क्या मोती रत्न मेरे लिये अनुकुल रहेगा? | Will Pearl Stone be Favourable for me? (Which Stone should I wear)

चन्द्र रत्न मोती मुक्ता, मोक्तिम, इंदुरत्न, शाईरत्न आदि कई नामों से जाना जाता है (Pearl is known by different names like: Mukta; Moktim, Shairatna, etc,). मोती रत्न के स्वामी चन्द्र है. इस रत्न को अपने लग्न अनुसार धारण किया जाये तो यह रत्न व्यक्ति को माता सुख, मन, यश, बुद्धि, संपति ओर राज ऎश्वर्य आदि देता है. मोती को मुक्तारत्न के नाम से भी जाना जाता है. मोती रत्न के विषय में एक मान्यता है, कि इस रत्न को जो भी व्यक्ति धारण करता है, उसे लक्ष्मी, लावण्य, वैभव, प्रतिष्ठा और गुरु की प्राप्ति होती है. 

मोती रत्न कौन धारण करें? Who should wear Pearl Stone?

मोती चन्द्र का रत्न है. और ग्रहों में चन्द्र को मन का स्वामी बनाया गया है. 12 लग्नों के लिये चन्द्र रत्न मोती धारण करना निम्न रुप से शुभ या अशुभ रहता है. मोती हो या कोई अन्य रत्न व्यक्ति को अपने लग्न की जांच कराने के बाद ही कोई रत्न धारण करना सर्वथा अनुकुल रहता है. आईए अलग-अलग लग्नों के लिये मोती को धारण करने के फल जानने का प्रयास करते है.  

मेष लग्न-मोती रत्न  Effect of Moti Ratna on Aries Lagna

मेष लग्न के लिये चन्द्र चतुर्थ भाव के स्वामी है. इसके साथ ही ये लग्नेश मंगल के मित्र भी है. इसीलिए मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये ये विशेष रुप से शुभ हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को मानसिक शान्ति, मातृ्सुख, विधा प्राप्ति के लिये मोती रत्न धारण करना चाहिए. 

वृषभ लग्न-मोती रत्न Impact of Moti Ratna on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न के लिये चन्द्र तीसरे भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न कदापि नहीं पहना चाहिए.   

मिथुन लग्न-मोती रत्न Influence of Pearl on Gemini Ascendant

मिथुन लग्न के व्यक्तियों के लिये चन्द्र दुसरे भाव यानि धन भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न केवल चन्द्र महादशा / अन्तर्दशा में ही धारण करना चाहिए. दूसरे भाव को मारकेश भी कहा जाता है. इसलिये जहां तक संभव हो इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न धारण करने से बचना चाहिए. 

कर्क लग्न-मोती रत्न Pearl Stone on Cancer Lagna

इस लग्न के लिये चन्द्र लग्नेश होकर सर्वथा शुभ हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को मोती धारण करने से स्वास्थय सुख की प्राप्ति होगी. आयु बढेगी. 

सिंह लग्न-मोती रत्न Moti Ratna – Effect on Leo Ascendant

सिंह लग्न में चन्द्र बारहवें भाव के स्वामी है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों के लिये मोती धारण करना अनुकुल नहीं है. 

कन्या लग्न-मोती रत्न Moti Ratna – Impact on Virgo Lagna

इस लग्न में कर्क राशि एकादश भाव की राशि बनती है. कर्क राशि स्वामी चन्द्र का रत्न मोती कन्या लग्न के व्यक्तियों को केवल चन्द्र महादशा और अन्तर्दशा में ही धारण करना चाहिए. क्योकि चन्द्र और लग्नेश बुध दोनों सम संबन्ध रखते है. 

तुला लग्न-मोती रत्न  Significance of Wearing Pearl Stone by Libra Ascendant Person

तुला लग्न के व्यक्तियों को मोती रत्न धारण करने से यश, मान-धर्म, पितृ्सुख और धर्म कार्यो में रुचि देता है. 

वृश्चिक लग्न-मोती रत्न Impact of Moti on Scorpio Lagna

इस लग्न के लिये चन्द्र नवम भाव के स्वामी है. नवम भाव भाग्य भाव है. इसलिये वृ्श्चिक लग्न के लिये मोती सभी रत्नों में सर्वश्रेष्ठ फलकारी रहते है.   

धनु लग्न-मोती रत्न Effect of Moti Ratna on Sagittarius Ascendant

इस लग्न के लिये ये अष्टम भाव के स्वामी है. धनु लग्न के व्यक्ति मोती रत्न कभी भी धारण न करें. 

मकर लग्न-मोती रत्न Impact of Moti Ratna for Capricorn Ascendant 

मकर लग्न के लिये चन्द्र सप्तम भाव है. सप्तम भाव भी मारक भाव है. इस स्थिति में मोती रत्न विशेष परिस्थितियों में ही धारण करना चाहिए. ऎसे में इस रत्न को चन्द्र महादशा में धारण करना चाहिए. जहां तक संभव हो, इस लग्न के लिये नीलम रत्न ही धारण करना चाहिए.  

कुम्भ लग्न-मोती रत्न Pearl – Its Effect of Aquarius Sign

कुम्भ लग्न के लिये चन्द्र छठे भाव के स्वामी है. कुम्भ लग्न के व्यक्ति मोती रत्न कभी भी धारण न करें.  

मीन लग्न-मोती रत्न Impact of Pearl on Pisces Lagna

मीन लग्न के लिये चन्द्र त्रिकोण भाव के स्वामी है. यह भाव शुभ है. इसलिये इस भाव का रत्न धारण करना शुभ रहेगा. इसे धारण करने से व्यक्ति को संतान, विद्धा, बुद्धि का लाभ देते है. 

मोती रत्न के साथ क्या पहने ?What Should I Wear with Pearl Stone

मोती रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में माणिक्य, मूंगा और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है. 

मोती रत्न के साथ क्या न पहने? What Should I not Wear with Moti Ratna

मोती रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मोती रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

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एमेट्राइन उपरत्न । Ametrine Gemstone – Ametrine Meaning

एमेट्राईन उपरत्न में अमेथिस्ट और सिट्रीन दोनों के गुणों का समावेश माना जाता है. यह बहुत ही दुर्लभ तथा असामान्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न पूरे विश्व में बोलिविया के जंगल में “अनाही” की खदानों में पाया जाता है. ऎसा माना जाता है कि इस उपरत्न के खान की खोज 17वीं शताब्दी में हुई थी. बोलिविया की सरकार ने तब इस स्थान को आरक्षित घोषित कर दिया था और इस स्थान में प्रवेश करने के लिए जंगल बनाया गया. यह उपरत्न 1989 से ब्राजील के बाजारों में बेचा जाने लगा है. इस उपरत्न में दो रंगों का मिश्रण होता है :- जामुनी और पीला. यह एक नया उपरत्न है. इसके साथ किसी प्रकार का पुराना इतिहास नहीं जुडा़ है. वर्तमान समय में इसका संबंध आध्यात्मिकता के साथ भी जोडा़ गया है.

