रविवार के दिन क्या कार्य करना शुभ है:? | Auspicious Works Done on Sunday

“दैनिक जीवन में प्रतिदिन के कार्यो में शुभता बनी रही. जिसके लिये कार्य के लिये शुभ मुहूर्त निकालने के लिये अत्यधिक मेहनत भी न करनी पडे”  इस प्रकार का विचार सभी के मन में आता है. परन्तु इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाता है. इस स्थिति में वार अनुसार कार्य निर्धारित करने से मुहुर्त भी प्राप्त होता है. तथा मुहूर्त की कठिन गणना से भी बचा जा सकता है. आईये वार के अनुसार किये जाने वाले कार्यो को समझने का प्रयास करते है. 

रविवार के दिन यात्रा करने के लिये शुभ दिशाएं | Auspicious Direction for Traveling on Sunday

रविवार के दिन अगर व्यक्ति को यात्रा करनी हों, तो उसे अपनी यात्रा को सुखमय व कष्टरहित बनाने के लिये पूर्व दिशा की यात्रा, इसके अतिरिक्त उतर दिशा की यात्रा भी कि जा सकती है. आग्नेय दिशा अर्थात ( दक्षिण पूर्व) से संबन्धित कार्य भी इस दिन सहजता से पूरे किये जा सकते हे. अगर व्यक्ति को सामान्य रुप से इन दिशाओं की यात्राओं पर नियमित रुप से जाना पडता रहता है. तो उस व्यक्ति को चाहिए कि वह यात्रा से संबन्धित अपने कार्यक्रम को रविवार का दिन निश्चित करना चाहिए. 

रविवार के दिन उपरोक्त दिशाओं में यात्रा करने से व्यक्ति जिस उद्धेश्य से यात्रा कर रहा है. उस कार्य में सफल होने की संभावनाएं बनती है. तथा यात्रा की अवधि में धन हानि या अन्य कोई शारीरिक कष्ट प्राप्त होने की संभावनाएं भी कम रहती है. 

रविवार के दिन विधा आरम्भ के विषय | Commencement of Education on Sundays

रविवार को विधा आरम्भ के लिये शुभ दिन माना जाता है. इस दिन विज्ञान, इंजिनियरींग, सेना, उद्धोग, बिजली, मेडिकल व प्रशासनिक शिक्षा विषयों में प्रवेश लेना विशेष शुभ रहता है. रविवार के दिन के देव सूर्य देव है. तथा ये सभी क्षेत्र सूर्य देव के अन्तर्गत आते है. जिन व्यक्तियों को इन विषयों में उच्च शिक्षा लेने में रुचि हो, उन व्यक्तियों को प्रवेश का दिन अगर संभव हो तो रविवार का दिन रखना चाहिए. 

सामान्यत: रविवार का दिन सार्वजनिक अवकाश का दिन होता है. तथा अधिकतर शिक्षण संस्थान इस दिन बन्द रहते है. परन्तु विशेष स्थिति में इनके खुले होने की भी संभावनाएं बनती है. 

रविवार के दिन व्यापार संबन्धी कार्य | Business tasks done on Sundays

रविवार के दिन कुछ कार्य ऎसे व्यवसायिक कार्य तथा व्यापारिक कार्य आरम्भ किये जा सकते है. जिन्हें करना विशेष शुभ होता है. इस दिन प्रशासनिक कार्य से संबन्धित आरम्भ किया जा सकता है. या व्यवसायिक क्षेत्र में प्रशासनिक कार्य रविवार के दिन अधिकतर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए. 

रविवार के दिन सेना में प्रयोग होने वाली वस्तुओं का व्यापार कार्य आरम्भ किया जा सकता है. सोने या जेवर की व्यापार या दुकान खोली जा सकती है. किसी औषधि की दुकान का मुहूर्त रविवार के दिन करना शुभ रहता है. धातुओं के क्रय- विक्रय के लिये रविवार का दिन अनुकुल रहता है. धातुओं में भी सोने, चांदी तथा तांबें धातु का कार्य कुशलता पूर्वक किया जाता है. गाय व बैलादि खरीदने बेचने के लिये रविवार का दिन शुभ होता है. 

जिस व्यक्ति को मेडिकल स्टोर को आरम्भ करना हों तो रविवार के दिन का चयन करना चाहिए. बिजली की दुकान, इळैक्ट्रिकल विषयों का व्यापार कार्य करना हो, तो अन्य मुहूर्त उपलब्ध न होने पर रविवार के दिन कार्य आरम्भ किया जा सकता है. 

इसके अतिरिक्त मंत्र अनुष्ठान, यज्ञादि कार्य करना शुभ होता है. 

ऊपर बताये गये कार्यो का मुहूर्त समय विशेष रुप से तभी लेना चाहिए. जब कोई अन्य शुभ मुहूर्त न हों, तथा व्यक्ति के पास समय की कमी हों. अगर संभव हो तो वार के अतिरिक्त मुहूर्त समय में अन्य शुद्धियों का भी ध्यान रखना चाहिए. 

रविवार के दिन किये जाने वाले अन्य शुभ / अशुभ मुहूर्त | Other Auspicious and Inauspicious Task done on Sunday

रविवार के दिन नये वस्त्र धारण करना शुभ है. परन्तु तेल लगाना मुहूर्त अनुसार शुभ नहीं है. इस दिन नये आभूषण धारण किये जा सकते है. क्षौर क्रियाओं के लिये यह दिन मध्यम शुभ होता है. इस दिन नये जूते पहनने से बचना चाहिए. तथा कोई नया मुकदमा भी दायर नहीं करना चाहिए.   

Posted in hindu calendar, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

नीचभंग राजयोग

जब कोइ ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित होता है, तो वह शक्ति हीन और निर्बल होता है. इस स्थिति में वह ग्रह अपने शुभ फल देने में असमर्थ होता है. किन्तु अन्य ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि या परस्पर राशि परिवर्तन आदि के उस पर प्रभाव द्वारा उसकि यह कमजोर स्थिति सुधर जाती है. जिसे नीच-भंग राजयोग कहते है. जो निम्नलिखित स्थितियों में बन सकता है.

नीचभंग राजयोग नियम

1.जब नीच राशि का ग्रह लग्न भाव या चन्द्र से केन्द्र स्थान में हो.

