ज्योतिष में स्वास्थ्य से संबंधित मुख्य कारक

सेहत से जुड़े कई कारकों का वर्णन वैदिक ज्योतिष में मिलता है. सेहत जीवन का एक महत्वपुर्ण मुद्दा है जिसे लेकर कइ बर हम सजग तो कई बार लापरवाह भी दिखाई देते हैं किंतु कुल मिलाकर सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी कोशिशों में रहता है. अपनी सेहत को बेहतर रखा जाए और हेल्थ को कैसे अपडेट रखें इसके लिए ग्रहों नक्षत्रों को समझना काफी सहायक बनता है. 

हम कभी नहीं जानते कि हमें अगले पल में क्या सामना करना है. अच्छी घटनाएं हमारी खुशियों को बढ़ाती हैं. चुनौतीपूर्ण घटनाएं हमें भ्रमित और दुखी कर देती हैं. चिकित्सा समस्याएं एक ऐसी चीज है जो हमें बहुत अधिक तनाव और धन हानि दे सकती है. स्वाभाविक रूप से, हम एक स्वस्थ जीवन चाहते हैं, और कभी-कभी हम खराब जीवन शैली के कारण अपने जीवन के साथ जोखिम उठाते हैं. वैदिक ज्योतिष शरीर को समझने का एक बेहतरीन तरीका है, और यह संभावित चिकित्सा दिक्कतों को भी बता सकता है. यह आपको यह भी बता सकता है कि आपके शरीर में ये रोग कब अधिक सक्रिय हो सकते हैं. यह एक प्राचीन विज्ञान है जो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को देखकर लोगों की समस्याओं का समाधान करता है.

चिकित्सा ज्योतिष में रोग समय का निर्धारण 

चिकित्सा ज्योतिष की कई से सूत्र मौजूद हैं जिनकी सहायता से रोग का पता लगा सकते हैं और नुकसान को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय कर सकते हैं. ज्योतिष ज्ञान समय पर रोग का पता लगाकर और उससे संबंधित उपाय करके सही समय पर सही सहायता प्रदान कर सकता है. कुंडली हमारे जीवन की सभी घटनाओं का विवरण दे सकती है, और यदि हम पहले से इसके प्रति सचेत हैं, तो हम आने वाली कई आपदाओं से बच सकते हैं. चिकित्सा ज्योतिष, ज्योतिष की एक शाखा है जो वर्षों से विकसित होती आई है. यह क्षेत्र स्वास्थ्य संबंधी मामलों से संबंधित है. यह कुंडली में राशियों और ग्रहों के परिवर्तन और गणना पर आधारित है. यह निर्धारित करना कि किसी व्यक्ति के जीवन में कोई रोग कब प्रवेश कर सकता है और उस व्यक्ति के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत आता है.

स्वास्थ्य की स्थिति की जांच के लिए पूर्ण राशि, कुंडली की जांच करना बहुत जरूरी है. इसलिए यह आसानी से कहा जा सकता है कि चिकित्सा ज्योतिष हमारे जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. इसमें रोग चक्र का एवं नक्षत्र विज्ञान का उपयोग विशेष रुप से होता है. 

कुंडली में छठा भाव बीमारी का प्रतिनिधित्व करता है. अष्टम भाव वातावरण में अचानक हुए बदलाव और जातक को किसी सर्जरी या मृत्यु का सामना करना पड़ता है या नहीं, जैसी बातों को  दर्शाता है. द्वादश अर्थात 12 वां भाव चिकित्सा मुद्दों के माध्यम से अस्पताल में भर्ती और परेशानी को दर्शाता है. छठे, आठवें और बारहवें भाव की दशा में शारीरिक समस्याएं आएंगी. फिर भी, कुंडली में लग्न से ज्ञात होता है की लग्न कितना मजबूत है या कमजोर फिर, छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी की दशा के दौरान शारीरिक परेशानिययों को आसानी से पकड़ा जा सकता है. 

ग्रह और उनका सेहत पर असर 

सूर्य 

हृदय, हड़्डी, जीवन शक्ति, दृष्टि और आंखों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं दे सकता है. सूर्य खराब होने पर जातक का आत्म-सम्मान कम होगा और उसे अपने हृदय का ख्याल रखना होगा.

बुध

बुध विशेष रुप से जीभ, हाथ, बाल, फेफड़े और नाक से संबंधित समस्याएं दे सकता है. बुध तंत्रिकाओं को दिखाता है, इसलिए कमजोर बुध वाले व्यक्ति के लिए नर्वस ब्रेकडाउन से गुजरना स्वाभाविक है.

शुक्र

शुक्र के असर से आंतरिक अंग, त्वचा का रंग, अंडाशय, तंत्रिका तंत्र, फैलाव संबंधी समस्याएं परेशान कर सकती हैं. शुक्र शुक्राणु को इंगित करता है, इसलिए एक कमजोर शुक्र शुक्राणुओं की संख्या में कमी को दर्शा सकता है. 

मंगल ग्रह

बाहरी अंगों, सिरदर्द, यकृत, गतिशीलता और पाचन तंत्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं दिखाता है. एक खराब मंगल क्रोध के होने वाले रोग, रक्त और ऊर्जा की कमी को भी दर्शा सकता है.

बृहस्पति

रक्त परिसंचरण, कूल्हों, पैरों और जांघों से संबंधित समस्याएं दे सकता है. यदि गुरु खराब हो तो जातक को जीवन शैली संबंधी रोग हो सकते हैं.

शनि 

श्रवण, जोड़ों का दर्द, दांत और त्वचा की समस्याएं परेशान कर सकती हैं.  शनि हमेशा जोड़ों से संबंधित समस्याओं की ओर संकेत करता है. यदि शनि नीच का हो तो जातक को लंबे समय तक जोड़ों का दर्द रह सकता है.

राहु और केतु

यदि राहु खराब है, तो जातक को कई भ्रम होंगे, और केतु मानसिक रोग का संकेत देता है.जहर से होने वाले रोग और मानसिक रोग इन दोनों का परिणाम हो सकते हैं. .

जन्म कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति को देखकर स्वास्थ्य का विश्लेषण कर सकते हैं. स्वास्थ्य की स्थिति देखने के लिए अन्य वर्ग कुंडली भी होती हैं उदाहरण के लिए द्रेष्काण कुंडली, छठे स्वामी की स्थिति हमारे शरीर के सबसे कमजोर स्थिति को दर्शाती है. इसलिए, चिकित्सा समस्या की पहचान करने के लिए छठे स्वामी की स्थान, स्थिति, दृष्टि और युति बहुत महत्वपूर्ण है. राहु केतु का असर जहां होता है वह भाव शरीर में कमजोर स्थिति को दर्शा सकता है. राहु केतु अक्ष में जो भी ग्रह और भाव आएंगे उनमें कुछ कमजोरियां होंगी. इन भावों और ग्रहों से संबंधित  शरीर के अंगों में कुछ कमजोरियां हो सकती हैं.

ज्योतिष शास्त्र न केवल शारीरिक समस्याओं के बारे में बल्कि भावनात्मक कमजोरी के बारे में भी बताता है. ज्योतिष को मनोविज्ञान के रास्ते से जोड़ कर मानसिक स्वास्थ्य को समझा जा सकता है. चंद्रमा मन का सूचक है, इसलिए चंद्रमा की स्थिति को देखकर हम समझ सकते हैं कि व्यक्ति कितना शांत है. हालांकि, यदि चंद्रमा किसी खराब ग्रह के साथ युति कर रहा है, तो जातक को भावनात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया और अन्य मानसिक रोगों का संकेत भी कमजोर चंद्रमा से मिलता है. ज्योतिष से घातक रोगों की पहचान की जा सकती है पर इसके लिए आवश्यक है गहन अध्ययन जिसके आधार पर ही उचित प्रकार से रोग को जान पाना संभव होता है. 

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ज्योतिष में बनने वाले पांच दुर्लभ योग जो कुंडली में होते हैं खास

ज्योतिष में ग्रहों, नक्षत्रों, भावों, राशियों इत्यादि के आधार पर कई तरह के योग बनते हैं जो कुछ शुभ तो कुछ अशुभ स्थिति को पाते हैं . कुछ योग ऎसे होते हैं जो काफी विशेष रुप से व्यक्ति पर अपना असर डालते हैं. इन योग का असर व्यक्ति के भाग्य एवं उसके कर्म सभी पर अपना प्रभाव डालने वाला होता है. कुंडली में कुछ ग्रह स्थितियां हैं ऎसी होती हैं जो ग्रह की ताकत का संकेत होती हैं. ग्रहों की इन स्थितियों को हमारे ऋषियों ने अलग-अलग नाम दिए हैं, जिन्हें योग कहते हैं. ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई योग हैं, जो कुंडली में महत्वपूर्ण बदलाव लाते हैं. ये सभी योग कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति के साथ काम करते हैं. योगों की शक्ति ग्रहों की स्थिति, दृष्टि और युति पर आधारित होती है. इसलिए, जब तक पूर्ण कुंडली मजबूत न हो, तब तक किसी भी योग में परिणाम देने की शक्ति नहीं होती है.

लक्ष्मी योग, गजकेसरी योग, धन योग, मांगलिक योग, अंगारक योग जैसे कई प्रसिद्ध और विशेष योग हैं. इन्हें कई कुंडली में देखा जा सकता हैं लेकिन कुछ ऎसे दुर्लभ योग भी होते हैं जो अद्वितीय ग्रह संयोजनों के साथ बनते हैं. आइए उनमें से कुछ को समझने का प्रयास करते हैं : – 

अधिपति योग 

इस योग को धर्म-कर्म अधिपति योग नाम से भी जाना जाता है. यह बहुत ही सुंदर योग है. यह तब बनता है जब दशम या नवम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण भाव में संबंध बनाता है. इस योग को लग्न कुंडली या चंद्र लग्न कुंडली से देख सकते हैं. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है, तो वह एक साधन संपन्न होने के साथ आधिकारिक व्यक्ति बन जाएगा, और कोई भी उसके अधिकार पर सवाल नहीं उठा पाएगा.

करियर राशिफल दशम भाव को कर्म भाव के रूप में जाना जाता है, और नवम भाव को धर्म का घर कहा जाता है. जब धर्म और कर्म के स्वामी केंद्र या त्रिकोण में युति करते हैं, तो यह कुंडली में एक बहुत शक्तिशाली होता, जो व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ हासिल करने में मदद करता है. अगर यह खराब ग्रहों पर बनता है तो ऎसे में यह उस अधिकार में कठोरता को भी शामिल करता है. 

