कश्यप ऋषि- ज्योतिष का इतिहास | Kashyap Rishi – History of Astrology

ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के समय गुण मिलान करते समय इस नियम का प्रयोग आज भी किया जाता है. एक गौत्र के वर-वधू का विवाह करने पर होने वाली संतान में शारीरिक अपंगता रहने के योग बनते है. 

ऋषि कश्यप ने ज्योतिष में अन्य अनेक शास्त्रों की रचना की. इनका उल्लेख श्रीमदभागवत गीता में भी मिलता है. भारत में चिकित्सा ज्योतिष के क्षेत्र में भी ऋषि कश्यप ने अपना विशेष योगदान दिया है. प्राचीन काल के श्रेष्ठ ऋषियों में ऋषि कश्यप का नाम लिया जाता है. 

कश्यप ऋषि ज्योतिष इतिहास में भूमिका | Kashyap Rishi Role in History of Astrology

ऋषि कश्यप ने कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं,  जिनके माध्यम से व्यक्ति की आयु का निर्णय किया जाता है. इसके अलावा वनस्पति शास्त्र और वैदिक ज्योतिष के लिए भी कश्यप ऋषि ने अनेक शास्त्र बनाये़. ऋषि कश्यप का वर्णन पौराणिक और धार्मिक धर्म ग्रन्थों में मिलता है. ऋषि कश्यप के वंशजों ने ही सृ्ष्टि का प्रसार किया था. इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है. यह माना जाता है, कि इनका विवाह 17 कन्याओं से हुआ था.  

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क्राइसोप्रेज उपरत्न | Chrysoprase Gemstone – Can I Wear Chrysoprase – Yellow Chrysoprase – Metaphysical Properties Of Chrysoprase

इस उपरत्न को देखकर कई लोगों को जेड उपरत्न का भ्रम हो जाता है. इसलिए इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है. इसका रंग द्रव्य निकिल है. इस उपरत्न के बडे़ आकार के पत्थर प्राय: कोमल तथा हल्के रंग के होते हैं. इस उपरत्न को गर्म करने पर या अधिक देर सूर्य की रोशनी में रखने पर इसका रंग फीका पड़ जाता है. यदि इसे दुबारा नमी के वातावरण में रखा जाए तो इसका मूल रंग दोबारा वापिस आ जाता है.

इस उपरत्न को “हरितमणि” के नाम से भी जाना जाता है. इस उपरत्न की सबसे अच्छी श्रेणी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है. यह कई हल्के रंगों में पाया जाता है. लेकिन हल्का हरा रंग इसकी उत्तम श्रेणी हैं अथवा “एप्पल ग्रीन” रंग में यह उपरत्न अच्छा माना जाता है. इसके अतिरिक्त हल्का पीला रंग भी अच्छा माना जाता है. यह एक पारभासी उपरत्न है. इस उपरत्न का उपयोग गहनों के निर्माण में अधिक होता है.

क्राइसोप्रेज शब्द, ग्रीक शब्द “क्राइसोस प्रासोन” से लिया गया है जिसका अर्थ है :- गोल्ड लीक. इस उपरत्न को विजयी उपरत्न के रुप में भी जाना जाता है. ऎसी मान्यता है कि 18वीं सदी में चोरी करने वाले व्यक्ति इस उपरत्न को अपने मुँह में रख लेते थे, जिससे वह गायब हो जाएँ और किसी को दिखाई ना दें.

इस उपरत्न के साथ एक दिलचस्प घटना यह भी जुडी़ है कि प्राचीन समय में एक बार एक व्यक्ति को फाँसी की सजा दी गई. जब उस व्यक्ति को फाँसी के फन्दे तक ले जाया जा रहा था तब उसने अपने मुँह में क्राइसोप्रेज का एक छोटा सा टुकडा़ रख लिया ताकि वह फाँसी से बच सके. प्राचीन समय में ग्रीक और रोमन राज्य के लोगों द्वारा इस उपरत्न का उपयोग आध्यात्मिक चिकित्सा तथा सजावट की वस्तुओं के रुप में किया जाता था.

राजा एलैग्जण्डर इस उपरत्न को हमेशा अपने साथ अपनी कमर में बाँधकर रखते थे ताकि वह सभी लडा़इयों में विजयी रहें.

क्राइसोप्रेज के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Chrysoprase

यह उपरत्न धारणकर्त्ता की अवचेतना में नई चेतना भरता है. यह मानव की अन्त:दृष्टि में वृद्धि करता है और चेतना को बली बनाता है. खुशी तथा आशा में वृद्धि करता है. समस्याओं को समझने तथा उन्हें सुस्पष्ट करने में मदद करता है. जिन्हें बेचैनी अधिक रहती है उन्हें इस उपरत्न को धारण करने से सुकून मिलता है. समुद्री यात्राओं पर जाने वालों के लिए यह एक शुभ उपरत्न है. यह उपरत्न जख्मों को जल्द भरता है. चिकित्सा पद्धति के रुप में इस उपरत्न का एक टुकडा़ पॉकेट में रखने से लाभ मिलता है. इसके अतिरिक्त जल्दी स्वास्थ्य लाभ के लिए इस उपरत्न का एक टुकडा़ बिस्तर के नीचे रखकर सोना चाहिए.

यह उपरत्न नकारात्मक ऊर्जा को, ढा़ल अथवा रक्षक बनकर दूर करता है. इस उपरत्न का एक बाउल(Bowl) बनाकर घर के प्रवेश द्वार पर रखना चाहिए. इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में नहीं घुस पाएगी.जो व्यक्ति इस उपरत्न को गहनों के रुप में इस्तेमाल करना चाहते हैं वह इसे चाँदी में जडा़ए. यदि इसे दिल की आकृति के रुप में पहना जाता है तब यह और अधिक प्रभावशाली होता है. यह उपरत्न मन तथा मस्तिष्क को शांत रखने में सहायता करता है. सत्य और स्वीकृति को बढा़वा मिलता है. यह भावनात्मक कल्याण के लिए शुभ उपरत्न है और चेतना के विकास के लिए भी कल्याणकारी है.

