क्या पन्ना रत्न मेरे लिये अनुकुल रहेगा? | Is Panna Stone Good for Me (Can I Wear Emerald Stone)

बुध रत्न पन्ना को बुद्धि विकास और सौन्दर्य वृ्द्धि के लिये धारण किया जाता है. इस रत्न के कई नाम है, जिनमें से कुछ नाम मरकत, हरित्मणि, गरूडागीर्ण, सौपर्णी आदि कहा जाता है. इस रत्न को धारण से व्यक्ति की स्मरणशक्ति की वृ्द्धि होती है. बौद्धिक कार्यो में रुचि बढाकर यह व्यक्ति में चतुरता का भाव लाता है.     

पन्ना रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Panna Ratna?

पन्ना रत्न धारण से व्यक्ति को इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि यह रत्न लग्न के अनुकुल है भी या नही़. जब कोई भी रत्न अपने लग्न के अनुसार शुभता/ अशुभता जाने बिना धारण किया जाता है, तो व्यक्ति को कई बार इससे लाभ प्राप्त होता है. परन्तु कई बार यह व्यक्ति की परेशानियों में वृ्द्धि कर सकता है. आईए 12 लग्नों के लिये यह किस प्रकार के फल दे सकता है. इस विषय पर विचार करते है.

मेष लग्न-पन्ना रत्न | Panna Stone for Aries Lagna

मेष लग्न के व्यक्तियों को बुध रत्न पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इस लग्न के लिये बुध तीसरे वे छठे भाव के स्वामी होने के कारण अनुकुल फल देने में असमर्थ होते है.    

वृ्षभ लग्न-पन्ना रत्न | Benefits of Panna Ratna for Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न के लिये बुध दूसरे और पंचम भाव के स्वामी है. साथ ही लग्नेश शुक्र के मित्र भी है. अत: दोनों प्रकार से शुभ है. इसलिये वृ्षभ लग्न के व्यक्ति पन्ना धारण कर लाभ प्राप्त कर सकते है. इसे धारण करने से व्यक्ति को बुद्धिबल, यश, भाग्योदय देता है.     

मिथुन लग्न-पन्ना रत्न | Influence of Emerald on Gemini Lagna

मिथुन लग्न के लिये बुध रत्न पन्ना लग्नेश का रत्न होने के कारण सर्वथा शुभ है. इस लग्न के व्यक्ति इसे निसंकोच धारण कर सकते है.  

कर्क लग्न-पन्ना रत्न | Panna for Cancer Lagna

कर्क लग्न में बुध तीसरे व द्वादश भाव का स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों का इस रत्न को धारण करना शुभ नहीं है. 

सिंह लग्न-पन्ना रत्न | Impact of Panna Ratna on Leo Lagna

सिंह लग्न के व्यक्तियों के लिये बुध दुसरे व एकादश भाव के स्वामी है. परन्तु लग्नेश के मित्र नहीं है. ऎसे में इस रत्न को केवल महादशा अवधि में ही धारण करना चाहिए.  

कन्या लग्न-पन्ना रत्न | Effect of Panna Stone on Virgo Lagna

इस लग्न के लिये बुध लग्नेश और दशमेश है. कुंडली के ये दोनों ही भाव शुभ है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों का पन्ना रत्न धारण करना शुभ रहेगा. इसे धारण करने से व्यक्ति को कैरियर और स्वास्थय दोनों सुख प्राप्त होगें.   

तुला लग्न-पन्ना रत्न | Influence of Panna on Libra Lagna

तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये बुध नवम यानि भाग्य भाव और द्वादश यानि व्यय भाव के स्वामी है. बुध यहां भाग्येश होने के कारण अत्यधिक शुभ हो जाते है. इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति के जीवन के सभी क्षेत्रों की बाधाओं में कमी होगी.    

वृ्श्चिक लग्न-पन्ना रत्न | Panna Stone for Scorpio Lagna

वृ्श्चिक लग्न के लिए बुध अष्टम भाव और एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को पन्ना रत्न धारण करने से बचना चाहिए इसके स्थान पर मोती धारण करना इस लग्न के लिये बेहद शुभ रहेगा.    

धनु लग्न-पन्ना रत्न | Emerald for Sagittarius Lagna

इस लग्न में बुध की स्थिति सप्तमेश और दशमेश की होती है. इस लग्न के लिये बुध मध्यम स्तरीय शुभ है. इसे धारण करने से फल भी मध्यम स्तर के ही प्राप्त होगें.   

मकर लग्न-पन्ना रत्न | Panna Ratna – Influence on Capricorn Lagna

मकर लग्न में बुध षष्ठ भाव और नवम भाव के स्वामी होते है. यहां बुध भाग्येश होने के कारण विशेष रुप से शुभ हो जाते है.  साथ ही लग्नेश शनि के मित्र भी है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को अवश्य धारण करें.      

कुम्भ लग्न-पन्ना रत्न | Effect of Emerald on Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न में बुध 5वें और 8वें भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति शिक्षा, संतान आदि विषयों को प्राप्त करने के लिये इस रत्न को धारण कर सकते है. 

