ग्रहों के गुण-धर्म और मूक प्रश्न | Nature of Planet and Mook Prashna

राशियों की भाँति ग्रहों के भी गुण-धर्म होते हैं. ग्रहों की दिशाएँ तथा निवास स्थान भी होते हैं. आपने पिछले अध्याय में राशियों के बारे में कुछ जानकारी हासिल की है. अब आप इस पाठ में ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें.

ग्रहों के गुण-धर्म | Nature of Planet

ग्रह           पदवी         प्रवृति

सूर्य          राजा         सात्विक

चन्द्रमा      रानी          सात्विक

मंगल        सेनापति        तामसिक

बुध             राजकुमार       राजसिक

बृहस्पति        मंत्री            सात्विक

शुक्र             मंत्री            सात्विक

शनि     दास            तामसिक     

 

सात्विक(जानने वाला) – शरीर में तेज होगा. सुखी होगा, सही-गलत की पहचान होगी.

राजसिक(करनेवाला) – राग-द्वेष प्रधान, काम करने में प्रयत्नशील, मेहनत अधिक तो फल कम मिलते हैं. सांसारिक होगा.

तामसिक(ना जानने वाला) – सही को भी गलत तरीके से देखना, प्रमाद, आलस्य, निद्रा, मोह.

ग्रहों की दिशाएँ | Direction of Planet

ग्रह     दिशा

सूर्य पूर्व

चन्द्र   उत्तर-पश्चिम

मंगल        दक्षिण

बुध          उत्तर

बृहस्पति     उत्तर-पूर्व

शुक्र          दक्षिण-पूर्व

शनि          पश्चिम

राहु/केतु     दक्षिण-पश्चिम

(केतु को राहु की तरह लेगें. इसलिए केतु की दिशा भी दक्षिण-पश्चिम होगी.)

 

ग्रहों के निवास स्थान, रंग तथा उनके वस्त्रों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगें.

ग्रह     रंग     वस्त्र      निवास स्थान

सूर्य     ताम्र वर्ण     मोटा कपडा़     देवस्थान, मुखिया का स्थान

चन्द्रमा     सफेद     नया तथा स्वच्छ वस्त्र   जलयुक्त भूमि

मंगल       लाल   जला हुआ                 अग्नियुक्त भूमि, फैक्टरी, किचन

बुध     हरा     भीगा वस्त्र                  खेल का मैदान, बगीचा

बृहस्पति     पीला     सादा वस्त्र       कोषागार, बैंक, तिजोरी

शुक्र     सफेद     रेशमी तथा रंगीन वस्त्र        शयनकक्ष, मनोरंजन स्थल

शनि     काला   पुराना वस्त्र     कूडा़घर, कूडे़दान

राहु/केतु   नीला,धूम्र   गुदडी़                  कोने वाली जगहें.  

बारह राशियाँ और मूक प्रश्न |12 Signs and Mook prashna

प्रश्न कुण्डली में लग्न में आई राशियों का अपना महत्व होता है. प्रत्येक राशि की अपनी अलग पहचान तथा लक्षण हैं. इन लक्षणों के आधार पर मूक प्रश्न का निर्धारण किया जाता है. प्रश्न कुण्डली में एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्न लग्न अपने स्वामी ग्रह से युत या दृष्ट हो तब लग्न बली हो जाता है अथवा प्रश्न लग्न में शुभ ग्रह स्थित हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तब भी शुभ होता है. आइए आपको सरल विधि से मूक प्रश्न की गणना के विषय में बता दें.

(1) मेष राशि लग्न में हो तो द्वि-पद अथवा मनुष्य के बारे में प्रश्न होता है.

(2) वृष राशि लग्न में हो तो पालतू पशु के बारे में जातक का प्रश्न होता है. वृष राशि चौपाया राशि है. अत: आधुनिक समय में आप वृष राशि से चौपाया वाहन का भी विश्लेषण कर सकते हैं. प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न वाहन से संबंधित हो सकता है.

(3) मिथुन राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो गर्भ अथवा संतान से संबंधित प्रश्न हो सकता है.

(4) कर्क राशि लग्न में हो तो विवाद, लडा़ई, मुकदमा या चुनाव के बारे में प्रश्न होता है.

(5) प्रश्न कुण्डली के लग्न में सिंह राशि हो तो नौकरी, राज्य, सरकारी काम य राजनीति के विषय में जातक प्रश्न करता है.

(6) प्रश्न कुण्डली के लग्न में कन्या राशि हो तो किसी व्यक्ति के विषय में प्रश्न होत है.

(7) तुला राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो व्यापार, रोजगार या लाभ से संबंधित प्रश्न होता है.

(8) वृश्चिक राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो भय, अपयश, भ्रष्टाचार या सरकारी अभियोग के बारे में जातक प्रश्न करता है.

(9) धनु राशि यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो चोरी, घर से भागे व्यक्ति अथवा घरेलू मतभेद के बारे में प्रश्न होता है.

(10) मकर राशि यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो पापकर्म, अन्याय, षडयंत्र या तस्करी के बारे में प्रश्न होता है.

(11) कुम्भ राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो धर्म अथवा परोपकार के बारे में प्रश्न होता है.

(12) मीन राशि प्रश्न कुण्डली के लग्न में हो तो घर-गृहस्थी, निजी स्थिति अथवा मांगलिक कार्य के विषय में प्रश्न होता है.

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किंस्तुघ्न करण

किंस्तुघ्न करण को कौस्तुभ करण के नाम से भी जाना जाता है. इस करण की महत्ता किसी भी शुभ योग का साथ पाकर और भी बढ़ जाती है. शुक्ल पक्ष की पहली तिथि प्रतिपदा को जब दिन के समय किंस्तुघ्न करण के साथ कोई शुभ योग आए जैसे की हर्ष इत्यादि हो तब यह योग प्रबलता से शुभ फल देता है. शुभ कार्यों को करने के लिये यह करण ग्राह्य है.

किंस्तुघ्न करण कब होता है

शुक्लपक्ष प्रतिपदा के पूर्वार्द्ध में किंस्तुघ्न नामक करण होता है. यह समय नए काम करने और नवीन चीजों के निर्माण को दिखाता है. इस समय को उज्जवल रुप से लिया जाता है, क्योंकि अंधकार के पश्चात प्रकाश का आगमन इसी के साथ आरंभ होता है. यह नव जीवन की प्रेरणा देता है.

