सूर्य और शनि युति : विरोध और संघर्ष का करना पड़ता है सामना

जब दो ग्रह एक ही राशि में होते हैं तो युति योग का निर्माण करते हैं, जिससे कुंडली पर इनका गहरा असर पड़ता है. यह संयोग अक्सर भाग्य पर अचानक होने वाले और अनिश्चित प्रभाव डालता है, जिससे आपकी कुंडली में सबसे विशेष तरीके से बदलाव आते हैं. इसी योग में सूर्य-शनि युक्त का युति योग, करियर, धन समृद्धि, सामाजिक स्थिति एवं संबंधों के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन पर गहरा असर डालता है. ये संबंध कौशल, अनुभव और प्रबंधन यह जीवन में सफल होने के अवसर को निर्धारित करता है. ग्रहों की युति का यह दुर्लभ योग क्षमताओं को बढ़ाता है और सफलता की ओर ले जाने वाला एक नया मार्ग प्रशस्त करता है.

सूर्य ज्योतिष में कैसा है ? 

सूर्य, की गर्मी और प्रकाश हमें जीवन देते हैं. सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन शक्ति देती है. यह सकारात्मकता और सफलता का प्रतीक है. ज्योतिष के अनुसार, ग्रह सीधे मानव शरीर को सीधे प्रभावित करता है उसे ग्रह कहा जाता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह प्राण आत्मा को दर्शाता करता है. सूर्य की ऊर्जा व्यक्ति के जीवन को परिभाषित करती है. सूर्य साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का प्रतीक है. यह हमारे सौर मंडल में सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है और वैदिक ज्योतिष में एक विशेष महत्व रखता है.

सूर्य कभी भी वक्री नहीं होता है क्योंकि सूर्य के चारों ओर सब कुछ उसके चारों ओर घूमता है. ज्योतिषीय महत्व में, सूर्य को अपनी यात्रा पूरी करने में बारह महीने लगते हैं और प्रत्येक ज्योतिषीय राशि में लगभग एक महीना रहता है. ज्योतिष में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों में से एक ग्रह माना गया है. यह व्यक्ति की आत्मा और पितृत्व चरित्र को दर्शता है. सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी ग्रहों की ताकत और व्यक्तियों पर उनके प्रभाव को निर्धारित करती है. कुंडली के अनुसार सूर्य पितरों को भी नियंत्रित करता है. यही कारण है कि यदि सूर्य का युति योग एक से अधिक अशुभ या अशुभ ग्रहों से होता है तो कुंडली में पितृ दोष का निर्माण होता है. 

शनि ज्योतिष में क्या है ? 

हिंदू ज्योतिष के अनुसार शनि का नाम उनके स्वभाव के अनुसार रखा गया है. शनि का अर्थ है जो धीरे-धीरे चलता है. एक राशि को पार करने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगता है. शनि एक विशाल ग्रह है और यह पृथ्वी से बहुत दूर है. अपने विशाल कद के कारण, यह धीरे-धीरे चलता है. वह सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. शनि का अपने पिता सूर्य के साथ एक तनावपूर्ण संबंध है. यह एक ठंडा और शुष्क ग्रह भी है. यह वृद्धावस्था का ग्रह है और ज्योतिष में पाप ग्रह माना जाता है. 

शनि यदि शुभ भाव में स्थित होता है, तब वह जातक को सभी वस्तुओं और समृद्धि को प्रदान करता है. विपरीत परिस्थितियों में, वह दर्द, दुःख और कष्ट देता है. शनि को सप्तम भाव में बल मिलता है. शनि एक शिक्षक और बहुत सख्त ग्रह हैं. यह ऐसे सबक सिखाएगा जिनका जीवन पर गहरा असर होता है. मेहनत और समर्पण के द्वारा ही शनि की कृपा प्राप्त होती है. 

शनि व्यक्ति की ताकत, दृढ़ता और विश्वसनीयता को परखता है. शिक्षा के अलावा, वह न्याय के देवता हैं और पवित्रता के मार्ग के खिलाफ जाने और बुराई करने वालों को दंडित करते हैं. शनि  हड्डियों को प्रभावित करता है. शनि देव के अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति जीवन भर हड्डियों के रोग से पीड़ित रह सकता है. अंक 8 का संबंध शनि से है. शनि और कर्म साथ-साथ चलते हैं, और एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में शनि की साढ़े साती नामक एक चरण के साथ शनि देव के साथ कठिन समय व्यतीत करता है. 

सूर्य और शनि का कुंडली में एक साथ होना 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और शनि का संबंध पिता और पुत्र के रुप में है. यह दोनों अपने संबधों के कारण एक-दूसरे के साथ लगातार संघर्षशील भी दिखाई देते हैं. यदि शनि सूर्य के 9 अंश के भीतर होता है तो शनि अस्त होने के कारण अपने प्रभाव को कम दर्शाता है. यदि ये दोनों लगभग 14 डिग्री के अंतर में एक दूसरे से अलग हैं, तो वे मुश्किल से एक दूसरे पर कम प्रभाव डालते हैं. आइए जानते हैं ज्योतिष में सूर्य शनि की युति होने के परिणाम कैसे असर डालते हैं.

सूर्य और शनि का युति योग होने पर व्यक्तिअपने पिता के साथ या अपने वरिष्ठ लोगों के साथ अच्छे सौहार्दपूर्ण संबंधों का कम ही आनंद ले पाता है. रिश्ते में लगाव हो सकता है किंतु तर्क अधिक दिखाई देते हैं. एक दुसरे के साथ जब बातचीत करते हैं तो उस बात में जल्द ही विरोधाभास दिखाई देने लगेगा. विवाद अधिक देखने को मिलता है, जो दोनों को परेशान करता है. मतभेद पैदा हो सकते हैं. पिता के प्रति प्यार है लेकिन इसे खुलकर व्यक्त करना मुश्किल होता है. दोनों के बीच संघर्ष का कारण कोई भी घटना हो सकती है. 

यदि पिता और पुत्र एक ही छत के नीचे रहते हैं तो दोनों को कष्ट होता है. दोनों के जीवन में प्रगति बाधित हो सकती है. विकास रुक जाता है और करियर बाधित हो जाएगा. सफलता उनके जीवन में देर से अधिक परिश्रम द्वारा आती है. नीची जाति के लोगों से, और नौकरों से और अधिकारियों या सरकारी कर्मचारियों से परेशानी रहती है. सरकार से संबंधित कार्य कभी भी एक बार में पूरा नहीं होता है, यह युति योग्यता पर भी सवाल उठाती है और उसके आत्मविश्वास को कमजोर भी करती है. यदि इस युति का कोई शुभ प्रभाव न हो तो जिस घर में सूर्य और शनि हों वह भाव अनुकूल नहीं रह पाता है. 

सूर्य और शनि युति का सकारात्मक प्रभाव

संबंधित ज्योतिष घरों में सूर्य और शनि की युति के प्रभाव में, व्यक्ति सही और गलत के बारे में दृढ़ विचार रखता है. सरकारी एजेंसियों और संगठनों के लिए काम कर सकता है. करियर के मामले में विशेष रूप से कानून क्षेत्र या सरकारी कार्यालय में सफल हो सकते हैं. कंपनी के सीईओ के रूप में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. अपनी उम्र से अधिक परिपक्व दिखाई देंगे. बिना किसी बाध्यता के अपने कार्यों का स्वामित्व लेते हैं. काम पर वरिष्ठों के प्रति अपने दृष्टिकोण में बहुत अनुशासित और अपने काम के प्रति समर्पित रहते हैं. प्रबंधन और नेतृत्व में अच्छी विशेषता मिल सकती है.

सूर्य और शनि युति का नकारात्मक प्रभाव

व्यक्ति जिम्मेदारियों से अधिक ब्म्धा रह सकता है. यदि चतुर्थ भाव में सूर्य और शनि की युति हो तो अपने परिवार की जिम्मेदारियों से बंधे रहेंगे. यदि सूर्य नीच का है, शनि तुला राशि में है, तो  अहंकार अधिक रह सकता है. भरोसे और विश्वास को लेकर समय-समय पर परीक्षा होगी. लेकिन इससे मजबूती भी प्राप्त होती है. पिता का स्वास्थ्य प्रभावित रह सकता है, सुख में कमी या दूरी झेलनी पड़ सकती है. आपकी प्रगति में बाध अधिक रह सकती है. धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आर्थिक मामलों में पैतृक सहयोग नहीं मिल पाता है. 

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शादी से पहले कुंडली मिलान क्यों है जरूरी

शादी से पहले कुंडली मिलान करने के कारण जिनसे विवाह में नही आती बाधाएं 

ज्योतिष शास्त्र में एक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष को समझने में मदद मिलती है. इसी में एक महत्वपूर्ण चीज विवाह भी है. विवाह एक ऎसा संस्कार है जो अगर अच्छे रुप से जीवन में हो तो जीवन काफी सुखद रहता है. ऎसे में विवाह से जुड़े सुख और दुख को समझने के लिए ओर उसमें सफलता के लिए अगर ज्योतिष का सहयोग लिया जाए तो कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं.

विवाह सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है जो दो लोगों को एक बंधन में बांधता है, जीवन हर स्थिति में मदद करने वाला भी है. एक व्यवस्था जहां दो व्यक्ति, एक निश्चित उम्र तक पहुंचने के बाद, एक दूसरे के साथ बसने का फैसला करते हैं. एक पारस्परिक प्रतिबद्धता जो दो व्यक्तियों को कठिन समय में एक-दूसरे के साथ खड़े होने के लिए सहमत करती है. एक दूसरे को जीवन में बढ़ते और समृद्ध होते देखना चाहते हैं. 

विवाह संबंधों को चाहे पश्चिमी संदर्भ में देखा जाए या भारतीर संदर्भ में इनके मूल में प्रेम, स्नेह और आपसी भागेदारी पर ही विशेष रुप से काम करता है. इसके बिना कहीं भी यह रिश्ता टिक नहीं सकता है. पश्चिम संस्कृति में  शादी आमतौर पर उन लोगों के बीच होती है जो प्यार में हैं और एक-दूसरे के साथ घर बसाने का फैसला कर चुके हैं हालांकि आज भारतीर संदर्भ में भी ये बातें अधिक महत्वपूर्ण होने लगी हैं किंतु फिर भी भारतीय संदर्भ में चीजें प्रतिमान बदले हुए दिखाई दे जाते हैं. यहां धैर्य और आपसी समझ अधिक सहायक बनती है रिश्ते को लम्बा चलाने में. 