मीन लग्न-पन्ना रत्न | Panna for Pisces Lagna

मीन लग्न के लिये बुध चतुर्थ और सप्तम भाव के स्वामी होते है. इस लग्न के लिये बुध सप्तमेश बुध मारकेश होते है. इस कारण से इसे बुध कि महादशा अवधि में ही धारण करना अधिक उचित रहता है.     

पन्ना रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Panna Stone?

पन्ना धारण करने वाला व्यक्ति पन्ने के साथ-साथ एक ही समय में नीलम, हीरा और इनके उपरत्न धारण कर सकता है.

पन्ना रत्न के साथ क्या न पहने? | What Not to Wear with Panna Ratna

पन्ना रत्न धारण करने वाले व्यक्ति को इसे धारण करने के बाद या इस रत्न के साथ मोती, मूंगा और माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त पन्ना रत्न के साथ इन रत्नों के उपरत्न धारण करना भी अनुकुल नहीं रहता है.    

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बुध ज्योतिष में । The Mercury in Astrology । Know Your Planets- Mercury | Which is the beej mantra of the Mercury.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध की विशेषताओं में बुद्धिमता, शिक्षा, मित्र, व्यापार और व्यवसाय, गणित, वैज्ञानिक, ज्ञान प्राप्त करना, निपुणता, वाणी, प्रकाशक, छापने का कार्य, पढाने वाला, फूल, मामा और मामी, लेखविद्या, लिपिक, भतीजे, दत्तक पुत्र, मोती,  कस्तूरी, काला-जादू, टेढी आंखें, हंसी-मजाक, वाकपटुता, हाजिर जवाब आदि गुण आते है.  

बुध के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Mercury.

सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र ग्रह है.  

बुध के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Mercury 

बुध का शत्रु ग्रह चन्द्र है. 

बुध किन ग्रहों से सम संबन्ध रखता है. | Which planet forms neutral relation with the Mercury

 बुध शनि, मँगल व गुरु से सम सम्बन्ध रखता है.  

बुध को कौन सी राशियों का स्वामित्व प्राप्त है.  | Mercury is Which sign Lord 

बुध मिथुन व कन्या राशि का स्वामी है. 

बुध की मूल त्रिकोण राशि कौन सी है. | Which is the Mooltrikona sign of the Mercury

बुध कन्या राशि में 15 अंश से 20 अंश के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है.  

बुध किस राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है. | Which is the exalted sign of the Mercury

बुध कन्या राशि में 15 अंश पर उच्च स्थान प्राप्त करता है.  

बुध किस राशि में नीचस्थ होता है. | Which is the debiliated sign of the Mercury

बुध मीन राशि में होने पर नीच राशि में होता है. 

बुध को किस लिंग का प्रतिनिधित्व करता है.  | Mercury comes under which gender category

बुध को पुरुष व नपुंसक लिंग का कारक ग्रह है.  

बुध किस दिशा का स्वामी है. |  Which Direction  represent the Mercury. 

बुध उत्तर दिशा का स्वामी है.  

बुध का शुभ रत्न कौन सा है. | Which gem must be hold for the Mercury.

 बुध का शुभ रत्न पन्ना, सुलेमानी है. 

बुध का शुभ रंग क्या है. | What is the colour of the Mercury. 

बुध का प्रिय रंग हरा और भूरा है. 

बुध की शुभ संख्या कौन सी है.  | Which are the lucky numbers of the Mercury

बुध के शुभ अंक 5, 14, 23 है. 

बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए किस ग्रह की उपासना करनी चाहिए. | Which god should be worshipped for the Mercury. 

बुध के अधिदेवता विष्णु, भगवान नारायण देव है. 

बुध का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Mercury.

 बुध का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

” ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: ” इस मंत्र का जाप 21 दिनों में 19000 बार करना चाहिए.  

बुध का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Mercury. 

बुध् का वैदिक मंत्र इस प्रकार है. 

प्रियंगुकलकाशमं रूपूणाप्रतिमं बुधम ।

सौम्यम सौम्यगुणोपेतं व बुधं प्रणामाम्यहम ।।

बुध की दान की वस्तुएं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Mercury. 

बुध की दान योग्य वस्तुओं में हाथी दान्त, चीनी, हरा वस्त्र, हरे फूल, मूंग की दाल, कपूर, तारपीन का तेल. बुधवार को सूर्य उदय से 2 घण्टे पहले के अन्दर इन वस्तुओं का दान करना चाहिए.  

बुध ग्रह से प्रभावित व्यक्ति का रंग-रुप किस प्रकार का होता है. | What is the form of Mercury affected people.

जिस व्यक्ति की कुण्डली में बुध ग्रह की राशि मिथुन या कन्या लग्न भाव में हो, अथवा बुध लग्न भाव में बली अवस्था में हो, या फिर व्यक्ति की जन्म राशि बुध की राशि हो, तो व्यक्ति के व्यक्तित्व पर बुध का प्रभाव होता है. बुध से प्रभावित व्यक्ति सुगठित शरीर वाला, बडा शरीर, मृ्दु भाषा, हंसी मजाक, विनोदी स्वभाव का होता है. 

