शकुनि करण

पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग करण है. करण 11 होते हैं और हर 1 तिथि में 2 करण आते हैं. प्रत्येक करण का अपना एक अलग प्रभाव होता है. व्यक्ति के जीवन और उसके कार्यों पर करणों का प्रभाव भी स्पष्ट होता है. शकुनि करण के प्रभाव से जातक उत्साहित और काम को लेकर अधिक भागदोड़ करने वाला होता है. मन से कठोर हो सकता है और फैसले लेने में जल्दबाज होता है.

शकुनि करण कब होता है

कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी के उत्तरार्ध में शकुनि करण होता है. शकुनि करण का प्रतीक पक्षी को बताया गया है. यह विचरण करने के लिए स्वतंत्र है और मुक्त रुप से जीवन जीने की इच्छा रखते हैं. शकुनि करण की अवस्था ऊर्ध्वमुखी है. अपने इस प्रभाव के कारण इसे आगे बढ़ने वाला और सामान्य फल देने वाला करण बताया गया है.

शकुनि एक स्थाई करण है

शकुनि करण एक स्थाई करण होता है. इस करण को बहुत अधिक शुभता की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. इस करण के प्रभाव से व्यक्ति को बहुत अधिक शुभ प्रभाव नहीं मिल पाते हैं. जीवन में संघर्ष अधिक रहता है. शकुनि करण के स्वामी कलयुग को बताया गया है. ऎसे में इस करण पर कलियुग नामक देव का प्रभाव भी होता है.

शकुनि करण में क्या काम करने चाहिए

शकुनि करण का मुहूर्त में उपयोग होता है. शकुनि करण में कठोर काम करना अनुकूल होता है. शकुनि करण में मंत्र सिद्धि करने के काम किया जा सकता है. औषधि का निर्माण भी इस करण में किया जा सकता है. शकुनि करण में व्यक्ति

शकुनि करण में जातक को युद्ध क्षेत्र विजय पाने के लिए उपयोग किया जाता है. इस करण का उपयोग सफलता पाने के लिए कठिन क्षेत्रों में उपयोग कर सकते हैं.

शकुनि करण में जन्मा जातक

शकुनि करण में जन्मा जातक कुशल वक्ता और काम काज में योग्य होता है. व्यक्ति अपने काम को करने पर युक्तियों का उपयोग भी करता है. मेहनत से अधिक बौद्धिकता से काम करने की कोशिश अधिक करता है. इस करण में जन्मा जातक अपने काम से प्रख्यात होता है.

व्यक्ति को अपने मन के अनुरुप काम करने की इच्छा अधिक होती है. व्यक्ति में झूठ बोलने और चालबाजियों को करने में भी आगे रह सकता है. बोलचाल में कुशल होता है. मनोविज्ञान को समझने वाला होता है. अपने काम को दूसरों से करवाने में कुशल होता है.

व्यवहार कुशल होता है. कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों के साथ जल्द मेल जोल बनाए रखने वाला होता है. अपनी बोल चाल और व्यवहार कुशलता से लोगों को आकर्षित कर अपना संघटन भी बना सकता है. लोगों से अपना काम निकलवा लेने की योग्यता भी रखता है.

शकुनि करण आजीविका क्षेत्र

शकुनि करण में जिस व्यक्ति का जन्म हो वह व्यक्ति विवादों का निपटारा कराने में कुशल होता है. ऎसा व्यक्ति आपस में समझौते और बिगडती बात को संभालने की योग्यता रखता है. बडी-बडी कम्पनियों में समन्वय कराने का कार्य उसे बखूबी आता है. साथ ही ऎसे व्यक्ति को औषधि निर्माण कार्य का ज्ञान हो सकता है. चिक्तिसा जगत में सेवा कार्य कर वह उतम आय प्राप्त करने में सफल रहता है.

शकुनि करण अपनी बौद्धिक योग्यता का प्रयोग शुभ कार्यो के लिए करें, तो व्यक्ति को धन और मान दोनों प्राप्त होते है. परन्तु अगर वह धन प्राप्ति की ओर लालयित रहे तो, उसे गलत तरीकों से धन कमाने की ओर आकर्षित हो सकता है.

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अम्बर रत्न के फायदे

अम्बर उपरत्न विभिन्न रंगों में उपलब्ध होता है. यह पीले रंग से लेकर लाल रंग तक के रंगो में पाया जाता है. परन्तु अम्बर उपरत्न का रंग सामान्यतया शहद के रंग जैसा होता है. इसी रंग का अम्बर अधिक प्रचलित है. सबसे अच्छा अम्बर उपरत्न पारदर्शी होता है. कुछ धुँधलें अम्बर भी पाए जाते हैं. यह उपरत्न वनस्पतिजन्य पदार्थ है इसलिए इस उपरत्न में कई बार कीडे़ और पत्थर के कण भी पाए जाते हैं. कई बार इसमें पत्तियाँ, देवदार के वृक्षों की नोक, छोटे पौधे और कुछ जन्तुओं के जीवाश्म भी इसमें पाए जाते हैं. इस उपरत्न की उत्पत्ति वृक्ष के रस-गोंद से होती है. ऎसा माना जाता है कि रत्न पहनने की प्रथा अम्बर से ही हुई है.

अम्बर के गुण

यह उपरत्न आँखों के लिए बहुत ही उपयोगी है. गले और फेफडों की ग्रंथियों में होने वाली सूजन इस उपरत्न को धारण करने से दूर होती है. यह उपरत्न अंत:स्त्रावी ग्रंथियों तथा पाचन तंत्र के क्रिया-कलापों के मध्य संतुलन बनाए रखता है. यह शरीर की सुरक्षा करता है और गॉयटर को कम करता है. दाँतों की सुरक्षा, सिरदर्द, तनाव, सर्दी से होने वाले विकार, पीलिया आदि बीमारी को दूर करने के लिए उपयोगी है. यह रत्न पहनने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ मिलता है, व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक व्याधी से भी मुक्ति मिलती है.

कई बार व्यक्ति के अंदर अत्यधिक उत्साह देखने को मिलता है या हम देखते हैं कि कुछ बच्चों में जोश है वह नियंत्रित करने की आवश्यकता है तो इस स्थिति में यह रत्न अधिक सहायक बनता है. व्यर्थ के उत्साह और उत्साह को नियंत्रित रखने में सहयोग करता है.

ये रत्न मानसिक उन्मांद की स्थिति को शांत करने में सहायक होता है. एकाग्रता को बढ़ाता है ओर व्यक्ति में सिखने की प्रवृति को जन्म देता है. हीलिंग थैरिपी के रुप में भी इस रत्न का उपयोग फायदेमंद होता है. यह बुरी सोच और गलत चीजों से व्यक्ति को दूसर रखने में सहायक बनता है.

अम्बर के अलौकिक गुण

इस उपरत्न को धारण करने से भाग्य वृद्धि होती है. यह अच्छे भाग्य का सूचक माना जाता है. इसका संबंध लम्बी आयु से भी जोडा़ जाता है. यह उपरत्न निर्णय लेने की क्षमता का विकास करता है. व्यक्ति की याद्धाश्त तथा ऊर्जा में भी बढोतरी करता है. यह उपरत्न नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने की क्षमता रखता है. व्यक्ति विशेष को आंतरिक ऊर्जा प्रदान करता है. बच्चों के गले में बाँधने से वह रोगों से बचे रहते हैं. दाँत निकालने में बच्चों को तकलीफ नहीं होती. बच्चे बुरी नजर से बचे रहते हैं.

