कनकदण्ड-इष्टबल-कीर्ति-चामर-कुलश्रेष्ठ-भाग्य योग कैसे बनता है | How is Formed Kanak Danda Yoga | What is Eshtha Bal Yoga | How is Formed Kirti Yoga | How is Formed Kirti Yoga

कनकदण्ड योग उस समय बनता है, जब सातों ग्रह मीन, मेष, वृ्षभ, और तुला राशियों में होते है. यह योग व्यक्ति को श्रेष्ठ धर्मपरायण बनाता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को यश की प्राप्ति होती है. जिस भी क्षेत्र में होता है, उसमें विरोधमुक्त होता है.  

इष्टबल योग क्या है. | What is Eshtha Bal Yoga 

जब पहले, चौथे या दसवें भाव में पंचमेश और नवमेश के साथ लग्नेश हों तो इष्टबल योग बनता है. यह योग व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त करने में सहयोग करता है. 

कीर्ति योग कैसे बनता है. | How is Formed Kirti Yoga 

लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में शुभ ग्रह हों, तो कीर्ति योग बनता है. कीर्ति योग व्यक्ति को जीवन भर समृ्द्धि और नाम दिलाता है. 

चामर योग कैसे बनता है. |  How is Formed Kirti Yoga 

केन्द्र में उच्च का चन्द्रमा गुरु से दृ्ष्ट हो या पहले, सातवें, नवें या दसवें भाव में दो शुभ ग्रह हों, तो चामर योग बनता है. इस योग से युक्त व्यक्ति उच्च स्तर के व्यक्तियों से आदर प्राप्त होता है. व्यक्ति श्रेष्ठ ज्ञानी होता है. उसे व्यवसायिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. आयु के पक्ष से भी यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. शिक्षा के क्षेत्र में उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है. 

कुलश्रेष्ठ योग कैसे होता है. | How is Kulshreshta Yoga Formed 

जब कुण्डली में शुक्र और शनि स्वराशियों में हों, तो कुलश्रेष्ठ योग बनता है. इस योग की शुभता से व्यक्ति आज्ञाकरी और निष्ठावान पुत्र प्राप्त करने में सफल होता है.  

भाग्य योग फल | Bhagya Yoga Reruslt 

भाग्य योग होने पर नवमेश ग्यारवें भाव में, गुरु के साथ हों, तब भाग्य योग बनता है. भाग्य योग से युक्त व्यक्ति धनवान होता है. उसे जीवन के कार्यो में भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. आय और लाभ के पक्ष से भी यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है.  

बन्धन योग कैसे बनता है. | How is Bandhan yoga Formed 

जब कुण्डली में लग्नेश अस्त हों, और सूर्य नीच राशि का हों, तो बन्धन योग बनता है. यह योग स्वास्थय के पक्ष से शुभ योग नहीं है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में बन्धन योग होता है. उसे किसी कारण वश कारावास में जीवन बीताना पडता है. 

मीराती योग फल | Mirati Yoga Result 

मिराती योग में तृ्तीयेश एक त्रिक भाव में या अशुभ ग्रहों की युति या दृ्ष्टि में हों, तो मिराती योग बनता है. इस योग का व्यक्ति शत्रुओं से पराजित होता है. उसे जीवन में भाईयों का सहयोग कम प्राप्त होता है. साथ ही यह योग व्यक्ति के साहस में कमी करता है. इस योग का व्यक्ति शक्तिहीन होता है. ऎसा व्यक्ति शीघ्र उतेजित होना पडता है. 

तथा योग के अनुकुल न होने के कारण व्यक्ति में अनुचित कार्य करने की प्रवृ्ति हो सकती है.  

मूक योग फल | Mook Yoga Result 

जब कुण्डली में द्वितीयेश की आठवें भाव में गुरु से युति हो रही होती है. उस समय मूक योग बनता है. यह योग अपने नाम के अनुसार फल देता है. यह योग व्यक्ति को बोलने में दोष देता है. ऎसा व्यक्ति बातचीत करते समय हकलाने का आदि हो सकता है.

नृ्पत योग क्या है. | What is the Narpat Yoga 

नृपत योग में दो ग्रह नीच होकर एक-दूसरे से केन्द्र में होते है. उदाहरण के लिए शनि मेष में और मंगल कर्क 

राशि में हों तो यह योग बनता है. इस योग का व्यक्ति सफलता प्राप्त करने के लिए अनुचित तरीकों को प्राप्त करता है.   

दुर्गेश योग किस प्रकार बनता है | How is Formed Durgesh Yoga 

दुर्गेश योग में राहू क नवांशेश उच्च का होकर पांचवें या नवें भाव में, नवमेश सातवें भाव में और मंगल बली हों.  यह योग व्यक्ति को भू-सम्पितयों का स्वामी बनाता है. पुरुषार्थ से सफलता प्राप्ति के पक्ष से यह शुभ योग है. 

शिव योग फल |  Shiv Yoga Result 

जब कुण्डलीमें पंचमेश नवें भाव में या दशमेश पांचवें भाव में और नवमेश दसवें भाव में होता है, तो शिव योग बनता है. शिव योग से युक्ति व्यक्ति महत्वपूर्ण कार्यो में लगा रहता है. उसे सत्ता संभालने के अवसर प्राप्त हो सकते है. साथ ही वह प्रभत्वशाली पद प्राप्त करने में सफल होता है.  

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सावन के माह का महत्व । Sawan Month | Importance of Sawan Month | Why Shiva Puja is Done

हिन्दू कैलेण्डर के बारह मासों में से सावन का महीना अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है. ऎसा लगता है मानों प्रकृति में एक नई जान आ गई है. वेदों में मानव तथा प्रकृति का बडा़ ही गहरा संबंध बताया गया है. वेदों में लिखी बातों का अर्थ है कि बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ तथा धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं. इन मंत्रों को पढ़ने से व्यक्ति को सुख तथा शांति मिलती है. सावन में बारिश होती है. इस बारिश में अनेक प्रकार के जीव-जंतु बाहर निकलकर आते हैं. यह सभी जन्तु विभिन्न प्रकार की आवाजें निकालते हैं. उस समय वातावरण ऎसा लगता है कि जैसे किसी ने अपना मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरम्भ किया हो. 

जीव-जन्तुओं की भाषा का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि जिस प्रकार बारिश होने पर जीव-जन्तु बोलने लगते हैं उसी प्रकार व्यक्ति को सावन के महीने से शुरु होने वाले चौमासों(चार मास) में ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ सुनना चाहिए. धर्मिक दृष्टि से समस्त प्रकृति ही शिव का रुप है. इस कारण प्रकृति की पूजा के रुप में इस माह में शिव की पूजा विशेष रुप से की जाती है. सावन के महीने में वर्षा अत्यधिक होती है. इस माह में चारों ओर जल की मात्रा अधिक होने से शिव का जलाभिषेक किया जाता है. 