बुध शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Mercury represents which organs of the body

बुध शरीर में पित्त, वायु, बलगम, गुदा, जांघे, त्वचा, नाडी प्रणाली का कारक है.  

बुध के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है. | When the Mercury is at weaker position , what diseases can affect a person.

बुध के कमजोर या पिडित होने पर व्यक्ति को दिमाग और बोलने के अंगों में असन्तुलन हो सकता है. बुध दिमागी रोग देता है. मानसिक रोग, नपुंसकता, ज्वर, खुजली, हड्डियों का चटकना, जवर, चक्कर आना, गर्दन में दर्द, बवासीर, अपच, जिगर, पेट, आंन्तों की समस्याएं. 

बुध के कारक तत्व कौन से है. | What is the specific Karaka of the Mercury. 

बुध बुद्धिमानी, लगातार बोलने वाला, हास्य प्रकृ्ति का कारक ग्रह है., 

बुध के विशिष्ठ गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Mercury. 

बुध विद्या का कारक ग्रह है, वह बन्धु बान्धवों का भी कारक ग्रह है.  

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गुरुवार व्रत | Thursday Vrat Method – Aarti | Thursday Fast in Hindi – Guruvar Vrat (Brihaspati Vrat)

गुरुवार का व्रत विशेष रुप से विवाह मार्ग की बाधाओं में कमी करने के लिये किया जाता है. देव गुरु वृ्हस्पति धन के कारक ग्रह है, इसलिये इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. 

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में गुरु कमजोर होकर स्थित हों, उन व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. गुरु वृ्हस्पति की पूजा करने से कई प्रकार के फल प्राप्त होते है. गुरुवार की पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए.  कि यह पूजा विधि-विधान के अनुसार करनी चाहिए. इससे उपवासक की मनोकामना पूरी होती है. 

गुरुवार व्रत किन उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है? | Thursday Fast Significance

गुरुवार का व्रत जल्दी विवाह करने के लिये किया जाता है. जिस व्यक्ति को यह व्रत करना हो, उस व्यक्ति को एक दिन पहले ही इस व्रत के लिये स्वयं को तैयार कर लेना चाहिए. व्रत वाले दिन प्रात: काल में उठकर वृ्हस्पति देव का पूजन करना चाहिए. वृ्हस्पति देव का पूजन पीली वस्तुएं, पीले फूल, चने कि दान, पीली मिठाइ, पीले चावल आदि का भोग लगाकर किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति इस व्रत को धन प्राप्ति के लिये करता है, तो उसे वृ्हस्पति देव का पूजन पीली वस्तुओं से करना चाहिए.  

उपवास के दिन वृहस्पति देव का अभिषेक केसर मिले दूध से करना चाहिए. गुरुवार के दिन उपवास कर एक समय का उपवास करना चाहिए.  वृ्हस्पति देव क्योकिं शिक्षा के भी कारक ग्रह है, इसलिये नियमित रुप से इनका पूजन करने से, अथवा जल चढाने से देव प्रसन्न होकर व्यक्ति की मनोइच्छा पूरी करते है. इसके साथ ही वैवाहिक सुख-शान्ति को बनाये रखने के लिये, गुरुवार का व्रत कर पीली मिठाइ का भोग लगाना चाहिए. और देव को चल चढाना शुभ रहता है. 

आर्थिक स्थिति को सुदृढ करने के लिये और अच्छे व्यवसाय के लिये भी गुरुवार का व्रत किया जा सकता है. इस उद्देश्य के लिये व्रत करने के लिये व्यक्ति को गुरुवार का व्रत कर गरीबों को भोजन कराकर उच़ित दक्षिणा देनी चाहिए.

गुरुवार व्रत विधि-विधान | Method of Thursday Fasting 

गुरुवार के व्रत का प्रारम्भ किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के पहले गुरवार से किया जा सकता है. इस व्रत को लगातार 16 गुरुवार  से लेकर नियमित रुप से तीन वर्ष तक किया जा सकता है. (simonsezit.com) और व्रत करते समय व्रत से जुडे सभी विधि-विधानों का सख्ती से पालन करना चाहिए.  

व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर, पीले वस्त्र धारण कर पीले फूलों, चने की दाल, पीला चन्दन, बेसन की बर्फी, हल्दी, पीले चावल आदि से भगवान विष्णु की, और गुरु वृ्हस्पति देव की पूजा करनी चाहिए. व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सिर नहीं धोना चाहिए. और नमक रहित भोजन करना चाहिए.  

प्रात वृ्हस्पति देव का पूजन करने के बाद पीली मिठाई से देव को भोग लगाना चाहिए.  तथा सायंकाल में पीले वस्त्रों का दान करना चाहिए. व्रत के दिन गुरुवार व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए.  