एमेट्राइन के गुण और अर्थ | Meaning And Qualities Of Ametrine Gemstone

इस उपरत्न में एमेथिस्ट तथा सिट्रीन के कुछ गुण मौजूद होते हैं. यह भाग्य को उन्नत बनाने में मदद करता है. धारणकर्त्ता जीवन में सफलताओं को हासिल करता है. व्यक्ति के भीतर उम्मीद की किरण को जलाए रखता है. आशावादी बनाने में मदद करता है. शरीर के आंतरिक उत्तकों को साफ रखने में सहायक होता है. चयापचय(Metabolism) प्रणाली को सुचारु रुप से काम करने में सहायक होता है. धारणकर्त्ता के आंतरिक अंगों में सामंजस्य स्थापित करने में मदद करता है.

यह उपरत्न एक उपकरण के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है जिससे व्यक्ति को ध्यान लगाने में प्रोत्साहन मिल सकता है. यह तनाव को दूर करता है. नकारात्मकता को दूर करने में सहायक होता है. प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली शक्तियों का दमन करता है. आंतरिक शक्तियों का विकास करता है. धारणकर्त्ता को मानसिक अवसाद से मुक्ति दिलाता है और  आंतरिक सुख तथा शांति में वृद्धि करता है. यह व्यक्ति का आर्थिक रुप से भी विकास करता है.

एमेट्राइन के चमत्कारी गुण | Magical Qualities Of Ametrine Upratna

इस उपरत्न में कुछ चिकित्सीय गुण भी पाए जाते हैं. आक्सीजन को अवशोषित करने की प्रणाली को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. तंत्रिका तंत्र प्रणाली तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को सुचारु रुप से नियंत्रित करता है. यह धारणकर्त्ता के अंदर रचनात्मकता क विकास करता है. शारीरिक तनाव को दूर करता है. शारीर के अवरुद्ध चक्रों को खोलने में मदद करता है. मन-मस्तिष्क को एकाग्रचित्त करने में सहायक होता है. उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है. त्वचा के विकारों को दूर करता है.

यह उपरत्न मस्तिष्क से पुराने विचारों को खतम करके उसमें नई विचारधारा का लयबद्ध तरीके से विकास करता है. यह उपरत्न शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के साथ व्यक्ति का रुझान आध्यात्मिकता की ओर भी बढा़ता है. जो व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम करते हैं उनके काम करने की गति को नियंत्रित करता है और उन्हें उनके श्रम का आनंद दिलाने में प्रोत्साहित करता है. कार्य पूर्ण करके लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को पूर्ण करने में सहायक होता है. धारणकर्त्ता को काल्पनिकता के धरातल से व्यवहारिक बनाने में सहायक होता है. व्यक्ति विशेष के भीतर के डर को समाप्त करता है और भीतर छिपे निडर व्यक्ति का विकास करता है. विचारों तथा योजनाओं को सही ढ़ंग से कार्यान्वित करने में सहायक होता है. 

एमेट्राइन कौन धारण करे | Who Should Wear Ametrine Upratna

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं परन्तु कई विद्वान इस उपरत्न के गुणों को देखकर इसमें बृहस्पति तथा बुध का मिश्रण मानते हैं. जिनकी कुण्डली में बृहस्पति अथवा बुध अच्छे भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

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प्रश्न की पहचान | Identitification of Prashna | Dhatu Chinta | Dhatu Chinta | Jeeb Chinta

प्रश्न कुण्डली में प्रश्न की पहचान होनी चाहिए. जिससे यह अंदाज हो सके कि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न किस विषय से संबंधित है. पुराने तरीके में प्रश्न को तीन भागों में बाँटा जाता था. वह निम्नलिखित हैं :-

(1) धातु चिन्ता | Dhatu Chinta

इसमें धातु से संबंधित प्रश्न आते हैं. जैसे सोना, चाँदी तथा अन्य कोई कीमती वस्तु जो गुम हो गई हो. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में 1, 4, 7, 10 राशि आती हैं तब जातक को धातु से संबंधित चिन्ता होगी.

(2) मूल चिन्ता | Mool Chinta

इसमें कृषि संबंधित, परीक्षा संबंधी, व्यवसाय से संबंधित, बुद्धि – कौशल पर आधारित प्रश्न किए जाते हैं. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में  2, 5, 8, 11 राशि आते हैं तब प्रश्नकर्त्ता को मूल चिन्ता हो सकती है.

(3) जीव चिन्ता | Jeeb Chinta

इस वर्ग में जीवित प्राणियों से संबंधित प्रश्नों का आंकलन किया जाता है. मनुष्य, पशु-पक्षी तथा अन्य प्राणी आदि. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में 3, 6, 9, 12 राशि आते हैं तब प्रश्नकर्त्ता को जीव चिन्ता हो सकती है.

ग्रहों को भी तीन भागों में बाँटा गया है. इनसे भी धातु, मूल तथा जीव चिन्ता का आंकलन किया जाता है. लेकिन ग्रहों धातु,मूल तथा जीव चिन्ता में बाँटने में मतान्तर है.

पहला मत | First Opinion 

सूर्य, मंगल, राहु तथा केतु से धातु चिन्ता देखी जाती है. शनि तथा बुध से मूल चिन्ता देखते हैं. चन्द्रमा, बृहस्पति तथा शुक्र से जीव चिन्ता देखते हैं.

दूसरा मत | Second Openion

शनि, मंगल, राहु तथा केतु से धातु चिन्ता, सूर्य तथा शुक्र से मूल चिन्ता, बृहस्पति, बुध तथा चन्द्र से जीव चिन्ता देखते हैं.

तीसरा मत | Third Openion

तीसरे मत के विद्वानों के अनुसार जिस चिन्ता से संबंधित लग्न हो, उससे ही संबंधित ग्रह भी देख रहें हों तो उससे संबंधित चिन्ता होगी. उदाहरण के लिए धातु संबंधी लग्न और धातु संबंधी ग्रह लग्न को देखे तो धातु चिन्ता होगी.