नल योग

नल योग एक बहुत ही दुर्लभ योग है और इसलिए, कम ज्ञात है. यह तब बनता है जब सभी ग्रह द्विस्वभाव राशियों में मौजुद होते हैं. कुंडली में मिथुन राशि, कन्या राशि, धनु राशि और मीन  राशि को द्विस्वभाव राशि कहा जाता है. इस तरह कुंडली में जब ग्रह इन्हीं राशियों में होते हैं तब इस योग का असर दिखाई देता है. यह योग व्यक्ति को बहुत अधिक विद्यावान बनाता है, क्योंकि सभी राशियां बुद्धि ज्ञान के कारक ग्रहों से प्रभावित होती हैं.

बुध और बृहस्पति इन राशियों का स्वामित्व पाते हैं.  बुध तर्क की कुशलता देता है और बृहस्पति उच्च ज्ञान का संकेत देता है. तो स्वाभाविक रूप से, जब सभी ग्रह इन भावों में होंगे, तो व्यक्ति बहुत ज्ञानी होगा. उनका ज्ञान ही उनकी ताकत होगा, जो उन्हें अपने जीवन में ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद करेगा. इस का असर ऎसे लोगों की कुंडली में देखा जा सकता है जो उच्च स्तर के कार्यों में मौजूद होते हैं जिनके ज्ञान द्वारा चीजें सही से काम कर रही होती हैं 

कहल योग

कहल एक आश्चर्यजनक योग है जो चौथे और नौवम भाव के स्वामी के आपसी संबंध से बनता है. यदि वे दोनों एक दूसरे के केंद्र हों तो यह योग बनता है. यह योग व्यक्ति को नेता बना देगा, और उसके पास एक वफादार लोग होते हैं ऎसे प्रशंसक होते हैं जो उसकी सफलता में विशेष स्थान रखते हैं. यह योग दर्शाता है कि राजनीति में स्थान पाने के लिए पर्याप्त शक्ति मिलती है और सरकारी अधिकारियों के साथ व्यक्ति के अच्छे संबंध होंगे. इसलिए, वह एक सरकारी अधिकारी हो सकता है. संस्कृत में कहला का अर्थ है ढोल की ध्वनि या बड़ी ध्वनि. इसलिए जब जातक बोलेगा तो उसकी आवाज में इतनी गहराई होगी कि हर कोई उसकी बात सुनेगा अगर यह खराब भाव में बनता है तो यह व्यक्ति को बहुत ही चिड़चिड़े स्वभाव का बना सकता है. फिर भी लोग उन्हें फॉलो करना पसंद करते हैं. 

शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी योग

शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी योग कुंडली में बनने वाले ऐसे योग हैं जो कुंडली को विशेष बल देते हैं. संस्कृत में शुभ का अर्थ अच्छा, सकारात्मक होता है. कर्तरी का अर्थ काटने से होता है. शुभ कर्तरी योग दो स्थितियों में उत्पन्न होता है. जब कोई ग्रह दो शुभ राशियों के बीच में होता है और जन्म के घर से बारहवें और दूसरे भाव में शुभ ग्रह होते हैं, तो इसका परिणाम शुभ कर्तरी योग में मिलता है. इसके विपरित यदि कोई ग्रह पाप ग्रहों के बीच में है, तो जातक को पाप कर्तरी योग से परेशानी झेलता है. इस योग के दो असर होंगे या तो यह शुभ होगा या खराब होगा. 

शुभ कर्तरी योग व्यक्ति को बुद्धिमान, धनवान और पराक्रमी बनता है. यदि कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो रही हो, तो शुभ कर्तरी योग फल नहीं दे पाता है पूर्ण रुप से. यदि  शुभ  योग है, तो उस भाव के परिणाम बहुत शुभ होंगे और जीवन के शुरुआती दौर से ही इनका फल भोग पाएंगे. 

आदि या अधि योग

जन्म कुंडली में अगर लग्न से छठे भाव, सातवें भाव, आठवें भाव में कोई तीन शुभ ग्रह हों तो अधि योग बनता है. यह साधारण योग नहीं है, इसलिए यह योग बहुत ही दुर्लभ होता है. अधि का अर्थ है अधीनस्थ, और इस योग वाले व्यक्ति के पास बहुत सारे नौकर और अधीनस्थ होंगे जो उसका आदेश लेने के लिए होंगे. वह राजा तुल्य होगा, और आजीवन उन्नति होगी. व्यक्ति के पास घर और धन होगा. यह एक राजयोग है जो उसे अपने पूरे जीवन का आनंद लेने में मदद कर सकता है. प्रत्येक राजयोग जीवन की विपत्तियों से बचने के लिए शक्ति देता है. 

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मिथुन लग्न के लिए कौन बनता है मारक

कुंडली का प्रत्येक लग्न किसी न किसी मारक ग्रह से प्रभावित अवश्य होता है. मिथुन लग्न की कुंडली होने पर इस कुंडली के दूसरे भाव और सातवें भाव का स्वामी मारक बनता है. मिथुन लग्न के लिए, द्वितीय भाव में कर्क राशि आती है ओर कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होता है. मिथुन लग्न के लिए सातवें भाव में धनु राशि आती है ओर धनु राशि का स्वामी बृहस्पति होता है. तो, मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह इनके मारक स्वामी या मारक ग्रह बन जाते हैं. 

मिथुन लग्न के लिए मारक भाव में स्थिति ग्रह स्थिति  

मिथुन लग्न के लिए द्वितीय एवं सप्तम भाव और इसके स्वामी मारक बनते हैं. इसी प्रकार यदि द्वितीय भाव कर्क राशि में कोई ग्रह बैठा हुआ है या फिर सप्तम भाव में धनु राशि में कोई ग्रह बैठा होता है तो वह इस कुंडली में मारक ग्रह का प्रभाव भी देता है. इन भाव में स्थिति ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे क्योंकि उनकी दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होती हैं. 

मारक ग्रह का प्रभाव 

मारक ग्रह के शुभ और अशुभ फलों को जानने के लिएआवश्य है कि ग्रह की प्रकृत्ति को समजा जाए. सबसे पहले मिथुन लग्न के लोगों के लिए अच्छी बात यह है कि उनके दोनों मारक ग्रह यानी चंद्रमा और बृहस्पति शुभ ग्रह का स्थान पाते हैं. इसलिए, मारक ग्रह होते हुए भी कुछ राहत देने में भी सक्षम होते हैं. किंतु बुध के साथ चंद्रमा और बृहस्पति का संबंध विवादास्पद रहा है जिसके कारण ये स्थिति चिंता भी दर्शाती है. 

बृहस्पति – बृहस्पति ग्रह मिथुन लग्न के लोगों के लिए दशम भाव अर्थात मीन राशि का स्वामित्व भी पाता है. यह लाभ की एक और स्थिति को दर्शाता है. किंतु यहां बृहस्पति को केन्द्राधिपति दोष भी लगता है तो स्थिति मिलेजुले फल दर्शाती है जो तटस्थ रुप से भी दिखाई देती है. 

चंद्रमा – चंद्रमा केवल द्वितीय घर का ही अधिपति होता है इस कारण से साधारण रहता है. यह समय भी मिलाजुला फल देता है. 

मारक भावों में बैठे ग्रहों की प्रकृति 

मिथुन लग्न में मारक भाव में बैठे हुए ग्रह की प्रकृति भी देखने होती है. इन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत है जो मारक घरों में हैं क्योंकि उसी के आधार पर फल प्राप्ति होती है. यदि वे प्राकृतिक रुप से शुभ ग्रह है तो अपनी दशा अंतरदशा में परेशानी कम ही देगा. लेकिन यदि ये ग्रह अशुभ प्रकृति का है तो ऎसे में स्थिति कष्ट को दिखाने वाली है. ये ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि इनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिनाई दिखा सकती हैं और ऎसे में इन दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है.

मारकेश की स्थिति 

मारक दशा को जानने का एक अन्य सबसे महत्वपूर्ण कारक वह है जिसमें चंद्रमा और बृहस्पति, मिथुन लग्न में कहा पर बैठे हैं और किस स्थिति में मौजूद हैं क्योंकि यह तथ्य ही  इसके परिणाम  और ताकत को दर्शाते हैं. 

चंद्रमा की दशा 

मिथुन लग्न के लिए मारकेश चंद्रमा अगर अपने स्वयं के घर में स्थित हो, मित्र राशि में स्थित हो, तटस्थ अवस्था में हो, मूल त्रिकोण या उच्च राशि में स्थिति हो तो ऎसे में व्यक्ति कुछ सकारात्मकता फल प्राप्त कर सकता है. मारक दशा के समय कुछ स्थिति संभली रहेगी. इस दशा के दौरान भी लाभ प्रदान कर सकता है क्योंकि यह एक शुभ ग्रह है और यह इन राशियों में अच्छी स्थिति मे होने के कारण बेहतर परिणाम दे सकता है. 

अगर इसके विपरित चंद्रमा किसी शत्रु राशि में हो, नीच अवस्था में हो, पप प्रभाव में हो, पाप करतारी योग में हो तो  ये स्थिति ग्रह को कमजोर करती है. यह समय दर्शाता है कि व्यक्ति को अपनी दशा से निपटने के लिए बहुत अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होगी.  उदाहरण के लिए, यदि चंद्रमा छठे भाव में वृश्चिक में होगा तो वह बीमारियों के घर में नीच का होगा इस कारण से व्यक्ति को दशा के दौरान स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, जो चंद्रमा को मारक ग्रह के रूप में सक्रिय करती है, बीमारी के घर में कमजोर चंद्र होने से स्वास्थ्य के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होगी. 

बृहस्पति दशा 

मिथुन लग्न के लिए मारकेश बृहस्पति का असर जानने के लिए देखते हैं कि बृहस्पति कैसी अवस्था में कुंडली में स्थित है बृहस्पति अगर कुंडली में स्वयं की राशि में है, मित्र राशि में है, मूल त्रिकोण राशि में है, उच्च राशि में हो तो इस स्थिति में परेशानी कम देगा. इसके विपरित अगर बृहस्पति शत्रु राशि में, निर्बल स्थिति में. पाप कर्तरी में होगा तो यह स्थिति दशा के खराब फल अधिक दे सकती है. 