यह उपरत्न व्यक्ति के अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. जिन व्यक्तियों को दिल से संबंधित विकार हैं उन्हें इस उपरत्न को धारण करने से लाभ प्राप्त होगा. यह उपरत्न इस चक्र की सूक्ष्म ऊर्जा को सक्रिय करता है. यह व्यक्ति विशेष को प्रेम, सत्य, आशा के प्रति जागरुक तथा आशावादी बनाता है. यह उपरत्न भौतिक अस्तित्व में उच्च सार्वभौमिक ऊर्जा लाने का कार्य करता है. यह व्यक्ति के अहं को नियंत्रित करता है. यह आत्मज्ञान में वृद्धि करने में मदद करता है. धारणकर्त्ता की नकारात्मक सोच को सकारात्मकता में बदलता है. उग्र भावनाओं तथा उग्र विचारों को शांत रखने में मदद करता है. जिन्हें प्रेम में कष्ट अथवा धोखा मिलता है उनके लिए सुख प्रदान करने वाला उपरत्न है.

पीला क्राइसोप्रेज उपरत्न | Yellow Chrysoprase Gemstone

यह तनाव को दूर करता है. मस्तिष्क को अधिक सक्रिय बनाता है. बुरे सपने आते हैं तो इस उपरत्न को तकिए के नीचे रखने से राहत मिलती है और व्यक्ति चैन की नींद सोता है. लीवर को नियंत्रित रखता है. हार्मोन्स को नियंत्रित करता है. प्रजनन क्षमता का विकास करता है. पाचन क्रिया को सुचारु रुप से चलाने में मदद करता है. दिल से संबंधित बीमारियों को जल्द ठीक करता है. यौन असंतुलन को नियंत्रित करता है. अच्छी धारणाओं में वृद्धि करता है, उन्हें बढा़वा देता है. व्यापार तथा व्यक्तिगत मामलों में धारणकर्त्ता को निष्ठावान बनाता है.

कैसे धारण करे | How To Wear Chrysoprase Gemstone

इस उपरत्न को चाँदी में जड़वा कर पहना जा सकता है. यह उपरत्न मानव शरीर के अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है इसलिए इसे लॉकेट में बनवाकर दिल के पास पहनना चाहिए. इस उपरत्न का एक टुकडा़ पॉकेट में भी रखा जा सकता है. इसे लम्बी अवधि तक धारण किया जा सकता है और यह अपनी सकारात्मक ऊर्जा लम्बी अवधि तक प्रदान करेगा. इसे ह्हाथ में भी रखा जा सकता है.

कहाँ पाया जाता है | Where is Chrysoprase Found

यह उपरत्न आस्ट्रेलिया में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न भारत, ब्राजील, जिम्बाब्वे, कैलीफोर्निया, साउथ अफ्रीका, तन्जानिया, रुस, मैडागास्कर, कजाकिस्तान आदि देशों में पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Chrysoprase

जिन्हें दिल की बीमारी है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. जिनका दिल कमजोर है और वह जल्दी घबरा जाते हैं उनके लिए भी यह उपरत्न शुभदायक है.

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गुरु ज्योतिष में । The Jupiter in Astrology । Know Your Planets- Jupiter | Jupiter and Choice of Profession

वैदिक ज्योतिष का आधार 9 ग्रह, 12 राशियां व 27 नक्षत्र है. इन्हीं नौ ग्रहों म्रें स्रे एक ग्रह है, जिसे गुरु या वृ्हस्पति ग्रह् के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष के 9 ग्रहों में से गुरु ग्रह को सबसे अधिक शुभ ग्रह माना गया है. गुरु की कारक वस्तुओं में पुत्र संतान, जीवन साथी, धन-सम्पति, शैक्षिक गुरु, बुद्धिमता, शिक्षा, ज्योतिष तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा, त्याग, समृ्द्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यो, राजसिक सम्मान.  

गुरु से संबन्धित कार्य क्षेत्र कौन से है. | Jupiter and Choice of Profession

गुरु के प्रभाव से व्यक्ति को बैंक, आयकर, खंजाची, राजस्व, मंदिर, धर्मार्थ संस्थाएं, कानूनी क्षेत्र, जज, न्यायाल्य, वकील, लेखापरीक्षक, सम्पादक, प्राचार्य, शिक्षाविद, अध्यापक, शेयर बाजार, पूंजीपति, मंत्री, दार्शनिक, निगम पार्षद, ज्योतिषी, वेदो और शास्त्रों का ज्ञाता.  

गुरु के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Jupiter.

गुरु के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल है.  

गुरु के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Jupiter. 

गुरु के शत्रु ग्रह बुध, शुक्र है.  

गुरु के साथ सम सम्बन्ध रखने वाले ग्रह कौन से है. | Which planet forms neutral relation with the Jupiter. 

गुरु के साथ शनि सम संबन्ध रखता है. 

गुरु को कौन सी राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. । Jupiter is Which sign Lord 

गुरु को मीन व धनु राशि का स्वामित्व प्राप्त है.

गुरु की मूलत्रिकोण राशि कौन सी है. | Which is the Mooltrikona sign of the Jupiter. 

गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु है. इस राशि में गुरु 0 अंश से 10 अंश के मध्य अपने मूलत्रिकोण अंशों पर होते है.