जीव संबंधी लग्न और जीव संबंधी ग्रह देखें तो जीव संबंधी चिन्ता होगी.

मूल संबंधी लग्न और मूल संबंधी ग्रह लग्न को देखें तो मूल चिन्ता होगी.

उपरोक्त नियमों के अतिरिक्त अन्य कई और नियम प्रश्न की पहचान के लिए बनाए गए हैं. लग्न में विषम राशि के नवाँश के अनुसार अलग चिन्ता होगी और सम राशि के नवाँश के अनुसार अलग चिन्ता होगी. आइए पहले विषम राशि के नवाँश को देखें.

विषम लग्न का पहला नवाँश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न का दूसरा नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में तीसरा नवाँश है तो जीव चिन्ता

विषम लग्न में चौथा नवांश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न में पांचवाँ नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में छठा नवांश है तो जीव चिन्ता

विषम लग्न में सातवाँ नवाँश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न में आठवाँ नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में नवम नवाँश है तो जीव चिन्ता

 

उपरोक्त क्रम सम राशियों में उलटा हो जाएगा.

 

सम लग्न का पहला नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न का दूसरा नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में तीसरा नवाँश है तो धातु चिन्ता

सम लग्न में चौथा नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न में पांचवां नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में छठा नवाँश है तो धातु चिन्ता

सम लग्न में सातवाँ नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न में आठवां नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में नवम नवाँश है तो धातु चिन्ता

उपरोक्त चिन्ताओं को नक्षत्रों के अनुसार भी देख सकते हैं. अश्विनी नक्षत्र से गणना शुरु करके क्रम से धातु, मूल, जीव चिन्ता होती है. जैसे अश्विनी नक्षत्र है तो धातु चिन्ता, भरणी नक्षत्र है तो मूल चिन्ता, कृतिका नक्षत्र है तो जीव चिन्ता होती है. बाकी सभी नक्षत्रों को भी ऎसे ही क्रम से बाँटेगें.

उपरोक्त विभाजन के अनुसार प्रश्नकर्त्ता की अन्य कई भाव-भंगिमाओं के अनुसार भी धातु, मूल तथा जीव चिन्ता का विभाजन किया जाता है. जैसे यदि प्रश्नकर्त्ता प्रश्न के समय ऊपर की ओर देखता है तो जीव चिन्ता होगी. नीचे की ओर देखता है तो मूल चिन्ता होगी. सामने की ओर देखता है तो धातु चिन्ता होगी.

इसके अतिरिक्त प्रश्नकर्त्ता, प्रश्न के समय यदि ऊपरी अंगों को छुए तो जीव चिन्ता, मध्य के अंगों को छुए तो धतु चिन्ता होगी. नीचे के अंगों को छुए तो मूल चिन्ता होगी.

अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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एकादशी तिथि

एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है. एक चन्द्र मास मे 30 दिन होते है. साथ ही एक चन्द्र मास दो पक्षों से मिलकर बना होता है. दोनों ही पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी तिथि कहलाती है. सभी तिथियों की तुलना में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है.

एकादशी तिथि व्रत महत्व

चन्द्र मास के दोनों पक्षों में पडने वाली एकादशियों का व्रत पालन करना विशेष रुप से कल्याणकारी माना गया है. एकादशी तिथि के दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है. एकादशी तिथि के दिन स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से 1000 अश्वमेधादि यज्ञ करने के समान पुन्य प्राप्त होता है. एकादशी तिथि नन्दा तिथियों में से एक है.

एकादशी तिथि के संदर्भ में कुछ पौराणिक आख्यान भी मौजूद हैं. इनमें हमें एकादशी तिथि के महत्व एवं उसकी कथा के संदर्भ में बहुत सी बातें पता चलती हैं. एकादशी तिथि के विषय में भागवत में भी विचार मिलता है.एकादशी तिथि का व्रत करने पर व्यक्ति मोक्ष को पाता है. एकादशी तिथि के दिन तामसिक भोजन, मांस, मदिरा व चावल का सेवन नही करना चाहिए. प्रत्येक मास की एकादशी के दिन व्रत का पालन करने से जीवन के कष्टों एवं व्यवधानों से मुक्ति मिलती है.

एकादशी तिथि वार योग

एकादशी तिथि किसी पक्ष में सोमवार के दिन होने पर क्रकच योग तथा दग्ध योग बनाती है. ये दोनो योग शुभ कार्यों में वर्जित माने जाते है. यह माना जाता है. कि एकादशी तिथि गुरु ग्रह की जन्म तिथि है. एक वर्ष में 24 एकादशियां आती है. जिस वर्ष में अधिक मास होता है, उस वर्ष में 26 एकादशी

एकादशी तिथि में जन्मा जातक

एकादशी तिथि में जन्मा जातक उदार हृदय का होता है. वह दूसरों प्रति प्रेम भाव और सहयोग रखेगा. जातक में चालाकी की सक्षमता होती है. आर्थिक रुप से संपन्न होता है. गुरु और वरिष्ठ लोगों के प्रति सदभाव की भावना रखने वाला होता है. धार्मिक कार्यों को करने वाला और आध्यात्मिक पक्ष से मजबूत होते हैं. कला क्षेत्र में रुचि रखने वाले होते हैं. संतान का सुख पाने वाले और न्याय के मार्ग पर चलने वाले होते हैं.

व्यक्ति में कूटनिति की कला भी होती है. कार्य को किस प्रकार आगे बढ़ना है इस बात को अच्छी तरह से जानने वाले होते हैं. अपने साथ सब का हित हो इस बात को लेकर चलने वाले होते हैं.

एकादशी तिथि में किए जाने वाले काम

  • एकादशी तिथि के दिन विवाह इत्यादि शुभ काम किए जा सकते हैं.
  • देव प्रतिष्ठा करना, देव उत्सव मनाने के काम इस तिथि में किए जा सकते हैं.
  • कलात्मक कार्य जैसे चित्रकारी करना.
  • इस तिथि के दिन यात्रा करना भी शुभ होता है.
  • गृह का निर्माण काम करना.
  • नए घर में प्रवेश करना.
  • व्रत-उपवास करना शुभ होते हैं.
  • गरीबों को भोजन इत्यादि खिलाना शुभ होता है.
  • कुछ महत्वपूर्ण एकादशी

    बारह माह के दौरान आने वाली कुछ एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है. इन एकादशी में कुछ का नाम यहां दिया जा रहा है जो इस प्रकार से हैं.