किंस्तुघ्न करण – स्वामी

किंस्तुघ्न करण के स्वामी देव वायु हैं. वायु देव की प्रभाव क्षमता हमे इस करण में भी दिखाई देती है. इनके प्रभाव से ये करण तीव्रगामी फल देने वाला होता है. जिस जातक का जन्म इस करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को जीवन में होने वाली विफलताओं से बचने के लिए वायु देव की पूजा करनी चाहिए. यदि जातक किसी प्रकार के शारीरिक कष्ट से परेशान है तो वायु देव की उपासना करे. करण स्वामी की उपासना से देव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

किंस्तुघ्न करण – स्थिर संज्ञक करण

किंस्तुघ्न करण स्थिर संज्ञक करण और ध्रुव करण कहलाता है. यह करण ऊपर की ओर स्थिति प्राप्त करने वाला होता है. इसमें जातक को जीवन में सदैव आगे बढ़ने की उन्नती की प्रेरण भी मिलती है. इस करण का प्रभाव जोश और उत्साह को बनाए रखने वाला होता है.

किंस्तुघ्न करण में जन्मा जातक

किंस्तुघ्न करण में जिस व्यक्ति का जन्म हो, वह व्यक्ति शुभ कार्यो को करने के लिए तत्पर रहता है. वह अपने पुरुषार्थ से अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहता है. तथा इस योग के व्यक्ति के द्वारा किए गये सभी प्रयास सफल होते है. जीवन की अभीष्ट सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए उसे अपनी धार्मिक आस्था को बनाये रखना चाहिए, तथा धर्म कर्म के कार्यो के लिए समय निकालने के साथ साथ अपने पिता का आशिर्वाद समय समय पर प्राप्त करते रहना चाहिए.

जातक शत्रुओं से घबराता नही है वह अपने साहस के बल पर काम करता है और उन्हें परास्त भी कर सकता है. मित्र की सहायत अके लिए भी सदैव आगे रहता है. जातक मनमौजी किस्म का हो सकता है. खेल कुद में रुचि रखने वाला और प्रसन्नता के साथ जीवन को जीने की कोशिशों में लगा रहने वाला होता है.

किस्तुघ्न करण कार्य

सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए अनुकूल माना जाता है. इस करण के दौरान व्यक्ति ऎसे कामों को कर सकता है जो किसी कारण से रुके पड़े थे. यह करण अवरोध से मुक्ति देता हुआ आगे की ओर प्रस्थान करने की शिक्षा ही देता है. इस करण में जातक जोश के साथ अपने कामों को करता है.

इस करण के समय देव पूजा के कार्य, जप, तप, दान इत्यादि काम भी इस करण के समय पर किए जा सकते हैं. इस करण में कठिन से कठिन कार्य सरलता पूर्वक हो जाते हैं.

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रूचक योग – पांच महापुरुष योग | Ruchaka Yoga – Panch Mahapurusha Yoga | Malavya Yoga | Hans Yoga | Bhadra Yoga | What is The Budhaditya Yoga | Shash Yoga Result

पांच महापुरुष योग पांच ग्रहों के अपने राशि में स्थित होने अथवा उच्च के होकर केन्द्र में होने पर बनते है. इस प्रकार बनने वाले पांच योगों में से एक योग है. रुचक योग. 

रूचक योग किस प्रकार बनता है | How is Ruchaka Yoga Formed

जब कुण्डली में मंगल स्वराशि( मेष, वृ्श्चिक) अथवा मंगल अपनी उच्च राशि (मकर राशि ) में होकर केन्द्र में हो तो रुचक योग बनता है. 

रुचक योग के फल | Ruchaka Yoga Result

जिसके जन्म कुण्डली में रुचक योग बन रहा हो, वह व्यक्ति दीर्घायु वाला होता है. उसकी त्वचा साफ और सुन्दर होती है. शरीर में रक्त की मात्रा अधिक होती है. वह बली, और साहसी होता है. इसके साथ ही उसे सिद्धियां प्राप्त करने में विशेष रुचि हो सकती है. 

इस योग से युक्त व्यक्ति सुन्दर, भृ्कुटी, घने केश, हाथ-पैर सुडौल, मंत्रज्ञ, रक्तश्याम वर्ण, बडा शूर, शत्रुजित, शंख समान कण्ठ, बडा पराक्रमी, दुष्ट, ब्राह्माण, गुरु के सामने विनयशील, जनता से प्रेम करने वाला होता है. 

व्यक्ति में इन सभी गुणों के साथ साथ यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की शक्ति देता है. इस योग से युक्त व्यकि अपने शत्रुओं को परास्त करनें में कुशल होता है.  

Hans Yoga

हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है. तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है. उसमें सात्विक गुण पाये जाते है. 

हंस योग कैसे बनता है | How is Hans Yoga Formed

हंस योग उस समय बनता है, जब कुण्डली में लग्न, पंचम, नवम, सप्तम भाव में सभी ग्रह स्थित हो, जिस व्यक्ति की कुण्डली में हंस योग होता है, उस व्यक्ति में सही – गलत का निर्णय करने की योग्यता होती है. वह व्यक्ति उत्तम् कार्य करने वाला व उच्च कुल में जन्म लेने वाला होता है. 

 यह योग व्यक्ति में निर्णय योग्यता में बढोतरी करता है. 

Bhadra Yoga 

पांच महापुरुष योगों में से एक अन्य योग है. भद्र योग, यह योग भी शुभ योगों की श्रेणी में आता है. तथा इस योग से युक्त व्यक्ति धन, कीर्ति, सुख-सम्मान प्राप्त करता है. 

कुण्डली में जब बुध स्वराशि (मिथुन, कन्या) में हो तो यह योग बनता है. साथ ही बुध का केन्द्र अमें होना भी आवशय है. कुछ शास्त्र इसे चन्द्र से केन्द्र में भी लेते है. भद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को फल देता है.

भद्र योग फल | Bhadra Yoga Result

भद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सिंह के समान फुर्तीला होता है. उसकी चाल हाथी के समान कहीं गई है. वक्षस्थल पुष्ट होता है. गोलाकारक सुडौळ बाहें, कामी, विद्वान, कमल के समान हाथ-पैर होते है. सत्वगुण, कान्तिमय त्वचा युक्त होता है. 

इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल,  बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते है. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृ्कुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है.  

