चंद्रमा के उच्च अवस्था और नीच अवस्था के पीछे के ज्योतिषिय कारण

चंद्रमा की गति व्यक्ति के मन और स्वभाव को बहुत अधिक प्रभावित करती है. ज्योतिष अनुसार चंद्रमा का असर तेजी से पड़ता है. चंद्रमा किसी भी राशि में लगभग सवा दो दिन तक रहता है उसके पश्चात आगे बढ़ जाता है. चंद्रमा का यही गुण व्यक्ति के भीतर भी तीव्रता, परिवर्तन, मूड में होने वाले बदलाव को दिखाता है. चंद्रमा को वृश्चिक राशि में नीच अवस्था का कारक माना जाता है और उच्च स्थिति का वृष राशि का माना जाता है. 

आइए समझने की कोशिश करते हैं कि चंद्रमा वृश्चिक राशि में और विशाखा नक्षत्र में क्यों नीच का होता है. ये ऊर्जाएँ कई तरह की विशेषताओं को दर्शाती हैं .

चंद्रमा – चंद्रमा मन, भावनाओं, माता, मन की शांति, गृह पर्यावरण, जल, दूध आदि का प्रतिनिधित्व करता है.

विशाखा – विशाखा नक्षत्र परामर्श देने वाला दाताओं और मार्गदर्शन करने वाला नक्षत्र होता है. यह विभाजन, विपरित दिशा का भी नक्षत्र होता है.

वृश्चिक राशि 

विशाखा नक्षत्र में वृश्चिक राशि का कुछ अंश समाहित होता है, इसलिए वृश्चिक राशि और उसका प्रतिनिधित्व भी महत्वपूर्ण हो जाता है. वृश्चिक राशि आठवीं राशि होती है, इसलिए यह कुंडली के अष्टम भाव से संबंधित चीजों और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है. इस भाव से अचानक घटनाएं, गोपनीयता, अंधकार की दुनिया, गुप्त विज्ञान, अनुसंधान, विरासत, दूसरों की सेवा, करों आदि. इन चीजों के अलावा वृश्चिक राशि का चिन्ह परिवर्तन का भी प्रतिनिधित्व करता है. इसका अर्थ है पूरी प्रकृति को बदलना. यह एक ऐसा चिन्ह है जो हर ज्योतिषी को पसंद होता है, क्योंकि इसमें अधिकतम रहस्य मौजूद होते हैं, इसलिए ज्योतिषी को शोध करने की अच्छा गुण भी मौजूद होता है. 

यह एक ऎसा संकेत है जिसके बारे में कोई भी सटीकता से नहीं बता सकता है कि इसमें ग्रहों का क्या होगा, क्योंकि यह स्वयं गोपनीयता का संकेत है. वृश्चिक राशि कुंडली में जहां कहीं भी स्थित होता है. उस घर से जुड़ी चीजों को और अधिक स्थिर बनाने में आपको सबसे बड़ी चुनौतियां हो सकती हैं. वृश्चिक भी उन अद्वितीय राशियों में से एक है जिसके दो स्वामी होते हैं, यानी मंगल और केतु. पश्चिमी ज्योतिष में, प्लूटो भी वृश्चिक का सह-स्वामी माना जाता है. यह सब वृश्चिक को एक अराजक तत्व भी बनाता है. वृश्चिक राशि में ढाई नक्षत्रों का चरण होता है, यानी विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र होता है. 

वृश्चिक राशि में चंद्रमा के कमजोर होने के कारण

चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है और वृश्चिक राशि जीवन में अस्थिरता, परिवर्तन, रहस्य और उतार-चढ़ाव को दर्शाती है. अब मन कभी भी जीवन के भय या अनिश्चितताओं में नहीं जीना चाहता. जीवन में सुविधाजनक स्थिति में रहना चाहता है. किसी अस्थिरता या परिवर्तन का विचार भी मन में प्रतिक्रिया लाता है जो उस परिवर्तन की ओर धकेलता है और विरोध करना चाहता है. यह भी समझ में आता है क्योंकि यदि समय और ऊर्जा केवल जीवन की अस्थिरताओं से निपटने के लिए है तो अपने समय और ऊर्जा का उपयोग जीवन में कुछ सार्थक और उत्पादक करने के लिए कब कर पाएंगे, वृश्चिक अस्थिरता और परिवर्तन का संकेत है, इसलिए यह स्पष्ट है कि वृश्चिक राशि में चंद्रमा कमजोर महसूस करता है. यह एक जल तत्व राशि है जो भावनाओं से परिपूर्ण भी है तो भावनाओं में बहकर ही जीवन के गलत फैसले होते देखे जा सकते हैं. 

विशाखा में चंद्रमा के कमजोर होने के कारण 

वृश्चिक में विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठ नक्षत्र शामिल होते हैं. चंद्रमा केवल विशाखा नक्षत्र में ही क्यों नीच का होता है? इसके पिछे नक्षत्र को समझने की आवश्यकता होगी. विशाखा का अर्थ है दो शाखाएं और इसे अलग-अलग दिशाओं में जाने वाली शाखाओं द्वारा भी दर्शाया जाता है. यह विभाजित रास्तों या जीवन की दिशाओं की ओर संकेत करता है. चंद्रमा मन है. दिमाग में सबसे बड़ी परेशानी तब होती है जब जीवन में बड़ी अराजकता या अस्थिरता से गुजर रहे होते हैं और फिर हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने की आवश्यकता होती है जो किसी भी तरह से जा सकता है. जैसा कि विशाखा जीवन में विभाजित दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है, विशाखा नक्षत्र में चंद्रमा एक व्यक्ति को बार-बार स्थिति में लाने के लिए बना सकता है जहां उसे भ्रमित किया जा सकता है कि उसे किस जीवन पथ का अनुसरण करना चाहिए और किस जीवन पथ से बचना चाहिए. ऎसे में भ्रम की इस स्थिति के कारण चंद्रमा विशाखा में सबसे कमजोर दिखाई देता है.

चंद्रमा वृश्चिक राशि में विशाखा नक्षत्र के 3 अंश पर नीच का होता है. ऎसा इसलिए है क्योंकि केवल विशाखा नक्षत्र का अंतिम पद वृश्चिक राशि में आता है. चंद्रमा वृष राशि से 3 डिग्री पर उच्च का होता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इसे वृश्चिक राशि के 3 डिग्री पर नीच का होना चाहिए, अर्थात 180 डिग्री के विपरीत यह स्थिति निर्मित होती दिखाई देती है. यही कारण हैं कि चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीच का है और विशाखा नक्षत्र 3 डिग्री पर है.

चंद्रमा के उच्च होने का कारण

चंद्रमा वृष राशि में और कृतिका नक्षत्र में उच्च स्थिति को पाता है. कृतिका नक्षत्र देखभाल, गोपनीयता, रिसर्च, सुरक्षा, पालन-पोषण, आलोचना, चीजों को काटने, सर्जरी और रक्तपात का नक्षत्र होता है. यह मेष राशि से वृष राशि में फैलता है. यह सूर्य द्वारा प्रभावित होता है. 

वृष राशि 

कृतिका नक्षत्र वृष राशि में स्थान पाता है. वृषभ राशि, राशि चक्र की दूसरी राशि है, इसलिए यह कुंडली के दूसरे घर से संबंधित कई चीजों का भी दर्शाती है. धन, संपत्ति, बचत, वित्त, विलासिता और वाणी कुटुम्ब इसी भाव से देखे जाते हैं. विलासिता और जीवन की सभी सुविधाओं से संबंधित स्थान वाली राशि है तथा शुक्र के स्वामित्व की राशि भी है. वृष राशि में ढाई नक्षत्र होते हैं, कृतिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र और मृगशिरा नक्षत्र. 

वृष राशि में चंद्रमा के उच्च होने के कारणों में वृषभ राशि में चंद्रमा की स्थिति शुभता को अधिक पाती है. यहां चंद्रमा की चंचला कम होती है क्योंकि वृष धैर्यशील होती है पृथ्वी तत्व गुण इसमें होता है. धन, संपत्ति, भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति भी वृष राशि में अच्छे से दिखाई देती है. कुंडली में जहां कहीं भी चंद्रमा होता है, यदि उस भाव, राशि, नक्षत्र से संबंधित गुणों में खुद को शामिल करता है तो मन शांति और संतुलन को पाता है.यही कारण है कि वृष राशि के जातकों की सुख-सुविधाओं, विलासिता और धन में वृद्धि और विकास के लिए चंद्रमा सबसे अच्छा परिणाम  पाता है. जब चंद्रमा वृष राशि में होता है, तो यह व्यक्ति वित्त, धन, जीवन की भौतिकता के बारे में बहुत अधिक चिंतित नहीं होता है. चंद्रमा इस राशि में अपनी ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने में सक्षम भी होता है, भविष्य की चिंता किए बिना, चंद्र की स्थिति व्यक्ति को मजबूत आयाम देती है.  

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विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त : कब करें बच्चे की शिक्षा का आरंभ :

शिक्षा शुरू करने में मुहूर्त का महत्व

शिक्षा का प्रभाव जीवन के विकास और निर्माण दोनों में सहायक होता है. भारतीय संस्कृति में शिक्षा का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. वेदों में वर्णित सूक्तों द्वारा शिक्षा के महत्व को समझा जा सकता है. ज्ञान के बिना विकास की प्रक्रिया में जो चमक है वह शिक्षा के द्वारा ही दूर तक देखने को मिलती है. बच्चे के जन्म के पश्चात उसके लिए एक मूल्यवान संस्कार होता है शिक्षा ग्रहण करना. शिक्षा द्वारा ही बच्चा अपने मूल रहस्य को समझ पाने में भी सफल होता है. विद्या संस्कार हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक है. शिक्षा का आरंभ बच्चे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण समय होता है. जब बच्चे की उम्र शिक्षा के योग्य हो जाती है, तब उनका स्कूल में प्रवेश कराया जाता है. दूसरी ओर, शिक्षा आरंभ संस्कार के समय पर मंत्रों उच्चारण एवं शुभ मुहूर्त समय का चयन करके इसे किया जाता है. 

विद्यारंभ संस्कार 

विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाडयुः प्रवर्धते।

विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्धिद्ययामृतश्नुते।।

वेद शास्त्रों द्वारा भी शिक्षा के महत्व को बहुत आवश्यक माना गया है जिसके अनुसार विद्या को प्राप्त करके ही पापों का शमन संभव है. आयुष एव्म सिद्धियों की प्राप्ति भी विद्या द्वारा ही होती है. किंतु विद्या का नहीं होना चारों फलों को निष्फल कर देता है. धर्म अर्थ काम मोक्ष को प्राप्त करने हेतु विद्या अत्यंत आवश्यक कार्य माना गया है. 