    पुत्रदा एकादशी –

    यह एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. संतान प्राप्ति के लिए इस एकाद्शी का बहुत मह्त्व होता है. इस एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और उसके संतान के सुखद भविष्य की कामना के लिए किया जाता है.

    निर्जला एकादशी –

    ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. यह एकादशी बहुत ही शुभ मानी जाती है. इस एकादशी का व्रत को करने से व्यक्ति को लम्बी आयु का वरदान मिलता है. मोक्ष और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने के लिए निर्जल और निराहार रह कर किया जाता है.

    हरिशयन एकादशी –

    इस एकादशी का महत्व विष्णु भगवान के सोने के साथ ही आरंभ होता है. इस एकादशी के साथ ही चतुर्मास का आरंभ हो जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु शयन अवस्था को अपनाते है. इसी कारण ये एकादशी हरिशयन एकादशी कहलाती है.

    हरिप्रबोधनी एकादशी –

    विष्णु भगवान के चार माह के के उपरांत भगवान जब उठते हैं तो उस दिन को हरिप्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन से सभी शुभ विवाह इत्यादि मांगलिक कार्यों का आयोजन शुरु हो जाता है.

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    रोडोक्रोसाईट उपरत्न | Rhodochrosite Gemstone Meaning | Rhodochrosite – Metaphysical, Healing Properties

    यह उपरत्न वैसे तो कई विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है परन्तु गहनों के रुप में या सजावटी तौर से उपयोग में लाया जाने वाले शुद्ध रुप में इसकी आपूर्त्ति कम ही है. यह उपरत्न अपने विभिन्न प्रकार के रंगों  तथा अदभुत गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है. इस उपरत्न का गुलाबी रंग लोगों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रह पाता है. यह उपरत्न खानों से कैल्साईट(calcite) तथा सिडेराईट(siderite) के साथ पाया जाता है. इस उपरत्न में बैण्ड भी बने होते हैं. अकसर यह उपरत्न स्टैलेक्टाईट्स(stalactites) रुप में भी पाया जाता है. यह छोटे मणिभ(Crystals) आकारों में भी उपलब्ध होता है. 

    रोडोक्रोसाईट का यह नाम ग्रीक शब्द से उत्पन्न हुआ है. जिसका अर्थ गुलाबी रंग है या गुलाब जैसे रंग वाला है. इसलिए इसे “रोज उपरत्न” भी कहा जाता है. ग्रीक में Rhodon का अर्थ गुलाब है. Chroma का अर्थ रंग है. रोडोक्रोसाइट का गुलाबी रंग इसमें मौजूद मैंगनीज के कारण होता है. “इन्का” लोगों का मानना है कि रोडोक्रोसाईट उपरत्न, उनके पूर्व समय के राजा और रानियों के खून से बना उपरत्न है. (elcapitalino.mx)

    यह उपरत्न अनाहत चक्र तथा मनीपूरक चक्रों को नियंत्रित करता है. इस उपरत्न का अग्नि तथा वायु तत्व है.

    रंग | Color Of Rhodochrosite Gemstone

    यह उपरत्न मुख्य रुप से गुलाबी रंग में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न सफेद रंग में भी पाया जाता है. बैन्ड में पाया जाने वाला यह उपरत्न पारभासी से अपारदर्शी होता है और गुलाबी, सफेद, ग्रे तथा भूरे रंग में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त लाल, गुलाबी, नारंगी रंग में यह पारभासी रुप में पाया जाता है. कई बार यह ग्रे रंग में पीलेपन की आभा लिए हुए भी मिलता है.

    रोडोक्रोसाईट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Rhodochrosite

    यह उपरत्न गुणों की खान है. यह ऊर्जा का अच्छा सुचालक है. गुलाबी रंग का यह उपरत्न दिल से संबंधित परेशानियों से राहत दिलाता है. मन में प्यार और करुणा के भावों को जागृत करता है. रचनात्मक गतिविधियों को बढा़कर जातक को लाभ प्रदान करता है. अन्तर्दृष्टि में वृद्धि करता है. कहा जाता है कि धारणकर्त्ता के शरीर, आत्मा तथा भावनाओं का एक-दूसरे से सीधा सम्पर्क हो जाता है. इस उपरत्न में उत्साह बढा़ने की शक्ति है और यह जातक को शांत भी रखता है. विद्वानों का मानना है कि इस उपरत्न को धारण करने से खोये प्यार की पुन: प्राप्ति हो जाती है.

    रोडोक्रोसाईट खनिज संतुलन तथा प्यार का प्रतीक माना जाता है. यह व्यक्ति के खोये आत्म-विश्वास को जगाने का काम करता है. शरीर की क्रियाओं तथा आत्मा को नियंत्रित करता है. यह ब्रह्माण्ड की सबसे शक्तिशाली ऊर्जा का उत्सर्जन करता है, जो प्यार की शक्ति के रुप में फैली है. यह उपरत्न व्यक्ति को व्यवहारिकता के नजदीक लाता है. जातक को समाज के कर्त्तव्यों के प्रति अवगत तथा सचेत कराता है. व्यक्ति अपने बारे में ना सोचकर सभी के बारे में एक समान सोच रखता है. नई-नई जानकारियाँ जातक को प्राप्त कराने में मदद करता है.

    यह उपरत्न अहसास दिलाता है कि व्यक्ति की जिम्मेवारियाँ बोझ नहीं है अपितु इन जिम्मेवारियों को निभाने में भी एक प्रकार का मजा तथा खुशी मिलती है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के भीतर ऊर्जा का विकास करता है. प्यार तथा रिश्तों को बनाए रखने के लिए उत्कृष्ट उपरत्न है. जीवन में और अधिक जुनून तथा इच्छाओं की वृद्धि करता है. यह उपरत्न आत्म चिकित्सा के लिए उपयुक्त उपरत्न है. यह मजबूत तथा प्रमाणिक आत्म खुलासे का समर्थन करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को दर्द तथा दमित यादों से उबरने में मदद करता है. उन्हें नये जीवन में प्रवेश के लिए प्रेरित करता है.

    यह उपरत्न अकेलेपन को दूर करता है. जातक को किसी प्रकार की हानि नहीं होने देता. डर से छुटकारा दिलाता है. असुरक्षा की भावना को समाप्त करता है. धारणकर्त्ता के ऊपर शोषण तथा अत्याचार होने से रोकता है. व्यक्ति में क्षमा की भावना का विकास करता है. विश्वास संबंधित मुद्दों को हल करने में सहायक होता है. आत्म प्यार तथा आध्यात्मिकता में वृद्धि करता है. जीने की इच्छा को जातक में जगाकर रखता है. जातक को उसके उद्देश्यों से भटकने नहीं देता.

