ग्रह बल | Grah Bal

जैमिनी चर दशा में राशि बल के बाद ग्रहों का बल ज्ञात किया जाता है. ग्रह बल में भी तीन प्रकार के बलों का आंकलन किया जाता है. मूल त्रिकोणादि बल, अंश बल तथा केन्द्रादि बल यह तीन प्रकार के  ग्रह बल हैं. तीनों बलों के बारे में विस्तार से बताया जाएगा. 

(1) मूल त्रिकोणादि बल | Mool Trokonadi Bal

कुण्डली में ग्रह उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि, सम राशि, शत्रु राशि, नीच राशि आदि में स्थित होते हैं. इन ग्रहों की राशि में स्थिति के अनुसार इन्हें अंक प्रदान किए जाते हैं. इसके लिए एक तालिका के द्वारा आपको समझाने का प्रयास किया जा रहा है. 

ग्रह का स्थान अंक 

उच्च राशि 70

मूल त्रिकोण राशि 60

स्वराशि 50

मित्र राशि 40

सम राशि 30

शत्रु राशि 20

नीच राशि 10

उपरोक्त तालिका के अनुसार यदि कुण्डली में कोई ग्रह उच्च राशि में स्थित है तो उस ग्रह को 70 अंक प्राप्त होगें. मूल त्रिकोण राशि में स्थित होने पर ग्रह को 60 अंक मिलेगें. इस प्रकार सभी ग्रहों को कुण्डली में उनकी स्थिति के अनुसार अंक प्राप्त होगें. 

(2) अंश बल | Ansha Bal

ग्रह बल में दूसरे प्रकार का बल अंश बल है. यह बल जैमिनी कारकों के आधार पर ग्रहों को प्राप्त होता है. इनके अंकों को सारिणि द्वारा समझा जा सकता है. 

कारक अंक 

आत्मकारक 70

अमात्यकारक 60

भ्रातृकारक 50

मातृकारक 40

पुत्रकारक 30

ज्ञातिकारक 20

दाराकारक 10

उपरोक्त सारिणी के अनुसार ग्रहों को उनके कारकों के अनुसार अंक दिए जाएंगें. आत्मकारक को सबसे अधिक अंक दिए गए हैं और दाराकारक को सबसे कम अंक प्रदान किए गए हैं. 

(3) केन्द्रादि बल | Kendradi Bal

पराशरी पद्धति के साथ जैमिनी पद्धति में भी केन्द्रों का महत्व माना गया है. कुण्डली में केन्द्रादि बल का निर्धारण आत्मकारक से ग्रहों की स्थिति देखकर किया जाता है. 

* आत्मकारक से कोई ग्रह केन्द्र(आत्मकारक से 1,4,7,10 भाव) में स्थित है तब उस ग्रह को 60 अंक मिलेगें. 

* आत्मकारक से कोई ग्रह पणफर भाव(आत्मकारक से 2,5,8,11 भाव) में स्थित है तब उस ग्रह को 40 अंक प्राप्त होगें. 

* आत्मकारक से कोई ग्रह अपोक्लिम भाव(आत्मकारक से 3,6,9,12 भाव) में स्थित है तब उस ग्रह को 20 अंक प्राप्त होगें. 

मूल त्रिकोणादि बल, अंश बल तथा केन्द्रादि बल का कुल योग ज्ञात करेगें. 

 

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तैतिल करण

11 करणों में तैतिल करण तीसरे क्रम में आता है. तैतिल करण को मिलाकर कुल 11 करण है. ज्योतिष का मुख्य भाग समझने जाने वाले पंचाग ज्ञात करने के लिए करण की गणना कि जाती है. विभिन्न कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए भी पंचाग प्रयोग किया जाता है. और करण पंचाग का महत्वपूर्ण भाग है. इसके बिना कोई मुहूर्त नहीं निकाला जा सकता है. आईये इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालते है.

तैतिल करण- स्वामी

तैतिल करण के स्वामी सूर्य को माना गया है. सूर्य अपने प्रकार से संपूर्ण पृथ्वी में जीवन के संचार के आधार स्तंभ हैं. इस करण के प्रभाव के फल स्वरुप जातक में अपने प्रभाव को चारों ओर फैलाने की सदैव इच्छा रहती है. जिस जातक का जन्म तैतिल करण में हुआ हो, उस व्यक्ति के लिए सूर्य उपासना बहुत लाभकारी होती है. मानसिक, आर्थिक अथवा स्वास्थ्य संबन्धी किसी प्रकार की कोई परेशानी होने पर सूर्य देव की पूजा उपासना बहुत असरदायक मानी गई है.

तैतिल करण कब होता है

तैतिल एक गतिशील करण है. यह चलायमान रहता है. तिथि में ये करण बार-बार आता है. अस्थिर करण होने पूर्णिमा और अमावस की तिथियों को छोड़ कर बाकी तिथियों की गणना के अनुरुप आता रहता है.

तैतिल करण में क्या काम करें

तैत्तिल करण को सामान्य करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण में ऎसे सरल काम किए जा सकते हैं जिनमें व्यक्ति को बहुत अधिक परिश्रम न करना पड़े. व्यक्ति मित्रता कर सकता है इस करण में, तैतिल करण में व्यक्ति को अधूरे बचे हुए कामों को पूरा करने का मौका भी मिलता है. इस समय पर व्यक्ति अपनी जीत के लिए बहुत अधिक प्रयसशील रहता है. जातक में कुछ काम करने की गति धीमे होती है. जातक बहुत अधिक मेहनत से बचना भी चाहता है.