2. जिस राशि में ग्रह नीच का होता है. उस राशि का स्वामी ग्रह, लग्न भाव या चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में स्थित हो, जैसे गुरु मकर राशि में नीच के होते है, तो मकर राशि के स्वामी शनि यदि लग्न से केन्द्र या चन्द्र से केन्द्र स्थान में हो, तो नीच भंग राजयोग बनता है.

3. जिस राशि में ग्रह नीच का होता है. अगर उस राशि में उच्च होने वाला ग्रह लग्न या चन्द्र से केन्द्र स्थान में हो जैसे शनि मेष राशि में नीच के होते है, तो मेष राशि में उच्च का होने वाला सूर्य अगर लग्न या चन्द्र से केन्द्र में हो तो नीच भंग हो जाता है.

4. जिस राशि में ग्रह नीच का होता है, उस राशि के स्वामी की नीच के ग्रह पर दृष्टि हो जैसे- बुध मीन राशि में नीच का होता है, और उस पर यदि मीन के स्वामी गुरु की दृ्ष्टि हो तब भी नीच भंग राजयोग बनता है.

5. व जिस राशि में ग्रह नीच का होता है. उस राशि का स्वामी और जिस राशि में ग्रह उच्च का होता है. उस राशि का स्वामी परस्पर केन्द्र स्थान में हो जैसे- मंगल की नीच राशि कर्क का स्वामी चन्द्र और उच्च राशि का स्वामी शनि, परस्पर केन्द्र में हो तो मंगल के ओलिए नीच भंग राजयोग बनता है.

6. इसके अतिरिक्त नीच ग्रह की राशि का स्वामी और ग्रह की उच्च राशि का स्वामी लग्न या चन्द्र से केन्द्र में हो जैसे शनि की नीच की राशि मेष का स्वामी मंगल और उसकी उच्च की राशि तुला का स्वामी शुक्र लग्न या चन्द्र से केन्द्र स्थान में हो तो शनि के लिए नीच भंग राजयोग बनता है.

7. जिस राशि में ग्रह नीच का हो रहा होता है. उस राशि में उच्च का होने वाला ग्रह साथ में बैठा हो या उस पर दृ्ष्टि करता हो तो नीच भंग हो जाता है.

नीच भंग राजयोग फल

नीच का ग्रह अपनी निर्बल स्थिति के कारण अच्छा फल नहीं दे पाता है. किन्त नीचभंग राजयोग वाला ग्रह अपनी दशा- अन्तर्दशा के मध्य और उसके पश्चात बहुत शुभ फल देता है. नीच भंग में ग्रह जब किसी उच्च के ग्रह के साथ संपर्क में हो तो यह स्थिति उसकी इस नीचता को समाप्त करने वाली होती है. इस स्थिति में नीच ग्रह अपनी अशुभता तो दिखाता है लेकिन जातक को इस अशुभ प्रभाव का अंत एक शुभ फल के रुप में मिलता है. यह बिलकुल ऎसा होगा जैसे की जातक को खराब स्थिति मिलेगी लेकिन उस संकट से वह तुरंत मुक्त होकर अपने जीवन में शुभता पाएगा.

  • नीच भंग योग के होने पर ग्रह अपने अशुभ फलों को कम कर देता है.
  • जातक परेशानियों से निकल कर सुख को भी पाता है.
  • संघर्ष से उसे सफलता मिलती है.
  • परिवार और समाज में सम्मान पाता है.
  • किसी संस्था का निर्माण कर सकता है अथवा उस से जुड़ कर आगे बढ़ता है.
  • अपने विरोधियों को परास्त कर सकता है.
  • नीच भंग राजयोग ग्रह

    1. सूर्य से बनने वाला नीच भंग राजयोग में जातक को सरकार से अगर परेशानी होती है तो राज्य की ओर से उसे लाभ भी मिलता है. व्यक्ति अपनी नीतियों को वरिष्ठ लोगों के सहयोग से आगे ले जाने में सक्षम होता है.

    2. बुध से बनने वाले नीच भंग राजयोग में जातक अपनी बुद्धि का उपयोग गलत काम से आगे बढ़ने में लगा सकता है. जातक को सही दिशा का बोध कराने वाले मित्र भी मिलते हैं. अपने लोगों का सहयोग भी मिलता है.

    3. चंद्रमा के नीच भंग होने पर जातक कमजोर भावुक होता है. दूसरों पर जल्द भरोसा करने वाला और इस कारण स्वयं के लिए परेशानी उत्पन्न कर सकता है. पर इसके साथ ही ज्ञानी ओर प्रेम पुर्वक व्यवहार करने वाला.

    4. मंगल से बनने वाले इस योग में जातक अधिक उग्र हो सकता है. जल्दबाजी में काम करने वाला हो सकता है. व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में काम मिल सकता है. प्रोपर्टी से लाभ मिल सकता है.

    5. शुक्र से बनने वाले इस योग में जातक धनवान और लोगों के मध्य प्रसिद्धि पाने वाला बनता है. व्यक्ति में अहंकार भी अधिक हो सकता है अथवा दिखावे की प्रवृति भी रह सकती है.

    6. बृहस्पति से बनने वाले इस योग के द्वारा जातक अपने ज्ञान और चतुराई से आर्थिक उन्नती पाता है. काम काज में कुशल होता है.

    7. शनि से बनने पर इस योग के प्रभाव से व्यक्ति में कार्यकुशलता के साथ साथ व्यवहारिकता का ज्ञान भी अच्छा होता है.

    विशेष :

    किसी भी जातक की कुण्डली में बनने वाला राजयोग एक शुभ और बहुत प्रभावशाली योग होता है. व्यक्ति को इस योग के प्रभाव से जीवन में सुख और समृद्धि मिलती है. उसे संघर्ष अधिक नहीं करने पड़ते हैं और किसी न किसी रुप में वह दूसरों का सहयोग भी प्राप्त कर लेता है. पर इसी के विपरीत स्थिति जन नीच भंग राजयोग की बनती है तो यहां शुभ प्रभाव सीधे रुप में न मिलकर व्यक्ति को कष्ट के साथ प्राप्त होते हैं अथवा कुछ अच्छा हासिल तो होता है लेकिन उसके लिए संघर्ष की स्थिति भी अधिक रहती है. यही नीच भंग राजयोग का महत्वपूर्ण सार होता है.