मारक घरों में स्थित ग्रहों का प्रभाव 

मारक भाव में स्थित ग्रहों की शुभता अशुभता या ताकत की जांच करने की आवश्यकता होती है. शुभ ग्रह का होना दर्शाता है कि व्यक्ति बिना किसी नुकसान के मारक दशा के माध्यम से आगे बढ़ सकता है. लेकिन अगर अशुभ ग्रह है तो इस दशा में अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होगी. उदाहरण के लिए, दूसरे घर में कर्क राशि में सूर्य का होना परेशानी अधिक नहीं देगा, लेकिन अगर मंगल दूसरे घर में कर्क राशि में है जहां मंगल नीच का होगा तो व्यक्ति को मारक दशा के दौरान सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

दशाएं मारक भाव को कैसे सक्रिय करती है 

मिथुन लग्न के लिए मारक भाव चंद्रमा या बृहस्पति या किसी भी ग्रह की दशा के दौरान सक्रिय हो सकते हैं. जो दूसरे घर में कर्क राशि या सातवें घर धनु राशि में है. साथ ही, राशि, नक्षत्र के स्वामी की दशा जिसमें चंद्रमा या बृहस्पति स्थित हों, उन्हें मारक दशा को सक्रिय करने का योगदान मिलेगा. उदाहरण के लिए, यदि बृहस्पति तुला राशि में चित्रा नक्षत्र का है तो शुक्र दशा या मंगल दशा भी बृहस्पति और मारक घरों को सक्रिय कर सकती है. इसी तरह, मारक घरों में ग्रहों के लिए, उनकी राशि , नक्षत्र स्वामी दशा मारक परिणाम ला सकती है. इसके साथ ही प्रमुख स्तरों पर दशाओं को ध्यान में रखना होगा, जिसमें महादशा – अंतर्दशा – प्रत्यंतर दशा का समय महत्वपूर्ण होता है. 

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विदेश में निवास के लिए आपकी कुंडली में बनने वाले ये योग होते हैं खास

विदेश में जाना, विदेश यात्रा करना आज के समय में इसका काफी प्रचलन बढ़ गया है. विदेश में यात्रा के अवसर कई तरह से मिल जाते हैं लेकिन जब बात आती है विदेश में ही रहने की तब चीजें काफी मुश्किल सी दिखाई देती हैं. कई व्यक्तियों के लिए विदेश में रहना उनके लिए सब कुछ होता है इसके लिए वे हर तरह के कार्य करने में आगे रह सकते हैं. लोग नौकरी, पढ़ाई और कई अन्य कारणों से विदेश में बसना चाहते हैं. विदेश में रहने की बात आती है तो कड़ी मेहनत और वीज़ा को पाना विशेष मुद्दा होता है. ऎसे में ज्योतिष काफी सहायक बन सकता है. आपकी कुंडली में मौजूद कुछ योग अगर मजबूत होंगे तब आप विदेश में जाने के साथ साथ वहां बसने में भी सफल हो सकते हैं. 

ज्योतिष शास्त्र में विदेश में रहने की भूमिका में सहायता करने वाले कुछ योग विशेष होते हैं. आज के समय में दुनिया में विदेश निवास को लेकर, एक बेहतर जीवन यापन, नए जीवन को जीने की चाह हर किसी के मन में रहती है. विदेशी नौकरियों और शिक्षा वीजा के लिए आवेदन करने वाले कई होते हैं लेकिन इसके अलावा कई लोग गैर कानूनी तरीकों से भी विदेश जाने के प्रयास करते देखे जा सकता है. कुछ को मौके मिलते हैम तो कुछ को असफल होना पड़ता है. कई बार यह चीजें दर्दनाक भी सिद्ध होती हैं जिनके बारे में हम आज खबरों में भी देख सकते हैं. अत: कुंडली में यदि विदेश योग नहीं है तो आपके हजार जतन भी वहां नहीं ले जा सकते हैं और अगर योग है तो आप विदेश में जरुर निवास कर पाते हैं. 

अपनी मातृभूमि से कोई जब अलग होता है तो यहां अपनी विशेष चीज को छोड़ कर ही वो कहीं जाता है अब इस विशेष गुण का आपकी कुंडली में हाल कैसा है ये समझना अत्यंत जरूरी होता है. विदेश में बसने में मदद करने के लिए आपके कर्म की प्रबलता और कुंडली के योगों का शुभ संयोग जब बनता है तब विदेश में रहने का विचार फलित होता है. 

कुंडली में विदेश योग के भाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुण्डली के कुछ विशेष भाव व्यक्ति को अपने जन्म स्थान से दुर करने वाले माने गए हैं. इन भाव को बाहर विदेश स्थान के लिए देखा जाता है : कुंडली का छठा भाव, सातवां भाव, आठवां भाव, नवां भाव और बारहवां भाव विदेश में बसने के लिए जिम्मेदार माना गया है. अब कुंडली में इन भाव का संबंध कुछ अन्य भाव स्थान से बनता है तो जो योग निर्मित होते हैं उनके द्वारा विदेश बसने की कल्पना साकार होती है. कुंडली के विभिन्न ग्रहों के साथ, जब ये भाव कुछ योग बनाते हैं जिसमें कोई भी वीजा के लिए आवेदन करना, विदेशी कॉलेज के लिए आवेदन करना, नौकरी आदि का विकल्प चुनने इत्यादि के कारण जाने का विचार कर सकता है. 

  • ज्योतिष में छठा भाव विदेशी मसलों में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं का प्रतीक बनता है.
  • ज्योतिष में सातवां दिखाता है जनता, विदेश साथी के द्बारा विदेश से जुड़े संबंध पाना. अपने पार्टनर के माध्यम से विदेशी मामलों में हाथ आजमाने का मौका मिलता है. 
  • कुंडली में आठवां भाव व्यक्ति के भूमिगत होने को दर्शाता है और समुद्री यात्रा का प्रतीक बनता है और अपने स्थान से दूर जाकर रहने को दर्शाता है.
  • कुंडली का नवम भाव लंबे प्रवास को दिखाता है, लंबी विदेश यात्राओं के लिए भी ये भाव जिम्मेदार होता है, विदेशी व्यापार और विदेश धर्म कार्य एवं स्थापना इत्यादि के लिए भी इसे देखा जाता है. 
  • कुंडली में बारहवां भाव विदेश के लिए ही मुख्य भाव बनता है. इस घर में विदेश बसने के लिए उचित ग्रहों की अनुकूल स्थिति वास्तव में आपके विदेश जाने के सपने को पूरा करने में मदद कर सकती है.

कुंडली में विदेश निवास योग के लिए विशेष ग्रह

कुंडली में ग्रहों और भावों का योग ही व्यक्ति को विदेश में रहने की अनुमति देने वाला होता है. इनमें राहु, केतु, शनि और चंद्रमा की प्रबलता को विशेष रुप से देखा जा सकता है, जो विदेश यात्रा देने में बहुत सहायक्ब माने गए हैं. राहु/केतु को विदेश का कारक माना जाता है. ऎसे में राहु व्यक्ति को विदेश में बसने के लिए एक मजबूत ग्रह बन सकता है. 

विदेश यात्राओं के लिए चंद्र ग्रह को भी एक विशेष कारक ग्रह के रुप में देखा जाता है. इसके अलावा शनि ग्रह जातक की आजीविका से जुड़ा होता है उसके कर्म से संबंधित होता है. कर्म ही हमें फल देने में महत्व रखते हैं. इसलिए जहां कुंडली में चंद्रमा आपको विदेश यात्रा का सौभाग्य प्राप्त करने में मदद कर सकता है, वहीं दूसरी ओर शनि यह दर्शाता है कि विदेश में आपका जीवन कितना अच्छा होगा आपका कर्मक्षेत्र कैसा होगा. जब विदेश यात्रा की बात आती है, तो चंद्रमा, शनि राहु केतु बारहवें घर में सबसे अच्छा प्रभाव देता है. इसके साथ ही दसवें भाव में शनि सबसे अच्छा फल देता है.

विदेश में बसने के लिए महत्वपूण ज्योतिष योग 

जन्म के समय यदि बुध बारहवें भाव में और शनि सातवें भाव में हो तो विवाह के बाद आपके विदेश जाने की प्रबल संभावना दिखाई देती है. यदि कुंडली में यह योग मजबूत स्थिति में तब विदेश में रहने का सपना अपने पार्टनर के द्वारा संभव हो सकता है. व्यक्ति विदेश में कुछ कानूनी दावपेजों को अपना कर भी वहां का वीजा प्राप्त कर सकता है.

कुंडली के चौथे भाव में राहु, शनि, मंगल या केतु की स्थिति बनी हुई है तो विदेश में बसने की प्रबल संभावना होती है. कुंडली का ये भाव आपकी जन्म भूमि का भी प्रतिनिधित्व करता है ओर जब यहां खराब ग्रहों का योग बनता है तो व्यक्ति अपने जन्म स्थान से दूर होता है. कुंडली में गुरु ग्रह को अनुकूल स्थान पर रखा जाए तो यह योग और भी मजबूत होता है.

कुंडली में पंचम भाव और बारहवें भाव के स्वामियों का अनुकूल संबंध बनने विदेश में जाकर शिक्षा पाने ओर वहीं रहकर अपना कर्म क्षेत्र निर्माण का अच्छा मौका होता है यह चीज विदेश में रहने के लिए काफी सहायक बनती है. 

कुंडली में अगर दशम भाव और बारहवें भाव के स्वामियों का संबंध भी व्यक्ति को विदेशी में रह कर काम करने का अवसर प्रदान करता है. ऎसे में काम के कारण व्यक्ति विदेश में निवास कर पाता है. 

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राशि अनुसार नौकरी का चुनाव क्यों करना अनुकूल होगा

नौकरी में सफल होने के लिए, करियर से संबंधित विचार बहुत जल्द ही कम उम्र में शुरू हो जाता है. करियर बनाने की दिशा में शिक्षा क्षेत्र का चयन पहला कदम होता है. जो इस बात को निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति शिक्षा के बाद सही नौकरी चुनने में सक्षम होगा. कई बार हम ये देखते हैं की पढ़ाई किसी विषय की होती है और नौकरी किसी और में मिलती है. इसलिए शिक्षा का विकल्प चुनना और लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में एक प्रभावी योग्यता रखना राशि के सहयोग द्वारा आसान हो जाता है. प्रत्येक राशि व्यक्ति की वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाली होती है. सही नौकरी, एक अच्छा करियर बनाना और साथ में नौकरी का आनंद लेने का अवसर तभी संभव है जब राशि का अच्छा प्रभाव कुंडली में बन रहा हो. 