हिंदू धर्म में विद्यारंभ संस्कार काफी विशेष माना गया है यह उपनयन संस्कार की तरह ही समानता रखता प्रतित होता है. उपनयन संस्कार में गुरुकुल का आरंभ होता है और इसके साथ ही बच्चे का वेद अध्ययन शुरु होता है. बच्चा गुरुकुल में जाकर शिक्षा अर्जित करता है. 

विद्यारंभ संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है. विद्यारंभ एक संस्कृत शब्द है जो “विद्या” का अर्थ है शिक्षा और “आरंभ” जिसका अर्थ है शुरुआत. यह एक महत्वपूर्ण समय होता है जो एक बच्चे की प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. यह आमतौर पर पांच साल की उम्र के बच्चे के बाद आयोजित किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि इस समय बच्चे का मस्तिष्क अब शिक्षा ग्रहण करने हेतु तैयार होता है. बच्चा स्कूल जाने और इस उम्र में पढ़ाई शुरू करने के लिए तैयार होता है. विद्यारंभ संस्कार को सही मुहूर्त में करना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है. इस दौरान बच्चों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, विद्यारंभ मुहूर्त को बच्चे की जन्म कुंडली के साथ-साथ ग्रह नक्षत्र की स्थिति के आधार पर तय होता है.

विद्यारंभ मुहूर्त के लिए शुभ मानी जाने वाले विशिष्ट तिथियां, महीने और नक्षत्र यहां दिए गए हैं:

नक्षत्र: अश्विनी, मृगशिरा, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, रेवती, पूर्वा आषाढ़, उत्तरा आषाढ़, चित्रा, स्वाति, अभिजीत, धनिष्ठा, श्रवण, पूर्व भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और शतभिषा को विद्यारंभ के लिए शुभ माना जाता है.

दिन: विद्यारंभ करने के लिए रविवार, सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार सप्ताह के सबसे अच्छे दिन माने जाते हैं.

तिथियाँ: चैत्र-वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि इस शुभ कार्य के लिए उत्तम मानी जाती हैं 

राशि चिन्ह: विद्यारंभ के मुहूर्त को दर्शाते समय वृष, मिथुन, सिंह, कन्या और धनु राशि पर विचार किया जाता है.

मुहूर्त का महत्व बच्चे की शिक्षा पर असर 

स्कूली शिक्षा कब शुरू होनी चाहिए और इसके लिए उपयुक्त समय क्या होगा. ज्योतिष के माध्यम से इसे काफी उचित रुप से बताया गया है. शिक्षा एवं अध्ययन शुरू करने के लिए कौन सा समय आदर्श है, यह तय करने के लिए एक गहन अध्ययन किया जाता है. कौन सा शैक्षिक क्षेत्र उपयुक्त होगा इसका भी अध्ययन किया गया है.

शिक्षा शुरू करने का महत्व होता है बच्चे को ज्ञान से परिचित कराना है. बच्चे की जन्म कुंडली, ग्रहों, नक्षत्रों आदि के आधार पर दीक्षा अनुष्ठान के लिए समय चुना जाता है जिसे विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त कहा जाता है.अन्य सभी संस्कारों की तरह शुभ मुहूर्त का होना भी बहुत जरूरी है. शिक्षा का ज्ञान बच्चे के जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाता है. इसकी शुरुआत ईष्ट देव, देवताओं और माता-पिता के आशीर्वाद से करनी चाहिए. प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परंपरा थी, तब माता-पिता बच्चे को गुरुकुल भेजने से पहले घर में अक्षरों को समझते थे. इसी तरह, आधुनिक समय में, भारतीय ज्योतिष की प्राचीन विरासत बच्चों को उनकी शिक्षा शुरू करने के लिए उत्तम मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है,

शिक्षा आरंभ का शुभ समय कैसे देखें 

बच्चे के जीवन में किये जाने वाले सभी संस्कार उसकी कुंडली के अनुसार उचित समय पर ही किये जाते हैं, क्योंकि उस विशेष समय में ग्रहों, नक्षत्रों, चन्द्रमा की स्थिति संतान के अनुसार शुभ होती है. जो उस समय किए गए कार्य में सफलता देता है और भविष्य का निर्माण करता है. शिक्षा शुरू करने के लिए मुहूर्त निकालते समय कुछ बातों का ध्यान एवं ज्ञान भी होना चाहिए. बच्चे की कुंडली, ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए. जो भी हो, यदि मंगल और शनि को अलग-अलग ग्रहों से सकारात्मक प्रभाव मिलता है, तो ये अच्छी स्थिति होती है

सप्ताह के  तीन दिन यानि बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार बच्चे की शिक्षा शुरू करने के लिए शुभ होते हैं.इसके अलावा, रविवार भी उसी के लिए एक शुभ दिन है क्योंकि सूर्य इस दिन का देव हैं और आत्मा का कारक है. शनि एक पाप ग्रह और धीमा ग्रह है और यह शनिवार का अधिपत्य रखता है तो इस दिन को बच्चे की शिक्षा शुरू करने के लिए अशुभ माना जाता है.

पूजा के दौरान भगवान श्री गणेश और देवी सरस्वती का ध्यान एव्म पूजन अवश्य करना चाहिए. भगवान गणेश विज्ञान, कला और बुद्धि के देवता हैं और सरस्वती शिक्षा और ज्ञान की देवी हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और बच्चे के शैक्षिक जीवन में शुभ फल प्रदान करते हैं. इसके अलावा, पूजा में तुलसी, दावत, लेखनी, स्लेट आदि वस्तुओं को शामिल करते हैं तब विद्यारंभ पूजा को किया जाता है. 

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राहु और चंद्रमा का कुंडली के सभी भावों में प्रभाव

जन्म कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति अत्यधिक संवेदनशील और मानसिक स्वभाव के कारण कुछ अत्यधिक भावनात्मक स्थितियों को जन्म दे सकती है. राहु एक शक्तिशाली छाया ग्रह है, और जब चंद्रमा के साथ जुड़ता है, तो वास्तविकता अधिक परेशान करती है. वैदिक ज्योतिष में राहु और चंद्रमा की युति का प्रभाव बहुत अधिक भावुक कर सकता है या क्रोध और आक्रोश में बदल सकता है. स्वभाग एवं मानसिकता पर इसका काफी कठोर प्रभाव दिखाई देता है. 

राहु और चंद्रमा का एक साथ कुंडली के विभिन्न भावों में कैसा होगा असर  

कुंडली के सभी 12 भाव अपने अपने फल अनुरुप विशेषता दिखाते हैं. किसी भी भाव में राहु और चंद्रमा की युति जन्म कुंडली में ग्रहण योग बनाती है, और राहु का मन पर गहरा असर दिखाई देता है. राहु-चंद्र युति व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है किंतु आत्मिक असंतोष कभी समाप्त नहीं हो पाता है. 

प्रथम भाव में राहु और चंद्रमा की युति

कुंडली के पहले घर में राहु और चंद्रमा का एक साथ होना नकारात्मक प्रभाव अधिक दे सकता है. लग्न को कमजोर करता है. नकारात्मक ऊर्जा असर डाल सकती है. जीवन में अनेक बाधाएं पीछा कर सकती हैं. व्यक्ति स्वभाव से अधिक चतुर होता है. झूठ बोलने में या बातों को घुमाने में माहिर हो सकता है. परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार और प्रश्न को अपने अनुसार बदल सकते हैं. राहु और चंद्रमा की युति के प्रभाव से जीवन शैली में भौतिकता का समावेश होगा. चीजों के प्रति आकर्षण होगा. भौतिकवादी दिमाग अधिक काम कर सकता है. अपने को दूसरों से बेहतर मानने की प्रवृत्ति होगी. जन्म कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति होने से कल्पना में अधिक, चतुर व्यक्तित्व है,  रचनात्मक पृष्ठभूमि पर दृढ़ता से ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. राहु और चंद्रमा की युति के दुष्प्रभाव रुप में एक चंचल और बेचैन व्यक्तित्व वाले हो सकते हैं. नकारात्मक विचारों में रहना और काम और प्रकृति में गोपनीयता रखना जीवन भर की आदत बन सकती है.

दूसरे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

जन्म कुंडली के दूसरे घर में राहु चंद्रमा की युति होने से आकर्षक ओर स्मार्ट व्यक्तित्व के होंगे. वाणी में मधुरता रहेगी. अपनी खुद की चीज़ों के बारे में शेखी बघारना पसंद कर सकते हैं. चालाक होंगे. किसी को अपनी बातों के अनुसार ढालना आसान होगा. धोखेबाज हो सकते हैं. परिवार से दूर जाकर रहना पड़ सकता है. विवाद और पाखंडी लोगों से अधिक प्रभावित हो सकते हैं. परिवार प्रसिद्ध होगा.  रूढ़िवादी मानसिकता होगी. माता के लिए स्थिति कुछ कमजोर रह सकती है ओर उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. व्यक्ति का स्वयं का भी स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. आंखों की रोशनी और मुंह की समस्याओं से परेशानी हो सकती है. रक्त और पाचन तंत्र से संबंधित परेशानी हो सकती है. 

तीसरे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

व्यक्तित्व की दृष्टि से तीसरे भाव में चंद्रमा और राहु की युति शुभ फल देती है.  साहसी बनाती है, मानसिक स्वास्थ्य के साथ, सम्मोहक और आकर्षक संचार की शक्ति भी प्राप्त होती है. नकारात्मक पक्ष पर के रुप में अपने आंतरिक भय से परेशान हो सकते हैं. आराम और भौतिक सुख साधनों को पाने के लिए आगे रह सकते हैं.  व्यक्ति के भीतर अहम, झूठा अहंकार हो सकता है. बाहर से काफी बोल्ड होने का दिखावा कर सकता है. अंदर से भ्रमित रह सकते हैं. जीवन में गलत निर्णय या गलत चीजों की संगत से अधिक प्रभावित रह सकते हैं.  भाई-बहन आपके साथ अच्छे समय का आनंद नहीं ले पाएंगे. आप लोगों के साथ विचारधाराओं का टकराव अनुभव कर सकते हैं. जीवन में यात्रा करने के कई मौके मिल सकते हैं. अपने जन्म स्थान से दूर रह सकते हैं या विदेश में निवास कर सकते हैं. 

