आर्यभट्ट का ज्योतिष के इतिहास में योगदान

ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों के नाम उनके सिद्धान्तों की रुपरेखा सहित, इन्होने अपने शास्त्र में बताए. आर्यभट्ट गणित, खगोल विज्ञान, ज्योतिष जैसे विषयों में प्रतिभासंपन्न व्यक्ति थे.

आर्यभट का काल समय 473 से 550 के मध्य का बताया जाता है. इन्होंने जिन ग्रंथों की रचना की उनसे इनके जन्म विषय के बारे में पता चल पाता है. इन्होंने गणित और ज्योतिष के अनेक सिद्धांतों को लोगों के सामने रखा. आर्यभट्टीय ग्रंथ में ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया. इस ग्रंथ से इनके विषय में भी जानकारी मिलती है की इनका जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है. कुछ अन्य विचारों के अनुसार इनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था.

आर्यभट्टी शास्त्र विशेषता

इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में संख्याओं के स्थान पर क, ख, ग, का प्रयोग किया गया है. कुछ शास्त्रियों का यह मानना है, कि उनके द्वारा लिखे गए ये हिन्दी वर्ण ग्रीक के शास्त्रियों से लिए गये थे. इसके साथ ही आर्यभट्ट गणित शास्त्री भी रहे, इन्होने वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल आदि निकालना और इनके प्रयोग का सुन्दर वर्णन किया है. आर्यभट्टीयम ग्रंथ में लगभग 121 श्लोक हैं. इसे चार भागों में बांटा गया है जिन्हें – गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलापाद नामक चार भागों में बांटा गया है.

गीतिकापाद –

इस भाग में युग का विभाजन, ग्रहों की गति का समय, राशि और उसके भेद बताए गए हैं. इस भाग को भी दो भाग में बांटा गया है जिसमें से एक भाग दशगितिका और दूसरे को आर्य अष्ट शत नाम दिया गया है.

गणितपाद –

इस भाग के अन्तर्गत वर्गमूल, घनमूल, त्रिकोण इत्यादि, क्षेत्रफल, त्रैराशिक व्यवहार, कुक्कुट इत्यादि समीकरण दिए गए हैं. इस में वृत्त के व्यास और उसकी परिधि वर्णन किया गया है.

कालक्रियापाद –

इसमें सभी माह के विषय में बताया गया है, अधिक मास, तिथियों की स्थिति जिनमें क्षयतिथि अधिक तिथि. ग्रहों की गति, सप्ताह के प्रत्येक वार का महत्व इत्यादि बताया गया है.

गोलपाद –

यह मुख्य रुप से खगोल विज्ञान. सूर्य, चंद्र, राहु-केतु इत्यादि ग्रहों की स्थित, पृथ्वी की आकृति, सूर्य उदय का देशों के अनुरुप उदय ओर अस्त, राशियों का उदय होना ओर अस्त होना इत्यादि, ग्रहण कए विषय में चर्चा मुख्य विषय रहे हैं.

आर्यभट्ट द्वारा रचित ग्रंथ

इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र का नाम आर्यभट्टीय नाम से है. इसके अतिरिक्त इन्होने बीज गणित, त्रिकोणमिति और खगोल से संबंधित अनेक सूत्रों की व्याख्या करी थी. इसमें सूर्य, और तारों के स्थिर होने तथा पृथ्वी की गति के कारण दिन-रात का जन्म होने के विषय में कहा गया है. इनके शास्त्र में पृथ्वी की कुल धूरी 4967 बताई गई है. इसके अतिरिक्त इन्होने सूर्य और चन्द्र ग्रहणों की वैज्ञानिक कारणों की व्याख्या भी आर्यभट्टीय शास्त्र में की गई है. उनके अनुसार सूर्य के प्रकाश से ही अन्य ग्रह उपग्रह प्रकाशित होते हैं. आर्यभट्ट ने छाया (परछाई) को नापने के सूत्र भी बताए. ब्रह्म सिद्धांत इनके द्वारा दिया गया अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है.

आर्यभट्टी शास्त्र व्याख्या

इस ग्रन्थ में कुल 60 अध्याय है. तथा इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में कुल 9 हजार श्लोक है. इतने बडे ग्रन्थ में इन्होने रहन-सहन, चर्चा, चाल और व्यक्ति की सहज स्वभाव के आधार पर ज्योतिष करने के नियम बताये है. शरीर के अंगों के आधार पर फलादेश किया गया है.

शारीरिक अंगों के आधार पर प्रश्न कर्ता के प्रश्नों का समाधान बताने में आर्यभट्ट कुशल थे. अपनी समस्या को लेकर आये प्रश्नकर्ता की समस्या का समाधान उसके द्वारा छूए गये अंग के आधार पर किया जाता है. वर्तमान में प्रयोग होने वाला शकुन शास्त्र इसी से प्रभावित है.

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छ: ग्रहों की युति का प्रभाव | Effect of Conjunction of six planets | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn

जन्म के समय जातक कई प्रकार के अच्छे योग तथा कई बुरे योग लेकर उत्पन्न होता है. उन योगों तथा दशा के आधार पर ही जातक को अच्छे अथवा बुरे फल प्राप्त होते हैं. योगों में शामिल ग्रह की दशा या अन्तर्दशा आने पर ही इन योगों का फल जातक को मिलता है. कुण्डलियों में सारे ग्रह कभी अलग-अलग भावों में स्थित होते हैं तो कभी ग्रह द्विग्रही योग बनाते हैं तो किन्हीं जातकों की कुण्डली में चार ग्रह एक ही भाव में स्थित होते हैं तो कभी पाँच और छ: ग्रहों की एक साथ युति दिखाई देती है. सात तथ अष्टग्रही योग भी यदा-कदा बन ही जाते हैं. 

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पाँच, छ:, सात या आठ ग्रहों की युति होती है उन व्यक्तियों के जीवन में उतार-चढा़व अधिक देखे गए हैं. उनके जीवन में अदभुत घटनाएँ देखने को मिलती है. ऎसे जातकों के भीतर अदभुत प्रतिभा का समावेश रहता है. एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि ग्रहों के इस योग में राहु/केतु को शामिल नहीं किया जाता है. 