शनि का दसवें घर में महत्व

ज्योतिष में शनि की शक्ति और उसके प्रभाव को विशेष माना जाता है, यह करियर और व्यवसाय में वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाला ग्रह है. किसी व्यक्ति के करियर का निर्धारण करने के लिए,दसवां भाव विशेष रुप से जिम्मेदार होता है क्योंकि इस पर शनि का स्वामित्व भी होता है. नौकरी के क्षेत्र में सफल होने के लिए, विभिन्न कारक हैं. इसमें दूसरा भाव एकादश भाव भी सहायक होता है क्योंकि ये धन लाभ का स्थान होता है.  

राशियों में स्वयं कुछ विशिष्ट लक्षण के साथ-साथ भावों का प्रभाव भी होता है. इसके आधार पर नौकरी और करियर में विभिन्न क्षेत्रों को आसानी से समझा जा सकता है. करियर की सफलता हासिल करने के लिए ग्रहों की स्थिति और राशि कुल मिलाकर विशेष रुप से जिम्मेदार होती हैं. शनि के अलावा बृहस्पति, सूर्य और बुध का प्रभाव भी व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने में बहुत प्रभाव डालता है. वे एक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों और कार्य क्षेत्र में प्रगति दिलाने में मदद करते हैं. इसलिए, ग्रहों और राशियों पर उनके प्रभाव के बारे में जानना हमेशा बेहतर होता है. एक उद्यमी, व्यवसाय या सरकारी नौकरी के रूप में अपना पेशा खोजना आपके जीवन को आसान बना देगा. संभावनाओं और अवसरों को खोजने के लिए राशि का विशेष स्थान होता है. 

दशम भाव और छठे भाव की राशियों का प्रभाव 

दसवां भाव आपके कार्यस्थल की स्थिति का स्थान भाव है. दशम भाव में मौजूद राशि और उसके स्वामी को देख कर कर्म को जान सकते हैं. काम के स्थान पर किस प्रकार का वातावरण हो सकता है इस चीज को भी इस घर में मौजूद राशि और स्थिति से समझा जा सकता है. यदि दशम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित है तो इसका मतलब यह हो सकता है कि आपके कार्यस्थल पर बहुत सारी बाधाएं और प्रतिस्पर्धा हो सकती है क्योंकि छठा घर बाधाओं और प्रतियोगिताओं का भाव होता है. कार्यस्थल पर आपकी स्थिति किसी ऐसे व्यक्ति की तरह है जो सेवा प्रदान करता है क्योंकि छठा घर भी सेवा प्रदान करने का घर है. सेवा दसवें घर पर पड़ने वाली राशि के आधार पर विभिन्न प्रकार की हो सकती है.

छठा भाव कार्य -कामकाज का घर है. काल पुरुष कुंडली में यह कन्या राशि का स्थान भी होता है. काम के माहौल में बहुत सारी कठिनाइयां और जटिलताएं इसी घर से देखने को मिलती हैं. और कड़ी मेहनत भी इसी से दिखाई देती है. इस का संबंध होने पर व्यक्ति ऐसी नौकरी या सेवा में भी हो सकते हैं जो सुरक्षित न हो अर्थात जिसमें परिवर्तन बना रह सकता है. यह एक इस तरह का काम हो सकता है जहां कभी भी निकाल दिया जा सकता है जब तक कि छठे भाव का स्वामी भी छठे भाव में दसवें भाव के स्वामी के साथ नहीं बैठा हो, बृहस्पति का शुभ संबंध बन रहा है तब कुछ सकारात्मकता भी मिलती है. 

मेष राशि – अगर दशम भाव पर पड़ती है और इसका स्वामी मंगल 6वें भाव में धनु राशि में स्थित है तो व्यक्ति उस कार्य में शामिल हो सकता हैं जहां धर्म से संबंधित जुड़े काम हों, कानून और धर्म का प्रतिनिधित्व दर्शाता है. अध्ययन के अध्ययन में शामिल हो सकते हैं, वकील, सलाहकार, सिविल सेवा प्रशासक, समाचार पत्र पत्रकार, चैरिटी, पुलिस अधिकारी, परामर्शदाता, सामुदायिक विकास कार्यकर्ता, संपादकीय सहायक जैसे नौकरियों में हो सकते हैं.

वृष राशि – वृष राशि दशम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी शुक्र छठे भाव में मकर राशि में स्थित है तो धन या वित्त से संबंधित बहुत सारे तर्क, झगड़े और विवाद हो सकते हैं और ऎसे काम से जुड़ने का अवसर मिलेगा, धन के प्रबंधन में काम कर सकते हैं, वित्तीय सेवाओं में हो सकते हैं, शुक्र वित्त का प्रतिनिधित्व करता है. वेबसाइटों में काम कर सकते हैं. 

मिथुन राशि –  मिथुन राशि दशम घर पर पड़ती हो और इसका स्वामी बुध कुम्भ राशि में छठे भाव में हो, तो विपणन सेवाओं जैसे कि दूरसंचार ऑपरेटरों, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के काम में शामिल हो सकते हैं. बीमा कंपनियां और स्टॉक ब्रोकर आदि में जा सकते हैं. 

कर्क राशि – कर्क राशि दशम भाव में हो और इसका स्वामी चंद्रमा छठे घर में मीन राशि में है, तो यह दर्शाता है कि कला और रचनात्मकता से संबंधित कामों में शामिल हो सकता है.चिकित्सक बन सकते हैं, रोगग्रस्त, असहाय या वंचित लोगों को ठीक करने वाले हो सकते हैं. वेब डिज़ाइन या अन्य ऑनलाइन कला-संबंधी काम में जुड़ सकते हैं 

सिंह राशि – सिंह राशि के दशम भाव पर होना और इसके स्वामी सूर्य का छठे भाव में मेष राशि में स्थित होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति सरकार या किसी निजी या सार्वजनिक कंपनी में किसी काम कर सकता है. नेतृत्व करने वाला हो सकता है, भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा के कामों में जा सकते हैं. 

कन्या राशि – कन्या राशि के दशम भाव में होना ओर इसके स्वामी बुध का छठे भाव में वृष राशि में स्थित होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति एकाउंटेंट और मनी मैनेजर हो सकता है, वित्तीय या खाद्य विभाग में काम कर सकता है. ब्यूटीशियन, मेकअप आर्टिस्ट, हेयरड्रेसर या सैलून चलाने वाले  काम में भी हो सकते हैं.

तुला राशि – तुला राशि के दशम भाव में होने और इसके स्वामी शुक्र के छठे भाव में मिथुन राशि में स्थित होने पर व्यक्ति सलाहकार के काम में शामिल हो सकता है. कई व्यवसायों को सरकारी नियमों और विनियमों का पालन करने की आवश्यकता होती है और इसलिए शुक्र होने के कारण, एक वित्तीय सलाहकार के रूप में कार्य कर सकते हैं. चार्टर्ड अकाउंटेंट या स्टॉक मार्केट एडवाइजर भी बना सकता है, ब्रांड के लिए मार्केटिंग और विज्ञापन से जुड़े काम में शामिल हो सकते हैं. 

वृश्चिक राशि – वृश्चिक राशि के दशम भाव में होने और इसके स्वामी मंगल के छठे भाव में कर्क राशि में होने पर यह व्यक्ति को डॉक्टर, मनोचिकित्सक, नर्स, सर्जन, बना सकता है . कानू से संबंधित कामों में जोड़ सकता है. कठोर कर्म एवं शक्ति सामर्थ्य युक्त कामों को दिखा सकता है. 

धनु राशि और मीन राशि- धनु राशि के दशम घर में होने और इसके स्वामी बृहस्पति के सिंह राशि में छठे भाव में स्थित होने पर गुरु, शिक्षक या वित्तीय सलाहकार से जुड़े काम मिल सकते हैं. मैनेजर और सलाहकार भी हो सकते हैं.

मकर राशि और कुंभ राशि
मकर और कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं. शनि का प्रभाव इनके करियर पर काफी असर डालता है. शनि के प्रभाव से ही ये अपने कार्य में निपुण एवं समर्पित भी होते हैं इन राश वालों के सेवा से जुड़ा हर प्रकार कार्य अनुकूल रह सकता है. परिश्रम द्वारा अपने भाग्य का निर्माण करते हैं. सलाहकार एवं स्म्चार के कार्यों में जुड़ कर जनता के साथ संबंध बना कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

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वृषभ लग्न के लिए मारक ग्रह और उसका प्रभाव

वृष लग्न शुक्र के स्वामित्व का लग्न है इस लग्न के लिए दूसरे और सातवें भाव को मारक कहा जाता है. दूसरे और सातवें भाव के राशि स्वामी को मारकेश कहा जाएगा. वृष लग्न के लिए द्वितीय भाव में मिथुन राशि आती है और मिथुन राशि का स्वामी बुध ग्रह होता है. इसके अलावा सप्तम भाव में वृश्चिक राशि आती है ओर इस वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है. इस कारण से वृष लग्न के लिए बुध और मंगल मारक स्वामी और मारक ग्रह बन जाते हैं. 

मारक भाव में ग्रहों का असर 

इसी प्रकार यदि दूसरे भाव में मिथुन राशि स्थान में कोई ग्रह बैठा हुआ है अथवा सप्तम भाव स्थिति वृश्चिक राशि में कोई ग्रह हों तो वे ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे क्योंकि उनकी दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होंगी. 

मारक ग्रह की प्रकृति 

मारक ग्रह के फल जानने के लिए जरुरी होता है है कि सबसे पहले, मारक ग्रहों की प्रकृति की जांच कर ली जाए.  

बुध ग्रह – बुध एक सामान्य र्फल देने वाला ग्रह है इसे तटस्थ ग्रह भी कहा जा सकता है. बुध जिस ग्रह के साथ युति करता है उसकी प्रकृति के अनुसार या जिस ग्रह की राशि में होता है उसकी प्रकृति के अनुसार अपना स्वभाव बदलता है. उसी अनुसार अपने फलों को देता है. 

मंगल ग्रह – मंगल ग्रह को अग्नि तत्व युक्त ग्रह कहा गया यह स्वभाव से पाप ग्रह भी कहलाता है जो कठोर होता है. इस कारण से मंगल की स्थिति कुछ चिंता दर्शाता है. 

वृष लग्न के लिए बुध और मंगल  

बुध ग्रह – वृषभ लग्न के लिए बुध ग्रह बुध पंचम भाव का स्वामी भी होता है जहां बुध की कन्या राशि आती है. यह स्थान त्रिकोण का स्थान होता है जिसे धर्म भाव भी कहा जाता है.

