केतु क्यों है मोक्ष का कारक ? जाने सभी 12 भावों में इसके होने का फल

वैदिक ज्योतिष में केतु को अलगाव, ज्ञान, रहस्य, ध्यान और सबसे महत्वपूर्ण वैराग्य के कारक के लिए माना जाता है. केतु कर्म का प्रतिनिधित्व करता है, यह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों के फल को दर्शाता है. कुंडली में केतु जहां बैठता है वह उस क्षेत्र को प्रभावित करता है जहां अपने पिछले कार्यों के बारे में फल प्राप्त करते हैं. केतु मोक्ष या ज्ञान की ओर भी झुकाव का प्रतिनिधित्व करता है. लेकिन मोक्ष तभी प्राप्त किया जा सकता है जब आप पश्चाताप कर चुके हों और पिछले कर्मों के कारण हुए दुखों का सामना कर चुके हों. कुंडली में केतु भाव जीवन का वह क्षेत्र है जहां आपको अपने प्रकाश के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए पीड़ा और कष्ट से गुजरना पड़ता है. यह वह जगह है जहां आपको भ्रमपूर्ण संतुष्टि को त्यागने की जरूरत है और भाव द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली भौतिक सुख-सुविधाओं से खुद को अलग करना होता है. 

केतु व्यक्ति को उस स्थान से अलग कर देता है जो उसके भाव स्थान से मिलने वालों फलों को दिखाता है. अगर केतु दूसरे या ग्यारहवें भाव में स्थित है, तो व्यक्ति धन से संबंधित मामलों में बहुत कम या कोई दिलचस्पी नहीं लेता है. किसी तरह, व्यक्ति जीवन के इस क्षेत्र को नियंत्रित नहीं कर पाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति धन से वंचित हो जाएगा. वह एक धनी व्यक्ति हो सकता है, लेकिन हो सकता है कि उसका अपनी संपत्ति पर नियंत्रण या आसानी से धन का लाभ न उठा पाए. ऐसा व्यक्ति अपने संसाधनों को बुद्धिमानी से निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं हो पाता है. इस प्रकार केतु का जो भी भाव होता है वह जहां भी बैठा होता है उस स्थान में मौजूद फलों को पाने में आत्मिक रुप से संतुष्ट नही हो पाता है.  व्यक्ति की कुंडली में केतु जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है उस क्षेत्र में व्यक्ति को सबसे अधिक अनिच्छा और वैराग्य का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति उस भाव के प्रभावों से घिरा हुआ महसूस कर सकता है लेकिन फिर भी अलग नहीं हो सकता है. इस तरह से भ्रम, मानसिक अशांति और संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जिस भाव से केतु ज्यादातर जुड़ा हुआ है वहां व्याकुलता और हताशा व्यक्ति को उस भाव के मामले से अलग कर देती है. उचित रुप से फल नहीं मिल पाते हैं. 

वैदिक ज्योतिष में केतु का महत्व

एक पुरानी कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिति से हुआ था. उसने स्वरभानु नाम के एक राक्षस को जन्म दिया. स्वरभानु देवों की तरह अमर होना चाहते थे. उन्होंने देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान खुद को देव के रूप में छिपा लिया. फिर छल द्वारा अमृत पिया. भगवान विष्णु ने उन्हें पहचान लिया और उन्होंने अपने चक्र से स्वरभानु का सिर उनके शरीर से अलग कर दिया.लेकिन, तब तक अमृत स्वरभानु के गले तक पहुंच गया. इसलिए, सिर वाला हिस्सा राहु के रूप में जाना जाने लगा, जबकि दूसरे आधे हिस्से को केतु कहा गया. इसी कारण केतु को मोक्ष का कारक ग्रह कहा जाता है. केतु को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ध्वज, शिखी और राहु पुंछ

जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव

प्रत्येक ग्रह अलग-अलग राशियों में अलग-अलग फल देता है. यदि आपकी कुण्डली में केतु मीन राशि में है तो वह अपनी ही राशि या स्वराशी में माना जाता है. यह अपनी मूल त्रिकोण राशि में है, यदि यह मकर राशि में है. केतु यदि वृश्चिक राशि में होगा तो मजबूत होता है केतु धनु राशि में भी उच्च का होता है. केतु वृष राशि में नीच का है. मिथुन राशि में होने पर भी यह नीच का होता है. केतु की यह स्थिति उच्च अवस्था के ठीक विपरीत होती है. नीच का केतु व्यक्ति को असहाय और अलग महसूस कराता है.

 विभिन्न भावों में केतु का प्रभाव

व्यक्ति पर केतु का प्रभाव कुंडली या जन्म कुंडली के बारह अलग-अलग भाव घर में स्थिति पर निर्भर करता है. आईये जाने इनके कुछ महत्वपूर्ण फलों के बारे में विस्तार से. 

प्रथम भाव में केतु

प्रथम भाव में केतु होने पर व्यक्ति धनवान और मेहनती होता है लेकिन उसे हमेशा अपने परिवार की चिंता रहती है. केतु प्रथम भाव में होने पर जातक के पारिवारिक संबंध के लिए शुभ या लाभकारी माना जाता है. लेकिन जब पहले घर में केतु अशुभ हो, तो सिरदर्द हो सकता है. यदि प्रथम भाव में केतु अशुभ हो तो जीवन साथी और संतान को स्वास्थ्य को लेकर परेशानी हो सकती है.

दूसरे भाव में केतु

दूसरे भाव का कारक चंद्रमा होता है जिसे केतु का शत्रु माना जाता है. यदि दूसरे भाव में केतु शुभ हो तो माता-पिता से लाभ दिला सकता है. व्यक्ति को कई अलग-अलग स्थानों की यात्रा करने का अवसर मिल सकता है और उसकी यात्रा फलदायी हो सकती है. यदि दूसरे भाव में केतु अशुभ हो तो यात्रा का अच्छा सुख नहीं मिल सकता है. यदि अष्टम भाव में चंद्रमा या मंगल हो तो जातक का जीवन कष्टमय हो सकता है या कम उम्र में ही गंभीर स्वास्थ्य समस्या होती है. 

तीसरे भाव में केतु

तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है, दोनों केतु के साथ ठीक नहीं हैं. यदि तीसरे भाव में केतु शुभ है तो यह व्यक्ति की संतान के लिए अच्छा होता है. यदि केतु तीसरे भाव में हो और मंगल बारहवें भाव में हो तो जातक की कम उमे में संतान हो सकती है. तीसरे भाव में केतु के साथ व्यक्ति को नौकरी या काम के कारण यात्रा करवाता है. तीसरे भाव में केतु अशुभ हो तो जातक को मुकदमेबाजी में धन की हानि हो सकती है. वह अपने परिवार के सदस्य से अलग हो जाता है. उसे अपने भाइयों से परेशानी हो सकती है अथवा व्यर्थ की यात्राएं अधिक करनी पड़ सकती है. 

चतुर्थ भाव में केतु

कुंडली के चौथे भव का कारक चंद्रमा होता है, यदि केतु चतुर्थ भाव में शुभ हो तो व्यक्ति को अपने पिता और गुरु के लिए भाग्यशाली माना जाता है. ऐसा व्यक्ति अपने सारे निर्णय भगवान पर छोड़ देता है. यदि चन्द्रमा तीसरे या चौथे भाव में हो तो फल शुभ होता है. चौथे भाव में केतु के साथ जातक एक अच्छा सलाहकार और आर्थिक रूप से मजबूत होता है. यदि केतु चतुर्थ भाव में खराब अवस्था में हो तो व्यक्ति  को स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो सकती है, इससे वह दुखी हो सकता है. व्यक्ति मधुमेह, जल जनित रोगों से पीड़ित हो सकता है.

पंचम भाव में केतु

पंचम भाव का कारक सूर्य का होता है और उस पर बृहस्पति भी प्रभाव डालता है ऎसे में केतु का यहां प्रभाव बौधिकता को प्रभावित करता है. केतु 24 वर्ष की आयु के बाद अपने आप लाभकारी हो जाता है. यदि पंचम भाव में केतु अशुभ हो तो जातक को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी होती है. संतान होने में विलंब या परेशानी हो सकती है. केतु पांच वर्ष की आयु तक अशुभ फल देता है.

छठे भाव में केतु

छठा भाव बुध ग्रह का है. छठे भाव में केतु नीच का माना जाता है. यह व्यक्ति की संतान के संबंध में अच्छे फल दे सकता है.  छठे भाव में केतु के कारण व्यक्ति एक अच्छा सलाहकार होता है.  पारिवारिक जीवन सामान्य रह सकता है. विद्रोह को दबा सकता है. यदि केतु छठे भाव में खराब स्थिति में हो तो नाना पक्ष के लिए कष्ट कारक हो सकता है. व्यर्थ की यात्राओं के कारण परेशानी हो सकती है. व्यक्ति को लोग गलत समझ सकते हैं. रोग या दुर्घटना का भय रह सकता है. 

केतु सप्तम भाव में

कुंडली में सातवें भाव का कारक शुक्र होता है. यदि केतु सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति को कम उम्र में ही आर्थिक लाभ हो सकता है. यदि सप्तम भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति विवाह संबंधों से निराश हो सकता है. बीमार होता है, झूठे वादे करता है और शत्रुओं से परेशान रह सकता है. 

आठवें भाव में केतु

जन्म कुंडली के आठ भाव का कारक शनि- मंगल हैं, यदि केतु अष्टम भाव में शुभ हो तो व्यक्ति के परिवार में नए सदस्य का अगमन होता है. अचानक धन लाभ मिल सकता है. यदि केतु अष्टम भाव में अशुभ हो तो जातक के साथी को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी होती है. रक्त विकार विष प्रभाव शरीर को खराब कर सकते हैं. 

केतु नौवें भाव में

नवम भाव का कारक बृहस्पति होता है, नौवें भाव में केतु को बहुत शक्तिशाली माना जाता है. इस भाव में केतु वाले लोग आज्ञाकारी, भाग्यशाली और धनवान होते हैं. यदि चंद्रमा शुभ हो तो व्यक्ति को अपने मायके वालों की मदद मिल सकती है.यदि नवम भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति को धर्म से कुछ अलग विचारधारावाला बना सकता है. पीठ में दर्द, पैरों में समस्या हो सकती है.

दसवें भाव में केतु

दसवां भाव शनि का होता है. यदि केतु यहाँ शुभ हो तो व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली लेकिन अवसरवादी हो सकता है. व्यक्ति प्रसिद्ध व्यक्ति हो सकता है.यदि दसवें भाव में केतु अशुभ हो तो व्यक्ति को सुनने की समस्या और हड्डियों में दर्द से परेशान हो सकता है. पारिवारिक जीवन चिंताओं और कष्टों से भरा हो सकता है.

ग्यारहवें भाव में केतु

ग्यारहवें भाव में केतु बहुत अच्छा माना जाता है. यह घर बृहस्पति और शनि से प्रभावित होता है. यदि यहां केतु शुभ हो तो यह अपार धन देता है. एकादश भाव में केतु के साथ व्यक्ति आमतौर पर स्व-निर्मित व्यवसायी या उद्यमी होता है. यह राजयोग होता है. यदि यहां केतु अशुभ है तो जातक को पाचन तंत्र और पेट के क्षेत्र में समस्या हो सकती है. वह जितना भविष्य की चिंता करता है, उतना ही परेशान होता जाता है.