    व्यक्ति के अस्तित्व को स्वीकारने तथा प्रेम भावनाओं को जागरुक करता है. संबंधों में शिथिलता नहीं आने देता. व्यक्ति में जीवन से जुडी़ समस्याओं को संभालने तथा उनसे जूझने की क्षमता का विकास करता है. जातक के व्यक्तिगत आत्म-विश्वास को बढा़ने में मदद करता है. यह उपरत्न व्यक्ति को ध्यान लगाने में सहायता करता है. इस उपरत्न को यदि गले में धारण किया जाए तो इसकी सकारात्मक ऊर्जा सीधा व्यक्ति के मस्तिष्क में जाएगी.  

    रोडोक्रोसाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Rhodochrosite Crystals

    यह उपरत्न शरीर के परिसंचरण तंत्र को सुचारु रुप से काम करने के लिए उत्तेजित करता है. रक्तचाप को नियंत्रित रखता है. गुर्दे संबंधी परेशानियों से बचाव करता है. प्रजनन अंगों को विकारों से दूर रखता है. पेट के विकारों को होने से रोकता है. धारणकर्त्ता को बुरे व्यसनों से दूर रखता है. आहार क्रिया को नियंत्रित रखता है. अस्थमा की रोकथाम करता है. रक्त, लीवर तथा कैंसर से बचाव करने में सहायक होता है.

    यह उपरत्न दिल की धड़कनों को नियंत्रित करता है. रक्तचाप को नियंत्रित करता है. यह माइग्रेन संबंधी बीमारियों से निजात दिलाता है. त्वचा रोगों को होने से रोकता है. थायराइड को असंतुलित होने से रोकता है. आँतों संबंधी समस्याओं को बढ़ने नहीं देता. परिसंचरण तंत्र को शुद्ध रखता है. आँखों से जुडी़ परेशानियों का निदान करता है. अग्नाश्य, गुर्दे तथा स्पलीन को ऊर्जा प्रदान करता है. जोड़ों के दर्द से मुक्ति प्रदान करता है. बन्द नाक खोलने में सहायक होता है.

    रोडोक्रोसाइट के मुख्य स्त्रोत | Sources Of Rhodochrosite

    यह उपरत्न विश्व के कई भागों में पाया जाता है. जिनमें से मुख्य देश कुछ ही हैं. वह देश हैं : अर्जेन्टीना, पेरु, कोलोरैडो, मोनटाना, अमेरीका, क्यूबेक, कनाडा, रोमानिया, हंगरी, दक्षिण अमेरीका, चिली, मेक्सिको, स्पेन, फ्राँस, रुस, जर्मनी, इटली, नामीबिया. सबसे अधिक मात्रा में यह उपरत्न अर्जेन्टीना में सैन लुइस में पाया जाता है.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Rhodochrosite

    इस उपरत्न को व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकता है. जिन्हें जो समस्या या विकार हैं उनके अनुसार इसे पहना जा सकता है.

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    वशिष्ठ सिद्धान्त- सिद्धान्त ज्योतिष – ज्योतिष इतिहास | Vashishtha Siddhanta ( Siddhanta Jyotish ) History of Astrology | Romaka Siddhanta

    भारत में ज्योतिष का प्रारम्भ कब से हुआ, यह कहना अति कठिन है. इसे प्रारम्भ करने वाले शास्त्री कौन से है. उनका उल्लेख स्पष्ट रुप से मिलता है. उनमें सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश, पौलिश,च्यवन, यवन, भृ्ग, शौनक, भारद्वाज प्रमुख है. 

    इन सभी शास्त्रियों के द्वारा लिखे गए, शास्त्र पूर्ण रुप में उपलब्ध नहीं है. जो प्रमाण है, भी वे भी खण्डित भागों में है. 

    वशिष्ठ सिद्वान्त वर्णन | Vashishtha Siddhanta Description

    वशिष्ठ सिद्धान्त शास्त्र सौर मण्डल में सूर्य और चन्द्रमा की गति का विवरण दिया गया है.   वशिष्ठ सिद्धान्त में मंगल, बुध, गुरु, शनि की गतियों को वर्णय किया गया है. यह शास्त्र यह बताने में भी समर्थ है कि इससे पूर्व व्यतीत हो चुके वर्षों में ग्रहों की गतियां क्या रही थी. तथा इन ग्रहों ने पिछले युगों में किस प्रकार भ्रमण किया है. 

    वशिष्ठ सिद्धान्त शास्त्र महत्व | Vashishtha Siddhanta Importance

    वशिष्ठ सिद्वान्त का पच्चसिद्वान्तिका में संक्षिप्त वर्णन किया गया है. इस सिद्वान्त शास्त्र में ग्रहों की गति के अलावा राशियों का उल्लेख भी किया गया है. यह सिद्वान्त शास्त्र पितामह सिद्धान्त के समान होने पर भी उससे कई स्तर में शुद्ध सिद्धान्त शास्त्र है. पितामह सिद्वान्त की तरह विशिष्ठ सिद्वान्त में भी माना गया है, कि जब दिन बढता है, तो प्रतिदिन बराबर वृ्द्धि होती है. 

    वशिष्ठ सिद्वान्त अन्य शास्त्रों से तुलना | Comparison of Vashishta Siddhanta with other Scriptures

    इसके अलावा वशिष्ठ सिद्धान्त लग्न का भी वर्णन करता है. जिससे पता चलता है, कि सूर्य का कौन सा भाग पूर्वी क्षितिज में उदित हुआ है. लेकिन उस समय के शास्त्रियों को सूर्य व चन्द्र की मध्य व स्पष्ट गतियों का अन्तर का ज्ञान नहीं था. वर्तमान में प्रयोग में लाने जाने वाले वशिष्ठ सिद्धान्त का वराहमिहीर के समय में उपलब्ध वशिष्ठ सिद्वान्त से कोई सम्बन्ध नहीं है. 

    यह माना जाता है, कि वशिष्ठ सिद्वान्त, पितामह सिद्धान्त से अधिक विकसित था. किन्तु यह सूर्य सिद्वान्त से कम स्तर का था. 