    Posted in astrology yogas, jyotish, planets, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

    Petalite Gemstone Meaning | Petalite – Stone Of The Angels | Petalite – Metaphysical, Healing Ability

    It is an unique and a rare gem.It is most popular between the gem collectors.It is specially finished made for them.This gemstone is similar to many other gems and created the illusion of many other gems. In colourless state it looks like a diamond.It is an extremely delicate and beautiful gemstone. The name Petalite has been taken from the Greek word Patalon, which means a leaf of a tree.The way a leaf’s each and every structure appears clearly , likewise the structure of Petalite also appears very clean and clear. 

    This gemstone was first founded in 18 century in Spain and is considered as an angel and  is also known in the form of angel. It is very well known as “Angel Stone” i.e “Stone of the Angels” , because it encourages the acts like an angel.This gemstone provides the assistance to all areas of the media world and the holder is able to communicate on all issues.

    Gemstones like Scolecite,Lepidolite,Tektite,Tourmaline,Morganite,Rose Quartz are suitable for Petalite and can be worn along with it. 

    Petalite – Metaphysical Properties

    This gemstone increases the vision of the holder and provides him with deep peace and joy. It should be kept  near to the permission cycle during the meditation.It gives the holder recess.Keeps the mind calm for Internal investigation. It communicates a balanced energy.People with unstable thoughts, scattered ideas,  can hold this unique gemstone.It provides stability in the views. It brings the holder near to his spiritual refinement.The person is able to  communicate his experiences of  his spirituality.

    It is helpful to fill the emotional shock. It  protects the holder and and keeps him balanced. The person identifies his own personality and awakens love within himself. It keeps the holder  tied in a rhythm and his conscience encourage higher returns.It is is helpful in connecting the holder with deep spirituality. It has been considered to increase the insight and opens it to develop the mental capability and even telepathy. Even a small piece of this gem works like an Amrit.

    Many experts recommend wearing the gemstone especially when he talks to his clients or patients. It operates high mental capacity.This gemstone holds soft and balanced flow of energy which makes the holder aware during the meditation.Many people use it to increase the wisdom of spirituality and provides security.This gem is majorly used to show magic.

    The holder gets connected to the divine power  and also with his civilization and culture. Guides the holder in the emotional front.helps to connect the conscience with the divine power and inspires the soul to do good work for the world. It helps in making holder’s  relations with the angels . It is a better and a unique gemstone for raising consciousness.

    It is helpful to keep the cycles of body balanced . It controls the Vishudh Chakra and Sahasrara. It develops the communication capacity of the holder.  If one is facing barriers from long time in accomplishing a work , then this gemstone is capable to remove them . It is an powerful gem and keeps the positive energy around the holder. It purifies the surrounding of the holder and removes any negative energy. It evidents the existence of the holder in his own eyes and  Introduces the holder with the reality.

    Healing Ability Of Petalite

    It is believed that this gemstone makes the person calm and stress free and easily removes the stress-borne diseases .It keeps away the holder from too much stress.It prevents the holder from disease like Cancer and AIDS. It is helpful in filling the wounds and develops bones. It prevents from decayed feelings , and keeps him calm.

    It operates the end glands smoothly and controls the body cell.It fixes the eye disorders and problems related to the lungs. It prevents the muscles from getting stiff.Removes problems related to the intestines. It makes the joints flexible.

    Colour Of Petalite

    This gemstone is found in many colours. It is found in whatever colors , they all are pastel colors. It occurs in colorless and transparent state.It is found in light pink colour and also in the mixture of grey, white, and red colour.It is also found in grey and white mixture of colours.This gem is also found in yellowish tone and is of an air element.

    Where Is Petalite Found

    Petalite is found in Canada, United States America, Brazil, Sweden, Namibia, Afghanistan, Zimbabwe, Burma, Australia, Russia, Mozambique,  Italy etc.

    Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    आधानादि नक्षत्र । Adhanadi Nakshatra Meaning | Janma Nakshatra | Karma Nakshatra | Vainashik Nakshatra

    वैदिक ज्योतिष में 28 नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है. सभी नक्षत्रों का अपना विशिष्ट महत्व है. 28 नक्षत्रों में से कोई भी नक्षत्र व्यक्ति विशेष के लिए शुभ तथा अशुभ हो सकता है. जो एक नक्षत्र किसी व्यक्ति के लिए अशुभ है वही नक्षत्र किसी अन्य समय में दूसरे व्यक्ति के लिए शुभ हो सकता है. एक निश्चित समय के लिए कोई भी नक्षत्र शुभ या अशुभ हो सकते हैं. इसी प्रकार मुहुर्त में नक्षत्रों को शुभता तथा अशुभता के आधार पर बाँटा गया है.

    सभी व्यक्ति एक निश्चित नक्षत्र में जन्म लेते हैं. जन्म के समय के नक्षत्र को जन्म नक्षत्र कहा जाता है. इस प्रकार बाकी सभी नक्षत्रों का वर्गीकरण भी किया जाता है. नक्षत्रों को बहुत से वर्गों में विभाजित किया गया है. उन्ही विभाजनों में से एक विभाजन आधानादि नक्षत्रों का भी है. आधानादि नक्षत्रों के अन्तर्गत जन्म नक्षत्र, कर्म नक्षत्र, आधान नक्षत्र, वैनाशिक नक्षत्र, सामुदायिक नक्षत्र, सांघातिक नक्षत्र तथा मानस नक्षत्र आते हैं. इन सभी की गणना व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर होती हैं.

    जन्म नक्षत्र | Janma Nakshatra

    सभी व्यक्ति का जन्म एक निश्चित समय तथा नक्षत्र में होता है. जिस निश्चित नक्षत्र में उसका जन्म होता है, उसे जन्म नक्षत्र कहा जाता है. यह जन्म कालीन चन्द्रमा का नक्षत्र होता है अर्थात जन्म के समय चन्द्रम जिस राशि में स्थित होता है उसे जन्मकालीन चन्द्रमा कहते हैं. जन्म नक्षत्र यदि जन्म के समय अथवा गोचर में पीड़ित होता है तब जातक को मरणभय होता है अथवा उसे बहुत ही भयानक परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.