भद्र योग वाला व्यक्ति सब कार्य को स्वतन्त्र रुप से करने में समर्थ होता है. अपने जन को भी क्षमा न करने वाला तथा उसकी संपति को अन्य भी भोगते है. 

Malavya Yoga

पांच महापुरुष योगों को पंच-महापुरुष योग भी कहते है. यह योग पांच श्रेष्ठ योगों का समूह है. पांच महापुरुष योग में रुचक योग, हंस योग, मालव्य योग, भद्र योग व शश योग आते है. इन पांचों योगों को एक साथ पंच महापुरुष योग के नाम से जाना जाता है. 

मालव्य योग कैसे बनता है | How is Malavya Yoga Formed

शुक्र जब कुण्डली में स्वराशि (वृ्षभ, तुला) राशि में हो, तो मालव्य योग बनता है. 

मालव्य योग फल | Malavya Yoga Result

मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को विदेश स्थानों की यात्रा करने के अवसर प्राप्त होते है. मालव्य योग में उत्पन्न व्यक्ति पतले होंठ वाला होता है, अंगों की संधियां रक्त रहित, दुर्बल, चन्द्रमा के समान कान्ति, दीर्घ नासिका, सुन्दर गाल, उत्तम तेज दृष्टि, सर्वत्र पराक्रमी, लम्बी बाहें, और दीर्घायु वाला होता है.

Budhaditya Yoga | Budhaaditya Yog Result | What is The Budhaditya Yoga”/>कुण्डली में ग्रहों अपनी विशेष स्थिति में होने पर विशेष रुप से शुभ या अशुभ फल देने वाले हो जाते है.  इस स्थिति को योग कहा जाता है. योग बनाने वाले ग्रहों की फल देने की क्षमता बढ जाती है.  योग शुभ हो तो व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते है. इसके विपरीत योग अशुभ बन रहा हो तो व्यक्ति को योग के परिणाम अशुभ रुप में प्राप्त होते है.   

बुद्धादित्य योग क्या है | Budhaditya Yoga Meaning | What is The Budhaditya Yoga 

जब कुण्डली में सूर्य और बुध किसी भी रशि में एक साथ हो तो बुद्धादित्य योग बनता है. बुद्धादित्य योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति बुद्धिमान, विद्वान, और तेजस्वी होता है. उसमें साहस भाव भी भरपूर पाया जाता है. तथा अपने बौद्धिक कार्यो से वह उन्नतिशील बनता है. इसके अतिरिक्त ऎसा व्यक्ति अपने सिद्धान्तों पर स्थिर रहकर् जीवन व्यतीत करता है. 

Shash Yoga Result”/>शश योग शनि से बनने वाला योग, जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हो, उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएं शनि देव से प्रभावित रहती है. शश योग विशेष योगों की श्रेणी में से आता है. साथ ही यह योग पांच महापुरुष योग भी है. 

शश योग कैसे बनता है | How is Shash Yoga Formed

कुण्डली में जब शनि स्वराशि (मकर,कुम्भ) में हो,  अथवा शनि अपनी उच्च राशि तुला में होकर, कुण्डली के केन्द्र भावों में स्थित हो, उस समय यह योग बनता है. एक अन्य मत के अनुसार इस योग को चन्द्र से केन्द्र में भी देखा जाता है. 

शशक योग फल | Shash Yoga Result

शश योग को शशक योग के नाम से भी जाना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसकें छोटे छोटे दांत होते है. उसे घूमने-फिरने के शौक होता है. वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है. शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है. उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है. इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है. व उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है. 

ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है. धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है. चंचल नेत्र होते है. विपरीत लिंग का भक्त होता है. दूसरे का धन का अपव्यय करता है. माता का भक्त होता है. सुन्दर पतली कमर वाला होता है.  सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है. 

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एकादशी जी की आरती | Ekadashi Aarti

ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ऊँ।।

तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ऊँ।।

मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष की “उत्पन्ना | Utpanna” विश्वतारनी का जन्म हुआ।
शुक्ल पक्ष में हुई “मोक्षदा | Mokshada”, मुक्तिदाता बन आई।। ऊँ।।

पौष के कृ्ष्णपक्ष की, “सफला | Saphala” नामक है। 
शुक्लपक्ष में होय “पुत्रदा | Putrada”, आनन्द अधिक रहै ।। ऊँ।।

नाम “षटतिला | Shatila” माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में “जया | Jaya” कहावै, विजय सदा पावै ।। ऊँ।।

“विजया” फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला “आमलकी | Amalaki” ।
“पापमोचनी | Papmochani” कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ऊँ।।

चैत्र शुक्ल में नाम “कामदा | Kamada” धन देने वाली ।
नाम “बरुथिनी | Varuthini” कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ऊँ।।

शुक्ल पक्ष में होये”मोहिनी | Mohini”, “अपरा” ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम”निर्जला | Nirjala” सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।। ऊँ।।

“योगिनी | Yogini” नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
“देवशयनी | Devshayani” नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरी ।। ऊँ।।

“कामिका | Kamika” श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय “पवित्रा | Pavitra”, आनन्द से रहिए।। ऊँ।।

“अजा” भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, “परिवर्तिनी | Parivartini” शुक्ला।
“इन्द्रा | Indra” आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ऊँ।।

“पापांकुशा | Papamkusha” है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
“रमा | Rama” मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।ऊँ।।

“देवोत्थानी | Devotthani” शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।। ऊँ।।

“परमा | Parama” कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय “पद्मिनी | Padmini”, दु:ख दारिद्र हरनी ।। ऊँ।।

जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन “गुरदिता | Gurdita” स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।ऊँ।।

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ताजिक योगों का प्रश्न कुण्डली में प्रयोग | Use of Tajika Yoga in Prashna Kundli

प्रश्न कुण्डली का अध्ययन करते समय ताजिक योगों का विश्लेषण करना आवश्यक होता है. बिना ताजिक योगों के प्रश्न कुण्डली का अध्ययन अधूरा होता है. कार्य की सिद्धि होगी अथवा नहीं होगी यह ताजिक योगों से पता चलती है. आपको इस अध्याय में सभी ताजिक योगों के बारे में बताया जाएगा कि वह किस प्रकार से बनते हैं. अधिकतर योग लग्नेश तथा कार्येश पर आधारित होते हैं. प्रश्न कुण्डली में जिस भाव से प्रश्न का संबंध होता है, उस भाव के स्वामी को कार्येश कहा जाता है. योगों के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करते हैं.