इस रत्न को बहुत अधिक समय तक धारण नहीं करना चाहिए. कभी-कभी इसे उतार कर रख देना चाहिए अथवा दिन में धारण करके रात्रि में सोने से पहले उतार कर रख देना ही उचित है.

कौन धारण करे

अम्बर उपरत्न को वह व्यक्ति धारण कर सकते हैं जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र या बृहस्पति अच्छे भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है. पुखराज के बदले इस उपरत्न को पहना जा सकता है.

कौन धारण नहीं करे

राहु, केतु, नीलम तथा चन्द्र के रत्नों तथा उपरत्नों के साथ अम्बर उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

कैसे धारण करें

अम्बर या कहें एम्बर रत्न को आभूषणों में भी उपयोग किया जाता है. इस रत्न को अंगूठी, ब्रेसलेट और पेंड़ेट इत्यादि में जड़वा कर उपयोग कर सकते हैं. कुछ के अनुसार ये रत्न शुक्र के लिए उपयोगी है तो कुछ के अनुसार बृहस्पति के लिए तो कुछ इसे मंगल के रत्न के रुप में भी पहनने कि सलाह दे देते हैं. इस कारण इस रत्न का उपयोग बृहस्पतिवार, शुक्रवार के दिन धारण करना चाहिए साथ ही शुक्ल पक्ष की तिथि का चयन करना चाहिए.

प्रात:काल में अंबर स्टोन से जड़ित आभूषण को गंगा जल और कच्चे दूध से स्नान कराने के बाद धूप-दीप दिखा कर इसे पहनें. शुभ मुहूर्त समय धारण किए जाने पर रत्न की शुभता और उसका फल कई गुना बढ़ जाता है.

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सिन्हेलाईट उपरत्न | Sinhalite Gemstone | Sinhalite – Metaphysical Properties

इस उपरत्न का यह नाम सिंहला नाम पर पडा़ है. सीलोन द्वीप को संस्कृत में सिंहला या सिंहली कहते थें. वर्तमान श्रीलंका का यह प्राचीन नाम है. यह उपरत्न इस द्वीप पर पाए जाने से सिन्हेलाईट कहलाता है. इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज 1952 में हुई थी. इस उपरत्न के साथ एक कहावत यह जुडी़ है कि प्राचीन समय में सूलेमान, जो बाईबिल राजा था, वह इस उपरत्न को श्रीलंका से रानी शेबा(Sheba) का दिल जीतने के लिए लाया था. इस उपरत्न के विषय में कैथे तथा अरब की खाडी़ के देशों में बहुत सी कहानियाँ प्रचलित हैं. वहाँ पाए जाने वाले उपरत्नों में से कुछ बहुत ही प्रसिद्ध हो गए जैसे – सिन्हेलाईट और सीलोनाईट.

सिन्हेलाईट उपरत्न एक दुर्लभ उपरत्न है और यह केवल श्रीलंका में ही प्रचुर रुप में पाया जाता है. रत्नों के बाजार में इस उपरत्न को अधिक सफलता नहीं मिल पाई है. इसकी माँग कम ही है. जब इस उपरत्न की खोज हुई थी तब इसे भूरा पेरीडोट समझा गया था. लेकिन सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर यह एक नया उपरत्न निकला. कटे हुए सिन्हेलाईट के टुकडे़ जर्कन तथा क्राइसोबेरिल उपरत्नों का भ्रम पैदा करते हैं. यह उपरत्न विभिन्न प्रकार के रत्नों को जमा करने वालों के लिए बेहतर है.

यह देखने में चमकदार उपरत्न है. यह पारदर्शी तथा पारभासी किस्मों में पाया जाने वाला उपरत्न है. यह उपरत्न दो दिशाओं में विखंडित होते दिखाई देता है. इसमें सफेद रंग की लकीरें अथवा धारियाँ दिखाई देती हैं. इस उपरत्न को भिन्न कोणों से देखने पर यह भिन्न रंगों में दिखाई देता है. यह उपरत्न देखने में बहुत ही स्पष्ट होता है.

सिन्हेलाईट के गुण | Metaphysical Properties Of Sinhalite

यह उपरत्न धारक को स्वयं के भीतर सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है. उसकी धारणा को प्रोत्साहित करता है. यह हर दृष्टि से वृद्धि करने में सहायक होता है. यह धारणकर्त्ता के जीवन में कई कोणों से सुधार करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता का उत्थान करने में मददगार होता है. यह किसी भी कार्य को समाप्त करने की क्षमता को प्रदान करता है. जातक के भीतर इस बात को विकसित करता है कि वह किसी भी कार्य को बीच में छोडे़.

सिन्हेलाईट के रंग | Color Of Sinhalite Crystals

यह उपरत्न मध्यम भूरा होता है अर्थात ना अधिक गहरा और ना ही बहुत अधिक फीका होता है. बहुत ही थोडा़ सा पीला रंग, भूरे रंग में दिखाई देता है. कई बार यह उपरत्न हरे-भूरे रंग की मिश्रित आभा लिए हुए भी होता है. कई बार यह हरे-पीले रंग की आभा लिए हुए होता है. 

कहाँ पाया जाता है | Where Is Sinhalite Gemstone Found

इस उपरत्न की प्रमुख खानें श्रीलंका में पाई जाती हैं. वहाँ यह प्रचुरता में पाया जाता है. वर्तमान समय में यह उपरत्न म्यांमार, यह रुस में साइबेरिया में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह जहाँ भी पाया जाता है बहुत ही कम मात्रा में पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Sinhalite

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्त्ति के अनुसार धारंण कर सकते हैं. इसे शुक्ल पक्ष में किसी भी दिन धारण किया जा सकता है. धारक इसे अपनी सुविधानुसार अंगूठी अथवा लॉकेट में धारण कर सकते हैं.

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वणिज करण

सूर्य से बारह अंशों की दूरी पर तिथि बनती है, तथा सूर्य से छ: अंशों कि दूरी पर करण बनता है. इस प्रकार एक तिथि में दो करण होते है. करण ज्योतिष शास्त्र में पंचाग का भाग है, व इसे मुहूर्त कार्यों में प्रयोग किया जाता है. वणिज करण को सामान्य करण माना गया है. करण का उपयोग किसी भी मुहूर्त्त को निकालने के लिए किया जाता है. शुभ कार्यों में वणिज करण को लिया जा सकता है.

वणिज करण

वणिज करण एक चलायमान करण है. इस करण का प्रभाव व्यक्ति को सजग और कार्यशील बनाने वाला होता है. इस का चिन्ह सांड अथवा गाय को बताया गया है. यह एक संघर्षशील स्थिति और उस पर विजय पाने की योग्यता को दिखाने वाला होता है. यह एक कर्मठ करण हैं जो काम में लगातार व्यस्त रहने की ओर ईशारा करता है.

