋषि भृ्गु, ऋषि शौनक आते हे.

पितामह सिद्वान्त वर्णन | Pitahma Siddhanta Description

पितामह सिद्वान्त को बनाने वाले ऋषि पितामह थे. पितामह सिद्धान्त एक खगोल संबन्धी शास्त्र है. इस शास्त्र में सूर्य की गति व चन्द्र संचार की गणनाओं का उल्लेख किया गया है. यह शास्त्र आज अधूरा ही उपलब्ध है. 

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कैसिटेराइट उपरत्न । Cassiterite Gemstone | Cassiterite – Metaphysical Properties

कैसिटेराइट बहुत ही महत्वपूर्ण तथा दुर्लभ अयस्क है जो टिन से मिलता है. यह उपरत्न काले, हल्के काले, काले-भूरे, पीलेपन में, हरापन लिए, लाल तथा रंगहीन रुप में पाया जाता है.  इस उपरत्न को यह नाम कैसिटेराइड्स शब्द से मिला है जो प्राचीन रोमन समय के ब्रिटीश द्वीपों के वर्णन में उपयोग में लाया जाता था.  इसका सबसे अधिक उपयोग रत्न के रुप में किया जाता है. ग्रीक भाषा में कैसिटेरोस शब्द का अर्थ टिन होता है इसलिए कई विद्वान इस उपरत्न के नाम को ग्रीक भाषा से लिया मानते हैं. कई स्थानों पर इसे टिन उपरत्न भी कहा जाता है.

यह उपरत्न मुख्य रुप से जलोढ़ स्थानों की सतहों पर पाया जाता है. टिन की यह खानें प्रमुख रुप से बोलीविया के जलतापीय स्थानों में पाई जाती हैं. यह उपरत्न अयस्क के छोटे तत्व में उपलब्ध है जो आग्नेय चट्टानों से प्राप्त होता है. कैसिटेराइट अयस्क को विभिन्न प्रकार से अलंकृत तथा व्यवस्थित करके और उसे चमकाकर उपयोग में लाया जाता है. यह उपरत्न अन्य कई उपरत्नों के साथ पाया जाता है. यह उपरत्न टिन का मुख्य अयस्क है.

यह खानों में से काले तथा अपारदर्शी रुप में पाया जाता है, जो गहनों के रुप में प्रयोग में लाया जाता है. इस उपरत्न के क्रिस्टल आमतौर पर छोटे तथा ठूंठदार प्रिज्म के रुप में पाए जाते हैं. लाल, भूरेपन में  पारदर्शी रुप में यह दुर्लभ ही पाया जाता है. पारदर्शी रुप में यह उपरत्न हीरे तथा भूरे जर्कन का भ्रम पैदा करता है. यह उपरत्न हीरे से भी अधिक तेजी से आग फैलाने वाला उपरत्न है. टिन का उपयोग प्राचीन समय से ही लोगों द्वारा किया जा रहा है. पहले समय में भोजन रखने के लिए टिन से बने बर्तनों का उपयोग किया जाता था. 

कैसिटेराइट का उपयोग | Use Of Cassiterite Gemstone

यह धारणकर्त्ता के सपनों के आशय को समझकर उन्हें अभिव्यक्त करने में और उन्हें पाने में मदद करता है. लक्ष्यों को पाने के लिए ध्यान केन्द्रित करता है. यह धारणकर्त्ता को संरक्षण प्रदान करता है और व्यक्ति को स्वभाविक रुप से व्यवहारिक बनाता है. जिन व्यक्तियों को अस्वीकार कर दिया जाता है. जिनके साथ पक्षपात का व्यवहार होता है, जिनका परित्याग कर दिया जाता है अथवा जिन्हें स्वीकारा नहीं जाता है उनके लिए यह उपरत्न अनुकूल प्रभाव रखने वाला होता है. यह उनके सभी दुखों को हरने का काम करता है. 

व्यक्ति विशेष के मन से दुखों के साथ नकारात्मक सोच को भी दूर करने में सहायक सिद्ध होता है. यह उपरत्न आशावाद तथा सकारात्मक भावना का जातक में विकास करता है. 

कैसिटेराइट के भौतिक तथा आध्यात्मिक गुण | Physical And Metaphysical Properties Of Cassiterite

यह उपरत्न खाने से संबंधित विकारों को दूर करने में उपयोगी होता है. यह उपरत्न सामान्य तथा अनिवार्य व्यवहार को नियंत्रित रखता है. इस उपरत्न को मोटापा कम करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है. यह हार्मोन्स से संबंधित परेशानियों को दूर करता है. हार्मोन्स की गड़बडी़ को ठीक करने में सहायक होता है. यह व्यक्ति के अनाहत चक्र तथा मनीपूरक चक्र को नियंत्रित करता है. दिल तथा पेट से संबंधित विकारों को होने से रोकता है. 

कौन धारण करे | Who Should Wear Cassiterite Gemstone

पेट तथा दिल से जुडी़ परेशानियों से बचने के लिए कैसिटेराइट उपरत्न का उपयोग किया जा सकता है. 

कहाँ पाया जाता है | Where is Cassiterite Gemstone Found

यह उपरत्न प्रमुख रुप से बोलीविया की खानों में पाया जाता है. वर्तमान समय में यह उपरत्न चीन, इन्डोनेशिया, मेक्सिको, रुस, ब्रिटेन, इक्वेडोर, ब्राजील, मलेशिया, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, काँगों, थाईलैण्द, जायरे, नाईजीरिया तथा मलाय प्रायद्वीप में पाया जाता है. 

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हर्ष योग | हर्ष विपरीत राज योग | Harsh Vipreet Raj Yoga | Harsh Yoga | Harsh Yoga Result

विपरीत राज योग त्रिक भावों के स्वामियों के परस्पर स्थान परिवर्तन से बनता है. यह योग तीन प्रकार से बन सकता है. तीनों प्रकारों के नाम अलग अलग है. इन्हीं तीनों योगों में से एक योग है, हर्ष योग..

हर्ष योग कैसे बनता है. | How is Formed Harsh Vipareeta Raja Yoga 

जब कुण्डली में छठे भाव में पाप ग्रह हो या पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अथवा छठे भाव का स्वामी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो हर्ष योग बनता है.  इसे हर्ष विपरीत राज योग भी कहते है. 

हर्ष योग फल । Harsh Yoga Result 

इस योग में छठे भाव का संबन्ध आंठवें भाव या बारहवें भाव से बनता है. इसलिए यह योग व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता देता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति का शरीर सुडौळ होता है. उस व्यक्ति के पास धन -संपति होती है. वह समाज के गणमान्य व्यक्तियों की संगति में रहता है. इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को जीवन साथी और संतान और मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है. 

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