छ: ग्रहों की युति कई वर्षों के अंतराल के बाद होती है. छ: ग्रहों की युति का प्रभाव ग्रहों के स्वभाव पर निर्भर करता है. ग्रह व्यक्ति विशेष की कुण्डली के लिए शुभ हैं या अशुभ हैं इसके अनुसार ही फल जातक को मिलते हैं. 

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु तथा शुक्र की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter and Venus 

व्यक्ति विशेष की कुण्डली में इन छ: ग्रहों की युति होने से जातक बुद्धिमान होता है. उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाला होता है. अपने कर्त्तव्यों का पालन करता है. धर्म में आस्था रखने वाला होता है. भाग्यशाली होता है. दूसरों के लिए परोपकार करता है. जीवन में अनेकों संघर्ष के पश्चात ही व्यक्ति धनार्जित करने में कामयाब होता है. व्यक्ति को वैवाहिक सुख तथा संतान सुख अच्छा मिलता है. जातक को प्राकृतिक स्थलों पर जाना रुचिकर लगता है. धार्मिक स्थानों पर जाने में वह आस्था रखता है. 

सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु तथा शनि की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter and Saturn

व्यक्ति विशेष की कुण्डली में उपरोक्त छ: ग्रहों का योग होने पर वह परोपकारी होता है. व्यक्ति को दूसरों की भलाई करने में ही सुख तथा संतोष की प्राप्ति होती है. व्यक्ति स्वाध्याय में लगा रहता है. प्रभु में आस्था रखता है. ईश्वर की भक्ति में विश्वास रखता है. इस योग के जातक उदार हृदय होते हैं. इन व्यक्तियों को नए – नए लोगों से मित्रता करना अच्छा लगता है. यह माता-पिता की सेवा में लगे रहते हैं. अपने बन्धु-बांधवों की सहायता को हर समय तत्पर रहते हैं. इस योग के व्यक्तियों को देश-विदेश की यात्रा करने के सुअवसर प्राप्त होते हैं.

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शुक्र तथा शनि | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Venus and Saturn

इस योग में ज्न्मा जातक सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है. ऎसे जातक को संगीत तथा गायन में रुचि होती है. अभिनय तथा कला के अन्य क्षेत्रों में जातक की अभिरुचि रहती है. जातक व्यवहार कुशल होता है. उसका स्वभाव मिलनसार होता है. सभी से हँसकर बात करना उसके व्यवहार में शामिल होता है. जातक को अपने क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल होती है. वाद-विवाद में विजयी होता है. अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है. (Frogbones) व्यक्ति को जीवन में सांसारिक तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. इस योग के जातकों में एक कमी यह होती है कि वह सरलता से किसी अन्य पर विश्वास नहीं करते हैं. 

सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु, शुक्र तथा शनि की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Jupiter, Venus and Saturn

इन सभी ग्रहों की युति किसी एक भाव में होने से जातक बुद्धिमान होता है लेकिन उसे घूमना बहुत अच्छा लगता है. एक स्थान पर टिककर बैठना जातक को पसन्द नहीं होता है. वह भ्रमणशील होता है. जातक में साहस, पराक्रम तथा पुरुषार्थ की कमी नहीं होती. जातक अपनी धुन तथा स्वार्थ का पक्का होता है. यह जातक किसी एक विषय पर गहनता से सोच-विचार किए बिना ही शीघ्रता से निर्णय ले लेते हैं. इस कारण आवेश, जल्दबाजी अथवा क्रोध में लिए निर्णयों से इन्हें हानि उठानी पड़ती है. इस योग के व्यक्तियों को 45 वर्ष की उम्र के बाद गुप्त रोग होने की संभावनाएँ बनती है. 

सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn

इस योग में जन्म लेने वाले जातक की भ्रमणशील प्रवृति होती है. जातक का मन-मस्तिष्क अस्थिर रहता है. मन में चंचलता का वास अधिक होता है, बुद्धि अस्थिर होने से किसी एक विषय पर अपनी राय कायम नहीं कर पाते हैं. इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्ति में कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. इनके व्यवसाय में भी रुकावटें आती रहती हैं. इन्हें पारीवारिक तथा दाम्पत्य सुख में कमी मिलती है. इस योग के जातकों का भाग्योदय स्वदेश की बजाय या विदेश या अपने जन्म स्थान से दूर जाकर होता है. इन्हें 40 वर्ष की उम्र के बाद ही कार्यक्षेत्र में उन्नति मिलती है और इनकी प्रतिष्ठा स्थापित होती है. 

सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter,Venus and Saturn

इस योग के व्यक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं. विद्वान तथा बुद्धि कुशल होते हैं. देश-विदेशों की यात्रा करना इन्हें अच्छा लगता है. अधिकतर समय यह यात्राओं पर रहते हैं. यह तीर्थ स्थानों पर भी बहुत जाते हैं. यह उच्च तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों से अधिक सम्पर्क रखते हैं. यह धार्मिक विषयों में अधिक रुचि रखते हैं. परोपकारी स्वभाव होता है. यह भौतिक सुखों से सम्पन्न होते हैं. इन्हें गूढ़ विषयों तथा ज्योतिष में भी रुचि होती है. 

इस योग में मंगल तथा बुध की युति है. इन ग्रहों की युति होने से व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है. जातक चिकित्सा पद्दति में अपना नाम कमाता है. इसके अतिरिक्त इस योग के जातक हस्तशिल्प तथा तकनीकी क्षेत्रों में भी रुचि रखते हैं. 

चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि की युति | Conjuction of Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn

इन ग्रहों का योग होने से जातक ज्ञानी तथा विद्वान होता है. ईश्वर की भक्ति में आस्था रखता है. धर्म को मानने वाला होता है. अपनी बुद्धि तथा योग्यता के मिश्रण से धन तथा सम्पदा एकत्रित करने में कामयाब होता है. सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से सुसम्पन्न होता है. वाहनादि का सुख मिलता है. सरकार या सरकारी महकमों से लाभ मिलता है. सुंदर जीवनसाथी होता है. संतान सुख पाता है. ज्योतिष, धर्म, योग तथा अन्य गूढ़ विषयों में जातक रुचि रखता है. 