    कर्म नक्षत्र | Karma Nakshatra

    जन्म नक्षत्र से गिनती करने पर दसवाँ नक्षत्र कर्म नक्षत्र कहलाता है. यह गिनती अभिजित नक्षत्र सहित करनी है.  यदि जातक का कर्म नक्षत्र गोचर में पीड़ित है तब उसे अपने व्यवसाय में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. उसे काम में कष्ट मिलता है.

    आधान नक्षत्र | Adhan Nakshatra

    जन्म नक्षत्र से 19वाँ नक्षत्र आधान नक्षत्र कहलाता है. यदि आधान नक्षत्र गोचर में पीड़ित हो रहा है तब जातक को प्रवास करना पड़ सकता है. जिस स्थान पर वह रह रहा है उसे किन्हीं कारणों से वह स्थन छोड़ना पड़ सकता है. 

    वैनाशिक नक्षत्र | Vainashik Nakshatra

    इस नक्षत्र की गणना करने में विद्वानों में मतभेद हैं. कई विद्वान इस नक्षत्र की गणना अभिजित सहित करते हैं और कई विद्वान इस नक्षत्र की गणना अभिजित रहित भी करते हैं, इसलिए यह जन्म नक्षत्र से 22वाँ या 23वाँ भी हो सकता है. गोचर के समय यदि इस नक्षत्र से पाप ग्रहों का विचरभ हो रहा हो तब जातक को शरीर में पीडा़ तथा कष्ट होता है. उसे अपने स्वजनों के विरोध का सामना भी करना पड़ता है.

    सामुदायिक नक्षत्र | Samudayik Nakshatra

    जन्म नक्षत्र से 18वाँ ऩक्षत्र सामुदायिक नक्षत्र कहलाता है. गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर जातक को किसी अनिष्ट का सामना करना पड़ सकता है.

    सांघातिक नक्षत्र | Sanghatik Nakshatra

    जन्म नक्षत्र से 16वाँ नक्षत्र सांघातिक नक्षत्र कहलाता है. सांघातिक नक्षत्र में गोचर के पाप ग्रह विचरण करते हैं तो जातक को किसी बडी़ हानि का सामना करना पड़ता है.

    मानस संज्ञक नक्षत्र | Manas Sangyak Nakshatra

    जन्म नक्षत्र से 25वाँ नक्षत्र मानस संज्ञक कहलाता है. इस नक्षत्र के गोचर में पीड़ित होने पर जतक को किसी बात को लेकर मन:संताप हो सकता है.

    पीड़ित नक्षत्र की पहचान | Identification Of Afflicted Nakshatra

    किसी भी नक्षत्र को कुछ विशेष परिस्थितियों में पीड़ित समझा जाता है. वह परिस्थितियाँ हैं :-

    * शनि तथा सूर्य जिस नक्षत्र में गोचर करें.

    * जिस नक्षत्र में वक्री मंगल गोचर करता हो या मंगल उसका भेदन करता हो.

    * जिस नक्षत्र में ग्रहण लगा हो वह भी पीड़ित होता है.

    * गोचर में जिस नक्षत्र में उल्का से टक्कर हो रही हो वह पीड़ित होता है.

    * गोचर में चन्द्रमा जिसका भेदन करता हो.

    * जो नक्षत्र स्वाभाविक स्वरुप से भिन्न हो.

    * जिस नक्षत्र में केतु का गोचर हो रहा हो.

    उपरोक्त तथ्यों के अतिरिक्त जो नक्षत्र चण्डीशायुध, एकार्गल या लत्तादोष से युक्त हों वह सब पीड़ित नक्षत्र माने जाते हैं. 

    अगर अपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते हैं, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

    Posted in jyotish, nakshatra, vedic astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

    धनु राशि क्या है । Sagittarius Sign Meaning | Sagittarius Introduction | Who is the Lord of The Sagittarius Sign

    धनु राशि के व्यक्ति मानवतावादी होते है. उनके स्वभाव में फुर्तीलापन देखने में आता है. इस राशि के व्यक्ति सदैव प्रसन्नचित रहने का प्रयास करते है. वे आशावादी होते है. धनु राशि के व्यक्तियों में उत्तम वक्ता के गुण होते है. इस राशि के व्यक्ति सक्रिय रहते है. वे ईमानदार ओर विनम्र होते है. धनु राशि के व्यक्तियों में आत्मत्याग का भाव स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. ऎसा व्यक्ति मन में किसी के लिए वैंमनस्य नहीं रखता. 

    धनु राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Sagittarius sign

    धनु राशि का स्वामी गुरु है, गुरु को वृ्हस्पति के नाम से जाना जाता है. गुरु ग्रह सभी ग्रहों में गुरु का स्थान रखते है. इसके अतिरिक्त सभी नौ ग्रहों में गुरु को सबसे अधिक शुभ ग्रह माना जाता है. कुण्डली के जिन भावों पर गुरु की दृष्टि पडती है. वे सभी भाव भी शुभ हो जाते है. 

    धनु राशि का चिन्ह कौन सा है.| Who is the Lord of the Sagittarius sign

    धनु राशि का चिन्ह धनुधारी है. सामान्य जीवन में इस राशि के व्यक्ति अपने जीवन लक्ष्य के प्रति सतर्क रहने वाले होते है. अपने लक्ष्य से उनकी निगाह हटती नहीं है. तथा धनु राशि के व्यक्तियों को खेल-कूद में स्वभाविक रुचि होती है.   

    धनु राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देने वाले ग्रह होते है. | Who is the Lord of the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए सूर्य, मंगल ग्रह शुभ फल देते है. सूर्य, मंगल व चन्द्र तीनों ग्रह धनु राशि के स्वामी सूर्य के मित्र है. और मित्र ग्रह होने के कारण वे इस राशि के लिए शुभफल देने वाले ग्रह होते है.  

    धनु राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. | Which Planets are inauspicious for the Sagittarius sign 

    धनु राशि के लिए बुध, शुक्र, शनि अशुभ फल देते है. 

    धनु राशि के लिए कौन से ग्रह सम फल देते है. | Which are Neutral planets for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए गुरु और चन्द्र सम फल देते है. 

    धनु राशि के लिए कौन सा ग्रह मारक ग्रह कहलाता है. | Which  are the Marak planets for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए शुक्र व शनि मारक ग्रह है. 