प्रश्न कुण्डली में कुछ योग इत्थशाल पर आधारित होते हैं तो कुछ योग इत्थशाल के बिना होते हैं. पहले हम इत्थशाल रहित योगों की चर्चा करेंगें. फिर इत्थशाल सहित योगों की चर्चा की जाएगी.

इत्थशाल रहित योग | Without Ithasala Yoga

इकबाल योग | Ikbal Yoga

प्रश्न कुण्डली में यदि सभी ग्रह  केन्द्र या पणफर में स्थित हों तब इकबाल योग बनता है.  अच्छा तथा शुभ योग है. कार्यसिद्धि होगी.

इन्दुवार योग | Indubar Yoga

प्रश्न कुण्डली में सारे ग्रह अपोक्लिम भावों में हो तब इन्दुवार योग बनता है. शुभ योग है.

कुत्थ योग | Kuth Yoga

लग्नेश, कार्येश कुण्डली में बली हों. शुभ ग्रहों से दृष्ट हों, शुभ भावों में हों तथा शुभ संबंध में हों तो प्रश्नकर्त्ता के लिए शुभ है. कार्य की सिद्धि होगी.

दुरुफ योग | Durufa Yoga

प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश तथा कार्येश 6,8,12 भावों में निर्बल अवस्था में स्थित हों तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हों तब दुरुफ योग बनता है. यह अच्छा योग नहीं है. कार्य हानि होगी.

 

इत्थशाल सहित योग | With Ithasala Yoga

इत्थशाल योग | Ithasala Yoga

(1) लग्नेश तथा कार्येश में दृष्टि संबंध हो

(2) लग्नेश तथा कार्येश दीप्ताँशों में हो.

(3) इत्थशाल होने के लिए दो ग्रहों का आपस में संबंध होता है. मंदगामी ग्रह के अंश अधिक हों तथा तीव्रगामी ग्रह के अंश कम हों.

उपरोक्त शर्ते यदि पूरी हो रही हों तो इत्थशाल योग बनता है. यह योग भविष्य में होने वाला संबंध दिखाता है. भविष्य में कार्य सिद्धि के योग बनते हैं.

इशराफ योग | Ishraf Yoga

कुछ विद्वान इसे मुशरिफ योग भी कहते हैं. यह योग इत्थशाल योग के ठीक विपरीत होता है. परस्पर दो ग्रहों में दृ्ष्टि हो, परन्तु शीघ्रगामी ग्रह के अधिक अंश हों तथा मंदगामी ग्रह के अंश कम हों. इस प्रकार शीघ्रगामी ग्रह आगे ही बढ़ता रहेगा और कार्य हानि होगी.

इशराफ का अर्थ है कि पीछे दोनों ग्रहों में इत्थशाल हो चुका है. मंदगामी ग्रह, तीव्रगामी ग्रह से एक अंश से अधिक पीछे हो तो इशराफ होगा.

दुफलि कुत्थ योग | Dufli Kutth Yoga

प्रश्न कुण्डली में मंदगामी ग्रह बली हो. तीव्रगामी ग्रह निर्बल हो तो दुफलि कुत्थ योग बनता है. इस योग के बनने पर कार्य सिद्धि की संभावना अच्छी रहती है.

मणऊ योग | Madhu Yoga

इत्थशाल में शामिल ग्रहों से मंगल तथा शनि का संबंध भी बन रहा हो तो मणऊ योग बनता है. इसमें कार्य की हानि हो होती है. कार्य नहीं बनता.

रद्द योग | Radha Yoga

प्रश्न कुण्डली में यदि मंदगामी ग्रह निर्बल हो(मंदगामी ग्रह वक्री हो या अस्त हो या 6,8 अथवा 12 भावों में स्थित हो) तथा तीव्रगामी ग्रह बली हो तब रद्द योग बनता है. इस योग के बनने से कार्य हानि होती है.

कम्बूल योग | Campbell Yoga

प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का परस्पर इत्थशाल हो रहा हो. दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह के साथ चन्द्रमा का इत्थशाल हो रहा हो तब कम्बूल योग बनता है. इस योग के बनने पर कार्यसिद्धि होती है. (Messinascatering)

गैरी कम्बूल योग | Geri Campbell Yoga

कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का इत्थशाल, शून्यमार्गी चन्द्रमा से हो रहा हो और चन्द्रमा राशि अंत में भी स्थित हो तब यह गैरी कम्बूल योग बनता है. इस योग में कार्य सिद्धि विलम्ब से होती है. शून्यमार्गी चन्द्रमा से तात्पर्य है कि चन्द्रमा जब ना तो उच्च राशि में हो, ना ही नीच राशि में हो, ना ही मित्र राशि में हो और ना ही शत्रु राशि में हो.

खल्लासर योग | Khallasara Yoga

लग्नेश तथा कार्येश का संबंध होने से इत्थशाल है लेकिन शून्यमार्गी चन्द्रमा से कोई संबंध नहीं है तो यह खल्लासर योग बनता है. इस योग में कार्य सिद्धि नहीं होती है.

ताम्बीर योग | Tambir Yoga

जब कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का इत्थशाल नहीं होता है. एक राशि अंत में होता है और दूसरा ग्रह अगली राशि में आने पर किसी अन्य बली ग्रह से इत्थशाल करे तब यह ताम्बीर योग बनता है. इस योग में किसी अन्य की सहायता से कार्य की सिद्धि होती है.

नक्त योग | Nata Yoga

कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन कोई अन्य तीसरा तीव्रगामी ग्रह दोनों से इत्थशाल करता है तो नक्त योग बनता है. इस योग में किसी मध्यस्थ की सहायता से बात बन सकती है अर्थात कार्य सिद्धि हो सकती है.

यमया योग | Yemaya Yoga

कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन किसी अन्य मंदगामी ग्रह से दोनों का इत्थशाल हो तो यमया योग बनता है. इस योग में किसी बडे़-बुजुर्ग की सहायता लेकर व्यक्ति कार्य बना सकता है. किसी को मध्यस्थ बनाकर कार्य को सफल बनाया जा सकता है.

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चोरी का सामान कहाँ है | Place Where Stolen Goods are Kept

प्रश्न कुण्डली के द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि चोरी किया सामान कहाँ हैं. शहर में ही है या शहर से दूर चला गया है अथवा घर के आस-पास ही है.