शिव पूजन क्यों किया जाता है | Why Shiv Pujan is Done

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला था. इस विष को पीने के लिए शिव भगवान आगे आए और उन्होंने विषपान कर लिया. जिस माह में शिवजी ने विष पिया था वह सावन का माह था. विष पीने के बाद शिवजी के तन में ताप बढ़ गया. सभी देवी – देवताओं और शिव के भक्तों ने उनको शीतलता प्रदान की लेकिन शिवजी भगवान को शीतलता नहीं मिली. शीतलता पाने के लिए भोलेनाथ ने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण किया. इससे उन्हें शीतलता मिल गई. 

ऎसी मान्यता भी है कि शिवजी के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इन्द्र ने भी बहुत वर्षा की थी. इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली. इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है. सारा सावन, विशेष रुप से सोमवार को, भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद पूरे वर्ष में यह दूसरा अवसर होता है जब भग्वान शिव की पूजा बडे़ ही धूमधाम से मनाई जाती है.  

सावन माह की विशेषता | Speciality of Shravan Month

हिन्दु धर्म के अनुसार सावन के पूरे माह में भगवान शंकर का पूजन किया जाता है. इस माह को भोलेनाथ का माह माना जाता है. भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था. अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था. 

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में जन्म लिया. इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया. यह व्रत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए. भगवान शिव पार्वती से प्रसन्न हुए और बाद में यह व्रत सावन के माह में विशेष रुप से रखे जाने लगे.  

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बव करण फल

चन्द्रमा की एक कला तिथि कहलाती है. एक तिथि से दो नक्षत्र बनते है. इस प्रकार कृ्ष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की तिथियां मिलाकर 30 तिथियां बनती है. चरण एक तिथि में दो होते है. इस हिसाब से करण कुल 60 होने चाहिए. पर करण 60 न होकर केवल 11 ही है. इसमें भी प्रारम्भ के 7 करण चर प्रकृति के हैं, और बाकी के चार स्थिर है. वे एक चन्द्र माह में एक-एक बार आते है. व्यक्ति का जन्म जिस राशि, लग्न, नक्षत्र में होता है, उनके गुण-विशेषताएं व्यक्ति के स्वभाव को प्रभावित करते है. आईये बव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति का स्वभाव कैसा हो सकता है. यह जानने का प्रयास करते हैं.

बव करण- व्यक्ति स्वभाव

इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति जीवन में अपने कार्यों के लिए समाज में सराहा जाता है. वह अपने गुरुओं और अपने बडों का आदर करने वाला होता है. ऎसा व्यक्ति स्वभाव से खुशमिजाज प्रकृति का होता है. वह आशावादी स्वभाव का होता है. तथा उसकी सोच विस्तृत होती है. इसके अतिरिक्त वह धार्मिक आस्था युक्त होता है. शिक्षा क्षेत्र में वह अपनी योग्यता के लिए सम्मान प्राप्त करता है.

शुभ प्रकृति के कार्यो को करने में सदैव अग्रणी भूमिका निभाता है. तथा दूसरों को सहयोग या दान-धर्म में उसकी स्वभाविक रुचि होती है. उदारवादी होने के कारण दूसरों के दु:ख बांटने का प्रयास करता है. बव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्थिर विचारों का होता है.

बव करण कब आता है

बव करण एक गतिशील करण है. यह चलायमान रहता है. तिथि में ये करण बार-बार आता है. यह एक सौम्य करण माना गया है. अस्थिर करण होने पूर्णिमा और अमावस की तिथियों को छोड़ कर बाकी तिथियों की गणना के अनुरुप आता रहता है.

बव करण-चरसंज्ञक है

बव करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न ध्रुव करण कहलाते है.

बव करण में क्या काम करें

बव करण को शुभ करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण में सगाई, विवाह, गृह निर्माण, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ एवं मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. यह करण किसी काम के शुरु करने या किसी यात्रा को करने के लिए लिया जा सकता है. बव करण में व्यक्ति परिक्षा इत्यादि में सफल हो सकता है. साथ ही किसी प्रकार के अधूरे बचे हुए कामों को पूरा करने का मौका भी मिलता है. इस समय पर व्यक्ति अपनी जीत के लिए बहुत अधिक प्रयासशील रहता है. व्यक्ति साहस और मेहनत से भरे कामों को कर सकने में भी सक्षम होता है.

बव करण का मुहूर्त में महत्व

मुहूर्त निकालने के लिए बव करण को उपयोग में लिया जाता है. इस करण के दौरान व्यक्ति सकारात्मक कार्य, सफलता प्राप्ति के काम, शुभत अपाने के काम, नौकरी में ज्वाइनिंग का काम जैसे बहुत से काम किए जा सकते हैं. इस समय किसी के साथ मित्रता एवं किसी प्रकार के संधि प्रस्तावों पर भी काम शुरु किया जा सकता है.

बव करण फल

बव करण बालवस्था की स्थिति को प्राप्त करने वाला करण है. इस करण का प्रतीक सिंह है, इस प्रकार इस करण के प्रभाव स्वरुप जातक पराक्रम से युक्त काम करने की कोशिश करता है. इसकी अवस्था बालावस्था है और इसी कारण इसमें ऊर्जा भी अधिक रहती है. यह जातक को मिलनसार, स्वाभिमानी बनाता है. चंचलता भी अधिक रहती है . इसमें किए गए कामों में व्यवधान नही आते हैं और काम पूरा भी होता है. बव करण के प्रभाव से स्वास्थ्य सुख की पूर्ति होती है. विरोधियों और संकटों से लड़ने के लिए सदैव साहस का परिचय देने में सक्षम है.

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लग्न में स्थित राशि का व्यवसाय पर प्रभाव । Effect of Sign Present in Ascendant । Movable Sign | Fixed Sign | Dual Sign

अनेक विद्वानों के मतानुसार लग्न की राशि के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय होता है. लग्न में जो राशि आती है और लग्न में स्थित ग्रहों के गुणधर्म के अनुसार व्यक्ति की आजीविका होती है. कई विद्वानों का मानना है कि व्यवसाय के विश्लेषण में जो महत्व नवम, दशम तथा एकादश भाव का है वही महत्व लग्न भाव का भी है.

विषम राशि यदि लग्न में हैं तब व्यक्ति साहस तथा पराक्रम के बल पर सफलता पाता है. ऎसे जातक में नेतृत्व, अधिकार तथा आदेश देने की प्रवृति होती है.यह जातक इसी प्रकार के व्यवसाय में सफलता हासिल करते हैं.

सम राशि लग्न में आती है तब जातक धीर तथा गंभीर होता है. वह सहिष्णु होता है. ऎसा व्यक्ति अनुगामी या सहायक के रुप मे काम करना अधिक पसन्द करता है. यह सेवाकार्य करना पसन्द करते हैं. यह कर्त्तव्य पालन को अधिक महत्व देते हैं. अनुशासन में रहकर कार्य करते हैं.