    धनु राशि के लिए कौन सा भाव बाधक भाव है. | Which is the Badhak Bhava for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए सप्तम भाव बाधक भाव है. 

    धनु राशि के लिए कौन सा ग्रह बाधक भाव का स्वामी होता है. | Which planet is Badhkesh for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए बुध बाधकेश होता है. 

    धनु राशि में कौन सा ग्रह उच्च स्थान प्राप्त करता है. | Which Planet of the Sagittarius sign, is placed in exalted position

    धनु राशि में कोई ग्रह उच्च स्थान प्राप्त नहीं करता है. 

    धनु राशि किस ग्रह की नीच राशि है. | Which Planet of the Sagittarius sign, is placed in debilitated sign.

    धनु राशि किसी ग्रह की नीच राशि नहीं है. 

    धनु रशि किस ग्रह की मूलत्रिकोण राशि है. | Sagittarius sign is which Planet’s Multrikon.

     धनु राशि में गुरु 0 अंश से 10 अंश के मध्य मूलत्रिकोण राशि में है. 

    धनु राशि में किस अंश पर चन्द्रमा शुभ फल देते है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Sagittarius. 

    धनु राशि में चन्द्रमा 23 अंश पर शुभ फल देते है.।  

    धनु राशि में चन्द कौन से अंशों पर होने पर अशुभ फल देता है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Sagittarius 

    धनु राशि में चन्द्र 13 अंश, 18 अंश पर होने पर अशुभ फल देता है. 

    धनु राशि के व्यक्तियों के लिए कौन सा इत्र शुभ है. | Which fragrance is auspicious for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए लिग्नालोइस इत्र शुभ है. 

    धनु राशि के लिए कौन सा अंक शुभ है. । Which are the Lucky numbers for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए 6, 3, 9, 8, 1, 4 अंक शुभ होते है. 

    धनु राशि के कौन सा वार शुभ वार होता है. । Which are the Lucky Days for the Sagittarius sign

    धनु राशि के लिए बुधवार, शुक्रवार, वीरवार और रविवार शुभ वार है. 

    धनु राशि के लिए कौन रत्न धारण करना शुभ रहता है. | Which is the lucky stone for the Sagittarius people

    धनु राशि के लिए पुखराज धारण करना शुभ रहता है. 

    धनु राशि का शुभ रंग कौन सा है. | Which is the lucky Colour for the Sagittarius people

    धनु राशि के लिए सफेद, क्रीम, हल्का नीला. 

    धनु राशि के लिए किस दिन का उपवास रखना शुभ रहता है. | On which day should the Sagittarius people fast

    धनु राशि के लिए वीरवार का व्रत करना शुभ रहता है. 

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    गर करण

    गर करण को चर करणों की श्रेणी में आता है, हिन्दू पंचाग के पांच अंग है, इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण है, व कुल 11 करण है, इसमें से प्रारम्भ के सात करणों की आवृति होती रहती है. शेष चार करण स्थिर है.

    गर करण- स्वामी

    गर करण के स्वामी पृथ्वी को माना गया है. पृथ्वी के प्रभाव से गर करण में सहनशीलता और धैर्य का गुण आता है. जिस जातक का जन्म गर करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक अथवा स्वास्थ्य संबन्धी किसी प्रकार की कोई परेशानी रहती हो, ऎसे में जातक के लिए इस करण के स्वामी पृथ्वी का पूजन करना अत्यंत लाभदायक होता है.

    गर करण कब होता है

    गर करण करण एक गतिशील करण है. यह चलायमान रहता है. तिथि में ये करण बार-बार आता है. यह एक सौम्य करण माना गया है. अस्थिर करण होने पूर्णिमा और अमावस की तिथियों को छोड़ कर बाकी तिथियों की गणना के अनुरुप आता रहता है.

    गर करण-चरसंज्ञक करण

    गर करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बव, बालव, कौलव, तैतिल, वणिज और विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न ध्रुव करण कहलाते है.

    गर करण में क्या काम करें

    गर करण को शुभ करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण में शुभ एवं मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. यह करण किसी काम के शुरु करने या किसी यात्रा को करने के लिए लिया जा सकता है. गर करण में व्यक्ति को कामों को पूरा करने का मौका भी मिलता है. इस समय पर व्यक्ति अपनी जीत के लिए बहुत अधिक प्रयसशील रहता है.

    अगर कोई काम अटका हुआ है तो इस करण के दौरान उस काम के लिए प्रयास करने से लाभ मिलने की उम्मीद बंध जाती है. व्यक्ति साहस और मेहनत से भरे कामों को कर सकने में भी सक्षम होता है.

    गर करण का मुहूर्त में महत्व

    मुहूर्त निकालने के लिए गर करण को उपयोग में लिया जाता है. इस करण के दौरान व्यक्ति शुभ काम जैसे की घर निर्माण, प्रतियोगिता में शामिल होना, विवाह, प्रेम प्रसंग, किसी काम का आरंभ, गृह प्रवेश, भूमि संबंधी इत्यादि काम कर सकता है.

    गर करण व्यक्ति कैरियर

    गर करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भूमि और भूमि से प्राप्त वस्तुओं के क्रय-विक्रय से आय प्राप्त होती है. जो व्यक्ति गर करण में जन्म लेता है, ऎसा व्यक्ति खेतीबाडी के क्षेत्र को भी अपने कैरियर के रुप में अपना सकता है. इस करण में जन्में व्यक्ति को अपनी माता से प्राप्त होने वाले सुख में कमी रहती है. वह घर-परिवार के साथ कम ही रह पाता है.

    जीवन का अधिकतर समय उसे घर से दूर रहकर ही गुजारना पडता है. घर के कार्यो को वह तत्परता के साथ करता है. अपनी पारीवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने को वह सबसे अधिक महत्वता देता है. व्यक्ति में महत्वकांक्षा का गुण होता है. जीवन में उसकी जो भी इच्छा होती है, अथवा जीवन में वह जो भी प्राप्त करना चाहता है, उसे अपनी मेहनत से प्राप्त होती है.

    गर करण में जन्मा जातक

    गर करण के वाहन गज माने जाते हैं. इस करण में जन्मा जातक मस्त और मन मौजी अधिक हो सकता है. जातक को अपने माता-पिता का प्रेम मिलता है. परिजनों का सहयोग पाकर वह आगे बढ़ता है. इस करण में जन्मा व्यक्ति कर्मठ होता है. मेहनत से अपने काम करने वाला और परिश्रम से भाग्य का निर्माता बनता है.