* मेष लग्न यदि प्रश्न कुण्डली में उदय होता हो तो चोरी का सामान भूमि के नीचे होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में वृष लग्न उदय होता हो तो गऊशाला में चोरी का सामान छिपाया जाता है. वर्तमान समय में चौपाया वाहनों में भी चोरी का सामान छिपाया जा सकता है. 

* प्रश्न कुण्डली में मिथुन लग्न हो तो नृत्य-संगीत अथवा मनोरंजन के स्थानों पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कर्क राशि हो तो चोरी का सामान जल के निकट छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में सिंह राशि हो तो किसी जंगल अथवा सुनसान स्थान पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कन्या राशि हो तो रसोई घर में अथवा शयनकक्ष में चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में तुला राशि हो तो दुकान अथवा किसी गोदाम में चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में वृश्चिक राशि हो तो चोरी का सामान किसी बर्तन में रखकर जमीन में दबाकर छिपा दिया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में धनु लग्न हो तो जंगल में अथवा ऊँचाई वाली जगह पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में मकर लग्न हो तो किसी तालाब अथवा पानी के पास वाले स्थान पर चोरी का सामान छिपाया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कुम्भ लग्न हो तो चोरी का सामान हो तो घडे़ जैसी वस्तु में चोरी का सामान छिपाया जाता है अथवा ऎसी जगह पर छिपाया जा सकता है जहाँ से ऊपर का स्थान तंग हो और नीचे का स्थान चौडा़ हो. प्याऊ आदि जगह पर भी सामान छिपाया जा सकता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में मीन राशि हो तो चोरी का सामान तालाब या जलीय स्थान, मंदिर अथवा किसी अन्य पवित्र जगह पर छिपाया जा सकता है. 

उपरोक्त विश्लेषण के अतिरिक्त कुण्डली के अन्य योग भी हैं जिनसे चोरी के सामान का पता चलता है कि वह कहाँ छिपाया गया होगा. कुण्डली में चतुर्थ भाव में स्थित ग्रह से चोरी की वस्तु का पता चलता है कि वह कहाँ छिपाई गई होगी. 

चतुर्थ भाव में ग्रहों का फल कथन | Prediction of Planets in Fourth House

* चन्द्रमा यदि चतुर्थ भाव में हो तो चोरी का सामान नहाने के स्थान या जलाशय के निकट या वर्तमान समय में पानी की टंकी के पास होता है. 

* सूर्य यदि चतुर्थ भाव में हो तो चोरी का सामान शयनकक्ष में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में मंगल चतुर्थ भाव में हो तो चोरी का सामान पशुओं के रहने के स्थान पर अथवा कारीगरों के रहने की जगह पर या अग्नि संबंधित स्थानों पर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में बुध स्थित हो तो चोरी का सामान बैठक(drawing Room) या विद्यालय या पुस्तकालय में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में गुरु स्थित हो तो चोरी का सामान धार्मिक स्थानों पर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में शुक्र स्थित हो तो चोरी का सामान मनोरंजन के स्थानों पर होता है या उन स्थानों पर होता है जहाँ स्त्रियों का प्रभाव अधिक हो. 

* प्रश्न कुण्डली में शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो चोरी का सामान किसी अन्धेरे स्थान में गडा़ होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में राहु हो तो किसी खण्डहर हुए स्थान पर सामान होता है या किसी पेड़ के नीचे भी सामान हो सकता है. 

* प्रश्न कुण्डली में केतु चतुर्थ भाव में हो तो सामान किसी चांडाल, कसाई या मलाहों के पास होता है. 

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शनिवार व्रत कैसे करे? | Saturday Fast Method – Shanivar Vrat (Sadhesati Mantra)

शनिवार का व्रत अन्य सभी वारों के व्रत में सबसे अधिक महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में शनि निर्बल अवस्था में हो, या अपनी पाप स्थिति के कारण अपने पूर्ण फल देने में असमर्थ हों, उन व्यक्तियों को शनिवार का व्रत अवश्य करना चाहिए ( According to the scriptures, people having weak Saturn in their horoscope or Saturn is in malefic position and is unable to give good results, should observe Saturday Fast). यह व्रत शनि ग्रह की शान्ति हेतु किया जाता है. इस व्रत को करने से शनि देव प्रसन्न होते है.

इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि की साढेसाती, शनि की ढैय्या या फिर शनि की महादशा, अन्तर्दशा चल रहीं, उन व्यक्तियों के लिये इस व्रत को करना विशेष रुप से कल्याणकारी रहता है. शनि वार के व्रत को करने से जोडों के दर्द, कमर दर्द, स्नायु विकार में राहत मिलती है. यह मानसिक चिन्ताओं में कमी कर व्यक्ति को आशावादी बनाता है. 

शनिवार के व्रत को कब शुरु करे? | Starting of Saturday Fast

जिस व्यक्ति को शनिवार व्रत करने शुरु करने हों, वह व्यक्ति इस व्रत को किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शुरु कर सकता है (This fast may be started on first Saturday of Shukla Paksha of any month). व्रत को प्रारम्भ करने के बाद नियमित रुप से 11 बार या 51 बार किया जा सकता है. 

इसके बाद एक बार व्रत का उद्द्यापन करने के बाद इस व्रत को फिर से शुरु किया जा सकता है.

शनिवार व्रत कैसे करे? | Saturday Fast Procedure 

शनिवार का व्रत पालन करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. और प्रात: ही नित्य क्रियाओं से मुक्त होकर, पूरे घर को गंगा जल या अन्य किसी शुद्ध जल पूरे घर में छिडकर कर, घर को शुद्ध करना चाहिए.  

स्नान करने के बाद नीले या काले वस्त्र पहनकर शनिदेव की पूजा के लिए बैठें (You should wear black cloth and then worship Shanideva) . तिल के तेल से भरे लोहे के बर्तन में शनिदेव की मूर्ति लोहे से बनी मूर्ति की पूजा करने का महत्व है. पूजा में अन्य पूजन सामग्री के साथ ही विशेष रुप से कागमाची या कालगहर के काले फूल, दो काले कपड़े, काले तिल, भात शनिदेव को जरुर चढ़ावें. शनि की आराधना शनि चालीसा, स्त्रोत, मंत्र, आरती से करें। शनि व्रत कथा का भी पाठ करें. 

साथ ही सुबह और शाम शनि मंदिर दर्शन के लिए जाएं. साथ में हनुमान और भैरव के दर्शन भी जरुर करें. मंदिर में शनिदेव को तिल का तेल, काले उड़द, काले तिल, काली वस्तुए और तेल से बने व्यंजन चढ़ावें.