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द्वादशी तिथि

द्वादशी तिथि अर्थात बारहवीं तिथि. इस तिथि के दौरान सूर्य से चन्द्र का अन्तर 133° से 144° तक होता है, तो यह शुक्ल पक्ष की द्वादशी होती है और 313° से 324° की समाप्ति तक कृष्ण द्वादशी तिथि होती है. इस तिथि के स्वामी श्री विष्णु हैं. इस तिथि के दिन भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी भी माना जाता है.

द्वादशी की दिशा नैऋत्य मानी गई है अत: इस दिशा की ओर किए गए कार्य शुभ फलदेने वाले बताए गए हैं.

द्वादशी तिथि वार योग

द्वादशी तिथि अगर रविवार के दिन हो, तो क्रकच तथा दग्ध योग बनते है. ये दोनों ही योग अशुभ योगों में आते है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को श्री विष्णु जी का पाठ करना चाहिए. सामान्यत: यह तिथि मध्यम स्तरीय शुभ है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन करना शुभ होता है.

द्वादशी तिथि में जन्मा जातक

द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति चंचल बुद्धि का होता है. उसके विचारों में अस्थिरता रहती है. इस योग के व्यक्ति की शारीरिक रचना कठोर होती है. वह व्यक्ति विदेश भ्रमण करने वाला होता है, तथा ऎसे व्यक्ति को निर्णय लेने में दुविधा का सामना करना पडता है. इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव में भावुकता का भाव पाया जाता है.

जातक मेहनती और परिश्रम करने वाला भी होता है. अपने भाग्य का निर्माता बनता है. संतान का सुख और प्रेम पाने वाला होता है. जातक को समाज और वरिष्ठ लोगों की ओर से प्रेम की प्राप्ति भी होती है. अपने कार्यों द्वारा वह लोगों के मध्य सम्मानित स्थान पाता है. जातक खाने पीने का शौकिन होता है. सुंदर और ऎश्वर्यशील होता है.

द्वादशी तिथि में किए जाने वाले काम

द्वादशी इस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए.

द्वादशी तिथि महत्व

चन्द्र मास के अनुसार द्वादशी तिथि भद्रा तिथियों में से एक है. इस तिथि में विष्टि करण होने के कारण इसे भद्रा तिथि भी कहा जाता है. इस तिथि के स्वामी श्री विष्णु जी है. इस तिथि का विशेष नाम यशोबला है.

इस तिथि के विषय में यह मान्यता है, कि इस तिथि मे चन्द्र की कला से जो अमृत निकलता है, उसका पान पितृगण करते है.

द्वादशी तिथि पर्व

तिल द्वादशी व्रत पूजा –

माघ माह की द्वादशी तिल द्वादशी के रुप में मनायी जाती है. इस दिन तिल से श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए पूजन संपन्न होता है. प्रात:काल सूर्य देव को तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए. इस दिन ब्राह्मण को तिलों का दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि का बहुत ही महत्व है.

वत्स द्वादशी –

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी, वत्स द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. वत्स द्वादशी का व्रत एवं पूजन संतान प्राप्ति एवं संतान के सुखी जीवन की कामना हेतु किया जाता है. इस द्वादशी के दिन गाय व बछडे का पूजन किया जाता है.

वामन द्वादशी-

भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी वामन द्वादशी के रुप में मनायी जाती है. इस तिथि में भगवान श्री विष्णु ने वामन का अवतार लिया था. वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार है. वामन अवतार कथा अनुसार भगवान विष्णु ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि से भिक्षा मांगते हैं और देव राक्षसों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं. इस दिन प्रात:काल भक्त श्री हरि का स्मरण करते हुए नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करते हैं और वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है.

अखण्ड द्वादशी-

मार्गशीष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के नाम से जानी जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है. अखण्ड द्वादशी समस्त पापों का नाश करती है और सौभाग्य प्रदान करती है. इस द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति और सुखमय जीवन की कामाना के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा करनी शुभदायक होती है.

गोवत्स द्वादशी –

गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनायी जाती है. इस दिन गाय व बछड़े की सेवा की जाती है. इस दिन व्यक्ति को शुद्ध मन से आचरण करते हुए भगवान श्री विष्णु व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत के फल स्वरुप व्यक्ति को सुखों की प्राप्ती होती है.

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बालव करण फल- करण विचार | Balava Karana | Balava Karana Meaning in Hindi | Balava Karana Calculator

ज्योतिष शास्त्र में एक तिथि को जब दो भागों में बांटा जाता है, तो दो करण बनते है. इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, कि दो करण मिलाकर एक तिथि बनती है. एक करण तिथि के पहले आधे भाग से तथा दूसरा करण तिथि के दूसरे उत्तरार्ध से बनता है. एक चन्द्र पक्ष में 14 तिथियां होती है. तथा दूसरे चन्द्र पक्ष में भी 14 तिथियां होती है. इसके अलावा पूर्णिमा और अमावस्या भी होती है. सभी मिलकर एक चन्द्र मास बनाती है. 

तिथि का आधा भाग करण कहलाता है, और तिथियां 30 होती है. करण 60 ही है. परन्तु ये 11 ही है. शेष तिथियों में ये करण ही पुनरावृ्त होते रहते है. 

11 करणों के नाम निम्न है. इसमें पहले सात करण 8 बार आते है, तथा अंत के चार करण स्थिर प्रकृ्ति के है.  इन चार नक्षत्रों को ध्रुव नक्षत्र कहा जाता है. 

11 करण नाम  | 11 Karana

सभी करणों के नाम इस प्रकार है. बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किस्तुघ्न. 

बालव करण गणना कैसे करे़ | How to Calculate Balava Karana

करण निकालने के लिए चन्द्र और सूर्य के अंशों का अन्तर निकालने के बाद प्राप्त संख्या को 6 से भाग करने शेष बचने वाली संख्या करण कहलाती है. 

बालव करण-चरसंज्ञक करण | Balava Karana – Movable Karana

बालव करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और् विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण ध्रुव करण कहलाते है.  

बालव करण- स्वामी | Balava Karana – Lord

बालव करण का स्वामी ब्रह्मा जी है. जिस व्यक्ति का जन्म बालव करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को स्वास्थय संबन्धी किसी प्रकार की कोई परेशानी रहती हो, ऎसे व्यक्ति का ब्रह्मा जी का पूजन करने से स्वास्थय सम्बन्धित रोगों में कमी होती है.  