आरती वृहस्पति देवता की | Thursday Aarti :   

जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा ।  छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।  जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।  सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।  प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।  पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।  विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ।।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।  जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ।।

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कश्यप ऋषि- ज्योतिष का इतिहास | Kashyap Rishi – History of Astrology

ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के समय गुण मिलान करते समय इस नियम का प्रयोग आज भी किया जाता है. एक गौत्र के वर-वधू का विवाह करने पर होने वाली संतान में शारीरिक अपंगता रहने के योग बनते है. 

ऋषि कश्यप ने ज्योतिष में अन्य अनेक शास्त्रों की रचना की. इनका उल्लेख श्रीमदभागवत गीता में भी मिलता है. भारत में चिकित्सा ज्योतिष के क्षेत्र में भी ऋषि कश्यप ने अपना विशेष योगदान दिया है. प्राचीन काल के श्रेष्ठ ऋषियों में ऋषि कश्यप का नाम लिया जाता है. 

कश्यप ऋषि ज्योतिष इतिहास में भूमिका | Kashyap Rishi Role in History of Astrology

ऋषि कश्यप ने कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं,  जिनके माध्यम से व्यक्ति की आयु का निर्णय किया जाता है. इसके अलावा वनस्पति शास्त्र और वैदिक ज्योतिष के लिए भी कश्यप ऋषि ने अनेक शास्त्र बनाये़. ऋषि कश्यप का वर्णन पौराणिक और धार्मिक धर्म ग्रन्थों में मिलता है. ऋषि कश्यप के वंशजों ने ही सृ्ष्टि का प्रसार किया था. इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है. यह माना जाता है, कि इनका विवाह 17 कन्याओं से हुआ था.  

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क्राइसोप्रेज उपरत्न | Chrysoprase Gemstone – Can I Wear Chrysoprase – Yellow Chrysoprase – Metaphysical Properties Of Chrysoprase

इस उपरत्न को देखकर कई लोगों को जेड उपरत्न का भ्रम हो जाता है. इसलिए इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है. इसका रंग द्रव्य निकिल है. इस उपरत्न के बडे़ आकार के पत्थर प्राय: कोमल तथा हल्के रंग के होते हैं. इस उपरत्न को गर्म करने पर या अधिक देर सूर्य की रोशनी में रखने पर इसका रंग फीका पड़ जाता है. यदि इसे दुबारा नमी के वातावरण में रखा जाए तो इसका मूल रंग दोबारा वापिस आ जाता है.

इस उपरत्न को “हरितमणि” के नाम से भी जाना जाता है. इस उपरत्न की सबसे अच्छी श्रेणी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है. यह कई हल्के रंगों में पाया जाता है. लेकिन हल्का हरा रंग इसकी उत्तम श्रेणी हैं अथवा “एप्पल ग्रीन” रंग में यह उपरत्न अच्छा माना जाता है. इसके अतिरिक्त हल्का पीला रंग भी अच्छा माना जाता है. यह एक पारभासी उपरत्न है. इस उपरत्न का उपयोग गहनों के निर्माण में अधिक होता है.

क्राइसोप्रेज शब्द, ग्रीक शब्द “क्राइसोस प्रासोन” से लिया गया है जिसका अर्थ है :- गोल्ड लीक. इस उपरत्न को विजयी उपरत्न के रुप में भी जाना जाता है. ऎसी मान्यता है कि 18वीं सदी में चोरी करने वाले व्यक्ति इस उपरत्न को अपने मुँह में रख लेते थे, जिससे वह गायब हो जाएँ और किसी को दिखाई ना दें.

इस उपरत्न के साथ एक दिलचस्प घटना यह भी जुडी़ है कि प्राचीन समय में एक बार एक व्यक्ति को फाँसी की सजा दी गई. जब उस व्यक्ति को फाँसी के फन्दे तक ले जाया जा रहा था तब उसने अपने मुँह में क्राइसोप्रेज का एक छोटा सा टुकडा़ रख लिया ताकि वह फाँसी से बच सके. प्राचीन समय में ग्रीक और रोमन राज्य के लोगों द्वारा इस उपरत्न का उपयोग आध्यात्मिक चिकित्सा तथा सजावट की वस्तुओं के रुप में किया जाता था.

राजा एलैग्जण्डर इस उपरत्न को हमेशा अपने साथ अपनी कमर में बाँधकर रखते थे ताकि वह सभी लडा़इयों में विजयी रहें.

क्राइसोप्रेज के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Chrysoprase

यह उपरत्न धारणकर्त्ता की अवचेतना में नई चेतना भरता है. यह मानव की अन्त:दृष्टि में वृद्धि करता है और चेतना को बली बनाता है. खुशी तथा आशा में वृद्धि करता है. समस्याओं को समझने तथा उन्हें सुस्पष्ट करने में मदद करता है. जिन्हें बेचैनी अधिक रहती है उन्हें इस उपरत्न को धारण करने से सुकून मिलता है. समुद्री यात्राओं पर जाने वालों के लिए यह एक शुभ उपरत्न है. यह उपरत्न जख्मों को जल्द भरता है. चिकित्सा पद्धति के रुप में इस उपरत्न का एक टुकडा़ पॉकेट में रखने से लाभ मिलता है. इसके अतिरिक्त जल्दी स्वास्थ्य लाभ के लिए इस उपरत्न का एक टुकडा़ बिस्तर के नीचे रखकर सोना चाहिए.