मंगल ग्रह – वृष लग्न के लिए मंगल द्वादश भाव का स्वामी भी होता है जहां मंगल की अन्य  मेष राशि स्थित होती है. मंगल का ये स्थान दुःस्थान भाव होता है. यह शुभता की कमी दर्शाता है. 

विशेष : इसलिए, यदि हम इन ग्रहों की तुलना करें तो बुध ग्रह मंगल जितना खराब नहीं होता है क्योंकि बुध एक तटस्थ ग्रह है और साथ ही धर्म त्रिकोण भाव का स्वामी भी होता है. किंतु मंगल दोनों ही जहं पर अच्छा स्त्वामित्व नहीं पाता है. इसलिए, वृष लग्न के व्यक्ति को बुध की दशा की तुलना में मंगल दशा में अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है. मंगल अधिक मारकेश बन कर असर देता है. 

मारक भावों में बैठे ग्रहों की प्रकृति 

इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की आवश्यकता होती है जो मारक घरों में स्थिति होते हैं. जैसे, यदि कोई ग्रह मारक बाव में बैठा हुआ है और उसकी प्रकृति एवं प्रभाव शुभदायक है तो वह अनुकूल असर देने में भी सक्षम होगा. उसकी दशा बहुत अधिक तनाव देने से बचाव करती है. इसके दूसरी ओर मारक भाव स्थान पर कोई पाप ग्रह बैठा हुआ है तो यह स्थिति चिंता को बढ़ाती है. ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं और उन्हें अपनी दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है. 

मारकेश का प्रभाव 

मारकेश एक सबसे महत्वपूर्ण कारक है. वृष लग्न की कुण्डली में बुध और मंगल को  मारकेश का स्थान प्राप्त है ऎसे में यह दोनों ग्रह लग्न की शुभता और शक्ति का निर्णय भी करते हैं. 

मारकेश बुध के शुभाशुभ परिणाम 

मारकेश बुध अगर कुंडली में अपनी राशि में हो, मित्र राशि स्थान में हो, तटस्थ हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या फिर उच्च राशि में स्थित हो तो ये स्थिति अनुकूल रहती है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति इस मारक दशा में कुछ सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ सकता है. इस दशा के दौरान भी लाभ प्राप्त कर सकता है. यदि बुध ग्रह का योग एक शुभस्थ स्थिति में बनता है और बुध अच्छी स्थिति  में है तो बेहतर रहता है 

इसके विपरित अगर बुध शत्रु स्थान में हो, निर्बल स्थिति में हो, नीचस्थ हो, पाप करतारी योग में हो तो, यह दर्शाता है कि व्यक्ति को इस दशा समय में परेशानी ओर कष्ट बना रह सकता है चीजों से निपटने के लिए सजग रहना होगा.  अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होगी. उदाहरण के लिए, यदि बुध एकादश भाव में मीन राशि में स्थित हो, तो व्यक्ति को बहुत सी आय संबंधी दिक्कतों, पारिवारिक समस्याओं से परेशान होना पड़ सकता है, क्योंकि बुध दूसरे घर और ग्यारहवे घर दोनों को प्रभावित करता है. जिसका अर्थ है कि धन के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होगी. 

मारकेश मंगल का प्रभाव 

मंगल ग्रह दशा के समय पर भी यदि मंगल कुंडली में स्वराशि में हो, मित्र राशि में हो, उच्च राशि में हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या शुभस्थ हो तो बेहतर होगा. क्योंकि यह अभी भी एक स्वाभाविक रूप से हानिकारक ग्रह है. अशुभ ग्रह जीवन में कुछ चुनौतियाँ लेकर आता है. अधिक परेशानी तब होगी जब मंगल शत्रु स्थान में हो, नीच राशि में हो, पाप ग्रह के साथ हो या पाप कर्तरी मे हो. तब मंगल की दशा में व्यक्ति को बेहद सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

मारक भाव में ग्रहों का असर 

मारक भाव में स्थित ग्रहों की स्थिति को शक्ति को देखना भी आवश्यक होता है. शुभस्थ ग्रह के होने पर व्यक्ति बिना किसी नुकसान के मारक दशा के माध्यम से आगे बढ़ सकता है लेकिन अगर ग्रह शुभ न हो तो खराब फल मिलते हैं अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है.  उदाहरण के लिए, दूसरे घर मिथुन राशि में चंद्रमा ज्यादा चिंता नहीं देता है, लेकिन अगर चंद्रमा सातवें घर वृश्चिक में है जहां यह कमजोर है तो व्यक्ति को मारक दशा के दौरान सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

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मेष लग्न वालों के लिए कौन है मारक ग्रह और उसका जीवन पर प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन की सभी गतिविधियों पर पड़ता है. इन सभी के अच्छे और खराब फल व्यक्ति पर पड़ते हैं. कुछ न कुछ उतार-चढाव हर व्यक्ति के जीवन को अवश्य प्रभावित करते हैं. सुख और दुख के इन रंगों में कब कौन सा रंग हमें प्रभावित करेगा इसका अनुमान कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति से ही पता चल पाता है. व्यक्ति को मिलने वाले इन सभी फलों में एक फल जो कष्ट, दुख या मारक के रुप में जब आता है तो चिंता, कष्ट, दुर्घटना और रोग इत्यादि से ग्रसित कर देने वाला हो सकता है. इसी क्रम में आज हम बात करेम्गे मेष लग्न पर पड़ने वाले मारक ग्रह और उसके प्रभाव पर. 

कौन होता है मारक भाव और मारक भाव का स्वामी 

ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के दूसरे भाव और सातवें भाव को मारक भाव के रुप में जाना जाता है. इनके अतिरिक्त भी कुछ मारक भाव होते हैं किंतु मुख्य रुप से इन दो स्थानों को विशेष रुप से मारक कहा गया है. अब जन्म कुंडली के इन दो भावों में जो भी राशियां मौजूद होती हैं उन्हीं के स्वामी मारकेश कहलाते हैं. 

मेष लग्न के लिए मारकेश कौन होता है

मेष लग्न की कुंडली में जब हम दूसरे ओर सातवें घर को देखते हैम तो पाते हैं कि यहां पर दूसरे घर में वृष राशि आती है और सातवें घर में तुला राशि अथान पाती है. ऎसे में मेष लग्न के लिए वृष राशि और तुला राशि मारक की भूमिका निभाती है. अब इन दोनों राशियों के स्वामियों को देखें तो वृष राशि के स्वामी शुक्र ग्रह हैं तथा तुला राशि के स्वामी भी शुक्र ग्रह ही हैं. अत: इन दोनों राशियों का स्वामित्व शुक्र को ही प्राप्त होने से मेष लग्न के लिए शुक्र मारकेश का फल देता है. तो, शुक्र इनका मारक स्वामी या मारक ग्रह बन जाता है.

मारक भाव में ग्रहों का प्रभाव 

मारक भाव और मारक भाव के स्वामी को जान लेने के बाद देखना होता है की दूसरे या सातवें घर में यदि कोई ग्रह बैठे हुए हैं तो वह ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे क्योंकि उनकी दशाएं भी मारक घरों को सक्रिय करेंगी. जब भी कोई ग्रह किसी भाव में बैठता है तो वह उस भाव के साथ जुड़ कर उस भाव की राशि के साथ जुड़ कर अपना फल देता है. इसलिए मारक भाव में बैठे ग्रहों का भी काफी महत्व होता है ओर इनका असर व्यक्ति को मारक का प्रभाव देने वाला होता है. 

मारक ग्रह की प्रकृति 

मारक ग्रह को जान लेने के पश्चात ये समझने की भी आवश्यकता होती है की वह किस प्रकार का ग्रह है. ग्रहों की शुभता एवं पाप प्रकृति के अनुसार भी फल की गुणवत्ता में कमी और अधिकता देखने को मिलती है. अब सबसे पहले शुक्र को देखें तो पाते हैं कि यह सभी के लिए सबसे अधिक शुभ एवं लाभकारी ग्रह माना जाता है. जऎसा इसलिए है क्योंकि शुक्र ग्रह मूल प्रकृति शुभ दायक एवं फायदेमंद होती है, शुक्र ग्रह अपनी सबसे खराब स्थिति में भी कुछ लाभ अवश्य प्रदान करने वाला हो सकता है. इसका अर्थ यह भी है कि अगर यह मारक ग्रह होने के कारण अपनी दशा में कष्ट को दिखाता है मृत्युतुल्य कष्ट जैसी परिस्थितियों का कारण बनता है, तब भी व्यक्ति को ऐसी घटनाओं से कुछ लाभ प्राप्त हो सकता है, क्योंकि यह मूल रूप से एक शुभकारी ग्रह है. 

शुक्र ग्रह लाभ के रुप में बीमा राशि, विरासत धन आदि को दिखा सकता है. इसके साथ ही शुक्र के फल इस बात पर भी निर्भर करते हैं की वो कहां स्थिति होगा कुंडली में और उसकी स्थिति किस प्रकार की होगी. उसकी शुभता अशुभता का जन्म कु़डली के अनुसार किस प्रकार का असर होगा. 

शुक्र की शुभ ग्रह से युति दृष्टि बन रही हो, शुक्र ग्रह की अशुभ ग्रह से युति दृष्टि बन रही है, शुक्र वक्री है या मार्गी है, शुक्र अस्त है या बली है, शुक्र नीचस्थ है या उच्च अवस्था का है. शुक्र वर्ग कुंडलियों में कैसी स्थिति में है ये सब भी ध्यान देने योग्य बाती होती है शुक्र के मारक तत्व को समझने हेतु. 

मारक भावों में स्थित ग्रहों की प्रकृति 

इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत होती है जो मारक भावों में बैठे हुए होते हैं. जैसे, यदि वे प्राकृतिक रुप से शुभ या पाप ग्रह है तो उसके अनुसर भी असर देखने को मिलेगा. ये ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं और उन्हें इन दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है. 

मारकेश का फल 

मारकेश सबसे महत्वपूर्ण कारक है जिसमें शुक्र को मेष लग्न में स्थान मिला है क्योंकि यह मेष लग्न की शक्ति और उसके प्रभाव पर भी अपना बहुत अधिक प्रभाव रखने वाला होगा. शुक्र ग्रह के स्वयं की राशि में होने, मित्र राशि में होने, तटस्थ राशि में होने, मूल त्रिकोण राशि में होने, उच्च राशि में स्थिति होने का अर्थ है कि व्यक्ति कुछ सकारात्मक असर दे सकता है. अपनी मारक दशा से प्रभावित हुए व्यक्ति को कुछ सकारात्मक स्थिति या इससे निपटने की शक्ति दे सकता है और अपनी दशा के दौरान भी लाभ प्राप्त कर सकता है. क्योंकि शुक्र अब कुछ लाभकारी ग्रह बना हुआ है और यह इन राशियों में अच्छी स्थिति में है. 