मुहूर्त निकालने के लिए तैत्तिल करण को भी स्थान मिलता है. इस करण के दौरान व्यक्ति घर निर्माण, बागवानी से संबंधित काम कर सकते हैं. वस्त्र धारण करना नवीन वस्तुओं का उपयोग इस करण में कर सकते हैं. भूमि से संबंधी काम भी इस करण में किए जा सकते हैं. इस करण में जातक एक बेहतर परामर्शदाता भी बन सकता है. मैनेजमेंट से संबंधी काम कर सकता है. उपदेश देना और दूसरों से काम निकलवाने से संबंधित काम इस समय पर कर सकते हैं.

तैतिल करण में जन्में जातक के गुण-विशेषताएं

जिस व्यक्ति का जन्म तैतिल करण में होता है. उस व्यक्ति को अपने पुरुषार्थ के अलावा, सौभाग्य से भी धन प्राप्त होता है. तैतिल करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने निकट और अपने ग्रुप के सभी व्यक्तियों से स्नेह करने वाला होता है.

इस योग का व्यक्ति जीवन में कई घरों का स्वामी होता है. भूमि-भवन के मामलों में उसे धन-लाभ प्राप्त होता है. तैतिल करण में जन्मा व्यक्ति कोर्ट-कचहरी में विजय प्राप्त करता है. अपने शत्रुओं को शान्त रखने में वह माहिर होता है. साहस के कार्यों को कुशलता के साथ करता है. दूसरों का भार स्वयं उठाने की कोशिश भी करता है. अपनी ओर से कोशिश करता है सब को प्रसन्न रखने की. बहुत अधिक महत्वकांक्षाएं नहीं रखना चाहता बस जीवन में सुख और शांति की तलाश अधिक रहती है.

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दशमाँश कुण्डली तथा द्वादशांश कुण्डली | Dashmansha Kundali and Dwadashansha Kundali

दशमाँश कुण्डली या D-10 | Dashmansha Kundali or D-10

यह कुण्डली व्यवसाय की सफलता तथा असफलताओं के लिए देखी जाती है. इस कुण्डली से इस बात का आंकलन किया जाता है कि जातक का व्यवसाय कैसा होगा. वह अधिक समय तक एक ही व्यवसाय में रहेगा या बार-बार परिवर्तन करेगा. कई बार जन्म कुण्डली में व्यवसाय भाव अर्थात दशम भाव बहुत ही अच्छा दिखाई देता है लेकिन फिर भी व्यक्ति के व्यवसाय में स्थिरता की कमी होती है. इसके लिए दशम भाव के 12 भाग करके दशमाँश कुण्डली का उपयोग किया जाता है. यदि दशमाँश कुण्डली में भी व्यवसाय को लेकर परेशानियाँ दिखाई देती हैं तो जातक को परेशानियाँ उठानी ही पड़ती है. 

दशमाँश कुण्डली बनाने के लिए 30 अंश को 10 बराबर भागों में बाँटा जाता है. एक भाग 3 अंश का होता है. 3-3 अंश के 10 दशमाँश होते हैं. आइए दशमाँश कुण्डली का विभाजन करन सीखें.

  1. 0 से 3 अंश का पहला दशमाँश होता है. 
  2. 3 से 6 अंश का दूसरा दशमाँश होता है. 
  3. 6 से 9 अंश का तीसरा दशमाँश होता है. 
  4. 9 से 12 अंश का चौथा दशमाँश होता है. 
  5. 12 से 15 अंश का पांचवाँ दशमाँश होता है. 
  6. 15 से 18 अंश का छठा दशमाँश होता है. 
  7. 18 से 21 अंश का सातवाँ दशमाँश होता है. 
  8. 21 से 24 अंश का आठवाँ दशमाँश होता है. 
  9. 24 से 27 अंश का नौवाँ दशमाँश होता है. 
  10. 27 से 30 अंश का दसवाँ दशमाँश होता है. 

दशमाँश कुण्डली के 30 बराबर भाग करने आपने सीख लिए हैं. अब आप दशमाँश कुण्डली में ग्रहों को स्थापित करना समझें. जन्म कुण्डली में यदि कोई ग्रह विषम राशि में स्थित है तो ग्रह की गणना वहीं से आरम्भ होगी जहाँ वह स्थित है. जन्म कुण्डली में यदि ग्रह सम राशि में स्थित है तो गणना ग्रह से नौवीं राशि से आरम्भ होगी. माना कोई ग्रह सम राशि वृष में 22 अंश का है. इसका अर्थ यह हुआ कि ग्रह आठवें दशमाँश में स्थित है. अब जन्म कुण्डली में वृष राशि से नौवीं राशि नोट करें. वृष राशि से नौवीं राशि मकर राशि है. गिनती मकर राशि से शुरु होगी. मकर से आठवाँ दशमाँश सिंह राशि आती है. 

इसका अर्थ यह हुआ कि जो ग्रह जन्म कुण्डली में वृष राशि में स्थित था वह दशमाँश कुण्डली में सिंह राशि में जाएगा. दशमाँश कुण्डली का लग्न तथा सभी ग्रहों की स्थापना दशमाँश कुण्डली में इसी प्रकार से की जाएगी.   

द्वादशांश कुण्डली या D-12 | Dwadashansha Kundali or D-12

इस कुण्डली से माता-पिता के बारे में जानकारी मिलती है. माता-पिता के जीवन के सभी पहलुओं को इस कुण्डली के अध्ययन से जाना जा सकता है. इस कुण्दली को बनाने के लिए 30 अंश के 12 बराबर भाग किए जाते हैं. एक भाग 2 अंश 30 मिनट का होता है. 30 अंश को 12 बराबर भागों में बाँटना सीखें. 