गुण मिलान एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण  

भारत में विवाह पूर्व कुंडली मिलान किया जाता है जो कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण होता है. यह विशेष रूप से विवाह की खुशी और उस से मिलने वाले सुख को दिखाने में सहायक बनता है. आज भी अरेंज  मैरिज और यहां तक की लव मैरिज में भी लोग इसे देखने में जिज्ञासु दिखाई देते हैं. 

ज्योतिष विज्ञान गणना का एक ज्ञान, जो भविष्य को देखने के लिए “नेत्र” के रूप में कार्य करता है, ग्रंथों, वेदों द्वारा दिया गया एक विशेषण है. इसमें कुंडली मिलन एक लड़के और लड़की के भविष्य का पता लगाने का एक बेहतर तरीका बनता है. इसके द्वारा वैवाहिक आनंद और संघर्ष दोनों ही बातों को आसानी से समझा जा सकता है. कुंडली मिलान या मंगनी की बात करते हैं, तो इसके लिए सबसे लोकप्रिय विधि को अष्टकूट मिलान कहा जाता है. कुंडली के वह आठ नियम हैं जिनमें अष्ट कूट मिलान होता है.

गुण मिलान 

कुंडली मिलन में, 36 गुण देखे जाते हैं जिन्हें एक सुखी वैवाहिक जीवन की समझने के लिए देखा जाता है. इन 36 गुणों का एक अलग गुण है जो व्यक्ति के जीवन में परिलक्षित होता है. इन 36 बिंदुओं को अष्टकूट मिलान प्रणाली में उपयोग किया जाता है. ये गुण जितने अधिक मेल खाते हैं, वैवाहिक जीवन उतना ही बेहतर होता है. कुंडली मिलन में सबसे महत्वपूर्ण गुण यौन अनुकूलता, भावनात्मक अनुकूलता माना गया है. 

आर्थिक स्थिति एवं समृद्धि का विवेचन 

जब दो अलग-अलग कुंडली का मिलान किया जाता है, तो उन्हें विवाह के बाद एक माना जाता है. कुंडली मिलान में, जब कुंडली मिलान किया जाता है, तो दो लोगों को एक इकाई माना जाता है और अष्टकूट मिलान प्रणाली के अनुसार इसे समझ अजाता है. दो लोग एक दूसरे के जीवन का समर्थन करने के का प्रभाव. यह वित्तीय मोर्चे पर स्थिरता लाने के तरीकों में से एक है. जैसा कि कहा जाता है कि सिर्फ प्यार से कोई भी सुखी जीवन नहीं जी सकता, घर चलाने के लिए आपको पैसों की जरूरत होती है. इसी तरह, दो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन और अपने परिवारों के लिए वित्तीय समृद्धि लाते हैं. इसमें कोई भी कमी रिश्तों पर कष्ट ला सकती है. यहां पर दोनों के धन भाव लाभ की स्थिति को देखना और अन्य शुभ योगों का प्रभाव देखना भी शुभ होता है. 

वंश वृद्धि योग विश्लेषण 

कुंडली मिलान संतान उत्पत्ति के प्रशनों के लिए भी देखा जाता है. संतान की इच्छा परिवार के वंश को जारी रखने को भी दर्शाती है. जब विवाह मिलान होता है, तो सबसे महत्वपूर्ण चीज जो जांच की जाती है वह संतान से संबंधित सुख का भी होता है और यदि यह सभी समस्याओं से मुक्त होता है तो विवाह सुखमय स्थिति को पाता है. कुंडली मिलन के जरिए परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ नवजात के स्वास्थ्य की भी जांच की जाती है. बच्चे के जन्म के साथ ही, बच्चे का स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण होता है.  इसलिए, कुंडली मिलान में इस बिंदु को उचित महत्व दिया जाता है. 

कुंडली में बनने वाले योग-दोष  

कुंडली में मौजूद कोई भी दोष एक अभिशाप की तरह होता है. ऎसे में कुंडली मिलान के समय दोष इत्यादि को भी उचित रुप से देखने की आवश्यकता होती है. कुंडली में मंगल दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष इत्यादि बातों को देखना भी जरूरी होता है और दोष शांति के पश्चात ही इस मिलान को उचित माना जाता है. 

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सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना बनाता है साधन संपन्न

सूर्य और बृहस्पति का योग शुभस्थ स्थिति का कारक माना गया है. यह दोनों ही ग्रह बुद्धि, ज्ञान और आत्मिक विकास के लिए उत्तम होते हैं. ज्योतिष के संदर्भ में सूर्य राजा है और वहीं सष्टि में जीवन के विकास का आधार भी है. दूसरी ओर बृहस्पतिज्ञान का वह प्रकाश है जो समस्य जीवन के शुभ प्रगतिशील गुणों की वृद्धि का आधार बनता है. इन दोनों के एक साथ होने पर सकारात्मक संकेत अधिक दिखाई देते हैं जो जीवन को आगे बढ़ने हेतु अत्यंत उपयोगी होते हैं. 

सूर्य – सूर्य का महत्व वेदों में सबसे अधिक मिलता है. यदि वेद रचनाओं को समझें तो सूर्य की महत्ता अत्यंत ही विशेष रही है. सूर्य का संबंध जीवन के प्राण तत्व से जुड़ा है. सूर्य का प्रकाश जितना जीवन की ऊर्जा के लिए उपयोगी है उतना ही ये विकास क्रम में भी उपयोगी होता है. सभी ग्रहों का राजा होकर सूर्य नेतृत्व का गुण अच्छे से निभाता है. 

बृहस्पति – बृहस्पति ग्रहों में गुररू शिक्षक की उपाधी को पाता है. बृहस्पति अपने विचारों एवंज्ञान संपदा द्वारा सभी को ज्ञान का प्रकाश देता है. यही ज्ञान प्राप्त करके उचित अनुचित जीवन सत्य एवं अन्य तथ्यों भेदों को समझा जा सकता है. बृहस्पति को सुख का विस्तार का और आध्यात्मिक ऊर्जा का आधार भी माना जाता है. बृहस्पति जीवन को आगे ले जाने में सहायक बनता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति अपने आंतरिक विकास की प्रक्रिया को समझ पाने में सक्षम होता है. 

सूर्य और बृहस्पति – कुंडली के प्रत्येक भाव में प्रभाव

प्रथम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और बृहस्पति प्रथम भाव में युति करते हैं, तो व्यक्ति अपने स्थान पर एक वरिष्ठ की भूमिका पाता है. उसका बाहरी आवरण काफी प्रभवैत करने वाला होता है समाज में वह काफी प्रतिष्ठित भी हो सकता है. न्यायिक सेवाओं में शामिल होने की उच्च संभावना होती है. उनके पास उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में उठने की उच्च संभावना है. राष्टिय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन में काम करने की बहुत संभावना है. 

दूसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

दूसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना व्यक्ति के कुटुम्ब को विस्तार देने में सहायक होता है. परिवार का आरंभिक रुप व्यक्ति को काफी अनुकूल रुप से प्राप्त हो सकता है. कद काठी भी व्यक्ति की आकर्षक हो सकती है. ईमानदार और प्रभावी वक्ता हो सकता है. स्वयं को बॉस मान सकता है, बोलने में तेज एवं माहिर होता है, इनकी आवाज में नेतृत्व के गुण होते हैं. 

तीसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

तीसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना काफी प्रभावी होता है. व्यक्ति साहस, बहादुरी और स्वाभिमान से भरा होता है. समाज में प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित हो सकता है. कुछ कठोर एवं  वे दुष्ट प्रवृत्ति का भी हो सकता है. समाज में आमतौर पर अच्छा सम्मान प्राप्त करने में सफल रहता है. 

चतुर्थ भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

चतुर्थ भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना भौतिक वस्तुओं को प्रदान करने में सहायक बनता है. बुद्धिमान भी बनाता है. समृद्ध और शानदार जीवन प्रदान करता है. सरकारी नौकरी में अच्छा स्थान मिल सकता है. अपने कार्य स्थल पर सम्मान पाते हैं. सत्ता से लाभ मिल सकता है और प्रयासों मेहनत द्वारा प्रसिद्ध भी प्राप्त कर सकते हैं. 

पंचम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

पंचम भाव में सूर्य और गुरु का एक साथ होना बौद्धिक स्थिति को अधिक प्रभावी बनाता है. अंतर्ज्ञान भी अच्छा होता है. उच्च शिक्षा प्राप्त करने में ललायित रह सकते हैं किंतु कुछ देरी का सामना भी करना पड़ सकता है. सामाजिक रुप से ये लोग एक बुद्धिमान व्यक्ति माने जाते हैं. 

छठे भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और गुरु के छठे भाव में एक साथ होना व्यक्ति को चातुर्य एवं विरोधियों का सामना करने में सक्षम बनाता है. व्यक्ति बुद्धिमान और बहादुर होता है. विभिन्न स्थितियों को संभालने और उन्हें अपने पक्ष में बदलने में कुशल भी होते हैं. शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर पाते हैं. प्रतियोगिताओं में अपना अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम होते हैं. प्रशासनिक नौकरियों में भी अच्छे हो सकते हैं. विनम्र और सामाजिक सेवा कार्यों को कर सकते हैं. 

सप्तम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और गुरु के सप्तम भाव में एक साथ होने पर यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर असर डालता है. व्यक्ति के जीवन साथी का स्वभाव कठोर या फिर हावी होने जैसा रह सकता. साझेदारी के कार्यों में अच्छा कर सकता है. जीवन साथी धार्मिक एवं नियमों का पालन करने वाला हो सकता है. व्यक्ति दयालु और उदार होता है. 

आठवें भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और बृहस्पति का आठवें घर में एक साथ होना कुछ अच्छा तो कुछ मामलों में अनुकूलता को कम करने जैसा होता है. व्यक्ति में संचार कौशल बेहतर हो सकता है. चतुराई पूर्ण कार्यों को कर सकता है. आध्यात्मिक क्षेत्र में भी काम कर सकता है. शांति और प्रसन्नता कुछ कम रह सकती है. 

नवम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

नवम भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ इस युति में होना शुभदक माना गया है. व्यक्ति को  विषयों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है. वह दूसरों को सिखाने में भी कुशल होता है. एक अच्छे शिक्षक एवं सलाहकार की भूमिका को प्राप्त कर सकता है. व्यक्ति आशावादी होता है. सकारात्मक दृष्टिकोण देने में सक्षम होता है. 