बारहवें भाव में केतु

बारहवें भाव में केतु को उच्च का माना जाता है. बारहवें भाव में केतु व्यक्ति को संपन्न बना सकता है. धन देता है. व्यक्ति जीवन में सफल पद प्राप्त करता है. सामाजिक कार्यों और सामुदायिक योगदान में भी अच्छा होता है. व्यक्ति के पास जीवन के सभी लाभ और विलासिताएं होती हैं. यदि बारहवें भाव में केतु अशुभ हो तो भूमि और मकान का अधिग्रहण करते समय गलत निर्णय ले सकते हैं.  

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जन्म कुंडली का आठवां भाव रहस्य स्थान जाने इससे जुड़ी हर बात

जन्म कुंडली का आठवां भाव रहस्यों का स्थान

कुंडली के बारह भावों अपने आप में पूर्ण अस्तित्व को दर्शाते हैं. इन सभी भावों में एक भाव ऎसा भी है जो आयु मृत्य और रहस्य का घर होकर सभी आचार्यों के लिए एक गंभीर एवं सूक्ष्म स्थान है. इस भाव को लेकर की जाने वाली भविष्यवाणी ही जीवन के प्रत्येक उतार-चढ़ाव के लिए मुख्य होती है. 

आठवां भाव प्रमुख स्थान रखता है. इस घर को अक्सर अशुभ माना जाता है. वैदिक ज्योतिष में, अष्टम भाव मृत्यु, दीर्घायु और अचानक-अप्रत्याशित घटनाओं जैसे क्षेत्रों को दिखाता  है. इस भाव की संख्या भी आठ है जो अंक शास्त्र में भी इसी तरह की संभावनाओं से जुड़ती है. किसी के जीवन में जो विकास होता है, उसमें इस भाव का शामिल होना महत्वपूर्ण होता है. जीवन का समग्र विकास ओर अंत की यात्रा इसी घर में निहित मानी गई है. 

आठवें भाव की राशि और ग्रह  

वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव को आयु भाव कहा गया है. इस भाव में वृश्चिक राशि को स्थान प्राप्त होता है. क्योंकि काल पुरुष कुंडली में वृश्चिक राशि ही आठवीं राशि होती है जो इस घर से संबंधित है, इस राशि में रहस्य, अधिकार, जुनून और महत्वाकांक्षा जैसी विशेषताएं मौजूद होती हैं. साथ ही मंगल-शनि आठवें घर के कारक स्वरुप स्थान पाते हैं.  बृहस्पति और सूर्य ग्रहों के लिए अनुकूल हो सकता है लेकिन चंद्रमा, बुध के लिए एक कमजोर स्थान भी होता है. 

कुंडली में आठवां भाव धन से जुड़ा जो भूमि के नीचे से प्राप्त होने वाला धन होता है या फिर अचानक मिलने वाला धन,संबंधित है. धन की वृद्धि और कमी जैसी बातें, अचानक और अप्रत्याशित घटनाएं इसी भाव से होने वाले परिवर्तनों के कारण होती हैं. अष्टम भाव के कारण अचानक लाभ, हानि, शेयर धन में अप्रत्याशित लाभ, विरासत, बीमा आदि चीजें होती हैं. इस प्रकार आठवें भाव को परिवर्तन और रहस्यों का स्थान कहा जाता है. खराब रुप में यह भाव अवसाद, विलंब, असंतोष और हार का कारण बन सकता है. शरीर के अंग जो आठवें भाव से जुड़े होते हैं उनमें यौन, प्रजनन प्रणाली अंग इसी स्थान पर आते हैं 

कुंडली का आठवां भाव अन्य लोगों का पैसा, जीवनसाथी का पैसा, वंश प्रणाली, मृत्यु, लैंगिक गुण, परिवर्तन, रहस्य, अन्य लोगों के पैसे पर अधिकार दिखाता है आठवां घर कर्तव्यों और दायित्वों से संबंधित मुद्दों को देखता है क्योंकि ये अतिरिक्त रूप से धन के वर्ग के अंतर्गत आते हैं जो दूसरों के होते हैं. उधार लिया हुआ धन और यहां तक ​​कि सरकार द्वारा हमें दिया गया धन भी आठवें भाव का से ही मिलता है, और आठवें भाव में स्थित शुभ ग्रहों का अर्थ यह हो सकता है कि व्यक्ति को ऋण और ऋण प्राप्त करने में आसानी हो सकती है लेकिन ऋण को चुकाना बहुत मुश्किल होता है.

अष्टम भाव से कैसे देखते हैं मृत्यु 

आठवां घर किसी की जन्म कुंडली का सबसे कठिन अनसुलझा क्षेत्र होता है. यह मृत्यु को नियंत्रित करता है. इस घर से यह देखा सकता है कि किसी की मृत्यु कैसे होगी, या यहां तक ​​कि मृत्यु के साथ मृत्यु तुल्य कष्ट भी इसी से देखे जाते हैं. कई बार व्यक्ति अपने जीवन में मृत्यु का अनुभव भी करता है जिसका संबंध भी इसी घर से होता है. आठवां घर अन्य लोगों की मृत्यु दिखा सकता है जो आपके करीब हैं. आठवां घर प्रतीकात्मक अंत की ओर इशारा करता है. अष्टम भाव में कुछ ग्रहों वाले व्यक्ति का कलात्मक रूप से मृत्यु की ओर झुकाव हो सकता है, या शायद व्यक्ति किसी प्रकार के अंधकार की ओर आकर्षित हो सकता है. यहां बैठे ग्रह भी अपने अनुसार व्यक्ति को मृत्यु का कष्ट दे सकते हैं अग्नि तत्व वाले ग्रह अग्नि से कष्ट दे सकते हैं जल तत्व वाले ग्रह जल के कारण कष्ट ओर वायु तत्व वाले ग्रह वात रोग से मृत्यु दे सकते हैं यही बात राशियों पर भी निर्भर होती है. प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मृत्यु भी इसी स्थान की होती है ओर उसमें पाप प्रभाव की अधिकता होने से परेशानी दिखाई दे सकती है. 

अष्टम भाव गुप्त रहस्यों का जनक 

ज्योतिष में अष्टम भाव को भी गुप्त भाव का भाव कहा जाता है. यह ब्रह्मांड के रहस्य को समझने का द्वारा भी होता है. सभी रहस्य और सच्चाई का स्थान है. नवम भाव के निकट के घर के क्षेत्र जीवन और उसके अर्थ के बारे में व्यक्ति की जिज्ञासा का प्रतिनिधित्व भी इसी घर से होता है. हम क्यों मौजूद हैं, हम क्यों पैदा हुए, हम क्यों मरते हैं जीवन क्या है इसी घर की उपज हैं और कुंडली  के उसी क्षेत्र में है जहां नौवां घर अपनी उत्पत्ति और नींव को दर्शाता है. नवम भाव बुद्धि और उच्च शिक्षा का कारक होता है. इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि इस प्रकार का ज्ञान उन प्रश्नों से आता है जो हम यहां आठवें भाव में रखते हैं. यही कारण है कि ज्योतिष में अष्टम भाव हर प्रश्न की कुंजी है. यह उन सवालों का स्रोत है जो हम दुनिया के बारे में और अपने बारे में पूछते हैं.

यौन संबंध और कामुक संबंधों का स्थान  भी यही घर है. सैक्स मृत्यु के विपरीत है. यह जीवन का स्रोत और उत्पत्ति का मार्ग है. 

अष्टम भाव के शुभ फल 

आठवां भाव सकारात्मक रुप से कई अच्छे फल देता है, इसके कई सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं. इसमें से कुछ इस प्रकार होंगे व्यक्ति की आयु लंबी हो सकती है और उसके पास अपने विरोधि और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की अच्छी संभावना होगी. आध्यात्मिक विषयों और मानसिक क्षमताओं से संबंधित मुद्दों की ओर अधिक रुझान होगा. ये लोग मनोविज्ञान, विज्ञान, गणित और रिसर्च के अध्ययन जैसे  विषयों में ऊंचाईयां छू सकते हैं. 

अगर कुंडली में आठवें भाव पीड़ित होकर कई गलत फल देने में सक्षम होता है व्यक्ति की लंबी उम्र को कम कर सकता है. पीड़ादायक मृत्यु दे सकता है, पुरानी बीमारी का कारण बन सकता है और विभिन्न प्रकार के दुख, मानसिक शांति खो सकता है. यहां आपराध में भागीदारी, दंड या सजा, व्यसन, विकृति, प्रियजनों को खोना, मृत्यु और अन्य प्रकार की समस्याएं भी हो सकती हैं.

कुंडली के आठवें भाव में ग्रहों का फल 

आठवें घर में ग्रहों की भूमिका प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है. 

अष्टम भाव में सूर्य

आठवें भाव में सूर्य बताता है कि व्यक्ति जीवन के सबसे गहरे रहस्यों की खोज करने में आगे रह सकता है.

अष्टम भाव में चंद्रमा 

यहां चंद्रमा व्यक्ति को एक निजी रुप से बना देगा और अपनी भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखेंने देगा.

अष्टम भाव में मंगल 

आठवें घर में मंगल गलतियों के गंभीर परिणाम दे सकता है. आवेगी बना सकता है.

अष्टम भाव में बुध 

आठवें भाव में बुध विरासत या कोई अनुबंध के कारण लाभ या नुकसान दोनों का सामना करना पड़ता है. 

अष्टम भाव में बृहस्पति 

बृहस्पति यहां अधिक सोच विचार दे सकता है. जांच-परख करने वाला स्वभाव देता है.

अष्टम भाव में शुक्र 

अष्टम भाव में शुक्र का होना कामुक सुख के प्रति जुनूनी बना सकता है.

अष्टम भाव में शनि 

अष्टम भाव में परिश्रमी, अनुशासित, धैर्यवान और खर्च में विवेकपूर्ण बनाता है.

अष्टम भाव में राहु केतु  

यह स्थान आमतौर पर ज्योतिष में अशुभ होता है, राहु केतु के होने पर आवेगपूर्ण निर्णय और काम के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.

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शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष जानें इस खगोलिय घटना के बारे में विस्तार से

हिंदू पंचांग में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष महत्व

हिंदू पंचांग को ज्योतिष फलकथन एवं खगोलिय गणना इत्यादि हेतु उपयोग में लाया जाता है. हिंदू धर्म में मौजूद समस्त व्रत त्यौहार एव्म धार्मिक क्रियाकला पंचांग द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं. इसलिए पंचांग एक अभिन्न अंग भी माना जाता है. पंचांग का अर्थ पांच चीजों के योग से निर्मित होने वाली गणना. इन पांच चीजों में तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण से मिलकर पंचांग का निर्माण होता है.

पंचांग सभी हिंदुओं के बीच बहुत महत्व रखता है, खासकर जब शुभ और अशुभ दिनों की बात हो या फिर किसी भी प्रकार के धर्म कर्म से जुड़े काम, इसके साथ ही ये भौगौलिक घटनाओं इत्यादि को समजने में भी सहायक होता है. पंचांग का क्षेत्र सीमित न होकर असीमित रहा है.  पंचांग पाक्षिक, दैनिक और मासिक, वार्षिक सभी आधार पर विवरण प्रदान करता है. दैनिक पंचांग तिथि (दिन), नक्षत्र, दिन के शुभ और अशुभ समय आदि के बारे में जानकारी प्रदान करता है. मासिक पंचांग तीस दिनों को दर्शाता है, और इन दिनों को मासिक रुप में दो भगओं में बांटा जाता है.  पक्षों में इसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया जाता है. इन दो पक्षों को पंद्रह-पंद्रह  दिनों की अवधि में बांटा जाता रहा है. इन दो पक्षों में एक पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है जबकि शेष को कृष्ण पक्ष के अंतर्गत आते हैं.