  1. 0 से 2 अंश 30 मिनट तक पहला द्वादशाँश होता है. 
  2. 2 अंश 30 मिनट से 5 अंश तक दूसरा द्वादशाँश होता है. 
  3. 5 अंश से 7 अंश 30 मिनट तक तीसरा द्वादशाँश होता है. 
  4. 7 अंश 30 मिनट  से 10 अंश तक चौथा द्वादशाँश होता है. 
  5. 10 अंश से 12 अंश 30 मिनट तक पांचवाँ द्वादशाँश होता है. 
  6. 12 अंश 30 मिनट से 15 अंश तक छठा द्वादशाँश होता है. 
  7. 15 अंश से 17 अंश 30 मिनट तक सातवाँ द्वादशाँश होता है. 
  8. 17 अंश 30 मिनट से 20 अंश तक आठवाँ द्वादशाँश होता है. 
  9. 20 अंश से 22 अंश 30 मिनट तक नौवाँ द्वादशाँश होता है. 
  10. 22 अंश 30 मिनट से 25 अंश तक दसवाँ द्वादशाँश होता है. 
  11. 25 अंश से 27 अंश 30 मिनट तक ग्यारहवाँ द्वादशाँश होता है. 
  12. 27 अंश 30 मिनट से 30 अंश तक बारहवाँ द्वादशाँश होता है. 

द्वादशाँश कुण्डली बनाने के लिए जन्म कुण्डली में जो ग्रह जिस राशि में होता है उसकी गिनती वहीं से आरम्भ होती है. माना मंगल जन्म कुण्डली में धनु राशि में 21 अंश का स्थित है. इसका अर्थ है कि मंगल दसवें द्वादशाँश में स्थित है. धनु से दसवीं राशि में मंगल की स्थापना की जाएगी. धनु से दसवीं राशि कन्या राशि है अर्थात द्वादशाँश कुण्डली में मंगल कन्या राशि में जाएगा. 

द्वादशाँश कुण्डली के लग्न को भी इस प्रकार से निर्धारित किया जाएगा. जन्म कुण्डली का लग्न देखें कि किस द्वादशाँश में आ रहा है. फिर जन्म कुण्डली के लग्न से उतने भाव आगे तक गिनें. माना जन्म कुण्डली का लग्न सिंह, 12 अंश का है. 12 अंश का अर्थ है कि यह पांचवाँ द्वादशाँश है. अब सिंह से पांचवीं राशि देखें कि कौन सी है. सिंह से पांचवीं राशि मकर है. इस प्रकार द्वादशाँश कुण्डली के लग्न में मकर राशि आएगी. अन्य सभी ग्रहों को भी इसी प्रकार से लिखा जाएगा.  

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रोग तथा रोग निवारण से संबंधित प्रश्न | Questions Related to Disease and Treatment of Disease

रोग संबंधी प्रश्न |Disease Related Question

जब किसी व्यक्ति विशेष की सेहत या स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव चल रहा हो और उसे स्वास्थ्य लाभ ना हो रहा हो तब वह हारकर ज्योतिषी का सहारा लेता है. कई बार रोगी अति कमजोर होता है और उसके स्थान पर उसके अपने प्रियजन प्रश्न करते हैं. यदि रोगी के जन्म की पूरी जानकारी उपलब्ध है तब जन्म कुण्डली से आंकलन किया जाता है और यदि जन्म विवरण उपलब्ध नहीं है तब प्रश्न कुण्डली से विश्लेषण किया जाता है. 

रोग प्रश्न में केन्द्र स्थानों का बहुत महत्व है. ऎसा इसलिए है कि लग्न से चिकित्सक का विचार किया जाता है. चतुर्थ भाव से औषधि अर्थात दवाई का विचार किया जाता है. सप्तम भाव से रोग का विचार किया जाता है. दशम भाव से रोगी का विचार किया जाता है. 

यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ ग्रह हों तो चिकित्सक एक अनुभवी तथा योग्य व्यक्ति है. चौथे भाव में शुभ ग्रह हों तो औषधि एवं चिकित्सा पद्धति अच्छी नहीं होती. सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों तो क्षुद्र रोग होता है. दशम भाव में शुभ ग्रह हों तो रोगी परहेज करने वाला होता है. इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि केन्द्र स्थानों में शुभ ग्रह होने से रोगी शीघ्र अच्छा हो जाता है. यदि केन्द्र स्थानों में अशुभ ग्रह हों तो रोगी का रोग बढ़ जाता है. आइए रोगी के ठीक होने के बारे में पहले चर्चा करें. 

रोगी के संबंध में प्रश्न कुण्डली का सामान्य विश्लेषण | General  analysis of Prashna Kundali of Patient 

बीमारी के प्रश्न में लग्न,लग्नेश, चन्द्रमा तथा 6,8,12 भावों का मुख्य रुप से विश्लेषण करना है. 

* लग्न का विश्लेषण | Analysis of Lagna

(1)लग्न में शुभ ग्रह हैं तो चिकित्सक अच्छा है. 

(2)लग्न में पाप ग्रह स्थित हों तब चिकित्सक अच्छा नहीं है. यदि पाप ग्रह लग्नेश होकर लग्न में स्थित है तब वह अच्छा है और चिकित्सक भी अच्छा है. 

(3)लग्न में वक्री ग्रह हो तो चिकित्सक बदलना पड़ सकता है अथवा जातक बार-बार डॉक्टर को बदल चुके हैं अथवा जिस डॉक्टर को छोड़कर आए हैं उसी डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है. यदि प्रश्न के समय मंगल ग्रह लग्न में स्थित होगा तो डॉक्टर बदलना पड़ सकता है. 