वणिज करण में जन्मा जातक

वणिज करण में जन्मा जातक अधिक सोच विचार करने वाला और युक्ति से काम निकालने की इच्छा रखने वाला होता है. जातक विद्वान लोगों की संगत को पाता है. अपने और अपने परिवार के प्रति सजग होता है जिम्मेदारियों को निभाना जानता है. जातक में भीड़ से अलग चलने की योग्यता भी होती है और वह अपनी इस सोच में कामयाब भी होता है.

जातक में जीवन का आनंद लेने की इच्छा रहती है. वह सुंदर चीजों के प्रति आकर्षित होता है. अपने मन को अनुकूल ही हर कार्य करने की उसकी इच्छा बहुत अधिक रहती है. जातक में कलात्मक प्रतिभा होती है और वे अपनी प्रतिभा से धन भी अर्जित कर सकता है. जीवन को व्यवस्थित ढंग से जीने की कोशिश करते हैं. सुरुचिपूर्ण वस्त्र, जीवन शैली, संगीत इत्यादि जीवन में रहते हैं.

जातक को धन से प्रेम होता है, वह जीवन में अत्यधिक धन की चाह भी रखता है और इसके लिए प्रयास भी बहुत करता है. इसी के कारण वह सब कुछ पाता है जो उसे अच्छा लगता है. जातक मिलनसार और वाक चातुर्य से भरा होता है. महत्वाकांक्षी और थोड़ा सा अहंकारी भी हो सकता है. जातक का ये स्वभाव कई बार परेशानी का सबब बन सकता है.

वणिज करण-व्यक्ति व्यवसाय

जिस व्यक्ति का जन्म वणिज करण में होता है, उस व्यक्ति को व्यापारिक कार्यो में विशेष रुचि होती है. इस योग के व्यक्ति को नौकरी करने के स्थान पर अपना व्यापार कार्य कर लाभ उठाना चाहिए. ऎसे व्यक्ति को विदेश गमन से उत्तम आय की प्राप्ति होती है. वह व्यक्ति विदेशी संबधों के साथ कार्य कर अपनी ख्याति और आय दोनों को बढा सकता है. व्यापारिक उद्देश्यों के लिए की गई यात्राएं भी व्यक्ति की सफल होती है.

व्यक्ति अपनी जीवन लक्ष्यों को विदेशी सूत्रों के सहयोग से पूरा करता है. बाजार में रह कर वस्तुओं के क्रय और विक्रय के विषय में बहुत अधिक ज्ञानी होता है.

वणिज करण-चरसंज्ञक करण

वणिज करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बव, बालव कौलव, तैतिल, गर और विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न ध्रुव करण कहलाते है.

वणिज करण- स्वामी

वणिज करण की अराध्य देवी स्वामी लक्ष्मी जी हैं. इस करण के जातकों के लिए माँ लक्ष्मी की पूजा बहुत अधिक फल दायक होती है. जो व्यक्ति अपने करण के सभी शुभ फल प्राप्त करना चाहता है. उन्हें देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. देवी लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति को स्वास्थय सुख के साथ साथ भाग्य और धन का लाभ भी प्राप्त होता है.

आर्थिक कष्टों से बचने के लिए वणिज करण के जातक को शुक्रवार के दिन श्री सूक्त का पाठ अवश्य करना चाहिए.

  • देवी लक्ष्मी को भोग स्वरुप खीर का भोग अवश्य लगाना चाहिए.
  • यदि संभव हो सके तो शुक्रवार के व्रत करने चाहिए.
  • सफेद वस्त्रों का दान भी शुभ होता है.
  • वणिज करण में करने योग्य कार्य

    वणिज करण में कोई भी वस्तु का क्रय विक्रय करना अनुकूल माना गया है. किसी व्यापार को करने के लिए इस करण का होना बेहतर स्थिति देने वाला माना गया है. यह करण सामान्य करण है, इस करण में नवीन कार्य किए जा सकते हैं.

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    हीमेटाइट उपरत्न । Haematite | Hematite Gemstone – Meaning | Hematite – Metaphysical Properties | Hematite – History

    यह आसानी से उपलब्ध होने वाला उपरत्न है. यह अपारदर्शी होता है. यह आयरन आक्साइड से बना खनिज है. यह हल्के काले रंग से गहरे काले रंग तक के रंगों में पाया जाता है. भूरे रंग, भूरे व लाल रंग के मिश्रण तथा लाल रंग में भी कभी-कभी पाया जाता है. सामान्यतया यह हल्के काले रंग में ही उपलब्ध होता है. इन्द्रधनुषी रंग में पाया जाने वाला हेमाटाइट नाजुक होता है. यह उपरत्न क्वार्टज़ के साथ मिलाकर उपयोग में लाया जाता है इससे इस उपरत्न की उम्र बढ़ जाती है अन्यथा यह आसानी से टूटने वाला नाजुक पत्थर है. इस उपरत्न के सभी रुपों में भिन्नता है लेकिन सभी में जंग जैसा लालीपन मौजूद रहता है.  यह उपरत्न लोहे की तुलना में अधिक कठिन है लेकिन फिर भी यह लोहे से अधिक भंगुर है. 

    हीमेटाइट शब्द ग्रीक शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है – रक्त. मंगल ग्रह के अन्वेषणकर्त्ताओं का मानना है कि मंगल ग्रह पर लाल रंग का पानी है जो हीमेटाइट के कारण भी हो सकता है. इस उपरत्न के मंगल ग्रह की सतह पर बहने से वहाँ लाल पानी पाया गया है. यह उपरत्न मंगल ग्रह पर हर तरफ पाया जाता है. 18वीं तथा 19वीं सदी में लोगों द्वारा हीमेटाइट उपरत्न से बने गहनों का प्रयोग शोक में शामिल होने के लिए किया जाता था. अमेरिका के मूल निवासी युद्ध में विजय हासिल करने के लिए हीमेटाइट से बने रंग का उपयोग करते थे. प्राचीन समय में इस उपरत्न का उपयोग लाल गेरू के रुप में भी किया जाता था. इससे गुफाओं में चित्र बनाने तथा रंग करने के लिए उपयोग में लाया जाता था.

    प्राचीन समय में इस उपरत्न का उपयोग दर्पण के रुप में भी किया जाता था. जब इसे काटा जाता था तो यह लाल और पारदर्शी हो जाता था. पॉलिश करने पर यह पहले से अधिक चमकदार हो जाता था. इस उपरत्न को गहनों, अँगुठियों तथा मालाओं में जडा़ जाता था.

    हीमेटाइट के आध्यात्मिक तथा भावनात्मक गुण | Metaphysical And Emotional Properties Of Hematite

    इस उपरत्न को आध्यात्मिक तथा भावनात्मक चिकित्सा के लिए अच्छा माना गया है. यह अशांत मन को शांत करता है. यह व्यक्ति में संतुलन बनाए रखता है. यह चीजों को समझने में स्पष्टता दिखाता है. 
    इसे धारण करने व्यक्ति धरातल से जुडा़ रहता है. व्यवहारिक बनता है. यह मानसिकता को बढा़ने में मदद करता है. यह अन्तर्ज्ञान में वृद्धि करता है. संबंधों में सुधार तथा प्रगाढ़ता लाता है. यह अंदरुनी सुख प्रदान करता है. यह शरीर की ऊर्जा का विकास करता है. जीवन के तनावों से मानव का बचाव करता है और शारीरिक क्षमता का विकास करता है. यह प्यार में वृद्धि करता है. व्यक्ति विशेष को सुरक्षा प्रदान करता है.