दशम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

दशम भाव में सूर्य और गुरु का एक साथ होना कार्य क्षेत्र में उपलब्धियों को प्रदान कर सकता है. समाज में अच्छा नाम और मान सम्मान  मिलता है. शक्तिशाली और अत्यधिक प्रतिष्ठित हो सकते हैं.आरामदायक और शानदार जीवन जीने में भी सफल हो सकते हैं. 

ग्यारहवें भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और गुरु का एक साथ एकादश भाव में होना इच्छाओं को पूरा करने में तथा उन्हें विस्तार देने वाला होता है. व्यक्ति जीवन में जीवन शक्ति को पाता है. आत्मविश्वास अच्छा रहता है. समाजिक रुप से मान सम्मान प्रतिष्ठा भी प्राप्त हो सकती है. दयालु और मददगार होता है. 

बारहवें भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

बारहवें भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना व्यक्ति को दयालु और परोपकारी बनाता है. धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में काम करने का अवसर प्राप्त होता है. कई बार विदेशों में रहकर धनार्जन का लाभ पाता है. विचारों में काफी जिद एवं क्रोध भी दिखाई दे सकता है. नैतिकता की कमी भी हो सकती है. 

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चिकित्सा ज्योतिष : सभी रोग और व्याधि को जान लेने का अचूक माध्यम

ज्योतिष की एक शाखा चिकित्सा शास्त्र से संबंधित होती है. चिकित्सा का संबंध केवल चरक एवं आयुर्वेद से ही जुड़ा नहीं है अपितु यह ज्योतिष में कई योगों से भी संबंधित रहा है. ज्योतिष में रोग बिमारी, दुर्घटना प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले रोग सभी कुछ स्थान पाते हैं. छोटे से छोटा रोग हो या कोई बड़ी व्याधि सभी का राज ज्योतिष में समाहित होता है. यह जीवन के अच्छे बुरे सभी कष्टों को जानने का आसान तरीका होता है. सेहत की स्थिति एक जटिल यात्रा होती है जिसमें  है, और इसके अच्छे और बुरे चरण को समझने में ज्योतिष काफी सहायक बनता हैं. 

व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर तथा अपनी आदतों के कारण ही शरीर में रोग इत्यादि की स्थिति को झेलता है. जीवन के रूप में, कोई कभी नहीं जानते कि अगले पल में क्या सामना करना पड़ सकता है, लेकिन ज्योतिष इन बातों को समझने में भी सहायक होता है. इस बीच, चुनौतीपूर्ण घटनाएं जीवन को भ्रमित और दुखी कर देती हैं. चिकित्सा में रोग समस्याएं एक ऐसी चीज है जो बहुत अधिक तनाव और धन हानि दे सकती है. एक स्वस्थ जीवन की इच्छा को ज्योतिष द्वारा समझा जा सकता है. कभी-कभी हम खराब जीवन शैली के कारण अपने जीवन के साथ जोखिम को देख पाते हैं. 

चिकित्सा समस्याएं हमें तनाव देती हैं, साथ ही मानसिक कष्ट आर्थिक हानि तथा कई तरक की समस्याएं देती हैं. एक सक्रिय मेडिकल उपचार अगर ज्योतिष में देखा जाए तो कई तरह से सहायता देता है. एलोपैथिक दवा हमेशा किसी न किसी तरह के दुष्प्रभाव के साथ आती है ऎसे में लोग उपचार के प्राचीन तरीकों के बारे में अधिक अपनाते हैं और वे बहुत प्रभावी भी हैं. वैदिक ज्योतिष आपके शरीर को समझने का एक बेहतरीन तरीका है, और यह संभावित चिकित्सा मुद्दों को भी बता सकता है. यह आपको यह भी बता सकता है कि आपके शरीर में ये रोग कब प्रकट होंगे. यह एक प्राचीन विज्ञान है जो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को देखकर लोगों की समस्याओं का समाधान करता है.

चिकित्सा ज्योतिष क्यों होती है विशेष 

चिकित्सा ज्योतिष के अनेकों योग हमें देखने को मिलते हैं जो सफलता पूर्वक व्यक्ति को रोग से होने वाले प्रभावों से सूचित कर सकते हैं. यदि रोग के बारे में पहले से ही पता चल जाए तो यह स्थिति काफी राहत देती है. हमें कश्ट और नुकसान को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय भी देने में सहायक हो सकती है. यह ज्योतिष विज्ञान समय पर रोग का पता लगाकर और उससे संबंधित उपाय करके सही समय पर सही सहायता प्रदान कर सकता है. कुंडली में जीवन की सभी घटनाओं का प्रभाव दे सकती है. यदि पहले से इसके प्रति सचेत हैं, तो हम आने वाली कई आपदाओं से बच सकते हैं.

चिकित्सा ज्योतिष ज्योतिष की एक शाखा है बहुत विकसित है और इसे समझने के लिए काफी उपयोग होता है. यह क्षेत्र केवल स्वास्थ्य संबंधी मामलों से संबंधित ही नहीं है बल्कि जीवन को समझने और उचित रुप से आगे बढ़ने में भी सहायक होता है. ज्योतिष चिकित्सा कुंडली में राशियों और ग्रहों के परिवर्तन और गणना पर आधारित होती है. यह निर्धारित करना कि किसी व्यक्ति के जीवन में कोई रोग कब प्रवेश कर सकता है और उस व्यक्ति के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह चिकित्सा ज्योतिष की गणनाओं के अंतर्गत आता है.

स्वास्थ्य की स्थिति की जांच के लिए जन्म कुंडली की गणना में नक्षत्र, राशि, ग्रह की जांच करना बहुत जरूरी है. इसलिए यह आसानी से कहा जा सकता है कि चिकित्सा ज्योतिष हमारे जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है.

चिकित्सा ज्योतिष में  छठा, आठवां, बारहवां भाव 

कुंडली में छठा भाव बीमारी का मुख्य स्थान होता है. इस भाव को रोग भाव भी कहा जाता है. हर प्रकार के रोग को जानने के लिए इस भाव का अध्ययन करना बेहद जरूरी होता है. अष्टम भाव वातावरण में अचानक हुए बदलाव और जातक को किसी सर्जरी या मृत्यु का सामना करना पड़ता है या नहीं, यह दर्शाता है. अंत में, 12 वां घर चिकित्सा मुद्दों के माध्यम से अस्पताल में भर्ती और नुकसान को दर्शाता है.

छठे, आठवें और बारहवें भाव की दशा में शारीरिक समस्याएं आएंगी. फिर भी, कुंडली में वादा बहुत महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, कुंडली को कमजोर स्वास्थ्य दिखाना चाहिए; फिर, छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी की दशा के दौरान केवल शारीरिक मुद्दे ही सामने आएंगे.

स्वास्थ्य में ग्रह और उनका प्रभाव 

सूर्य 

हृदय, जीवन शक्ति, दृष्टि और आंखों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं. सूर्य खराब होने पर जातक का आत्म-सम्मान कम होगा और उसे अपने दिल का ख्याल रखना होगा.

बुध

जीभ, हाथ, बाल, फेफड़े और नाक से संबंधित समस्याएं. बुध तंत्रिकाओं को इंगित करता है, इसलिए जटिल बुध वाले व्यक्ति के लिए नर्वस ब्रेकडाउन से गुजरना स्वाभाविक है.

शुक्र

आंतरिक अंग, त्वचा का रंग, अंडाशय, तंत्रिका तंत्र, फैलाव संबंधी समस्याएं. शुक्र वीर्य का कारक होता है, इसलिए शुक्र शुक्राणुओं से संबंधित परेशानी का संकेत दे सकता है.

मंगल 

बाहरी अंगों, सिरदर्द, यकृत, गतिशीलता और पाचन तंत्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं. एक जटिल मंगल क्रोध के मुद्दों और ऊर्जा की कमी को भी इंगित करता है.

बृहस्पति

कूल्हों, पैरों और जांघों से संबंधित समस्याएं. यदि गुरु खराब हो तो जातक को जीवन शैली के बदलने पर रोग हो सकते हैं.

शनि

सुनने, जोड़ों का दर्द, दांत और त्वचा की समस्याएं, शनि हमेशा जोड़ों से संबंधित समस्याओं की ओर संकेत करता है. यदि शनि नीच का हो तो जातक को लंबे समय तक जोड़ों का दर्द रहेगा.

राहु और केतु

राहु और केतु भ्रम का रोग, विषाक्तता के रोग, संदेह करना, कैंसर, गंभीर लाईलाज बिमारी राग्य का संकेत देता है

वैदिक ज्योतिष : रोग का पता लगना 

चिकित्सा ज्योतिष स्वास्थ्य को बेहतर रुप से समझने के लिए जाना जाता है. ऋषियों द्वारा इसका उपयोग किया गया है. प्राचीन काल में ऋषियों ने लोगों की मदद के लिए वैदिक ज्योतिष  का सहारा लिया. जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार की बीमारियों को पहले से ही जान लिया जाना आसान होता था.  मानसिक अवसाद, दृश्य हानि, श्रवण दोष और पेट के रोग त्रिदोष विकार आसानी से पता चल जाते रहे हैं.  ज्योतिष गणना से प्राप्त तथ्य किसी भी कुंडली में निहित स्वास्थ्य समस्या का अनुमान लगाने में मदद करते हैं. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि कोई मरीज पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है. ऐसे में उसका लग्न समस्याओं के निदान और समाधान में प्रमुख भूमिका निभाता है.

जन्म कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति को देखकर स्वास्थ्य को बता सकते हैं. स्वास्थ्य की स्थिति देखने के लिए अन्य वर्ग कुंडलियां भी होती हैं. उदाहरण के लिए मान लीजिए लग्नेश प्रथम और ग्यारहवें भाव में पीड़ित है. फिर, इस स्थिति में, हम बुरे परिणामों की अपेक्षा कर सकते हैं. चिकित्सा विज्ञान व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है. छठे स्वामी की स्थिति हमारे शरीर के सबसे कमजोर स्थिति को दर्शाती है. इसलिए, छठे स्वामी का स्थान, दृष्टि और युति को देखना बहुत महत्वपूर्ण होता है. राहु केतु के माध्यम से शरीर में कमजोर अंगों का संकेत प्राप्त हो सकता है. राहु केतु से जो भी ग्रह और भाव प्रभावित होते हैं उनमें कुछ कमजोरियां होंगी. इन भावों और ग्रहों से संबंधित शरीर के अंगों में भी वह कमियां और कमजोरी देखी जा सकती हैं. 