इसके विपरित यदि शुक्र शत्रु राशि में हो, नीच अवस्था में हो, पाप कर्तरी योग में हो पाप प्रभाव में तो ये स्थिति ग्रह को और कमजोर बनाने वाली होगी. ऎसे में शुक्र की दशा का समय परेशानी अधिकि दे सकता है. व्यक्ति को शुक्र दशा से निपटने के लिए बहुत अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होती है. उदाहरण के लिए, यदि शुक्र छठे भाव में कन्या में है, तो यह न केवल मारक स्वामी होने के बाद नीच का होता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के घर में भी नीच का होता है. इसका मतलब है कि उन्हें स्वास्थ्य के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है और उन्हें इस दशा को सुरक्षित रूप से पार करने के लिए मारक दशा शुरू होने से पहले ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए.

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चंद्रमा के उच्च अवस्था और नीच अवस्था के पीछे के ज्योतिषिय कारण

चंद्रमा की गति व्यक्ति के मन और स्वभाव को बहुत अधिक प्रभावित करती है. ज्योतिष अनुसार चंद्रमा का असर तेजी से पड़ता है. चंद्रमा किसी भी राशि में लगभग सवा दो दिन तक रहता है उसके पश्चात आगे बढ़ जाता है. चंद्रमा का यही गुण व्यक्ति के भीतर भी तीव्रता, परिवर्तन, मूड में होने वाले बदलाव को दिखाता है. चंद्रमा को वृश्चिक राशि में नीच अवस्था का कारक माना जाता है और उच्च स्थिति का वृष राशि का माना जाता है. 

आइए समझने की कोशिश करते हैं कि चंद्रमा वृश्चिक राशि में और विशाखा नक्षत्र में क्यों नीच का होता है. ये ऊर्जाएँ कई तरह की विशेषताओं को दर्शाती हैं .

चंद्रमा – चंद्रमा मन, भावनाओं, माता, मन की शांति, गृह पर्यावरण, जल, दूध आदि का प्रतिनिधित्व करता है.

विशाखा – विशाखा नक्षत्र परामर्श देने वाला दाताओं और मार्गदर्शन करने वाला नक्षत्र होता है. यह विभाजन, विपरित दिशा का भी नक्षत्र होता है.

वृश्चिक राशि 

विशाखा नक्षत्र में वृश्चिक राशि का कुछ अंश समाहित होता है, इसलिए वृश्चिक राशि और उसका प्रतिनिधित्व भी महत्वपूर्ण हो जाता है. वृश्चिक राशि आठवीं राशि होती है, इसलिए यह कुंडली के अष्टम भाव से संबंधित चीजों और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है. इस भाव से अचानक घटनाएं, गोपनीयता, अंधकार की दुनिया, गुप्त विज्ञान, अनुसंधान, विरासत, दूसरों की सेवा, करों आदि. इन चीजों के अलावा वृश्चिक राशि का चिन्ह परिवर्तन का भी प्रतिनिधित्व करता है. इसका अर्थ है पूरी प्रकृति को बदलना. यह एक ऐसा चिन्ह है जो हर ज्योतिषी को पसंद होता है, क्योंकि इसमें अधिकतम रहस्य मौजूद होते हैं, इसलिए ज्योतिषी को शोध करने की अच्छा गुण भी मौजूद होता है. 

यह एक ऎसा संकेत है जिसके बारे में कोई भी सटीकता से नहीं बता सकता है कि इसमें ग्रहों का क्या होगा, क्योंकि यह स्वयं गोपनीयता का संकेत है. वृश्चिक राशि कुंडली में जहां कहीं भी स्थित होता है. उस घर से जुड़ी चीजों को और अधिक स्थिर बनाने में आपको सबसे बड़ी चुनौतियां हो सकती हैं. वृश्चिक भी उन अद्वितीय राशियों में से एक है जिसके दो स्वामी होते हैं, यानी मंगल और केतु. पश्चिमी ज्योतिष में, प्लूटो भी वृश्चिक का सह-स्वामी माना जाता है. यह सब वृश्चिक को एक अराजक तत्व भी बनाता है. वृश्चिक राशि में ढाई नक्षत्रों का चरण होता है, यानी विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र होता है. 

वृश्चिक राशि में चंद्रमा के कमजोर होने के कारण

चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है और वृश्चिक राशि जीवन में अस्थिरता, परिवर्तन, रहस्य और उतार-चढ़ाव को दर्शाती है. अब मन कभी भी जीवन के भय या अनिश्चितताओं में नहीं जीना चाहता. जीवन में सुविधाजनक स्थिति में रहना चाहता है. किसी अस्थिरता या परिवर्तन का विचार भी मन में प्रतिक्रिया लाता है जो उस परिवर्तन की ओर धकेलता है और विरोध करना चाहता है. यह भी समझ में आता है क्योंकि यदि समय और ऊर्जा केवल जीवन की अस्थिरताओं से निपटने के लिए है तो अपने समय और ऊर्जा का उपयोग जीवन में कुछ सार्थक और उत्पादक करने के लिए कब कर पाएंगे, वृश्चिक अस्थिरता और परिवर्तन का संकेत है, इसलिए यह स्पष्ट है कि वृश्चिक राशि में चंद्रमा कमजोर महसूस करता है. यह एक जल तत्व राशि है जो भावनाओं से परिपूर्ण भी है तो भावनाओं में बहकर ही जीवन के गलत फैसले होते देखे जा सकते हैं. 

विशाखा में चंद्रमा के कमजोर होने के कारण 

वृश्चिक में विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठ नक्षत्र शामिल होते हैं. चंद्रमा केवल विशाखा नक्षत्र में ही क्यों नीच का होता है? इसके पिछे नक्षत्र को समझने की आवश्यकता होगी. विशाखा का अर्थ है दो शाखाएं और इसे अलग-अलग दिशाओं में जाने वाली शाखाओं द्वारा भी दर्शाया जाता है. यह विभाजित रास्तों या जीवन की दिशाओं की ओर संकेत करता है. चंद्रमा मन है. दिमाग में सबसे बड़ी परेशानी तब होती है जब जीवन में बड़ी अराजकता या अस्थिरता से गुजर रहे होते हैं और फिर हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने की आवश्यकता होती है जो किसी भी तरह से जा सकता है. जैसा कि विशाखा जीवन में विभाजित दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है, विशाखा नक्षत्र में चंद्रमा एक व्यक्ति को बार-बार स्थिति में लाने के लिए बना सकता है जहां उसे भ्रमित किया जा सकता है कि उसे किस जीवन पथ का अनुसरण करना चाहिए और किस जीवन पथ से बचना चाहिए. ऎसे में भ्रम की इस स्थिति के कारण चंद्रमा विशाखा में सबसे कमजोर दिखाई देता है.

चंद्रमा वृश्चिक राशि में विशाखा नक्षत्र के 3 अंश पर नीच का होता है. ऎसा इसलिए है क्योंकि केवल विशाखा नक्षत्र का अंतिम पद वृश्चिक राशि में आता है. चंद्रमा वृष राशि से 3 डिग्री पर उच्च का होता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इसे वृश्चिक राशि के 3 डिग्री पर नीच का होना चाहिए, अर्थात 180 डिग्री के विपरीत यह स्थिति निर्मित होती दिखाई देती है. यही कारण हैं कि चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीच का है और विशाखा नक्षत्र 3 डिग्री पर है.

चंद्रमा के उच्च होने का कारण

चंद्रमा वृष राशि में और कृतिका नक्षत्र में उच्च स्थिति को पाता है. कृतिका नक्षत्र देखभाल, गोपनीयता, रिसर्च, सुरक्षा, पालन-पोषण, आलोचना, चीजों को काटने, सर्जरी और रक्तपात का नक्षत्र होता है. यह मेष राशि से वृष राशि में फैलता है. यह सूर्य द्वारा प्रभावित होता है. 

वृष राशि 

कृतिका नक्षत्र वृष राशि में स्थान पाता है. वृषभ राशि, राशि चक्र की दूसरी राशि है, इसलिए यह कुंडली के दूसरे घर से संबंधित कई चीजों का भी दर्शाती है. धन, संपत्ति, बचत, वित्त, विलासिता और वाणी कुटुम्ब इसी भाव से देखे जाते हैं. विलासिता और जीवन की सभी सुविधाओं से संबंधित स्थान वाली राशि है तथा शुक्र के स्वामित्व की राशि भी है. वृष राशि में ढाई नक्षत्र होते हैं, कृतिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र और मृगशिरा नक्षत्र. 

वृष राशि में चंद्रमा के उच्च होने के कारणों में वृषभ राशि में चंद्रमा की स्थिति शुभता को अधिक पाती है. यहां चंद्रमा की चंचला कम होती है क्योंकि वृष धैर्यशील होती है पृथ्वी तत्व गुण इसमें होता है. धन, संपत्ति, भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति भी वृष राशि में अच्छे से दिखाई देती है. कुंडली में जहां कहीं भी चंद्रमा होता है, यदि उस भाव, राशि, नक्षत्र से संबंधित गुणों में खुद को शामिल करता है तो मन शांति और संतुलन को पाता है.यही कारण है कि वृष राशि के जातकों की सुख-सुविधाओं, विलासिता और धन में वृद्धि और विकास के लिए चंद्रमा सबसे अच्छा परिणाम  पाता है. जब चंद्रमा वृष राशि में होता है, तो यह व्यक्ति वित्त, धन, जीवन की भौतिकता के बारे में बहुत अधिक चिंतित नहीं होता है. चंद्रमा इस राशि में अपनी ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने में सक्षम भी होता है, भविष्य की चिंता किए बिना, चंद्र की स्थिति व्यक्ति को मजबूत आयाम देती है.  

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विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त : कब करें बच्चे की शिक्षा का आरंभ

शिक्षा शुरू करने में मुहूर्त का महत्व

शिक्षा का प्रभाव जीवन के विकास और निर्माण दोनों में सहायक होता है. भारतीय संस्कृति में शिक्षा का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. वेदों में वर्णित सूक्तों द्वारा शिक्षा के महत्व को समझा जा सकता है. ज्ञान के बिना विकास की प्रक्रिया में जो चमक है वह शिक्षा के द्वारा ही दूर तक देखने को मिलती है. बच्चे के जन्म के पश्चात उसके लिए एक मूल्यवान संस्कार होता है शिक्षा ग्रहण करना. शिक्षा द्वारा ही बच्चा अपने मूल रहस्य को समझ पाने में भी सफल होता है.