    इसे मानसिक महारत का उपरत्न भी कहा जा सकता है. यह उपरत्न व्यक्तिगत आकांक्षाओं तथा लक्ष्यों की पूर्त्ति के लिए व्यक्ति को बढा़वा देता है, इस बात की परवाह किए बिना कि दूसरा व्यक्ति का सोचेगा. यह उपरत्न व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है. यह प्रतिदिन की सच्चाई से भी लोगों को अवगत कराता है. इसलिए इसे जमीन से जुडा़ उपरत्न कहा जाता है. यह नकारात्मक ऊर्जा में कमी करता है. यह शांत, प्यारे तथा अच्छे संबंधों के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह ज्ञान तथा याद्धाश्त को बढा़ने में मदद करता है.  यदि इस उपरत्न को धारण करना हो तो इसे बाएँ हाथ की अँगुली में धारण किया जाना चाहिए.

    हीमेटाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Qualities Of Hematite

    प्राचीन समय में इस उपरत्न का उपयोग मिस्त्रवासियों द्वारा रक्त का सुचारु रुप से संचरण करने तथा रक्त कोशिकाओं में वृद्धि करने के लिए किया जाता था. यह उपरत्न किडनी तथा शरीर के परिसंचरण तंत्र को सुचारु रुप से चलाने में मदद करता है. यह किडनी तथा रक्त से संबंधित विकारों को ठीक करता है. अत्यधिक रक्तस्त्राव होने पर इस उपरत्न का उपयोग ताबीज के रुप में किया जा सकता है. यह छोटी आंत में लौह कणों को अवशोषित करने में सहायता करता है, यह लौह कण शरीर में आक्सीजन के स्तर में वृद्धि करते हैं. यह पलकों के कैंसर को होने से रोकता है.

    यह शरीर के हर प्रकार के तरल पदार्थों को नियंत्रित करता है. रक्त को शुद्ध रखने में सहायक होता है. सिर दर्द को होने से रोकता है. जिन्हें चक्कर आते हैं, उनके लिए यह लाभदायक है. धारणकर्त्ता की नसों तथा हार्मोन्स को नियंत्रित रखता है. यह बहुत ही शक्तिशाली उपरत्न है, लेकिन इसे गहनों के रुप में धारण करने से पूर्व इसका त्वचा पर असर देखना चाहिए. यदि इसे धारण करने से त्वचा पर कुछ विकार होता है तब इसे धारण नहीं करना चाहिए. जिन व्यक्तियों को इसे धारण करने पर त्वचा विकार नहीं होते हैं उन्हें भी लम्बे समय तक लगातार इसे धारण नहीं करना चाहिए.

    हीमेटाइट उपरत्न अग्नि तत्व है. इसे शनि ग्रह का उपरत्न माना जाता है. यह शरीर के मूलाधार चक्र को नियंत्रित रखता है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Hematite Found

    यह उपरत्न अलाबामा(अमेरिका) का मुख्य उपरत्न है. 1840 से लेकर 1975 के मध्य तक 375 मिलियन टन हीमेटाइट निकाला जा चुका था. इसके अतिरिक्त इन्द्रधनुषी हीमेटाइट ब्राजील में पाया जाता है. आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, इटली, स्वीट्जरलैण्ड, स्वीडन, नॉर्वे, मोरोक्को, न्यूजीलैण्ड, मेक्सिको, चीन, जर्मनी आदि देशों में हीमेटाइट की बाकी किस्में पाई जाती हैं. ब्राजील देश इस उपरत्न का मुख्य स्त्रोत है. एरीजोना, मिशिगन तथा विस्कोन्सिन के क्षेत्रों में भी यह उपरत्न पाया जाता है.

    कौन धारण करें | Who Should Wear Hematite Gemstone

    जिन व्यक्तियों की कुण्डलियों में शनि ग्रह शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है वह हीमेटाइट उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

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    चक्र-समुद्र-गोल योग – नभस योग | Chakra Yoga – Nabhasa Yoga | Samudra Yoga Results | Gol Yoga Results

    चक्र योग भी 32 नभस योगों में से एक है.  इस योग की यह विशेषता है, कि जब लग्न भाव से सभी ग्रह विषम भावों में हो, तो चक्र योग बनता है. कुण्डली के विषम भाव 1, 3, 5, 7, 9, 11 भावों को कहा जाता है.  चक्र योग वाला व्यक्ति अपने आजीविका क्षेत्र में उच्च पद पर आसीन होने में सफल रहता है.  ऎसा व्यक्ति को नौकरी से अधिक व्यापार करने की चाह होती है. तथा उसे उत्तम स्तर की सुख -सुविधाएं प्राप्त होती है. 

    चक्र योग कैसे बनता है. | How is Chakra Yoga Formed 

    इस योग को इस प्रकार भी कहा जा सक्ता है, कि चक्र योग उस समय बनता है, जब लग्न से 12 भावों में से जिसमें लग्न भाव, पराक्रम भाव, शिक्षा भाव, विवाह भाव, भाग्य भाव व आय भाव इन छ: भावों में कुण्डली के सभी ग्रह हो, तब चक्र योग बनता है, चक्र योग में कोई भी ग्रह अगर इस चक्र से बाहर अर्थात सम भाव में स्थित हो, तो यह योग भंग हो जाता है.   

    चक्र योग में जब ग्रह विषम भावों में स्थित होते है. तो उनके द्वारा चक्र के समान आकृ्ति बनती है, इसीलिए इस योग का नाम चक्र योग रखा गया है.  

    चक्र योग से मिलने वाले फल | Chakra Yoga Results 

    चक्र योग व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने की योग्यता देता है. ऎसा व्यक्ति राजकाज के कार्यो में कुशल होता है. तथा वह जिस भी क्षेत्र में कार्य करता है, उसके पास अतिरिक्त अधिकार सुरक्षित होते है. यह देखा गया है, कि चक्र योग वाले व्यक्ति का प्रभुत्व बीस वर्ष की आयु के बाद बढने लगता है.  

    समुद्र योग – नभस योग | Samudra Yoga – Nabhasa Yoga 

    नभस योगों को कई नामों से जाना जाता है. नभस योगों का वर्गीकरण राशियों की संख्या के अनुसार होता है, इसलिए इन योगों को संख्या योग भी कहा जाता है. संख्या योगों का एक अन्य नाम सांख्य योग भी है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक से अधिक ग्रहों की युति योग कहलाती है. योग कई प्रकार के होते है, जिसमें आश्रय योग, दल योग, आकृ्ति योग, संख्या योग आदि. इन्हीं संख्या योगों में से एक योग है. समुद्र योग. आईये समुद्र योग को जानने का प्रयास करते है. (sematext)

    समुद्र योग क्या है. | What is Samudra Yoga 

    समुद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को शुभ और दीर्घकाल तक फल देता है. इस योग का निर्माण उस समय होता है, जब कुण्डली में सभी ग्र्ह द्वितीय भाव से लेकर सम भावों में स्थित होते है. यह योग चक्र योग का विपरीत योग है. उस योग में ग्रह विषम भावों में होते है, और इस योग में ग्रह सम भावों में. भाव संख्या 2, 4, 6, 6, 8, 10, 12 इन भावों को सम भाव संज्ञा दी गई है.  