पूजन करने के साथ ही कथा का श्रवण भी करना चाहिए भोजन सूर्यास्त के २ घंटे बाद करे भोजन में उड़द की दाल का बना पदार्थ पहले किसी भिक्षुक को खिलाये फ़िर स्वयं ग्रहण करे.  गरीब व निर्धन व्यक्तियो को काला कम्बल,छाता,तिल,जूते आदि यथाशक्ति दान करना चाहिए यदि हो सके तो शनि ग्रह का मंत्र भी यथाशक्ति जपना चाहिए. 

श्री शनि देवजी की आरती | Aarti of Lord Shani : 

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय.॥

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय.॥

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय.॥

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय.॥

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय.

मन्त्र | Mantra : 

महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य १० माला, १२५ दिन) करें- 

ऊँ त्रयम्बकम्‌ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुर्क्षिय मामृतात्‌।

शनि के निम्नदत्त मंत्र का २१ दिन में २३ हजार जप करें | Nimnadatta Mantra of Shani

ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।

पौराणिक शनि मंत्र | Ancient Shani Mantra :

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

स्तोत्र | Stotra : 

शनि के निम्नलिखित स्तोत्र का ११ बार पाठ करें या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें.

कोणरथः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
सौरिः शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥

तानि शनि-नमानि जपेदश्वत्थसत्रियौ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद् भविष्यति॥

साढेसाती पीड़ानाशक स्तोत्र – पिप्पलाद उवाच । Sadhesati Stotra : 

नमस्ते कोणसंस्थय पिड्.गलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥

नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

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रोग तथा रोगी से जुडे़ अन्य योग | Disease and Other Yogas Related to Patient

* प्रश्न के समय यदि लग्नेश तथा षष्ठेश का इत्थशाल होता है तब बीमारी लम्बी अवधि तक बनी रहती है.

* षष्ठेश तथा लग्नेश में राशि परिवर्तन हो तो भी बीमारी लम्बी अवधि तक बनी रहती है.

* 2,7,12 भावों में पाप ग्रह हों तो रोगी की मृत्यु हो जाएगी. 

* 1,7,8 भाव में पाप ग्रह हों तो भी रोगी की म्रत्यु हो जाती है. 

* चन्द्रमा पर शुभ पराशरी दृष्टि है तो रोग प्रश्न में यह रोगी के लिए अच्छा है. 

* प्रश्न के समय मंगल तथा बृहस्पति लग्न में हैं तो चिकित्सक नहीं बदलेगा. 

* चतुर्थ भाव में वक्री ग्रह है तो इलाज का असर नहीं होगा. 

* प्रश्न के समय यदि चन्द्रमा का वक्री ग्रह से इत्थशाल है तो इलाज से लाभ नहीं होगा. 

* यदि शनि तथा लग्न की डिग्री आस-पास है तो या एक ही अंश पर शनि तथा लग्न के अंश स्थित है तब दवाई का असर नहीं होगा. 

* रोग प्रश्न में लग्नेश तथा राहु की निकटतम डिग्री है तो यह रोगी के लिए नकारात्मक है. 

* रोग प्रश्न में यदि लग्न कुण्डली का चतुर्थ भाव, नवाँश कुण्डली का लग्न बनता है तो उसी से संबंधित बीमारी जातक को हो सकती है.  

* रोग प्रश्न में जो भी ग्रह लग्न के अंशों के पास स्थित होगा उस ग्रह से संबंधित बीमारी हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा चन्द्रमा का इत्थशाल होगा तो रोग से मुक्ति हो जाएगी. 

* रोग प्रश्न में छठे भाव का स्वामी यदि अस्त हो जाता है तो बीमारी लम्बी चलती है. 

* रोग प्रश्न में लग्नेश, सप्तम भाव के स्वामी से 4,6 या 7वें भाव में स्थित है तो रोगी की मृत्यु हो जाती है. 

रोग निवारण तथा रोगी की मृत्यु के योग | Yogas of Disease Treatment and Death of the Patient

(1) प्रश्न कुण्डली में चर लग्न या द्वि-स्वभाव लग्न में चन्द्रमा और लग्नेश हो और इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तब रोगी शीघ्र ठीक हो जाता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में स्व-राशि का चन्द्रमा चतुर्थ भाव में स्थित हो अथवा दशम भाव में स्थित हो. 

(3) प्रश्न कुण्डली में स्वराशि में स्थित  चन्द्रमा शुभ ग्रह से इत्थशाल करता हो. 

(4) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश शुभ ग्रह हो और वह बली होकर केन्द्र, त्रिकोण अथवा उच्च राशि में स्थित हो. 

(5) प्रश्न कुण्डली में कोई भी एक ग्रह शुभ होकर बली अवस्था में लग्न में स्थित हो. 

(6) प्रश्न कुण्डली में शुभ ग्रह 3, 6, 9 तथा 11 वें भाव में स्थित हो. 

उपरोक्त प्रश्न कुण्डली के आधार पर आपको कुछ योग रोगी के ठीक ना होने के भी बताए जा रहें हैं. वह योग निम्नलिखित हैं. 

रोगी की मृत्यु के योग | Yogas of Patient’s Death

(1) प्रश्न कुण्डली में छठे तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह हों और चन्द्रमा छठे या आठवें भाव में स्थित हो तो रोगी की मृत्यु हो जाती है. 

(2) प्रश्न कुण्डली के लग्न तथा आरुढ़ लग्न में पाप ग्रह हों तो भी रोगी मृत्यु को पाता है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा छठे या मृत्यु स्थान में हो और 6,7 तथा 8वें भाव में पाप ग्रह हों तो रोगी की मृत्यु हो जाती है. 

(4) आरुढ़ लग्न से अष्टम में चन्द्रमा स्थित हो और चन्द्रमा पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो रोगी शीघ्र मर जाता है. 

(5 प्रश्न कुण्डली में लग्न से चौथे तथा 8वें भाव में पाप ग्रह स्थित हों या तृतीय भाव में गुरु और शुक्र हों तो एक सप्ताह के भीतर रोगी की मृत्यु हो जाती है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में तृतीय भाव में सूर्य और दशम भाव में पाप ग्रह हों तो 10 दिन में रोगी मर जाता है. 

(7) प्रश्न कुण्डली के द्वितीय भाव में पाप ग्रह हों और लग्नेश तथा चन्द्रमा छठे या 8वें स्थान में हों तो 14 दिन में रोगी की मृत्यु हो जाती है. 