    रोमक सिद्वान्त

    प्राचीन काल में ज्योतिष अपने सर्वोत्तम स्तर पर था. मध्य काल में इस विद्या के शास्त्रों को न संभाल पाने के कारण उस समय के सही प्रमाण हमारे पास आज पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं है. उस समय के के शास्त्री ग्रहों कि गति, कालों आकलन आदि करना बखूबी जानते थे. 

    उस समय के गणित नियमों को सिद्धान्तों का नाम दिया गया. सिद्धान्त ज्योतिष में अनेका आचार्यों ने अनेक ग्रन्थ लिखें. इन्हीं में से कुछ शास्त्र सूर्य सिद्धान्त, पराशर सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्वान्त आदि है. इसी में से एक रोमक सिद्धान्त पर आज हम प्रकाश डालेंगें.    

    रोमक सिद्धान्त क्या है. | What is Romaka Siddhanta 

    यह प्राचीन् काल का गणितीय सिद्धान्त शास्त्र है. यह शास्त्र यमन ज्योतिष के नियमों पर आधारित है. यमन ज्योतिष मुख्यत: यूनान, मिश्र आदि देशों में विशेष रुप से प्रचलित था. 

    रोमक सिद्धान्त शास्त्र में क्या है. | Romaka Siddhanta Scripture

    रोमक सिद्वान्त में सूर्य व चन्द्र के बारे में आंकडे दिए गये है. इसके अतिरिक्त यह शास्त्र अधिक मास, क्षय मास, तिथि और क्षय तिथि का विस्तार से वर्णन् किया गया है. 

    बेबीलोन के निवासी ग्रहों में पांच ग्रह देवताओं का पूजन करते थें. ये पांच ग्रह बुध, शुक्र, मंगल, गुरु  व शनि ग्रह थे. इन्हीं सभी ग्रहों की पूजा का वर्णन रोमक सिद्धान्त में भी मिलता है.  

    रोमक सिद्धान्त लोमश सिद्धान्त का ही अपभ्रन्श रुप है, प्राचीन शास्त्रों में रोग देश के नागरिको के लिए रोमक शब्द प्रयुक्त किया गया है.  यह शास्त्र ज्योतिष की गणना से जुडे प्रमुख सिद्धान्त शास्त्रों में से एक है. इस सिद्धान्त का जन्म रोमण से होने के कारण इसे रोमक सिद्धान्त का नाम  दिया गया.  

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    तिथियों में किए जाने वाले कार्य | Activities Related to Tithis | Meaning of Tithis

    तिथियों के बिना कोई भी मुहुर्त नहीं होता है. ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अलग-अलग तिथियों के अनुसार विभिन्न कार्य किए जाते हैं. सभी कार्यों का मुहुर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है. 

    कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि | Pratipada Tithi Of Krishna Paksha

    इस तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, सीमन्तोनयन संस्कार, चौलकर्म, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है. 

    शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है. इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडा़कर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए. 

    दोनों पक्षों की द्वित्तीया | Dwitiya Tithi of Both Pakshas

    विवाह मुहूर्त, यात्रा करना, आभूषण खरीदना, जिह्वा संबंधी कार्यों में, संगीत विद्या के लिए, शिलान्यास, देश अथवा राज्य संबंधी कार्य, कोश संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माना गया है. इस तिथि में तेल लगाना वर्जित है. 

    तृतीया तिथि | Tritiya Tithi

    सगीत विद्या, शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, यात्रा, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य इस तिथि में सम्पन्न किए जा सकते हैं. 

    चतुर्थी तिथि | Chaturthi Tithi

    सभी प्रकार के बिजली के कार्य, शत्रुओं का हटाने का कार्य, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है. क्रूर प्रवृति के कार्यों के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है. 

    पंचमी तिथि | Panchami Tithi 

    इस तिथि में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है. सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है. इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है. यदि किसी को ऋण दे दिया तो नुकसान होगा, ऋण वापिस नहीं मिलेगा. इस तिथि में द्वितीया तथा तृतीया तिथि में बताए गए सभी कार्य किए जा सकते हैं. 

    षष्ठी तिथि | Shashti Tithi

    युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य वर्जित हैं. 

    सप्तमी तिथि  | Saptami Tithi 

    विवाह मुहुर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषणों का निर्माण और नवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है. यात्रा, वधु-प्रवेश, गृह-प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार, आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं. इसके अतिरिक्त द्वितीया, तृतीया तथ पंचमी तिथि में बताए गए कार्य भी किए जा सकते हैं. 

    अष्टमी तिथि | Ashtami Tithi

    इस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग आने वाले कार्य, वास्तुकार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुडे़ कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले कार्यों का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है. इस तिथि में मांस सेवन नहीं करना चाहिए. 

    नवमी तिथि | Navami Tithi

    शिकार करने का आरम्भ करना, झगडा़ करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण करना, मद्यपान तथा निर्माण कार्य तथा सभी प्रकार के क्रूर कर्म इस तिथि में किए जाते हैं. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य भी इस तिथि में किए जा सकते हैं. 

    दशमी तिथि | Dasami Tithi

    इस तिथि में राजकार्य अर्थात वर्तमान समय में सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है. हाथी, घोड़ों से संबंधित कार्य, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि इस तिथि में की जा सकती है. गृह-प्रवेश, वधु-प्रवेश, शिल्प, अन्न प्राशन, चूडा़कर्म, उपनयन संस्कार आदि कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं. इस तिथि में द्वित्तीया, तृतीया, पंचमी तथा सप्तमी को किए जाने वाले कार्य किए जा सकते हैं. 

    एकादशी तिथि | Ekadashi Tithi

    इस तिथि में व्रत, सभी प्रकार के धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध से जुडे़ कर्म, शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ करना, यात्रा संबंधी शुभ कार्य किए जा सकते हैं. 

    द्वादशी तिथि | Dwadashi Tithi

    इस तिथि में विवाह, गाडी़, मार्ग में होने वाले कार्य, पोषण तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए. 

    शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि | Trayodashi Tithi of Shukla Paksha

    संग्राम से जुडे़ कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुडे़ काम इस दिन किए जा सकते हैं. इस दिन सभी तरह के मंगल कार्य किए जा सकते हैं. इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण तथा यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए. द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी तथा द्वादशी के दिन किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं. 

    चतुर्दशी तिथि | Chaturdashi Tithi

    इस तिथि में सभी प्रकार के क्रूर तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. शस्त्र आदि का प्रयोग किया जा सकता है. इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य किए जा सकते हैं. 