    समुद्र योग फल | Samudra Yoga Results  

    समुद्र योग जिन व्यक्तियों की कुण्डली में होता है, उन व्यक्तियों को जीवन में धन-धान्य की प्राप्ति होती है. वे राजनीति के क्षेत्र में सफल होते है. तथा अपने द्वारा किए गये शुभ कार्यो के कारण उन्हें लोकप्रियता भी प्राप्त होती है. समुद्र योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त होता है.   

    गोल योग- नभस योग | Gol Yoga – Nabhsa Yoga 

    गोल योग कैसे बनता है. | How is Gol Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सभी ग्रह किसी एक ही राशि में हो, तो इसे गोल योग कहते है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में गोल योग हो, उस व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पडता है. यह योग व्यक्ति की आर्थिक स़्थिति को भी प्रभावित करता है.  तथा इस योग के व्यक्ति को स्वयं में उच्च विचार का विकास करना चाहिए. सात्विक कार्यो में रुचि लेने से इस योग के अशुभ फलों में कमी होती है.

    गोल योग फल | Gol Yoga Reuslts 

    गोल योग योग अशुभ फलकारी है, इस योग की अशुभता में कमी करने के लिए व्यक्ति का सदाचार का जीवन व्यतीत करना भी अनुकुल रहता है. साथ ही व्यक्ति का पुरुषार्थी बनना उसे, जीवन में आगे बढने में सहयोग करता है. गोल योग से युक्त व्यक्ति के स्वभाव में आलस्य का भाव सामान्य से अधिक हो सकता है, इस कारण से भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है. तथा व्यक्ति का काम में लगे रहना इस योग की अशुभता में कमी करता है.  

    कुछ अन्य ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार यह योग व्यक्ति को साहस और जोखिम के क्षेत्रों से जोडता है, तथा इन क्षेत्रों में कार्य करने से व्यक्ति को इस योग के शुभ फल प्राप्त होते है.  यह भी देखने में आया है, कि इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में चतुरता का भाव भी पाया जाता है.  

    संक्षेप में यह कहा जा सकता है, कि गोल योग में व्यक्ति अगर अपने आलस्य भाव का त्याग करता है, तो उसे पुलिस या सेना के क्षेत्रों से आय प्राप्त होती है. तथा वह व्यक्ति अपने कर्म से इस योग की अशुभता को भंग करने में सफल रहता है.   

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    जानिए, बुधादित्य योग कैसे बदलता है आपका जीवन

    कुण्डली में ग्रहों अपनी विशेष स्थिति में होने पर विशेष रुप से शुभ या अशुभ फल देने वाले हो जाते है. इस स्थिति को योग कहा जाता है. योग बनाने वाले ग्रहों की फल देने की क्षमता बढ जाती है. योग शुभ हो तो व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते है. इसके विपरीत योग अशुभ बन रहा हो तो व्यक्ति को योग के परिणाम अशुभ रुप में प्राप्त होते है.

    बुधादित्य योग क्या है

    जब कुण्डली में सूर्य और बुध किसी भी रशि में एक साथ हो तो बुद्धादित्य योग बनता है. बुद्धादित्य योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति बुद्धिमान, विद्वान, और तेजस्वी होता है. उसमें साहस भाव भी भरपूर पाया जाता है. तथा अपने बौद्धिक कार्यो से वह उन्नतिशील बनता है. इसके अतिरिक्त ऎसा व्यक्ति अपने सिद्धान्तों पर स्थिर रहकर जीवन व्यतीत करता है.

    बुधादित्य योग कब देता है शुभ फल

    बुध और सूर्य का योग बुध आदित्य योग को बनाता है, बुध ग्रह और सूर्य जिनका एक अन्य नाम आदित्य है. इन दोनों का संयोग व्यक्ति को शुभता और सकारात्मकता देने वाला होता है. बुद्धादित्य योग बहुत सी कुण्डलियों में प्राप्त होता है. पर यह योग कुछ मामलों में ही अपने फल को अधिक मजबूती के साथ सामने लाता है.

  • सूर्य का बुध के साथ मेष राशि में होना.
  • सूर्य बुध का कन्या राशि में होना.
  • सूर्य बुध का मिथुन राशि में होना.
  • सूर्य बुध का सिम्ह राशि में होना.
  • जब सूर्य और बुध इन राशियों में एक साथ स्थित होते हैं तो यह इस योग के शुभ फल देने में सहाय्क बनता है. इन राशियों में सूर्य और बुध की स्थिति अच्छी मजबूत होते हैं ऎसे में इनका शुभ फल मिलना संभव होता है. इसके विपरित स्थिति में सूर्य और बुध के बलहीन होने पर यह योग अपना शुभ फल देने में सक्षम नहीं हो पाता है. कमजोर बल होने के कारण शुभ फलों में बहुत अंतर आ सकता है. तुला एवं मीन राशि में स्थित सूर्य-बुध का योग बहुत अधिक फलदायी नही हो पाता है. तुला में सूर्य नीच का होता है और मीन में बुध नीच राशि का होता है.

    बुधादित्य योग फल

    जन्म कुंडली के प्र्त्येक भाव का अपना फल होता है ऎसे में जिस भाव में ये योग बनता है उस भाव के अनुरुप जातक को फल भी मिलते हैं. जिसे एक सामान्य नजरिये से इस प्रकार समजा जा सकता है.

    जन्म कुण्डली के लग्न भाव पर सूर्य और बुध का योग होने पर बुधादित्य योग बनता है. इस भाव में यह योग जातक को परिवार में मुख्य सदस्य की भूमिका देता है. व्यक्ति अपने घर में घर के मुखिया का रोल निभाता है. समाज में सम्मान और सफलता पाता है. नेतृत्व करने की योग्यत अभी जातक में जन्मजात होती है.

    जन्म कुण्डली के दूसरे भाव में बुधादित्य योग बनने पर व्यक्ति को आर्थिक क्षेत्र में सफलता मिलती है. परिवार का सुख मिलता है और पैतृक संपति का सुख भी पाता है. व्यक्ति बोलने में कुशल वक्ता बनता है ओर लोगों के मध्य एक बेहतरीन विचारक भी बनता है. शिक्षा के क्षेत्र में भी जातक को सफलता प्राप्त होती है.

    जन्म कुण्डली के तीसरे भाव में यह योग व्यक्ति को मेहनती बनाता है और जातक अपनी बौद्धिकता से सफलता पाता है. व्यक्ति में रचनाशीलता भी अच्छी होती है और जातक के भीतर छुपी हुई प्रतिभा भी सभी के सामने आती है. इस प्रतिभा के बल पर वह प्रतिष्ठा भी पाता है. भागदोड़ करने वाला और परिश्रम में आगे रहने वाला होगा. व्यवसायिक सफलता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है.