(8) प्रश्न कुण्डली के दशम भाव में पाप ग्रह हों तो 3 दिन में रोगी की मृ्त्यु हो जाती है. 

प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उपचय भावों(3,6,10 व 11 भाव) में स्थित हो. केन्द्र, त्रिकोण तथा अष्टम भाव में शुभ ग्रह हों तो रोगी शीघ्र ठीक होता है. इस योग के विपरीत यदि प्रश्न लग्न पाप ग्रह से दृश्ट हो तब स्वस्थ व्यक्ति भी रोगी हो जाता है. यदि लग्न में स्थित पूर्ण चन्द्रमा पर गुरु की दृष्टि हो अथवा गुरु और शुक्र प्रश्न कुण्डली के केन्द्र में स्थित हो तो रोगी अच्छा हो जाता है. 

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एवेनच्यूरीन । Aventurine Upratna – Green Aventurine – Blue Aventurine

इस उपरत्न को आत्मविश्वास तथा शांति बढा़ने का उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न दिखने में शीशे जैसे हरे रंग का होता है. इसमें हरे रंग के गहरे धब्बे होते हैं. लाल तथा भूरे रंग के कृत्रिम उपरत्न पिघले हुए शीशे तथा ताँबें के मिश्रण से बनाए जाते हैं. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है. लेकिन इसका सही रंग हरा ही माना गया है या यह उपरत्न हरे रंग में नीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. इस उपरत्न में छोटे-छोटे कण मौजूद होते हैं जिससे रोशनी पड़ने पर यह उपरत्न कई रंगों की आभा लिए हुए दिखाई देता है. यह अर्द्ध पारदर्शी होता है. कई स्थानों पर यह उपरत्न पारभासी रुप में भी पाया जाता है. इस उपरत्न का प्रयोग जेवर बनाने में किया जाता है. यह उपरत्न सूर्य की रोशनी में खराब हो जाता है. इसलिए इसे सूर्य की रोशनी से दूर रखना चाहिए.

एवेनच्यूरीन के गुण | Qualities Of Aventurine Upratna

हरे रंग के एवेनच्यूरीन को सबसे अच्छा माना गया है. इसे धारण करने से व्यक्ति की बहुमुखी प्रतिभा का विकास होता है. इस उपरत्न को भाग्य रत्न, धन तथा चिकित्सा के रुप में उपयोग में लाया जाता है. कई विद्वानों का मानना है कि इस उपरत्न को धारण किए बिना कोई व्यक्ति सट्टा बाजार अथवा लॉटरी आदि में अपना भाग्य नहीं आजमा सकता है. यदि सितारे आपका साथ देने में कंजूसी कर रहें हैं तब इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि उसका सपना उसकी पहुँच से बाहर है तब इस उपरत्न को धारण करने से वह अपने सपने को साकार करने में कामयाबी हासिल कर सकता है.
 
यह उपरत्न धारणकर्त्ता को साहसिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है और उसे साहसिक कार्य करने के लिए तैयार करता है. यह उन्हें उत्साही बनाता है और उनकी उम्मीदों की सफलता के द्वार खोलने में मदद करता है. सकारात्मक सोच को बढा़कर उन्हें आशावादी बनाता है. यह उनकी भी सहायता करता है जो लम्बे समय से बदलाव चाहते हैं. यह बहुत से चक्रों को नियंत्रित करता है और बहुत से बन्द चक्रों को खोलने में सहायक होता है. यह अच्छी बातों का जीवन में विकास करता है. 

नीला एवेनच्यूरीन | Blue Aventurine

नीले रंग का यह उपरत्न पुरुष तथा स्त्री दोनों के लिए लाभदायक होता है. यह शारीरिक क्षमता को दुरुस्त रखता है. जीवनी – शक्ति का विकास करता है. यह व्यक्ति के आज्ञा चक्र को खोलने में सहायता करता है. यह शरीर के संचार तंत्र को सुचारु रुप से चलाने के लिए उसे नियंत्रित करता है. रुकावटों को दूर करता है. यह शरीर को सभी प्रकार से ऊर्जा देने में सक्रिय रुप से कार्य करता है. यह धारणकर्त्ता की भावनाओं को भी नियंत्रित करता है. यह उदासी तथा शक्तिहीनता से जातक का बचाव करता है और धारणकर्त्ता के जीवन में खुशी का संचार करता है.

हल्का पीला एवेनच्यूरीन | Peach Aventurine

हल्के पीले रंग में इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति का शर्मीलापन दूर होता है. वह अपनी बात को दूसरों के समक्ष कहने से झिझकता नहीं है. जो व्यक्ति जरा-जरा सी बात पर घबरा जाते हैं उनके लिए यह उपरत्न उपयोगी है. यह स्वयं की समालोचना करने में सहायक होता है. यह शांतिपूर्ण तरीके से ध्यान लगाने में सहायक होता है.

हरा एवेनच्यूरीन | Green Aventurine

हरे रंग का एवेनच्यूरीन नए-नए आईडिया और सपनों को बढा़वा देता है. यह व्यक्ति की दृढ़ इच्छा शक्ति का पूर्ण रुप से विकास करता है और यह निर्णय लेने में मदद करता है कि कैसे खुश रहा जा सकता है. चिकित्सा पद्धति में यह उपरत्न बहुत महत्व रखता है. हरे रंग के इस उपरत्न को दिल, आँखें तथा तनाव संबंधी परेशानियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस उपरत्न को गले में पहना जा सकता है. इस उपरत्न को सुविधानुसार किसी भी रुप में धारण किया जा सकता है. गंभीर समस्याओं के निदान के लिए इस उपरत्न को पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. पारदर्शी एवेनच्यूरीन सबसे अधिक शक्तिशाली माना जाता है. इस उपरत्न को प्रतिदिन साफ करना चाहिए. धूप से इसे बचाकर रखना चाहिए अन्यथा यह उपरत्न अपनी चमक खो देगा.   