चौथे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

चौथे भाव में राहु और चंद्रमा के साथ होने पर चंचल मन वाले एक बेचैन व्यक्ति होंगे. सोचने की शक्ति का बुद्धिमानी से उपयोग नहीं कर पाते हैं, छल कपट से जुड़ सकते हैं. इच्छाओं के पूरा न होने के कारण हताश स्थिति का सामना करना पड़ेगा. अधिकांश समय अपने जीवन से असंतुष्ट रह सकते हैं. चौथे घर में चंद्रमा और राहु की युति के सकारात्मक प्रभाव रुप में मेहनती व्यक्तित्व प्राप्त होता है. जीवन को देखने के तरीकों में अंतर हमेशा बना रहेगा. साथ ही, चीजों के बारे में बहुत अधिक तनाव ले सकते हैं. माता का स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है या चिंता में अधिक रह सकती हैं. कदम कदम पर  बाधाएँ भी आती हैं. हर समय स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक रह सकती हैं. विशेष रूप से, रक्त संबंधी समस्याएं और चोट लगने की संभावना भी हो सकती है.

पंचम भाव में राहु और चंद्रमा की युति

पंचम भाव में चंद्रमा और राहु की युति होने से स्वभाव से तेज दिमाग वाले और चतुर हो सकते हैं. दिमाग तेज होगा, लेकिन इसका समझदारी से इस्तेमाल करना आसान नहीं होगा. कई बार आत्मविश्वास की कमी भी अधिक हो सकती है. पंचम भाव में राहु और चंद्र की युति के कारण पितृ दोष होता है. महिलाओं को प्रसव से संबंधित समस्याएं हो सकती है. गर्भपात का सामना कर सकते हैं. सीखने और एकाग्रता में समस्या हो सकती है. काम तुरंत नहीं हो सकता है. रुकावटें, मुसीबतें और बुरी नजरें जीवन भर पीछा कर सकती हैं. पंचम भाव में राहु और चंद्रमा की युति के सकारात्मक प्रभाव के रुप में राजनीति में सफलता मिल सकती है. प्रसिद्ध हो सकते हैं. आधिकारिक लोगों के साथ मजबूत संबंध हो सकते हैं. जीवन में कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. 

छठे भाव में राहु और चंद्रमा की युति

छठे भाव में चंद्रमा और राहु की युति व्यक्तित्व की दृष्टि से बहुत शुभ नहीं होती है. जीवन भर मानसिक तनाव का अनुभव हो सकता है. आभा कमजोर हो सकती है, और लोगों को अपनी तरफ रखना आपके लिए कठिन हो सकता है. विष और सर्पों से भय हो सकता है. बुरी नजर और नकारात्मक असर का अधिक अनुभव हो सकता है. राहु-चंद्रमा युति योग दोष बनाता है. यह भावनात्मक रूप से तनावग्रस्त व्यक्ति बना सकता है. बदला लेने का रवैया भी होता है. यदि दुश्मन होंगे, तो उनसे बदला लेने से पहले उन्हें नहीं छोड़ सकते. वित्तीय अस्थिरता जीवन भर घेरे रह सकती है. यात्राओं इत्यादि मं अधिक धन खर्च हो सकता है. जन्म कुंडली में चंद्रमा और राहु के छठे घर में होने पर मौसम बदलाव का अधिक असर पड़ता है, इससे संबंधित बीमारियां  पीछा करती हैं.

सातवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

व्यक्तित्व के मामले में चतुर और स्वभाव से स्वतंत्र हो सकते हैं. भावुक और बेचैन रह सकते हैं. शरीर बहुत अच्छा होगा और रंग गोरा होगा. ईर्ष्यालु स्वभाव और पाखंडी मानसिकता प्रभावित कर सकती है. जीवनसाथी आकर्षक होगा जो बुद्धिमान और अत्यधिक विचारों वाला होगा. सातवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति होने से अपने जीवन साथी की ओर से धन प्राप्ति की भी उम्मीद कर सकते हैं. पार्टनर के साथ बौद्धिक संबंध हो सकते हैं. विवाह संबंधों में तनाव मतभेद अधिक रह सकते हैं. जीवनसाथी और परिवार के साथ कानूनी मुद्दों का सामना कर सकते हैं.

यात्रा एवं स्थान परिवर्तन जीवन भर असर डाल सकता है. इसके अलावा, सप्तम भाव में राहु और चंद्रमा की युति के प्रभाव के कारण, यौन रोगों से पीड़ित हो सकते हैं. हार्मोनल समस्याएं भी घेर सकती हैं. और, यह आपकी कुंडली में दोनों ग्रहों के प्रबल मारक होने के कारण होगा.

आठवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

जन्म कुंडली के आठवें घर में युति होने पर एक चंचल प्रवृत्ति और कुटिल मानसिकता के साथ मन बेचैन अधिक रह सकता है. लोगों के साथ संदिग्ध व्यवहार कर सकते हैं. कुछ दिखावे का असर होगा और नैतिकता की कमी हो सकती है. कामुकता का प्रभाव अधिक रहेगा. यौन इच्छाओं की अधिकता होगी. राहु और चंद्रमा की युति के कारण भावनात्मक रूप से कमजोर भी होंगे. आर्थिक रूप से अस्थिर रहेंगे. अच्छी कमाई होगी लेकिन कुछ गुप्त खर्च भी हो सकते हैं. पैतृक संपत्ति का भी फल भोगना पड़ सकता है. जीवन के उत्तरार्ध में अचानक लाभ भी प्राप्त हो सकता है. स्वास्थ्य के लिहाज से बचपन में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. पाचन समस्याओं, आंखों की रोशनी और त्वचा संबंधी बीमारियों जैसी समस्याओं से भी गुजर सकते हैं. अष्टम भाव में चंद्रमा और राहु की युति अप्राकृतिक मृत्यु का कारण बन सकती है. सर्पदंश या किसी अन्य विषैले पदार्थों के कारण कष्ट हो सकता है. 

नवम भाव में राहु और चंद्रमा की युति

नवम भाव में राहु और चंद्रमा की युति पिता के सुख को कमजोर करती है. पिता को मानसिक तनाव और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित होना पड़ सकता है. अपने पिता से दूर रह सकते हैं या पास होने पर विवादों में उलझ सकते हैं. दोनों को एक राय की समस्या होगी, और एक दूसरे के विपक्ष में रह सकते हैं. चंद्रमा और राहु की युति होने से जीवन में कई उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ सकता है. करियर बहुत ज्यादा प्रभावित हो सकता है. नौकरी को बहुत बार बदल सकते हैं और कभी भी किसी से संतुष्ट महसूस नहीं कर पाते हैं.अत्यधिक धार्मिक हो सकते हैं. अपने विश्वास को दिखाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे. धार्मिक स्थलों की खोज में रुचि होगी, और पवित्र नदियों के दर्शन कर पाएंगे. 

दसवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

व्यक्तित्व के लिहाज से बुद्धिमान, स्मार्ट और बहादुर होंगे. जीवन के प्रति दृष्टिकोण साहसी होगा. समस्याओं से निपटने के रहस्यमय तरीके अपना सकते हैं. वास्तविक उद्देश्यों के बारे में किसी को न बताना चाहें. राहु और चंद्रमा के साथ होने पर काम में बदलाव हो सकते हैं. व्यावसायिक रूप से असंतोष रह सकता है. सार्वजनिक छवि लोकप्रिय  होगी, नाम और प्रसिद्धि पाने में मदद मिलेगी. दसवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति होने से काम के प्रति काफी समर्पित रह सकते हैं. काम में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. पारिवारिक जीवन में कुछ अनबन हो सकती है. वैवाहिक जीवन में कष्ट अधिक रह सकता है. 

ग्यारहवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और चंद्रमा का योग अद्वितीय व्यक्तित्व प्रदान करता है. आकर्षक आभा के साथ स्वभाव से उदार होंगे. नेतृत्व के गुण भी होंगे.पैतृक संपत्ति का लाभ मिल सकता है. सब कुछ आपकी जेब में होगा और ऎसी संभावनाएं बहुत अधिक हैं कि धन कमाने के कई स्रोत होंगे. अवैध तरीके से भी लाभ अर्जित कर सकते हैं. दोस्तों की अच्छी संख्या हो सकती है. साथी सुंदर, धनी और बुद्धिमान होगा. एक से अधिक रिश्तों में भी रह सकते हैं. सेहत के लिहाज से पेट की कई परेशानियां, लीवर से संबंधित परेशानियां और गैस्ट्रिक समस्याएं भी हो सकती हैं. बड़े भाई-बहनों के साथ चिंताजनक स्थिति हो सकती है. 

बारहवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति

यदि आपकी कुंडली के बारहवें घर में राहु और चंद्रमा की युति है तो व्यक्तित्व काफी उत्साहित होगा. जीवन में चीजों के बारे में उत्सुक होंगे और शानदार जीवन शैली की ओर अधिक झुकाव रहेगा. व्यवहार से मूडी और बेचैन हो सकते हैं. अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं और नियमों  के खिलाफ जा सकते हैं. छल कपट भी अधिक बना रह सकता है. बारहवें घर में चंद्रमा और राहु की युति होने से चरित्र संदिग्ध बनता है. वैवाहिक जीवन में छवि को प्रभावित करेगा. बाहरी संबंधों में अधिक रुचि ले सकते हैं. स्वास्थ्य के लिहाज से दुर्घटना और चोट लगने की संभावना अधिक रह सकती है और यात्रा के दौरान ऐसा होने की संभावना अधिक होगी. भर पेट संबंधी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं. विदेश में निवास मिल सकता है या जन्म स्थान से दूरी रह सकती है. 

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सूर्य और शनि युति : विरोध और संघर्ष का करना पड़ता है सामना

जब दो ग्रह एक ही राशि में होते हैं तो युति योग का निर्माण करते हैं, जिससे कुंडली पर इनका गहरा असर पड़ता है. यह संयोग अक्सर भाग्य पर अचानक होने वाले और अनिश्चित प्रभाव डालता है, जिससे आपकी कुंडली में सबसे विशेष तरीके से बदलाव आते हैं. इसी योग में सूर्य-शनि युक्त का युति योग, करियर, धन समृद्धि, सामाजिक स्थिति एवं संबंधों के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन पर गहरा असर डालता है. ये संबंध कौशल, अनुभव और प्रबंधन यह जीवन में सफल होने के अवसर को निर्धारित करता है. ग्रहों की युति का यह दुर्लभ योग क्षमताओं को बढ़ाता है और सफलता की ओर ले जाने वाला एक नया मार्ग प्रशस्त करता है.

सूर्य ज्योतिष में कैसा है ? 