विद्या संस्कार हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक है. शिक्षा का आरंभ बच्चे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण समय होता है. जब बच्चे की उम्र शिक्षा के योग्य हो जाती है, तब उनका स्कूल में प्रवेश कराया जाता है. दूसरी ओर, शिक्षा आरंभ संस्कार के समय पर मंत्रों उच्चारण एवं शुभ मुहूर्त समय का चयन करके इसे किया जाता है. 

विद्यारंभ संस्कार 

विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाडयुः प्रवर्धते।

विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्धिद्ययामृतश्नुते।।

वेद शास्त्रों द्वारा भी शिक्षा के महत्व को बहुत आवश्यक माना गया है जिसके अनुसार विद्या को प्राप्त करके ही पापों का शमन संभव है. आयुष एव्म सिद्धियों की प्राप्ति भी विद्या द्वारा ही होती है. किंतु विद्या का नहीं होना चारों फलों को निष्फल कर देता है. धर्म अर्थ काम मोक्ष को प्राप्त करने हेतु विद्या अत्यंत आवश्यक कार्य माना गया है. 

हिंदू धर्म में विद्यारंभ संस्कार काफी विशेष माना गया है यह उपनयन संस्कार की तरह ही समानता रखता प्रतित होता है. उपनयन संस्कार में गुरुकुल का आरंभ होता है और इसके साथ ही बच्चे का वेद अध्ययन शुरु होता है. बच्चा गुरुकुल में जाकर शिक्षा अर्जित करता है. 

विद्यारंभ संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है. विद्यारंभ एक संस्कृत शब्द है जो “विद्या” का अर्थ है शिक्षा और “आरंभ” जिसका अर्थ है शुरुआत. यह एक महत्वपूर्ण समय होता है जो एक बच्चे की प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. यह आमतौर पर पांच साल की उम्र के बच्चे के बाद आयोजित किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि इस समय बच्चे का मस्तिष्क अब शिक्षा ग्रहण करने हेतु तैयार होता है.

बच्चा स्कूल जाने और इस उम्र में पढ़ाई शुरू करने के लिए तैयार होता है. विद्यारंभ संस्कार को सही मुहूर्त में करना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है. इस दौरान बच्चों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, विद्यारंभ मुहूर्त को बच्चे की जन्म कुंडली के साथ-साथ ग्रह नक्षत्र की स्थिति के आधार पर तय होता है.

विद्यारंभ मुहूर्त के लिए शुभ मानी जाने वाले विशिष्ट तिथियां, महीने और नक्षत्र यहां दिए गए हैं:

नक्षत्र: अश्विनी, मृगशिरा, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, रेवती, पूर्वा आषाढ़, उत्तरा आषाढ़, चित्रा, स्वाति, अभिजीत, धनिष्ठा, श्रवण, पूर्व भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और शतभिषा को विद्यारंभ के लिए शुभ माना जाता है.

दिन: विद्यारंभ करने के लिए रविवार, सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार सप्ताह के सबसे अच्छे दिन माने जाते हैं.

तिथियाँ: चैत्र-वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि इस शुभ कार्य के लिए उत्तम मानी जाती हैं 

राशि चिन्ह: विद्यारंभ के मुहूर्त को दर्शाते समय वृष, मिथुन, सिंह, कन्या और धनु राशि पर विचार किया जाता है.

मुहूर्त का महत्व बच्चे की शिक्षा पर असर 

स्कूली शिक्षा कब शुरू होनी चाहिए और इसके लिए उपयुक्त समय क्या होगा. ज्योतिष के माध्यम से इसे काफी उचित रुप से बताया गया है. शिक्षा एवं अध्ययन शुरू करने के लिए कौन सा समय आदर्श है, यह तय करने के लिए एक गहन अध्ययन किया जाता है. कौन सा शैक्षिक क्षेत्र उपयुक्त होगा इसका भी अध्ययन किया गया है.

शिक्षा शुरू करने का महत्व होता है बच्चे को ज्ञान से परिचित कराना है. बच्चे की जन्म कुंडली, ग्रहों, नक्षत्रों आदि के आधार पर दीक्षा अनुष्ठान के लिए समय चुना जाता है जिसे विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त कहा जाता है.अन्य सभी संस्कारों की तरह शुभ मुहूर्त का होना भी बहुत जरूरी है. शिक्षा का ज्ञान बच्चे के जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाता है. इसकी शुरुआत ईष्ट देव, देवताओं और माता-पिता के आशीर्वाद से करनी चाहिए. प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परंपरा थी, तब माता-पिता बच्चे को गुरुकुल भेजने से पहले घर में अक्षरों को समझते थे. इसी तरह, आधुनिक समय में, भारतीय ज्योतिष की प्राचीन विरासत बच्चों को उनकी शिक्षा शुरू करने के लिए उत्तम मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है,

शिक्षा आरंभ का शुभ समय कैसे देखें 

बच्चे के जीवन में किये जाने वाले सभी संस्कार उसकी कुंडली के अनुसार उचित समय पर ही किये जाते हैं, क्योंकि उस विशेष समय में ग्रहों, नक्षत्रों, चन्द्रमा की स्थिति संतान के अनुसार शुभ होती है. जो उस समय किए गए कार्य में सफलता देता है और भविष्य का निर्माण करता है. शिक्षा शुरू करने के लिए मुहूर्त निकालते समय कुछ बातों का ध्यान एवं ज्ञान भी होना चाहिए. बच्चे की कुंडली, ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए. जो भी हो, यदि मंगल और शनि को अलग-अलग ग्रहों से सकारात्मक प्रभाव मिलता है, तो ये अच्छी स्थिति होती है

सप्ताह के  तीन दिन यानि बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार बच्चे की शिक्षा शुरू करने के लिए शुभ होते हैं.इसके अलावा, रविवार भी उसी के लिए एक शुभ दिन है क्योंकि सूर्य इस दिन का देव हैं और आत्मा का कारक है. शनि एक पाप ग्रह और धीमा ग्रह है और यह शनिवार का अधिपत्य रखता है तो इस दिन को बच्चे की शिक्षा शुरू करने के लिए अशुभ माना जाता है.

पूजा के दौरान भगवान श्री गणेश और देवी सरस्वती का ध्यान एव्म पूजन अवश्य करना चाहिए. भगवान गणेश विज्ञान, कला और बुद्धि के देवता हैं और सरस्वती शिक्षा और ज्ञान की देवी हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और बच्चे के शैक्षिक जीवन में शुभ फल प्रदान करते हैं. इसके अलावा, पूजा में तुलसी, दावत, लेखनी, स्लेट आदि वस्तुओं को शामिल करते हैं तब विद्यारंभ पूजा को किया जाता है. 

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राहु और चंद्रमा का कुंडली के सभी भावों में प्रभाव

जन्म कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति अत्यधिक संवेदनशील और मानसिक स्वभाव के कारण कुछ अत्यधिक भावनात्मक स्थितियों को जन्म दे सकती है. राहु एक शक्तिशाली छाया ग्रह है, और जब चंद्रमा के साथ जुड़ता है, तो वास्तविकता अधिक परेशान करती है. वैदिक ज्योतिष में राहु और चंद्रमा की युति का प्रभाव बहुत अधिक भावुक कर सकता है या क्रोध और आक्रोश में बदल सकता है. स्वभाग एवं मानसिकता पर इसका काफी कठोर प्रभाव दिखाई देता है. 

राहु और चंद्रमा का एक साथ कुंडली के विभिन्न भावों में कैसा होगा असर  

कुंडली के सभी 12 भाव अपने अपने फल अनुरुप विशेषता दिखाते हैं. किसी भी भाव में राहु और चंद्रमा की युति जन्म कुंडली में ग्रहण योग बनाती है, और राहु का मन पर गहरा असर दिखाई देता है. राहु-चंद्र युति व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है किंतु आत्मिक असंतोष कभी समाप्त नहीं हो पाता है. 

प्रथम भाव में राहु और चंद्रमा की युति

कुंडली के पहले घर में राहु और चंद्रमा का एक साथ होना नकारात्मक प्रभाव अधिक दे सकता है. लग्न को कमजोर करता है. नकारात्मक ऊर्जा असर डाल सकती है. जीवन में अनेक बाधाएं पीछा कर सकती हैं. व्यक्ति स्वभाव से अधिक चतुर होता है. झूठ बोलने में या बातों को घुमाने में माहिर हो सकता है. परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार और प्रश्न को अपने अनुसार बदल सकते हैं. राहु और चंद्रमा की युति के प्रभाव से जीवन शैली में भौतिकता का समावेश होगा. चीजों के प्रति आकर्षण होगा. भौतिकवादी दिमाग अधिक काम कर सकता है. अपने को दूसरों से बेहतर मानने की प्रवृत्ति होगी. जन्म कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति होने से कल्पना में अधिक, चतुर व्यक्तित्व है,  रचनात्मक पृष्ठभूमि पर दृढ़ता से ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. राहु और चंद्रमा की युति के दुष्प्रभाव रुप में एक चंचल और बेचैन व्यक्तित्व वाले हो सकते हैं. नकारात्मक विचारों में रहना और काम और प्रकृति में गोपनीयता रखना जीवन भर की आदत बन सकती है.

दूसरे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

जन्म कुंडली के दूसरे घर में राहु चंद्रमा की युति होने से आकर्षक ओर स्मार्ट व्यक्तित्व के होंगे. वाणी में मधुरता रहेगी. अपनी खुद की चीज़ों के बारे में शेखी बघारना पसंद कर सकते हैं. चालाक होंगे. किसी को अपनी बातों के अनुसार ढालना आसान होगा. धोखेबाज हो सकते हैं. परिवार से दूर जाकर रहना पड़ सकता है. विवाद और पाखंडी लोगों से अधिक प्रभावित हो सकते हैं. परिवार प्रसिद्ध होगा.  रूढ़िवादी मानसिकता होगी. माता के लिए स्थिति कुछ कमजोर रह सकती है ओर उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. व्यक्ति का स्वयं का भी स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. आंखों की रोशनी और मुंह की समस्याओं से परेशानी हो सकती है. रक्त और पाचन तंत्र से संबंधित परेशानी हो सकती है. 