चर राशि | Movable Sign 

यदि लग्न में चर राशि होती है तो जातक घूमने-फिरने वाले कार्य अधिक करता है. वह पर्यटन, भ्रमण अथवा फेरी लगाने के कामों से अपनी आजीविका चलाता है. व्यक्ति किसी परिवहन सेवा से भी जुड़ सकता है. वह परिवहन सेवा से जुड़कर बहुत अधिक यात्राएँ करत है. जातक कोई भी कार्य करें बिना भ्रमण के उसका कार्य पूरा नहीं होगा. 

स्थिर राशि। Fixed Sign

यदि लग्न में स्थिर राशि है तब जातक एक ही स्थान पर टिककर कार्य करता है. वह अपने कार्य में एकाग्रचित्त रहता है. व्यक्ति को एकान्त की आवश्यकता नहीं पड़ती है. वह पूरी निष्ठा से तन्मय होकर काम करता है. जो भी कार्य करता है वह स्थिर रहते हैं. उसे स्थिर कार्य करना पसन्द होता है.

द्वि-स्वभाव राशि | Dual Sign

लग्न में द्वि-स्वभाव राशि है तो व्यक्ति के आजीविका के साधन कभी स्थिर होते हैं तो कभी चर होते हैं. जातक का मन स्थिर नहीं रहता है. उसे कभी भ्रमण करना अच्छा लगता है तो कभी टिककर कार्य करना पसन्द होता है.

उपरोक्त राशियों के अतिरिक्त अन्य राशियों के अनुसार भी व्यक्ति अपने व्यवसाय को अपनाता है.

अग्नि तत्व राशि। Fiery Sign 

लग्न में यदि अग्नि तत्व राशि होती है जातक को यह पराक्रम. परिश्रम तथा संघर्ष से भरे कार्य कराती हैं. व्यक्ति उत्साह, उमंग, साहस, तथा वीरता से आगे बढ़ने में विश्वास करता है. वह अपने बल पर जीवन में आजीविका प्राप्त करता है.

भूमि तत्व राशि | Earth Sign

यह राशियाँ वैश्य वर्ण की राशियाँ होती हैं. व्यक्ति अपने कार्य सोच-विचारकर योजनाबद्ध तरीके से करता है. यह अपने लाभ तथा हानि वाले कार्यों में सजग रहते है. यह यथार्थवादी होते है. परिस्थितियों के अनुकूल काम करते है. यह बेकार की काल्पनिक उडा़नों से दूर ही रहते है. बुद्धि को भ्रामक बनाने वाले काम नहीं करते है. यह धरातल पर रहकर कार्य करते है. यह ऎसे कार्यों से जीविकापार्जन करते हैं जिनमें अति उत्साह की आवश्यकता नहीं होती है. 

वायु तत्व राशि | Airy Sign

यदि वायु तत्व राशि लग्न में, होती है तब व्यक्ति कला से संबंधित कार्यों से आजीविका प्राप्त करता है. उसे ऎसे कार्यों में रुचि होती है जिनमें कल्पना की ऊदा़न भी शामिल होती है. जातक काल्पनिकता से जुडे़ कार्य करता है. अपनी बुद्धि का प्रयोग अधिक करता है. व्यक्ति को ऎसे कार्यों में अधिक सफलता मिलती है जिनमें कल्पना की आवश्यकता हो, साहित्य तथा बुद्धि परक कार्य हों.

जल तत्व राशि | Watery Sign

यह राशि लग्न में होने पर जातक संवेदना तथा भावुकता से संबंधित विषयों से आजीविका प्राप्त करता है. पठन – पाठन, दार्शनिकता तथा आध्यात्मिकता से जुडे़ कार्यों को अपनाता है. रहस्य तथा अध्यत्म से जुडे़ गूढ़ विषयों में व्यक्ति की रुचि होती है.

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शनि क्या है । The Saturn in Astrology । Know Your Planets- Saturn | Satrun and Choice of Profession

शनि ग्रह को समझने के लिए सबसे पहले शनि की कारक वस्तुओं को जानना आवश्यक है. शनि ज्योतिष में आयु का कारक ग्रह है. इसके प्रभाव से प्राकृ्तिक आपदायें, मृ्त्यु, बुढापें, रोग, निर्धनता,पाप, भय, गोपनीयता, कारावास, नौकरी, विज्ञान नियम, तेल-खनिज, कामगार, मजदूर सेवक, सेवाभाव, दासता, कृ्षि, त्याग, उंचाई से गिरना,  अपमान, अकाल, ऋण, कठोर परिश्रम, अनाज के काले दानें, लकडी, विष, टांगें, राख, अपंगता, आत्मत्याग, बाजू, ड्कैती, रोग, अवरोध, लकडी, ऊन, यम अछूत, लंगडेपन, इस्पात, कार्यो में देरी लाना. 

शनि के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Saturn.  

बुध व शुक्र शनि के मित्र ग्रह है.  

शनि के शत्रु ग्रह कौन से है. |  Which are the enemy planets of the Saturn.

सूर्य,चन्द्र तथा मंगल शनि के शत्रु ग्रह है.  

शनि के साथ कौन से ग्रह सम संबन्ध रखते है. |  Which planet forms neutral relation with the Saturn.  

शनि के साथ गुरु सम संबन्ध रखता है.  

शनि को कौन सी राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. | Saturn is Which sign Lord.  

शनि को मकर व कुम्भ राशियों का स्वामित्व प्राप्त है.  

शनि की मूलत्रिकोण राशि कौन सी है. | Which is the Mooltrikona sign of the Saturn.  

शनि की मूलत्रिकोण राशि कुम्भ है. इस राशि में शनि 1अंश से 20 अंश के मध्य अपनी मूलत्रिकोण राशि में होते है.  

शनि किस राशि में उच्च के होते है. | Which is the exalted sign of the Saturn.  

शनि तुला राशि में 20 अंश पर उच्च राशिस्थ होते है.  

शनि की नीच राशि कौन सी है. | Which is the debiliated sign of the Saturn.  

शनि की नीच राशि मेष है. मेष राशि में शनि 20 अंश पर होने पर अपनी नीच राशि में होते है.  

शनि ग्रह किस लिंग के कारक है. | Saturn comes under which gender category 

शनि ग्रह को स्त्री प्रधान, और नपुंसक ग्रह कहा गया है. 

शनि ग्रह की दिशा कौन सी है. | Which Direction  represent the Saturn.  

शनि ग्रह पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करते है.  

शनि ग्रह का भाग्य रत्न कौन सा है. | Which gem must be hold for the Saturn.  

शनि ग्रह का भाग्य रत्न नीलम, कटैला है. 

शनि ग्रह का शुभ रंग कौन सा है. |  What is the colour of the Saturn.  

स्धनि ग्रह का रंग भूरा, नेवी, ब्लू रंग् कालापन लिए हुए होता है.  