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राहु आपकी कुंडली के हर भाव पर कैसा ड़ालता है अपना प्रभाव

राहु को ज्योतिष में एक छाया ग्रह का स्थान प्राप्त है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्वपूर्ण अर्थ है क्योंकि यह एक व्यक्ति के पिछले जन्मों की व्याख्या करता है. जीवन में जुनून और लक्ष्यों को दर्शाता है. 


प्रथम भाव में राहु का होना 

प्रथम भाव या लग्न का भाव है. यह आंतरिक और बाहरी आवरण दोनों में, जातक के समग्र व्यक्तित्व से जुड़ा होता है. यह मुख्य रूप से व्यक्ति का सिर, शारीरिक बनावट, चरित्र, स्वभाव, ताकत और कमजोरियों का प्रतिनिधित्व करने वाला स्थान होता है. प्रथम भाव में राहु की उपस्थिति आमतौर पर जातक को अच्छे परिणाम देती है. जातक अचानक धन भी मिलता है. राहु चतुराई और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इस स्थान वाले जातक को राहु के इस गुण का लाभ मिलता है. 


दूसरे भाव में राहु का होना 

वैदिक ज्योतिष में द्वितीय भाव का संबंध मुख्य रूप से परिवार और संपत्ति को दिखाता है. व्यक्ति में कमाई का हुनर ​​और क्षमता अच्छी होती है. इस घर से वाणी और भोजन का सेवन भी देखा जाता है क्योंकि यह कंठ का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति इन चीजों से प्रभावित होता है चीजों को हासिल करने के लिए तरसता है. धन, भोजन, कीमती सामान, ज्ञान, खजाने आदि को पानेकी तीव्र इच्छा होती है. 


तीसरे भाव में राहु का होना 

तीसरा भाव आत्म-अभिव्यक्ति, भाई-बहन, रिश्तेदार, पड़ोसियों और वातावरण से जुड़ा होता है. साहस, छोटी यात्राओं या भागदौड़ आदि का भी प्रतीक होता है. तीसरा घर मिथुन राशि का भी है जो राहु की मित्र राशि है जो संचार, कंप्यूटर से संबंधित और तकनीकी क्षेत्रों को भी दर्शाता है. ऎसे में राहु यहां पर संचार और मीडिया से जुड़े क्षेत्रों में लाभ दिला सकता है. 


चतुर्थ भाव में राहु का होना 

चौथा भाव बचपन, माता, प्रेम, पोषण, घर, अचल संपत्ति, प्रारंभिक बचपन और जिस तरह से वे अपने परिवार के साथ व्यवहार करने की संभावना रखते हैं, को दर्शाता है. राहु का यहां होना व्यक्ति को अपने परिवार और घर की संस्कृति में अधिक दिलचस्पी होती है और वह घर, जमीन और संपत्ति के मालिक बनने की इच्छा भी रखता है. राहु विदेशी चीजों का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए यह व्यक्ति को जीवन में बहुत आगे बढ़ा सकता है.


पंचम भाव में राहु का होना 

कुंडली का पंचम घर बुद्धि का घर है. यह भाव दर्शाता है कि कैसे रचनात्मक रूप से खुद को व्यक्त करना चाहिए. मित्र, प्रेम, संतान और राजनीति के ज्ञान से भी जुड़ा स्थान है. इस घर में राहु ग्रह की उपस्थिति रचनात्मकता, सामाजिक स्थिति और सेलिब्रिटी बना सकती है. ज्यादातर राजनीतिक क्षेत्र में. केंद्र स्तर पर ले जाने वाली भी होती है. 


छठे भाव में राहु का होना 

कुंडली का छठा स्थान संघर्षों, युद्ध, रोग, शत्रुओं का घर होता है. व्यक्ति मानवता के लिए किस प्रकार से काम कर सकता है यहीं से देखा जाता है. व्यक्ति किस प्रकार समाज के लिए फलदायी होने वाला है. राहु के लिए छठा घर अच्छा और सकारात्मक स्थान माना जाता है. यहां व्यक्ति प्रभुत्व से जुड़े विशेषाधिकारों का लाभ दिला सकता है. व्यक्ति संघर्षों को समझदारी से, निष्पक्ष रूप से और कुशलता से निपटने में माहिर होते हैं.


सातवें भाव में राहु का होना 

कुंडली का सातवां घर विवाह, व्यापार साझेदारी, यौन संबंध, कानूनी बंधनों का स्थान भी है. यह व्यक्ति के स्वयं के सार्वजनिक जीवन की तरह अन्य लोगों का भी प्रतिनिधित्व करता है. इस भाव में राहु की उपस्थिति बहुत शुभ नहीं मानी जाती है. यह व्यक्ति को ऐसे लोगों से घिरा बनाता है जो मिलनसार लगते हैं लेकिन वास्तव में भरोसेमंद नहीं होते हैं. विवाह और अन्य साझेदारियों में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है जिसके परिणामस्वरूप आसपास शत्रु पैदा हो सकते हैं. 


आठवें भाव में राहु का होना 

कुंडली का आठवां घर आयु, अचानक होने वाली घटनाओं, विवाह सुख, कॉर्पोरेट संसाधनों और विरासत में मिली संपत्ति या धन का प्रतिनिधित्व करता है. यह कर, मन के विचार, रहस्यवाद, मृत्यु और पुनर्जन्म से भी संबंधित होता है. जैसे छिपे हुए मामलों का भी घर है. इस घर में राहु रहस्य से संबंधित होता है. यह उन क्षेत्रों में लाभ दिला सकता है जिसमें जोखिम शामिल हो, जैसे कि एक शेयर मार्किट, जुआ, लॉटरी इत्यादि इसके अलावा जासूसी, खुफिया विभाग अधिकारी, गुप्त खोजी रुप में आगे बढ़ा सकता है. 


नवम भाव में राहु का होना 

कुंडली का नवां घर भाग्य, धर्म, अध्यात्म, शिक्षकों का घर होता है, कानून और पिता का स्थान भी माना जाता है. यह तीर्थयात्रा, लंबी यात्राओं का भी प्रतीक बनता है. नवम भाव में राहु व्यक्ति को काफी अलग विचारधारा दे सकता है. धार्मिक और उच्च शिक्षा के प्रति झुकाव को इंगित कर सकता है और राहु की उपस्थिति चीजों के प्रति जुनून पैदा करती है. व्यक्ति को जीवन में उच्च ज्ञान पाने की ललक अधिक रह सकती है. 


दसवें भाव में राहु का होना 

कुंडली में दसवें घर को करियर या व्यवसाय का घर कहते हैं. यह दर्शाता है कि क्या व्यक्ति अपने जीवन में प्रसिद्धि और भव्य सफलता प्राप्त कर पाएगा या नहीं. यह घर भी पिता के लिए देखा जाता है. राहु ग्रह का इस स्थान में होना व्यक्ति के लिए अनुकूल माना जाता है क्योंकि यह ज्यादातर अच्छे परिणाम प्रदान करता है. व्यक्ति को एक कार्यशील व्यक्तित्व बनाता है. व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण के माध्यम से अपने करियर की ऊंचाइयों तक पहुंचने की क्षमता रखता है. 


ग्यारहवें भाव में राहु का होना 

एकादश भाव को लाभ, अचानक धन लाभ का सूचक माना गया है. यह समृद्धि, आय और अच्छी संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है. यह वह घर भी है जो किसी के सामाजिक दायरे को दर्शाता है.

भौतिक दृष्टि से राहु एकादश भाव में उत्तम स्थान है.  यह स्थान व्यक्ति को सामाजिक समूहों और दोस्तों में समान रुचियों वाले लोगों के साथ जोड़ने पर बहुत जोर देता है.


बारहवें भाव में राहु का होना

कुंडली का 12वां घर रहस्यों, आशंकाओं, अवचेतन मन और एकांत स्थानों का होता है. यह जीवन की भौतिकवादी इच्छाओं से मुक्ति और अलगाव का भी प्रतिनिधित्व करता है और आध्यात्मिकता के प्रति मजबूत झुकाव को दर्शाता है. बारहवें भाव में राहु ग्रह के शुभ प्रभाव के तहत, यह व्यक्ति को अस्पताल, जेल या किसी विदेशी भूमि जैसे अलग-थलग स्थानों से लाभ प्रदान करने की संभावना देता है. राहु का यहां होना ज्यादातर व्यक्ति को अशुभ प्रभाव देती है. 

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नाड़ी दोष क्या होता है और इसका प्रभाव जीवन पर कैसे पड़ता है

ज्योतिष शास्त्र विज्ञान पर आधारित शास्त्र होता है. इन्हीं पर आधारित होता है हमारे जीवन का सभी फल इसी में एक तथ्य नाड़ि ज्योतिष से जुड़ा है. नाड़ी दोष विशेष रुप से कुंडलियों के मिलान के समय पर अधिक देखा जाता है. नाड़ी का प्रभाव एक दूसरे को कैसे प्रभावित करेगा इसे समझ कर ही विवाह के फैसले लिए जाते हैं. विवाह का रिश्ता कितना मजबूत होगा इसे जानने के लिए ज्योतिष है.

विशेष रूप से जब एक हिंदू विवाह को अंतिम रूप दिया जाता है, तो होने वाले वर और वधू की कुंडलियों का मिलान किया जाता है. यह देखने के लिए किया जाता है कि क्या दोनों के विचार और भावनाएं मेल खाती हैं. दोनों कुंडलियों की छत्तीस गुणों के लिए जांच की जाती है. नाडी गुना 36 में से आठ गुण प्राप्त करता है. यह अधिकतम संख्या में गुण हैं जो नाडी कूट के पास हो सकते हैं.

एक सुखी वैवाहिक जीवन दो लोगों का मिलन है जो अपने जीवन को अच्छे ढंग से जीने का निर्णय लेते हैं. इस साझेदारी में, उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है चाहे बाहरी हो या आंतरिक. बाहरी बाधाओं से निपटना आसान है. किसी के समर्थन और समझ के साथ, इसे हल किया जा सकता है. लेकिन आंतरिक बाधाओं के लिए बहुत धैर्य और भाग्य की आवश्यकता होती है. विश्वास की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि जीवन में हमेशा अनुकूल स्थिति नहीं होती है. कभी-कभी भाग्य एक सुखी विवाह में बाधा डालता है और इसे कष्ट् में बदल देता है.