* चतुर्थ भाव का विश्लेषण | Analysis of Fourth House 

(1) चतुर्थ भाव से दवाई का विश्लेषण किया जाता है. यदि शुभ ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित है तो दवाई असर करेगी. रोगी के रोग का निदान भी सही होगा. 

(2)यदि पाप ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित है तो दवाई असर नहीं करेगी. यदि पाप ग्रह स्वराशि का है तब दवाई अधिक असर नहीं करेगी. 

(3)यदि चतुर्थ भाव में वक्री ग्रह है तब बीमारी की सही पहचान नहीं हो पाई है अथवा जो दवा मरीज ले रहा है वह विपरीत परिणाम दे सकती है. 

(4) यदि प्रश्न के समय चतुर्थ भाव में केतु स्थित है तो बीमारी समझ नहीं आएगी. 

(5) प्रश्न के समय चतुर्थ भाव में मंदगामी ग्रह स्थित हैं तो बीमारी लम्बे समय तक बनी रह सकती है. 

* सप्तम भाव का विश्लेषण | Analysis of Seventh House 

(1) सप्तम भाव से बीमारी से निवृति देखी जाती है. यदि प्रश्न के समय सप्तम भाव में पाप ग्रह हों तो बीमारी गंभीर तथा नाजुक है. 

(2) सप्तम भाव में शुभ ग्रह है तो बीमारी साध्य है. बीमारी नियंत्रण में आ जाएगी. 

(3) सप्तम भाव में वक्री ग्रह है तो वर्तमान बीमारी ठीक होकर दूसरी बीमारी हो जाएगी. 

(4)प्रश्न के समय यदि सप्तम भाव में मंगल होगा तब रोगी की शल्य चिकित्सा होगी और मरीज ठीक हो जाएगा. 

(5)यदि सप्तम भाव में बृहस्पति है तब शल्य चिकित्सा नहीं होगी. बिना शल्य चिकित्सा के रोगी ठीक हो जाएगा. 

(6) यदि सप्तम भाव में शनि स्थित है तो शल्य चिकित्सा नहीं होती लेकिन शरीर से कोई एक छोटा अंग निकाला जा सकता है.

(7) राहु/केतु रुकावट का काम करते हैं. सप्तम भाव में राहु या केतु स्थित होगा तो शरीर के जिस भाग में बीमारी है उस भाग के किसी अंग में रुकावट(blockage) हो सकती है. 

(8) सप्तम भाव में शुभ ग्रह होने पर रोगी जल्दी ठीक हो जाता है. 

(9) सप्तम भाव में सूर्य स्थित है तो रेडियोथेरेपी(Radiotherapy) जैसे कार्य से मरीज ठीक हो सकता है. 

* दशम भाव का विश्लेषण Analysis of Tenth House 

(1) प्रश्न कुण्डली में दशम भाव से मरीज का आंकलन किया जाता है. प्रश्न के समय शुभ ग्रह दशम भाव में स्थित है तो मरीज सहयोग करने वाला होगा. 

(2) प्रश्न के समय यदि अशुभ ग्रह दशम भाव में स्थित है तब मरीज, चिकित्सक तथा परिवार के अन्य सदस्यों से सहयोग करने वाला नहीं होगा. मरीज की बद-हजमी तथा परहेज ना करने से रोग बढे़गा. 

* प्रश्न के समय 6,8,12 भाव में पाप ग्रहों की अधिक संख्या सही नहीं है. छठे भाव में पाप ग्रह रोग भी देंगें और रोग से लड़ने की शक्ति भी देगें. 

* 12वें भाव में पाप ग्रह हों तो मरीज को कष्ट अधिक हो सकता है. यदि 8वें तथा 12वें भाव में ग्रह बली है तो मरीज ठीक हो जाएगा. यदि ग्रह निर्बल है तो परेशानी हो सकती है.  

  अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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10th भाव-कर्म भाव क्या है. | Karma Bhava Meaning | Dasham House in Horoscope | 10th House in Indian Astrology

दशम भाव कर्मस्थान है. यह भाव व्यक्ति के जीवनयापन का साधन मात्र है. इस भाव से व्यक्ति की प्रख्याति देखी जाती है. दशम भाव व्यक्ति का व्यवसाय दर्शाता है. दशम भाव में चर राशि होने पर व्यक्ति की महत्वकांक्षाएं प्रकट होती है. उसे आजीविका के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी या नहीं, इसका विचार दशम भाव से किया जाता है. इसके अतिरिक्त यह भाव व्यक्ति के आत्मविश्वास की व्याख्या करता है. स्वतन्त्र व्यवसाय विषय का विश्लेषण इस भाव से भी किया जाता है.

दशम भाव में स्थिर राशि होने पर व्यक्ति दृ्ढ विश्वास युक्त होता है. उसके इरादे दृ्ढ होते है. वह आत्मनिर्भर रहना पसन्द करता है. व्यक्ति सहनशीलता युक्त होता है. व्यापार के लिए व्यक्ति का आवश्यक उद्देश्य सुनिश्चित करता है.  

द्विस्वभाव राशि दशम भाव में होने पर व्यक्ति अपनी आजीविका का आदर करने वाला होता है. उसे कार्यक्षेत्र में सम्मान और आदर प्राप्त होता है. व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्रों में उसे प्रसिद्धि प्राप्त होती है. दशम भाव से व्यक्ति की सफलता का निरिक्षण किया जाता है. साथ ही यह भाव नैतिकता भी प्रकृ्ट करता है. इस भाव से माता-पिता के लिए मारक भाव है. संसार से वैराग्य, चुनाव, मुकद्देमबाजी, सरकारी नौकरी, पद का स्तर, समृ्द्धि, विशिष्टता, श्रेष्ठता, सम्मान दर्शाता है.  