गुरु किस राशि में उच्च के होते है. |  Which is the exalted sign of the Jupiter. 

गुरु कर्क राशि में 5 अंश पर होने पर अपनी उच्च राशि अंशों पर होते है.  

गुरु किस राशि में नीच राशि के होते है. | Which is the debiliated sign of the Jupiter. 

गुरु मकर राशि में 5 अंशों पर नीच राशिस्थ होते है. 

गुरु किस लिंग का प्रतिनिधित्व करते है. | Jupiter comes under which gender category 

गुरु को पुरुष प्रधान ग्रह कहा गया है. 

गुरु किस दिशा के कारक ग्रह है. | Which Direction  represent the Jupiter. 

गुरु उत्तर-पूर्व दिशा के कारक ग्रह है. 

गुरु का शुभ रत्न कौन सा है. | Which gem must be hold for the Jupiter. 

गुरु के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए पुखराज रत्न धारण किया जाता है. 

गुरु का  शुभ रंग कौन सा है. | What is the colour of the Jupiter. 

गुरु का शुभ रंग पिताम्बरी पीला है.  

गुरु के शुभ अंक कौन से है. | Which are the lucky numbers of the Jupiter. 

गुरु के शुभ अंक 3, 12, 21 है. 

गुरु के अधिदेवता कौन से है. | Which god should be worshipped for the Jupiter.  

गुरु के अधिदेवता इन्द्र, शिव, ब्रह्मा, भगवान नारायण है. 

गुरु का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Jupiter. 

गुरु का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: (एक समय में संकल्प संख्या 19000 बार) 

गुरु का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Jupiter. 

गुरु का वैदिक म्म्त्र इस प्रकार है. 

देवानां च ऋषिणा च गुर्रु कान्चन सन्निभम ।

बुद्यिभूतं त्रिलोकेश तं गुरुं प्रण्माम्यहम ।।

गुरु की दान की वस्तुओं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Jupiter. 

गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिए निम्न वस्तुओं का दान करना चाहिए.  

स्वर्ण, पुखराज, रुबी, चना दान, नमक, हल्दि, गुड, बूरा या पीले चावल, पीले फूल या पीले लडडू. 

इन वस्तुओं का दान वीरवार की शाम को करना शुभ रहता है.  

गुरु के प्रभाव से व्यक्ति का रुप-रंग किस प्रकार का हो सकता है. | What is the form of jupiter affected people.

गुरु लग्न भाव में बली होकर स्थित हों, या फिर गुरु की धनु या मीन राशि लग्न भाव में हो, अथवा गुरु की राशियों में से कोई राशि व्यक्ति की जन्म राशि हो, तो व्यक्ति के रुप-रंग पर गुरु का प्रभाव रहता है.  गुरु के प्रभाव से व्यक्ति मोटापा लिए हुए, साफ रंग-रुप, कफ प्रकृ्ति, सुगठित शरीर का होता है. 

गुरु कौन से रोग दे सकता है. | When the Jupiter is at weaker position , what diseases can affect a person.

गुरु कुण्डली में कमजोर हो, या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो व्यक्ति को मधुमेह, पीलिया, चक्कर आना, गाल-ब्लेडर, खून की कमी, शरीर में दर्द, दिमागी रुप से विचलित, पेट में गडबड, बवासीर, वायु विकार, कान, फेफडों या नाभी संबन्धित रोग, दिमाग घूमना, बुखार, बदहजमी, फोडा, पेट बढन, हर्निया, मस्तिष्क, मोतियाबिन्द, बिषाक्त, अण्डाश्य का बढना, बेहोगी.

गुरु जीवन में कौन सी वस्तुओं का प्रतिनिधित्त्व करता है. |   What is the specific Karaka of the Jupiter.  

गुरु बुद्धि को बुद्धिमान, ज्ञान, खुशियां और सभी चीजों की पूर्णता देता है. 

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अमावस्या तिथि

अमावस्या तिथि अंधेरे पक्ष को दर्शाती है. यह वह समय होता है जब अंधकार बहुत अधिक गहन होता है. इस तिथि के दौरान घर की चौखट, चौराहे, नदी, तलाब इत्यादि स्थानों पर दीपक जला कर प्रकाश का संचार करने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इस अंधकार को प्रकाश के माध्य्म से दूर करने का तात्पर्य उसी प्रकार से लिया जा सकता है, जिस प्रकार जीवन में आने वाले कष्टों से उबरने के लिए हमें स्वयं ही खुद को भीतर से आलोकित करने की आवश्यकता होती है.

हमारे भीतर का प्रकाश ही हमारी सभी बाधाओं से हमें निकाल पाने में सक्षम होता है. उसी प्रकार अमावस्य के अंधेर को हम प्रकाश के माध्यम से ही दूर कर सकते हैं. यह तिथि कृष्ण पक्ष के दौरान आती है और प्रत्येक माह में एक बार इस का आगमन होता है.

अमावस्या तिथि वार योग

अमावस्या तिथि के दिन कृष्ण पक्ष का समापन होता है. कृष्ण पक्ष पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली प्रतिपदा तिथि से शुरु होता है. तथा अमावस्या तिथि के दिन यह पक्ष समाप्त हो जाता है. इस तिथि के दिन सूर्य और चन्द्र दोनों समान अंशों पर होते है.

अमावस्या तिथि पित्तर तर्पण कार्य

इस तिथि के देव पित्तर देव है, अत: इस तिथि के दिन पित्तरों के तर्पण कार्य किए जाते है. चन्द्र मास की यह अंतिम तिथि होती है. तर्पण और पित्तर कार्यो के अलावा इस तिथि में अन्य कोई कार्य नहीं करना चाहिए.