सूर्य, की गर्मी और प्रकाश हमें जीवन देते हैं. सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन शक्ति देती है. यह सकारात्मकता और सफलता का प्रतीक है. ज्योतिष के अनुसार, ग्रह सीधे मानव शरीर को सीधे प्रभावित करता है उसे ग्रह कहा जाता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह प्राण आत्मा को दर्शाता करता है. सूर्य की ऊर्जा व्यक्ति के जीवन को परिभाषित करती है. सूर्य साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का प्रतीक है. यह हमारे सौर मंडल में सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है और वैदिक ज्योतिष में एक विशेष महत्व रखता है. सूर्य कभी भी वक्री नहीं होता है क्योंकि सूर्य के चारों ओर सब कुछ उसके चारों ओर घूमता है. ज्योतिषीय महत्व में, सूर्य को अपनी यात्रा पूरी करने में बारह महीने लगते हैं और प्रत्येक ज्योतिषीय राशि में लगभग एक महीना रहता है. ज्योतिष में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों में से एक ग्रह माना गया है. यह व्यक्ति की आत्मा और पितृत्व चरित्र को दर्शता है. सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी ग्रहों की ताकत और व्यक्तियों पर उनके प्रभाव को निर्धारित करती है. कुंडली के अनुसार सूर्य पितरों को भी नियंत्रित करता है. यही कारण है कि यदि सूर्य का युति योग एक से अधिक अशुभ या अशुभ ग्रहों से होता है तो कुंडली में पितृ दोष का निर्माण होता है. 

शनि ज्योतिष में क्या है ? 

हिंदू ज्योतिष के अनुसार शनि का नाम उनके स्वभाव के अनुसार रखा गया है. शनि का अर्थ है जो धीरे-धीरे चलता है. एक राशि को पार करने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगता है. शनि एक विशाल ग्रह है और यह पृथ्वी से बहुत दूर है. अपने विशाल कद के कारण, यह धीरे-धीरे चलता है. वह सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. शनि का अपने पिता सूर्य के साथ एक तनावपूर्ण संबंध है. यह एक ठंडा और शुष्क ग्रह भी है. यह वृद्धावस्था का ग्रह है और ज्योतिष में पाप ग्रह माना जाता है. 

शनि यदि शुभ भाव में स्थित होता है, तब वह जातक को सभी वस्तुओं और समृद्धि को प्रदान करता है. विपरीत परिस्थितियों में, वह दर्द, दुःख और कष्ट देता है. शनि को सप्तम भाव में बल मिलता है. शनि एक शिक्षक और बहुत सख्त ग्रह हैं. यह ऐसे सबक सिखाएगा जिनका जीवन पर गहरा असर होता है. मेहनत और समर्पण के द्वारा ही शनि की कृपा प्राप्त होती है. 

शनि व्यक्ति की ताकत, दृढ़ता और विश्वसनीयता को परखता है. शिक्षा के अलावा, वह न्याय के देवता हैं और पवित्रता के मार्ग के खिलाफ जाने और बुराई करने वालों को दंडित करते हैं. शनि  हड्डियों को प्रभावित करता है. शनि देव के अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति जीवन भर हड्डियों के रोग से पीड़ित रह सकता है. अंक 8 का संबंध शनि से है. शनि और कर्म साथ-साथ चलते हैं, और एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में शनि की साढ़े साती नामक एक चरण के साथ शनि देव के साथ कठिन समय व्यतीत करता है. 

सूर्य और शनि का कुंडली में एक साथ होना 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और शनि का संबंध पिता और पुत्र के रुप में है. यह दोनों अपने संबधों के कारण एक-दूसरे के साथ लगातार संघर्षशील भी दिखाई देते हैं. यदि शनि सूर्य के 9 अंश के भीतर होता है तो शनि अस्त होने के कारण अपने प्रभाव को कम दर्शाता है. यदि ये दोनों लगभग 14 डिग्री के अंतर में एक दूसरे से अलग हैं, तो वे मुश्किल से एक दूसरे पर कम प्रभाव डालते हैं. आइए जानते हैं ज्योतिष में सूर्य शनि की युति होने के परिणाम कैसे असर डालते हैं.

सूर्य और शनि का युति योग होने पर व्यक्तिअपने पिता के साथ या अपने वरिष्ठ लोगों के साथ अच्छे सौहार्दपूर्ण संबंधों का कम ही आनंद ले पाता है. रिश्ते में लगाव हो सकता है किंतु तर्क अधिक दिखाई देते हैं. एक दुसरे के साथ जब बातचीत करते हैं तो उस बात में जल्द ही विरोधाभास दिखाई देने लगेगा. विवाद अधिक देखने को मिलता है, जो दोनों को परेशान करता है. मतभेद पैदा हो सकते हैं. पिता के प्रति प्यार है लेकिन इसे खुलकर व्यक्त करना मुश्किल होता है. दोनों के बीच संघर्ष का कारण कोई भी घटना हो सकती है. 

यदि पिता और पुत्र एक ही छत के नीचे रहते हैं तो दोनों को कष्ट होता है. दोनों के जीवन में प्रगति बाधित हो सकती है. विकास रुक जाता है और करियर बाधित हो जाएगा. सफलता उनके जीवन में देर से अधिक परिश्रम द्वारा आती है. नीची जाति के लोगों से, और नौकरों से और अधिकारियों या सरकारी कर्मचारियों से परेशानी रहती है. सरकार से संबंधित कार्य कभी भी एक बार में पूरा नहीं होता है, यह युति योग्यता पर भी सवाल उठाती है और उसके आत्मविश्वास को कमजोर भी करती है. यदि इस युति का कोई शुभ प्रभाव न हो तो जिस घर में सूर्य और शनि हों वह भाव अनुकूल नहीं रह पाता है. 

सूर्य और शनि युति का सकारात्मक प्रभाव

संबंधित ज्योतिष घरों में सूर्य और शनि की युति के प्रभाव में, व्यक्ति सही और गलत के बारे में दृढ़ विचार रखता है. सरकारी एजेंसियों और संगठनों के लिए काम कर सकता है. करियर के मामले में विशेष रूप से कानून क्षेत्र या सरकारी कार्यालय में सफल हो सकते हैं. कंपनी के सीईओ के रूप में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. अपनी उम्र से अधिक परिपक्व दिखाई देंगे. बिना किसी बाध्यता के अपने कार्यों का स्वामित्व लेते हैं. काम पर वरिष्ठों के प्रति अपने दृष्टिकोण में बहुत अनुशासित और अपने काम के प्रति समर्पित रहते हैं. प्रबंधन और नेतृत्व में अच्छी विशेषता मिल सकती है.

सूर्य और शनि युति का नकारात्मक प्रभाव

व्यक्ति जिम्मेदारियों से अधिक ब्म्धा रह सकता है. यदि चतुर्थ भाव में सूर्य और शनि की युति हो तो अपने परिवार की जिम्मेदारियों से बंधे रहेंगे. यदि सूर्य नीच का है, शनि तुला राशि में है, तो  अहंकार अधिक रह सकता है. भरोसे और विश्वास को लेकर समय-समय पर परीक्षा होगी. लेकिन इससे मजबूती भी प्राप्त होती है. पिता का स्वास्थ्य प्रभावित रह सकता है, सुख में कमी या दूरी झेलनी पड़ सकती है. आपकी प्रगति में बाध अधिक रह सकती है. धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आर्थिक मामलों में पैतृक सहयोग नहीं मिल पाता है. 

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शादी से पहले कुंडली मिलान क्यों है जरूरी ?

शादी से पहले कुंडली मिलान करने के कारण जिनसे विवाह में नही आती बाधाएं 

ज्योतिष शास्त्र में एक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष को समझने में मदद मिलती है. इसी में एक महत्वपूर्ण चीज विवाह भी है. विवाह एक ऎसा संस्कार है जो अगर अच्छे रुप से जीवन में हो तो जीवन काफी सुखद रहता है. ऎसे में विवाह से जुड़े सुख और दुख को समझने के लिए ओर उसमें सफलता के लिए अगर ज्योतिष का सहयोग लिया जाए तो कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं. विवाह सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है जो दो लोगों को एक बंधन में बांधता है, जीवन हर स्थिति में मदद करने वाला भी है. एक व्यवस्था जहां दो व्यक्ति, एक निश्चित उम्र तक पहुंचने के बाद, एक दूसरे के साथ बसने का फैसला करते हैं. एक पारस्परिक प्रतिबद्धता जो दो व्यक्तियों को कठिन समय में एक-दूसरे के साथ खड़े होने के लिए सहमत करती है. एक दूसरे को जीवन में बढ़ते और समृद्ध होते देखना चाहते हैं. 

विवाह संबंधों को चाहे पश्चिमी संदर्भ में देखा जाए या भारतीर संदर्भ में इनके मूल में प्रेम, स्नेह और आपसी भागेदारी पर ही विशेष रुप से काम करता है. इसके बिना कहीं भी यह रिश्ता टिक नहीं सकता है. पश्चिम संस्कृति में  शादी आमतौर पर उन लोगों के बीच होती है जो प्यार में हैं और एक-दूसरे के साथ घर बसाने का फैसला कर चुके हैं हालांकि आज भारतीर संदर्भ में भी ये बातें अधिक महत्वपूर्ण होने लगी हैं किंतु फिर भी भारतीय संदर्भ में चीजें प्रतिमान बदले हुए दिखाई दे जाते हैं. यहां धैर्य और आपसी समझ अधिक सहायक बनती है रिश्ते को लम्बा चलाने में. 

गुण मिलान एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण  

भारत में विवाह पूर्व कुंडली मिलान किया जाता है जो कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण होता है. यह विशेष रूप से विवाह की खुशी और उस से मिलने वाले सुख को दिखाने में सहायक बनता है. आज भी अरेंज  मैरिज और यहां तक की लव मैरिज में भी लोग इसे देखने में जिज्ञासु दिखाई देते हैं. 

ज्योतिष विज्ञान गणना का एक ज्ञान, जो भविष्य को देखने के लिए “नेत्र” के रूप में कार्य करता है, ग्रंथों, वेदों द्वारा दिया गया एक विशेषण है. इसमें कुंडली मिलन एक लड़के और लड़की के भविष्य का पता लगाने का एक बेहतर तरीका बनता है. इसके द्वारा वैवाहिक आनंद और संघर्ष दोनों ही बातों को आसानी से समझा जा सकता है. कुंडली मिलान या मंगनी की बात करते हैं, तो इसके लिए सबसे लोकप्रिय विधि को अष्टकूट मिलान कहा जाता है. कुंडली के वह आठ नियम हैं जिनमें अष्ट कूट मिलान होता है.