दशम भाव का कारक ग्रह कौन सा है. |  What are the Karaka things of 10th Bhava 

दशम भाव का कारक ग्रह बुध व गुरु है. इस भाव से ये दोनों ग्रह व्यक्ति का सौभाग्य दर्शाते है. 

दशम भाव में कौन सा ग्रह दिग्बली होता है. | Which Planet is Digbali in 10th House 

दशम भाव में सूर्य स्थान बल प्राप्त करता है. इस स्थिति में सूर्य व्यक्ति को विशेष अधिकार और पद दिलाने में सहयोग करता है.  

दशम भाव से शनि क्या दर्शाता है. | 10th House Karaka Saturn 

दशम भाव व्यक्ति की आजीविका का भाव है. और शनि ग्रह आजीविका के कारक ग्रह है. इस भाव से शनि व्यक्ति की नौकरी और जीवनवृ्ति का साधन बताते है.  

दशम भाव से स्थूल रुप में क्या देखा जाता है. | What does the House of Career Explain     

दशम भाव से स्थूल रुप में व्यवसाय विषय का विश्लेषण किया जाता है. 

दशम भाव से सूक्ष्म रुप में किस विषय का विचार किया जाता है. | What does the House of Career accurately explains.

दशम भाव से सूक्ष्म रुप में व्यक्ति का सम्मान देखा जाता है. 

दशम भाव में कौन से ग्रहों को दिशा बल प्राप्त होता है. |  Which Planet is DishaBali in 10th House 

दशम भाव में सूर्य और मंगल दिशा बल प्राप्त करता है.  ग्रह दिशा बल युक्त हों तो 

ग्रह और भाव दोनों में फल देने की क्षमता बढ जाती है.  

दशम भाव से कौन से संबन्धों का विश्लेषण किया जाता है. | 10th House represents which  relationships. 

दशम भाव से व्यक्ति की मामी और गोद लिया हुये हुए पुत्र का विचार किया जाता है.  

दशम भाव शरीर के कौन से अंगों की व्याख्या करता है. | 10th House represents which  relationships. 

दशम भाव से व्यक्ति के घुटने, जांघ, बायीं नासिका, बायीं जांघ व शरीर का बायां भाग देखा जाता है.  ज्योतिष के द्रेष्कोण नियम के अनुसार इस भाव से बायीं नासिका, धड का बायां भाग, बायीं जांघ आदि का विश्लेषण किया जाता है. 

दशमेश और अन्य भावेशों का परिर्तन योग किस प्रकार के फल देता है. । 10th Lord Privartan Yoga Results  

इस योग से युक्त व्यक्ति स्वयं को खुश रखने का प्रयास करता है. उसे लाभ व समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. साथ ही यह योग नाम और प्रसिद्धि दिलाने में सहयोग करता है. 

यह योग व्यक्ति को व्यवसाय में गिरावट दे सकता है. तथा इस योग के व्यक्ति का विदेश स्थानों के साथ व्यापार करना लाभकारी रहता है.

दशमेश कुण्डली में बली हो तो व्यक्ति दीर्घायु प्राप्त करता है. इस भाव से बुध का सम्बन्ध व्यक्ति को बौद्धिक कार्यो में रुचि देता है. इसके अतिरिक्त दसवें भाव में शुभ ग्रह होने पर व्यक्ति को जीवन में उन्नति और शान्ति दोनों की प्राप्ति होती है. परन्तु इस भाव में अगर अशुभ ग्रह स्थित हों, तो व्यक्ति को कष्ट और तनाव प्राप्त हो सकता है. 

दशम भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को श्रेष्ठ कार्य करने की प्रवृ्ति देता है. इस योग में व्यक्ति मेहनत तो अत्यधिक करता है. परन्तु उसे अपनी मेहनत के अनुसार आय की प्राप्ति नहीं हो पाती है. 

दशमेश और द्वितीयेश के मध्य संबन्ध व्यक्ति को व्यवसायिक क्षेत्र में सौहार्दपूर्ण स्थिति देता है.  

दशमेश होकर लग्न में गुरु स्थित हों, तो व्यक्ति कानून के क्षेत्र में कार्य दिला सकता है.  

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एलाबस्टर उपरत्न । Alabaster Gemstone – Spiritual Qualities Of Alabaster

यह उपरत्न जिप्सम की एक किस्म है. प्राचीन समय में मिस्त्र के लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाता था. यह प्रकृति में पाये जाने वाले सबसे अधिक नर्म पत्थरों में से एक है. इसलिए इसे गहनों के साथ मूर्त्तिकला में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह मुख्यतया इटली में पाया जाता है. यह बहुत ही नाजुक उपरत्न है. इस कारण इसे आसानी से रंगा भी जा सकता है. वैसे प्राकृतिक रुप से यह सफेद रंग में पाया जाता है और नींबू जैसे रंग की आभा लिए हुए होता है. एलाबस्टर के बहुत नाजुक होने के कारण इसमें निवेश बहुत ही सोच-समझकर किया जाना चाहिए. इसे अत्यंत सावधानी से उपयोग में लाना चाहिए. इस उपरत्न का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है.

एलाबस्टर के गुण | Qualities Of Alabaster

इसका उपयोग चित्रकला तथा मूर्त्तिकला में किया जाता है. इसलिए इसे “कला का पत्थर” भी कहा जाता है. यह व्यक्ति को कलाकारी के लिए प्रेरित करता है और यदि किसी कलाकार को लगता है कि कोई वस्तु उसकी पहुँच से बाहर है तब वह इस उपरत्न का उपयोग करके अपनी कला का विकास कर सकता है. व्यक्ति के स्वयं के लिए यह अदभुत रुप से काम करता है. सफेद रंग आत्मा का रंग माना जाता है. यह रंग व्यक्ति विशेष की आत्मा को आध्यात्मिकता की ओर लाने का आह्वान करता है.  