मुहूर्त और अन्य शुभ कार्यो के लिए इस तिथि का सर्वथा त्याग किया जाता है.

इस तिथि में केवल भगवान शिव का पूजन और शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए. इस तिथि के विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस तिथि में पित्तरों के मोक्ष प्राप्ति के पक्ष से दानादि कार्य करता है, उसके पूर्वजों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है. अमावस्या तिथि में तीर्थ स्थानों पर स्नान और दान करना विशेष कल्याणकारी रहता है. इस तिथि अवसर पर बहुत से पर्वों का आयोजन भी होता है जो पौराणिक मान्यताओं में अमोघ फलदायक बताए गए हैं.

अमावस्या तिथि में जन्मा जातक

अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति में लम्बी आयु वाला होता है. घर से अधिक उसे परदेश में गमन करना पडता है. वह बुद्धि को कुटिल कार्यों में प्रयोग करता है. सत्तकार्यों को करने में उसे बुद्धि का सहयोग प्राप्त नहीं होता है. इसके साथ ही वह पराक्रमी होता है. अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है. व्यर्थ की सलाह देने की प्रवृति उस व्यक्ति में पाई जाती है.

अमावस्या तिथि के समय जन्म लेने वाला जातक जीवन में कष्ट और संघर्ष अधिक पाता है. मानसिक रुप से भी वह अधिक असंतुष्ट रह सकता है. अपनों का विरोधी बन सकता है. व्यक्ति जीवन में असंतुष्टी की भावना अधिक रखता है. इस तिथि में जन्मे जातक को अमावस्या के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को खाना खिलाना चाहिए. पीपल के वृक्ष को लगाना चाहिए, अपने पूर्वजों के निमित्त दान इत्यादि करना चाहिए.

अमावस्या तिथि पर्व

अमावस्या तिथि पितरों के निमित्त महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए दान -पूजा पाठ व्रत इत्यादि करता है. इस सभी का व्यक्ति को शुभ फल ही मिलता है. अमावस्य के दिन सोमवार पड़े तो उस दिन सोमवती अमावस्या के नाम से मनाई जाती है, यदि मंगलवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ रही हो तो भौमवती अमावस्या के नाम से मनाई जाती है. अगर शनिवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ रही हो तो उस दिन शनि अमावस्या के नाम से इसे मनाया जाता है. जिस दिन के साथ जुड़ती है तो उस दिन के अनुरुप इसका महत्व भी बढ़ जाता है. अन्य वारों में आने वाली अमावस्या की तुलना में इन तीन वारों में पडने वाली अमावस्या व्रत-उपवास के लिये विशेष होती है. (stairsupplies.com)

हरियाली अमावस्या –

श्रावण माह में आने वाली अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रुप में मनाया जाता है. इस दिन विशेष रुप से भगवान शिव जी का पूजन करने का विधान होता है. ये समय मौसम में होने वाले बदलावों के लिए प्रभावशाली रहता है. इस अमावस्या को पितृकार्येषु अमावस्या भी कहा जाता है.

कुशाग्रहणी अमावस्या –

भाद्रपद की अमावस्या को कुशाग्रहणी (कुशोत्पाटिनी) अमावस्या कहा जाता है. शास्त्रों में इसे कुशाग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन कुशा को तोड़ कर रख लिया जाता है और पूरे साल होने वाले धार्मिक कृत्यों के लिये उपयोग में लाया जाता है.

कार्तिक अमावस्या –

कार्तिक माह की अमावस्या कार्तिक अमावस्या एवं दीपावली नाम से जानी जाती है. यह दिन तंत्र-मंत्र एवं अन्य प्रकार की धार्मिक कृत्यों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.

मौनी अमावस्या –

यह माघ माह अमावस्या को मौनी अमावस्या नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन संगम के तट पर देवों का वास होता है ऎसे में इस स्थान पर गंगा स्नान करना शुभ फलों को देने वाला बनता है.

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चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों की भूमिका | Role of Planets in Medical Astrology | Significance of Planets in Medical Astrology

सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने पर या कोई ग्रह छठे स्थान का स्वामी होकर लग्न भाव या किसी अन्य भाव में कौन सी बीमारी दे सकता है. आइये समझते हैं,

सूर्य | The Sun

ह्रदय, पेट. पित्त , दायीं आँख, घाव, जलने का घाव, गिरना, रक्त प्रवाह में बाधा आदि.

चंद्र | The Moon

शरीर के तरल पदार्थ, रक्त बायीं आँख, छाती, दिमागी परेशानी, महिलाओं में मासिक चक्र.

मंगल | The Mars

सिर, जानवरों द्वारा काटना, दुर्घटना, जलना, घाव, शल्य क्रिया, आपरेशन, उच्च रक्तचाप, गर्भपात इत्यादि.

बुध | The Mercury

गला, नाक, कान, फेफड़े, आवाज, बुरे सपने

गुरु | The Jupiter

 यकृत शरीर में चर्बी, मधुमेह, शुक्र चिरकालीन बीमारियां , कान इत्यादि,

शुक्र | The Venus

मूत्र में जलन, गुप्त रोग, आँख, आंतें , अपेंडिक्स, मधुमेह, मूत्राशय में पथरी;

शनि | The Saturn

पांव, पंजे की नसे, लसीका तंत्र, लकवा, उदासी, थकान.  

राहू | The Rahu

हड्डियां , जहर फैलाना, सर्प दंश, क्रानिक बीमारियां, डर आदि. 

केतु | The Ketu

हकलाना, पहचानने में दिक्कत, आंत, परजीवी इत्यादि;

किसी भी रोगी जातक की कुंडली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले ३, ६, ८ स्थान के ग्रहों की शक्ति का आंकलन करना चाहिए.