नाडी दोष क्या है?
नाड़ी दोष एक बहुत ही गंभीर दोष है जो दो व्यक्तियों के वैवाहिक जीवन में कई समस्याएं पैदा करने में सक्षम हो सकता अन्य, दोष तब होते हैं जब भागीदारों की नाड़ी समान होती है. जैसा कि हिंदू ज्योतिष द्वारा कहा गया है, शादी के लिए एक आदर्श मिलान तय करने के उद्देश्य से कूटों की जाँच और विश्लेषण किया जाना आवश्यक होता है. कुंडली के इन आठ कूटों में कुल 36 गुण हैं, जिनमें से नाड़ी कूट को कुंडली मिलन के इन आठ कूटों में से किसी एक को दिए गए अधिकतम अंक 8 गुण दिए गए हैं. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए एक अच्छा मिलान तय करने के लिए मुख्य कार्य नाड़ी से जुड़ा है जो बहुत महत्व रखता है. कुंडली मिलन विवाह के लिए दो लोगों की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति की अनुकूलता की जांच विशेष रुप से की जाती है.

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रस्तावित पति-पत्नी की नाड़ी अलग-अलग होनी चाहिए, कभी भी एक जैसी नहीं होनी चाहिए.इसके अलावा कई अन्य ज्योतिषीय कारक भी हो सकते हैं जो जन्म कुंडली में मौजूद होते हैं जिन्हें इस दोष की तीव्रता को कम करने या समाप्त करने के लिए प्रभावशाली माना जाता है. पर विशेष बात यही है की नाड़ी में अंतर अवश्य हो.

सुखी और संपन्न वैवाहिक जीवन के लिए पति-पत्नी की नाड़ी अलग होनी बहुत जरुरी मानी जाती है. अगर किसी दंपत्ति की नाड़ी एक समान हो तो उनकी कुंडली में नाड़ी दोष होता है. विभिन्न स्थितियों और अन्य चरों को ध्यान में रखते हुए नाड़ी दोष के नकारात्मक प्रभावों को बहुत कम किया जा सकता है. नतीजतन, अगर नाड़ी दोष है, तो इसकी कई दृष्टिकोणों से जांच की जानी चाहिए.

नाड़ी दोष वंश वृद्धि और संतान को करता है प्रभावित
यदि कुंडली में नाडी दोष होता है, तो आने वाली पीढ़ी कमजोर होगी और कोई संतान नहीं होने की संभावना भी अधिक हो सकती है. आइए नाड़ी दोष के बारे में और जानें कि यह आपके वैवाहिक जीवन को कैसे प्रभावित करता है.

नाड़ी दोष एक महत्वपूर्ण दोष है जिसमें दो लोगों के विवाह में बहुत सारी समस्याएं पैदा करने की क्षमता होती है. यह दोष दोनों विवाह के लिए तैयार लोगों की कुंडली मिलान से पता चलता है और तब होता है जब दोनों की नाड़ी समान होती है.

जब आपके जीवनसाथी के साथ आपके रिश्ते की बात आती है, तो नाडी आठ गुणों में से एक है.
कुल 36 बिंदु होते हैं, जिनमें सबसे अधिक नाड़ी होती है, यानी 8 अंक इस नाड़ी को मिलते हैं. यह दोष तब होता है जब दो लोगों की नाड़ियों के बीच विवाद होता है.

  • यदि किसी को नाड़ी दोष है तो विवाह में समस्या आ सकती है, जैसे आकर्षण की कमी या किसी भी पक्ष के लिए स्वास्थ्य समस्याएं.
  • विवाह में अलगाव और उथल-पुथल को दिखाता है.
  • संतान की समस्याओं, प्रसव के दौरान जटिलताएं भी हो सकती हैं.

नाड़ी के प्रकार
आद्य नाडी, मध्य नाडी और अंत्य नाड़ी तीन प्रकार की नाडी होती हैं. हर किसी की जन्म कुंडली उनकी नाड़ी के संबंध में चंद्रमा की स्थिति को प्रदर्शित करती है. चंद्रमा के परिणामस्वरूप, नक्षत्रों में एक नाडी शामिल होती है.

नाडी दोष के प्रकार
तीनों नाड़ियों में से प्रत्येक का नाम आद्य है. नाड़ियाँ आयुर्वेद में तीन त्रिदोषों का प्रतीक हैं.
आद्य नादि
यह नाडी के शरीर में आद्य नाड़ी के वात दोष से जुड़ी है. इससे यह पता चलता है कि एक ही नाड़ी दोष वात प्रकृति को बढ़ाता है. दंपत्ति के बच्चे को वह दोष विरासत में मिल सकता है. संतान को बचपन में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

मध्य नाडी
मध्य नाडी में पित्त दोष पाया जाता है. व्यक्ति पित्त स्वभाव के कारण क्रोध और जलन जैसी शारीरिक और मानसिक बीमारियों के अधिक शिकार होते हैं. बच्चे को उनका दोष विरासत में मिलता है यदि दोनों के पास यह नाड़ी है, तो वे प्रसव के समय पीलिया जैसी महत्वपूर्ण बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं. इसके अलावा, बच्चे को इनक्यूबेटर में रखने की आवश्यकता पड़ सकती है.

अंत्य नाड़ी
अंत्य नाडी दोष, जिसे इड़ा नाडी दोष के रूप में भी जाना जाता है, चंद्रमा द्वारा शासित होती है और कफ प्रकृति को दर्शाती है. अंत्य नाड़ी के साथ पुरुष और लड़की का विवाह इस शीतलता को बताता है. इस नाड़ी के साथ माता-पिता से पैदा हुए बच्चों में भी यह दोष होगा और कम उम्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.

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संतान जन्म से संबंधित महत्वपूर्ण ज्योतिष सूत्र

ज्योतिष शास्त्र से जानें संतान सुख में आईवीएफ और दत्तक संतान फल

बच्चों की इच्छा एवं उनके सुख को पाना दंपत्ति का पहला अधिकार होता है. विवाह पश्चात संतान जन्म द्वारा ही जीवन के अगले चरण का आरंभ होता है. विवाह जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बंधन है. लेकिन कहा जाता है कि एक बच्चा परिवार को पूरा करता है.कभी-कभी हमें बच्चे के जन्म में समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हालांकि चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के साथ, ये समस्याएं कुछ हद तक कम हो गई हैं लेकिन फिर भी ऐसे मामले हैं जहां लोगों को चिकित्सा सहायता के बाद भी सफलता नहीं मिलती है. ऐसी स्थिति में ज्योतिष मददगार हो सकता है.

किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक बच्चा उसके जीवन का आइना होता है उसका खुद का बचपन होता है बिता हुआ समय होता है. यह उन सबसे एक से सुखद अनुभवों में से एक होता है जो जीवन में उम्र भर साथ रहता है. कई को समय पर बच्चे का सुख मिल जाता है तो बहुत से लोगों को इसके लिए लम्बा इंतजार और संघर्ष भी करना पड़ता है. वहीं कुछ लोग निःसंतान भी रह जाते हैं. पर ये सब जीवन में आखिर क्यों घटित होता है ? इन चीजों को समझने के लिए बाल ज्योतिष का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. जहां सभी प्रश्नों एवं उलझनों के उत्तर मिल जाते हैं. 

ज्योतिष में अविश्वासी रखने वाला भी संतान सुख के लिए ज्योतिष की मदद लेते देखे जा सकते हैं.  बाल ज्योतिष को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है जो बच्चे के जन्म से पहले और बाद दोनो को ही दर्शाता है. ये संतान के होने तथ औसके बाद उसकी स्थिति और माता पिता को संतान से मिलने वाले सुख-दुख को दिखाती है. 

ज्योतिष में संतान प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण भाव और ग्रह

  • पंचम भाव  संतान का मुख्य घर होता है इसे संतान भाव भी कहा जाता है.
  • ग्यारहवां भाव संतान प्राप्ति और इच्छाओं का प्रतीक होता है.
  • नवम भाव बच्चे के भाग्य और उसके सुख से जुड़ा होता है. पंचम से पंचम होने के कारण विशेष होता है. 
  • बृहस्पति को संतान का कारक माना गया है. इसलिए कुंडली में बृहस्पति की स्थिति को समझना जरूरी होता है. 
  • सूर्य पंचम भाव का कारक स्वामी होता है.
  • मंगल गर्भाधान की स्थिति को दिखाता है स्त्री में रज का कारक बनता है. इसके साथ यह पौरुष ऊर्जा है जो प्रजनन के लिए आवश्यक है.
  • शुक्र वीर्य का कारक होता है जो संतान के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है. साथ ही यह स्त्री के यौन अंग को इंगित करता है और साथ ही यह पुरुष में वीर्य को. शुक्र की किसी भी प्रकार की समस्या या कमजोरी संतान के जन्म में कठिनाई का कारण बन सकती है.

अपनी कुंडली से जानिए संतान के जन्म में देरी का कारण

संतान जन्म में देरी के कारणों को व्यक्ति की कुंडली से जान सकते हैं. ज्योतिष में संतान की देरी के लिए,  कुंडली में कुछ विशिष्ट घरों और कुंडली में उन घरों में विशिष्ट ग्रहों की स्थिति को देखते हैं. 

  • कुंडली में संतान का सुख देखने के लिए पंचम भाव मुख्य भाव बनता है.
  • कुंडली का दूसरा घर और ग्यारहवां भाव बच्चों के माध्यम से लाभ और इच्छाओं को दिखाता है. 
  • कुंडली का नौवां भाव भी संतान सुख के लिए देखते हैं. 
  • कुंडली में शुक्र, सूर्य और मंगल के साथ-साथ संतान के लिए मुख्य कारक बृहस्पति की स्थिति को देखा जाता है. 
  • कर्म सिधांत के अंतर्गत पूर्व जन्म में गलत कर्म होना और नाड़ी दोष भी बच्चे के जन्म में देरी के लिए जिम्मेदार होते हैं. 

ज्योतिष आपको बच्चे के जन्म में देरी के ऐसे सभी कारण बता सकता है. इसके बाद आता है कि बच्चे के लिए गर्भधारण की योजना कब बनानी चाहिए. 

आईवीएफ संतान सुख 

संतान के जन्म में देरी परिस्थितियों या ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकती है. लेकिन आज के समय में, करियर या यहां तक ​​कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बहुत अधिक ध्यान भी अपनी प्राकृतिक प्रक्रिया में बच्चे के जन्म में देरी का कारण बनता जा रहा है लेकिन यह स्थिति भी ग्रहों द्वारा प्रभावित होती है. कई मामलों में किसी भी कारण से अपने संतान जन्म में दिक्कत आने पर आईवीएफ जैसे तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. यहां भी, एक विशेषज्ञ ज्योतिष विश्लेषण आईवीएफ की योजना बनाने के लिए एक उचित समय को बता कर मार्गदर्शन कर सकता है. जन्म कुंडली के अनुसार आईवीएफ के लिए सबसे अच्छी तारीख को जान सकते हैं.