तीसरे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

व्यक्तित्व की दृष्टि से तीसरे भाव में चंद्रमा और राहु की युति शुभ फल देती है.  साहसी बनाती है, मानसिक स्वास्थ्य के साथ, सम्मोहक और आकर्षक संचार की शक्ति भी प्राप्त होती है. नकारात्मक पक्ष पर के रुप में अपने आंतरिक भय से परेशान हो सकते हैं. आराम और भौतिक सुख साधनों को पाने के लिए आगे रह सकते हैं.  व्यक्ति के भीतर अहम, झूठा अहंकार हो सकता है. बाहर से काफी बोल्ड होने का दिखावा कर सकता है. अंदर से भ्रमित रह सकते हैं. जीवन में गलत निर्णय या गलत चीजों की संगत से अधिक प्रभावित रह सकते हैं.  भाई-बहन आपके साथ अच्छे समय का आनंद नहीं ले पाएंगे. आप लोगों के साथ विचारधाराओं का टकराव अनुभव कर सकते हैं. जीवन में यात्रा करने के कई मौके मिल सकते हैं. अपने जन्म स्थान से दूर रह सकते हैं या विदेश में निवास कर सकते हैं. 

चौथे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

चौथे भाव में राहु और चंद्रमा के साथ होने पर चंचल मन वाले एक बेचैन व्यक्ति होंगे. सोचने की शक्ति का बुद्धिमानी से उपयोग नहीं कर पाते हैं, छल कपट से जुड़ सकते हैं. इच्छाओं के पूरा न होने के कारण हताश स्थिति का सामना करना पड़ेगा. अधिकांश समय अपने जीवन से असंतुष्ट रह सकते हैं. चौथे घर में चंद्रमा और राहु की युति के सकारात्मक प्रभाव रुप में मेहनती व्यक्तित्व प्राप्त होता है. जीवन को देखने के तरीकों में अंतर हमेशा बना रहेगा. साथ ही, चीजों के बारे में बहुत अधिक तनाव ले सकते हैं. माता का स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है या चिंता में अधिक रह सकती हैं. कदम कदम पर  बाधाएँ भी आती हैं. हर समय स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक रह सकती हैं. विशेष रूप से, रक्त संबंधी समस्याएं और चोट लगने की संभावना भी हो सकती है.

पंचम भाव में राहु और चंद्रमा की युति

पंचम भाव में चंद्रमा और राहु की युति होने से स्वभाव से तेज दिमाग वाले और चतुर हो सकते हैं. दिमाग तेज होगा, लेकिन इसका समझदारी से इस्तेमाल करना आसान नहीं होगा. कई बार आत्मविश्वास की कमी भी अधिक हो सकती है. पंचम भाव में राहु और चंद्र की युति के कारण पितृ दोष होता है. महिलाओं को प्रसव से संबंधित समस्याएं हो सकती है. गर्भपात का सामना कर सकते हैं. सीखने और एकाग्रता में समस्या हो सकती है. काम तुरंत नहीं हो सकता है. रुकावटें, मुसीबतें और बुरी नजरें जीवन भर पीछा कर सकती हैं. पंचम भाव में राहु और चंद्रमा की युति के सकारात्मक प्रभाव के रुप में राजनीति में सफलता मिल सकती है. प्रसिद्ध हो सकते हैं. आधिकारिक लोगों के साथ मजबूत संबंध हो सकते हैं. जीवन में कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. 

छठे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

छठे भाव में चंद्रमा और राहु की युति व्यक्तित्व की दृष्टि से बहुत शुभ नहीं होती है. जीवन भर मानसिक तनाव का अनुभव हो सकता है. आभा कमजोर हो सकती है, और लोगों को अपनी तरफ रखना आपके लिए कठिन हो सकता है. विष और सर्पों से भय हो सकता है. बुरी नजर और नकारात्मक असर का अधिक अनुभव हो सकता है. राहु-चंद्रमा युति योग दोष बनाता है. यह भावनात्मक रूप से तनावग्रस्त व्यक्ति बना सकता है. बदला लेने का रवैया भी होता है. यदि दुश्मन होंगे, तो उनसे बदला लेने से पहले उन्हें नहीं छोड़ सकते. वित्तीय अस्थिरता जीवन भर घेरे रह सकती है. यात्राओं इत्यादि मं अधिक धन खर्च हो सकता है. जन्म कुंडली में चंद्रमा और राहु के छठे घर में होने पर मौसम बदलाव का अधिक असर पड़ता है, इससे संबंधित बीमारियां  पीछा करती हैं.

सातवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

व्यक्तित्व के मामले में चतुर और स्वभाव से स्वतंत्र हो सकते हैं. भावुक और बेचैन रह सकते हैं. शरीर बहुत अच्छा होगा और रंग गोरा होगा. ईर्ष्यालु स्वभाव और पाखंडी मानसिकता प्रभावित कर सकती है. जीवनसाथी आकर्षक होगा जो बुद्धिमान और अत्यधिक विचारों वाला होगा. सातवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति होने से अपने जीवन साथी की ओर से धन प्राप्ति की भी उम्मीद कर सकते हैं. पार्टनर के साथ बौद्धिक संबंध हो सकते हैं. विवाह संबंधों में तनाव मतभेद अधिक रह सकते हैं. जीवनसाथी और परिवार के साथ कानूनी मुद्दों का सामना कर सकते हैं.

यात्रा एवं स्थान परिवर्तन जीवन भर असर डाल सकता है. इसके अलावा, सप्तम भाव में राहु और चंद्रमा की युति के प्रभाव के कारण, यौन रोगों से पीड़ित हो सकते हैं. हार्मोनल समस्याएं भी घेर सकती हैं. और, यह आपकी कुंडली में दोनों ग्रहों के प्रबल मारक होने के कारण होगा.

आठवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

जन्म कुंडली के आठवें घर में युति होने पर एक चंचल प्रवृत्ति और कुटिल मानसिकता के साथ मन बेचैन अधिक रह सकता है. लोगों के साथ संदिग्ध व्यवहार कर सकते हैं. कुछ दिखावे का असर होगा और नैतिकता की कमी हो सकती है. कामुकता का प्रभाव अधिक रहेगा. यौन इच्छाओं की अधिकता होगी. राहु और चंद्रमा की युति के कारण भावनात्मक रूप से कमजोर भी होंगे. आर्थिक रूप से अस्थिर रहेंगे. अच्छी कमाई होगी लेकिन कुछ गुप्त खर्च भी हो सकते हैं. पैतृक संपत्ति का भी फल भोगना पड़ सकता है. जीवन के उत्तरार्ध में अचानक लाभ भी प्राप्त हो सकता है. स्वास्थ्य के लिहाज से बचपन में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. पाचन समस्याओं, आंखों की रोशनी और त्वचा संबंधी बीमारियों जैसी समस्याओं से भी गुजर सकते हैं. अष्टम भाव में चंद्रमा और राहु की युति अप्राकृतिक मृत्यु का कारण बन सकती है. सर्पदंश या किसी अन्य विषैले पदार्थों के कारण कष्ट हो सकता है. 

नवम भाव में राहु और चंद्रमा की युति

नवम भाव में राहु और चंद्रमा की युति पिता के सुख को कमजोर करती है. पिता को मानसिक तनाव और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित होना पड़ सकता है. अपने पिता से दूर रह सकते हैं या पास होने पर विवादों में उलझ सकते हैं. दोनों को एक राय की समस्या होगी, और एक दूसरे के विपक्ष में रह सकते हैं. चंद्रमा और राहु की युति होने से जीवन में कई उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ सकता है. करियर बहुत ज्यादा प्रभावित हो सकता है. नौकरी को बहुत बार बदल सकते हैं और कभी भी किसी से संतुष्ट महसूस नहीं कर पाते हैं.अत्यधिक धार्मिक हो सकते हैं. अपने विश्वास को दिखाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे. धार्मिक स्थलों की खोज में रुचि होगी, और पवित्र नदियों के दर्शन कर पाएंगे. 

दसवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

व्यक्तित्व के लिहाज से बुद्धिमान, स्मार्ट और बहादुर होंगे. जीवन के प्रति दृष्टिकोण साहसी होगा. समस्याओं से निपटने के रहस्यमय तरीके अपना सकते हैं. वास्तविक उद्देश्यों के बारे में किसी को न बताना चाहें. राहु और चंद्रमा के साथ होने पर काम में बदलाव हो सकते हैं. व्यावसायिक रूप से असंतोष रह सकता है. सार्वजनिक छवि लोकप्रिय  होगी, नाम और प्रसिद्धि पाने में मदद मिलेगी. दसवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति होने से काम के प्रति काफी समर्पित रह सकते हैं. काम में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. पारिवारिक जीवन में कुछ अनबन हो सकती है. वैवाहिक जीवन में कष्ट अधिक रह सकता है. 

ग्यारहवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और चंद्रमा का योग अद्वितीय व्यक्तित्व प्रदान करता है. आकर्षक आभा के साथ स्वभाव से उदार होंगे. नेतृत्व के गुण भी होंगे.पैतृक संपत्ति का लाभ मिल सकता है. सब कुछ आपकी जेब में होगा और ऎसी संभावनाएं बहुत अधिक हैं कि धन कमाने के कई स्रोत होंगे. अवैध तरीके से भी लाभ अर्जित कर सकते हैं. दोस्तों की अच्छी संख्या हो सकती है. साथी सुंदर, धनी और बुद्धिमान होगा. एक से अधिक रिश्तों में भी रह सकते हैं. सेहत के लिहाज से पेट की कई परेशानियां, लीवर से संबंधित परेशानियां और गैस्ट्रिक समस्याएं भी हो सकती हैं. बड़े भाई-बहनों के साथ चिंताजनक स्थिति हो सकती है. 

बारहवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

यदि आपकी कुंडली के बारहवें घर में राहु और चंद्रमा की युति है तो व्यक्तित्व काफी उत्साहित होगा. जीवन में चीजों के बारे में उत्सुक होंगे और शानदार जीवन शैली की ओर अधिक झुकाव रहेगा. व्यवहार से मूडी और बेचैन हो सकते हैं. अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं और नियमों  के खिलाफ जा सकते हैं. छल कपट भी अधिक बना रह सकता है. बारहवें घर में चंद्रमा और राहु की युति होने से चरित्र संदिग्ध बनता है. वैवाहिक जीवन में छवि को प्रभावित करेगा. बाहरी संबंधों में अधिक रुचि ले सकते हैं. स्वास्थ्य के लिहाज से दुर्घटना और चोट लगने की संभावना अधिक रह सकती है और यात्रा के दौरान ऐसा होने की संभावना अधिक होगी. भर पेट संबंधी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं. विदेश में निवास मिल सकता है या जन्म स्थान से दूरी रह सकती है. 

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