यह ज्ञात होने पर की भविष्य में कौन सी बीमारी होने वाली है. यह रोग होने की संभावना है. उससे बचने के उपाय रोगी को बताने चाहिए. साथ ही किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से रोग निदान कराने की भी सलाह देनी चाहिए.

चिकित्सा ज्योतिष के  में कुछ नियम वेद – पुराणों में भी दिए गए हैं. विष्णु वेद-पुराण में कहा गया है की भोजन करते समय अपना मुख पूर्व दिशा, उतर दिशा में रखना चाहिए. उससे पाचन क्रिया उत्तम रहती है.

जन्म पत्रिका और हस्त रेखाओं का अध्ययन करने के बाद ज्योतिषी यह बताने का प्रयत्न करते हैं की उक्त व्यक्ति को भविष्य में कौन सी बीमारी होने की संभावना है. जैसे जन्म कुण्डली में तुला लग्न या राशि पीड़ित हो तो व्यक्ति कि कमर के निचले वाले भाग में समस्या होने की संभावना रहती है. जन्मपत्रिका में बीमारी का घर छठवां स्थान माना जाता है और अष्टम स्थान आयु स्थान है.

तृतीय स्थान अष्टम से अष्टम होने से यह स्थान भी बीमारी के प्रकार की और इंगित करता है. जैसे तृतीय स्थान में चंद्र पीड़ित हो तो टी.बी. की बीमारी की संभावना रहती है और तृतीय स्थान में शुक्र पीड़ित हो तो मधुमेह की संभावना रहती है.

 उपरोक्त ग्रहों में जो ग्रह छठे भाव का स्वामी हो या छठे भाव के स्वामी से युति सम्बन्ध बनाए उस ग्रह की दशा में रोग होने के योग बनते हैं. छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध लग्न भाव लग्नेश या अष्टमेश से होना स्वास्थ्य के पक्ष से शुभ नहीं माना जाता है. (jordan-anwar.com)  

जब छठे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो रोग अधिक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को लंबी अवधि के रोग होने की अधिक संभावनाएं रहती हैं.

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नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. (Ultram) एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra

अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

* यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

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क्या मोती रत्न मेरे लिये अनुकुल रहेगा? | Will Pearl Stone be Favourable for me? (Which Stone should I wear)

चन्द्र रत्न मोती मुक्ता, मोक्तिम, इंदुरत्न, शाईरत्न आदि कई नामों से जाना जाता है (Pearl is known by different names like: Mukta; Moktim, Shairatna, etc,). मोती रत्न के स्वामी चन्द्र है. इस रत्न को अपने लग्न अनुसार धारण किया जाये तो यह रत्न व्यक्ति को माता सुख, मन, यश, बुद्धि, संपति ओर राज ऎश्वर्य आदि देता है. मोती को मुक्तारत्न के नाम से भी जाना जाता है. मोती रत्न के विषय में एक मान्यता है, कि इस रत्न को जो भी व्यक्ति धारण करता है, उसे लक्ष्मी, लावण्य, वैभव, प्रतिष्ठा और गुरु की प्राप्ति होती है. 

मोती रत्न कौन धारण करें? Who should wear Pearl Stone?

मोती चन्द्र का रत्न है. और ग्रहों में चन्द्र को मन का स्वामी बनाया गया है. 12 लग्नों के लिये चन्द्र रत्न मोती धारण करना निम्न रुप से शुभ या अशुभ रहता है. मोती हो या कोई अन्य रत्न व्यक्ति को अपने लग्न की जांच कराने के बाद ही कोई रत्न धारण करना सर्वथा अनुकुल रहता है. आईए अलग-अलग लग्नों के लिये मोती को धारण करने के फल जानने का प्रयास करते है.  

मेष लग्न-मोती रत्न  Effect of Moti Ratna on Aries Lagna

मेष लग्न के लिये चन्द्र चतुर्थ भाव के स्वामी है. इसके साथ ही ये लग्नेश मंगल के मित्र भी है. इसीलिए मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये ये विशेष रुप से शुभ हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को मानसिक शान्ति, मातृ्सुख, विधा प्राप्ति के लिये मोती रत्न धारण करना चाहिए. 

वृषभ लग्न-मोती रत्न Impact of Moti Ratna on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न के लिये चन्द्र तीसरे भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न कदापि नहीं पहना चाहिए.   

मिथुन लग्न-मोती रत्न Influence of Pearl on Gemini Ascendant

मिथुन लग्न के व्यक्तियों के लिये चन्द्र दुसरे भाव यानि धन भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न केवल चन्द्र महादशा / अन्तर्दशा में ही धारण करना चाहिए. दूसरे भाव को मारकेश भी कहा जाता है. इसलिये जहां तक संभव हो इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न धारण करने से बचना चाहिए. 

कर्क लग्न-मोती रत्न Pearl Stone on Cancer Lagna

इस लग्न के लिये चन्द्र लग्नेश होकर सर्वथा शुभ हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को मोती धारण करने से स्वास्थय सुख की प्राप्ति होगी. आयु बढेगी. 

सिंह लग्न-मोती रत्न Moti Ratna – Effect on Leo Ascendant

सिंह लग्न में चन्द्र बारहवें भाव के स्वामी है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों के लिये मोती धारण करना अनुकुल नहीं है. 

कन्या लग्न-मोती रत्न Moti Ratna – Impact on Virgo Lagna

इस लग्न में कर्क राशि एकादश भाव की राशि बनती है. कर्क राशि स्वामी चन्द्र का रत्न मोती कन्या लग्न के व्यक्तियों को केवल चन्द्र महादशा और अन्तर्दशा में ही धारण करना चाहिए. क्योकि चन्द्र और लग्नेश बुध दोनों सम संबन्ध रखते है. 