यह उपरत्न नकारात्मक ऊर्जा को, ढा़ल अथवा रक्षक बनकर दूर करता है. इस उपरत्न का एक बाउल(Bowl) बनाकर घर के प्रवेश द्वार पर रखना चाहिए. इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में नहीं घुस पाएगी.जो व्यक्ति इस उपरत्न को गहनों के रुप में इस्तेमाल करना चाहते हैं वह इसे चाँदी में जडा़ए. यदि इसे दिल की आकृति के रुप में पहना जाता है तब यह और अधिक प्रभावशाली होता है. यह उपरत्न मन तथा मस्तिष्क को शांत रखने में सहायता करता है. सत्य और स्वीकृति को बढा़वा मिलता है. यह भावनात्मक कल्याण के लिए शुभ उपरत्न है और चेतना के विकास के लिए भी कल्याणकारी है.

यह उपरत्न व्यक्ति के अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. जिन व्यक्तियों को दिल से संबंधित विकार हैं उन्हें इस उपरत्न को धारण करने से लाभ प्राप्त होगा. यह उपरत्न इस चक्र की सूक्ष्म ऊर्जा को सक्रिय करता है. यह व्यक्ति विशेष को प्रेम, सत्य, आशा के प्रति जागरुक तथा आशावादी बनाता है. यह उपरत्न भौतिक अस्तित्व में उच्च सार्वभौमिक ऊर्जा लाने का कार्य करता है. यह व्यक्ति के अहं को नियंत्रित करता है. यह आत्मज्ञान में वृद्धि करने में मदद करता है. धारणकर्त्ता की नकारात्मक सोच को सकारात्मकता में बदलता है. उग्र भावनाओं तथा उग्र विचारों को शांत रखने में मदद करता है. जिन्हें प्रेम में कष्ट अथवा धोखा मिलता है उनके लिए सुख प्रदान करने वाला उपरत्न है.

पीला क्राइसोप्रेज उपरत्न | Yellow Chrysoprase Gemstone

यह तनाव को दूर करता है. मस्तिष्क को अधिक सक्रिय बनाता है. बुरे सपने आते हैं तो इस उपरत्न को तकिए के नीचे रखने से राहत मिलती है और व्यक्ति चैन की नींद सोता है. लीवर को नियंत्रित रखता है. हार्मोन्स को नियंत्रित करता है. प्रजनन क्षमता का विकास करता है. पाचन क्रिया को सुचारु रुप से चलाने में मदद करता है. दिल से संबंधित बीमारियों को जल्द ठीक करता है. यौन असंतुलन को नियंत्रित करता है. अच्छी धारणाओं में वृद्धि करता है, उन्हें बढा़वा देता है. व्यापार तथा व्यक्तिगत मामलों में धारणकर्त्ता को निष्ठावान बनाता है.

कैसे धारण करे | How To Wear Chrysoprase Gemstone

इस उपरत्न को चाँदी में जड़वा कर पहना जा सकता है. यह उपरत्न मानव शरीर के अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है इसलिए इसे लॉकेट में बनवाकर दिल के पास पहनना चाहिए. इस उपरत्न का एक टुकडा़ पॉकेट में भी रखा जा सकता है. इसे लम्बी अवधि तक धारण किया जा सकता है और यह अपनी सकारात्मक ऊर्जा लम्बी अवधि तक प्रदान करेगा. इसे ह्हाथ में भी रखा जा सकता है.

कहाँ पाया जाता है | Where is Chrysoprase Found

यह उपरत्न आस्ट्रेलिया में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न भारत, ब्राजील, जिम्बाब्वे, कैलीफोर्निया, साउथ अफ्रीका, तन्जानिया, रुस, मैडागास्कर, कजाकिस्तान आदि देशों में पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Chrysoprase

जिन्हें दिल की बीमारी है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. जिनका दिल कमजोर है और वह जल्दी घबरा जाते हैं उनके लिए भी यह उपरत्न शुभदायक है.

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गुरु ज्योतिष में । The Jupiter in Astrology । Know Your Planets- Jupiter | Jupiter and Choice of Profession

वैदिक ज्योतिष का आधार 9 ग्रह, 12 राशियां व 27 नक्षत्र है. इन्हीं नौ ग्रहों म्रें स्रे एक ग्रह है, जिसे गुरु या वृ्हस्पति ग्रह् के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष के 9 ग्रहों में से गुरु ग्रह को सबसे अधिक शुभ ग्रह माना गया है. गुरु की कारक वस्तुओं में पुत्र संतान, जीवन साथी, धन-सम्पति, शैक्षिक गुरु, बुद्धिमता, शिक्षा, ज्योतिष तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा, त्याग, समृ्द्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यो, राजसिक सम्मान.  