एवेनच्यूरीन के अदभुत तथा चिकित्सीय गुण |  Amazing And Healing Abilities Of Aventurine

इस उपरत्न को धारण करने से कमर दर्द से छुटकारा मिलता है. जिन्हें बार-बार शारीरिक अंगों में चोट लगती है उनके लिए इसे धारण करना उचित है. यह जोड़ों के दर्द से निजात दिलाता है. बुखार से व्यक्ति का बचाव करता है. इस उपरत्न से लाभ उठाने के लिए इसका एक टुकडा़ नहाने के बर्तन में डाल देना चाहिए और फिर उस पानी से स्नान करना चाहिए. फेफडों का रोगों से बचाव करता है. शरीर के उत्तकों की टूट – फूट को नियंत्रित करता है. तंत्रिका तंत्र का सही संचालन करता है. त्वचा विकार होने पर इस उपरत्न को धारण करना चाहिए.

कई विद्वानों का मत है कि इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति में कामेच्छा की वृद्धि होती है. व्यक्ति के अंदर अकारण समाए डर का अंत होता है. रक्त का संचार सुचारु रुप से करता है. यह आत्मविश्वास को बढा़ता है. व्यक्ति को सौहार्द का वातावरण बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है और उसे सकारात्मक रुख अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह उपरत्न प्रार्थना तथा ध्यान के लिए उपयोगी है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Aventurine

इसे पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Aventurine

इस उपरत्न को सूर्य, बृहस्पति, मंगल, राहु,केतु के रत्नों और उपरत्नों के साथ धारण नहीं करना चाहिए.

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चर दशा की गणना | Calculation of Char Dasha

सबसे पहले आप यह निर्धारित करें कि चर दशा का क्रम सव्य है अथवा अपसव्य है. चर दशा के क्रम के विषय में पिछले अध्याय में आपको जानकारी दी गई है. चर दशा के क्रम की गणना, राशि दशा से भिन्न है. राशि दशा की गणना में भी छ: राशियों की गणना का क्रम सीधा अर्थात सव्य होता है और अन्य छ: राशियों की दशा का क्रम विपरीत होता अर्थात अपसव्य होता है. 

सव्य क्रम की गणना | Calculation of clockwise order

मेष, वृष, मिथुन, तुला, वृश्चिक तथा धनु राशि की गणना का क्रम सव्य होता है. माना वृष राशि की दशा आरम्भ होने वाली है तब वृष राशि की महादशा की गणना का क्रम तो अपसव्य होगा अर्थात वृष राशि के बाद मेष राशि की दशा आएगी. मेष राशि के बाद मीन राशि की दशा आरम्भ होगी और बाकी सभी दशाएँ क्रम से आरम्भ होगी जैसा कि पिछले अध्याय में बताया गया था. 

वृष राशि की महादशा के वर्ष कितने होगें इसका निर्धारण करने के लिए वृष राशि से सीधे क्रम में गिनती आरम्भ करेगें और वृष राशि का स्वामी शुक्र जहाँ स्थित होगा वहाँ तक गिनेगें. माना शुक्र वृश्चिक राशि में स्थित है. तब वृष राशि अर्थात 2 संख्या से वृश्चिक राशि अर्थात 8 संख्या तक गिनती आरम्भ करेगें. वृष से वृश्चिक तक सीधी गिनती करने पर आठ अंक प्राप्त होता है. अब आठ में से एक वर्ष घटा दें. एक घटाने पर सात वर्ष प्राप्त होते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि वृष राशि की सात वर्ष की दशा होगी. 

चर दशा में राशियों का दशाक्रम सुनिश्चित नहीं होता है इसलिए दशा वर्ष भिन्न होते हैं. आप एक बार फिर ध्यान दें कि मेष, वृष, मिथुन, तुला, वृश्चिक तथा धनु राशि के दशा वर्ष निर्धारित करने के लिए राशि से राशि के ग्रह स्वामी तक गिनती का क्रम सीधा होगा. जितने वर्ष आएंगें उसमें से एक अवश्य घटाना होगा. 

अपसव्य क्रम की गणना | Calculation of an anti-clockwise order

कर्क, सिंह, कन्या, मकर, कुम्भ तथा मीन राशि की दशा का क्रम अपसव्य होगा. माना कन्या राशि की दशा आरम्भ होने वाली है. कन्या राशि का स्वामी बुध, मकर राशि में स्थित है. अब कन्या से मकर तक गिनती करें. कन्या राशि से मकर राशि तक अपसव्य अर्थात उलटे क्रम में गिनती करें. कन्या से सिंह राशि की ओर गणना का क्रम होगा. कन्या से मकर राशि तक गणना करने पर नौ वर्ष की अवधि प्राप्त होती है. नौ में से एक घटाने पर आठ वर्ष प्राप्त होते हैं. इस प्रकार कन्या राशि की दशा आठ वर्ष तक चलेगी. 

विशेष | Points to be Remembered

चर दशा की गणना सव्य हो अथवा अपसव्य हो दोनों ही स्थिति में जितने दशा वर्ष प्राप्त होगें उसमें से एक वर्ष घटाना अनिवार्य है. राशि से राशि स्वामी तक नियमानुसार गिनती करनी है. जैमिनी चर दशा में वृश्चिक राशि तथा कुम्भ राशि की गणना का नियम भिन्न है. इसके विषय में आपको अगले अध्याय में बताया जाएगा. जैमिनी की चर दशा में वृश्चिक राशि का स्वामित्व दो ग्रहों के पास है. वह दो ग्रह हैं – मंगल और केतु. इसी प्रकार कुम्भ राशि के स्वामी भी दो ग्रह हैं – राहु तथा शनि ग्रह. 

यदि किसी राशि का स्वामी ग्रह अपनी ही राशि में स्थित है तब उस राशि की पूरे बारह वर्ष की दशा होगी तब एक वर्ष को घटाया नहीं जाएगा. 

अन्तर्दशा | Antardasha

जैमिनी चर दशा में अन्तर्दशाओं का क्रम महादशा क्रम के अनुसार होगा. यदि महादशा क्रम सव्य है तो अन्तर्दशा क्रम भी सव्य होगा. यदि महादशा क्रम अपसव्य है तो अन्तर्दशा क्रम भी अपसव्य होगा. अन्तर्दशा की अवधि महादशा के वर्ष की अवधि के अनुसार होगी. यदि महादशा एक वर्ष की है तो सभी बारह राशियों की अन्तर्दशा एक-एक महीने की होगी. यदि महादशा दो वर्ष की है तब सभी बारह राशियों की अन्तर्दशा दो-दो महीने की होगी. यदि महादशा बारह वर्षों की है तो सभी बारह राशियों की अन्तर्दशा बारह-बारह महीनों की होगी अर्थात प्रत्येक राशि की अन्तर्दशा एक वर्ष की होगी. 

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