तुला लग्न-मोती रत्न  Significance of Wearing Pearl Stone by Libra Ascendant Person

तुला लग्न के व्यक्तियों को मोती रत्न धारण करने से यश, मान-धर्म, पितृ्सुख और धर्म कार्यो में रुचि देता है. 

वृश्चिक लग्न-मोती रत्न Impact of Moti on Scorpio Lagna

इस लग्न के लिये चन्द्र नवम भाव के स्वामी है. नवम भाव भाग्य भाव है. इसलिये वृ्श्चिक लग्न के लिये मोती सभी रत्नों में सर्वश्रेष्ठ फलकारी रहते है.   

धनु लग्न-मोती रत्न Effect of Moti Ratna on Sagittarius Ascendant

इस लग्न के लिये ये अष्टम भाव के स्वामी है. धनु लग्न के व्यक्ति मोती रत्न कभी भी धारण न करें. 

मकर लग्न-मोती रत्न Impact of Moti Ratna for Capricorn Ascendant 

मकर लग्न के लिये चन्द्र सप्तम भाव है. सप्तम भाव भी मारक भाव है. इस स्थिति में मोती रत्न विशेष परिस्थितियों में ही धारण करना चाहिए. ऎसे में इस रत्न को चन्द्र महादशा में धारण करना चाहिए. जहां तक संभव हो, इस लग्न के लिये नीलम रत्न ही धारण करना चाहिए.  

कुम्भ लग्न-मोती रत्न Pearl – Its Effect of Aquarius Sign

कुम्भ लग्न के लिये चन्द्र छठे भाव के स्वामी है. कुम्भ लग्न के व्यक्ति मोती रत्न कभी भी धारण न करें.  

मीन लग्न-मोती रत्न Impact of Pearl on Pisces Lagna

मीन लग्न के लिये चन्द्र त्रिकोण भाव के स्वामी है. यह भाव शुभ है. इसलिये इस भाव का रत्न धारण करना शुभ रहेगा. इसे धारण करने से व्यक्ति को संतान, विद्धा, बुद्धि का लाभ देते है. 

मोती रत्न के साथ क्या पहने ?What Should I Wear with Pearl Stone

मोती रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में माणिक्य, मूंगा और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है. 

मोती रत्न के साथ क्या न पहने? What Should I not Wear with Moti Ratna

मोती रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मोती रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

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एमेट्राइन उपरत्न । Ametrine Gemstone – Ametrine Meaning

एमेट्राईन उपरत्न में अमेथिस्ट और सिट्रीन दोनों के गुणों का समावेश माना जाता है. यह बहुत ही दुर्लभ तथा असामान्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न पूरे विश्व में बोलिविया के जंगल में “अनाही” की खदानों में पाया जाता है. ऎसा माना जाता है कि इस उपरत्न के खान की खोज 17वीं शताब्दी में हुई थी. बोलिविया की सरकार ने तब इस स्थान को आरक्षित घोषित कर दिया था और इस स्थान में प्रवेश करने के लिए जंगल बनाया गया. यह उपरत्न 1989 से ब्राजील के बाजारों में बेचा जाने लगा है. इस उपरत्न में दो रंगों का मिश्रण होता है :- जामुनी और पीला. यह एक नया उपरत्न है. इसके साथ किसी प्रकार का पुराना इतिहास नहीं जुडा़ है. वर्तमान समय में इसका संबंध आध्यात्मिकता के साथ भी जोडा़ गया है.

एमेट्राइन के गुण और अर्थ | Meaning And Qualities Of Ametrine Gemstone

इस उपरत्न में एमेथिस्ट तथा सिट्रीन के कुछ गुण मौजूद होते हैं. यह भाग्य को उन्नत बनाने में मदद करता है. धारणकर्त्ता जीवन में सफलताओं को हासिल करता है. व्यक्ति के भीतर उम्मीद की किरण को जलाए रखता है. आशावादी बनाने में मदद करता है. शरीर के आंतरिक उत्तकों को साफ रखने में सहायक होता है. चयापचय(Metabolism) प्रणाली को सुचारु रुप से काम करने में सहायक होता है. धारणकर्त्ता के आंतरिक अंगों में सामंजस्य स्थापित करने में मदद करता है.

यह उपरत्न एक उपकरण के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है जिससे व्यक्ति को ध्यान लगाने में प्रोत्साहन मिल सकता है. यह तनाव को दूर करता है. नकारात्मकता को दूर करने में सहायक होता है. प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली शक्तियों का दमन करता है. आंतरिक शक्तियों का विकास करता है. धारणकर्त्ता को मानसिक अवसाद से मुक्ति दिलाता है और  आंतरिक सुख तथा शांति में वृद्धि करता है. यह व्यक्ति का आर्थिक रुप से भी विकास करता है.

एमेट्राइन के चमत्कारी गुण | Magical Qualities Of Ametrine Upratna

इस उपरत्न में कुछ चिकित्सीय गुण भी पाए जाते हैं. आक्सीजन को अवशोषित करने की प्रणाली को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. तंत्रिका तंत्र प्रणाली तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को सुचारु रुप से नियंत्रित करता है. यह धारणकर्त्ता के अंदर रचनात्मकता क विकास करता है. शारीरिक तनाव को दूर करता है. शारीर के अवरुद्ध चक्रों को खोलने में मदद करता है. मन-मस्तिष्क को एकाग्रचित्त करने में सहायक होता है. उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है. त्वचा के विकारों को दूर करता है.