शुक्ल और कृष्ण पक्ष का अंतर विश्लेषण 

किसी भी शुभ कार्य एवं आयोजन अनुष्ठान को शुरू करने के लिए वैदिक शास्त्रों में पक्ष को एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है. चूंकि पक्ष चंद्रमा पर निर्भर करता तो यह किसी विशेष घटना या कार्य की सफलता या विफलता को भी निर्धारित करती है. इसलिए दोनों पहलुओं पर विचार करके ही शुभ कार्यों के लिए तिथि निर्धारित की जाती है.

शुक्ल पक्ष  और कृष्ण पक्ष के बीच के अंतर को समझना धार्मिक और ज्योतिष दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है. हिंदू परंपरा के अनुसार, कुछ विशिष्ट तिथियां, जिन्हें तिथि कहा जाता है, को विभिन्न धार्मिक कार्यों को करने के लिए शुभ समय के रूप में उपयोग किया जाता रहा है. शुभ मुहूर्त के संदर्भ में, शुक्ल पक्ष तिथि और कृष्ण पक्ष तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं.

पक्ष क्या होता है

पंचांग गणना में चंद्रमास सौर मास एवं नक्षत्र मास का वर्णन मिलता है. यहां पक्ष को चंद्रमा से जोड़ा जाता है. चंद्र मास को दो पक्षों में बांटा गया है. एक पक्ष चंद्र 15 दिन का होता है और दूसरा भी 15 दिन का होता है. कुछ गणना में पक्ष यह लगभग 13-14 दिन का भी हो सकता का है. पक्ष को अधंकार एवं रोशनी दो भागों में भी विभाजित किया जाता है. ज्योतिषीय घटनाओं के दृष्टिकोण से, पक्ष महीने के चंद्रमा के सभी चरण को दर्शाता है. प्रत्येक चंद्र चरण 15 दिनों तक रहता है और इस प्रकार हमारे पास एक महीने में दो चंद्र चरण होते हैं. खगोलीय गणनाओं से देखने पर मिलता है कि चंद्रमा एक दिन में 12 डिग्री की यात्रा करता है. यह तीस दिनों में पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण क्रांति को पार करता है. हर दो सप्ताह में होने वाला यह चंद्र चरण विभिन्न धार्मिक आयोजनों के लिए फायदेमंद होता है.

कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या के बीच शुरू होता है और चंद्रमा अपने स्वरुप में घटने लगता है उस समय इसका असर दिखाई देता है. कृष्ण पक्ष का नाम भगवान कृष्ण के नाम पर रखा गया है क्योंकि भगवान कृष्ण के स्वरुप को भी दर्शाता है और इसलिए चंद्रमा के लुप्त होने को कृष्ण पक्ष कहा जाता है. कृष्ण पक्ष पूर्णिमा, प्रतिपदा से शुरू होकर चतुर्दशी तक 15 दिनों तक चलता है.

चंद्रमा के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष से जुड़ने की कथा 

चंद्रमा के पक्ष में विभाजित होने की कथा पौराणिक ग्रंथों से प्राप्त होती है. इनमें कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. शास्त्रों में वर्णित में मुख्य कथा दक्ष से संबम्धित मानी गई है.  दक्ष प्रजापति और चंद्रमा की कहानी इस प्रकार है. दक्ष प्रजापति की सत्ताईस बेटियाँ थीं, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था. ये सत्ताईस कन्याएं वास्तव में सत्ताईस नक्षत्र थीं, और इन नक्षत्रों में एक रोहिणी थी जिसे चंद्रमा सबसे अधिक प्रेम करता था. रोहिणी के प्रति चंद्रमा का मोह इतना अधिक रहता था की वे अन्य पत्नियों के प्रति उदासीन था. ऎसे में अन्य पत्नियों के मन में इस का दुख अत्यंत बढ़ जाने पर वह अपने दुख को अपने पइता दक्ष से कहती हैं. पिता दक्ष से चंद्रमा की उनके प्रति उदासीनता के बारे में शिकायत करने पर दक्ष ने चंद्रमा को अपने पास बुलाया और उन्हें अनुरोध किया की वह सभी पर एक समान रुप से ध्यान दे. लेकिन चंद्रमा पर इस बात का कोई असर न होते देख चंद्र पर क्रोधित होते हैं.

चंद्रमा को दूसरों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए कहते हैं. इसके बावजूद चंद्रमा का अपनी अन्य पत्नियों के प्रति रवैया नहीं बदला और वह अन्य पत्नियों की ज्यादा उपेक्षा करने लगाता है. दक्ष के अनुरोध का पालन करने की मनाही की स्थिति को देख दक्ष ने तब चंद्रमा को शाप दिया कि वह अपने आकार और चमक से रहित हो जाएगा. द्क्ष के श्राप के कारण चंद्रमा घटने लगता है वह क्षय रोग से पीड़त हो जाता है और धीरे-धीरे अपने अंत की ओर जाने लगता है. ऎसे में भगवान शिव की भक्ति द्वारा उसे दक्ष के श्राप से राहत मिलती है और चंद्रमा पक्ष में बदल कर शुक्ल पक्ष को पाता है. इस प्रकार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का आरंभ होता है. 

हम अमावस्या से पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष तक की अवधि कहते हैं. दूसरे शब्दों में, शुक्ल पक्ष की अवधि को शुक्ल पक्ष के रूप में वर्णित किया जाता है. जब शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के पास  होता है, तो चंद्रमा आकाश में सबसे अधिक चमकीला और पूर्ण रुप का चंद्रमा दिखाई देता है. संस्कृत में शुक्ल का अर्थ उज्ज्वल होता है. यह भी भगवान विष्णु के नामों में से एक है. शुक्ल पक्ष 15 दिनों तक चलता है, जिसमें हर एक दिन कोई त्योहार या कार्यक्रम होता है. इन 15 दिनों को अमावस्या, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी कहा जाता है.

कौन सा पक्ष शुभ माना जाता है?
चंद्र प्रकाश में, शुक्ल पक्ष शुभ मांगलिक कार्यों, धार्मिक कार्यों, अनुष्ठा आयोजनों के लिए अनुकूल समय माना है, जबकि कृष्ण पक्ष प्रतिकूल माना जाता रहा है. इसलिए, कृष्ण पक्ष के दौरान कम ही करयों को करने की बत भी कही जाती रही है. शुक्ल पक्ष के दौरान किया गया कोई भी कार्य सफलतापूर्वक पूरा होता है. इस प्रकार विवाह, गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि के अवसर शुक्ल पक्ष के दौरान किए जाते हैं.ज्योतिष की दृष्टि से शुक्ल पक्ष की दशमी और कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि के बीच का समय शुभ होता है. इस समय के दौरान, चंद्रमा की शक्ति ऊर्जा अपने चरम पर होती है, और यह शुभ और अशुभ समय या मुहूर्त की भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण है.

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ताजिक शास्त्र में लग्न का आपकी कुंडली पर असर

किसी भी भाव के वर्षफल कुंडली में लग्न बनए का फल

वर्ष कुंडली को हर वर्ष के लिए देखा जाता है. वर्षफल कुंडली में प्रत्येक वर्ष का भविष्यफल देखा जाता है. वर्ष फल कुंडली को ताजिक शास्त्र में उपयोग किया जाता है. वर्ष कुंडली अनुसार इस समय पर भविष्यफल कथन करने से काफी सटीक भविष्यवाणी करता है. किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने के लिए वर्षा कुंडली या वार्षिक राशिफल को देख कर स्थिति का विश्लेषण किया जाता है. इस प्रकार की कुंडली का ज्योतिष के क्षेत्र में काफी महत्व रहा है. वर्ष कुंडली को देखने ओर उसके अध्ययन के दौरान जन्म कुंडली की दशा और योगों के निर्माण को ध्यान में रखा जाता है. 

वर्ष कुंडली के द्वारा सूक्षम विचार से फलकथन करना काफी अच्छे परिणाम दिखाता है. वर्ष की कुंडली में जिस लग्न का निर्माण होता है उसी के द्वारा आगे की बातों को देखा जाता है. भाव का विश्लेषण करके हम उस साल मिलने वाले फलों को देख पाते हैं. इन भविष्यवाणियों में कार्यक्षेत्र, संबंध, रोग, धन लाभ एवं जीवन में होने वाले बदलावों को समझ पाना आसान होता है. वर्ष की शुरुआत में लग्न बनने वाला भाव उस विशिष्ट अवधि के दौरान व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार होता है.

पहला भाव 

यदि किसी व्यक्ति का लग्न किसी विशेष वर्ष में वर्ष कुंडली का लग्न हो जाता है तो उसे “द्विवर्ष लग्न” कहा जाता है, कुछ लोग इसे “पुनर्जन्म वर्ष कुंडली” के रूप में भी परिभाषित किया जाता है.  इस लग्न को व्यक्ति के लिए ज्यादा शुभ नहीं माना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से यह वर्ष कुछ कमजोर स्थिति को दिखा सकता है. व्यक्ति को अपने जीवन के कई पहलूओं में बहुत उतार-चढ़ाव से गुजर सकता है. करियर और व्यवसाय क्षेत्र में बाधाओं और अटकाव की स्थिति परेशान कर सकती है. 

इस समय पर व्यक्ति अधिक परेशानी का अनुभव कर सकता है. इस समय पर व्यक्ति को कुछ चीजौं पर ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना आवश्यक होता है. इस वर्ष कोई नया कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए. जो लोग सेवा काम में लगे होते हैं उन्हें नौकरी बदलने के बारे में सोचने से बचना चाहिए. व्यवसाय में कई बदलाव आप कर सकते हैं. व्यक्ति लगातार बाधाओं के कारण काफी मानसिक तनाव से गुजर सकता है. इस समय के दौरान धैर्य एवं शांति के साथ आगे बढ़ना ही उपयुक्त होता है.

दूसरा भाव 

वर्ष कुंडली में लग्न के रूप में अगर जन्म कुंडली का दूसर अभाव उदय होता है तो यह मिलेजुले फलों को दर्शाता है. द्वितीय भाव में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के असर देखने पड़ते हैं.  व्यक्ति संपत्ति से कुछ लाभ प्राप्त कर सकता है या आय के नए स्रोत से वित्तीय लाभ प्राप्त कर सकते हैं. धन और वित्त के मामले में यह एक अनुकूल वर्ष बना हुआ है. दुर्घटनाओं और अप्रत्याशित घटनाओं की बड़ी संभावनाओं का समय होता है. इस समय के दौरान परिवार और धन को लेकर अधिक परिणाम प्रभावित करते हैं. नए सदस्यों का आगमन हो सकता है. कुछ सामान्य स्वास्थ्य बीमारियों और कुछ मानसिक चिंताओं से भी प्रभावित होना पड़ सकता है.

तीसरा भाव 

जिस वर्ष तृतीय भाव वर्ष कुंडली का लग्न होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति का परिश्रम अधिक रहता है. परिश्रम के द्वारा ही काम की प्राप्ति होती है. इस वर्ष कुंडली के दौरान व्यक्ति को चीजों के लिए अधिक भागदौड़ करनी पड़ सकती है. काम में व्यक्ति को शक्ति का अनुभव होता है वृद्धि का अनुभव मिलता है. भाई बंधुओं के साथ रिश्ते प्रभावित होंगे. अपनों को प्रसिद्धि और धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति स्वयं भी ऐसे कार्य करता है जिससे समाज में उसकी स्थिति मजबूती को पाती है. इस समय पर जन संपर्क भी बढ़ता है. मान सम्मान प्राप्ति भी इस समय पर होती है. 