आपकी कुंडली में दत्तक संतान प्राप्ति योग 

लेकिन जब विज्ञान भी सहायक नहीं बन पाता है और बच्चा गोद लेना पड़ सकता क्योंकि  कभी-कभी, बच्चे को गोद लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. किसी भी कारण से बच्चे को गोद लेना अपने बच्चे को प्राप्त करने में विफलता का कारण हो सकता है. लेकिन किसी को यह समझना चाहिए कि यदि कुंडली के कारकों ने संतान से वंचित करने में अपनी भूमिका निभाई, तो क्या संतान को गोद लेना एक अच्छा निर्णय हो सकता है. ज्योतिष शास्त्र में, यदि हम बच्चे के जन्म की संभावना की समीक्षा करने के लिए पंचम भाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो दत्तक संतान की समीक्षा के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, यह देखने के लिए कि क्या बच्चा गोद लेना आपके लिए एक अच्छा विकल्प होगा.

संतान सुख प्राप्ति कारक 

पंचम भाव और पंचम भाव का स्वामी किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए.

राहु, केतु, शनि जैसे पाप ग्रहों को पंचम भाव में नहीं होना चाहिए

बुध को भी संतान प्राप्ति के लिए बहुत शुभ नहीं माना जाता है, इसलिए बुध की स्थिति का आकलन सावधानी से करना चाहिए.

पंचमेश लग्न में या सप्तम में हो तो संतान सुख की भविष्यवाणी की जा सकती है. 

पंचम भाव के स्वामी का दूसरे भाव में होना संतान सुख देता है. 

केंद्र भावों या त्रिकोण भावों में शुभ ग्रहों का होना संतान सुख देता है. 

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केतु क्यों है मोक्ष का कारक ? जाने सभी 12 भावों में इसके होने का फल

वैदिक ज्योतिष में केतु को अलगाव, ज्ञान, रहस्य, ध्यान और सबसे महत्वपूर्ण वैराग्य के कारक के लिए माना जाता है. केतु कर्म का प्रतिनिधित्व करता है, यह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के फल को दर्शाता है. कुंडली में केतु जहां बैठता है वह उस क्षेत्र को प्रभावित करता है जहां अपने पिछले कार्यों के बारे में फल प्राप्त करते हैं. केतु मोक्ष या ज्ञान की ओर भी झुकाव का प्रतिनिधित्व करता है. लेकिन मोक्ष तभी प्राप्त किया जा सकता है जब आप पश्चाताप कर चुके हों और पिछले कर्मों के कारण हुए दुखों का सामना कर चुके हों. कुंडली में केतु भाव जीवन का वह क्षेत्र है जहां आपको अपने प्रकाश के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए पीड़ा और कष्ट से गुजरना पड़ता है. यह वह जगह है जहां आपको भ्रमपूर्ण संतुष्टि को त्यागने की जरूरत है और भाव द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली भौतिक सुख-सुविधाओं से खुद को अलग करना होता है. 

केतु व्यक्ति को उस स्थान से अलग कर देता है जो उसके भाव स्थान से मिलने वालों फलों को दिखाता है. अगर केतु दूसरे या ग्यारहवें भाव में स्थित है, तो व्यक्ति धन से संबंधित मामलों में बहुत कम या कोई दिलचस्पी नहीं लेता है. किसी तरह, व्यक्ति जीवन के इस क्षेत्र को नियंत्रित नहीं कर पाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति धन से वंचित हो जाएगा. वह एक धनी व्यक्ति हो सकता है, लेकिन हो सकता है कि उसका अपनी संपत्ति पर नियंत्रण या आसानी से धन का लाभ न उठा पाए. ऐसा व्यक्ति अपने संसाधनों को बुद्धिमानी से निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं हो पाता है.

इस प्रकार केतु का जो भी भाव होता है वह जहां भी बैठा होता है उस स्थान में मौजूद फलों को पाने में आत्मिक रुप से संतुष्ट नही हो पाता है.  व्यक्ति की कुंडली में केतु जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है उस क्षेत्र में व्यक्ति को सबसे अधिक अनिच्छा और वैराग्य का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति उस भाव के प्रभावों से घिरा हुआ महसूस कर सकता है लेकिन फिर भी अलग नहीं हो सकता है. इस तरह से भ्रम, मानसिक अशांति और संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिस भाव से केतु ज्यादातर जुड़ा हुआ है वहां व्याकुलता और हताशा व्यक्ति को उस भाव के मामले से अलग कर देती है. उचित रुप से फल नहीं मिल पाते हैं. 

वैदिक ज्योतिष में केतु का महत्व

एक पुरानी कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिति से हुआ था. उसने स्वरभानु नाम के एक राक्षस को जन्म दिया. स्वरभानु देवों की तरह अमर होना चाहते थे. उन्होंने देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान खुद को देव के रूप में छिपा लिया. फिर छल द्वारा अमृत पिया. भगवान विष्णु ने उन्हें पहचान लिया और उन्होंने अपने चक्र से स्वरभानु का सिर उनके शरीर से अलग कर दिया.लेकिन, तब तक अमृत स्वरभानु के गले तक पहुंच गया. इसलिए, सिर वाला हिस्सा राहु के रूप में जाना जाने लगा, जबकि दूसरे आधे हिस्से को केतु कहा गया. इसी कारण केतु को मोक्ष का कारक ग्रह कहा जाता है. केतु को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ध्वज, शिखी और राहु पुंछ

जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव

प्रत्येक ग्रह अलग-अलग राशियों में अलग-अलग फल देता है. यदि आपकी कुण्डली में केतु मीन राशि में है तो वह अपनी ही राशि या स्वराशी में माना जाता है. यह अपनी मूल त्रिकोण राशि में है, यदि यह मकर राशि में है. केतु यदि वृश्चिक राशि में होगा तो मजबूत होता है केतु धनु राशि में भी उच्च का होता है. केतु वृष राशि में नीच का है. मिथुन राशि में होने पर भी यह नीच का होता है. केतु की यह स्थिति उच्च अवस्था के ठीक विपरीत होती है. नीच का केतु व्यक्ति को असहाय और अलग महसूस कराता है.

 विभिन्न भावों में केतु का प्रभाव

व्यक्ति पर केतु का प्रभाव कुंडली या जन्म कुंडली के बारह अलग-अलग भाव घर में स्थिति पर निर्भर करता है. आईये जाने इनके कुछ महत्वपूर्ण फलों के बारे में विस्तार से. 

प्रथम भाव में केतु

प्रथम भाव में केतु होने पर व्यक्ति धनवान और मेहनती होता है लेकिन उसे हमेशा अपने परिवार की चिंता रहती है. केतु प्रथम भाव में होने पर जातक के पारिवारिक संबंध के लिए शुभ या लाभकारी माना जाता है. लेकिन जब पहले घर में केतु अशुभ हो, तो सिरदर्द हो सकता है. यदि प्रथम भाव में केतु अशुभ हो तो जीवन साथी और संतान को स्वास्थ्य को लेकर परेशानी हो सकती है.

दूसरे भाव में केतु

दूसरे भाव का कारक चंद्रमा होता है जिसे केतु का शत्रु माना जाता है. यदि दूसरे भाव में केतु शुभ हो तो माता-पिता से लाभ दिला सकता है. व्यक्ति को कई अलग-अलग स्थानों की यात्रा करने का अवसर मिल सकता है और उसकी यात्रा फलदायी हो सकती है. यदि दूसरे भाव में केतु अशुभ हो तो यात्रा का अच्छा सुख नहीं मिल सकता है. यदि अष्टम भाव में चंद्रमा या मंगल हो तो जातक का जीवन कष्टमय हो सकता है या कम उम्र में ही गंभीर स्वास्थ्य समस्या होती है. 

तीसरे भाव में केतु

तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है, दोनों केतु के साथ ठीक नहीं हैं. यदि तीसरे भाव में केतु शुभ है तो यह व्यक्ति की संतान के लिए अच्छा होता है. यदि केतु तीसरे भाव में हो और मंगल बारहवें भाव में हो तो जातक की कम उमे में संतान हो सकती है. तीसरे भाव में केतु के साथ व्यक्ति को नौकरी या काम के कारण यात्रा करवाता है. तीसरे भाव में केतु अशुभ हो तो जातक को मुकदमेबाजी में धन की हानि हो सकती है. वह अपने परिवार के सदस्य से अलग हो जाता है. उसे अपने भाइयों से परेशानी हो सकती है अथवा व्यर्थ की यात्राएं अधिक करनी पड़ सकती है. 

चतुर्थ भाव में केतु

कुंडली के चौथे भव का कारक चंद्रमा होता है, यदि केतु चतुर्थ भाव में शुभ हो तो व्यक्ति को अपने पिता और गुरु के लिए भाग्यशाली माना जाता है. ऐसा व्यक्ति अपने सारे निर्णय भगवान पर छोड़ देता है. यदि चन्द्रमा तीसरे या चौथे भाव में हो तो फल शुभ होता है. चौथे भाव में केतु के साथ जातक एक अच्छा सलाहकार और आर्थिक रूप से मजबूत होता है. यदि केतु चतुर्थ भाव में खराब अवस्था में हो तो व्यक्ति  को स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो सकती है, इससे वह दुखी हो सकता है. व्यक्ति मधुमेह, जल जनित रोगों से पीड़ित हो सकता है.

पंचम भाव में केतु

पंचम भाव का कारक सूर्य का होता है और उस पर बृहस्पति भी प्रभाव डालता है ऎसे में केतु का यहां प्रभाव बौधिकता को प्रभावित करता है. केतु 24 वर्ष की आयु के बाद अपने आप लाभकारी हो जाता है. यदि पंचम भाव में केतु अशुभ हो तो जातक को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी होती है. संतान होने में विलंब या परेशानी हो सकती है. केतु पांच वर्ष की आयु तक अशुभ फल देता है.

छठे भाव में केतु

छठा भाव बुध ग्रह का है. छठे भाव में केतु नीच का माना जाता है. यह व्यक्ति की संतान के संबंध में अच्छे फल दे सकता है.  छठे भाव में केतु के कारण व्यक्ति एक अच्छा सलाहकार होता है.  पारिवारिक जीवन सामान्य रह सकता है. विद्रोह को दबा सकता है. यदि केतु छठे भाव में खराब स्थिति में हो तो नाना पक्ष के लिए कष्ट कारक हो सकता है. व्यर्थ की यात्राओं के कारण परेशानी हो सकती है. व्यक्ति को लोग गलत समझ सकते हैं. रोग या दुर्घटना का भय रह सकता है. 