    पूर्णमासी | Purnima Tithi

    इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं. संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति तथा पोषण करने वाले सभी मंगल कार्य किए जा सकते हैं. 

    अमावस्या | Amavasya 

    इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रुप से किए जाते हैं. महादान तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में शुभ कर्म तथा स्त्री का संग नहीं करना चाहिए. 

    तिथियों का अर्थ – Meaning of Tithis

    * प्रतिपदा तिथि को “वृद्धिप्रद” मान गया है. 

    * द्वितीया तिथि को “मंगलप्रद” माना गया है. 

    * तृतीया तिथि को “बालप्रद” माना गया है. यह बल में वृद्धि करती है. 

    * चतुर्थी तिथि को “खल” कहा गया है. इसे अशुभ माना गया है. 

    * पंचमी तिथि को “लक्ष्मीप्रद” कहा गया है. यह धन-धान्य देने वाली तिथि है. 

    * षष्ठी तिथि को “यशप्रद” माना गया है. यह व्यक्ति को यश देने वाली होती है. 

    * सप्तमी तिथि को “मित्र” माना गया है. 

    * अष्टमी तिथि को “द्वंद्व” नाम दिया गया है. यह मतभेद पैदा करती है. 

    * नवमी तिथि को “उग्र” कहा गया है. इसे आक्रामक स्वभाव वाली माना गया है. 

    * दशमी तिथि को “सौम्य” तिथि कहा गया है. 

    * एकादशी तिथि को “आनन्दप्रद” कहा गया है. 

    * द्वादशी तिथि को “यशप्रद” कहा गया है. 

    * त्रयोदशी तिथि को “जयाप्रद” कहा गया है. यह तिथि जीत दिलाती है. 

    * चतुर्दशी तिथि को “उग्र” कहा गया है. 

    * पूर्णिमा तिथि को “सौम्य” कहा गया है. 

    * अमावस्या तिथि को “पूर्वजों” के लिए महत्वपूर्ण माना गया है. इसे पितृ तिथि भी कह सकते हैं.  

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    वृश्चिक राशि क्या है | Scorpio Sign Meaning | Scorpio – An Introduction । Who is the Lord of the Scorpio sign

    ज्योतिष शास्त्रों में वृ्श्चिक राशि को रहस्यमयी राशि कहा गया है. इस राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से रहस्यमयी प्रकृ्ति के होते है. इस राशि के व्यक्ति गहरी भावनाओं से युक्त होते है. वृ्श्च्चिक राशि के व्यक्तियों में कल्पनाशीलता पाई जाती है. वे विवेकशिल होते है. साथ ही इनमें दृ्ढनिश्चय का भाव पाया जाता है. वृ्श्च़िक राशि के व्यक्तियों की यह विशेष खूबी है, कि इस राशि के व्यक्ति तोल-मोल कर बोलने की प्रवृ्ति पाई जाती है. आईये वृ्श्चिक राशि को विस्तार में समझने का प्रयास करते है. 

    वृ्श्चिक राशि का स्वामी कौन है.| Who is the Lord of the Scorpio sign

    वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है. 

    वृ्श्चिक राशि का चिन्ह क्या है. | What is the Symbol of the Scorpio Sign .

    वृ्श्चिक राशि का चिन्ह बिच्छू है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए शुभ ग्रह कौन से है. | Which planets are considered auspicious for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए शुभ ग्रह सूर्य, चन्द्रमा, गुरु शुभ ग्रह है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए अशुभ ग्रह कौन से है. | Which Planets are inauspicious for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए बुध, शुक्र अशुभ ग्रह है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए सम फल देने वाला ग्रह कौन सा है. | Which are Neutral planets for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए मंगल और शनि सम फल देने वाले ग्रह है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए मारक ग्रह कौन सा है.| Which  are the Marak planets for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए बुध, शुक्र मारक ग्रह होते है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए बाधक भाव कौन सा है.| Which is the Badhak Bhava for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए नवम भाव बाधक भाव कहलाता है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए बाधक भाव का स्वामी कौन सा ग्रह है. | Which planet is Badhkesh for the Scorpio sign

    वृश्चिक राशि के लिए चन्द्र बाधकेश होते है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए कौन सा ग्रह योगकारक होता है. | Which planet is YogaKaraka for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए सूर्य, चन्द्रमा योगकारक ग्रहों में आते है. 

    वृ्श्चिक राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है. | Which Planet of the Scorpio sign, is placed in exalted position

    वृ्श्चिक राशि केतु ग्रह की उच्च राशि है. 

    वृ्श्चिक राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि का होता है. | Which planet is debilitated in Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि में चन्द्रमा नीच राशि का होता है. 

    वृ्श्चिक राशि में चन्द्र किन अंशों पर शुभ फल देते है. | At what degree does Moon give auspicious results in Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि में चन्द्र 11 अंश पर शुभ फल देते है. 

    वृ्श्चिक रशि में चन्द्र कौन से अंशों पर होने पर अशुभ फल देता है.| At what degree does Moon give inauspicious results in Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि में चन्द्र 14 अंश और 23 अंश पर होने पर अशुभ फल देता है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए कौन सा इत्र शुभ रहता है. | Which fragrance is auspicious for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के व्यक्तियों के लिए सैमेस, बेनज्वाइन इत्र उपयोग करना शुभ रहता है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए कौन से अंक शुभ है. | Which are the Lucky numbers for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए 3, 9, 4 अंश शुभ होते है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए कौन सा दिन शुभ रहता है. | Which are the lucky days for the Scorpio people

    वृ्श्चिक राशि के लिए रविवार, सोमवार, मंगलवार, शुक्रवार, वीरवार शुभ वार है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए कौन सा रत्न शुभ रहता है.| Which is the lucky stone for the Scorpio people

    वृ्श्चिक राशि के लिए पीला पुखराज, मूंगा धारण करना शुभ रहता है. 

    वृ्श्चिक राशि के लिए शुभ रंग कौन से है. | What are the lucky colours for the Scorpio sign

    वृ्श्चिक राशि के लिए पीला, लाल, नारंगी, क्रीम रंग शुभ होता है. इस राशि के व्यक्तियों को नीले, हरे, सफेद रंग का अधिक प्रयोग करने से बचना चाहिए. 

    वृ्श्चिक राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास करना चाहिए. | On which day should the Scorpio people fast

    वृ्श्चिक राशि के व्यक्ति मंगलवार का व्रत कर सकते है. 