चौथा भाव 

जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव का वर्ष कुण्डली में लग्न रुप से उदित होना अनुकूल माना गया है. इस समय पर व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. इस समय पर कुछ नया वाहन या अन्य प्रकार के सामान खरीद सकते हैं. भौतिक सुविधाओं की खरीदारी अधिक कर सकते हैं. इस समय धन खर्च भी बना रह सकता है. आराम और खुशी बनी रह सकती है. इस समय के दौन आमदनी का ज्यादातर हिस्सा घर की साज-सज्जा पर खर्च हो जाता है. धन प्रसिद्धि, मान्यता और सम्मान के मामले में यह समय अनुकूल रहता है.

पंचम भाव

कुंडली का पंचम भाव वर्ष फल कुंडली के लिए अनुकूल कहा जाता है. जन्म कुंडली का पंचम भाव जब वर्ष कुंडली का लग्न बनता है उस वर्ष व्यक्ति को काफी  बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. व्यक्ति जीवन के हर पहलू में सुखद परिणाम प्राप्त कर सकता है. इस समय पर प्रेम संबंधों, शिक्षा एवं संतान से जुड़े मसले मुख्य होते हैं. अपने जीवन में शिक्षा एवं संबंधों के मामले में बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं. कार्य अच्छे स्तर की सफलता के साथ पूरे होते हैं. परीक्षा में सफलता मिलती है. इस समय के दौरान काम में किए गए प्रयासों के अनुसार ही सफलता भी मिलती है. 

छठा भाव 

जन्म कुंडली का छठा भाव अगर वर्षफल कुंडली के लग्न के रूप में आता है तो समय मिश्रित रहता है. इस समय के दौरान चिंताएं अधिक बनी रह सकती हैं. कानूनी मामलों में ये समय तनाव दे सकता है. इस अवधि में व्यक्ति को काफी शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है. काम पर बहुत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और काम में बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है. धन की हानि, शत्रुओं से परेशानी, घर में विवाद जैसी दिक्कतें अधिक बनी रह सकती हैं. 

सातवां भाव 

जन्म कुण्डली का सप्तम भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न बनता है तब यह स्थिति जीवन के संबंधों को अधिक प्रभावित करने वाली होती है. इस समय पर विवाह, संतान, साझेदारी के काम आदि मसलों पर शुभ कार्य सिद्ध होते हैं. जो लोग अविवाहित हैं उनके इस साल विवाह बंधन में बंधने की प्रबल संभावना भी दिखाई दे सकती है. व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और वह अपने काम के लिए सम्मान  प्राप्त करता है.

आठवां भाव 

जन्म कुंडली का अष्टम भाव वर्ष कुण्डली में लग्न होने पर व्यक्ति को एक वर्ष में बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है. उसके जीवन में कई अप्रत्याशित घटनाएं घट सकती हैं. स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ सकती हैं. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में काफी असफलताओं का सामना करना पड़ता है. इस वर्ष मान-सम्मान में कमी के भी संकेत मिल सकते हैं.

नौवां भाव 

जिस वर्ष जन्म कुंडली का नवम भाव वर्ष कुंडली का लग्न बनता है, तो इसे “भाग्योदय वर्ष” यानि भाग्य का वर्ष भी कहा जाता है. व्यक्ति को व्यापार और कार्यक्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. वह विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करता है. उसके द्वारा किए गए सभी कार्य सफलतापूर्वक पूरे होते हैं. व्यक्ति विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेता है.

दसवां भाव 

जब जन्म कुंडली का दशम भाव वर्ष कुंडली का लग्न हो जाता है, तो वर्ष को सफलता का वर्ष कहा जाता है. इस वर्ष के दौरान व्यक्ति को सरकारी सेवाओं में भाग लेने का अवसर मिलता है. यदि व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए कार्य करने में सक्षम नहीं है तो उसे अपने वर्तमान कार्यस्थल पर ही सफलता, प्रसिद्धि और मान्यता प्राप्त होती है.

ग्यारहवां भाव 

जन्म कुण्डली का एकादश भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न हो जाता है तो इस वर्ष व्यवसायी व्यक्तिों को अपने कार्यक्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होती है. नौकरी के अवसर मिलते हैं. इस साल की शुरुआत के साथ व्यक्ति की ज्यादातर चिंताएं दूर हो जाती हैं. सभी प्रकार के ऋण समाप्त होने के अच्छे मौके बनते हैं.

बारहवां भाव 

जन्म कुण्डली का बारहवाँ भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न हो जाता है तो व्यक्ति को बहुत अधिक खर्चों का सामना करना पड़ता है. उसकी इच्छाएं बढ़ जाती हैं, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स भी उत्पन्न हो सकते हैं.  कर्ज लेने या दूसरे से पैसे उधार लेने की जरूरत महसूस होती है. मानसिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है.

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कुंडली अस्त ग्रह कैसे और कब देता है अपना प्रभाव

ज्योतिष में ग्रहों की अस्त स्थिति काफी महत्वपूर्ण रह सकती है. सूर्य का प्रभाव ही ग्रहों को अस्त करने के लिए महत्वपूर्ण कारक बनता है. सूर्य के समीप आकर सभी ग्रहों का असर कमजोर हो जाता है. सुर्य के कारण ही ग्रह अस्त होते हैं ज्योतिष में ग्रहों की डिग्री जब एक निश्चित बिंदु पर आकर सूर्य की के समीप आती है तो ग्रहों के अस्त होने की स्थिति आरंभ होने लगती है. ग्रहों में सूर्य का ही प्रकाश सबसे अधिक तीव्र है इस कारन से सूर्य के समीप जाकर सभी ग्रह इसके समीप जाते ही अस्त होने लगते हैं. 

ग्रह कितनी डिग्री पर अस्त होते हैं 

सूर्य से अस्त होने वाले ग्रहों की डिग्री का अंतर अलग अलग होता है हर ग्रह अपनी अपनी निश्चित समय सीमा पर आकर अस्त हो जाता है. सूर्य से अस्त होने वाले सभी ग्रहों की डिग्री इस प्रकार रहती है. 

चंद्रमा जब सूर्य के समी आने लगता है और जब सूर्य देव की डिग्री अर्थात अंशों से 12 डिग्री या इससे ज्यादा समीप आ जाता है तो चंद्र अस्त होने की स्थिति में चला जाता है. 

मंगल ग्रह की स्थित जब सूर्य की डिग्री से 17 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से मंगल की स्थिति अस्त होने लगती है. 

बुध ग्रह की स्थिति जब सूर्य से 13 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से बुध की स्थिति अस्त होने लगती है. कुछ ज्योतिष आचार्यों अनुसार यह स्थिति 14 डिग्री का अंतर में होने पर भी बुध को अस्त होने की स्थिति का निर्धारण करती है. बुध के वक्रत्व होने पर यह सीमा 12 डिग्री के करीब के अंतर के चलते अस्त होने का समय दर्शाती है. 

बृहस्पति ग्रह की स्थित जब सूर्य की डिग्री से 11 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से बृहस्पति की स्थिति अस्त होने लगती है. 

शुक्र ग्रह की स्थित जब सूर्य की डिग्री से 10 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से शुक्र की स्थिति अस्त होने लगती है. शुक्र ग्रह के वक्री होने पर इस डिग्री में अंतर देखने को मिलता है तब शुक्र 8 या उससे कम डिग्री पर आकर सूर्य से अस्त होने लगता है. 

शनि की स्थिति जब सूर्य की डिग्री से 15 डिग्री के अधिक समीप पहुंच जाती है तब शनि अस्त होने की स्थिति हो जाता है.

राहु और केतु छाया ग्रह माने गए हैं, इसलिए वे कभी भी अस्त की स्थिति में प्रवेश नहीं करते हैं. बल्कि सूर्य का इनके समीप होना ग्रहण की स्थिति को उत्पन्न करने वाला होता है.

कुंडली में ग्रह के अस्त होने का फल कैसे मिलता है ? 

कुंडली का विश्लेषण करते समय किसी ग्रह के उच्च, नीच, वक्री या अस्त होने की स्थिति का मूल्यांकन किया जाना जरूरी होता है. इन बातों पर ध्यान देकर ही ग्रह के फल को समझ पाना संभव होता है. साथ ही कुंडली को सही रुप से परिभाषित किया जा सकता है.

जब कोई ग्रह अस्त होता है तो उसका प्रभाव और महत्व कम हो जाता है और वह सूर्य की स्थिति के अनुसार फल देने लगता है. ग्रह जीवन के किसी विशेष गुण या पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए जब वह अस्त होता तो उसे मजबूत करने की भी आवश्यकता पड़ सकती है. 

कोई ग्रह कब होता है अस्त ? 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक ग्रह जो अस्त हो जाता है, वह अपनी कुछ शक्ति खो देता है, कुंडली में ग्रह का बल कितना कम हुआ है यह एक कुंडली में कई कारकों पर निर्भर करता है, और यह केवल सिर्फ अस्त होना के आधार पर तय नहीं होता है. लेकिन इसके बावजूद अस्त का असर ग्रह को प्रभावित जरूर करता है. ग्रह जब सूर्य के करीब यात्रा करता है तोकोई ग्रह सूर्य के जितना करीब जाता है, उतना ही अधिक अस्त होता जाता है.

अस्त ग्रह का शुभ प्रभाव 

जब कुंडली में कोई शुभ ग्रह अगर सूर्य की शुभ स्थिति के चलते अस्त हो जाता है, तो एक ही समय में दो कार्य होंगे पहला ग्रह का अस्त होना और दूसरा शुभ प्रभाव से अस्त होना. जिसके द्वारा दो शुभ ग्रह एक ही घर में होकर एक-दूसरे को बल प्रदान करेंगे और कई तरह से एक-दूसरे के पूरक भी बन सकते हैं. इसलिए इस ग्रह का अस्त होना इस मामले में अधिक परेशानी नहीं देगा. 

अस्त ग्रह का अशुभ प्रभाव 

कुंडली में जब कोई शुभ ग्रह अशुभ सूर्य द्वारा अस्त हो जाता है, तो परेशानी बढ़ सकती है क्योंकि इस मामले में शुभ ग्रह का अस्त होना और अशुभ सूर्य का प्रभाव अधिक होना सकारात्मक ग्रह को प्रभावित करता है. सूर्य ऐसे में नकारात्मक फल देने वाला होगा. 

एक कुंडली में मिथुन राशि में सूर्य और बुध की युति से बुध का अस्त होने का प्रभाव देखने को मिल सकता है, और कुंडली में सूर्य और बुध दोनों के शुभ होने के कारण बुध आदित्य योग भी बन सकता है. वहीं दूसरी ओर एक अलग कुंडली में, सूर्य और बुध के समान योग से पितृ दोष का निर्माण भी हो सकता है, क्योंकि इस मामले में अगर बुध पाप प्रभाव वाला हो बुध सूर्य को पीड़ित कर सकता है. मिथुन राशि में स्थित सूर्य और बुध का एक साथ होना एक ओर संभावन अको दिखा सकता है अगर यहां सूर्य ही खराब स्थिति में हो तब खराब सुर्य का प्रभाव शुभ बुध की प्रबलता को कमजोर करके खराब फलों को दे सकता है. ऎसे में किसी ग्रह के अस्त होने की स्थिति को अनेक प्रकार से देख कर ही उसकी उचित रुप से व्याख्या की जा सकती है और उसके फलों को समझा जा सकता है. 