केतु सप्तम भाव में

कुंडली में सातवें भाव का कारक शुक्र होता है. यदि केतु सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति को कम उम्र में ही आर्थिक लाभ हो सकता है. यदि सप्तम भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति विवाह संबंधों से निराश हो सकता है. बीमार होता है, झूठे वादे करता है और शत्रुओं से परेशान रह सकता है. 

आठवें भाव में केतु

जन्म कुंडली के आठ भाव का कारक शनि- मंगल हैं, यदि केतु अष्टम भाव में शुभ हो तो व्यक्ति के परिवार में नए सदस्य का अगमन होता है. अचानक धन लाभ मिल सकता है. यदि केतु अष्टम भाव में अशुभ हो तो जातक के साथी को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी होती है. रक्त विकार विष प्रभाव शरीर को खराब कर सकते हैं. 

केतु नौवें भाव में

नवम भाव का कारक बृहस्पति होता है, नौवें भाव में केतु को बहुत शक्तिशाली माना जाता है. इस भाव में केतु वाले लोग आज्ञाकारी, भाग्यशाली और धनवान होते हैं. यदि चंद्रमा शुभ हो तो व्यक्ति को अपने मायके वालों की मदद मिल सकती है.यदि नवम भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति को धर्म से कुछ अलग विचारधारावाला बना सकता है. पीठ में दर्द, पैरों में समस्या हो सकती है.

दसवें भाव में केतु

दसवां भाव शनि का होता है. यदि केतु यहाँ शुभ हो तो व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली लेकिन अवसरवादी हो सकता है. व्यक्ति प्रसिद्ध व्यक्ति हो सकता है.यदि दसवें भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति को सुनने की समस्या और हड्डियों में दर्द से परेशान हो सकता है. पारिवारिक जीवन चिंताओं और कष्टों से भरा हो सकता है.

ग्यारहवें भाव में केतु

ग्यारहवें भाव में केतु बहुत अच्छा माना जाता है. यह घर बृहस्पति और शनि से प्रभावित होता है. यदि यहां केतु शुभ हो तो यह अपार धन देता है. एकादश भाव में केतु के साथ व्यक्ति आमतौर पर स्व-निर्मित व्यवसायी या उद्यमी होता है. यह राजयोग होता है. यदि यहां केतु अशुभ है तो जातक को पाचन तंत्र और पेट के क्षेत्र में समस्या हो सकती है. वह जितना भविष्य की चिंता करता है, उतना ही परेशान होता जाता है.

बारहवें भाव में केतु

बारहवें भाव में केतु को उच्च का माना जाता है. बारहवें भाव में केतु व्यक्ति को संपन्न बना सकता है. धन देता है. व्यक्ति जीवन में सफल पद प्राप्त करता है. सामाजिक कार्यों और सामुदायिक योगदान में भी अच्छा होता है. व्यक्ति के पास जीवन के सभी लाभ और विलासिताएं होती हैं. यदि बारहवें भाव में केतु अशुभ हो तो भूमि और मकान का अधिग्रहण करते समय गलत निर्णय ले सकते हैं.  

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जन्म कुंडली का आठवां भाव रहस्य स्थान जाने इससे जुड़ी हर बात

जन्म कुंडली का आठवां भाव रहस्यों का स्थान

कुंडली के बारह भावों अपने आप में पूर्ण अस्तित्व को दर्शाते हैं. इन सभी भावों में एक भाव ऎसा भी है जो आयु मृत्य और रहस्य का घर होकर सभी आचार्यों के लिए एक गंभीर एवं सूक्ष्म स्थान है. इस भाव को लेकर की जाने वाली भविष्यवाणी ही जीवन के प्रत्येक उतार-चढ़ाव के लिए मुख्य होती है. 

आठवां भाव प्रमुख स्थान रखता है. इस घर को अक्सर अशुभ माना जाता है. वैदिक ज्योतिष में, अष्टम भाव मृत्यु, दीर्घायु और अचानक-अप्रत्याशित घटनाओं जैसे क्षेत्रों को दिखाता  है. इस भाव की संख्या भी आठ है जो अंक शास्त्र में भी इसी तरह की संभावनाओं से जुड़ती है. किसी के जीवन में जो विकास होता है, उसमें इस भाव का शामिल होना महत्वपूर्ण होता है. जीवन का समग्र विकास ओर अंत की यात्रा इसी घर में निहित मानी गई है. 

आठवें भाव की राशि और ग्रह  

वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव को आयु भाव कहा गया है. इस भाव में वृश्चिक राशि को स्थान प्राप्त होता है. क्योंकि काल पुरुष कुंडली में वृश्चिक राशि ही आठवीं राशि होती है जो इस घर से संबंधित है, इस राशि में रहस्य, अधिकार, जुनून और महत्वाकांक्षा जैसी विशेषताएं मौजूद होती हैं. साथ ही मंगल-शनि आठवें घर के कारक स्वरुप स्थान पाते हैं.  बृहस्पति और सूर्य ग्रहों के लिए अनुकूल हो सकता है लेकिन चंद्रमा, बुध के लिए एक कमजोर स्थान भी होता है. 

कुंडली में आठवां भाव धन से जुड़ा जो भूमि के नीचे से प्राप्त होने वाला धन होता है या फिर अचानक मिलने वाला धन,संबंधित है. धन की वृद्धि और कमी जैसी बातें, अचानक और अप्रत्याशित घटनाएं इसी भाव से होने वाले परिवर्तनों के कारण होती हैं. अष्टम भाव के कारण अचानक लाभ, हानि, शेयर धन में अप्रत्याशित लाभ, विरासत, बीमा आदि चीजें होती हैं. इस प्रकार आठवें भाव को परिवर्तन और रहस्यों का स्थान कहा जाता है. खराब रुप में यह भाव अवसाद, विलंब, असंतोष और हार का कारण बन सकता है. शरीर के अंग जो आठवें भाव से जुड़े होते हैं उनमें यौन, प्रजनन प्रणाली अंग इसी स्थान पर आते हैं 

कुंडली का आठवां भाव अन्य लोगों का पैसा, जीवनसाथी का पैसा, वंश प्रणाली, मृत्यु, लैंगिक गुण, परिवर्तन, रहस्य, अन्य लोगों के पैसे पर अधिकार दिखाता है आठवां घर कर्तव्यों और दायित्वों से संबंधित मुद्दों को देखता है क्योंकि ये अतिरिक्त रूप से धन के वर्ग के अंतर्गत आते हैं जो दूसरों के होते हैं. उधार लिया हुआ धन और यहां तक ​​कि सरकार द्वारा हमें दिया गया धन भी आठवें भाव का से ही मिलता है, और आठवें भाव में स्थित शुभ ग्रहों का अर्थ यह हो सकता है कि व्यक्ति को ऋण और ऋण प्राप्त करने में आसानी हो सकती है लेकिन ऋण को चुकाना बहुत मुश्किल होता है.

अष्टम भाव से कैसे देखते हैं मृत्यु 

आठवां घर किसी की जन्म कुंडली का सबसे कठिन अनसुलझा क्षेत्र होता है. यह मृत्यु को नियंत्रित करता है. इस घर से यह देखा सकता है कि किसी की मृत्यु कैसे होगी, या यहां तक ​​कि मृत्यु के साथ मृत्यु तुल्य कष्ट भी इसी से देखे जाते हैं. कई बार व्यक्ति अपने जीवन में मृत्यु का अनुभव भी करता है जिसका संबंध भी इसी घर से होता है. आठवां घर अन्य लोगों की मृत्यु दिखा सकता है जो आपके करीब हैं. आठवां घर प्रतीकात्मक अंत की ओर इशारा करता है. अष्टम भाव में कुछ ग्रहों वाले व्यक्ति का कलात्मक रूप से मृत्यु की ओर झुकाव हो सकता है, या शायद व्यक्ति किसी प्रकार के अंधकार की ओर आकर्षित हो सकता है. यहां बैठे ग्रह भी अपने अनुसार व्यक्ति को मृत्यु का कष्ट दे सकते हैं अग्नि तत्व वाले ग्रह अग्नि से कष्ट दे सकते हैं जल तत्व वाले ग्रह जल के कारण कष्ट ओर वायु तत्व वाले ग्रह वात रोग से मृत्यु दे सकते हैं यही बात राशियों पर भी निर्भर होती है. प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मृत्यु भी इसी स्थान की होती है ओर उसमें पाप प्रभाव की अधिकता होने से परेशानी दिखाई दे सकती है. 

अष्टम भाव गुप्त रहस्यों का जनक 

ज्योतिष में अष्टम भाव को भी गुप्त भाव का भाव कहा जाता है. यह ब्रह्मांड के रहस्य को समझने का द्वारा भी होता है. सभी रहस्य और सच्चाई का स्थान है. नवम भाव के निकट के घर के क्षेत्र जीवन और उसके अर्थ के बारे में व्यक्ति की जिज्ञासा का प्रतिनिधित्व भी इसी घर से होता है. हम क्यों मौजूद हैं, हम क्यों पैदा हुए, हम क्यों मरते हैं जीवन क्या है इसी घर की उपज हैं और कुंडली  के उसी क्षेत्र में है जहां नौवां घर अपनी उत्पत्ति और नींव को दर्शाता है. नवम भाव बुद्धि और उच्च शिक्षा का कारक होता है. इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि इस प्रकार का ज्ञान उन प्रश्नों से आता है जो हम यहां आठवें भाव में रखते हैं. यही कारण है कि ज्योतिष में अष्टम भाव हर प्रश्न की कुंजी है. यह उन सवालों का स्रोत है जो हम दुनिया के बारे में और अपने बारे में पूछते हैं.

यौन संबंध और कामुक संबंधों का स्थान  भी यही घर है. सैक्स मृत्यु के विपरीत है. यह जीवन का स्रोत और उत्पत्ति का मार्ग है. 

अष्टम भाव के शुभ फल 

आठवां भाव सकारात्मक रुप से कई अच्छे फल देता है, इसके कई सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार होंगे व्यक्ति की आयु लंबी हो सकती है और उसके पास अपने विरोधि और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की अच्छी संभावना होगी. आध्यात्मिक विषयों और मानसिक क्षमताओं से संबंधित मुद्दों की ओर अधिक रुझान होगा. ये लोग मनोविज्ञान, विज्ञान, गणित और रिसर्च के अध्ययन जैसे  विषयों में ऊंचाईयां छू सकते हैं. 