गुण मिलान 

कुंडली मिलन में, 36 गुण देखे जाते हैं जिन्हें एक सुखी वैवाहिक जीवन की समझने के लिए देखा जाता है. इन 36 गुणों का एक अलग गुण है जो व्यक्ति के जीवन में परिलक्षित होता है. इन 36 बिंदुओं को अष्टकूट मिलान प्रणाली में उपयोग किया जाता है. ये गुण जितने अधिक मेल खाते हैं, वैवाहिक जीवन उतना ही बेहतर होता है. कुंडली मिलन में सबसे महत्वपूर्ण गुण यौन अनुकूलता, भावनात्मक अनुकूलता माना गया है. 

आर्थिक स्थिति एवं समृद्धि का विवेचन 

जब दो अलग-अलग कुंडली का मिलान किया जाता है, तो उन्हें विवाह के बाद एक माना जाता है. कुंडली मिलान में, जब कुंडली मिलान किया जाता है, तो दो लोगों को एक इकाई माना जाता है और अष्टकूट मिलान प्रणाली के अनुसार इसे समझ अजाता है. दो लोग एक दूसरे के जीवन का समर्थन करने के का प्रभाव. यह वित्तीय मोर्चे पर स्थिरता लाने के तरीकों में से एक है. जैसा कि कहा जाता है कि सिर्फ प्यार से कोई भी सुखी जीवन नहीं जी सकता, घर चलाने के लिए आपको पैसों की जरूरत होती है. इसी तरह, दो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन और अपने परिवारों के लिए वित्तीय समृद्धि लाते हैं. इसमें कोई भी कमी रिश्तों पर कष्ट ला सकती है. यहां पर दोनों के धन भाव लाभ की स्थिति को देखना और अन्य शुभ योगों का प्रभाव देखना भी शुभ होता है. 

वंश वृद्धि योग विश्लेषण 

कुंडली मिलान संतान उत्पत्ति के प्रशनों के लिए भी देखा जाता है. संतान की इच्छा परिवार के वंश को जारी रखने को भी दर्शाती है. जब विवाह मिलान होता है, तो सबसे महत्वपूर्ण चीज जो जांच की जाती है वह संतान से संबंधित सुख का भी होता है और यदि यह सभी समस्याओं से मुक्त होता है तो विवाह सुखमय स्थिति को पाता है. कुंडली मिलन के जरिए परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ नवजात के स्वास्थ्य की भी जांच की जाती है. बच्चे के जन्म के साथ ही, बच्चे का स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण होता है.  इसलिए, कुंडली मिलान में इस बिंदु को उचित महत्व दिया जाता है. 

कुंडली में बनने वाले योग-दोष  

कुंडली में मौजूद कोई भी दोष एक अभिशाप की तरह होता है. ऎसे में कुंडली मिलान के समय दोष इत्यादि को भी उचित रुप से देखने की आवश्यकता होती है. कुंडली में मंगल दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष इत्यादि बातों को देखना भी जरूरी होता है और दोष शांति के पश्चात ही इस मिलान को उचित माना जाता है. 

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सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना बनाता है साधन संपन्न

सूर्य और बृहस्पति का योग शुभस्थ स्थिति का कारक माना गया है. यह दोनों ही ग्रह बुद्धि, ज्ञान और आत्मिक विकास के लिए उत्तम होते हैं. ज्योतिष के संदर्भ में सूर्य राजा है और वहीं सष्टि में जीवन के विकास का आधार भी है. दूसरी ओर बृहस्पतिज्ञान का वह प्रकाश है जो समस्य जीवन के शुभ प्रगतिशील गुणों की वृद्धि का आधार बनता है. इन दोनों के एक साथ होने पर सकारात्मक संकेत अधिक दिखाई देते हैं जो जीवन को आगे बढ़ने हेतु अत्यंत उपयोगी होते हैं. 

सूर्य – सूर्य का महत्व वेदों में सबसे अधिक मिलता है. यदि वेद रचनाओं को समझें तो सूर्य की महत्ता अत्यंत ही विशेष रही है. सूर्य का संबंध जीवन के प्राण तत्व से जुड़ा है. सूर्य का प्रकाश जितना जीवन की ऊर्जा के लिए उपयोगी है उतना ही ये विकास क्रम में भी उपयोगी होता है. सभी ग्रहों का राजा होकर सूर्य नेतृत्व का गुण अच्छे से निभाता है. 

बृहस्पति – बृहस्पति ग्रहों में गुररू शिक्षक की उपाधी को पाता है. बृहस्पति अपने विचारों एवंज्ञान संपदा द्वारा सभी को ज्ञान का प्रकाश देता है. यही ज्ञान प्राप्त करके उचित अनुचित जीवन सत्य एवं अन्य तथ्यों भेदों को समझा जा सकता है. बृहस्पति को सुख का विस्तार का और आध्यात्मिक ऊर्जा का आधार भी माना जाता है. बृहस्पति जीवन को आगे ले जाने में सहायक बनता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति अपने आंतरिक विकास की प्रक्रिया को समझ पाने में सक्षम होता है. 

सूर्य और बृहस्पति – कुंडली के प्रत्येक भाव में प्रभाव

प्रथम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और बृहस्पति प्रथम भाव में युति करते हैं, तो व्यक्ति अपने स्थान पर एक वरिष्ठ की भूमिका पाता है. उसका बाहरी आवरण काफी प्रभवैत करने वाला होता है समाज में वह काफी प्रतिष्ठित भी हो सकता है. न्यायिक सेवाओं में शामिल होने की उच्च संभावना होती है. उनके पास उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में उठने की उच्च संभावना है. राष्टिय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन में काम करने की बहुत संभावना है. 

दूसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

दूसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना व्यक्ति के कुटुम्ब को विस्तार देने में सहायक होता है. परिवार का आरंभिक रुप व्यक्ति को काफी अनुकूल रुप से प्राप्त हो सकता है. कद काठी भी व्यक्ति की आकर्षक हो सकती है. ईमानदार और प्रभावी वक्ता हो सकता है. स्वयं को बॉस मान सकता है, बोलने में तेज एवं माहिर होता है, इनकी आवाज में नेतृत्व के गुण होते हैं. 

तीसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

तीसरे भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना काफी प्रभावी होता है. व्यक्ति साहस, बहादुरी और स्वाभिमान से भरा होता है. समाज में प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित हो सकता है. कुछ कठोर एवं  वे दुष्ट प्रवृत्ति का भी हो सकता है. समाज में आमतौर पर अच्छा सम्मान प्राप्त करने में सफल रहता है. 

चतुर्थ भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

चतुर्थ भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना भौतिक वस्तुओं को प्रदान करने में सहायक बनता है. बुद्धिमान भी बनाता है. समृद्ध और शानदार जीवन प्रदान करता है. सरकारी नौकरी में अच्छा स्थान मिल सकता है. अपने कार्य स्थल पर सम्मान पाते हैं. सत्ता से लाभ मिल सकता है और प्रयासों मेहनत द्वारा प्रसिद्ध भी प्राप्त कर सकते हैं. 

पंचम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

पंचम भाव में सूर्य और गुरु का एक साथ होना बौद्धिक स्थिति को अधिक प्रभावी बनाता है. अंतर्ज्ञान भी अच्छा होता है. उच्च शिक्षा प्राप्त करने में ललायित रह सकते हैं किंतु कुछ देरी का सामना भी करना पड़ सकता है. सामाजिक रुप से ये लोग एक बुद्धिमान व्यक्ति माने जाते हैं. 

छठे भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और गुरु के छठे भाव में एक साथ होना व्यक्ति को चातुर्य एवं विरोधियों का सामना करने में सक्षम बनाता है. व्यक्ति बुद्धिमान और बहादुर होता है. विभिन्न स्थितियों को संभालने और उन्हें अपने पक्ष में बदलने में कुशल भी होते हैं. शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर पाते हैं. प्रतियोगिताओं में अपना अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम होते हैं. प्रशासनिक नौकरियों में भी अच्छे हो सकते हैं. विनम्र और सामाजिक सेवा कार्यों को कर सकते हैं. 

सप्तम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और गुरु के सप्तम भाव में एक साथ होने पर यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर असर डालता है. व्यक्ति के जीवन साथी का स्वभाव कठोर या फिर हावी होने जैसा रह सकता. साझेदारी के कार्यों में अच्छा कर सकता है. जीवन साथी धार्मिक एवं नियमों का पालन करने वाला हो सकता है. व्यक्ति दयालु और उदार होता है. 

आठवें भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और बृहस्पति का आठवें घर में एक साथ होना कुछ अच्छा तो कुछ मामलों में अनुकूलता को कम करने जैसा होता है. व्यक्ति में संचार कौशल बेहतर हो सकता है. चतुराई पूर्ण कार्यों को कर सकता है. आध्यात्मिक क्षेत्र में भी काम कर सकता है. शांति और प्रसन्नता कुछ कम रह सकती है. 

नवम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

नवम भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ इस युति में होना शुभदक माना गया है. व्यक्ति को  विषयों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है. वह दूसरों को सिखाने में भी कुशल होता है. एक अच्छे शिक्षक एवं सलाहकार की भूमिका को प्राप्त कर सकता है. व्यक्ति आशावादी होता है. सकारात्मक दृष्टिकोण देने में सक्षम होता है. 

दशम भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

दशम भाव में सूर्य और गुरु का एक साथ होना कार्य क्षेत्र में उपलब्धियों को प्रदान कर सकता है. समाज में अच्छा नाम और मान सम्मान  मिलता है. शक्तिशाली और अत्यधिक प्रतिष्ठित हो सकते हैं.आरामदायक और शानदार जीवन जीने में भी सफल हो सकते हैं. 

ग्यारहवें भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

सूर्य और गुरु का एक साथ एकादश भाव में होना इच्छाओं को पूरा करने में तथा उन्हें विस्तार देने वाला होता है. व्यक्ति जीवन में जीवन शक्ति को पाता है. आत्मविश्वास अच्छा रहता है. समाजिक रुप से मान सम्मान प्रतिष्ठा भी प्राप्त हो सकती है. दयालु और मददगार होता है. 

बारहवें भाव में सूर्य और बृहस्पति की युति

बारहवें भाव में सूर्य और बृहस्पति का एक साथ होना व्यक्ति को दयालु और परोपकारी बनाता है. धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में काम करने का अवसर प्राप्त होता है. कई बार विदेशों में रहकर धनार्जन का लाभ पाता है. विचारों में काफी जिद एवं क्रोध भी दिखाई दे सकता है. नैतिकता की कमी भी हो सकती है. 