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बालारिष्ट योग और संतान पर उसका प्रभाव

ज्योतिष में कई तरह के शुभ एवं अशुभ योगों का वर्णन प्राप्त होता है. इन योगों के प्रभाव स्वरुप किसी व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है. एक विशेष योग बालारिष्ट भी ज्योतिष शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण योग रहा है. इस योग का प्रभाव विशेष रुप से बच्चे की कुंडली को देखते समय ध्यान में रखा जाता है. बालारिष्ट जो संतान के स्वास्थ्य एवं उनके जीवन पर पड़ने वाले फलों को दिखाता है. यह योग पूर्वजन्म के कर्मों का प्रभाव भी दर्शाता है. इस योग के फलस्वरुप किसी बच्चे को कैसे अनुभव प्राप्त होंगे उसकी आयु पर ग्रहों का प्रभाव किस प्रकार का होगा. उसका स्वास्थ्य कैसे प्रभावित हो सकता है इन सभी बातों को जानने एवं समझने के लिए बच्चे की कुंडली में विशेष रुप से इस योग को देखते हैं. 

जन्म समय संतान की कुंडली 

संतान जन्म एवं संतान के भाग्य की स्थिति कई योगों पर निर्भर करती है. किसी बच्चे की कुंडली में माता-पिता का सुख शुभदायक होता है तो कइसी बच्चे को जन्म समय ही माता-पिता से दूरी का दंश झेलना पड़ सकता है. इसी प्रकार से संतान जन्म के बाद परिवार में स्थिति ओर माता-पिता अथवा स्वयं बच्चे पर इस स्थिति का असर किस प्रकार का होगा ये बातें उस बच्चे की जन्म कुंडली को देख कर स्पष्ट रुप से जानी जा सकती है. इसी प्रकार बच्चे का जन्म कुटुम्ब पर कैसा असर डाल सकता है इन बातों को समझने के लिए हमें इन रिष्ट एवं अरिष्ट योग की अवधारणा को  देखर फलित कर पाना संभव होता है. 

ज्योतिष ग्रंथों में किसी बच्चे की कुंडली देखने हेतु नियमों का निर्धारण भी किया गया है. माना जाता है की संतान के जन्म के कुछ वर्ष संतान अपने माता-पिता के कर्मों को भोगता है. इस के अतिरिक्त बच्चे के जन्म के आरंभिक 3 साल काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि रोग या अन्य प्रकार के खराब प्रभाव इसी समय पर प्रभावित करते हैं 

“जिवेत्क्वापि विभंगरिष्टज-शिशूरिष्टम् विनामीयतेऽथाधोब्दः शिशुदुस्तरोऽपि च परौ कार्यैषु नो पत्रिका।।”

आचार्य वैद्यनाथ के अनुसार – जन्म के पहले चार साल माता के कर्म और उसके बाद चार साल पिता के कर्म बच्चे पर असर डालते हैं और इसके बाद बच्चा अपने कर्मों को भोगता है. 

“आद्ये चतुष्के जननी कृताद्यैः मध्ये तु पित्रार्जितपापसंचयैः बालस्तदन्यासु चतुःशरत्सु स्वकीय दौषैः समुपैतिनाशये।। “

बालारिष्ट कब ओर कैसे डालता है असर ? 

बालारिष्ट का प्रभाव चंद्रमा की स्थिति द्वारा समझा जाता है. जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति बहुत अधिक असर डालने वाली होती है. बच्चे की कुंड्ली में चंद्रमा की शुभ एवं मजबूत स्थिति परेशानियों से बचाने वाली होती है. दूसरी ओर चंद्रमा का कमजोर पाप प्रभाव में होना अरिष्ट की स्थिति को दिखाता है. चंद्रमा की पीड़ा बच्चे की स्थिति को भी गंभीर बना सकती है. इसी के साथ लग्न सूर्य और अन्य योग भी यहां अपना असर डालते हैं. 

बालारिष्ट को समझने के ज्योतिष सूत्र 

चंद्रमा की दशा

जन्म के समय चंद्रमा का सबसे ज्यादा महत्व होता है. चंद्रमा ही माता का प्रतिनिधित्व करता है. अत: चन्द्रमा की स्थिति से अरिष्ट को संतान या उसकी माता का कष्ट होता है. कुंडली में चंद्रमा जहां भी होगा और जिस भी प्रकार के ग्रह के साथ होगा या किसी भी तरह से उसका असर कुंडली में घटित होगा वही फल बच्चे को भी मिलेगा. बच्चे की मन की स्थिति बच्चे की आंतरिक प्रणाली चंद्रमा के द्वारा ही देखने को मिल सकती है. 

लग्न और लग्न स्वामी

जन्म कुंडली मे लग्न का महत्व बहुत अधिक होता है. यदि लग्न और लग्न के स्वामी बलवान हैं तो वे कष्ट सह सकते हैं, लेकिन यदि वे कमजोर हैं तो वे इसके आगे झुक जाते हैं. लग्न देह होती है संपूर्ण शरीर होता है. जब ग्रहों के योग के साथ इसका योग प्रभावित होता है तो ये फल देता है.लग्न अगर कमजोर हुआ तो चीजें जरुर अपना असर डालने वाली होंगी लग्न का स्वामी भी अगर कमजोर होगा तो स्थिति अधिक चिंता को दिखाएगी.

अष्टम भाव और अष्टमेश का असर

आठवां घर आयु का और मृत्यु का घर है इसलिए इसे आयु और सेहत के दृष्टिकोण से देखा जाता है. आठवां घर लग्न , चंद्र या सूर्य से किसी प्रकार का संबंध बनाते हुए खराब हो रहा है तो स्थिति चिंता को दिखाती है.  अष्टम भाव पर पाप का प्रभाव दीर्घायु को कम करता है, लेकिन अष्टम भाव में स्थित शनि दीर्घायु को बढ़ावा देता है, बशर्ते वह वक्री न हो या फिर पाप प्रभावित न हो. 

अरिष्ट की स्थिति वर्ग कुंडलियों में 

अगर संतान जन्म समय बिमार हो या अन्य प्रकार के कष्ट घटित होते हैं तो ये समय अरिष्ट का निर्माण करता है. अरिष्ट को बच्चे की कुंडली में देखा जाता है, तो उस बच्चे नवमांश (डी 9 चार्ट), द्रेक्कन, द्वादशांश कुंडली त्रिशांश कुंडली को भी देखना जरुरी होता है. कुंडली में बनते वक्त यह योग अगर अन्य वर्ग कुंडलियों में नही दिखाई देता है तो स्थिति संतोषजन होती है ओर बचाव भी प्राप्त होता है. वर्ग कुंडली में सुधार होता है तो यह अरिष्ट के खतरे को कम करता है, लेकिन अगर अरिष्ट का प्रभाव  को बार-बार वर्गाओं में देखा जाता है तो चिंता का कारण है बन सकता है. 

बालारिष्ट कब डालता है अपना असर 

बालारिष्ट का प्रभाव तब अपना असर डालने वाला होता है जब लग्न, लग्न स्वामी या चंद्रमा को दशा-अंतर्दशा समय और गोचर के अनुसार पाप प्रभाव मिल रहा हो हो. अरिष्ट सामान्य रूप से छठे आठवें या बारहवें भाव या उनके स्वामी की दशा में अपना असर दिखाने वाली होती है. यदि दशा और गोचर में लग्न या चंद्रमा कमजोर न हो तो अरिष्ट प्रभाव नहीं डालता है. इसी तरह यदि नवांश कुंडली में स्थिति में सुधार होता है तो अरिष्ट अपना असर नहीं डालता है, यदि अरिष्ट भंग मजबूत है और जातक का दशा क्रम अनुकूल है, तो अरिष्ट असर डालने में कमजोर ही रहता है. कुंडली में यदि अरिष्ट की स्थ्ति बहुत मजबूत है और अरिष्टभंग कमजोर है, और दशा क्रम और गोचर प्रतिकूल हैं तो अरिष्ट से बचाव कमजोर होता है ओर उस स्थिति में इसका तनाव जेलना पड़ता है. इस स्थिति में ग्रह जाप, दान एवं अन्य कार्यों को करने से सकारात्मक लाभ प्राप्त होते हैं. 

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64 (चौसठवां) नवांश कब होता है कष्टदायक और देता है पीड़ा का संकेत

ज्योतिष शास्त्र में जीवन के हर क्षण और घटनाक्रम को समझा जा सकता है. इसमें मौजूद गणनाओं का उपयोग करके जीवन में होने वाली घटनाओं को जान पाना संभव होता है. इन सूक्ष्म गणनाओं में एक गणना आयु और दुर्घटना को लेकर है जिसे जानने के लिए किसी व्यक्ति के लग्न कुंडली के 64वें नवांश को देख कर जाना जा सकता है. 64 वें नवांश को देख कर व्यक्ति के जीवन में आने वाली दुर्घटनाओं मृत्यु तुल्य कष्ट की संभावनाओं को काफी सटीकता के साथ समझ पाना संभव होता है. 

कुंडली में यह नवांश किसी व्यक्ति के जीवन में आने वाली मुश्किलों, कष्टों, चिंताओं परेशानियों बाधाओं जैसी अनेकों प्रकार की स्थिति को समझने के लिए देखा जाता है. इसी के साथ कुछ अन्य कारक भी असर डालते हैं. इन सभी चीजों को एक एक करके समझते हुए स्थिति को काफी स्पष्ट रुप से समझने में मद मिलती है.   

64 (चौसठवां) नवांश पाप ग्रह प्रभाव 

ज्योतिष शास्त्र में कुछ ग्रह शुभ एवं कुछ ग्रह अशुभ या पाप, क्रुर ग्रह के नाम से जाने जाते हैं. सभी ग्रहौं के अपने फल होते हैं. इनमें से ग्रहों की प्रकृति शुभ एवं अशुभ रुप से उल्लेखित की जाती है. जहां शनि मंगल राहु केतु ग्रह पाप ग्रहों की श्रेणी में आते हैं वहीं गुरु शुक्र बुध चंद्र शुभ ग्रह और सूर्य क्रूर ग्रह की श्रेणी में स्थान पाता है सूर्य को शुभ क्रूर कहा जा सकता है.

इन ग्रहों में स्वभाविक रुप से जब पाप ग्रह 64 नवांश से संब्म्ध बनाते हैं तो व्यक्ति के लिए कष्ट का संकेत देते हैं. लेकिन इसके विपरित कुछ तथ्य इस तरह भी देखे जा सकते हैं की शुभ ग्रह भी यहां होने पर पप प्रभाव दे सकता है. ऎसा इस कारण से होता है की जब कोई शुभ ग्रह कुंडली में खराब भाव का स्वामी बनता है तो वह अपने स्वामित्व के अधार पर फल जरुर देता है. इस कारण से कहा जा सकता है की शुभ ग्रह भी जब कुंडली में खराब घरों के सेवामी बनते हैं तो अपने शुभत्व में कमी कर देते हैं ओर जब ये ग्रह इस चौसठवें नवांश से जुड़ते हैं तो स्थिति चिंता को दिखाती ही है. 

ग्रहों का प्रभाव 

शनि का प्रभाव लम्बी बिमारियों का संकेत, स्नायु तंत्र की समस्या, पक्षाघात की संभावना, गैस्ट्रिक समस्याएं दे सकता है. 

मंगल का प्रभाव यदि इस पर आता है तो जलने कटने चोट लगने खून बहने या रक्त के विकार जैसी घटनाओं की चिंता अधिक होती है. इस के अलावा यह दुर्घटना को भी दिखाता है. 