बालव करण फल | Balava Karana Result

जिस व्यक्ति का जन्म बालव करण समय काल में होता है, वह व्यक्ति धार्मिक आस्था वाला होता है, उसकी रुचि तीर्थ स्थलों का भ्रमण करने में विशेष रुप से होती है. साथ ही वह धर्म-कर्म क्रियाओं में भी बढ-चढ कर भाग लेता है. धार्मिक स्थलों का निर्माण कराने का गुण ऎसे व्यक्ति में पाया जाता है. 

बालव करण-धार्मिक प्रवृ्ति | Balava Karana – Religious nature

धर्म गुरुओं के सम्पर्क में रहना बालव करण में जन्में व्यक्ति को अच्छा लगता है. तथा इससे उस व्यक्ति की धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नति होती है. भाग्य वृ्द्धि ओर समाज में यश सम्मान प्राप्त करने का गुण ऎसा व्यक्ति रखता है. 

बालव करण-विद्या प्रवीण | Balava Karana – Master of knowledge

बालव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्या में कुशल है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति ज्ञानी और अनेक विषयों का ज्ञाता होता  है. शिक्षा क्षेत्र में कार्य कर वह धन और यश दोनों प्राप्त कर सकता है.  इस योग का व्यक्ति अपनी विद्वता से अपने कुल का नाम रोशन करता है. 

बालव करण- भद्रा कथा | Balava Karana – Bhadra Katha

भद्रा तिथि और बालव करण से संबन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार भद्रा तिथि को शनि देव की बहन कहा गया है. एक बार भ्रदा तिथि जो श्याम रंग, लम्बे केश, बडे दांत और डरावने रुप वाली थी. अपने इस रुप और अपने कार्यों के कारण उसे सभी जगह अपयश का सामना करना पडता था. 

इस अपयश से बचने के लिए भद्रा के पिता सूर्यदेव ने ब्रहा जी से कोई उपाय पूछा. इस पर ब्रह्मा जी ने कहा की जो तुम्हारी स्थिति बालव और बव करण के अन्तिम भाग में होगी. जो व्यक्ति तुम्हारा आदर नहीं करेगा, उसके सभी कार्यों में बाधाएं आयेगी.

इस दिन से भद्रा तिथि बालव या बव करण में निवास करती है. इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.  

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उत्तराभाद्रपद नक्षत्र विशेषताएं | Uttara Bhadrapad Nakshatra Importance | Saturn Nakshatra | How to find Uttara Bhadrapad Nakshatra

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 26वां नक्षत्र है. अगर नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र की भी गणना की जाती है, तो यह 27वां नक्षत्र होता है.  राशिचक्र में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की स्थिति मीन राशि में आती है.  इस नक्षत्र के स्वामी शनि है. उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को सन्तान पक्ष से सुख की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति कुशल वक्ता होते है. तथा ये धार्मिक आस्था से युक्त होते है. जीवन में इन्हें सभी सुख प्राप्त होने की संभावना बनती है.  उत्तरा भाद्रपद के व्यक्तियों को अपने प्रत्यत्नों के साथ साथ अपने निकट संम्पर्कों से भी सहयोग का लाभ मिलता है. अपने कुल में इस योग वाले व्यक्ति  को सबसे अधिक प्रशंसा प्राप्त होती है. 

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को अपने रुप, गुण, विद्या, धन और स्वभाव से उत्सवों में सबको प्रसन्न रखने में सफल होते है. ये व्यक्ति स्वभाव से उदार होते है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों के अधिकतर शत्रु नहीं होते है. पानी से इन्हें भय हो सकता है.  यह नक्षत्र गुरु की मीन राशि में आता है. और इस नक्षत्र के स्वामी शनि है.  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और शनि दोनों में ही शत्रुवत संबन्ध है. इसलिए इस योग के व्यक्ति को मिलने वाले फलों  को जानने के लिए कुण्डली में गुरु और शनि की तात्कालिक संबन्ध देखने पडते है. पंचधा मैत्री में  अगर ये दोनों मित्र सम्बन्धों के साथ हो तो व्यक्ति को शनि की महादशा / अन्तर्दशा में शुभ फल मिलते है. 

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र पहचान | Uttara Bhadrapad Nakshatra Recognition

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र को आकाश गंगा में दो तारों के रुप में पहचाना जा सकता है. यह नक्षत्र एक पलंग या मंच की आकृ्ति बनाता है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार यह नक्षत्र शयन या मृ्त्यु शैय्या का पांव माना जाता है. इन दोनों तारे मीन राशि में स्थित है.  

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र शनि नक्षत्र | Uttara Bhadrapad Nakshatra : Saturn Nakshatra

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र मीन राशि में भी 3 अंश 20 कला से लेकर 16 अंश और 40 कला तक रहता है. सूर्य इस नक्षत्र में मार्च माह के तीसरे सप्ताह में सूर्योदय के समय देखा जा सकता है.तथा अक्तूबर-नवम्बर माह में यह रात में 9 बजे से 11 बजे के मध्य समय में दिखाई देता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि की महादशा में सबसे अधिक शुभ फल मिलते है. इस अवधि में इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपनी पूरी मेहनत और लगन से अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है. 

एक अन्य मत से यह नक्षत्र शुभ पांव वाला है. यह योग व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति के निकट लेकर जाता है.  उस योग से युक्त व्यक्ति शनि की दशा में ज्ञान और वैराग्य की ओर उन्मुख होता है. ज्योतिष शास्त्री उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र को संतुलित नक्षत्र मानते है.  इसी कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव में संतुलन बना रहता है. 

इसी कारण से ये व्यक्ति व्यवहारिक प्रकृ्ति के होते है. कल्पनाओं में रहना इन्हें बिल्कुल नहीं भाता है. साथ ही इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों का चरित्र भी उच्च होता है. अपने जीवन साथी के प्रति ये जीवन भर निष्ठावान बने रहते है. अपनी कही हुई बात पर ये अडिग रहते है, और अपने वचनो को पूरा करने के लिए लग्न से प्रयास करते है. जिन व्यक्तियों का जन्म नक्षत्र उत्तरा भाद्रपद होता है. उन व्यक्तियों को जरुरतमन्द व्यक्तियों की मदद करने में सुख का अनुभव होता है.   