शनि ग्रह की शुभ अंक कौन से है. | What is the Number of the Venus.  

शनि ग्रह के लिए 8, 17, 26 अंक का प्रयोग करना शुभ रहता है.  

शनि ग्रह के लिए किस देव का पूजन करना चाहिए. | Which god should be worshipped for the Saturn.  

शनि ग्रह के लिए ब्रह्मा, शिव का पूजन करना चाहिए.  

शनि देव का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Saturn.  

शनि देव का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैं नम: ( एक संकल्प समय में 23000 बार)

शनि का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Saturn. 

शनि ग्रह का वैदिक मंत्र इस प्रकार है. 

नीलाजंन समाभासं रवि पुत्रम यजाग्रजम।

छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शज्नैश्वरम।।

शनि की दान योग्य वस्तुएं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Saturn.  

शनि के लिए लोहा, काली कीलें, काला कपडा, काले फूल, मां की दाल, काली उडद की दाल, कस्तूरी, काली गाय. इनमें से किसी एक वस्तु का दान शनिवार को दोपहर को करना शुभ रहता है.  

शनि का रुप-रंग कैसा है. |  What is the form of Saturn affected people.

शनि देव लम्बे पतले शरीर वालें, रंग में पीलापन लिए होता है. लम्बे और मुडे हुए नाखून, बडे बडे दांत, वाररोग, आलसी,रुखे उलझे बाल वाले है. 

शनि देव शरीर में कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करते है. | Saturn represents which organs of the body 

शनि देव वायु तत्व रोग, पित्त प्रधान, गर्दन, हड्डियां, दान्त, प्रदूषण के कारण होने वाले रोग, मानसिक विक्षेप,  पेट के रोग, चोट, आघात, अंगहीन, कैन्सर, लकवा, गठिया, बहरापन,लम्बी अवधि के रोग देता है. 

शनि कौन सी वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है. | What is the specific Karaka of the Saturn. 

शनि को देरी, अवरोध, कष्ट, विपत्ति, लोकतन्त्र, मोक्ष का कारक माना गया है.  

शनि के विशिष्ठ गुण क्या है. | What is the specific Quality of the Saturn. 

शनि तर्क, दर्शन, आत्मत्याग, नपुंसक ग्रह, कृ्पण, विनाशकारी शक्तियां, ठण्डा बर्फीला ग्रह, रहस्यमय, रुखा. आदि गुण देता है.  

शनि के कार्यक्षेत्र कौन से है. |  Saturn and Choice of Profession

शनि आजीविका भाव का स्वामी होने पर व्यक्ति से सेवा कार्य कराता है. इस योग का व्यक्ति कठोर परिश्रम करने वाला, नौकरी पसन्द, सरकारी नौकरी प्राप्त, दिमागी और शारीरिक कार्य करने में कुशल, लोहा और इस्पात, ईंट, शीशे टायल कारखाना, जूते-चप्पल, लकडी या पत्थर का काम, बढई, तेल का काम, राजगीर, दण्ड देने से संबन्धित उपकरण,  सभी प्रकार के उत्तरदायित्व वाली नौकरियां, गहन अध्ययन, और गहरे अध्ययन,  मकान निर्माण, सर्वेक्षण, ठेकेदारी, खान खोदने वाले, धोखेबाज, भिखारी, जल्लाद, तपस्वी, काला जादू, छाता, सेवक, चालक, कुली, निर्माता.  

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शुक्र क्या है । The Venus in Astrology । Know Your Planets- Venus | Venus and Choice of Profession

शुक्र पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. वह विवाह का कारक ग्रह है, ज्योतिष में शुक्र से वाहन, काम सुख, आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं का कारक ग्रह है. शुक्र से आराम पसन्द होने की प्रकृ्ति, प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे वस्त्र, सुन्दरता, सजावट, नृ्त्य, संगीत, गाना बजाना, काले बाल, विलासिता, व्यभिचार, शराब, नशीले पदारथ, कलात्मक गुण, आदि गुण देखे जाते है. 

शुक्र के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Venus.  

शनि व बुध शुक्र के मित्र ग्रह है. 

शुक्र के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Venus.  

शुक्र  ग्रह के शत्रुओं में सूर्य व चन्द्रमा है. 

शुक्र के साथ सम सम्बन्ध कौन से ग्रह रखते है. | Which planet forms neutral relation with the Venus.  

शुक्र के साथ गुरु व मंगल सम सम्बन्ध रखते है. 

शुक्र को कौन सी राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. । Venus is Which sign Lord. 

शुक्र वृ्षभ व तुला राशि के स्वामी है.  

शुक्र की मूलत्रिकोण राशि कौन सी है. | Which is the Mooltrikona sign of the Venus. 

शुक्र तुला राशि में 0 अंश से 15 अंश के मध्य होने पर मूलत्रिकोण राशिस्थ होता है. 

शुक्र की उच्च राशि कौन सी है. | Which is the exalted sign of the Venus.

शुक्र मीन राशि में 27अंश पर होने पर उच्च राशि अंशों पर होता है. 

शुक्र की नीच राशि कौन सी है. | Which is the debiliated sign of the Venus. 

शुक्र कन्या राशि में 27अंश पर होने पर नीच राशि में होता है.  

शुक्र ग्रह किस लिंग का प्रतिनिधित्व करता है. | Venus comes under which gender category 

शुक्र को स्त्री प्रधान ग्रह कहा गया है. 

शुक्र ग्रह की दिशा कौन सी है. | Which Direction  represent the Venus. 

शुक्र ग्रह की दक्षिण-पूर्व दिशा है.

शुक्र का भाग्य रत्न कौन सा है.| Which gem must be hold for the Venus. 

शुक्र का भाग्य रत्न हीरा है. इसका उपरत्न सफेद जरकिन है. 

शुक्र का शुभ रंग कौन सा है. | What is the colour of the Venus.  

शुक्र का शुभ रंग गुलाबी, क्रीम है.

शुक्र के अधिदेवता कौन से है. | Which god should be worshipped for the Venus. 

शुक्र के लिए शचि, इन्द्राणी, लक्ष्मी है.  

शुक्र का बीच मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Venus.

शुक्र का बीच मंत्र इस प्रकार है. 

ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम: 

एक संकल्प समय में 6000 बार)

शुक्र का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Venus. 

शुक्र का वैदिक मंत्र इस प्रकार है. 

हिमकुन्द मृ्णालाभं दैत्यानां परमं गुरुम।

सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भर्गव प्रणामाम्यहम ।।

शुक्र के लिए कौन सी वस्तुओं का दान किया जाता है. | What should be given in Charity for the Venus. 

शुक्र के लिए घी, कपूर, दही, चांदी, चावल, चीनी, सफेद वस्त्र और फूल या गाय.  इन वस्तुओं का दन शुक्रवार को सूर्यास्त के समय दान करना चाहिए.  

शुक्र ग्रह का क्या रंग-रुप कहा गया है. | What is the form of Venus affected people.