राहु केतु – राहु केतु का असर विषैले पदार्थों के कारण रोग और कष्ट दे सकता है, दिमागी भ्रम अस्थिरता चिंताएं लगातार बनी होती हैं. मन भटकाव के कारण बेचैन रहता है. कैंसर जैसे रोग भी इसके कारण असर डाल सकते हैं. 

इन ग्रहों का एक दूसरे के साथ अगर योग बन रहा हो 64वें नवांश में तब स्थिति अधिक चिंता को बढ़ा सकती है. प्रकृति से मिलने वाले कष्ट भी इसमें शामिल हो जाते हैं आपदाएं कष्ट देने का कारण बन सकती हैं. अपनो का अलगाव दूरी विच्छे मानसिक कष्ट को मृत्यु तुल्य कष्ट के समान बना देता है. 

इसी के साथ शुभ ग्रह जब पाप प्रभाव में आते हैं तो उनके द्वारा भी इसी तरह की संभावनाएं जन्म ले सकती हैं. शरीर के रोग मसिक रोग आपसी संबंधों का कष्ट परेशानी ओर वियोग को दिखा सकता है. 

64वें नवांश से मिलने वाले फल और प्रभाव 

चौसठवें नवांश कुंडली से स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाया जा सकता है. 

64वें नवांश से जीवन में होने वाली दुर्घटनाओं का  पता लगाया जा सकता है. 

64वें नवांश से जीवन में होने वाली सभी प्रकार की मानसिक चिंताओं के बारे में जाना जा सकता है.  

64 वें नवांश से जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की आपदाओं को जाना जा सकता है. 

64वें नवांश से जीवन में होने वाले रोग व्याधियों को जाना जा सकता है. 

64वें नवांश से मृत्यु तुल्य कष्ट को जान सकते हैं 

64वें नवांश से जीवन में कब कष्ट और बुरा समय आ सकता है इस स्थिति का पता लगाया जा सकता है. 

64 नवांश का स्वामी होता है काफी महत्वपूर्ण 

 64 नवांश भाव का अधिपति ही इस नवांश का स्वामी होता है. ज्योतिष में वर्ग कुंडलियों का विशेष स्थान है. वर्ग कुंडली किसी भाव को समझने का सूक्ष्म रुप होता है. इस तरह से हर भाव की अच्छे बुरी स्थिति को बेहतर तरीके से जाना जा सकता है. कुंडली का आठवां भाव इस नवांश से संबंधित माना गया है. 

कुंडली में चंद्रमा जितने अंश डिग्री का होता है उसके आधार पर इसे जाना जाता है. चंद्र की डिग्री को आठवें घर में रख कर गणना को समझा जाता है. अगर नवांश कुंडली की बत करें तो नवांश वर्ग कुंडली में चंद्रमा जिस भी घर में बैठा होता है उस घर से गिनते हुए चार घर आगे गिनने होते हैं और गिनती में जो भी चौथा घर पड़ता है वहीं 64वें नवांश का स्वामी बनता है. इसी के साथ अगर नवांश कुंडली के हर घर से चौसठवां नवांश देखना है तो इसके लिए उक्त भाव से आगे चौथा भाव गिनने पर यह स्थिति मिलती है. 64 वां नवांश कुंडली के आठवें घर का भाव मध्य भी कहा जाता है. 

चौसठवें नवांश का स्वामी यदि कोई पाप ग्रह होता है तो स्थिति कमजोर होती है. शनि राहु केतु या मंगल का असर चिंता कष्ट को दे सकता है. इसके द्वारा मानसिक तनाव दुर्घटना, घाटा आकस्मिक परेशानियां अपना असर डाल सकती हैं. अगर ये ग्रह कुंडली में खराब स्थान के स्वामी बनते हैं तो स्थिति अधिक असर डाल सकती है.

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सावन 2025 का हर सोमवार होता है बेहद खास, बनते हैं अनेक शुभ योग

2025 में सावन माह का आरंभ 11 जुलाई से होगा. श्रावण माह का समय 11 जुलाई को कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से शुरु होगा. सावन के पहले दिन ही अशून्यशयन व्रत भी होगा जो भगवान शिव हेतु रखा जाता है. सावन के कृष्ण पक्ष में दो सोमवार व्रत होंगे.

इसके पश्चात 28 अगस्त को सावन शुक्ल पक्ष का आरंभ होगा.

सावन माह के दौरान सोमवार होंगे विशेष प्रत्येक सोमवार के दिन कुछ विशेष योग भी निर्मित होंगे. सावन का पूरा महीना पवित्र होता है, व्रत और पूजा के लिए श्रावण सोमवार का विशेष महत्व है. सावन सोमवार व्रत के तरीके अलग-अलग व्यक्ति और उनके स्वास्थ्य और परिस्थितियों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं किंतु इनके फलों की शुभता सभी को समान रुप से प्राप्त होती है.

श्रावण सोमवार बनने वाले दुर्लभ योग 

प्रथम श्रावण सोमवार व्रत  (14 जुलाई 2025) 

सावन का पहला सोमवार 14 जुलाई 2025 के दिन मनाया जाएगा. सावन के पहले सोमवार के दिन को अग्रीण सोमवार भी कहा जाता है. इस दिन को विशेष रुप से मनाए जाने का विधान है क्योंकि इसी दिन से सावन के सोमवार व्रत का आरंभ होता है. सावन माह के पहले सोमवार के दिन में ग्रहों का योग शुभ फल प्रदान करने वाला होगा.

द्वि ग्रह योग 

दो ग्रह होंगे सूर्य और गुरु मिथुन राशि में होंगे. यह एक दुर्लभ स्थिति होगी जो विशेष फल प्रदान करने वाली होती है.

श्रावण प्रतिपदा 

11 जुलाई के श्रावण सोमवार के दिन प्रतिपदा का समय होगा. सोमवार के दिन का समय शिव पूजन के लिए विशेष माना जाता है. ऎसे में श्रावण माह के सोमवार व्रत में प्रतिपदा योग होने से दुर्लभ योग बनेगा जिसका प्रभाव कई गुणा फलों को देने वाला होगा

सावन के पहले सोमवार के दिन व्रत एवं पूजा का लाभ परिवार की सुख वृद्धि के लिए होगा. इस दिन किए जाने वाला प्रत्येक शुद्ध सात्विक कार्य कुटुम्ब वृद्धि का योग प्रदान करेगा. घर-परिवार में आर्थिक संपन्नता भी आएगी. संतान सुख की प्राप्ति होगी तथा किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव दूर होंगे.

सर्वाथ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग 

सर्वाथ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बनने से पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होगा. भगवान शिव के समक्ष की गई आराधना व्रत उपासना द्वारा मनोरथ पूरे होंगे. इस समय पर किए जाने वाले कार्य भी शुभ गति से आगे बढ़ सकेंगे. घर परिवार में कलह कलेश की शांति होगी. रिश्तों में चली आ रही दूरी समाप्त होगी.

द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत (21 जुलाई 2025) 

सावन का दूसरा सोमवार 21 जुलाई को पड़ रहा है. पंचांग के अनुसार इस दिन एकादशी व्रत का विशेष संयोग भी बन रहा है. इसलिए सावन का दूसरा सोमवार शिव भक्तों के लिए खास रहने वाला है.  इसके अलावा सावन के दूसरे सोमवार को द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत, रोहिणी व्रत, कामिका एकादशी, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग का विशेष योग भी बन रहा है.

सावन के दूसरे सोमवार स्वग्रही योग और बली चंद्रमा

सावन के दूसरे सोमवार के दिन शनि, मंगल, बृहस्पति ओर चंद्रमा की स्थिति होगी खास. इस समय पर भगवान शिव का अभिषेक बहुत ही उत्तम होगा. यह योग सुबह ही व्याप्त होगा अत: प्रात:काल समय पर किया गया अभिषेक जीवन में कार्यक्षेत्र और काम काज में शुभता प्रदान करने वाला होगा.

इस समय के दौरान माता का सुख एवं प्रेम और भी प्रगाढ़ होगा. माता को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी. मानसिक दुर्बलता दूर होगी. उन्मांद एवं मानसिक रोग शांत होंगे.

एकादशी व्रत

इस सोमवार के दिन एकादशी व्रत का समय होगा जो शिव पार्वती पूजन के लिए उत्तम होगा. इस समय पर किया गया शिव गौरी पूजन विवाह की समस्याओं को दूर करने में सहायक होगा. दांपत्य जीवन में आ रही परेशानियां समाप्त होंगी.

तृतीय श्रावण सोमवार व्रत (28 जुलाई 2025) (शुक्ल पक्ष)

इस बार सावन का तीसरा सोमवार 28 जुलाई को पड़ रहा है. साथ ही इस दिन शुक्ल चतुर्थी पड़ने के कारण शुभ संयोग बन रहा है. ऐसे में इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा भी शुभ साबित होगी. इस दिन रवि योग का संयोग बन रहा है. सावन के तीसरे सोमवार को  गणपति की पूजा की जाएगी.

सावन के तीसरे सोमवार का दिन शुक्ल पक्ष का होगा. सावन का शुक्ल पक्ष का सोमवार विशेष माना गया है क्योंकि चंद्र इस समय पक्ष बली अवस्था में होता है और इसी समय पर शिव पुराण ग्रंथ, अन्य धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने की शुरुआत या भगवान शिव के लिए रखे जाने वाला कोई भी व्रत आज के दिन से आरंभ करने का विधान होता है. इसके अलावा कोई अन्य धार्मिक गतिविधि के लिए शुक्ल पक्ष को विशेष रुप से उपयोग में लाया जाता है.

चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत (04 अगस्त 2025) शुक्ल पक्ष 

सावन के चौथे सोमवार के दिन सप्तमी का व्रत भी होगा. इस सोमवार के दिन का समय सावन में मनाई जाने वाली सप्तमी होने से ये समय अत्यंत शुभदायक होगा. श्री विष्णु और शिव पूजन के लिए ये अत्यंत शुभदायक होगा. इस शुभ दिन रवियोग भी बनेगा जिसका प्रभाव पूजा के फलों में सकारात्मक रुप से वृद्धिदायक होगा.

श्रावण सोमवार के दिन पर व्रत और पूजा करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है. भक्तों को पवित्र जल, फूल, फल, चंदन, पंचामृत और रुद्राभिषेक का जप करना चाहिए. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जलाभिषेक किया जाता है. भक्तों को जल और कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए, इसे पीतल के बर्तन में डालकर भगवान शिव को अर्पित करना चाहिए.

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राहु की ग्रह युति कब बनती है ग्रहण और कब देती है शुभ फल

राहु – सूर्य
राहु और सूर्य का संबंध कुण्डली में ग्रहण योग का निर्माण करता है. इसके प्रभाव स्वरुप पिता एवं संतान के मध्य वैचारिक मतभेद की स्थिति रह सकती है. संतान की जन्म कुण्डली में यह योग होने पर पिता के व्यवसाय और मान सम्मान में कमी देखने को मिल सकती है. सुख में कम आती है, क्रोध अधिक रहता है, स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं. कार्य क्षेत्र में भी सरकार की ओर से अनुकूलता में कमी आती है.