सिद्वान्तों को ये अधिक महत्व नहीं देते है. साहसी होने के कारण ये जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी हौंसला नहीं खोते है. चुनौतियों से भागने के स्थान पर इनका हिम्मत के साथ सामना करना उचित समझते है. धर्म से अधिक कर्म से उन्नति प्राप्त करने में विश्वास करते है. मेहनत और लगन दोनों गुण इनके स्वभाव में पाये जाते है. 

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र रुचि | Uttara Bhadrapad Nakshatra Interest

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को दर्शन शास्त्र और रहस्यमयी विद्याओं में रुचि हो सकती है. अपने विशेष गुणों के कारण इनकी पहचान अपने ग्रुप में विद्वान व्यक्तियों में की जाती है. इन व्यक्तियों को एकान्त में रहना अधिक पसन्द होता है.  इसी कारण इनके मित्रों की संख्या कम ही होती है.  अपने इस स्वभाव के कारण इन्हें दूसरों से मिलने जुलने में असुविधा होती है. अपनी समझ-बूझ से धन संचय करने में सफल होते है. 

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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जानिए गार्नेट रत्न के लाभ

गार्नेट जिसे रक्तमणि और तामडा़ नाम से भी जाना जाता है. एक बहुत ही प्रभावशाली रत्न है. आज के समय में हर व्यक्ति किसी ना किसी बात को लेकर परेशान रहता है. अपनी परेशानियों का हल खोजने के लिए वह कई बार अपने भविष्य की जाँच भी कराता है. जाँच कराने के पश्चात उसे कई प्रकार की सलाह दी जाती है. मंत्र जाप, पूजा-अर्चना आदि के बारे में जानकारी दी जाती है. कई बार व्यक्ति विशेष को रत्न धारण करने की सलाह भी दी जाती है. रत्न कीमती होते हैं. इसलिए रत्नों के स्थान पर उपरत्न भी धारण करने का परामर्श दिया जाता है. इन उपरत्नों की श्रेणी में सूर्य के रत्न माणिक्य के उपरत्न भी शामिल हैं.

गार्नेट पहचान

यह एक सुंदर एवं प्रभावशाली रत्न है. यह कई अन्य रंगों में पाया जाता है. माणिक्य के कई उपरत्न हैं. जिनमें से रक्तमणि एक मुख्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न देखने में गहरा लाल तथा कालिमा लिए हुए होता है. इस रत्न का उपयोग व्यक्ति की नकारात्मक छाया को दूर क्रता है. बुरी नजर से बचाता है. (Tramadol) रोगों से लड़ने की रोगप्रतिरोधक क्षमता बेहतर करता है. इसे धारण करने से शरीर में ऊर्जा का संचरण करता है.

यह रत्न सूर्य ग्रह की शुभता बढ़ाने और पाने के लिए किया जाता है. इस रत्न का उपरत्न के रुप में उपयोग होता है. यदि जातक माणिक्य रत्न को नहीं ले पाता है तो उस स्थिति में वह माणिक्य के उपरत्न गार्नेट का उपयोग कर सकते हैं. उपरत्नों का उपयोग भी मुख्य रत्न के समान ही प्रभावशालि बताया गया है.

गार्नेट के फायदे

गार्नेट का उपयोग करने से व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है, उसमें आत्मविश्वास की वृद्धि होती है. नकारात्मक सोच को दूर करता है. इस उपरत्न का उपयोग व्यक्ति को सूर्य के शुभ फलों कि प्राप्ति कराने वाला होता है. इस रत्न का उपयोग किसी र्भी रुप में करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है. गारनेट रत्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है. यह कीमत में भी सस्ता होता है.

  • गार्नेट पहनने से सौभाग्य में वृद्धि.
  • गार्नेट रत्न का उपयोग स्वास्थ्य में लाभ देने वाला होता है.
  • आंखों की रोशनि को सही रखता है.
  • यह रत्न मान-सम्मान की प्राप्ति कराने वाला होता है.
  • यात्रादि में सफलता दिलाता है.
  • मानसिक चिन्ता दूर होती है.
  • मन में शंका-कुशंका को भी दूर भगाता है.
  • गार्नेट(रक्तमणि) कौन धारण कर सकता है

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य लग्नेश या त्रिकोणेश या दशमेश या चतुर्थेश होकर कमजोर है अथवा नीच राशि में स्थित है वह माणिक्य का उपरत्न रक्तमणि धारण कर सकते हैं. सूर्य कुण्डली में निर्बल है तब रक्तमणि धारण कर सकते हैं. इससे सूर्य को बल प्राप्त होगा.

    गार्नेट कौन धारण नहीं करे

    रक्तमणि को शनि के रत्न नीलम अथवा नीलम के उपरत्न के साथ धारण नहीं करना चाहिए. रक्तमणि को शुक्र के रत्न हीरे अथवा हीरे के उपरत्न के साथ भी धारण नहीं करना चाहिए.

    गारनेट धारण करने की विधि

    गारनेट रत्न को अनामिका अँगुली में ताँबे, सोने इत्यादि में बनवाकर शुक्ल पक्ष के रविवार को प्रात काल धारण करना चाहिए. रत्न को कच्चे दूध और गंगा जल में रख कर पूजा पाठ करके इसे धारण करना चाहिए.

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    12th भाव क्या है. | Vyay Bhava Meaning | Dwadasha House in Horoscope | 12th House in Indian Astrology

    द्वादश भाव मोक्ष स्थान है, इस भाव से व्यक्ति के व्यय देखे जाते है. यह भाव हानियां, व्यय, बायीं आंख, व्यर्थ के अपव्यय, मोक्ष, यौनानन्द, विदेश यात्रायें, गुप्त शत्रु, पाप, अपना स्थान छोडना, बैरियों से भय, मृ्त्यु के उपरान्त की स्थिति, पंजे, नींद में भटकना, विदेश में रहना, साझेदार को परेशानियां, शयन का सुख और शयन से पीडा, मानसिक चिन्तायें, खोई हुई चीज जो पुन: प्राप्त नहीं हो, सकती है. 