शुक्र ग्रह को सुन्दर शरीर वाला, बडी आंखे दिखने में आकर्षक, घुंघराले बाल, काव्यात्मक, कफमय कम खाने वाला, छोटी कद-काठी, दिखने में युवा बताया गया है.  

शुक्र का शरीर में कौन से अंगो का प्रतिनिधित्व करता है. | Venus represents which organs of the body

शुक्र शरीर में वायु, कफ. आंखें, जननागं पेशाब, वीर्य का प्रतिनिधित्व करता है.

शुक्र कौन से रोग दे सकता है. | When the Venus is at weaker position , what diseases can affect a person.

शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को रति संबन्धित रोग, मधुमेह, पेशाब की थैली, गुरदे में पथरी, मोतियाबिन्द, बेहोशी, के दौरे, जननांग संबन्धित परेशानियां, सूजन, शरीर में यंत्रणात्मक दर्द, श्वेत प्रदर, मूत्र सम्बन्धित रोग, चेहरे, आंखों और गुप्तागों से संबन्धित रोग, खसरा, स्त्रियों में माहवारी और उससे संबन्धित रोग.  

शुक्र की कारक वस्तुएं कौन सी है. | What is the specific Karaka of the Venus.

शुक्र इन्द्रिय सुख, उत्तेजना, जीव आदि का कारक ग्रह है.  

शुक्र के विशिष्ट गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Venus. 

शुक्र व्यक्ति में काव्यात्मक प्रकृ्ति देता है, वह भौतिक सुख-सुविधाओं का कारक ग्रह है. चमक-दमक का प्रतिनिधित्व शुक्र करता है. शुक्र से वीर्य, खेल, कला और संस्कृ्ति देखी जाती है.  

शुक्र के व्यवसाय और कार्यक्षेत्र कौन से है. | Venus and Choice of Profession

शुक्र आजीविका भाव में बली अवस्था में हो, दशमेश हो, या फिर दशमेश के साथ उच्च राशि का स्थित हो, तो व्यक्ति में कलाकार बनने के गुण होते है. वह नाटककार और संगीतज्ञ होता है. उसकी रुचि सिनेमा के क्षेत्र में काम करने की हो सकती है.  शुक्र से प्रभावित व्यक्ति कवि, चित्रकार, वस्त्र विक्रेता,वस्त्र उद्योग, कपडे बनाने वाला, इत्र, वाहन विक्रेता, वाहन बनाने वाले, व्यापारिक संस्थान, आभूषण विक्रेता, भवन बनाने वाले इंजिनियर, दुग्धशाला, नौसेना, रेलवे, आबकारी, यातायात, बुनकर, आयकर, सम्पति कर आदि का कार्य करता है. 

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द्वितीय भाव क्या है । Dhan Bhava Meaning | Second House in Horoscope | 2nd House in Indian Astrology

कुण्डली के दूसरे भाव को द्वितीय भाव भी कहते है. यह भाव पनफर भाव, मारक स्थान भी कहलाता है. द्वितीय भाव को धनभाव, कुटुम्ब स्थान, वाक स्थान के नाम से भी जाना जाता है.  

धन भाव क्या दर्शाता है. | What does the Shows of Dhana Bhava

धन भाव धन-संपति, मृत्यु, वाणी, परिवार, विचार, अस्थिर, संचित सम्पति, नाक, शिक्षा, प्रथम स्कूली शिक्षा, दाईं आखं, स्वयं के द्वारा संचित धन, चेहरा, भौतिक कल्याण, द्वितीय् विवाह, अध्यापक, वकील, बैंकर्स, बाँण्ड, जमापूंजी, स्टाक और शेयर बाजार, मित्र, रोकड, प्रलेख, गिरवी वस्तु, बैंक में धन, स्वर्ण, चांदी, रुबी, मोती, धन से जुडे मामलें, स्व-प्रयासों से संचय, नाखुन, संसारिक, प्राप्तियां, दान्त, जीभ.  

द्वितीय भाव का कारक ग्रह कौन सा है. | What are the Karaka Planets of 2nd Bhava 

द्वितीय भाव का कारक ग्रह गुरु है.  गुरु इस भाव से परिवार और धन का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति की वाणी के लिए बुध का विचार किया जाता है. शुक्र-परिवार, सूर्य और चन्द्रमा से व्यक्ति की आंखों का विश्लेषण किया जाता है.  

द्वितीय भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है. । What does the House of Dhana Explain.  

द्वितीय भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का विचार किया जाता है.

द्वितीय भाव से सूक्ष्म रुप में किस विषय का विचार किया जाता है. | What does the House of Dhana accurately explains.

द्वितीय भाव से व्यक्ति के परिवार से संबन्ध की जांच की जाती है. 

द्वितीय भाव् से कौन से संबन्धी देखे जा सकते है. | Dhana’s House represents which  relationships. 

द्वितीय भाव से छोटे भाई के द्वारा उपहार आदि का विश्लेषण किया जा सकता है.  

द्वितीय भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | 2nd House is the Karak House of which body parts. 

द्वितीय भाव चेहरा, मुख, गाल, आंखे,  गला, जीभ, ठोढी, दान्त आदि का प्रतिनिधित्व करता है. द्रेष्कोणों के अनुसार इस भाव से दाईं आंख, दायां कन्धा, जननांग का दायां भाग आदि की जांच की जाती है.  

धनेश के अन्य स्वामियों के साथ परिवर्तन योग से किस प्रकार के फल मिलते है.| 2nd Lord Privartan Yoga Results 

द्वितीयेश और तृ्तीयेश दोनों परिवर्तन योग में हों, तो खल योग बनता है. यह खल योग व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रों में प्रतिष्ठा दिलाने में सहयोग करता है.  

द्वितीयेश और चतुर्थेश का परिवर्तन योग होने पर एक उत्तम विद्या योग बनता है. यह एक शुभ योग है. इस योग की शुभता से व्यक्ति को उच्च शिक्षा, परिवार से सहयोग, सम्पति से या ननिहाल के सम्बन्धियों से उच्च आर्थिक सामर्थ्य प्राप्त होना. 

द्वितीयेश और पंचमेश दोनों परिवर्तन योग बना रहे हों, तो व्यक्ति की धन-सम्पति में बढोतरी होती है. उसका बडा परिवार, परिवार से लगाव, बुद्धिमतापूर्ण भाषा, कमाऊ संतान आदि देता है.  

द्वितीयेश और षष्टेश आपस में परिवर्तन योग कर रहे हों, तो व्यक्ति को मुकद्दमेबाजी और स्वास्थय संबन्धी विषयों पर व्यय करने पडते है. उसे नौकरी से लाभ प्राप्त होते है. तथा जीवन साथी के स्वास्थय में कमी रहने के योग बनते है.  