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चिकित्सा ज्योतिष : सभी रोग और व्याधि को जान लेने का अचूक माध्यम

ज्योतिष की एक शाखा चिकित्सा शास्त्र से संबंधित होती है. चिकित्सा का संबंध केवल चरक एवं आयुर्वेद से ही जुड़ा नहीं है अपितु यह ज्योतिष में कई योगों से भी संबंधित रहा है. ज्योतिष में रोग बिमारी, दुर्घटना प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले रोग सभी कुछ स्थान पाते हैं. छोटे से छोटा रोग हो या कोई बड़ी व्याधि सभी का राज ज्योतिष में समाहित होता है. यह जीवन के अच्छे बुरे सभी कष्टों को जानने का आसान तरीका होता है. सेहत की स्थिति एक जटिल यात्रा होती है जिसमें  है, और इसके अच्छे और बुरे चरण को समझने में ज्योतिष काफी सहायक बनता हैं. 

व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर तथा अपनी आदतों के कारण ही शरीर में रोग इत्यादि की स्थिति को झेलता है. जीवन के रूप में, कोई कभी नहीं जानते कि अगले पल में क्या सामना करना पड़ सकता है, लेकिन ज्योतिष इन बातों को समझने में भी सहायक होता है. इस बीच, चुनौतीपूर्ण घटनाएं जीवन को भ्रमित और दुखी कर देती हैं. चिकित्सा में रोग समस्याएं एक ऐसी चीज है जो बहुत अधिक तनाव और धन हानि दे सकती है. एक स्वस्थ जीवन की इच्छा को ज्योतिष द्वारा समझा जा सकता है. कभी-कभी हम खराब जीवन शैली के कारण अपने जीवन के साथ जोखिम को देख पाते हैं. 

चिकित्सा समस्याएं हमें तनाव देती हैं, साथ ही मानसिक कष्ट आर्थिक हानि तथा कई तरक की समस्याएं देती हैं. एक सक्रिय मेडिकल उपचार अगर ज्योतिष में देखा जाए तो कई तरह से सहायता देता है. एलोपैथिक दवा हमेशा किसी न किसी तरह के दुष्प्रभाव के साथ आती है ऎसे में लोग उपचार के प्राचीन तरीकों के बारे में अधिक अपनाते हैं और वे बहुत प्रभावी भी हैं. वैदिक ज्योतिष आपके शरीर को समझने का एक बेहतरीन तरीका है, और यह संभावित चिकित्सा मुद्दों को भी बता सकता है. यह आपको यह भी बता सकता है कि आपके शरीर में ये रोग कब प्रकट होंगे. यह एक प्राचीन विज्ञान है जो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को देखकर लोगों की समस्याओं का समाधान करता है.

चिकित्सा ज्योतिष क्यों होती है विशेष 

चिकित्सा ज्योतिष के अनेकों योग हमें देखने को मिलते हैं जो सफलता पूर्वक व्यक्ति को रोग से होने वाले प्रभावों से सूचित कर सकते हैं. यदि रोग के बारे में पहले से ही पता चल जाए तो यह स्थिति काफी राहत देती है. हमें कश्ट और नुकसान को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय भी देने में सहायक हो सकती है. यह ज्योतिष विज्ञान समय पर रोग का पता लगाकर और उससे संबंधित उपाय करके सही समय पर सही सहायता प्रदान कर सकता है. कुंडली में जीवन की सभी घटनाओं का प्रभाव दे सकती है. यदि पहले से इसके प्रति सचेत हैं, तो हम आने वाली कई आपदाओं से बच सकते हैं.

चिकित्सा ज्योतिष ज्योतिष की एक शाखा है बहुत विकसित है और इसे समझने के लिए काफी उपयोग होता है. यह क्षेत्र केवल स्वास्थ्य संबंधी मामलों से संबंधित ही नहीं है बल्कि जीवन को समझने और उचित रुप से आगे बढ़ने में भी सहायक होता है. ज्योतिष चिकित्सा कुंडली में राशियों और ग्रहों के परिवर्तन और गणना पर आधारित होती है. यह निर्धारित करना कि किसी व्यक्ति के जीवन में कोई रोग कब प्रवेश कर सकता है और उस व्यक्ति के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह चिकित्सा ज्योतिष की गणनाओं के अंतर्गत आता है.

स्वास्थ्य की स्थिति की जांच के लिए जन्म कुंडली की गणना में नक्षत्र, राशि, ग्रह की जांच करना बहुत जरूरी है. इसलिए यह आसानी से कहा जा सकता है कि चिकित्सा ज्योतिष हमारे जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है.

चिकित्सा ज्योतिष में  छठा, आठवां, बारहवां भाव 

कुंडली में छठा भाव बीमारी का मुख्य स्थान होता है. इस भाव को रोग भाव भी कहा जाता है. हर प्रकार के रोग को जानने के लिए इस भाव का अध्ययन करना बेहद जरूरी होता है. अष्टम भाव वातावरण में अचानक हुए बदलाव और जातक को किसी सर्जरी या मृत्यु का सामना करना पड़ता है या नहीं, यह दर्शाता है. अंत में, 12 वां घर चिकित्सा मुद्दों के माध्यम से अस्पताल में भर्ती और नुकसान को दर्शाता है.

छठे, आठवें और बारहवें भाव की दशा में शारीरिक समस्याएं आएंगी. फिर भी, कुंडली में वादा बहुत महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, कुंडली को कमजोर स्वास्थ्य दिखाना चाहिए; फिर, छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी की दशा के दौरान केवल शारीरिक मुद्दे ही सामने आएंगे.

स्वास्थ्य में ग्रह और उनका प्रभाव 

सूर्य 

हृदय, जीवन शक्ति, दृष्टि और आंखों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं. सूर्य खराब होने पर जातक का आत्म-सम्मान कम होगा और उसे अपने दिल का ख्याल रखना होगा.

बुध

जीभ, हाथ, बाल, फेफड़े और नाक से संबंधित समस्याएं. बुध तंत्रिकाओं को इंगित करता है, इसलिए जटिल बुध वाले व्यक्ति के लिए नर्वस ब्रेकडाउन से गुजरना स्वाभाविक है.

शुक्र

आंतरिक अंग, त्वचा का रंग, अंडाशय, तंत्रिका तंत्र, फैलाव संबंधी समस्याएं. शुक्र वीर्य का कारक होता है, इसलिए शुक्र शुक्राणुओं से संबंधित परेशानी का संकेत दे सकता है.

मंगल 

बाहरी अंगों, सिरदर्द, यकृत, गतिशीलता और पाचन तंत्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं. एक जटिल मंगल क्रोध के मुद्दों और ऊर्जा की कमी को भी इंगित करता है.

बृहस्पति

कूल्हों, पैरों और जांघों से संबंधित समस्याएं. यदि गुरु खराब हो तो जातक को जीवन शैली के बदलने पर रोग हो सकते हैं.

शनि

सुनने, जोड़ों का दर्द, दांत और त्वचा की समस्याएं, शनि हमेशा जोड़ों से संबंधित समस्याओं की ओर संकेत करता है. यदि शनि नीच का हो तो जातक को लंबे समय तक जोड़ों का दर्द रहेगा.

राहु और केतु

राहु और केतु भ्रम का रोग, विषाक्तता के रोग, संदेह करना, कैंसर, गंभीर लाईलाज बिमारी राग्य का संकेत देता है

वैदिक ज्योतिष : रोग का पता लगना 

चिकित्सा ज्योतिष स्वास्थ्य को बेहतर रुप से समझने के लिए जाना जाता है. ऋषियों द्वारा इसका उपयोग किया गया है. प्राचीन काल में ऋषियों ने लोगों की मदद के लिए वैदिक ज्योतिष  का सहारा लिया. जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार की बीमारियों को पहले से ही जान लिया जाना आसान होता था.  मानसिक अवसाद, दृश्य हानि, श्रवण दोष और पेट के रोग त्रिदोष विकार आसानी से पता चल जाते रहे हैं.  ज्योतिष गणना से प्राप्त तथ्य किसी भी कुंडली में निहित स्वास्थ्य समस्या का अनुमान लगाने में मदद करते हैं. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि कोई मरीज पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है. ऐसे में उसका लग्न समस्याओं के निदान और समाधान में प्रमुख भूमिका निभाता है.

जन्म कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति को देखकर स्वास्थ्य को बता सकते हैं. स्वास्थ्य की स्थिति देखने के लिए अन्य वर्ग कुंडलियां भी होती हैं. उदाहरण के लिए मान लीजिए लग्नेश प्रथम और ग्यारहवें भाव में पीड़ित है. फिर, इस स्थिति में, हम बुरे परिणामों की अपेक्षा कर सकते हैं. चिकित्सा विज्ञान व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है. छठे स्वामी की स्थिति हमारे शरीर के सबसे कमजोर स्थिति को दर्शाती है. इसलिए, छठे स्वामी का स्थान, दृष्टि और युति को देखना बहुत महत्वपूर्ण होता है. राहु केतु के माध्यम से शरीर में कमजोर अंगों का संकेत प्राप्त हो सकता है. राहु केतु से जो भी ग्रह और भाव प्रभावित होते हैं उनमें कुछ कमजोरियां होंगी. इन भावों और ग्रहों से संबंधित शरीर के अंगों में भी वह कमियां और कमजोरी देखी जा सकती हैं. 

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राहु आपकी कुंडली के हर भाव पर कैसा ड़ालता है अपना प्रभाव

राहु को ज्योतिष में एक छाया ग्रह का स्थान प्राप्त है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्वपूर्ण अर्थ है क्योंकि यह एक व्यक्ति के पिछले जन्मों की व्याख्या करता है. जीवन में जुनून और लक्ष्यों को दर्शाता है. 

प्रथम भाव में राहु का होना 

प्रथम भाव या लग्न का भाव है. यह आंतरिक और बाहरी आवरण दोनों में, जातक के समग्र व्यक्तित्व से जुड़ा होता है. यह मुख्य रूप से व्यक्ति का सिर, शारीरिक बनावट, चरित्र, स्वभाव, ताकत और कमजोरियों का प्रतिनिधित्व करने वाला स्थान होता है. प्रथम भाव में राहु की उपस्थिति आमतौर पर जातक को अच्छे परिणाम देती है. जातक अचानक धन भी मिलता है. राहु चतुराई और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इस स्थान वाले जातक को राहु के इस गुण का लाभ मिलता है. 

दूसरे भाव में राहु का होना 

वैदिक ज्योतिष में द्वितीय भाव का संबंध मुख्य रूप से परिवार और संपत्ति को दिखाता है. व्यक्ति में कमाई का हुनर ​​और क्षमता अच्छी होती है. इस घर से वाणी और भोजन का सेवन भी देखा जाता है क्योंकि यह कंठ का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति इन चीजों से प्रभावित होता है चीजों को हासिल करने के लिए तरसता है. धन, भोजन, कीमती सामान, ज्ञान, खजाने आदि को पानेकी तीव्र इच्छा होती है. 