यह संबंध जिस भाव में भी बनता है उसके फलों में कमी करने वाला होता है. राजनीति के क्षेत्र में आप काम कर सकते हैं. इस स्थिति का प्रभाव स्वरूप स्वास्थ्य पर भी असर देखने को मिलता है, मानसिक रुप से चिंताएं अधिक रहती है. हृदयएवं हडियों से संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं. अहम का भाव उभर सकता है. जल्दबाजी के कारण स्वयं को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

राहु – चंद्र
राहु का चंद्रमा के साथ संबंध ग्रहण योग का निर्माण करता है. चंद्रमा का राहु के साथ संबंध मानसिक रुप से अस्थिरता और शंका की स्थिति देने वाला होता है. व्यक्ति में दूसरों पर दोषारोपण करने की प्रवृत्ति भी बहुत अधिक होती है. माता का सुख भी प्रभावित होता है. माता को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से परेशान होना पड़ सकता है. मान सम्मान से संबंधित उचित व्यवहार नहीं मिल पाता है. व्यक्तिगत सफलता, सम्मान की प्राप्ति में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. संतान से संबंधी कष्ट भी झेलने पड़ सकते हैं. व्यक्ति रहस्यमयी विद्याओं में रूचि रखता है, शोध कार्यों में अच्छी सफलता पा सकता है.व्यक्ति में भावनात्मक कमजोरी देखी जा सकती है, व्यवहार में लापरवाही झलक सकती है. किसी भी चीज को याद करने की प्रवृति भी प्रभावित होती है.

राहु – मंगल
मंगल और राहु का संबंध जातक में क्रोध और घमंड की स्थिति दे सकता है. व्यक्ति में क्रोध बहुत होता है, सहनशक्ति की कमी होती है. व्यक्ति में चालबाजियों की स्थिति अधिक होती है. वह किसी भी प्रकार के षडयंत्र में फंस भी सकता है. व्यक्ति विवाद में बहुत जल्दी फंस सकता है. दोनों ग्रहों का स्वरुप शत्रु षड्यंत्र, झगड़े, विवाद, शत्रु एवं साहस, पराक्रम को दर्शाते हैं. यह मंगल और राहु की स्थिति अंगारक योग का निर्माण करती है. राहु और मंगल का संबंध जातक का व्यक्तित्व दुःसाहसिक कार्यों को करने में अग्रीण रहता है.

राहु – बुध
राहु और बुध का संबंध जड़त्व योग का निर्माण करता है. राहु और बुध का संबंध बौधिक भ्रम देने वाला होता है. राहु भ्रम है और बुध बुद्धि को दर्शाता है ऐसे में दोनों का संजोग स्वभाविक है की बुद्धि को प्रभावित करता है और सोच समझने की प्रक्रिया भी इससे प्रभावित होती है. व्यक्ति उचित तथ्यों के प्रति उपेक्षित भाव रख सकता है. यह योग संबंध चातुर्य और कूटनीति भी देने वाला होता है.

राहु – गुरु
राहु के साथ गुरु का संबंध गुरु चंडाल बनाता है. राहु के साथ गुरु का संबंध होने पर व्यक्ति में चंडाल धार्मिक आस्था में कमी हो सकती है. व्यक्ति धर्म से विमुख सा रह सकता है या धर्म को लेकर इसकी अपनी सोच होती है. व्यक्ति सच्चाई और न्याय को ऊपर उठाने की कोशिश करने वाला होता है. लेकिन व्यक्तिगत जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करने वाला हो सकता है.

राहु – शनि
राहु – शनि की युति का संबंध नन्दी योग एवं शापित योग का निर्माण होता है. इन दोनों ही योगों के मिश्रित प्रभाव स्वरूप जातक का जीवन प्रभावित रहता है. इस योग का संबंध जिस भी भाव में होता है उस भाव से संबंधित फलों में कमी की स्थिति झेलनी पड़ सकती है. व्यक्ति में क्रोध ओर चिडचिडाहट हो सकती है. वह जल्दी ही दूसरों से घुल-मिल नहीं मिल पाता है. इस योग के फलस्वरूप जातक को सुख, वैभव एवं समृद्धि भी प्राप्त होती है. लेकिन मानसिक रुप से उसमें विरक्ति की स्थिति भी झलकती है. राहु और शनि का संबंध, एक अलग सोच समझ का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला होता है.

राहु – शुक्र
राहु और शुक्र का संबंध योग व्यक्ति को चमक-धमक के पीछे भागने वाला बना सकता है. व्यक्ति में अधिक पाने की चाह होती है वह भौतिक साधनों से संपन्न रहने की इच्छा रखता है. जातक में क्रोध की अधिकता हो सकती है. वाद विवाद में फंस सकता है. दूसरों के द्वारा फँसाया भी जा सकता है. व्यक्ति के स्वभाव में कटुता और अडियल रुख भी देखने को मिल सकता है. अपने स्वभाव के कारण नुकसान भी उठाने पड़ते सकते हैं.

राहु शांति उपाय

जातक को महामृत्यंजय का पाठ करना चाहिए.
शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए.
चांदी धारण करें
गरीब एवं अस्मर्थ व्यक्ति की सेवा करें.
माता के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करें तथा भाई बंधुओं से समानता और स्नेह की भावना रखें.
हनुमान जी की अराधना करें

राहु मंत्र
ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूतीसदा वृध: सखा । कयाशश्चिष्ठया वृता ।

  राहु कवच स्त्रोत 

अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।

अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं I नमः शक्तिः ।
स्वाहा कीलकम्। राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।।

प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ।।
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ।। १।।

निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ।। २ ।।

नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ।। ३ ।।

भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ।।४ ।।

कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ।।५ ।।

गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ।।६ ।।

राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।

प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ।।७ ।।
।।इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ।।

कवच पाठ के लाभ

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सूर्य राशि से जाने अपने परफेक्ट लव पार्टनर के बारे में

ज्योतिष के सिद्धांत अनुसार राशियों के द्वारा किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने में बहुत से विशेष बातों का आसानी से पता चल सकता है. अगर आपको अपने भावी साथी से केवल उनकी जन्म तिथि की जानकारी ही मिल पाती है तब आप उनके चंद्र ओर सूर्य राशि के द्बाता उन्हें समझ सकते हैं. ज्योतिष में चंद्रमा मन है और सूर्य आत्मा है. कुंडली में इन दोनों का विशेष स्थान होता है. आप अपने साथी की राशि से उसे समझने में काफी सफल हो सकते हैं. ज्योतिष के अनुसार, एक सूर्य मूल व्यक्तित्व को दर्शाता है. सूर्य राशि यह प्रकट करने में मदद करती है कि कोई व्यक्ति आस पास के माहौल के साथ कैसे संपर्क साधता है और यह भी बताता है कि वे पारस्परिक गतिविधियों को कैसे निभा सकता है. इससे यह भी पता चलता है कि हमारी ताकत और कमजोरियां क्या हो सकती हैं और हम अपने रिश्ते को कैसे संभाल सकते हैं.

सभी सूर्य राशि के अलग-अलग गुण होते हैं. मेष, मिथुन राशि के व्यक्तियों को काफी रोमांटिक कहा जाता है. कन्या और मकर राशि के व्यक्ति अधिक व्यावहारिक होते और कुछ रोमांटिक लग सकते हैं. कर्क और तुला राशि के व्यक्ति अपने रिश्तों में सुरक्षा तलाशने का प्रयास करते हैं. सिंह और वृश्चिक राशि के व्यक्ति नए रिश्तों की तलाश में जुनून के साथ आगे बढ़ते हैं. जब रिश्ते मजबूती की बात आती है तो वृषभ और कुंभ राशि के लोग इसमें काम करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं. धनु और मीन राशि के लोग अगग ही स्वतंत्र रुहानी रिश्ते की मांग रखते हैं.

प्रत्येक राशि में रिश्तों को संभालने का एक विशिष्ट तरीका होता है और इसलिए, यह समझने के लिए कि कौन सी राशि आपके साथ अधिक अनुकूल होगी और आपकी प्रेम से संबंधित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कैसे काम कर सकती है. प्रत्येक राशि के दृष्टिकोण में भिन्नताओं को महसूस करना ओर उसे समझना जरुरी होता है. यहां एक लिस्ट है जो आपको आपकी सूर्य राशि के अनुसार आपके लिए एक पर्फेक्ट प्रेम को पहचानने में मदद कर सकती है.

सूर्य राशि मेष (21 मार्च – 19 अप्रैल)
मेष राशि वाले अपने आवेगी स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. मेष राशि के लिए जब प्यार की बात आती है तो उत्साह और जोश भरपुर दिखाई दे सकता है. ये अपने अंतर्ज्ञान पर आगे बढ़ते हैं. अक्सर, प्रत्यक्ष रूप से सामने आते हैं और मन की बात को रुचि के साथ अपने प्रेमी के साथ तुरंत व्यक्त करने की क्षमता रखते हैं. मेष की जल्दबाजी का गुण दोनों तरह से काम कर सकता है. जब ये आसानी से प्यार में पड़ जाते हैं, लेकिन साथी जल्दी से अपनी भावनाओं को अगर नहीं दिखाता तो रिश्ते से हटने में भी देर नहीं लगाना चाहेंगे और आगे बढ़ने की प्रवृत्ति रखते हैं. अस्वीकृति इनको कुछ दिनों के लिए चुभ सकती है लेकिन ये जल्द से अपने जीवन को पुन: जीवंत रखते हुए आगे बढ़ सकते हैं. मेष राशि रोमांच और पूर्ण संतुष्टि से प्यार करते हैं. किसी चीज को पाने के लिए कड़ी मेहनत करने से पीछे नहीं रहते हैं. जब लोग इनकी तारीफ करते हैं तो इसे सुनने और इसे प्यार करने की आवश्यकता होती है. आत्मविश्वास और सम्मान दो ऐसे गुण हैं जो इन्हे आकर्षित करते हैं. मेष राशि वालों को डेट करने की इच्छा रखने वाले को अपने मन की बात खुलकर कहने में सक्षम होना चाहिए और साथ ही इनकी ढेर सारी तारीफ इन्हें बहुत अच्छी लग सकती है.

वृष राशि (20 अप्रैल – 20 मई)
वृषभ राशि अपने जिद्दी स्वभाव ओर स्थिरता के लिए जानी जाती है. कोई भी जब इनके साथ डेट करना चाहता है, तो बस यह जान लें कि वे चीजों में दृढ़ता ओर स्थिरता की मांग करना चाहते हैं. वृष राशि शारीरिक स्नेह को पसंद करती है. वृष एक ऐसा साथी चाहते हैं जो प्यार और देखभाल का एहसास भरपुर रुप से करवा पाए. कुछ अच्छे उपहार और ढेर सारा रोमांस इनके दिल को चुराने का सबसे आसान तरीका है. ये लोग विशेष व्यवहार करना पसंद करते हैं, और जब किसी की सराहना करते हैं जो वास्तव में ऐसा करते हैं. ये एक कामुक राशि है जिसके कारण यह जल्द से दूसरों को आकर्षित कर पाने में सफल भी होते हैं जब ये किसी को चाहते हैं तो रिश्ते में मजबूती को पाना चाहते हैं. इन्हें प्रतिबद्धताओं का कोई भय नहीं है. एक वृष राशि के रूप में, यह अपने भौतिकवादी विचारों के बावजूद एक अच्छा संबंध चाहते हैं. जो इन्हें सुखदायक स्थिति देने में सक्षम होता है. वृष तुरंत उन लोगों की ओर आकर्षित होते हैं जो इन्हें प्रेम देने में आगे रहते हैं. ये कभी-कभार अपने अकेले पन का आनंद ले सकते हैं, लेकिन अपने महत्वपूर्ण पलों को दूसरे के साथ बिताने का आनंद लेना भी इन्हें बहुत पसंद होता है.रिश्तों में ईमानदारी और वफादारी इनके लिए दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं.