    नौकरी का समाप्त होना, अस्पताल में भर्ती होना, ऋणों से मुक्ति, पत्नी को खौना, व्यक्ति की मृ्त्यु, त्याग की क्षमता, विवाद, दुर्भाग्य, उद्वार दिखना, अस्पताल, जेल, यात्रायें, खर्चीलें, व्यवसाय,जब्त होना, कारावास, रुकावटें, बन्धन, अलौकिक विषय, विदेश मेंजीवन, अनाथाश्रम, दैवीय ज्ञान, भक्ति, विदेश में नौकरी, सेवा निवृ्ति. 

    व्यय भाव का कारक ग्रह कौन सा है. | What are the Karaka Planets of 12th Bhava   

    व्यय भाव का कारक शनि है. द्वादश भाव में शनि शोक भाव पृ्कट करते है. मंगल द्वादश भाव से कारगार, शुक्र भौतिक अभिलाषायें, गुरु-ज्ञान, केतु-मोक्ष, राहू-विदेश विदेश यात्राओं का सूचक है.

    द्वादश भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण करता है. | What does the House of Expenditure  Explain.  

     द्वादश भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति की हानियों का विश्लेषण किया जाता है.  

    द्वादश भाव से सूक्ष्म रुप में किस विषय का विचार किया जाता है. | What does the House of Expenditure accurately explains.

    द्वादश भाव व्यक्ति की विदेश यात्राओं का निरीक्षण करने के लिए प्रयोग किया जाता है.   

    द्वादश भाव से कौन से संबन्ध देखे जाते है. | 12th House represents which  relationships 

    द्वादश भाव से व्यक्ति के गुप्त शत्रुओं का विश्लेषण किया जाता है  

    द्वादश भाव शरीर के कौन से अंगों का कारक भाव है. | 12th House is the Karak House of which body parts. 

    द्वादश भाव को पंजें, बायां भाग, जननेन्द्रियों का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. द्रेष्कोणों के अनुसार यह् भाव बायीं आंख, बायां कन्धा, गुदा आदि दर्शाता है.  

    द्वादश भाव में द्वादशेश होने पर व्यक्ति को किस प्रकार के फल प्राप्त होते है. | 12th Lord placsed in 12th House 

    द्वादश भाव में द्वादशेश हो तो व्यक्ति धनवान होता है. उसमें अत्यधिक व्यय करने की प्रवृ्ति पाई जाती है. इस योग के व्यक्ति की शारीरिक क्षमता कमजोर होती है. स्वभाव में चिडचिडापन पाया जाता है. इसके साथ ही वह सुखों का प्रेमी होता है. आयु बढने पर वह कंजूस हो सकता है. उसे धन- सम्पति से अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है.

    व्यक्ति को शयन सुख में आनन्द का अनुभव प्राप्त होता है. इसके साथ ही उसके व्यय धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों पर होते है. इस योग से युक्त व्यक्ति अपनी संतान से अप्रसन्न रहता है. वह अशान्त चित, और घूमने का प्रेमी होता है. उसे पाप युक्त कार्य करने में रुचि हो सकती है. व्यक्ति की आंखों की दृ्ष्टि उत्तम होती है. 

    बारहवें भाव और बारहवें भावेश के साथ किस प्रकार के योग बनते है.  | 12th Lord Privartan Yoga Results  

    जब कुण्डली में लग्नेश बारहवें भाव से, दूसरे भाव में एक अशुभ ग्रह और दशमेश एकादशेश की युति या दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति को लिए गये ऋणों से परेशानी होती है. 

    द्वितीयेश अस्त या अशुभ ग्रहों के साथ युति में या आंठवें भाव में हो, तब भी व्यक्ति को ऋण संबन्धी परेशानी रहती है.  

    एकादशेश और द्वितीयेश दोनों नीच के और अशुभ होकर स्थित हों तब भी व्यक्ति आर्थिक कारणों से ऋण लेता है. 

    लग्नेश की छठे, आंठवें या बारहवें भाव में एक अशुभ ग्रह से युति या त्रिक भाव के स्वामी से दृ्ष्ट, होने पर व्यक्ति को ऋण लेने के बाद परेशानियों का सामना करना पडता है. 

    पंचमेश लग्न में बिना किसी शुभ दृ्ष्टि के प्रभाव में हों तो ऋण लेने के स्थिति का सामना करने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.  

    लग्नेश अस्त और शत्रु या नीच राशि का या छठे, आंठवें या बारहवें भाव में या त्रिक भाव के स्वामी से दृ्ष्ट होने पर व्यक्ति को अपने परिवार के लिए ऋण लेना पडता है.

    जब कुण्डली में दूसरे, पांचवें, नवें और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों, तो व्यक्ति को जीवन में कभी किसी कारण वश कारावास में रहना पड सकता है. 

    जब कुण्डली में नैसर्गिक शुभ ग्रह द्वादशेश हो, तथा बली अवस्था में स्थित हों, तो व्यक्ति को विदेश स्थानों की आय से धन-सम्पति प्राप्त करने में सफलता मिलती है.  

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    पेरीडोट-पेरीडॉट

    रत्नों के खनिज ओलीवीन को पेरीडोट कहा जाता है. इसमें लौह तत्व होने से इस उपरत्न का रंग गहरा हरा होता है. इसके अतिरिक्त यह हरे रंग के साथ सुनहरे पीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. जैतून के जैसे हरे रंग में मिलता है.हरे-पीले अथवा नींबू के रंग जैसा भी होता है. यह एक नरम खनिज है. यह देखने में पारदर्शी उपरत्न है. पेरिडॉट के विषय में प्राचीन समय से लिखा जाता रहा है. प्राचीन समय से इस रत्न की प्राप्ति का स्थान मिस्र बताया जाता रहा है.

    पेरीडोट के स्वास्थ्य लाभ

    यह एक सुंदर उपरत्न है. इस उपरत्न को साधारण चिकित्सा के लिए धारण कर सकते हैं. इस रत्न को हीलिंग उपचार के लिए भी उपयोग में लाया जाता है.