द्वितीयेश और सप्तमेश जब परिवर्तन् योग बनाते है, तो व्यक्ति को प्रभुत्व वाला जीवन साथी मिलता है. उसका अच्छा पारिवारिक जीवन होता है. साझेदारों के द्वारा लाभ प्राप्त होते है. तथा और सास-ससुर से धन -सम्पति की प्राप्ति होती है.  

द्वितीयेश और अष्टमेश परिवर्तन योग में शामिल होंने पर दुरयोग बनता है. यह अशुभ योग है. तथा इससे व्यक्ति के आर्थिक संकट, असन्तोषपूर्ण पारिवारिक जीवन, आंखों और दान्तों कि समस्या आ सकती है.  

द्वितीयेश और नवमेश से बनने वाला परिवर्तन योग धन योग कहलाता है. धनयोग व्यक्ति के धन में बढोतरी करता है. पिता, सरकार और विदेश से धन प्राप्त करने में सहयोग करता है. इस योग के व्यक्ति को वाहन, 32 साल की आयु के उपरान्त अधिक भाग्यशाली बनाते है, परिवार की धन -सम्पति में बढोतरी होती है. 

द्वितीयेश और दशमेश परिवर्तन योग बन रहा है. यह योग व्यक्ति को धनी बनाता है. व्यापार के द्वारा अतिशय लाभ और आय, उच्च पद आदि दिलाता है. अगर दशमेश पीडित हों, तो व्यक्ति अपने पद का दुरुपयोग करने से पीछे नहीं हटता है. और गुप्त तरीको से आय प्राप्त करने का प्रयास करता है. 

द्वितीयेश व एकादशेश जब परिवर्तन योग बना रहे हों, तो व्यक्ति को व्यापार में लाभ प्राप्त होता है. धन और सम्पति के पक्ष से भी यह योग अनुकुल होता है.  विवाह के उपरान्त भाग्य में बढोतरी होती है.  

द्वितीयेश तथा द्वादशेश से बनने वाला परिवर्तन योग व्यक्ति की आय और व्यय दोनों में बढोतरी करता है. दोनों के पीडीत होने पर व्यक्ति की आंखों में समस्याएं, उन्नति के लिए पारिवारिक स्थितियों के कारण परिवार से वियोग होने के योग बनते है. यह योग व्यक्ति को विदेशी व्यापार से लाभ दिलाता है. 

द्वितीय भाव और द्वितीयेश से बनने वाले अन्य योग कौन से है.  | 2nd Lord and 2nd House Others Yoga 

दूसरे भाव में बुध चन्द्रमा या बुध गुरु की युति व्यक्ति को धनी बनाती है.

द्वितीयेश का तीसरे भाव में होने का अर्थ है, कि छोटे भाई से व्यक्ति सभी प्रकार की सहायता, संगीतज्ञ, प्रसिद्धि, और धन प्राप्त करता है. 

चौथे भाव में चतुर्थेश के साथ बैठा, द्वितीयेश आर्थिक लाभ, भूमि, वाहन, घरों आदि का लाभ देता है.  

पांचवें भाव में पंचमेश के साथ बैठा द्वितीयेश समृ्द्ध संतान, बौद्धिक कार्य और अमीरी को दर्शाता है.  

छठे भाव में षष्टेश के साथ बैठा द्वितीयेश समृ्द्ध मामालों और धनवान व्यक्तियों के साथ शत्रुता दर्शाता है. 

सातवें भाव में सप्तमेश के साथ बैठा द्वितीयेश अच्छा दहेज और धनवान सास-ससुर देता है. 

आंठवें भाव में अष्टमेश और द्वितीयेश की युति व्यकि को सन्ताप, कृ्पणता, ऋण चुकाने में असमर्थता, जीवन साथी के स्वास्थय में कमी का योग बनाती है. 

नवम भाव में नवमेश और द्वितीयेश युति सम्बन्ध में हों तो व्यक्ति का पिता धनी, उचित्त तरीकों से आय और ज्ञानी व्यक्तियों से मित्रता रखने वाला होता है. 

दशवें भाव में दशमेश के साथ द्वितीयेश स्थित हों, तो व्यक्ति को उच्च पद, लाभ प्राप्त होते है.  

द्वितीयेश और एकादशेश की युति व्यक्ति को अचानक से धनी बनाती है. 

द्वितीयेश और द्वादशेश का युति सम्बध होने पर व्यक्ति धन वृ्द्धि करता है. परन्तु मन्द गति से. 

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जन्म कुण्डली तथा होरा कुण्डली | Janam Kundali and Hora Kundali

वर्ग कुण्डलियाँ | Varga Kundalis

किसी भी कुण्डली का अध्ययन करते समय संबंधित भाव की वर्ग कुण्डली का अध्ययन अवश्य करना चाहिए. वैदिक ज्योतिष में कई वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. जिनमें से कुछ वर्ग कुण्डलियाँ प्रमुख है. लग्न कुण्डली मुख्य कुण्डली होती है. लग्न कुण्डली में 12 भाव स्थिर होते हैं. इन बारह भावों के बारे में विस्तार से जानना है तो वर्ग कुण्डलियों का सूक्ष्मता से अध्ययन करना चाहिए. कई बार लग्न कुण्डली में घटना का होना स्पष्ट रुप से दिखाई देता है पर फिर भी जातक को समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसके लिए वर्ग कुण्डलियाँ देखना आवश्यक है. लग्न कुण्डली में कई बार ग्रह बली होते हैं और वही ग्रह वर्ग कुण्डली में निर्बल हो जाता है तब अनुकूल फल मिलने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है.  

अलग-अलग बातों के लिए अलग-अलग वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. लग्न कुण्डली के सप्तम भाव से जीवनसाथी का विचार किया जाता है. इसी सप्तम भाव के वर्ग कुण्डली में 12 हिस्से कर दिए जाते हैं तो वह नवाँश कुण्डली के नाम से जानी जाती है. नवाँश कुण्डली का अध्ययन जीवन के सभी पहलुओं के लिए किया जाता है. संतान का अध्ययन पांचवें भाव से किया जाता है और वर्ग कुण्डली में सप्ताँश कुण्डली से संतान का विचार किया जाता है. यदि जन्म कुण्डली में पंचम भाव पीड़ित है और सप्ताँश कुण्डली बहुत अच्छी है तब कुछ इलाज के बाद संतान की प्राप्ति संभव है. यदि लग्न कुण्डली और सप्ताँश कुण्डली दोनों ही में पीडा़ है तब संतान प्राप्ति मुश्किल है. 

एक बात का आपको विशेष रुप से ध्यान रखना होगा कि किसी भी वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए गणना आपको जन्म कुण्डली में ही करनी होगी. 

आइए विस्तार से वर्ग कुण्डलियों का अध्ययन करना सीखें. 

अधिकतर स्थानों पर षोडशवर्ग कुण्डलियों का अध्ययन किया जाता है. षोडशवर्ग में निम्न वर्ग कुण्डलियाँ आती है :- 

D-1, D-2, D-3, D-4, D-7, D-9, D-10, D-12, D-16, D-20, D-24, D-27, D-30, D-40, D-45, D-60. इन सभी कुण्डलियों का अध्ययन आगे आने वाले अध्यायों में विस्तार से किया जाएगा. 