    जन्म कुण्डली के चौथे भाव में इस योग का निर्माण होने पर जातक को सुम्दर घर और वाहन की प्राप्ति होती है. लोगों का सहयोग मिलता है. सरकार की ओर से लाभ भी प्राप्त होता है. यह स्थिति जातक को बहुत अच्छी कुशलता देती है जिसके चलते जातक रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है. जातक को विदेश भ्रमण आदि का भी अवसर प्राप्त होता है.

    पंचम भाव में बुधादित्य योग के बनने पर व्यक्ति मंत्र सिद्धि पाता है, शिक्षा के क्षेत्र में सफल होता है. अपने ज्ञान के द्वारा वह कई चीजों की खोज भी करता है. एक बेहतर अन्वेशी बन सकता है. इस योग के प्रभाव से जातक में कलात्मक ओर रचनाशील होता है. उसके विचारों में गहराई देखने को मिलती है. आध्यात्मिक स्तर पर जातक आगे बढ़ता है.

    जन्म कुण्डली के छठे भाव में बुधादित्य योग का फल जातक को पराक्रमी और साहसी बनाता है. इस स्थान पर व्यक्ति अपने विरोधियों को परास्त कर पाने के लिए बौद्धिक रुप से योजनाओं को बनाने में निपुण होता है. व्यक्ति में वाक चातुर्य होता है. अपने कार्यक्षेत्र में वह शारिरीक परिश्रम से अधिक बौद्धिक परिश्रम अधिक करता है.

    जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में इस योग के बनने पर व्यक्ति जीवन साथी के साथ अपने विचारों का टकराव झेल सकता है. व्यक्ति अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करता है और समाज में प्रतिष्ठा भी पाता है.

    जन्म कुण्डली में आठवें भाव में बुधादित्य योग के बनने पर व्यक्ति धार्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है. जातक को रहस्यों को जानने की जिज्ञासा भी बहुत होती है.पैतृक संपत्ति को भी पा सकता है. जातक कुछ गंभीर और कम बोलने वाला भी हो सकता है. वाद विवाद में निपुण भी होता है.

    जन्म कुण्डली के नवम भाव में बुधादित्य योग बनने पर व्यक्ति भाग्य द्वारा लाभ पाता है. जातक को अपने पिता एवं वरिष्ठ लोगों का साथ और सहयोग मिलता है. व्यक्ति धार्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ने वाला होता है. भाई बंधुओं की ओर से प्रेम की प्राप्ति होती है. जातक को सुखमय जीवन, ऐश्वर्य, वाहन सुख इत्यादि का सुख भी मिलता है.

    जन्म कुण्डली के दसवें भाव में बुधादित्य योग के बनने पर व्यक्ति कार्यक्षेत्र में राज्य की ओर से लाभ प्राप्त कर सकता है. व्यापार में अच्छे लाभ मिलते हैं. काम को लेकर यात्राएं भी अधिक होती हैं. जातक को जीवन में अनेक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त हो सकती है. अपने काम में वह समान और उच्च पद भी पा सकता है.

    जन्म कुण्डली के एकादश भाव में बुधादित्य योग बनने पर आर्थिक क्षेत्र में उन्नती मिलती है. जातक अपने भाई बंधुओं का साथ पाता है. लम्बी यात्राएं भी करता है. पुरस्कार एवं पद प्राप्ति करता है.

    बुधादित्य योग जन्म कुण्डली के बारहवें भाव में बनने पर जातक कमाई खूब करता है और खर्च भी दिलखोल कर करता है. बाहरी लोगों से लाभ पाता है.

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    रज्जू-मूसल-नल योग | Moosal Yoga | Nabhas Yoga | Moosal Yoga Results | Rajju Yoga | Nal Yoga Results

    नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है.  जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है.  इन योगों को किसी ग्रह के स्वामीत्व या उसकी दशा अवधि के आधार पर नहीं देखा जाता है. इन योगों से मिलना वाला फल स्वतन्त्र रुप से देखा जाता है. 

    नभस योग कैसे बनते है. | How is Formed Rajju Yoga

    कुण्डली में राहू-केतु को छोडकर सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि किन किन राशियों में है, इस बात को ध्यान में रखतेहुए नभस योग का वर्गीकरण किया जाता है. आज हम यहां नभस योगों में आने वाले रज्जु योग को समझने का प्रयास करेगें. 

    रज्जु योग फल | What is Rajju Yoga | Rajju Yoga Result 

    सभी ग्रह चर राशियों अर्थात मेष, कर्क, तुला और मकर राशि में हो तो रज्जु योग बनता है. रज्जु योग से युक्त व्यक्ति एक स्थान पर बहुत समय तक ठिक कर नहीं रह पाता है. वह घूमने फिरने का शौकिन होता है, साथ ही उसमें परिवर्तनशील प्रवृ्ति होती है. साधारणत: ऎसा व्यक्ति अविश्वसनीय और अवसरवादी होता है. 

    Moosal yoga | Moosal Yoga Results

    32 नभस योगों में से ही एक अन्य योग है. मूसल योग, यह योग भी विभिन्न राशियों में ग्रहों की स्थिति के अनुसार बनता है. आईये इस योग को जानने का प्रयास करते है.  

    मूसल योग कैसे बनता है. | How is  Moosal Yoga Formed

    सभी ग्रह स्थिर राशियों में अर्थात वृ्षभ, सिंह, वृ्श्चिक तथा कुम्भ राशि में हो, तो मूसल योग बनता है. इस योग से युक्त व्यकि स्थिरता में विश्वास करने वाला होता है. उसमें अपने इरादों पर अटल रहने की प्रवृ्ति होती है. वह् व्यक्ति विश्वसनीय होता है. और अपने नियमों पर दृढ रहता है. अपने इन गुणों के कारण वह धनवार बनता है.  और साथ ही उसे प्रसिद्धि भी प्राप्त होती है.  

    कुछ अन्य शास्त्रों में इस योग के फलों को भिन्न तरीके से लिया गया है. उनके अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, वह व्यक्ति ज्ञानी, धनी,राजमान्य, प्रसिद्ध,संतान युक्त, और शासनप्रणाली में भाग लेने वाला होता है.  

    नल योग | Nal Yoga- Nabhas Yoga 

    यमनादि आचार्यों ने सारावली शास्त्र में नभस योगों का विस्तृ्त विश्लेषण किया है. इस शास्त्र के अनुसार मुख्य रुप से 32 नभस योग बताये गये है. इन 32 नभस योगों के नाम निम्न है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में सभी ग्रह द्विस्वभाव राशियों में हो, उस व्यक्ति की कुण्डली में नल योग बनता है.  द्विस्वभाव राशियां मिथुन, कन्या, धनु और मीन है.

    नल योग फल | Nal Yoga Results 

    नल योग जिन व्यक्तियों की कुण्डली में होता है, उन व्यक्तियों में दिखावा करने की प्रवृ्ति पाई जाती है. ऎसे व्यक्ति देखने में सीधे -साधे होते है. किन्तु चतुर और चालाक होते है. सामान्यत: देखा गया है, कि ये लोग बहुत स्वार्थी भी होते है.  इसके अतिरिक्त यह भी माना जाता है, कि नल योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति में मुख्यत: निराशा की भावना देखी जाती है. नभस योगों में रज्जू योग, मूसल योग व नल योग तीनों योग चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों की विशेषताओं पर आधारित योग है.  इन तीनों योगों को आश्रय योग भी कहा जाता है.