यह उपरत्न मस्तिष्क से पुराने विचारों को खतम करके उसमें नई विचारधारा का लयबद्ध तरीके से विकास करता है. यह उपरत्न शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के साथ व्यक्ति का रुझान आध्यात्मिकता की ओर भी बढा़ता है. जो व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम करते हैं उनके काम करने की गति को नियंत्रित करता है और उन्हें उनके श्रम का आनंद दिलाने में प्रोत्साहित करता है. कार्य पूर्ण करके लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को पूर्ण करने में सहायक होता है. धारणकर्त्ता को काल्पनिकता के धरातल से व्यवहारिक बनाने में सहायक होता है. व्यक्ति विशेष के भीतर के डर को समाप्त करता है और भीतर छिपे निडर व्यक्ति का विकास करता है. विचारों तथा योजनाओं को सही ढ़ंग से कार्यान्वित करने में सहायक होता है. 

एमेट्राइन कौन धारण करे | Who Should Wear Ametrine Upratna

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं परन्तु कई विद्वान इस उपरत्न के गुणों को देखकर इसमें बृहस्पति तथा बुध का मिश्रण मानते हैं. जिनकी कुण्डली में बृहस्पति अथवा बुध अच्छे भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

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प्रश्न की पहचान | Identitification of Prashna | Dhatu Chinta | Dhatu Chinta | Jeeb Chinta

प्रश्न कुण्डली में प्रश्न की पहचान होनी चाहिए. जिससे यह अंदाज हो सके कि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न किस विषय से संबंधित है. पुराने तरीके में प्रश्न को तीन भागों में बाँटा जाता था. वह निम्नलिखित हैं :-

(1) धातु चिन्ता | Dhatu Chinta

इसमें धातु से संबंधित प्रश्न आते हैं. जैसे सोना, चाँदी तथा अन्य कोई कीमती वस्तु जो गुम हो गई हो. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में 1, 4, 7, 10 राशि आती हैं तब जातक को धातु से संबंधित चिन्ता होगी.

(2) मूल चिन्ता | Mool Chinta

इसमें कृषि संबंधित, परीक्षा संबंधी, व्यवसाय से संबंधित, बुद्धि – कौशल पर आधारित प्रश्न किए जाते हैं. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में  2, 5, 8, 11 राशि आते हैं तब प्रश्नकर्त्ता को मूल चिन्ता हो सकती है.

(3) जीव चिन्ता | Jeeb Chinta

इस वर्ग में जीवित प्राणियों से संबंधित प्रश्नों का आंकलन किया जाता है. मनुष्य, पशु-पक्षी तथा अन्य प्राणी आदि. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में 3, 6, 9, 12 राशि आते हैं तब प्रश्नकर्त्ता को जीव चिन्ता हो सकती है.

ग्रहों को भी तीन भागों में बाँटा गया है. इनसे भी धातु, मूल तथा जीव चिन्ता का आंकलन किया जाता है. लेकिन ग्रहों धातु,मूल तथा जीव चिन्ता में बाँटने में मतान्तर है.

पहला मत | First Opinion 

सूर्य, मंगल, राहु तथा केतु से धातु चिन्ता देखी जाती है. शनि तथा बुध से मूल चिन्ता देखते हैं. चन्द्रमा, बृहस्पति तथा शुक्र से जीव चिन्ता देखते हैं.

दूसरा मत | Second Openion

शनि, मंगल, राहु तथा केतु से धातु चिन्ता, सूर्य तथा शुक्र से मूल चिन्ता, बृहस्पति, बुध तथा चन्द्र से जीव चिन्ता देखते हैं.

तीसरा मत | Third Openion

तीसरे मत के विद्वानों के अनुसार जिस चिन्ता से संबंधित लग्न हो, उससे ही संबंधित ग्रह भी देख रहें हों तो उससे संबंधित चिन्ता होगी. उदाहरण के लिए धातु संबंधी लग्न और धातु संबंधी ग्रह लग्न को देखे तो धातु चिन्ता होगी.

जीव संबंधी लग्न और जीव संबंधी ग्रह देखें तो जीव संबंधी चिन्ता होगी.

मूल संबंधी लग्न और मूल संबंधी ग्रह लग्न को देखें तो मूल चिन्ता होगी.

उपरोक्त नियमों के अतिरिक्त अन्य कई और नियम प्रश्न की पहचान के लिए बनाए गए हैं. लग्न में विषम राशि के नवाँश के अनुसार अलग चिन्ता होगी और सम राशि के नवाँश के अनुसार अलग चिन्ता होगी. आइए पहले विषम राशि के नवाँश को देखें.

विषम लग्न का पहला नवाँश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न का दूसरा नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में तीसरा नवाँश है तो जीव चिन्ता

विषम लग्न में चौथा नवांश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न में पांचवाँ नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में छठा नवांश है तो जीव चिन्ता

विषम लग्न में सातवाँ नवाँश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न में आठवाँ नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में नवम नवाँश है तो जीव चिन्ता

 

उपरोक्त क्रम सम राशियों में उलटा हो जाएगा.

 

सम लग्न का पहला नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न का दूसरा नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में तीसरा नवाँश है तो धातु चिन्ता

सम लग्न में चौथा नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न में पांचवां नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में छठा नवाँश है तो धातु चिन्ता

सम लग्न में सातवाँ नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न में आठवां नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में नवम नवाँश है तो धातु चिन्ता

उपरोक्त चिन्ताओं को नक्षत्रों के अनुसार भी देख सकते हैं. अश्विनी नक्षत्र से गणना शुरु करके क्रम से धातु, मूल, जीव चिन्ता होती है. जैसे अश्विनी नक्षत्र है तो धातु चिन्ता, भरणी नक्षत्र है तो मूल चिन्ता, कृतिका नक्षत्र है तो जीव चिन्ता होती है. बाकी सभी नक्षत्रों को भी ऎसे ही क्रम से बाँटेगें.