जन्म कुण्डली या D-1 | Janam Kundali or D-1

यह लग्न कुण्डली है. जीवन के सभी क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है. इस कुण्डली में 12 भाव तथा नौ ग्रहों का आंकलन किया जाता है. इसमें एक भाव 30 अंश का होता है. वर्ग कुण्डली में ग्रह किसी भी भाव या राशि में जाएँ लेकिन सभी वर्ग कुण्डलियों के लिए गणना जन्म कुण्डली में ही की जाएगी. picture बनानी है

होरा कुण्डली या D-2 | Hora Kundali or D-2

इस कुण्डली से जातक के पास धन-सम्पत्ति का आंकलन किया जाता है. इस कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश को दो बराबर भागों में बाँटेंगें. 15-15 अंश के दो भाग बनते हैं. कुण्डली को दो भागों में बाँटने पर ग्रह केवल सूर्य या चन्द्रमा की होरा में आएंगें. कुण्डली दो भागों, सूर्य तथा चन्द्रमा की होरा में बँट जाती है. समराशि में 0 से 15 अंश तक चन्द्रमा की होरा होगी. 15 से 30 अंश तक सूर्य की होरा होगी. विषम राशि में यह गणना बदल जाती है. 0 से 15 अंश तक सूर्य की होरा होगी. 15 से 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा होगी. 

माना मिथुन लग्न 22 अंश का है. यह विषम लग्न है. विषम लग्न में लग्न की डिग्री 15 से अधिक है तब होरा कुण्डली में चन्द्रमा की होरा उदय होगी अर्थात होरा कुण्डली के प्रथम भाग में कर्क राशि आएगी और दूसरे भाग में सूर्य की राशि सिंह आएगी. अब ग्रहों को भी इसी प्रकार स्थापित किया जाएगा. माना बुध 17 अंश का मकर राशि में जन्म कुण्डली में स्थित है. मकर राशि समराशि है और बुध 17 अंश का है. समराशि में 15 से 30 अंश के मध्य ग्रह सूर्य की होरा में आते हैं तो बुध सूर्य की होरा में लिखा जाएगा. सिंह राशि में बुध को लिख देगें. picture बनानी है. 

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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स्वतंत्र रुप से व्यापार करने के योग | Yogas of Doing Business Independently, Business Related Yogas, Career, Profession

कई व्यक्ति जीवन में दूसरों के अधीन रहकर कार्य करते हैं अर्थात नौकरी से अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं. बहुत से व्यक्ति ऎसे भी होते हैं जिन्हें किसी के अधीन रहकर कार्य करना रास नही आता है. ऎसे व्यक्ति स्वतंत्र रुप से कार्य करना पसन्द करते हैं. कुण्डली में व्यापार करने के लिए योग मौजूद होते हैं. यह योग निम्नलिखित हैं.

* चन्द्र कुण्डली में शुभ ग्रह केन्द्र में हो तो जातक बिजनेस से धन कमाता है.

* चन्द्रमा, गुरु तथा शुक्र परस्पर दो/बारह भावों में स्थित है तो व्यक्ति स्वयं के व्यवसाय से जीविकोपार्जन करता है.

* चन्द्र कुण्डली से गुरु तृतीय भाव में स्थित हो तथा शुक्र लाभ स्थान में स्थित हो तो व्यक्ति अपना स्वयं का व्यवसाय करता है.

* बुध ग्रह बुद्धि का कारक ग्रह है. कुण्डली में बुध, राहु या शनि से दृष्ट अथवा युत है तो व्यक्ति स्वतंत्र रुप से व्यवसाय करता है. लेकिन शनि कुण्डली में बली होकर बुध को दृष्ट कर रहा है तो व्यक्ति नौकरी करता है.

* कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी यदि धन भाव में स्थित है और बुध सप्तम भाव में स्थित है तब व्यक्ति बिजनेस करता है.

* बुध को बिजनेस का कारक ग्रह माना जाता है. बुध कुण्डली में यदि सप्तम भाव में द्वितीयेश के साथ है तब जातक बिजनेस करता है.  

* कुण्डली में बुध तथा शुक्र द्वितीय भाव अथवा सप्तम भाव में स्थित है और शुभ ग्रहों से दृष्ट है तब जातक व्यापार करता है.

* द्वितीय भाव का स्वामी शुभ ग्रह की राशि में स्थित हो और बुध या सप्तमेश उसे देख रहें हों तब व्यक्ति व्यापार करता है.

* उच्च के बुध पर द्वितीयेश की दृष्टि हो तो व्यक्ति व्यापार करता है.

* गुरु की द्वितीय भाव के स्वामी पर दृष्टि हो तब व्यक्ति व्यापार करता है.

* दशम भाव में बुध की स्थिति से व्यक्ति व्यापारी बनता है.

* दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होने से व्यापार करता है. उसे बिजनेस में धन लाभ होता है.

* लग्नेश तथा दशमेश की परस्पर दृष्टि व युति या दोनों का स्थान परिवर्तन हो तब व्यक्ति बिजनेस करता है.    

* दशम भाव का स्वामी केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित है तब भी व्यक्ति स्वतंत्र रुप से व्यापार करता है.

* कुण्डली में आत्मकारक ग्रह के नवाँश में शनि स्थित है तब व्यक्ति व्यापार में समृद्धि पाता है.

* सप्तम भाव से द्वादश भाव तक या दशम भाव से तृतीय भाव तक पाँच या पाँच से अधिक ग्रह स्थित हैं तब व्यक्ति स्वतंत्र व्यापार करता है.

व्यवसाय संबंधी अन्य योग | Business Related Other Yogas

* कुण्डली में सूर्य ग्रह से लेकर शनि ग्रह तक सभी ग्रह परस्पर त्रिकोण भाव में स्थित हैं तब व्यक्ति कृषि कार्य से अपनी आजीविका कमाता है.

* राहु/केतु को छोड़कर कुण्डली में सातों ग्रह किन्हीं चार भावों में स्थित है तो व्यक्ति भूमि अर्थात कृषि कार्य से लाभ पाता है.

* मंगल और चतुर्थ भाव का स्वामी केन्द्र/त्रिकोण भाव में स्थित हो या लाभ भाव में स्थित हो और दशमेश के साथ शुक्र तथा चन्द्रमा की युति हो तब व्यक्ति कृषि तथा पशुपालन से धन प्राप्त करता है.

* कुण्डली के नवम भाव में बुध, शुक्र तथा शनि स्थित है तब व्यक्ति कृषि कार्य से धन प्राप्त करता है.

* लग्न तथा सप्तम भाव में सभी ग्रह स्थित हो तब शकट योग बनता है और व्यक्ति ट्राँसपोर्ट से या लकडी़ के सामान के व्यापार से धनोपार्जन करता है.