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    कमल-पक्षी-गदा योग का फल

    कमल योग नभस योगों की श्रेणी में आता है. भिन्न भिन्न राशियों में ग्रहों की स्थिति से नभस योग बनते है. नभस योग 1800 प्रकार से बनते है. इन योगों के नाम इनके द्वारा बनने वाली आकृति के अनुरुप रखे गये है. जैसे- कुण्डली में ग्रह अगर गोलाकार आकृति में स्थित हो तो गोल योग बनता है. इन्हीं मे से एक योग कमल योग है.

    कमल योग कैसे बनता है

    कुण्डली में जब सभी ग्रह लग्न से चारों केन्द्र स्थानों अथवा 1, 4, 7, 10 भावों में हो तो देखने में यह आकृति कमल के समान प्रतीत होती है. इसी कारण इस योग को कमल योग कहते है. इस योग वाला व्यक्ति दीर्घायु और सदाचारी होता है. वह धर्म नियमों का पालन करताहै. उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाओं कि प्राप्ति होती है. इसके साथ ही वह अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध भी होता है.

    कमल योग का फल

    जन्म कुण्डली में बनने वाला कमल योग एक शुभ योग की श्रेणी में आता है. इस योग में यदि शुभ ग्रहों की अधिकता हो तो इस योग के बहुत ही शुभ फल प्राप्त होते हैं. कमल योग के प्रभाव से व्यक्ति को आभुषण एवं वस्त्र इत्यादि की प्राप्ति होती है. व्यक्ति नेतृत्व कर पाता है और लोगों के मध्य अपनी एक प्रभावशालि छवि को बनाता है.

    जातक को अपने परिवार का प्रेम और सहयोग मिलता है. शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता मिलती है. राज्य की ओर से अथव अवरिष्ठ अधिकारी वर्ग की ओर से जातक सम्मान और उच्च स्थान भी पाता है. जातक को प्रेम और सुख की प्राप्ति होती है. विवाह का सुख पाता है. संबंधों में अगर कोई परेशानी भी हो तो मित्रों के सहयोग से उसे बहुत सहयोग मिलता है.

    कमल योग में शुभ ग्रहों का होना शुभता बढ़ाता है अन्यथा यहां पाप ग्रहों की स्थिति होने पर जातक को इस फल का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. ऎसी स्थिति में व्यक्ति को मिलेजुले परिणाम मिलते हैं.

    पक्षी योग कैसे बनता है

    कुण्डली में जब सभी ग्रह लग्न से चतुर्थ और दशम भाव में स्थित हो तो पक्षी जैसी आकृति बनती है. इस प्रकार बनने वाली आकृति के कारण यह योग पक्षी योग कहलाता है. इस योग का एक अन्य नाम विहंग योग भी है.

    पक्षी योग फल

    जिस व्यक्ति की कुण्डली में पक्षी योग होता है. वह चर प्रकृति का होता है. वह एक स्थान पर अधिक समय तक टिक कर नहीं रह पाता है. इस योग वाला व्यक्ति पक्षी की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर उडता या भागता रहता है. साधारणतया ऎसा व्यक्ति परिवहन संचार या संप्रेक्षण संम्बन्धि क्षेत्रों से जुडा होता है. या फिर उसका कार्य ऎसा होता है, कि उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर बार-बार जाना पडता है.

    जातक में संघर्ष करने की प्रवृति होती है. वह अपने बल पर आगे बढ़ता है. विरोधियों का दबाव भी अधिक झेलता है. अपनों का साथ बहुत अधिक नही मिल पाता है. कार्यक्षेत्र में अधिक व्यस्त रहता है. जीवन को बेहतर बनाने और सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है.

    गदा योग

    गदा योग में ग्रह कुण्डली में गदा कि आकृति लिए हुए स्थित होते है. गदा योग नभस योगों की श्रेणी में आता है. इस योग से युक्त व्यक्ति शारीरिक बल वाला होता है. उसमें साहस भाव पाया जाता है.

    गदा योग कैसे बनता है

    जब सभी ग्रह, लग्न से किन्ही भी दो आस-आस के केन्द्र स्थानों में हों, जैसे लग्न भाव और चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव और सप्तम भाव में हों तो गदा योग बनता है. गदा योग होने पर व्यक्ति विद्वान होता है. वह अपनी मेहनत पर विश्वास रखता है, तथा अपनी मेहनत के बल पर वह धनी होता है. गदा योग से युक्त व्यक्ति को जोखिम लेकर कार्य करना पसन्द हो सकता है.

    गदा योग फल

    गदा योग के प्रभव से व्यक्ति आशावान होकर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा पाता है. जातक अपने पुरुषार्थ से अपना भाग्य निर्मित करता है. शास्त्र और धर्म का जानकार होता है. कलात्मक एवं रचनात्मकता से युक्त होता है. सदैव आजीविका प्राप्ति में लगा रहने वाला. परिवार के प्रति दायित्व निभाने वाला होता है. जिस प्रकार गदा का उपयोग शत्रुओं का नाश करने के लिए और संकट से बचाव के लिए एक शस्त्र रुप में किया जाता है. उसी प्रकार इस का जन्म कुण्डली में बनना भी जातक को शत्रुओं से बचाने वाला होता है.

    गदा योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति प्रत्योगिताओं में सफलता पाता है. जातक में किसी भी संकट का सामना करने का साहस भी होता है. अपने लोगों का एवं किसी भी संगठन का नेतृत्व करने में कुशल भी होता है.

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    पाइराइट उपरत्न | Pyrite | Pyrite Gemstone Meaning | Pyrite – Healing And Metaphysical Abilities | Fool’s Gold Gemstone

    इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द पाइर(Pyr) से बना है जिसका अर्थ है – आग.  यह एक ऎसा खनिज है जो सोने के साथ विलक्षण समानता रखता है. यह उपरत्न सोने का भ्रम पैदा करता है और व्यक्ति इसकी चमक देखकर धोखा जाते हैं. इसलिए इसे “Fool’s Gold” भी कहा जाता है. लेकिन यह बात भी सत्य है कि इस उपरत्न में थोडी़ सी मात्रा सोने की अवश्य होती है जिससे यह उपरत्न बहुत कीमती बन जाता है. यह उपरत्न सोने के सादृश्य दिखने के कारण पारंपरिक रुप से धन, रुपया तथा अच्छे भाग्य का प्रतीक बन गया है. सूर्य की भांति चमकने वाला रंग इसे सूर्य के साथ जोड़ता है.