उपरोक्त विभाजन के अनुसार प्रश्नकर्त्ता की अन्य कई भाव-भंगिमाओं के अनुसार भी धातु, मूल तथा जीव चिन्ता का विभाजन किया जाता है. जैसे यदि प्रश्नकर्त्ता प्रश्न के समय ऊपर की ओर देखता है तो जीव चिन्ता होगी. नीचे की ओर देखता है तो मूल चिन्ता होगी. सामने की ओर देखता है तो धातु चिन्ता होगी.

इसके अतिरिक्त प्रश्नकर्त्ता, प्रश्न के समय यदि ऊपरी अंगों को छुए तो जीव चिन्ता, मध्य के अंगों को छुए तो धतु चिन्ता होगी. नीचे के अंगों को छुए तो मूल चिन्ता होगी.

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एकादशी तिथि

एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है. एक चन्द्र मास मे 30 दिन होते है. साथ ही एक चन्द्र मास दो पक्षों से मिलकर बना होता है. दोनों ही पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी तिथि कहलाती है. सभी तिथियों की तुलना में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है.

एकादशी तिथि व्रत महत्व

चन्द्र मास के दोनों पक्षों में पडने वाली एकादशियों का व्रत पालन करना विशेष रुप से कल्याणकारी माना गया है. एकादशी तिथि के दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है. एकादशी तिथि के दिन स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से 1000 अश्वमेधादि यज्ञ करने के समान पुन्य प्राप्त होता है. एकादशी तिथि नन्दा तिथियों में से एक है.

एकादशी तिथि के संदर्भ में कुछ पौराणिक आख्यान भी मौजूद हैं. इनमें हमें एकादशी तिथि के महत्व एवं उसकी कथा के संदर्भ में बहुत सी बातें पता चलती हैं. एकादशी तिथि के विषय में भागवत में भी विचार मिलता है.एकादशी तिथि का व्रत करने पर व्यक्ति मोक्ष को पाता है. एकादशी तिथि के दिन तामसिक भोजन, मांस, मदिरा व चावल का सेवन नही करना चाहिए. प्रत्येक मास की एकादशी के दिन व्रत का पालन करने से जीवन के कष्टों एवं व्यवधानों से मुक्ति मिलती है.

एकादशी तिथि वार योग

एकादशी तिथि किसी पक्ष में सोमवार के दिन होने पर क्रकच योग तथा दग्ध योग बनाती है. ये दोनो योग शुभ कार्यों में वर्जित माने जाते है. यह माना जाता है. कि एकादशी तिथि गुरु ग्रह की जन्म तिथि है. एक वर्ष में 24 एकादशियां आती है. जिस वर्ष में अधिक मास होता है, उस वर्ष में 26 एकादशी

एकादशी तिथि में जन्मा जातक

एकादशी तिथि में जन्मा जातक उदार हृदय का होता है. वह दूसरों प्रति प्रेम भाव और सहयोग रखेगा. जातक में चालाकी की सक्षमता होती है. आर्थिक रुप से संपन्न होता है. गुरु और वरिष्ठ लोगों के प्रति सदभाव की भावना रखने वाला होता है. धार्मिक कार्यों को करने वाला और आध्यात्मिक पक्ष से मजबूत होते हैं. कला क्षेत्र में रुचि रखने वाले होते हैं. संतान का सुख पाने वाले और न्याय के मार्ग पर चलने वाले होते हैं.

व्यक्ति में कूटनिति की कला भी होती है. कार्य को किस प्रकार आगे बढ़ना है इस बात को अच्छी तरह से जानने वाले होते हैं. अपने साथ सब का हित हो इस बात को लेकर चलने वाले होते हैं.

एकादशी तिथि में किए जाने वाले काम

  • एकादशी तिथि के दिन विवाह इत्यादि शुभ काम किए जा सकते हैं.
  • देव प्रतिष्ठा करना, देव उत्सव मनाने के काम इस तिथि में किए जा सकते हैं.
  • कलात्मक कार्य जैसे चित्रकारी करना.
  • इस तिथि के दिन यात्रा करना भी शुभ होता है.
  • गृह का निर्माण काम करना.
  • नए घर में प्रवेश करना.
  • व्रत-उपवास करना शुभ होते हैं.
  • गरीबों को भोजन इत्यादि खिलाना शुभ होता है.
  • कुछ महत्वपूर्ण एकादशी

    बारह माह के दौरान आने वाली कुछ एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है. इन एकादशी में कुछ का नाम यहां दिया जा रहा है जो इस प्रकार से हैं.

    पुत्रदा एकादशी –

    यह एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. संतान प्राप्ति के लिए इस एकाद्शी का बहुत मह्त्व होता है. इस एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और उसके संतान के सुखद भविष्य की कामना के लिए किया जाता है.

    निर्जला एकादशी –

    ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. यह एकादशी बहुत ही शुभ मानी जाती है. इस एकादशी का व्रत को करने से व्यक्ति को लम्बी आयु का वरदान मिलता है. मोक्ष और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने के लिए निर्जल और निराहार रह कर किया जाता है.

    हरिशयन एकादशी –

    इस एकादशी का महत्व विष्णु भगवान के सोने के साथ ही आरंभ होता है. इस एकादशी के साथ ही चतुर्मास का आरंभ हो जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु शयन अवस्था को अपनाते है. इसी कारण ये एकादशी हरिशयन एकादशी कहलाती है.

    हरिप्रबोधनी एकादशी –

    विष्णु भगवान के चार माह के के उपरांत भगवान जब उठते हैं तो उस दिन को हरिप्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन से सभी शुभ विवाह इत्यादि मांगलिक कार्यों का आयोजन शुरु हो जाता है.

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