  • इसे धारण करने से बीमारियों से राहत मिलती है.
  • यह उपरत्न व्यक्ति में शारीरिक ऊर्जा को बढा़ता है.
  • इसे धारण करने से व्यक्ति की घबराहट दूर होती है.
  • व्यक्ति की आहत भावनाओं को राहत मिलती है.
  • इसका उपयोग शारीरिक शक्ति को बढ़ाने वाला होता है.
  • यह लीवर तथा अधिवृक्क(Adrenal) को सुचारु रुप से कार्य करने में मदद करता है.
  • इस उपरत्न को पहनने से फेफडो़, साईनस(sinuses), बीमारी तथा चोटों से बचाव करता है.
  • पेरीडोट के अलौकिक गुण

    इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति विशेष का क्रोध शांत होता है. इसे धारण करने से व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी होती हैं. ऎसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति को अपना मनचाहा प्यार चाहिए वह इस उपरत्न को धारण कर लें. इससे व्यक्ति विशेष का प्रेमी उसकी ओर आकर्षित होगा. अच्छे धनागमन के लिए भी गहरे हरे रंग के पेरीडोट को धारण करने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न से नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति से दूर ही रहती हैं. (elcapitalino.mx) इसे पहनने से व्यक्ति को अच्छी नींद आती है.

    पेरीडोट के फायदे

  • पेरीडोट का उपयोग करने से व्यक्ति को ऊजा और उत्साह की प्राप्ति होती है.
  • यह रत्न व्यक्ति को परिवार के सुखमय जीवन का वरदान देने वाला होता है.
  • प्रेम संबंधों में मजबूती लाता है.
  • रिश्तों को मजबूती देता है.
  • मानसिक तनाव को कम करने वाला होता है.
  • कौन धारण करें

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध अच्छे भावों का स्वामी होकर कमजोर अवस्था में स्थित है वह पेरीडोट उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

    कौन धारण नहीं करे

    गुरु, सूर्य, मंगल, राहु तथा केतु ग्रह के रत्न अथवा उपरत्न धारण करने वाले व्यक्तियों को पेरीडोट धारण नहीं करना चाहिए.

    पेरिडॉट के अन्य फायदे

    पेरिडॉट एक चमकदार, पीली आभा वाला हरे रंग का, चिकना रत्न है इस रत्न को पेंडेंट, अंगूठी आदि में जड़वाकर पहनना जा सकता है. इसका उपयोग आभूषण इत्यादि में भी होता है. यह रत्न मानसिक रोग को दूर करने, उन्मांद को शांत करने में बहुत लाभदायक होता है. पेरिडॉट को भस्म रुप में भी उपयोग में लाया जाता है. यह व्यक्ति बौद्धिक शक्ति को बढा़ता है, व्यक्ति की वाक शक्ति को बेहतर बनाने में सहायक होता है.

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    अधि-गुरुमंगल-गुरुचंडाल-लक्ष्मी-गौरी-श्रीकण्ठ योग | Adhi yoga | Guru Mangal Yoga | Guru Chandal Yoga | Lakshmi Yoga | Gauri Yoga | Shri Kanth Yoga

    ज्योतिष में योग शब्द से अभिप्राय ग्रहों के संबन्ध से है, यह सम्बन्ध ग्रहों की युत्ति, दृ्ष्टि संबन्ध्, परिवर्तन तथा अन्य कई कारणों से बन सकता है. जिस प्रकार धर्म में बुद्धि और शरीर का योग, आयुर्वेद में दो या दो से अधिक औषधियों का योग मंगलकारी होता है. ठिक उसी प्रकार ग्रहों का दो 

    अधि योग कैसे बनता है. | How is Formed Adhi Yoga 

    जब बुध, गुरु, शुक्र लग्न या चन्द्रमा से छठे, सातवें और आठवें भाव में एक साथ या अलग – अलग हो, तो अधि योग बनता है.  अधि योग व्यक्ति को धनवान बनाता है, यह शुभ योग है, इस योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृ्ढ होती है. व्यक्ति दीर्घायु ,समृ्द्धिशाली बनता है. उसकी आत्मा श्रेष्ठ होती है, वह साहसिक और ऊर्जावान होता है. 

    परन्तु योग बना रहे ग्रहों का संबन्ध अशुभ भावों के स्वामियों के साथ बन रहा हो, तो व्यक्ति में नेतृ्त्वता, स्वार्थीपन से दूषित होने के योग बनते है.  

    गुरुमंगल योग कैसे बनता है. | How is Formed Guru Mangal Yoga 

    गुरु मंगल योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग तब बनता है, जब मंगल और गुरु की युति हो रही होती है. यह योग होने पर व्यक्ति शहर का मुखिया होता है. यह योग धन योगों में आता है. इस योग वाला व्यक्ति स्वतन्त्र 

    प्रकृ्ति का होता है. उसका शरीर गठा हुआ होता है. व्यक्ति में अत्यधिक व्यय करने की प्रवृ्ति होती है. उसे विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है. 

    गुरुचण्डाल योग कैसे बनता है. | How is Formed Guru Chandal Yoga 

    गुरुचण्डाल योग में राहू की युति गुरु ग्रह के साथ हो रही होती है. इस व्यक्ति की धार्मिक आस्थ में कमी हो सकती है. इस योग से युक्त व्यक्ति सच्चाई और न्याय को ऊपर उठाने वाला, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करता है.

    लक्ष्मी योग कैसे बनता है. | How is Formed Laxmi Yoga 

    लक्ष्मी योग एक शुभ योग है. यह योग धन वृ्द्धि का योग है. जब कुण्डली में नवमेश स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर केन्द्र या त्रिकोण भाव में हों, तो लक्ष्मी योग बनता है. लक्ष्मी योग होने पर व्यक्ति धनवान होता है. इस योग के व्यक्ति में शुभ कार्य करने की प्रवृ्ति होती है, उसके स्वभाव का यह गुण उसे मान-सम्मान दिलाने के साथ उसे एक महान इन्सान बनाता है. लक्ष्मी योग न केवल धन देता है, बल्की इस योग कि शुभता से व्यक्ति के ज्ञान में भी बढोतरी होती है. व्यक्ति अपने वर्ग का सम्मानीय व्यक्ति बनता है. यह योग व्यक्ति को भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त करता है. राजनैतिक क्षेत्र में सफल होने के पक्ष से यह योग शुभ माना जाता है.  