एलाबस्टर के आध्यात्मिक गुण | Spiritual Qualities Of Alabaster

इस उपरत्न से दूसरों को क्षमा करने की प्रेरणा मिलती है. धारणकर्त्ता दूसरों को क्षमा करने की क्षमता तो रखता ही है साथ ही स्वयं को भी क्षमा करने की काबिलियत रखता है. यह ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है. इस पत्थर का इस्तेमाल घर में करने से व्यक्ति विशेष में सकारात्मकता का विकास होता है. यह व्यक्ति के क्रोध को नियंत्रित करता है और गुस्से को भीतर से खतम करता है और उसके भीतर शांति की रोशनी का विकास करता है. चीजों को नए ढ़ंग से देखने के लिए प्रेरित करता है.

एलाबस्टर में अवशोषित करने के गुण विद्यमान है जिससे यह व्यक्ति की सहायता उसे ऊर्जा प्रदान करने में करता है, जिसकी उसके अंदर कमी हो रही है. यह ध्यान के समय व्यक्ति के मस्तिष्क से अवगुणों को अवशोषित करता है. ध्यानकर्त्ता के अन्तर्ज्ञान के चक्षु खोलने में सहायता करता है. क्षमा देने में सहायक है. ध्यान करने के लिए प्रेरित करता है. तनाव से राहत दिलाता है. मानसिकता का विकास करता है. क्रोध की मात्रा कम करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Alabaster

एलाबस्टर से बनी वस्तुओं का उपयोग सभी व्यक्ति कर सकते हैं.

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क्या पन्ना रत्न मेरे लिये अनुकुल रहेगा? | Is Panna Stone Good for Me (Can I Wear Emerald Stone)

बुध रत्न पन्ना को बुद्धि विकास और सौन्दर्य वृ्द्धि के लिये धारण किया जाता है. इस रत्न के कई नाम है, जिनमें से कुछ नाम मरकत, हरित्मणि, गरूडागीर्ण, सौपर्णी आदि कहा जाता है. इस रत्न को धारण से व्यक्ति की स्मरणशक्ति की वृ्द्धि होती है. बौद्धिक कार्यो में रुचि बढाकर यह व्यक्ति में चतुरता का भाव लाता है.     

पन्ना रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Panna Ratna?

पन्ना रत्न धारण से व्यक्ति को इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि यह रत्न लग्न के अनुकुल है भी या नही़. जब कोई भी रत्न अपने लग्न के अनुसार शुभता/ अशुभता जाने बिना धारण किया जाता है, तो व्यक्ति को कई बार इससे लाभ प्राप्त होता है. परन्तु कई बार यह व्यक्ति की परेशानियों में वृ्द्धि कर सकता है. आईए 12 लग्नों के लिये यह किस प्रकार के फल दे सकता है. इस विषय पर विचार करते है.

मेष लग्न-पन्ना रत्न | Panna Stone for Aries Lagna

मेष लग्न के व्यक्तियों को बुध रत्न पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इस लग्न के लिये बुध तीसरे वे छठे भाव के स्वामी होने के कारण अनुकुल फल देने में असमर्थ होते है.    

वृ्षभ लग्न-पन्ना रत्न | Benefits of Panna Ratna for Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न के लिये बुध दूसरे और पंचम भाव के स्वामी है. साथ ही लग्नेश शुक्र के मित्र भी है. अत: दोनों प्रकार से शुभ है. इसलिये वृ्षभ लग्न के व्यक्ति पन्ना धारण कर लाभ प्राप्त कर सकते है. इसे धारण करने से व्यक्ति को बुद्धिबल, यश, भाग्योदय देता है.     

मिथुन लग्न-पन्ना रत्न | Influence of Emerald on Gemini Lagna

मिथुन लग्न के लिये बुध रत्न पन्ना लग्नेश का रत्न होने के कारण सर्वथा शुभ है. इस लग्न के व्यक्ति इसे निसंकोच धारण कर सकते है.  

कर्क लग्न-पन्ना रत्न | Panna for Cancer Lagna

कर्क लग्न में बुध तीसरे व द्वादश भाव का स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों का इस रत्न को धारण करना शुभ नहीं है. 

सिंह लग्न-पन्ना रत्न | Impact of Panna Ratna on Leo Lagna

सिंह लग्न के व्यक्तियों के लिये बुध दुसरे व एकादश भाव के स्वामी है. परन्तु लग्नेश के मित्र नहीं है. ऎसे में इस रत्न को केवल महादशा अवधि में ही धारण करना चाहिए.  

कन्या लग्न-पन्ना रत्न | Effect of Panna Stone on Virgo Lagna

इस लग्न के लिये बुध लग्नेश और दशमेश है. कुंडली के ये दोनों ही भाव शुभ है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों का पन्ना रत्न धारण करना शुभ रहेगा. इसे धारण करने से व्यक्ति को कैरियर और स्वास्थय दोनों सुख प्राप्त होगें.   

तुला लग्न-पन्ना रत्न | Influence of Panna on Libra Lagna

तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये बुध नवम यानि भाग्य भाव और द्वादश यानि व्यय भाव के स्वामी है. बुध यहां भाग्येश होने के कारण अत्यधिक शुभ हो जाते है. इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति के जीवन के सभी क्षेत्रों की बाधाओं में कमी होगी.    