गुरु से संबन्धित कार्य क्षेत्र कौन से है. | Jupiter and Choice of Profession

गुरु के प्रभाव से व्यक्ति को बैंक, आयकर, खंजाची, राजस्व, मंदिर, धर्मार्थ संस्थाएं, कानूनी क्षेत्र, जज, न्यायाल्य, वकील, लेखापरीक्षक, सम्पादक, प्राचार्य, शिक्षाविद, अध्यापक, शेयर बाजार, पूंजीपति, मंत्री, दार्शनिक, निगम पार्षद, ज्योतिषी, वेदो और शास्त्रों का ज्ञाता.  

गुरु के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Jupiter.

गुरु के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल है.  

गुरु के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Jupiter. 

गुरु के शत्रु ग्रह बुध, शुक्र है.  

गुरु के साथ सम सम्बन्ध रखने वाले ग्रह कौन से है. | Which planet forms neutral relation with the Jupiter. 

गुरु के साथ शनि सम संबन्ध रखता है. 

गुरु को कौन सी राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. । Jupiter is Which sign Lord 

गुरु को मीन व धनु राशि का स्वामित्व प्राप्त है.

गुरु की मूलत्रिकोण राशि कौन सी है. | Which is the Mooltrikona sign of the Jupiter. 

गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु है. इस राशि में गुरु 0 अंश से 10 अंश के मध्य अपने मूलत्रिकोण अंशों पर होते है.

गुरु किस राशि में उच्च के होते है. |  Which is the exalted sign of the Jupiter. 

गुरु कर्क राशि में 5 अंश पर होने पर अपनी उच्च राशि अंशों पर होते है.  

गुरु किस राशि में नीच राशि के होते है. | Which is the debiliated sign of the Jupiter. 

गुरु मकर राशि में 5 अंशों पर नीच राशिस्थ होते है. 

गुरु किस लिंग का प्रतिनिधित्व करते है. | Jupiter comes under which gender category 

गुरु को पुरुष प्रधान ग्रह कहा गया है. 

गुरु किस दिशा के कारक ग्रह है. | Which Direction  represent the Jupiter. 

गुरु उत्तर-पूर्व दिशा के कारक ग्रह है. 

गुरु का शुभ रत्न कौन सा है. | Which gem must be hold for the Jupiter. 

गुरु के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए पुखराज रत्न धारण किया जाता है. 

गुरु का  शुभ रंग कौन सा है. | What is the colour of the Jupiter. 

गुरु का शुभ रंग पिताम्बरी पीला है.  

गुरु के शुभ अंक कौन से है. | Which are the lucky numbers of the Jupiter. 

गुरु के शुभ अंक 3, 12, 21 है. 

गुरु के अधिदेवता कौन से है. | Which god should be worshipped for the Jupiter.  

गुरु के अधिदेवता इन्द्र, शिव, ब्रह्मा, भगवान नारायण है. 

गुरु का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Jupiter. 

गुरु का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: (एक समय में संकल्प संख्या 19000 बार) 

गुरु का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Jupiter. 

गुरु का वैदिक म्म्त्र इस प्रकार है. 

देवानां च ऋषिणा च गुर्रु कान्चन सन्निभम ।

बुद्यिभूतं त्रिलोकेश तं गुरुं प्रण्माम्यहम ।।

गुरु की दान की वस्तुओं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Jupiter. 

गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिए निम्न वस्तुओं का दान करना चाहिए.  

स्वर्ण, पुखराज, रुबी, चना दान, नमक, हल्दि, गुड, बूरा या पीले चावल, पीले फूल या पीले लडडू. 

इन वस्तुओं का दान वीरवार की शाम को करना शुभ रहता है.  

गुरु के प्रभाव से व्यक्ति का रुप-रंग किस प्रकार का हो सकता है. | What is the form of jupiter affected people.

गुरु लग्न भाव में बली होकर स्थित हों, या फिर गुरु की धनु या मीन राशि लग्न भाव में हो, अथवा गुरु की राशियों में से कोई राशि व्यक्ति की जन्म राशि हो, तो व्यक्ति के रुप-रंग पर गुरु का प्रभाव रहता है.  गुरु के प्रभाव से व्यक्ति मोटापा लिए हुए, साफ रंग-रुप, कफ प्रकृ्ति, सुगठित शरीर का होता है. 

गुरु कौन से रोग दे सकता है. | When the Jupiter is at weaker position , what diseases can affect a person.

गुरु कुण्डली में कमजोर हो, या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो व्यक्ति को मधुमेह, पीलिया, चक्कर आना, गाल-ब्लेडर, खून की कमी, शरीर में दर्द, दिमागी रुप से विचलित, पेट में गडबड, बवासीर, वायु विकार, कान, फेफडों या नाभी संबन्धित रोग, दिमाग घूमना, बुखार, बदहजमी, फोडा, पेट बढन, हर्निया, मस्तिष्क, मोतियाबिन्द, बिषाक्त, अण्डाश्य का बढना, बेहोगी.