अगर कुंडली में आठवें भाव पीड़ित होकर कई गलत फल देने में सक्षम होता है व्यक्ति की लंबी उम्र को कम कर सकता है. पीड़ादायक मृत्यु दे सकता है, पुरानी बीमारी का कारण बन सकता है और विभिन्न प्रकार के दुख, मानसिक शांति खो सकता है. यहां आपराध में भागीदारी, दंड या सजा, व्यसन, विकृति, प्रियजनों को खोना, मृत्यु और अन्य प्रकार की समस्याएं भी हो सकती हैं.

कुंडली के आठवें भाव में ग्रहों का फल 

आठवें घर में ग्रहों की भूमिका प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है. 

अष्टम भाव में सूर्य

आठवें भाव में सूर्य बताता है कि व्यक्ति जीवन के सबसे गहरे रहस्यों की खोज करने में आगे रह सकता है.

अष्टम भाव में चंद्रमा 

यहां चंद्रमा व्यक्ति को एक निजी रुप से बना देगा और अपनी भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखेंने देगा.

अष्टम भाव में मंगल 

आठवें घर में मंगल गलतियों के गंभीर परिणाम दे सकता है. आवेगी बना सकता है.

अष्टम भाव में बुध 

आठवें भाव में बुध विरासत या कोई अनुबंध के कारण लाभ या नुकसान दोनों का सामना करना पड़ता है. 

अष्टम भाव में बृहस्पति 

बृहस्पति यहां अधिक सोच विचार दे सकता है. जांच-परख करने वाला स्वभाव देता है.

अष्टम भाव में शुक्र 

अष्टम भाव में शुक्र का होना कामुक सुख के प्रति जुनूनी बना सकता है.

अष्टम भाव में शनि 

अष्टम भाव में परिश्रमी, अनुशासित, धैर्यवान और खर्च में विवेकपूर्ण बनाता है.

अष्टम भाव में राहु केतु  

यह स्थान आमतौर पर ज्योतिष में अशुभ होता है, राहु केतु के होने पर आवेगपूर्ण निर्णय और काम के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.

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शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष जानें इस खगोलिय घटना के बारे में विस्तार से

हिंदू पंचांग में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष महत्व

हिंदू पंचांग को ज्योतिष फलकथन एवं खगोलिय गणना इत्यादि हेतु उपयोग में लाया जाता है. हिंदू धर्म में मौजूद समस्त व्रत त्यौहार एव्म धार्मिक क्रियाकला पंचांग द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं. इसलिए पंचांग एक अभिन्न अंग भी माना जाता है. पंचांग का अर्थ पांच चीजों के योग से निर्मित होने वाली गणना. इन पांच चीजों में तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण से मिलकर पंचांग का निर्माण होता है.

पंचांग सभी हिंदुओं के बीच बहुत महत्व रखता है, खासकर जब शुभ और अशुभ दिनों की बात हो या फिर किसी भी प्रकार के धर्म कर्म से जुड़े काम, इसके साथ ही ये भौगौलिक घटनाओं इत्यादि को समजने में भी सहायक होता है. पंचांग का क्षेत्र सीमित न होकर असीमित रहा है.  पंचांग पाक्षिक, दैनिक और मासिक, वार्षिक सभी आधार पर विवरण प्रदान करता है. दैनिक पंचांग तिथि (दिन), नक्षत्र, दिन के शुभ और अशुभ समय आदि के बारे में जानकारी प्रदान करता है. मासिक पंचांग तीस दिनों को दर्शाता है, और इन दिनों को मासिक रुप में दो भगओं में बांटा जाता है.  पक्षों में इसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया जाता है. इन दो पक्षों को पंद्रह-पंद्रह  दिनों की अवधि में बांटा जाता रहा है. इन दो पक्षों में एक पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है जबकि शेष को कृष्ण पक्ष के अंतर्गत आते हैं.

शुक्ल और कृष्ण पक्ष का अंतर विश्लेषण 

किसी भी शुभ कार्य एवं आयोजन अनुष्ठान को शुरू करने के लिए वैदिक शास्त्रों में पक्ष को एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है. चूंकि पक्ष चंद्रमा पर निर्भर करता तो यह किसी विशेष घटना या कार्य की सफलता या विफलता को भी निर्धारित करती है. इसलिए दोनों पहलुओं पर विचार करके ही शुभ कार्यों के लिए तिथि निर्धारित की जाती है.

शुक्ल पक्ष  और कृष्ण पक्ष के बीच के अंतर को समझना धार्मिक और ज्योतिष दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है. हिंदू परंपरा के अनुसार, कुछ विशिष्ट तिथियां, जिन्हें तिथि कहा जाता है, को विभिन्न धार्मिक कार्यों को करने के लिए शुभ समय के रूप में उपयोग किया जाता रहा है. शुभ मुहूर्त के संदर्भ में, शुक्ल पक्ष तिथि और कृष्ण पक्ष तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं.

पक्ष क्या होता है

पंचांग गणना में चंद्रमास सौर मास एवं नक्षत्र मास का वर्णन मिलता है. यहां पक्ष को चंद्रमा से जोड़ा जाता है. चंद्र मास को दो पक्षों में बांटा गया है. एक पक्ष चंद्र 15 दिन का होता है और दूसरा भी 15 दिन का होता है. कुछ गणना में पक्ष यह लगभग 13-14 दिन का भी हो सकता का है. पक्ष को अधंकार एवं रोशनी दो भागों में भी विभाजित किया जाता है. ज्योतिषीय घटनाओं के दृष्टिकोण से, पक्ष महीने के चंद्रमा के सभी चरण को दर्शाता है. प्रत्येक चंद्र चरण 15 दिनों तक रहता है और इस प्रकार हमारे पास एक महीने में दो चंद्र चरण होते हैं. खगोलीय गणनाओं से देखने पर मिलता है कि चंद्रमा एक दिन में 12 डिग्री की यात्रा करता है. यह तीस दिनों में पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण क्रांति को पार करता है. हर दो सप्ताह में होने वाला यह चंद्र चरण विभिन्न धार्मिक आयोजनों के लिए फायदेमंद होता है.

कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या के बीच शुरू होता है और चंद्रमा अपने स्वरुप में घटने लगता है उस समय इसका असर दिखाई देता है. कृष्ण पक्ष का नाम भगवान कृष्ण के नाम पर रखा गया है क्योंकि भगवान कृष्ण के स्वरुप को भी दर्शाता है और इसलिए चंद्रमा के लुप्त होने को कृष्ण पक्ष कहा जाता है. कृष्ण पक्ष पूर्णिमा, प्रतिपदा से शुरू होकर चतुर्दशी तक 15 दिनों तक चलता है.

चंद्रमा के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष से जुड़ने की कथा 

चंद्रमा के पक्ष में विभाजित होने की कथा पौराणिक ग्रंथों से प्राप्त होती है. इनमें कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. शास्त्रों में वर्णित में मुख्य कथा दक्ष से संबम्धित मानी गई है.  दक्ष प्रजापति और चंद्रमा की कहानी इस प्रकार है. दक्ष प्रजापति की सत्ताईस बेटियाँ थीं, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था. ये सत्ताईस कन्याएं वास्तव में सत्ताईस नक्षत्र थीं, और इन नक्षत्रों में एक रोहिणी थी जिसे चंद्रमा सबसे अधिक प्रेम करता था. रोहिणी के प्रति चंद्रमा का मोह इतना अधिक रहता था की वे अन्य पत्नियों के प्रति उदासीन था. ऎसे में अन्य पत्नियों के मन में इस का दुख अत्यंत बढ़ जाने पर वह अपने दुख को अपने पइता दक्ष से कहती हैं. पिता दक्ष से चंद्रमा की उनके प्रति उदासीनता के बारे में शिकायत करने पर दक्ष ने चंद्रमा को अपने पास बुलाया और उन्हें अनुरोध किया की वह सभी पर एक समान रुप से ध्यान दे. लेकिन चंद्रमा पर इस बात का कोई असर न होते देख चंद्र पर क्रोधित होते हैं.

चंद्रमा को दूसरों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए कहते हैं. इसके बावजूद चंद्रमा का अपनी अन्य पत्नियों के प्रति रवैया नहीं बदला और वह अन्य पत्नियों की ज्यादा उपेक्षा करने लगाता है. दक्ष के अनुरोध का पालन करने की मनाही की स्थिति को देख दक्ष ने तब चंद्रमा को शाप दिया कि वह अपने आकार और चमक से रहित हो जाएगा. द्क्ष के श्राप के कारण चंद्रमा घटने लगता है वह क्षय रोग से पीड़त हो जाता है और धीरे-धीरे अपने अंत की ओर जाने लगता है. ऎसे में भगवान शिव की भक्ति द्वारा उसे दक्ष के श्राप से राहत मिलती है और चंद्रमा पक्ष में बदल कर शुक्ल पक्ष को पाता है. इस प्रकार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का आरंभ होता है. 

हम अमावस्या से पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष तक की अवधि कहते हैं. दूसरे शब्दों में, शुक्ल पक्ष की अवधि को शुक्ल पक्ष के रूप में वर्णित किया जाता है. जब शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के पास  होता है, तो चंद्रमा आकाश में सबसे अधिक चमकीला और पूर्ण रुप का चंद्रमा दिखाई देता है. संस्कृत में शुक्ल का अर्थ उज्ज्वल होता है. यह भी भगवान विष्णु के नामों में से एक है. शुक्ल पक्ष 15 दिनों तक चलता है, जिसमें हर एक दिन कोई त्योहार या कार्यक्रम होता है. इन 15 दिनों को अमावस्या, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी कहा जाता है.

कौन सा पक्ष शुभ माना जाता है?
चंद्र प्रकाश में, शुक्ल पक्ष शुभ मांगलिक कार्यों, धार्मिक कार्यों, अनुष्ठा आयोजनों के लिए अनुकूल समय माना है, जबकि कृष्ण पक्ष प्रतिकूल माना जाता रहा है. इसलिए, कृष्ण पक्ष के दौरान कम ही करयों को करने की बत भी कही जाती रही है. शुक्ल पक्ष के दौरान किया गया कोई भी कार्य सफलतापूर्वक पूरा होता है. इस प्रकार विवाह, गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि के अवसर शुक्ल पक्ष के दौरान किए जाते हैं.ज्योतिष की दृष्टि से शुक्ल पक्ष की दशमी और कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि के बीच का समय शुभ होता है. इस समय के दौरान, चंद्रमा की शक्ति ऊर्जा अपने चरम पर होती है, और यह शुभ और अशुभ समय या मुहूर्त की भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण है.

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