वृ्श्चिक लग्न-पन्ना रत्न | Panna Stone for Scorpio Lagna

वृ्श्चिक लग्न के लिए बुध अष्टम भाव और एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को पन्ना रत्न धारण करने से बचना चाहिए इसके स्थान पर मोती धारण करना इस लग्न के लिये बेहद शुभ रहेगा.    

धनु लग्न-पन्ना रत्न | Emerald for Sagittarius Lagna

इस लग्न में बुध की स्थिति सप्तमेश और दशमेश की होती है. इस लग्न के लिये बुध मध्यम स्तरीय शुभ है. इसे धारण करने से फल भी मध्यम स्तर के ही प्राप्त होगें.   

मकर लग्न-पन्ना रत्न | Panna Ratna – Influence on Capricorn Lagna

मकर लग्न में बुध षष्ठ भाव और नवम भाव के स्वामी होते है. यहां बुध भाग्येश होने के कारण विशेष रुप से शुभ हो जाते है.  साथ ही लग्नेश शनि के मित्र भी है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को अवश्य धारण करें.      

कुम्भ लग्न-पन्ना रत्न | Effect of Emerald on Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न में बुध 5वें और 8वें भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति शिक्षा, संतान आदि विषयों को प्राप्त करने के लिये इस रत्न को धारण कर सकते है. 

मीन लग्न-पन्ना रत्न | Panna for Pisces Lagna

मीन लग्न के लिये बुध चतुर्थ और सप्तम भाव के स्वामी होते है. इस लग्न के लिये बुध सप्तमेश बुध मारकेश होते है. इस कारण से इसे बुध कि महादशा अवधि में ही धारण करना अधिक उचित रहता है.     

पन्ना रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Panna Stone?

पन्ना धारण करने वाला व्यक्ति पन्ने के साथ-साथ एक ही समय में नीलम, हीरा और इनके उपरत्न धारण कर सकता है.

पन्ना रत्न के साथ क्या न पहने? | What Not to Wear with Panna Ratna

पन्ना रत्न धारण करने वाले व्यक्ति को इसे धारण करने के बाद या इस रत्न के साथ मोती, मूंगा और माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त पन्ना रत्न के साथ इन रत्नों के उपरत्न धारण करना भी अनुकुल नहीं रहता है.    

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बुध ज्योतिष में । The Mercury in Astrology । Know Your Planets- Mercury | Which is the beej mantra of the Mercury.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध की विशेषताओं में बुद्धिमता, शिक्षा, मित्र, व्यापार और व्यवसाय, गणित, वैज्ञानिक, ज्ञान प्राप्त करना, निपुणता, वाणी, प्रकाशक, छापने का कार्य, पढाने वाला, फूल, मामा और मामी, लेखविद्या, लिपिक, भतीजे, दत्तक पुत्र, मोती,  कस्तूरी, काला-जादू, टेढी आंखें, हंसी-मजाक, वाकपटुता, हाजिर जवाब आदि गुण आते है.  

बुध के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Mercury.

सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र ग्रह है.  

बुध के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Mercury 

बुध का शत्रु ग्रह चन्द्र है. 

बुध किन ग्रहों से सम संबन्ध रखता है. | Which planet forms neutral relation with the Mercury

 बुध शनि, मँगल व गुरु से सम सम्बन्ध रखता है.  

बुध को कौन सी राशियों का स्वामित्व प्राप्त है.  | Mercury is Which sign Lord 

बुध मिथुन व कन्या राशि का स्वामी है. 

बुध की मूल त्रिकोण राशि कौन सी है. | Which is the Mooltrikona sign of the Mercury

बुध कन्या राशि में 15 अंश से 20 अंश के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है.  

बुध किस राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है. | Which is the exalted sign of the Mercury

बुध कन्या राशि में 15 अंश पर उच्च स्थान प्राप्त करता है.  

बुध किस राशि में नीचस्थ होता है. | Which is the debiliated sign of the Mercury

बुध मीन राशि में होने पर नीच राशि में होता है. 

बुध को किस लिंग का प्रतिनिधित्व करता है.  | Mercury comes under which gender category

बुध को पुरुष व नपुंसक लिंग का कारक ग्रह है.  

बुध किस दिशा का स्वामी है. |  Which Direction  represent the Mercury. 

बुध उत्तर दिशा का स्वामी है.  

बुध का शुभ रत्न कौन सा है. | Which gem must be hold for the Mercury.

 बुध का शुभ रत्न पन्ना, सुलेमानी है. 

बुध का शुभ रंग क्या है. | What is the colour of the Mercury. 

बुध का प्रिय रंग हरा और भूरा है. 

बुध की शुभ संख्या कौन सी है.  | Which are the lucky numbers of the Mercury

बुध के शुभ अंक 5, 14, 23 है. 

बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए किस ग्रह की उपासना करनी चाहिए. | Which god should be worshipped for the Mercury. 

बुध के अधिदेवता विष्णु, भगवान नारायण देव है. 

बुध का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Mercury.

 बुध का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

” ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: ” इस मंत्र का जाप 21 दिनों में 19000 बार करना चाहिए.  

बुध का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Mercury. 

बुध् का वैदिक मंत्र इस प्रकार है. 

प्रियंगुकलकाशमं रूपूणाप्रतिमं बुधम ।

सौम्यम सौम्यगुणोपेतं व बुधं प्रणामाम्यहम ।।

बुध की दान की वस्तुएं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Mercury. 

बुध की दान योग्य वस्तुओं में हाथी दान्त, चीनी, हरा वस्त्र, हरे फूल, मूंग की दाल, कपूर, तारपीन का तेल. बुधवार को सूर्य उदय से 2 घण्टे पहले के अन्दर इन वस्तुओं का दान करना चाहिए.  