गुरु जीवन में कौन सी वस्तुओं का प्रतिनिधित्त्व करता है. |   What is the specific Karaka of the Jupiter.  

गुरु बुद्धि को बुद्धिमान, ज्ञान, खुशियां और सभी चीजों की पूर्णता देता है. 

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अमावस्या तिथि

अमावस्या तिथि अंधेरे पक्ष को दर्शाती है. यह वह समय होता है जब अंधकार बहुत अधिक गहन होता है. इस तिथि के दौरान घर की चौखट, चौराहे, नदी, तलाब इत्यादि स्थानों पर दीपक जला कर प्रकाश का संचार करने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इस अंधकार को प्रकाश के माध्य्म से दूर करने का तात्पर्य उसी प्रकार से लिया जा सकता है, जिस प्रकार जीवन में आने वाले कष्टों से उबरने के लिए हमें स्वयं ही खुद को भीतर से आलोकित करने की आवश्यकता होती है.

हमारे भीतर का प्रकाश ही हमारी सभी बाधाओं से हमें निकाल पाने में सक्षम होता है. उसी प्रकार अमावस्य के अंधेर को हम प्रकाश के माध्यम से ही दूर कर सकते हैं. यह तिथि कृष्ण पक्ष के दौरान आती है और प्रत्येक माह में एक बार इस का आगमन होता है.

अमावस्या तिथि वार योग

अमावस्या तिथि के दिन कृष्ण पक्ष का समापन होता है. कृष्ण पक्ष पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली प्रतिपदा तिथि से शुरु होता है. तथा अमावस्या तिथि के दिन यह पक्ष समाप्त हो जाता है. इस तिथि के दिन सूर्य और चन्द्र दोनों समान अंशों पर होते है.

अमावस्या तिथि पित्तर तर्पण कार्य

इस तिथि के देव पित्तर देव है, अत: इस तिथि के दिन पित्तरों के तर्पण कार्य किए जाते है. चन्द्र मास की यह अंतिम तिथि होती है. तर्पण और पित्तर कार्यो के अलावा इस तिथि में अन्य कोई कार्य नहीं करना चाहिए.

मुहूर्त और अन्य शुभ कार्यो के लिए इस तिथि का सर्वथा त्याग किया जाता है.

इस तिथि में केवल भगवान शिव का पूजन और शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए. इस तिथि के विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस तिथि में पित्तरों के मोक्ष प्राप्ति के पक्ष से दानादि कार्य करता है, उसके पूर्वजों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है. अमावस्या तिथि में तीर्थ स्थानों पर स्नान और दान करना विशेष कल्याणकारी रहता है. इस तिथि अवसर पर बहुत से पर्वों का आयोजन भी होता है जो पौराणिक मान्यताओं में अमोघ फलदायक बताए गए हैं.

अमावस्या तिथि में जन्मा जातक

अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति में लम्बी आयु वाला होता है. घर से अधिक उसे परदेश में गमन करना पडता है. वह बुद्धि को कुटिल कार्यों में प्रयोग करता है. सत्तकार्यों को करने में उसे बुद्धि का सहयोग प्राप्त नहीं होता है. इसके साथ ही वह पराक्रमी होता है. अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है. व्यर्थ की सलाह देने की प्रवृति उस व्यक्ति में पाई जाती है.

अमावस्या तिथि के समय जन्म लेने वाला जातक जीवन में कष्ट और संघर्ष अधिक पाता है. मानसिक रुप से भी वह अधिक असंतुष्ट रह सकता है. अपनों का विरोधी बन सकता है. व्यक्ति जीवन में असंतुष्टी की भावना अधिक रखता है. इस तिथि में जन्मे जातक को अमावस्या के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को खाना खिलाना चाहिए. पीपल के वृक्ष को लगाना चाहिए, अपने पूर्वजों के निमित्त दान इत्यादि करना चाहिए.

अमावस्या तिथि पर्व

अमावस्या तिथि पितरों के निमित्त महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए दान -पूजा पाठ व्रत इत्यादि करता है. इस सभी का व्यक्ति को शुभ फल ही मिलता है. अमावस्य के दिन सोमवार पड़े तो उस दिन सोमवती अमावस्या के नाम से मनाई जाती है, यदि मंगलवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ रही हो तो भौमवती अमावस्या के नाम से मनाई जाती है. अगर शनिवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ रही हो तो उस दिन शनि अमावस्या के नाम से इसे मनाया जाता है. जिस दिन के साथ जुड़ती है तो उस दिन के अनुरुप इसका महत्व भी बढ़ जाता है. अन्य वारों में आने वाली अमावस्या की तुलना में इन तीन वारों में पडने वाली अमावस्या व्रत-उपवास के लिये विशेष होती है. (stairsupplies.com)

हरियाली अमावस्या –

श्रावण माह में आने वाली अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रुप में मनाया जाता है. इस दिन विशेष रुप से भगवान शिव जी का पूजन करने का विधान होता है. ये समय मौसम में होने वाले बदलावों के लिए प्रभावशाली रहता है. इस अमावस्या को पितृकार्येषु अमावस्या भी कहा जाता है.