    जातक धर्म परायण और नीति नियमों को समझने वाला होता है. कर्म की महत्ता को समझने वाला और भाग्य का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील होता है. न्याय प्रिय होता है और शत्रुओं का नाश करने वाला होता है. जातक बोल चाल में निपुण और वाद विवाद में आनंद लेने वाला होता है.

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

    जैमिनी स्थिर दशा | Jaimini Sthir Dasha

    जैमिनी ज्योतिष में अनेक दशाओं का प्रयोग किया जाता है. उनमें से एक प्रमुख दशा स्थिर दशा भी है. इस दशा का विश्लेषण अप्रिय घटनाओं, स्वास्थ्य तथा जीवन की नकारात्मक जानकारियों के लिए किया जाता है. यह जैमिनी की बहुत ही सरल दशा है. इस दशा से भी जीवन के सभी पहलुओं का आंकलन किया जा सकता है. चर दशा की भाँति स्थिर दशा में भी सभी जैमिनी कारकों का उपयोग किया जाता है. 

    स्थिर दशा में दशाक्रम समझने से पहले सर्वप्रथम ब्रह्मा, रुद्र तथा महेश्वर का निर्धारण करना आवश्यक होता है. इन तीनों का निर्धारण करने के लिए गणितीय गणना की आवश्यकता होती है. इस गणना के आधार पर ही ब्रह्मा, रुद्र तथा महेश्वर का निर्धारण किया जाता है. अगले अध्यायों में आपको स्थिर दशा की गणना विस्तार से और सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया जाएगा. आशा है कि आपको इस दशा को समझने में कोई परेशानी नहीं होगी. 

    ब्रह्मा का निर्धारण | Determination of Brahma

    जैमिनी ज्योतिष में स्थिर दशा की गणना करने के लिए सर्वप्रथम ब्रह्मा का निर्धारण करना होता है. इसके लिए कुण्डली के अनुसार यह तय करना होगा कि लग्न तथा सप्तम भाव में सबसे अधिक बलशाली कौन-सा ग्रह है. लग्न तथा सप्तम भाव का बल जानने के लिए राशि बल की गणना की जाती है. राशि बल की गणना के आधार पर दोनों भावों में से जिस भाव की राशि अधिक बली होगी, तब उस भाव से छठे, आठवें तथा बारहवें भाव के स्वामियों को देखा जाएगा. इन तीनों भावों की राशी स्वामी में से जो ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होगा उस ग्रह को ब्रह्मा की उपाधि प्राप्त होगी. 

    ब्रह्मा बनने वाले ग्रहों में शनि को ब्रह्मा नहीं बनाया जाता है. यदि छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में शनि की राशि पड़ती है तब शनि को ब्रह्मा नहीं बनाया जाएगा. 

    रुद्र का निर्धारण | Determination of Rudra

    स्थिर दशा में रुद्र की गणना करने के लिए लग्न से दूसरे तथा अष्टम भाव के स्वामियों के बल का आंकलन किया जाता है. दोनों में जो बली है वह कुण्डली के रुद्र कहलाते हैं. रुद्र बनने के लिए शनि को भी लिया जाता है. 

    महेश्वर का निर्धारण | Determination of Maheshwar

    स्थिर दशा में महेश्वर का निर्धारण करने के लिए आत्मकारक से अष्टमेश का आंकलन किया जाता है. महेश्वर का आंकलन करने के लिए किसी भी प्रकार की गणितीय गणना की आवश्यकता नहीं होती है. इसमें कोई भी ग्रह महेश्वर बन सकता है. कुण्डली में आत्मकारक से अष्टम भाव में जो राशि आती है उस राशि का अधिपति ग्रह महेश्वर बनता है. 

    फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    मनुष्य गण मिलान-अष्टकूट मिलान

    हिन्दू धर्म में विवाह करने से पूर्व वर-वधू दोनों की कुण्डलियों का मिलान किया जाता है. कुण्डलियों के इस मिलन को अष्टकूट मिलान के नाम से जाना जाता है. कुण्डली मिलान का प्रचलन उत्तरी भारत और दक्षिण भारत दोनों में ही मुख्य रुप से देखा जा सकता है. गुण मिलान का महत्व विवाह मिलान के लिए अत्यंत आवश्यक होता है.

    गण मिलान क्यों किया जाता है

    गण मिलान करने पर वर-वधू का वैवाहिक जीवन सुखी और सामान्य भलाई के कार्यो में व्यतीत होने की संभावनाएं देता है. विवाह पश्चात इस प्रकार की कोई परेशानी न हों, इसीलिए गण मिलान किया जाता है. ज्योतिष शास्त्रों में यह मान्यता है, कि जिन वर-वधू का विवाह गण मिलान करने के बाद किया जाता है, उनके वैवाहिक जीवन में परस्पर कम विरोधाभास रहते है.

    गण मिलान से व्यक्ति स्वभाव और व्यवहार को समझने में सहायता मिलती हैं. जब सोच में एक जैसी अनुभूति दिखाई देगी तो व्यक्त एक दूसरे के प्रति सहयोगात्मक नजरिया रख सकता है. एक दूसरे के साथ मिलकर जीवन में आने वाले विभिन्न पड़ावों को मिल कर पार करने में भी सक्षम होता है.

    मनुष्य गण नक्षत्र

    जिन व्यक्तियों का जन्म पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वा आषाढा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा फाल्गुणी, उत्तरा आषाढा, उतरा भाद्रपद, आर्द्रा, रोहिणी और भरणी इन नक्षत्रों को मनुष्य गण कहते है. मनुष्य गण में जन्मा जातक सामान्य और साधारण जीवन जीने की इच्छा रखता है. वह स्वभाव से कोमल होता है तो कठोर भी हो सकता है. अपनी हद से बहुत आगे जा सकता है या फिर देव तुल्य काम करके पूजनीय बन सकता है.

    मनुष्य गण फल

    मनुष्य गण नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वाभिमानी, धनी, विशाल नेत्रों वाला, गौरे रंग वाला, लोगों से सहानुभूति रखने वाला होता है. मनुष्य गण का जातक परिश्रम करने वाला होता है. सुख संपन्न जीवन जीने के लिए परिश्रमी होता है. वह बुद्धि और मेहनत दोनों के द्वारा ही अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रयासशील होता है.