बुध ग्रह से प्रभावित व्यक्ति का रंग-रुप किस प्रकार का होता है. | What is the form of Mercury affected people.

जिस व्यक्ति की कुण्डली में बुध ग्रह की राशि मिथुन या कन्या लग्न भाव में हो, अथवा बुध लग्न भाव में बली अवस्था में हो, या फिर व्यक्ति की जन्म राशि बुध की राशि हो, तो व्यक्ति के व्यक्तित्व पर बुध का प्रभाव होता है. बुध से प्रभावित व्यक्ति सुगठित शरीर वाला, बडा शरीर, मृ्दु भाषा, हंसी मजाक, विनोदी स्वभाव का होता है. 

बुध शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Mercury represents which organs of the body

बुध शरीर में पित्त, वायु, बलगम, गुदा, जांघे, त्वचा, नाडी प्रणाली का कारक है.  

बुध के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है. | When the Mercury is at weaker position , what diseases can affect a person.

बुध के कमजोर या पिडित होने पर व्यक्ति को दिमाग और बोलने के अंगों में असन्तुलन हो सकता है. बुध दिमागी रोग देता है. मानसिक रोग, नपुंसकता, ज्वर, खुजली, हड्डियों का चटकना, जवर, चक्कर आना, गर्दन में दर्द, बवासीर, अपच, जिगर, पेट, आंन्तों की समस्याएं. 

बुध के कारक तत्व कौन से है. | What is the specific Karaka of the Mercury. 

बुध बुद्धिमानी, लगातार बोलने वाला, हास्य प्रकृ्ति का कारक ग्रह है., 

बुध के विशिष्ठ गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Mercury. 

बुध विद्या का कारक ग्रह है, वह बन्धु बान्धवों का भी कारक ग्रह है.  

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गुरुवार व्रत | Thursday Vrat Method – Aarti | Thursday Fast in Hindi – Guruvar Vrat (Brihaspati Vrat)

गुरुवार का व्रत विशेष रुप से विवाह मार्ग की बाधाओं में कमी करने के लिये किया जाता है. देव गुरु वृ्हस्पति धन के कारक ग्रह है, इसलिये इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. 

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में गुरु कमजोर होकर स्थित हों, उन व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. गुरु वृ्हस्पति की पूजा करने से कई प्रकार के फल प्राप्त होते है. गुरुवार की पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए.  कि यह पूजा विधि-विधान के अनुसार करनी चाहिए. इससे उपवासक की मनोकामना पूरी होती है. 

गुरुवार व्रत किन उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है? | Thursday Fast Significance

गुरुवार का व्रत जल्दी विवाह करने के लिये किया जाता है. जिस व्यक्ति को यह व्रत करना हो, उस व्यक्ति को एक दिन पहले ही इस व्रत के लिये स्वयं को तैयार कर लेना चाहिए. व्रत वाले दिन प्रात: काल में उठकर वृ्हस्पति देव का पूजन करना चाहिए. वृ्हस्पति देव का पूजन पीली वस्तुएं, पीले फूल, चने कि दान, पीली मिठाइ, पीले चावल आदि का भोग लगाकर किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति इस व्रत को धन प्राप्ति के लिये करता है, तो उसे वृ्हस्पति देव का पूजन पीली वस्तुओं से करना चाहिए.  

उपवास के दिन वृहस्पति देव का अभिषेक केसर मिले दूध से करना चाहिए. गुरुवार के दिन उपवास कर एक समय का उपवास करना चाहिए.  वृ्हस्पति देव क्योकिं शिक्षा के भी कारक ग्रह है, इसलिये नियमित रुप से इनका पूजन करने से, अथवा जल चढाने से देव प्रसन्न होकर व्यक्ति की मनोइच्छा पूरी करते है. इसके साथ ही वैवाहिक सुख-शान्ति को बनाये रखने के लिये, गुरुवार का व्रत कर पीली मिठाइ का भोग लगाना चाहिए. और देव को चल चढाना शुभ रहता है. 

आर्थिक स्थिति को सुदृढ करने के लिये और अच्छे व्यवसाय के लिये भी गुरुवार का व्रत किया जा सकता है. इस उद्देश्य के लिये व्रत करने के लिये व्यक्ति को गुरुवार का व्रत कर गरीबों को भोजन कराकर उच़ित दक्षिणा देनी चाहिए.

गुरुवार व्रत विधि-विधान | Method of Thursday Fasting 

गुरुवार के व्रत का प्रारम्भ किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के पहले गुरवार से किया जा सकता है. इस व्रत को लगातार 16 गुरुवार  से लेकर नियमित रुप से तीन वर्ष तक किया जा सकता है. (simonsezit.com) और व्रत करते समय व्रत से जुडे सभी विधि-विधानों का सख्ती से पालन करना चाहिए.  

व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर, पीले वस्त्र धारण कर पीले फूलों, चने की दाल, पीला चन्दन, बेसन की बर्फी, हल्दी, पीले चावल आदि से भगवान विष्णु की, और गुरु वृ्हस्पति देव की पूजा करनी चाहिए. व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सिर नहीं धोना चाहिए. और नमक रहित भोजन करना चाहिए.  

प्रात वृ्हस्पति देव का पूजन करने के बाद पीली मिठाई से देव को भोग लगाना चाहिए.  तथा सायंकाल में पीले वस्त्रों का दान करना चाहिए. व्रत के दिन गुरुवार व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए.  

आरती वृहस्पति देवता की | Thursday Aarti :   

जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा ।  छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।  जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।  सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।  प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।  पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।  विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ।।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।  जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ।।

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