    बाजार में जवाहारियों द्वारा यह उपरत्न मर्कासाइट(Marcasite) के नाम से भी जाना जाता है. यह पीतल के समान दिखने वाली एक धातु है जो गहने बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह उपरत्न व्यापक रुप से पाया जाता है. प्राचीन समय में मेक्सिको में पाइराइट से स्क्राइंग शीशा बनाया जाता था. इन शीशों का निर्माण एक ओर से पाँलिश करके उसे समतल बनाया जाता था और शीशे के दूसरी तरफ गोल भाग की ओर स्क्राइंग प्रक्रिया के लिए कुछ रहस्यमयी नक्काशी की जाती थी. यह रहस्यमयी नक्काशी, स्क्राइंग प्रक्रिया में इस्तेमाल की जाती थी.

    संसार की सभी संस्कृतियों में इस उपरत्न से ताबीज बनाने का काम किया जाता था जिससे कि व्यक्ति सुरक्षित रहे. यह पहला उपरत्न था जो चिकित्सा पद्धति में उपयोग में लाया गया था. यह उपरत्न केवल सोने जैसे सुनहरे रंगों में पाया जाता है. कई बार यह उगते सूर्य की आभा लिए रंग में भी पाया जाता है.

    पाइराइट के आध्यात्मिक गुण | Pyrite – Metaphysical Properties

    यह एक अदभुत उपरत्न है जो धारणकर्त्ता को रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करता है. उनके मस्तिष्क में नए विचारों की एक चिंगारी सी छोड़ता है. जिससे वह रचनात्मक विचार रख सकें और अपने नए विचारों को दूसरों के समक्ष बताने में झिझके नहीं. पाइराइट उपरत्न कई तरह की श्रेणियों में पाया जाता है. आयरन पाइराइट के लिए ऎसी धारणा मानी गई है कि यह धारक को अत्यधिक सुरक्षा प्रदान करने वाला उपरत्न है. यह उपरत्न बुद्धिबल को बढा़वा देने में सहायक होता है. सूर्यमुखी पाइराइट धारक को कवच के जैसी सुरक्षा प्रदान करता है. यह नकारात्मक ऊर्जा को आने से रोकने का काम करता है.

    यह उपरत्न धारणकर्त्ता को शारीरिक, भौतिक तथा भावनात्मक स्तर पर  सुरक्षा प्रदान करता है. यह उपरत्न एक अदभुत ढ़ाल बनकर विभिन्न स्त्रोतों से आने वाले बुरे विचारों को आने से रोकने का कार्य करता है. यह व्यक्ति के अंदर आई जड़ता अर्थात निष्क्रियता को समाप्त करता है. धारक के भीतर समाई अपर्याप्तता की भावना को बाहर निकालता है. धारक को जिस क्षेत्र में ऊर्जा की कमी का अनुभव हो रहा है उस क्षेत्र में इस उपरत्न का उपयोग किया जा सकता है. इस उपरत्न को कार्यक्षेत्र पर भी रखा जा सकता है.

    यह उपरत्न धारक को सिक्के का दूसरा पहलू दिखाने में मदद करता है. इसे धारण करने से जातक के अंदर सुस्ती तथा आलस्य का अंत होता है. वह अपने भीतर चुस्ती तथा ताजगी का अनुभव करता है.
    जल्दी-जल्दी थकान होने पर इस उपरत्न का उपयोग करने से लाभ होता है. यह उपरत्न मुख्य रुप से धारक को ऊर्जा, शक्ति तथा सुरक्षा प्रदान करने वाला होता है. यह उपरत्न धारक को खुले रुप से दूसरों के साथ संवाद करने में मदद करता है. विचारों को इमानदारी से व्यक्त करता है. जिन्हें निर्णय लेने में कठिनता का अनुभव होता है या जो दुविधा की स्थिति में अधिक रहते हैं उनके आत्म-विश्वास में यह उपरत्न वृद्धि करता है.

    इस उपरत्न के प्रतिक्रियात्मक गुण इसे अदभुत बनाते हैं. यह ध्यान लगाने में सहायक होता है. प्राचीन समय में इन्का जाति के लोग इस उपरत्न का उपयोग ध्यान तथा योग लगाने में करते थे. यह शारीरिक सहनशक्ति तथा बल में वृद्धि करता है. बुद्धि को सही दिशा में ले जाकर धारक को विचारों को बुद्धिमत्ता पूर्वक लागू करने में सहायक होता है. धारक की धन-सम्पत्ति बढा़ने में यह उपरत्न सहायक होता है. यह विचारों को अभिव्यक्त करने की आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है.

    यह उपरत्न धारक के प्रभामंडल से नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर उसके ध्यान को केन्द्रित करने में मदद करता है. इस अदभुत धात्विक उपरत्न के धारण करने से जातक में मानसिक स्थिरता रहती है. उसमें तर्क करने की क्षमता का विकास होता है. धारक चीजों का विश्लेषण करने में कामयाब रहता है. यह उपरत्न धारक को ऎसे मोड़ पर लाता है जहाँ पर वह अपनी एक अलग धारणा स्थापित कर सके.

    पाइराइट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Pyrite Crystals

    यह उपरत्न धारक के भीतर आक्सीजन को रक्त तक पहुंचाने में सहायता करता है. यह आक्सीजन की मात्रा में वृद्धि करने में सहायक होता है. संचार तंत्र को बल प्रदान करता है. यह फेफडो़ के लिए लाभदायक होता है. जिन व्यक्तियों को अस्थमा अथवा दमे की शिकायत रहती है उनके लिए यह उपरत्न अत्यंत फायदेमंद है. यह उपरत्न अनियंत्रित हार्मोन्स को नियंत्रित रखने में सहायक होता है. महिलाओं की माहवारी को नियंत्रित रखता है.

    यह उपरत्न धारक के भीतर पैदा हुए भ्रम को दूर करने में सहायक होता है. सूर्य पाइराइट धारक के भीतर से हर तरह का दर्द बाहर निकालने में सहायक होता है. यह उपरत्न जातक के भीतर पैदा हुए अवसाद के लक्षणों को सहजता से दूर करने में सहायक होता है. जिन व्यक्तियों को अकसर बुखार घेरे रहता है उनके लिए यह फयदेमंद उपरत्न है. यह शरीर में आई सूजन को भी दूर करता है. शारीरिक बीमारी को दूर करने के लिए इस उपरत्न को सीधा शरीर पर धारण करना चाहिए.

    इस उपरत्न में अग्नि तथा पृथ्वी तत्व की ऊर्जा मौजूद होती है. यह शरीर के मूलाधार चक्र को नियंत्रित करने में सहायक होता है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Pyrite Found

    यह उपरत्न पेरु, दक्षिण अफ्रीका, बोलीविया, इलीनोइस(Illinois), कोलोरैडो, अमेरीका के मिसूरी और न्यूयॉर्क, जर्मनी, स्पेन, रुस, इटली, पेन्सिल्वेनिया(Pennsylvania) आदि स्थानों में पाया जाता है.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Pyrite

    इस उपरत्न को सभी व्यक्ति अपनी जरुरतों के आधार पर धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों में असुरक्षा की भावना विद्यमान रहती है उन्हें यह उपरत्न धारण करना चहिए. इस उपरत्न में सल्फर की मात्रा होती है जो कई बार त्वचा के लिए हानिकर सिद्ध होती है. इसलिए इसे धारण करने में सावधानी बरतनी चाहिए. अधिक समय तक इस उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

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