मिथुन राशि (21 मई – 20 जून)
मिथुन वह राशि है जिसे अन्य सभी राशियों में सबसे प्रेम से बात करने वाला कहा जाता है. यह ह्म्समुख ओर चुलबुले होते हैं. यह कहीं भी एक प्रमुख संचारक बन सकते हैं. आसानी से और जल्दी से परिस्थितियों के अनुकूल हो सकते हैं. कठिन परिस्थितियों में बोलने के लिए आगे रह सकते हैं. एक विशेषता जो आपके दोस्तों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद की जाती है. आप उन लोगों की ओर सबसे अधिक आकर्षित होते हैं जिनका व्यक्तित्व आपके जैसा ही होता है. कोई भी जो अपनी बातचीत को पकड़ सकता है और मजाकिया हो सकता है वह मिथुन के साथ मजबूत संब्म्ध बना सकता है. एक बार पार्टनर बनने के बाद आप बार-बार अपने रिश्ते में कुछ नई चीजों को शामिल करना पसंद करेंगे अपने प्यार का इजहार करना चाहेंगे. रिश्ते में स्थिरता से अधिक मस्ती ओर हर बार कुछ नवीनता की खोज इनके लिए विशेष होती है नहीं तो रिश्ते के बोरिंग लगने लगते ही आगे बढ़ सकते हैं.

कर्क राशि (21 जून – 22 जुलाई)
कर्क राशि भावनात्मक रूप से परिपक्व होते हैं और अत्यधिक सहानुभूतिपूर्ण लगाव एवं देखभाल करने वाले होते हैं. ये एक अविश्वसनीय साथी बन सकते हैं. इनका आदर्श साथी वह है जो इनकी बात ध्यान से सुनता है और इनको पूरी तरह समझता है. यह घर का आराम पसंद करते हैं, अपने साथी से भी ऐसा ही करने की अपेक्षा रखते हैं. इनका एक अच्छा शानदार गुण यह है कि ये उन लोगों की देखभाल करना पसंद करते हैं जिन्हें प्यार करते हैं. अपने साथी के प्रति पुर्ण समर्पण का भाव रखते हैं. अगर साथी को इनको वैसे ही स्वीकार करने में सक्षम हो जैसे ये हैं तो रिश्ता बहुत ही शुभता को पाता है और इनको बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

सिंह राशि (23 जुलाई – 22 अगस्त)
सिंह राशि के रूप में, सिंह साहसी और जीवंत व्यक्तित्व वाले होते हैं जो ध्यान आकर्षित करना पसंद करते हैं. सिंह राशि का करिश्माई और आत्मविश्वासी स्वभाव सभी को इनकी ओर खिंच लाने में सक्षम होता है. अपने चाहने वालों को आसानी से छोड़ते नहीं है. बहुत जल्दी घुलना मिलना नहीं चाहें लेकिन जब रिश्ते में आते हैं तो रिश्ते में पूरी निष्ठा को दिखाते हैं. शायद ही कभी कोई सिंह डेटिंग का मौका अपने पास से जाने देता है. यह उपेक्षा से बहुत घृणा करते हैं और इसलिए, एक ऐसे साथी की तलाश करते हैं जो इनसे प्यार करे और इनका सम्मान करे जैसा ये उन्हें करेंगे. ये ऎसा साथी चाहेंगे जो इनके साथ मजबूती के साथ खड़ा हो सके.

कन्या राशि (23 अगस्त – 22 सितंबर)
कन्या राशि के जातक ऐसे गुणों से संपन्न होते हैं जो उन्हें सबसे अच्छे जोड़ीदारों में से एक बनाते हैं. किसी के भी पास अपने को ढाल सकते हैं. अपने शांत स्वभाव के कारण, अपने रिश्तों में बेकार की मांगें नहीं करते हैं. तार्किक तर्क इनको बिना किसी बड़े तर्क के किसी भी विवाद को निपटाने की कुशलता देता है. इनका सहज स्वभाव अपने साथी की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाने वाला होता है. इन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो इनको ईमानदारी से प्यार दे पाए. कोई ऐसा व्यक्ति जो इनको बिना किसी छिपे हुए एजेंडा के प्यार करे. बिना शर्त प्यार इनकी आवश्यकता है क्योंकि खुद की आलोचना करने में ज्यादा आगे रह सकते हैं और ऎसे में साथी को लगातार इनको आश्वस्त करने की जरूरत है कि वे उन्हें वैसे ही पसंद करते हैं जैसे ये हैं.

तुला राशि (23 सितंबर – 22 अक्टूबर)
तुला राशि के रूप में, ये रोमांस ओर जोश से भरे होते हैं. इनके बहुत सारे दोस्त और कई प्रेमी हो सकते हैं. प्यार में होना और अपने प्रिय के साथ रिश्ते में रहने के विचार से बहुत लगाव रखते हैं. प्रेम इनकी कमजोरी है. प्यार के लिए ये सदैव काफी भावनात्मक रहते हैं. रिश्तों के प्रति लगाव एवं स्नेह इनके भीतर बहुत होता है. खुशी-खुशी लोगों के साथ जुड़ कर एक दूसरे को जानने का मौका देते हैं. फिर भी, प्यार में बहुत जल्दी से पड़ जाते हैं, जो अक्सर तेजी से बदलते रिश्तों की ओर ले जाता है. आपका आदर्श साथी वह है जो आपको रिश्ते में भारी पड़े बिना आपसे प्यार करता है.

वृश्चिक राशि का रिश्ता (23 अक्टूबर – 21 नवंबर)
वृश्चिक राशि काफी मजबूत, रहस्मय, अपने में समाई हुई सी होती है. ये उस प्रकार के व्यक्ति नहीं हैं जिसका कोई लाभ उठा सके. इनके पास दूर से ही व्यक्ति का पता लगाने की क्षमता अच्छी होती है और इसलिए ये उन्हें कभी भी अपने पास नहीं आने देंगे जो इनके साथ कोई चालबाजी करना चाहेंगे. एक अच्छे संवाद करने वाले होने के नाते नए लोगों से मिलने और रिश्ते में समस्याओं के होने पर उन्हें सुलझाने में बेहतर रुप से काबिल होते हैं. अपने पार्टनर के साथ गहरे संबंध के साथ-साथ अपने रिश्तों में सच्चाई और विश्वास को मुख्य स्थान देते हैं एक आशावादी साथी चाहते हैं जो इनके साथ सब कुछ बांटने ओर शेयर करने के लिए तैयार हो.

धनु राशि (22 नवंबर – 21 दिसंबर)
धनु राशि उन्मुक्त एवं स्वच्छंद रहते हुए आगे बढ़ने वाली राशि है. साहस और निड़रता इनके गुण हैं. इनको अपने रिश्ते में स्वतंत्रता और स्थान की आवश्यकता होती है. सहजता और स्वतंत्रता दो ऐसी चीजें हैं जिन्हें ये अपने जीवन में सबसे अधिक महत्व देते हैं. इसलिए ये उन रिश्तों पर समय बर्बाद करना पसंद नहीं करते हैं जो इन पर हवै होना चाहेंगे और इनको प्रसन्न नहीं करते हैं. इन सीमाएं इनके लिए महत्वपूर्ण हैं और जब वे दूसरे के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं तो अपने साथी की ओर से भी ऎसा सम्मान चाहेंगे. इनके लिए घर बसाना या कमिटमेंट करना आसान नहीं होता है. ये एक ऐसे साथी की कामना करते हैं जो इनको उड़ने के लिए पंख फैलाने की अनुमति देने के लिए तैयार हो और इन्हें एक स्थान पर सीमित न रखे. इनका आदर्श साथी वह होगा जो रोमांच से उतना ही प्यार करता है जितना कि य करते हैं. कोई ऐसा व्यक्ति जो इन्हें फंसाने या बांधने की कोशिश करता है उनसे ये दूरी ही पसंद करते हैं.

मकर राशि (22 दिसंबर – 19 जनवरी)
मकर राशि होने का मतलब है कि रिश्तों में काफी उच्च अभिलाषी ओर नियमों का एक मजबूत मापदंड. इनके साथी को यह दिखाने में सक्षम होना चाहिए कि जो ये चाहते हैं उसे दिखा पाएं. हैं. आकर्षक व्यवहार या उपहार इनको आसानी से प्रभावित नहीं कर सकते हैं. मकर राशि खुलकर अपनी जरूरतों को बताना पसंद करते हैं. ऎसे में अपने साथी से भी यही मांगते हैं. पारंपरिक संबंध आपके लिए बहुत आवश्यक है. इन्हें टाइम पास रिश्ता निभाना पसंद नहीं होता है. ये अपने आस-पास के लोगों के साथ सहज होने पर उनके लिए सबसे अधिक करीबी हो जाते हैं, इनका आदर्श साथी वह होगा जो इनको जीवन में मौज-मस्ती करने के लिए प्रेरित कर सकए क्योंकि रोमांस और रोमांच में कुछ धीमे हो सकते हैं.

कुंभ (20 जनवरी – 18 फरवरी)
अधिकांश कुंभ राशि वाले अपनी गंभीर भावनाओं को प्रकट करने में काफी सतर्क रहते हैं. इनके रहस्यमय और मनोरम दोनो होने की संभावना है, जो बहुत से लोगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित करता है. लोग यह जानना चाहते हैं कि इनके गूढ़ व्यक्तित्व के पीछे क्या है. ये एक बेहतर समस्या समाधानकर्ता भी हैं, ऎसे में अच्छे समाधान तक पहुंचने में दूसरों की मदद कर सकते हैं. साथी की जरूरतों को पूरा करने में भी उत्साही होते हैं. रोमांस इनमें होता है ओर स्वतंत्र विचारधारा भी रखते हैं. ये एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जहां साथी इनको अपनी भावनाओं को शेयर करने के लिए प्रोत्साहित करने वाला हो. अपनी भावनाओं से कुछ कमजोर होते हैं ऎसे में उस साथी की तलाश में होते हैं जो इनकी भावनात्मता को समझ सके. इसलिए, एक साथी जो इनको उस अत्यधिक नियंत्रण से मुक्त करता है और इनको अपनी आंतरिक भावनाओं के संपर्क में लाता है, वह इनके लिए आदर्श साथी होता है

मीन (फरवरी 19 -मार्च 20)
मीन राशि का स्वरुप प्रेम, करुणा और विनम्रता का होता है. यह अत्यंत ही शुभ राशियों में स्थान पाती है. इसके गुणों का प्रभाव भी इनके प्रेम को प्रकट करता है. अपने सतही के प्रति लगाव एवं प्रेम इनमें सदा बना रहता है. अपना समर्पण देने में ये आगे रहते हैं तो ऎसे में वैसा ही भाव अपने साथी से भी चाहते हैं. अपने साथी के प्रति इनका सहानुभूतिपूर्ण स्वभाव लगाव और आकर्षण को बढ़ाने वाला होता है. अपने साथी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ करने के की चाह रखते हैं. हमेशा सही होने की आवश्यकता महसूस हो सकती है. ये इस बात की परवाह करते हैं कि नैतिक रूप से क्या सही हो सकता है. ‘क्षमा करना” वह बात जिसके कारण ये अपने रिश्ते में प्रमुख स्थान पाते हैं. आपके साथी को भरपूर प्यार और ध्यान देते हैं. इन्हें अपने प्रेम से एक सहारे और मजबूत साथ की आवश्यकता अधिक होती है.

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