कुशाग्रहणी अमावस्या –

भाद्रपद की अमावस्या को कुशाग्रहणी (कुशोत्पाटिनी) अमावस्या कहा जाता है. शास्त्रों में इसे कुशाग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन कुशा को तोड़ कर रख लिया जाता है और पूरे साल होने वाले धार्मिक कृत्यों के लिये उपयोग में लाया जाता है.

कार्तिक अमावस्या –

कार्तिक माह की अमावस्या कार्तिक अमावस्या एवं दीपावली नाम से जानी जाती है. यह दिन तंत्र-मंत्र एवं अन्य प्रकार की धार्मिक कृत्यों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.

मौनी अमावस्या –

यह माघ माह अमावस्या को मौनी अमावस्या नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन संगम के तट पर देवों का वास होता है ऎसे में इस स्थान पर गंगा स्नान करना शुभ फलों को देने वाला बनता है.

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चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों की भूमिका | Role of Planets in Medical Astrology | Significance of Planets in Medical Astrology

सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने पर या कोई ग्रह छठे स्थान का स्वामी होकर लग्न भाव या किसी अन्य भाव में कौन सी बीमारी दे सकता है. आइये समझते हैं,

सूर्य | The Sun

ह्रदय, पेट. पित्त , दायीं आँख, घाव, जलने का घाव, गिरना, रक्त प्रवाह में बाधा आदि.

चंद्र | The Moon

शरीर के तरल पदार्थ, रक्त बायीं आँख, छाती, दिमागी परेशानी, महिलाओं में मासिक चक्र.

मंगल | The Mars

सिर, जानवरों द्वारा काटना, दुर्घटना, जलना, घाव, शल्य क्रिया, आपरेशन, उच्च रक्तचाप, गर्भपात इत्यादि.

बुध | The Mercury

गला, नाक, कान, फेफड़े, आवाज, बुरे सपने

गुरु | The Jupiter

 यकृत शरीर में चर्बी, मधुमेह, शुक्र चिरकालीन बीमारियां , कान इत्यादि,

शुक्र | The Venus

मूत्र में जलन, गुप्त रोग, आँख, आंतें , अपेंडिक्स, मधुमेह, मूत्राशय में पथरी;

शनि | The Saturn

पांव, पंजे की नसे, लसीका तंत्र, लकवा, उदासी, थकान.  

राहू | The Rahu

हड्डियां , जहर फैलाना, सर्प दंश, क्रानिक बीमारियां, डर आदि. 

केतु | The Ketu

हकलाना, पहचानने में दिक्कत, आंत, परजीवी इत्यादि;

किसी भी रोगी जातक की कुंडली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले ३, ६, ८ स्थान के ग्रहों की शक्ति का आंकलन करना चाहिए.

यह ज्ञात होने पर की भविष्य में कौन सी बीमारी होने वाली है. यह रोग होने की संभावना है. उससे बचने के उपाय रोगी को बताने चाहिए. साथ ही किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से रोग निदान कराने की भी सलाह देनी चाहिए.

चिकित्सा ज्योतिष के  में कुछ नियम वेद – पुराणों में भी दिए गए हैं. विष्णु वेद-पुराण में कहा गया है की भोजन करते समय अपना मुख पूर्व दिशा, उतर दिशा में रखना चाहिए. उससे पाचन क्रिया उत्तम रहती है.

जन्म पत्रिका और हस्त रेखाओं का अध्ययन करने के बाद ज्योतिषी यह बताने का प्रयत्न करते हैं की उक्त व्यक्ति को भविष्य में कौन सी बीमारी होने की संभावना है. जैसे जन्म कुण्डली में तुला लग्न या राशि पीड़ित हो तो व्यक्ति कि कमर के निचले वाले भाग में समस्या होने की संभावना रहती है. जन्मपत्रिका में बीमारी का घर छठवां स्थान माना जाता है और अष्टम स्थान आयु स्थान है.

तृतीय स्थान अष्टम से अष्टम होने से यह स्थान भी बीमारी के प्रकार की और इंगित करता है. जैसे तृतीय स्थान में चंद्र पीड़ित हो तो टी.बी. की बीमारी की संभावना रहती है और तृतीय स्थान में शुक्र पीड़ित हो तो मधुमेह की संभावना रहती है.

 उपरोक्त ग्रहों में जो ग्रह छठे भाव का स्वामी हो या छठे भाव के स्वामी से युति सम्बन्ध बनाए उस ग्रह की दशा में रोग होने के योग बनते हैं. छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध लग्न भाव लग्नेश या अष्टमेश से होना स्वास्थ्य के पक्ष से शुभ नहीं माना जाता है. (jordan-anwar.com)  

जब छठे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो रोग अधिक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को लंबी अवधि के रोग होने की अधिक संभावनाएं रहती हैं.

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नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. (Ultram) एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra

अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

* यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

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