    मनुष्य गण इस प्रकार है की जातक में राक्षस और देव दोनों ही गुण मौजूद होते हैं. अपने अच्छे कार्यों से लोगों के मन में उच्च स्थान पा सकता है, वहीं दूसरी ओर अपने बुरे कार्य करने पर वह राक्षस से भी नीचे जा सकता है.

    गण कूट मिलान कैसे करें

    मनुष्य गण वर-वधू का विवाह देवगण या मनुष्य गण वर-वधू से किया जा सकता है, परन्तु राक्षस गण वर-वधू से करना अनुकुल नहीं माना जाता है. जब गण मिल जाते है, तो गुण मिलान में 6 अंक दे दिये जाते है. प्राय: जब गण नहीं मिल पाते है, तो इस दोष का परिहार निकाला जाता है. इसके बाद यह दोष समाप्त हो जाता है.

    मिलान कैसे करें

    शुभ गण मिलान

    वर और वधु दोनों अगर समान गण वाले हों तो यह स्थिति अच्छी मानी जाती है. समान गण होने पर पूरे अंक मिलते हैं.

    अशुभ गण मिलान

    लड़का व लड़की दोनों देव-राक्षस और राक्षस-देव गण के हों तो यह गण मिलान अच्छा नहीं माना जाता है. इस मिलान में सिर्फ 1 अंक दिया जाता है. इसके अतिरिक्त मनुष्‍य के साथ राक्षस अथवा या राक्षस के साथ मनुष्‍य गण मिलान बहुत खराब माना जाता है. इसमें 0 अंक मिलते हैं.

    सामान्‍य गण मिलान

    देव गण और मनुष्‍य गण का मिलान होना अच्छा रहता है. यह एक सामान्य स्तर का मिलान रहता है.

    गण दोष फल

    गण दोष होने पर दोनों विवाह सुख बाधित होता है. वैचारिक मतभेद उभर सकते हैं. अलगाव और रिश्ते में तलाक की स्थिति भी प्रभावित कर सकते हैं.

    Posted in astrology yogas, jyotish, nakshatra, vedic astrology | Tagged , , , , , , , | Leave a comment

    त्रयोदशी तिथि

    त्रयोदशी तिथि – हिन्दू कैलेण्डर तिथि

    त्रयोदशी तिथि हिन्दु माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों समय पर आती है. अन्य तिथियों की भांति ही इस तिथि का भी अपना एक अलग महत्व रहा है. इस तिथि का मुहूर्त पंचाग और पर्व इत्यादि सभी में एक स्थान निश्चित किया गया है. इस तिथि में क्या करना है या क्या नहीं करना ये सभी बातें ज्योतिष शास्त्र में बताई गई हैं.

    त्रयोदशी तिथि के देव कामदेव बताए गए हैं. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को कामदेव की पूजा करना कल्याणकारी रहता है. जीवन में दांपत्य संबंधों की उत्तम आधारशिला रखना एवं प्रेम संबंधों में सफलता पाना इन सभी बातों के लिए कामदेव का पूजन बहुत ही शुभदायक होता है.

    त्रयोदशी तिथि कैसे बनती है

    सूर्य से जब चन्द्र 145 अंश्से 156 अंश के मध्य होता है. उस समय शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि रहती है. इसके अलावा जब सूर्य से चन्द्र 313 से 336 के मध्य होता है. उस समय कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी होती है.

    त्रयोदशी तिथि वार योग

    त्रयोदशी तिथि जब बुधवार के दिन हो, तो मृत्यु योग बनता है. मृत्यु योग अपने नाम के अनुसार फल देता है. तथअ जब मंगलवार के दिन त्रयोदशी तिथि आती है, तो सिद्धिदा योग बनता है. शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को समस्त कार्यो के लिए शुभ माना जाता है. इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी में शुभ कार्य करने वर्जित होते है.

    त्रयोदशी तिथि में जन्मा जातक

    त्रयोदशी तिथि में जन्म लेन वाला व्यक्ति महासिद्ध होता है. वह कई विद्याओं का ज्ञाता होता है. उसे अधिक से अधिक विद्या अर्जन में रुचि होती है. उसे धार्मिक शास्त्रों में निपुणता प्राप्त होती है. इसके साथ ही वह इन्द्रियों को जीतने वाला होता है. इसके अतिरिक्त उसे परोपकार के कार्य करने विशेष रुप से पसन्द होते है.

    जातक में सहनशिलता का भाव कुछ कम होता है. व्यक्ति अपने आत्मविश्वास के बल पर आगे बढ़ने की कोशिश तो करता है, लेकिन उसमें सफल नहीं हो पाता है. वाद विवाद करने में तेज होता है और अपने तर्कों के आगे दूसरों को टिकने भी नहीं देता है. जातक जीवन में संघर्ष अधिक झेलता है. प्रयास से ही सफलता को पा सकता है.

    त्रयोदशी तिथि में किए जाने वाले काम

    मुहूर्त एवं पंचांग में तिथि के अनुरुप काम करने का विचार बताया गया है. कार्य में सफलता के लिए एक शुभ तिथि का होना भी बहुत अनुकूल है. जिस कार्य की जैसी प्रकृति है उसी के अनुरुप तिथि होने से काम में सफलता का प्रतिशत भी बढ़ जाता है. ऎसे में त्रयोदशी तिथि के लिए भी कुछ कार्यों को रखा गया है. (Game3rb)

    इस तिथि के दौरान कठिन और उग्र कार्य किए जा सकते हैं. संग्राम से जुड़े कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुड़े काम इस दिन किए जा सकते हैं। इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नए कपड़ों, नए गहनों को नही खरीदना चाहिए.

    त्रयोदशी तिथि पर्व

    त्रयोदशी तिथि में भी कुछ महत्व पूर्ण पर्व और व्रतों का आयोजन होता है इस तिथि को भगवान शिव को प्रिय कहा गय है और इसी लिए जिस जातक का जन्म इस तिथि में हो उसे भगवान शिव का विशेष रुप से पूजन करना चाहिए. त्रयोदशी तिथि में प्रदोष व्रत की बहुत महिमा बताई गई है.