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    आश्चिन मास – 12 चन्द्र मास | Ashwin Month -12 Moon Month । Hindu Calendar Paush Month

    आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माता के नवरात्रे शुरु होते है. इन नौ दिनों में माता का पूजन और उपवास करने पर भक्तों को विशेष पुन्य की प्राप्ति होती है.  इस माह के शुरु होने के साथ ही पितृ पक्ष भी प्रारम्भ होता है. पितृ्पक्ष अवधि 15 दिनों की होती है. इस अवधि में अपने पूर्वजों और पित्तरों की आत्मा की शान्ति के कार्य किए जाते है. इस अवधि में अन्य सभी शुभ कार्य करने वर्जित होते है. 

    आश्चिन मास विशेष पर्व | Ashwin Month Main Festival

    यह माह अपना धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का मह्त्व रखता है. दिवंगत पित्तरों की शान्ति का तर्पण अवधि समाप्त होते है. माता दुर्गा के नौ दिनों की दुर्गा पूजा प्रारम्भ हो जाती है. दशहरा और रामनवमी भी इस माह के मुख्य आकर्षण होते है.  जागरण और माता का पूजन मंदिरों में देखा जा सकता है. 

    आश्चिन मास में जन्म लेने वाला व्यक्ति कैसा होता है | What is the Personality of a Person born in Ashwin Month

    आश्चिन मास में जन्म लेने वाले व्यक्ति सुन्दर व्यक्तित्व का स्वामी होता है. उसे भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है. काव्य में उसकी विशेष रुचि होती है. पवित्र विचार और शुद्ध भावनाओं से युक्त होता है. धन की उसे जीवन में कोई कमी नहीं होती है. परन्तु वह काम वासना विषयों में आसक्त होता है. (game3rb.com)  

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    मिथुन राशि क्या है । Gemini Sign Meaning | Gemini – An Introduction | Who is the Lord of Gemini

    मिथुन राशि के व्यक्तियों में बौद्धिक योग्यता सामान्य से अधिक होती है.  सभी व्यक्ति अपनी जन्म राशि की विशेषताओं के अनुरुप व्यवहार करते है. जिन व्यक्तियों की जन्म राशि मिथुन है, वे स्वभाव से विनोदी, और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते है. आईए मिथुन राशि से परिचय करने के साथ साथ मिथुन राशि को समझने का प्रयास करते है.

    मिथुन राशि का स्वामी कौन है. । Who is the Lord of  Gemini. 

    मिथुन राशि का स्वामी बुध ग्रह है.

    मिथुन राशि का चिन्ह क्या है. । What is the Symbol of Gemini Sign .

    मिथुन राशि का चिन्ह एक स्त्री और एक पुरुष है. 

    मिथुन राशि के लिए शुभ ग्रह कौन से है. । Which planets are considered auspicious for Gemini.

    मिथुन राशि के लिए शुभ ग्रह शुक्र है. 

    मिथुन राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. । Which Planets are inauspicious for Gemini .

    मिथुन राशि के लिए सूर्य, मंगल, गुरु, शनि अशुभ फल देते है. 

    मिथुन राशि के लिए सम फल देने वाले कौन से ग्रह है. । Which are Neutral planets for Gemini. 

    मिथुन राशि के लिए चन्द्रमा व बुध सम फल देने वाले ग्रह है. 

    मिथुन राशि के लिए मारक ग्रह कौन से है. । Which  are the Marak planets for Gemini

    मिथुन राशि के लिए मंगल व गुरु मारक ग्रह होते है. 

    मिथुन राशि के लिए बाधक स्थान कौन से है.। Which is the Badhak Bhava for Gemini.

    मिथुन राशि के लिए सप्तम भाव बाधक स्थान है. 

    मिथुन राशि के लिए बाधकाधिपति कौन सा ग्रह होता है. | Jupiter is the planet of Badhakesh  for Gemini..

    मिथु राशि के लिए गुरु बाधकेश ग्रह होते है. 

    मिथुन राशि के लिए योगकारक ग्रह कौन सा है. | Which planet is YogaKaraka for Gemini

    मिथुन राशि के लिए शुक्र व बुध योगकारक ग्रह है. 

    मिथुन राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है. | Which Planet of Gemini, is placed in exalted position  

    मिथुन राशि में कोई भी ग्रह उच्च स्थान प्राप्त नहीं करता है. 

    मिथुन राशि किस ग्रह की नीच राशि है. | Gemini  is which planet’s Debilitated Sign

    मिथुन राशि किसी भी ग्रह की नीच राशि नहीं है.

     

    >मिथुन राशि में चन्द्रमा किस अंश पर सबसे शुभ फल देता है. | At which Degree Moon is auspicious for the Gemini  Sign.

    मिथुन राशि में चन्द्रमा जब 18 अंश पर होता है, तो सर्वाधिक शुभ फल देता है.

    मिथुन राशि में चन्द्रमा कितने अंशो पर शुभ फल नहीं दे पाता है.| At which degree Moon is inauspicious for the Gemini Sign. 

    मिथुन राशि में चन्द्रमा 13 अंश और 22 अंश पर होने पर अशुभ फल देता है.

    मिथुन राशि के लिए कौन सा इत्र शुभ होता है.| Which fragrance is auspicious for Gemini

    मिथुन राशि के लिए खस, वाँर्मवुड इत्र शुभ फल देने वाले ग्रह होते है.

    मिथुन राशि के लिए भाग्यशाली संख्या कौन सी है.| Which are the Lucky numbers for Gemini Sign.

    मिथुन राशि के लिए 7, 3, 5, 6 अंक शुभ होते है.

     

    मिथुन राशि के लिए कौन से दिन शुभ रहते है.। Which are the Lucky days or Gemini Sign

    मिथुन राशि के लिए भाग्यशाली दिन सोमवार, वीरवार, शुक्रवार, बुधवार है. | Monday , Wednesday, Thursday, Friday are the Lucky days for Gemini People.  

    मिथुन राशि के लिए शुभ रत्न कौन से है.| Which is the lucky stone for Gemini .

    मिथुन राशि के लिए टरक्वाइस, पन्ना शुभ रत्न है. 

    मिथुन राशि के लिए कौन सा रंग शुभ है. | What are the lucky colours for Gemini.

    मिथुन राशि के लिए पीला रंग शुभ है.

    मिथुन राशि को किस दिन का उपवास करना चाहिए. | On which day Gemini People should fast .

    मिथुन राशि के व्यक्तियों को पूर्णमासी के व्रत नियम का पालन करना चाहिए. 

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