* गुरु अष्टम भाव स्थित हो और पाप ग्रह केन्द्र में हो. किसी भी शुभ ग्रह का संबंध इनसे नहीं हो तो व्यक्ति मछली-माँस आदि का व्यापार करता है.

* बुध या शुक्र दशम भाव में दशमेश का नवाँशपति होकर स्थित है तब व्यक्ति कपडे़ का व्यापार करता है.

* गुरु से शुक्र केन्द्र भाव में स्थित है तब व्यक्ति कपडो़ का व्यवसाय करता है.

* मंगल तथा सूर्य के दशम भाव में स्थित होने से व्यक्ति अपनी कार्य कुशलता के आधार पर सफल कारीगर बनता है और धन पाता है.

* दशम भाव में चन्द्रमा तथा राहु की युति व्यक्ति को कूटनीतिज्ञ बनाती है.

* दशम भाव में मंगल स्थित हो या मंगल का दशम भाव के स्वामी के साथ दृष्टि/युति संबंध हो तब व्यक्ति कुशल प्रशासक बनता है या सेना में अधिकारी बनता है.

* गुरु तथा केतु के संबंध से व्यक्ति होम्योपैथिक डॉक्टर बनता है.

* चन्द्रमा, बुध के नवाँश में स्थित हो और सूर्य से दृष्ट हो तब व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफलता हासिल करता है.

* कुण्डली का पंचम भाव बली हो और शुक्र, बुध तथा लग्नेश का परस्पर दृष्टि/युति संबंध हो तो फिल्मों में व्यक्ति को सफलता मिलती है.

* चन्द्रमा या शुक्र की युति लग्नेश से हो तब व्यक्ति लेखक, कवि या पत्रकार बनता है.

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एपिडोट उपरत्न | Epidote Gemstone Meaning, Epidote – Metaphysical And Healing Properties, Epidote Crystals

इस उपरत्न की जानकारी 18वीं सदी से प्राप्त होती है.  यह एक टिकाऊ उपरत्न है. यह पारदर्शी, पारभासी अथवा अपारदर्शी तीनों ही रुपों में पाया जाता है. इस उपरत्न का रंग लौह सांद्रता के आधार पर होता है. कई बार यह गहरा हरा, भूरा अथवा पूरा काला भी होता है. यह दिखने में एक चमकदार उपरत्न है. इस उपरत्न का तत्व जल तथा पृथ्वी तत्व है. यह उपरत्न अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. भौतिक रुप में यह उपरत्न आंतरिक अंत:स्त्रावी ग्रंथियों का विकास करता है. भावनाओं को स्थिर रखता है. 

एपिडोट के आध्यात्मिक गुण | Epidote – Metaphysical, Spiritual Properties

यह उपरत्न आध्यात्मिक विकास के द्वार खोलने में मदद करता है. आध्यत्मिकता का विकास करता है. भावनात्मक शरीर के आभामण्डल को साफ करने में सहायक होता है. सभी पुरानी दमित भावनाओं को शुद्ध रखने में सहायक होता है. यह उपरत्न व्यक्ति के चहुंमुखी विकास में मदद करता है. यह धारक को अहसास दिलाता है कि वह कौन है और फिर उसकी सकारात्मक छवि लोगों के सामने लाता है. यह उपरत्न धैर्य को बढा़वा देता है. जातक के भीतर बढ़ी बेचैनी को भी कम करता है.

यह उपरत्न धारणकर्त्ता को मुसीबतों से बचाने का कार्य करता है. दुख तथा तकलीफों को कम करने में सहायक होता है. उदासी से जातक को उबारने का कार्य करता है. जो व्यक्ति हमेशा अपने ऊपर तरस खाते रहते हैं उनकी सहायता करता है. उन्हें भीतर से मजबूत बनाता है. उनके आत्मविश्वास में बढा़वा करता है. विद्वानों के मध्य ऎसी धारणा है कि यह उपरत्न बातचीत के तरीकों में बढो़तरी करता है. धारक को अन्य लोगों से मिल-जुल कर रहना सिखाता है. यह धारक को सामाजिक रुप से भी जागरुक रखता है.

यह उपरत्न हर प्रकार से वृद्धि करने वाला उपरत्न है. एपिडोट के प्रभाव में चाहे कुछ भी आए, चाहे वह भौतिक हो अथवा वह अन्य कोई और वस्तु हो, एपिडोट के छूने से सकारात्मकता आती है. यह उपरत्न भावनात्मक तथा आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि करने में मदद करता है. यह निजी ऊर्जा को बढा़ने में भी मदद करता है. यह उपरत्न आलोचनाओं को दूर करने का काम करता है. उदार बनाता है. यह धारक को जागरुक बनाता है और धारक की पहचान स्वयं से कराता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को तत्काल निर्णय लेने में सहायता करता है.

एपिडोट के चिकित्सीय गुण | Epidote Crystals – Healing Abilities

यह धारणकर्त्ता के अंदर रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है. यह सभी चिकित्सा प्रक्रियाओं का समर्थन करता है अर्थात हर बीमारी को सही रखने की क्षमता रखता है. इस उपरत्न का उपयोग पाचन क्रिया को नियंत्रित रखने के लिए भी किया जा सकता है. विशेषतौर पर उन लोगों के लिए जो भोजन में अनियमितता बरतते हैं. यह तनाव तथा चिन्ता से धारक को मुक्त रखता है.

अकारण भय को समाप्त करता है. मानसिक थकान से निजात दिलाने में सहायक होता है. जातक के चारों ओर सुरक्षा चक्र बनाकर रखता है और नकारात्मक ऊर्जा को नजदीक नहीं आने देता. यह उपरत्न हृदय संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए अनुकूल है. यह दिल को मजबूत रखता है. यह शरीर के सभी अंगों को सुचारु रुप से कार्य करने के लिए संतुलित रखता है. यह साँस से संबंधित विकारों को कम करता है. थायरॉयड को होने से रोकता है. धारक की त्वचा को नरम रखता है. 

एपिडोट के रंग | Colors Of Epidote Gemstone

यह उपरत्न गहरे हरे, भूरे तथा काले रंग में भी मिलता है. हरे रंग में पीलेपन की आभा लिए भी यह उपरत्न पाया जाता है. पीले तथा ग्रे रंग में भी यह उपलब्ध है.

एपिडोट कहाँ पाया जाता है | Where Is Epidote Found

यह उपरत्न मुख्य रुप से आस्ट्रिया, ब्राजील, फिनलैण्ड, चीन, फ्राँस तथा मेक्सिको में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा मोजाम्बीक में भी पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Epidote

इस उपरत्न को जातक अपनी सुविधाओं तथा आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं. यह उपरत्न किसी भी मुख्य रत्न का उपरत्न नहीं है. इसलिए इसे स्वतंत्र रुप से पहनना चाहिए.

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