तीसरे भाव में राहु का होना 

तीसरा भाव आत्म-अभिव्यक्ति, भाई-बहन, रिश्तेदार, पड़ोसियों और वातावरण से जुड़ा होता है. साहस, छोटी यात्राओं या भागदौड़ आदि का भी प्रतीक होता है. तीसरा घर मिथुन राशि का भी है जो राहु की मित्र राशि है जो संचार, कंप्यूटर से संबंधित और तकनीकी क्षेत्रों को भी दर्शाता है. ऎसे में राहु यहां पर संचार और मीडिया से जुड़े क्षेत्रों में लाभ दिला सकता है. 

चतुर्थ भाव में राहु का होना 

चौथा भाव बचपन, माता, प्रेम, पोषण, घर, अचल संपत्ति, प्रारंभिक बचपन और जिस तरह से वे अपने परिवार के साथ व्यवहार करने की संभावना रखते हैं, को दर्शाता है. राहु का यहां होना व्यक्ति को अपने परिवार और घर की संस्कृति में अधिक दिलचस्पी होती है और वह घर, जमीन और संपत्ति के मालिक बनने की इच्छा भी रखता है. राहु विदेशी चीजों का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए यह व्यक्ति को जीवन में बहुत आगे बढ़ा सकता है.

पंचम भाव में राहु का होना 

कुंडली का पंचम घर बुद्धि का घर है. यह भाव दर्शाता है कि कैसे रचनात्मक रूप से खुद को व्यक्त करना चाहिए. मित्र, प्रेम, संतान और राजनीति के ज्ञान से भी जुड़ा स्थान है. इस घर में राहु ग्रह की उपस्थिति रचनात्मकता, सामाजिक स्थिति और सेलिब्रिटी बना सकती है. ज्यादातर राजनीतिक क्षेत्र में. केंद्र स्तर पर ले जाने वाली भी होती है. 

छठे भाव में राहु का होना 

कुंडली का छठा स्थान संघर्षों, युद्ध, रोग, शत्रुओं का घर होता है. व्यक्ति मानवता के लिए किस प्रकार से काम कर सकता है यहीं से देखा जाता है. व्यक्ति किस प्रकार समाज के लिए फलदायी होने वाला है. राहु के लिए छठा घर अच्छा और सकारात्मक स्थान माना जाता है. यहां व्यक्ति प्रभुत्व से जुड़े विशेषाधिकारों का लाभ दिला सकता है. व्यक्ति संघर्षों को समझदारी से, निष्पक्ष रूप से और कुशलता से निपटने में माहिर होते हैं.

सातवें भाव में राहु का होना 

कुंडली का सातवां घर विवाह, व्यापार साझेदारी, यौन संबंध, कानूनी बंधनों का स्थान भी है. यह व्यक्ति के स्वयं के सार्वजनिक जीवन की तरह अन्य लोगों का भी प्रतिनिधित्व करता है. इस भाव में राहु की उपस्थिति बहुत शुभ नहीं मानी जाती है. यह व्यक्ति को ऐसे लोगों से घिरा बनाता है जो मिलनसार लगते हैं लेकिन वास्तव में भरोसेमंद नहीं होते हैं. विवाह और अन्य साझेदारियों में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है जिसके परिणामस्वरूप आसपास शत्रु पैदा हो सकते हैं. 

आठवें भाव में राहु का होना 

कुंडली का आठवां घर आयु, अचानक होने वाली घटनाओं, विवाह सुख, कॉर्पोरेट संसाधनों और विरासत में मिली संपत्ति या धन का प्रतिनिधित्व करता है. यह कर, मन के विचार, रहस्यवाद, मृत्यु और पुनर्जन्म से भी संबंधित होता है. जैसे छिपे हुए मामलों का भी घर है. इस घर में राहु रहस्य से संबंधित होता है. यह उन क्षेत्रों में लाभ दिला सकता है जिसमें जोखिम शामिल हो, जैसे कि एक शेयर मार्किट, जुआ, लॉटरी इत्यादि इसके अलावा जासूसी, खुफिया विभाग अधिकारी, गुप्त खोजी रुप में आगे बढ़ा सकता है. 

नवम भाव में राहु का होना 

कुंडली का नवां घर भाग्य, धर्म, अध्यात्म, शिक्षकों का घर होता है, कानून और पिता का स्थान भी माना जाता है. यह तीर्थयात्रा, लंबी यात्राओं का भी प्रतीक बनता है. नवम भाव में राहु व्यक्ति को काफी अलग विचारधारा दे सकता है. धार्मिक और उच्च शिक्षा के प्रति झुकाव को इंगित कर सकता है और राहु की उपस्थिति चीजों के प्रति जुनून पैदा करती है. (Simonsezit) व्यक्ति को जीवन में उच्च ज्ञान पाने की ललक अधिक रह सकती है. 

दसवें भाव में राहु का होना 

कुंडली में दसवें घर को करियर या व्यवसाय का घर कहते हैं. यह दर्शाता है कि क्या व्यक्ति अपने जीवन में प्रसिद्धि और भव्य सफलता प्राप्त कर पाएगा या नहीं. यह घर भी पिता के लिए देखा जाता है. राहु ग्रह का इस स्थान में होना व्यक्ति के लिए अनुकूल माना जाता है क्योंकि यह ज्यादातर अच्छे परिणाम प्रदान करता है. व्यक्ति को एक कार्यशील व्यक्तित्व बनाता है. व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण के माध्यम से अपने करियर की ऊंचाइयों तक पहुंचने की क्षमता रखता है. 

ग्यारहवें भाव में राहु का होना 

एकादश भाव को लाभ, अचानक धन लाभ का सूचक माना गया है. यह समृद्धि, आय और अच्छी संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है. यह वह घर भी है जो किसी के सामाजिक दायरे को दर्शाता है.

भौतिक दृष्टि से राहु एकादश भाव में उत्तम स्थान है.  यह स्थान व्यक्ति को सामाजिक समूहों और दोस्तों में समान रुचियों वाले लोगों के साथ जोड़ने पर बहुत जोर देता है.

बारहवें भाव में राहु का होना

कुंडली का 12वां घर रहस्यों, आशंकाओं, अवचेतन मन और एकांत स्थानों का होता है. यह जीवन की भौतिकवादी इच्छाओं से मुक्ति और अलगाव का भी प्रतिनिधित्व करता है और आध्यात्मिकता के प्रति मजबूत झुकाव को दर्शाता है. बारहवें भाव में राहु ग्रह के शुभ प्रभाव के तहत, यह व्यक्ति को अस्पताल, जेल या किसी विदेशी भूमि जैसे अलग-थलग स्थानों से लाभ प्रदान करने की संभावना देता है. राहु का यहां होना ज्यादातर व्यक्ति को अशुभ प्रभाव देती है. 

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नाड़ी दोष क्या होता है और इसका प्रभाव जीवन पर कैसे पड़ता है

ज्योतिष शास्त्र विज्ञान पर आधारित शास्त्र होता है. इन्हीं पर आधारित होता है हमारे जीवन का सभी फल इसी में एक तथ्य नाड़ि ज्योतिष से जुड़ा है. नाड़ी दोष विशेष रुप से कुंडलियों के मिलान के समय पर अधिक देखा जाता है. नाड़ी का प्रभाव एक दूसरे को कैसे प्रभावित करेगा इसे समझ कर ही विवाह के फैसले लिए जाते हैं. विवाह का रिश्ता कितना मजबूत होगा इसे जानने के लिए ज्योतिष है. विशेष रूप से जब एक हिंदू विवाह को अंतिम रूप दिया जाता है, तो होने वाले वर और वधू की कुंडलियों का मिलान किया जाता है. यह देखने के लिए किया जाता है कि क्या दोनों के विचार और भावनाएं मेल खाती हैं. दोनों कुंडलियों की छत्तीस गुणों के लिए जांच की जाती है. नाडी गुना 36 में से आठ गुण प्राप्त करता है. यह अधिकतम संख्या में गुण हैं जो नाडी कूट के पास हो सकते हैं.

एक सुखी वैवाहिक जीवन दो लोगों का मिलन है जो अपने जीवन को अच्छे ढंग से जीने का निर्णय लेते हैं. इस साझेदारी में, उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है चाहे बाहरी हो या आंतरिक. बाहरी बाधाओं से निपटना आसान है. किसी के समर्थन और समझ के साथ, इसे हल किया जा सकता है. लेकिन आंतरिक बाधाओं के लिए बहुत धैर्य और भाग्य की आवश्यकता होती है. विश्वास की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि जीवन में हमेशा अनुकूल स्थिति नहीं होती है. कभी-कभी भाग्य एक सुखी विवाह में बाधा डालता है और इसे कष्ट् में बदल देता है.

नाडी दोष क्या है?
नाड़ी दोष एक बहुत ही गंभीर दोष है जो दो व्यक्तियों के वैवाहिक जीवन में कई समस्याएं पैदा करने में सक्षम हो सकता अन्य, दोष तब होते हैं जब भागीदारों की नाड़ी समान होती है. जैसा कि हिंदू ज्योतिष द्वारा कहा गया है, शादी के लिए एक आदर्श मिलान तय करने के उद्देश्य से कूटों की जाँच और विश्लेषण किया जाना आवश्यक होता है. कुंडली के इन आठ कूटों में कुल 36 गुण हैं, जिनमें से नाड़ी कूट को कुंडली मिलन के इन आठ कूटों में से किसी एक को दिए गए अधिकतम अंक 8 गुण दिए गए हैं. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए एक अच्छा मिलान तय करने के लिए मुख्य कार्य नाड़ी से जुड़ा है जो बहुत महत्व रखता है. कुंडली मिलन विवाह के लिए दो लोगों की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति की अनुकूलता की जांच विशेष रुप से की जाती है.

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रस्तावित पति-पत्नी की नाड़ी अलग-अलग होनी चाहिए, कभी भी एक जैसी नहीं होनी चाहिए.इसके अलावा कई अन्य ज्योतिषीय कारक भी हो सकते हैं जो जन्म कुंडली में मौजूद होते हैं जिन्हें इस दोष की तीव्रता को कम करने या समाप्त करने के लिए प्रभावशाली माना जाता है. पर विशेष बात यही है की नाड़ी में अंतर अवश्य हो.

सुखी और संपन्न वैवाहिक जीवन के लिए पति-पत्नी की नाड़ी अलग होनी बहुत जरुरी मानी जाती है. अगर किसी दंपत्ति की नाड़ी एक समान हो तो उनकी कुंडली में नाड़ी दोष होता है. विभिन्न स्थितियों और अन्य चरों को ध्यान में रखते हुए नाड़ी दोष के नकारात्मक प्रभावों को बहुत कम किया जा सकता है. नतीजतन, अगर नाड़ी दोष है, तो इसकी कई दृष्टिकोणों से जांच की जानी चाहिए.

नाड़ी दोष वंश वृद्धि और संतान को करता है प्रभावित
यदि कुंडली में नाडी दोष होता है, तो आने वाली पीढ़ी कमजोर होगी और कोई संतान नहीं होने की संभावना भी अधिक हो सकती है. आइए नाड़ी दोष के बारे में और जानें कि यह आपके वैवाहिक जीवन को कैसे प्रभावित करता है.

नाड़ी दोष एक महत्वपूर्ण दोष है जिसमें दो लोगों के विवाह में बहुत सारी समस्याएं पैदा करने की क्षमता होती है. यह दोष दोनों विवाह के लिए तैयार लोगों की कुंडली मिलान से पता चलता है और तब होता है जब दोनों की नाड़ी समान होती है.

जब आपके जीवनसाथी के साथ आपके रिश्ते की बात आती है, तो नाडी आठ गुणों में से एक है.
कुल 36 बिंदु होते हैं, जिनमें सबसे अधिक नाड़ी होती है, यानी 8 अंक इस नाड़ी को मिलते हैं. यह दोष तब होता है जब दो लोगों की नाड़ियों के बीच विवाद होता है.

  • यदि किसी को नाड़ी दोष है तो विवाह में समस्या आ सकती है, जैसे आकर्षण की कमी या किसी भी पक्ष के लिए स्वास्थ्य समस्याएं.
  • विवाह में अलगाव और उथल-पुथल को दिखाता है.
  • संतान की समस्याओं, प्रसव के दौरान जटिलताएं भी हो सकती हैं.

नाड़ी के प्रकार
आद्य नाडी, मध्य नाडी और अंत्य नाड़ी तीन प्रकार की नाडी होती हैं. हर किसी की जन्म कुंडली उनकी नाड़ी के संबंध में चंद्रमा की स्थिति को प्रदर्शित करती है. चंद्रमा के परिणामस्वरूप, नक्षत्रों में एक नाडी शामिल होती है.

नाडी दोष के प्रकार
तीनों नाड़ियों में से प्रत्येक का नाम आद्य है. नाड़ियाँ आयुर्वेद में तीन त्रिदोषों का प्रतीक हैं.
आद्य नादि
यह नाडी के शरीर में आद्य नाड़ी के वात दोष से जुड़ी है. इससे यह पता चलता है कि एक ही नाड़ी दोष वात प्रकृति को बढ़ाता है. दंपत्ति के बच्चे को वह दोष विरासत में मिल सकता है. संतान को बचपन में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

मध्य नाडी
मध्य नाडी में पित्त दोष पाया जाता है. व्यक्ति पित्त स्वभाव के कारण क्रोध और जलन जैसी शारीरिक और मानसिक बीमारियों के अधिक शिकार होते हैं. बच्चे को उनका दोष विरासत में मिलता है यदि दोनों के पास यह नाड़ी है, तो वे प्रसव के समय पीलिया जैसी महत्वपूर्ण बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं. इसके अलावा, बच्चे को इनक्यूबेटर में रखने की आवश्यकता पड़ सकती है.

अंत्य नाड़ी
अंत्य नाडी दोष, जिसे इड़ा नाडी दोष के रूप में भी जाना जाता है, चंद्रमा द्वारा शासित होती है और कफ प्रकृति को दर्शाती है. अंत्य नाड़ी के साथ पुरुष और लड़की का विवाह इस शीतलता को बताता है. इस नाड़ी के साथ माता-पिता से पैदा हुए बच्चों में भी यह दोष होगा और कम उम्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.

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संतान जन्म से संबंधित महत्वपूर्ण ज्योतिष सूत्र

ज्योतिष शास्त्र से जानें संतान सुख में आईवीएफ और दत्तक संतान फल

बच्चों की इच्छा एवं उनके सुख को पाना दंपत्ति का पहला अधिकार होता है. विवाह पश्चात संतान जन्म द्वारा ही जीवन के अगले चरण का आरंभ होता है. विवाह जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बंधन है. लेकिन कहा जाता है कि एक बच्चा परिवार को पूरा करता है.कभी-कभी हमें बच्चे के जन्म में समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हालांकि चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के साथ, ये समस्याएं कुछ हद तक कम हो गई हैं लेकिन फिर भी ऐसे मामले हैं जहां लोगों को चिकित्सा सहायता के बाद भी सफलता नहीं मिलती है. ऐसी स्थिति में ज्योतिष मददगार हो सकता है.

किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक बच्चा उसके जीवन का आइना होता है उसका खुद का बचपन होता है बिता हुआ समय होता है. यह उन सबसे एक से सुखद अनुभवों में से एक होता है जो जीवन में उम्र भर साथ रहता है. कई को समय पर बच्चे का सुख मिल जाता है तो बहुत से लोगों को इसके लिए लम्बा इंतजार और संघर्ष भी करना पड़ता है. वहीं कुछ लोग निःसंतान भी रह जाते हैं. पर ये सब जीवन में आखिर क्यों घटित होता है ? इन चीजों को समझने के लिए बाल ज्योतिष का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. जहां सभी प्रश्नों एवं उलझनों के उत्तर मिल जाते हैं. 

ज्योतिष में अविश्वासी रखने वाला भी संतान सुख के लिए ज्योतिष की मदद लेते देखे जा सकते हैं.  बाल ज्योतिष को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है जो बच्चे के जन्म से पहले और बाद दोनो को ही दर्शाता है. ये संतान के होने तथ औसके बाद उसकी स्थिति और माता पिता को संतान से मिलने वाले सुख-दुख को दिखाती है. 

ज्योतिष में संतान प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण भाव और ग्रह

  • पंचम भाव  संतान का मुख्य घर होता है इसे संतान भाव भी कहा जाता है.
  • ग्यारहवां भाव संतान प्राप्ति और इच्छाओं का प्रतीक होता है.
  • नवम भाव बच्चे के भाग्य और उसके सुख से जुड़ा होता है. पंचम से पंचम होने के कारण विशेष होता है. 
  • बृहस्पति को संतान का कारक माना गया है. इसलिए कुंडली में बृहस्पति की स्थिति को समझना जरूरी होता है. 
  • सूर्य पंचम भाव का कारक स्वामी होता है.
  • मंगल गर्भाधान की स्थिति को दिखाता है स्त्री में रज का कारक बनता है. इसके साथ यह पौरुष ऊर्जा है जो प्रजनन के लिए आवश्यक है.
  • शुक्र वीर्य का कारक होता है जो संतान के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है. साथ ही यह स्त्री के यौन अंग को इंगित करता है और साथ ही यह पुरुष में वीर्य को. शुक्र की किसी भी प्रकार की समस्या या कमजोरी संतान के जन्म में कठिनाई का कारण बन सकती है.

अपनी कुंडली से जानिए संतान के जन्म में देरी का कारण

संतान जन्म में देरी के कारणों को व्यक्ति की कुंडली से जान सकते हैं. ज्योतिष में संतान की देरी के लिए,  कुंडली में कुछ विशिष्ट घरों और कुंडली में उन घरों में विशिष्ट ग्रहों की स्थिति को देखते हैं. 

  • कुंडली में संतान का सुख देखने के लिए पंचम भाव मुख्य भाव बनता है.
  • कुंडली का दूसरा घर और ग्यारहवां भाव बच्चों के माध्यम से लाभ और इच्छाओं को दिखाता है. 
  • कुंडली का नौवां भाव भी संतान सुख के लिए देखते हैं. 
  • कुंडली में शुक्र, सूर्य और मंगल के साथ-साथ संतान के लिए मुख्य कारक बृहस्पति की स्थिति को देखा जाता है. 
  • कर्म सिधांत के अंतर्गत पूर्व जन्म में गलत कर्म होना और नाड़ी दोष भी बच्चे के जन्म में देरी के लिए जिम्मेदार होते हैं. 

ज्योतिष आपको बच्चे के जन्म में देरी के ऐसे सभी कारण बता सकता है. इसके बाद आता है कि बच्चे के लिए गर्भधारण की योजना कब बनानी चाहिए. 

आईवीएफ संतान सुख 

संतान के जन्म में देरी परिस्थितियों या ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकती है. लेकिन आज के समय में, करियर या यहां तक ​​कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बहुत अधिक ध्यान भी अपनी प्राकृतिक प्रक्रिया में बच्चे के जन्म में देरी का कारण बनता जा रहा है लेकिन यह स्थिति भी ग्रहों द्वारा प्रभावित होती है. कई मामलों में किसी भी कारण से अपने संतान जन्म में दिक्कत आने पर आईवीएफ जैसे तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. यहां भी, एक विशेषज्ञ ज्योतिष विश्लेषण आईवीएफ की योजना बनाने के लिए एक उचित समय को बता कर मार्गदर्शन कर सकता है. जन्म कुंडली के अनुसार आईवीएफ के लिए सबसे अच्छी तारीख को जान सकते हैं.

आपकी कुंडली में दत्तक संतान प्राप्ति योग 

लेकिन जब विज्ञान भी सहायक नहीं बन पाता है और बच्चा गोद लेना पड़ सकता क्योंकि  कभी-कभी, बच्चे को गोद लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. किसी भी कारण से बच्चे को गोद लेना अपने बच्चे को प्राप्त करने में विफलता का कारण हो सकता है. लेकिन किसी को यह समझना चाहिए कि यदि कुंडली के कारकों ने संतान से वंचित करने में अपनी भूमिका निभाई, तो क्या संतान को गोद लेना एक अच्छा निर्णय हो सकता है. ज्योतिष शास्त्र में, यदि हम बच्चे के जन्म की संभावना की समीक्षा करने के लिए पंचम भाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो दत्तक संतान की समीक्षा के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, यह देखने के लिए कि क्या बच्चा गोद लेना आपके लिए एक अच्छा विकल्प होगा.

संतान सुख प्राप्ति कारक 

पंचम भाव और पंचम भाव का स्वामी किसी भी प्रकार के पाप प्रभाव से मुक्त होना चाहिए.

राहु, केतु, शनि जैसे पाप ग्रहों को पंचम भाव में नहीं होना चाहिए

बुध को भी संतान प्राप्ति के लिए बहुत शुभ नहीं माना जाता है, इसलिए बुध की स्थिति का आकलन सावधानी से करना चाहिए.

पंचमेश लग्न में या सप्तम में हो तो संतान सुख की भविष्यवाणी की जा सकती है. 

पंचम भाव के स्वामी का दूसरे भाव में होना संतान सुख देता है. 

केंद्र भावों या त्रिकोण भावों में शुभ ग्रहों का होना संतान सुख देता है. 

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