    गौरी योग कैसे बनता है. | How is Formed Gauri Yoga 

    गौरी योग उस समय बनता है, जब कुण्डली में चन्द्रमा गुरु से द्र्ष्ट हों. यह योग व्यक्ति को स्वस्थय शरीर देने के साथ साथ, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को सुदृ्ढ करता है. इस योग वाला व्यक्ति सम्मानीय परिवार से संबन्ध रखने वाला होता है. उसके बच्चे अच्छे चरित्रवान होते है. व्यक्ति तथा संतान दोनों को सराहना प्राप्त होती है.  

    श्रीकण्ठ योग कैसे बनता है. | How is Formed Shrikanth Yoga 

    श्रीकण्ठ योग में नवमेश शुक्र या बुध केन्द्र या त्रिकोण में अपनी मित्र या उच्च राशियों में हों तो श्रीकण्ठ योग बनता है. श्रीकण्ठ योग व्यक्ति को धनवान बनाता है. इस योग में बुध व शुक्र शामिल है. इसके कारण यह योग व्यक्ति को बौद्धिक योग्यता देता है. शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं वाला होता है. नवमेश के कारन इस योग से व्यक्ति धार्मिक प्रवृ्ति का बनता है.   

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    पूर्वाषाढा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Purva Ashadha Nakshatra | Poorvashaha Nakshatra Career

    पूर्वाषाढा नक्षत्र को जल नक्षत्र कहा जाता है. इस नक्षत्र के स्वामी शुक्र है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव और आचार-विचार पर शुक्र का प्रभाव देखने में आता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को दूसरों पर उपकार करने की प्रवृ्ति होती है. 

    ऎसा व्यक्ति भाग्यवान होता है. और अपने सहयोग भावना के कारण लोंगों में प्रसिद्ध भी होता है.  दूसरों के दुख: दर्द की अनुभूति इस नक्षत्र के व्यक्ति को होती है. 

    पूर्वा आषाढा नक्षत्र पहचान | Purva Ashadha Nakshatra Recognition

    पूर्वा आषाढा नक्षत्र 20वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र की पहचान करने के लिए आकाश में 2-2 तारे मिलकर एक समकोण बनाते है. अप्रैल माह में प्रात: के लगभग यह पूर्वाषाढा नक्षत्र का समकोण नजर आता है. पूर्वाषाढा का आकार हाथी दांत के समान प्रतीत होता है.   

    पूर्वाषाढा नक्षत्र स्वभाव विशेषता | Purva Ashadha Nakshatra Personality Characteristics

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने शत्रुओं को जल्दी से क्षमा नहीं कर पाता है. अगर ऎसे व्यक्ति अपने स्वभाव में बदलाव करने में असफल होते है, तो उनके के मामलों में फंसने की संभावना रहती है. लडाई- झगडों में इनका शामिल होना इनके सम्मान और धन दोनों में कमी का कारण बनता है. 

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृ्ढ करने के लिए अपने व्ययों पर पूर्ण नियन्त्रण लगाने का प्रयास करना चाहिए. व्यक्ति के मन में विचार आते- जाते रहते है. जीवन में भाग-दौड की अधिकता रहती है. और उनके जीवन शैली में अनुशासन और नियमों का पालन कहीं देखने में नहीं आता है. कार्य भार अधिक और जीवन की अनियमितता इनके स्वास्थय में कमी का कारण बनती है. 

    पूर्वाषाढा नक्षत्र 27 नक्षत्र मंण्डल में स्थिति | How to Find Purva Ashadha Nakshatra 

    27 नक्षत्रों में से पूर्वाषाढा नक्षत्र 20वां नक्षत्र है. यह नक्षत्र धनुराशि में स्थित है. और पूर्वा आषाढा नक्षत्र शुक्र का नक्षत्र है. कुण्डली में 9 ग्रहों में शुक्र की महादशा 20 वर्ष की होती है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का जीवन शुक्र ग्रह के कारकतत्वों से प्रभावित होता है. और व्यक्ति का कैरियर भी शुक्र के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में से हो सकता है. 

    पूर्वाषाढा नक्षत्र कैरियर | Purva Ashadha Nakshatra Career

    पूर्वाषाढा जन्म नक्षत्र का व्यक्ति अपने कैरियर का चुनाव कला विषयों में से कर सकता है. ऎसा व्यक्ति स्त्री सौन्दर्य को बढाने वाले क्षेत्रों को अपनी आजीविका का क्षेत्र बनाकर आय प्राप्त कर सकता है. सेवा से जुडे सभी क्षेत्रों में इनका कार्य करना अनुकुल रहता है. ऎसा व्यक्ति सौन्दर्य प्रसाधनों से संबन्धित कार्य कर सकता है. अथवा होटल प्रबन्धन, नर्स और मेडिकल क्षेत्र में भी इनका कार्य करना उचित रह्ता है. 

    पूर्वाषाढा जन्म नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुण्डली में अगर गुरु भी उच्च स्थान या बली स्थिति में हों, तो व्यक्ति महत्वकांक्षी, सत्य बोलने वाला और अपने ज्ञान क्षेत्र में अनुभव और दक्षता रखता है. इसके विपरीत अगर कुण्डली में गुरु के स्थान पर शुक्र बली स्थिति में हो तो व्यक्ति का झुकाव कला और सौन्दर्य वस्तुओं से जुडे क्षेत्रों में कार्य करने का अधिक होता है.   

    पूर्वा आषाढा स्वभाविक गुण | Poorvashadha Nakshatra Behavioral Characteristics

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों में स्वाभिमान का भाव अत्यधिक होता है.  अपने स्वाभिमान को वे अधिक महत्व देते है. ऎसे व्यक्ति जब प्रश्न होते है, तो सबको प्रसन्न रखते है. परन्तु क्रोध भी इन्हें कुछ कम नहीं आता है. जीवन को ये अपने तरीके से ही व्यतीत करना पसन्द करते है. इन्हें जीवन साथी भी प्राय: मिलनसार ही मिलता है. ये अच्छे मित्र साबित होते है. 

    इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति सफाई- पसन्द होते है. साफ -सुथरा रहना इन्हें पसन्द होता है. अपने लक्ष्य प्राप्ति में ये सामर्थवान होते है. और अपने कार्य में भी कुशल होते है. जल क्षेत्रों से जुडे आयक्षेत्रों से इन्हें अच्छी आय प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. 

    अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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