    प्रदोष व्रत –

    प्रदोष व्रत पुत्र की कामना, ऋण से मुक्ति के लिए, सुख-सौभाग्य,आरोग्य आदि के लिए किया जाता है. इस व्रत के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात इस व्रत का संकल्प करें और सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात भगवान शिव का विधि-विधान से पूजा एवं साधना करें.

    अनंग त्रयोदशी –

    अनंग त्रयोदशी के दिन कामदेव और रति की पूजा करने का विधान है. कामदेव का एक अन्य नाम अनंग है जिसका अर्थ बिना अंग वाले. इस दिन दांपत्य जीवन की सुख प्राप्ति के लिए कामदेव और देवी रति की पूजा की जाती है. साथ ही भगवान शिव का पूजन भी होता है.

    Posted in fast and festival, hindu calendar, jyotish, muhurat, panchang, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

    चन्द्र प्रज्ञाप्ति – ज्योतिष इतिहास | Chandra Pragyapati | Jyotishkarandka | Jyotishkarandka | Jyotisha History

    चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य और चन्द्र दोनों का वर्णन किया गया है. चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ विशेष रुप से “छाया साधना” पर आधारित है. इस ग्रन्थ में 25 प्रकार की छाया बताई गई है. इन छायाओं का विश्लेषण कर व्यक्ति के भविष्य का ज्योतिष किया जाता है. इन 25 छायाओं में से प्रमुख कीलक छाया और शंकू छाया है. इस शास्त्र का आधार चन्द्र की कलाओं या छायाओं के आधार पर फलित करना है.  

    यह ग्रन्थ भी अपने मौलिक रुप में आज उपलब्ध नहीं है. सूर्या प्रज्ञाप्ति और चन्द्र प्रज्ञाप्ति दोनों लगभग एक समान ग्रन्थ है. यह सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ का सुधरा हुआ रुप है.  इस ग्रन्थ में सूर्य की प्रतिदिन की गति को वर्गीकृ्त किया गया है. तथा उत्तरायण और दक्षिणायण की गणना करने के बाद सूर्य और चन्द्र की गति निश्चित किया गया है. यह शास्त्र यह भी बताता है, कि चन्द्र व सूर्य दोनों का ताप क्षेत्र किस प्रकार निर्धारित किया जाता है. चन्द्र की सोलह कलाओं के आकार के आधार पर सोलह विथियों का वर्णन किया गया है. इस शास्त्र में कृ्ष्ण पक्ष में श्रावण माह की प्रतिपदा तिथि से वर्ष का प्रारम्भ माना गया है. 

    चन्द्र प्रज्ञाप्ति छाया साधन ग्रन्थ | Chandra Pragyapati Chhaya Shastra 

    चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ विशेष रुप से छाया साधन ग्रन्थ् के रुप में जाना जाता है. जब छाया अर्धपुरुष रुप में बन रही हो तो, दिन का कितना समय व्यतीत हो चुका है, और कितना समय बचा हुआ है. दोपहर के समय छाया का आकार कितना होगा, और दिन के चौथाई समय पर छाया किस आकार -प्रकार की होती है.

    चन्द्र प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ विवरण | Chandra Pragyapati Texts Details

    इस ग्रन्थ में गोल, त्रिकोण, लम्बी, चौकोर वस्तुओं की छाया पर से दिनमान जानना चाहिए. इस ग्रन्थ के कुछ् भागों में नक्षत्रों की गति, और चन्द्र के साथ नक्षत्रों के बनने वाले योगों का वर्णन किया गया है. इन योगों में श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्चिनी, कृ्तिका, मृ्गशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुणी,  हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा पन्द्रह नक्षत्रों को शामिल किया गया है. 

    इस ग्रन्थ के अध्याय में चन्द्र स्वप्रकाशवान बताया गया है. और साथ ही इसके घटने बढने का कारण भी दिया गया है. व राहू केतु के अन्य नाम भी

    दिए गये है. 

    ज्योतिष्करण्डक शास्त्र 

    ज्योतिष का यह ग्रन्थ प्राचीन और मौलिक ग्रन्थ है. वर्तमान में उपलब्ध यह ग्रन्थ अधूरी अवस्था में है. इस ग्रन्थ में भी नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है. इस ग्रन्थ में अस्स नाम अश्चिनी और साई नाम स्वाति नक्षत्र ने विषुवत वृ्त के लग्न नक्षत्र माने गये है. इस ग्रन्थ में राशि की अवस्थाओं के अनुसार नक्षत्रों का लग्न माना जाता है. इस ज्योतिष ग्रन्थ में व्यक्ति के जन्म नक्षत्र को लग्न मानकर फलित करने के नियम का प्रतिपादन किया गया है.  

    ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ विवरण | Jyotishkarandka  Texts Details 

    यह ग्रन्थ प्राकृ्ति भाषा में लिखा गया है, जैन न्याय, ज्योतिष और दर्शन का ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ में माना जाता है, कुल 167 गाथाएं दी गई है. इस ग्रन्थ का उल्लेख कल्प, सूत्र, निरुक्त और व्याकरण नामक ग्रन्थों में मिलता है. सोलह संस्कारों में प्रयोग होने वाले मूहुर्तों का भी यहां वर्णन किया गया है.  

    ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ में कृ्तिका नक्षत्र, घनिष्ठा, भरणी, श्रवण, अभिजीत आदि नक्षत्रों में गणना का विश्लेषण किया गया है. यह ग्रन्थ विवाह संबन्धी नक्षत्रों में उत्तराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, उत्तराषाढा, श्रवण, घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्चिनी आदि नक्षत्र विवाह के नक्षत्र बताये गये है.  

    यह ग्रन्थ ई. पू़ 300 से 400 का है.  इस समय के अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में राशियों की विशेषताओं का विस्तृ्त रुप में वर्णन किया गया है. इन ग्रन्थों में दिन-रात्रि,शुक्ल-कृ्ष्ण पक्ष, उत्तरायण, दक्षिणायन का कई स्थानों पर वर्णन किया ग्या है. संवत्सर, अयन, चैत्रादि, मास, दिवस, मुहूर्त, पुष्य, श्रवण, विशाखा आदि नक्षत्रों की व्याखा की गई है. 


    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment