वक्री और मार्गी शनि का आपके जीवन पर कैसा होगा असर

शनि एक सबसे धीमी गति के ग्रह हैं. यह कर्मों के अनुरुप व्यक्ति को उसका फल प्रदान करते हैं इसलिए इन्हें न्यायकर्ता और दण्डनायक भी कहा जाता है. शनि का जीवन पर प्रभाव व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक हर तरह से प्रभावित करने वाला होता है. शनि जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं तो लगभग ढ़ाई वर्षों तक उस राशि को प्रभावित करते हैं. इस समय अवधि के दौरान शनि की चाल में बदलाव भी होता है. कभी ये वक्री होते हैं कभी मार्गी कभी तीव्र गामि गति भी धारण कर लेते हैं. शनि का ग्रहों के साथ संबंध और उनकी चाल में होने वाला बदलाव अनेक प्रकार के उतार-चढा़व देने में सक्षम होता है.  

शनि का ज्योतिषिय विचार 

शनि का ज्योतिष अनुरुप ज्योतिष में शनि को मकर ओर कुंभ राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. शनि साढे़साती ओर ढैय्या का प्रभाव कष्टदायक एवं परिवर्तन के अनुरुप माना गया है. शनि का जब अपनी स्वराशि में गोचर होता है तो ये स्थिति ग्रह गोचर को अनुकूलता प्रदान करती है. शनि अपनी राशि में आने में लगभग 30 वर्ष का समय ले लेते हैं. इस समय शनि मकर राशि में गोचर कर रहे हैं. इसलिए ये समय धनु-मकर-कुम्भ इन राशियों की साढ़ेसाती का होगा. इन राशियों के लोगों पर शनि का अधिक असर देखने को मिलेगा. मकर राशि में गोचर करता हुआ शनि अपने कारक तत्वों में वृद्धि करने वाला होगा. 

इस गोचर में शनि जब अपनी चाल को बदलेंगे तो उस के कारण राशि यों से संबंधित लोगों पर भी इसका असर दिखाई देगा. शनि ग्रह की चाल में परिवर्तन होने पर शनि वक्री हो जाते हैं और ऎसे में शनि के शुभ प्रभाव में व्रकता आने से स्थिति परेशानी वाली रहती है. किसी भी ग्रह में जब उसकी चाल में बदलाव को देखा जाता है तो ये स्थिति काफी बदलाव और तनाव को दिखाने वाली है. ग्रह के फलों में भी वृद्धि होने लगती है और इस प्रकार चीजों की अधिकता अस्थिरता को भी जन्म देती है. 

शनि का गोचरीय नियम 

शनि का गोचर से जुड़ा नियम इस प्रकार है, शनि अगर जन्म राशि से पहले स्थान में गोचरस्थ होता है मानसिक रुप तनाव और व्यर्थ की चिंता बढ़ाता है, स्थान परिवर्तन कराता है. सुख स्थान से दूर ले जाने वाला होता है. दूसरे घर पर अगर हो तो उसके कारण कलेश और वाणी में दोष की स्थिति उत्पन्न कर सकता है. तीसरे घर पर अगर गोचर कर रह अहो तो मेहनत को बढ़ा देता है. चौथे घर पर हो तो घर से दूर करवा सकता है. शत्रु पक्ष में वृद्धि दे सकता है. 

शनि के मार्गी होने का समय 

शनि की चाल में होने वाला ये बदलाव बहुत सी उथल पुथल को शांति देने में बहुत अधिक सहायक बन सकता है. मार्गी शनि का एक बार फिर से बदलाव मानसिक रुप से स्थिति को कुछ स्थिरता देने वाला होगा. शनि मार्गी होंगे, शनि का वक्री से मार्गी होना कुछ सुधार और स्थिरता की ओर ईशारा करने वाला होगा. मार्गी होने पर शनि की दशा ओर साढे़साती ढैय्या क अप्रभव भी कुछ शांत होगा. इससे मिलने वाले कष्टों में कमी भी आएगी. शनि का मार्गी होना सभी राशि वालों के लिए किसी न किसी रुप में प्रभावित करने वाला होगा. 

शनि का उतराषाढ़ा

शनि देव का किसी एक राशि में रहना एक लम्बा समय होता है. शनि जिस भी राशि में गोचर करते हैं उस राशि के गुण स्वभाव और प्रभाव पर अपना असर भी अवश्य डालते हैं. इस समय पर शनि जब अपनी स्वराशि में होंगे तो वह उत्तराषाढा़ नक्षत्र में भी गोचर करने वाले हैं. इस प्रभाव से शनि का ये प्रभाव अधिकारी और सेवा कर्म से जुड़े लोगों के मध्य नए संबंध दर्शाएगा. हो सकता है की इस समय पर विवाद अधिक उभरें. इस समय पर वैचारिक ट्कराव की स्थिति भी सामने आएगी. मित्र राशि, उच्च राशि या स्वराशि में होते हैं तो यह स्थिति शनि से मिलने वाली सभी चीजों को बढ़ाने का काम करती है. इसके विपरित यदि शनि अपनी किसी शत्रु राशि, नीचस्थ राशि में हों तो ऎसे में उन सभी गुणों में कमी आती है ओर विपरित फल भी मिलने की संभावना बढ़ जाती है. 

इस वर्ष शनि का मकर राशि में गोचर हो रहा है. मकर राशि के स्वामी शनि हैं. इसलिए शनि का मकर राशि में गोचर बहुत मायनों में खास माना गया है. 

इन राशि वालों के लिए मार्गी का प्रभाव   

शनि के मार्गी होने का प्रभाव कुछ राशि वालों के लिए अच्छा रहेगा. इन में उन लोगों के लिए ये समय अधिक बेहतर होगा जो शनि की साढ़ेसाती ओर ढैय्या से परेशान हैं या फिर जिन पर शनि की दशा चल रही है. इसके अतिरिक्त शनि जिन राशि के लोगों के लिए उनके कार्यक्षेत्र और स्वास्थ्य से संबंधित ग्रह हैं उन के लिए भी शनि का प्रभाव काफी इफैक्टिव होगा. धनु मकर और कुम्भ राशि वालों के लिए ये समय काफी महत्वपूर्ण होगा. इन्हीं लोगों पर शनि का निर्णायक प्रभाव दिखाई देगा, 

इस समय पर बहुत से ग्रहों की स्थिति में होने वाला बदलाव होगा . ग्रहों का युति संबंध भी इस समय पर शनि से जुड़ कर बदलाव लाने वाला होगा. सूर्य, बुध, गुरु, शनि और राहु/ केतु की युति हो रही है, जो कि सभी व्यक्तियों पर अपने अपने अनुरूप इफैक्ट देने वाला होगा. कुछ लोगों के लिए शुभ तो कुछ के लिए स्थिति अनियत्रित भी हो सकती है. शनि का इस साल मिथुन तुला और कुम्भ वालों के लिए दिक्कत देने वाला है क्योंकि लौह पाद की स्थिति परेशानी व्यवधान पैदा करने वाली होती है. 

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बुध का कुंभ राशि में गोचर क्यों होता है विशेष

कुंभ राशि में बुध ग्रह का होना बहुत सी विशेषताओं को लिए होता है. कुम्भ की विशेषताओं में बुद्धि, रचनात्मकता और परिवर्तन की इच्छा शक्ति शामिल होती है. कुम्भ राशि का दुनिया पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है. यह सुधार की तलाश करने और दूसरों की मदद करने की उनकी क्षमता भी रखते हैं. कुंभ राशि सबसे विशेष है और इस पर अराजकता के ग्रह शनि का स्वामित्व होता है. कुंभ एक स्थिर राशि है इसलिए कुंभ राशि वाले जातक बहुत ही जिद्दी स्वभाव के होते हैं और जब वे कुछ चाहते हैं तो उसे हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

ज्योतिष में बुध को संचार का ग्रह कहा गया है. यह दिखाता है कि लोग अपने मन और विचारों को कैसे व्यक्त करते हैं. यह बताता है कि एक व्यक्ति दुनिया को कैसे देखता है, अपने विचारों को दूसरों तक कैसे पहुंचाता है. कैसे व्यक्ति समस्याओं का समाधान करता है और विवरण पर कितना ध्यान देता है. इसके विपरित जबकि चंद्र राशि हमें बताती है कि एक व्यक्ति अपनी भावनाओं से कैसे निपटता है, बुध के स्वामित्व राशि होने पर चिन्ह दिखाता है कि विचार प्रक्रिया कैसे काम करती है, कैसे योजना बनाते हैं और उनको पूरा करते हैं 

कुम्भ और बुध योग का असर 

बुध ग्रह कुंभ राशि में है तो इसका प्रभाव काफी विस्तार लिए होता है. कुम्भ राशि में बुध का होना जन्म कुंडली में एक बहुत ही प्रमुख स्थान हो सकता है. इसका प्रभाव व्यक्ति को रचनात्मक विचारों से भर सकता है. व्यक्ति के पास बहुत से विचार हैं और उन्हें आगे बढ़ाने की इच्छा भी उसमें होती है. व्यक्ति बुद्धिमान होता है खुले विचारों वाला होता है, दुनिया में बदलाव लाना चाहेगा. किसी की कुंडली में कुंभ राशि में बुध एक प्रभावशाली स्थान को पाता है.

कुंभ राशि के बुध के लिए सबसे अच्छी जगह एकादश भाव माना गया है, यह हमारी महत्वाकांक्षाओं, सामाजिक स्थिति और दुनिया में प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है. जन्म कुंडली में 11वें भाव में बुध जातक को अपने विचारों को आगे बढ़ाने और दूसरों से समर्थन प्राप्त करने में मदद करता है. व्यक्ति भविष्योन्मुख होता है और दुनिया पर छाप छोड़ सकता है. कुंभ राशि में बुध के लिए अन्य उपयुक्त स्थान लग्न अर्थात पहला भाव भी हो सकता है क्योंकि यह स्वयं का प्रतिनिधित्व करता है. इसके अलावा रचनात्मकता एवं शिक्षा से संबंधित तीसरा भाव, 5वां और 9वां भाव भी इसके लिए उपयुक्त स्थान होते हैं. 

कुंभ राशि के लिए बुध का गोचर

कुंभ राशि के लिए बुध का गोचर संचार के ग्रह बुध द्वारा कुंभ पर बहुत अधिक गहरा प्रभाव डाल सकता है. बुध यदि वक्री स्थिति में कुम्भ राशि में होता है तब रचनात्मकता में कमी भी देखने को मिल सकती है. योजनाओं एवं निर्णय लेने में व्यक्ति को कठिनाई हो सकती है. दूसरों के साथ दोस्ती करने या उनके समान उद्देश्य वाले लोगों को पाना भी कठिन होता है. कुम्भ राशि में बुध का प्रेम और रोमांटिक जीवन के लिए एक प्रभावशाली समय दिखाता है. नए लोगों से मिलने और बेहतर संबंध बनने की संभावना भी रहती है.

कुंभ राशि में बुध वाले बहुत ही विचारशील और दूसरों को समझने वाले हो सकते हैं. वह एक दोस्ताना स्वभाव भी रखते हैं. आसानी से सभी के साथ घुल मिल जाते हैं. व्यक्ति की विभिन्न रुचियां हो सकती हैं तथा नई चीजें सीखने में भी व्यक्ति अच्छा होता है. किसी भी हुनर ​​को आसानी से निखार भी सकते हैं. व्यक्ति को प्रौद्योगिकी, विज्ञान और खगोल विज्ञान में अच्छा अनुभव प्राप्त हो सकता है. 

सकारात्मक रुप से व्यक्ति जीवन में शक्ति प्राप्त करता है. व्यक्ति के विचारों को दूसरों के द्वारा मान्यता भी प्राप्त होती है. भाग्य का निर्माण करने वाले होते हैं. व्यक्ति बौद्धिक होता है अच्छी बातचीत करना जानता है. रिश्तों में एक बौद्धिक संबंध बनाना उसे पसंद होता है. विचारशील और रचनात्मक होते हैं.  हमेशा चीजों को करने का एक बेहतर तरीका खोजने में कामयाब होते हैं और अपने जीवन में निरंतर सुधार की तलाश करते हैं.  नकारात्मक पक्ष में व्यक्ति के भीतर  दूसरों के लिए दया-करुणा की कमी हो सकती है. लोगों को पढ़ने और उनकी भावनाओं को समझने में वह कमजोर होता है. बुध दिल के बजाय अपने दिमाग से अधिक काम लेना पसंद करता है. अधिक स्वतंत्र हो सकता है जिद्दी हो सकता है. 

प्रेम और रिश्तों में जिन लोगों का बुध कुंभ राशि में है वे बहुत स्वतंत्र हो सकते हैं. रिश्तों में कुछ कठिनाइयों का अनुभव कर सकते हैं. अपने दिल के बजाय अपने दिमाग पर भरोसा करते हैं. कुंभ राशि वालों को अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने में कठिनाई हो सकती है. इस मामले में खुल नहीं पाते हैं. अपना कमजोर पक्ष दूसरे लोगों को दिखाने से बचते हैं, चाहे वे उन पर कितना भी भरोसा करें. कुंभ राशि वालों के लिए भावनात्मक अलगाव एक विशिष्ट गुण है.

रोमांस व  रोमांच और एक मजबूत बौद्धिक स्थिति चाहते हैं. खुले विचारों वाले लोग उन्हें अधिक पसंद आते हैं.  साथ ही वे किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो बहुत सहायक हो और भविष्य निर्माण के लिए उत्सुक हो. कुंभ राशि में बुध का सबसे बड़ा डर एक ऐसा साथी है जो दबंग, भावुक, उदासीन है और अपनी सीमाओं को नहीं जानता हो, यदि उनका साथी बौद्धिक रूप से  अनुकूल नहीं है तो वे आसानी से रिश्तों से ऊब सकते हैं. वे अक्सर उन लोगों के प्रति आकर्षित हो सकते हैं जिनके बहुत से दोस्त हों कुंभ राशि में बुध वाले लोगों के लिए रिश्तों में रोमांटिक केमिस्ट्री की तुलना में एक मजबूत दोस्ती अधिक मूल्यवान होती है.

कुम्भ राशि में बुध के सकारात्मक लक्षण 

ग्रहणशीलता का गुण इनमें अच्छा होता है. व्यक्ति उन चीजों को बहुत स्वीकार करता है जिनसे वे अपरिचित होता है. स्थिर राशि होते हुए भी ये जिज्ञासु स्वभाव के होते हैं और हर उस चीज़ के बारे में जानने की इच्छा रखते हैं जिसके बारे में ये नहीं जानते.

रचनात्मकता भी इनका एक विशेष गुण होता है. बहुत रचनात्मक होते हैं और जानते हैं कि वे जिस चीज में काम करेंगे उसमें सकारात्मक बदलाव कैसे किया जाए. व्यक्ति के पास अच्छी कल्पनाशक्ति भी होती है और हमेशा नए विचारों के साथ आगे बढ़ते हैं. 

बुद्धिमत्ता भी इनका एक विशेष गुण होता है. कुम्भ बुध अक्सर एक ऐसे व्यक्ति का संकेत दे सकता है जो दुनिया के सामने अपने विचारों को व्यक्त करने में बहुत बुद्धिमान और अच्छा होता है. दूसरों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है. 

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कुंडली में अमावस्या दोष? भाग्य पर क्यों लगाता है अंकुश

ज्योतिष में कई तरह के योग ऎसे हैं जो जीवन में भाग्य के निर्माण के लिए बाधा का कार्य करने वाले होते हैं इन्ही में से एक अमावस्या दोष के रुप में जाना जाता है. इस दोष का प्रभाव व्यक्ति के भविष्य निर्माण में व्यवधानों का कारक भी बन जाता है. कई बार हमें समझ नहीं आता कि हमारे जीवन में क्या हो रहा है, अचानक से उथल-पुथल के कारण अस्थिरता बनी रहती है और जीवन में परेशानियां भी अपना असर डालती रहती हैं.

कुंडली के द्वारा इन बातों को समझ पाना आसान होता है क्यौंकि यह मार्गदर्शक है. जीवन इन खगोलीय पिंडों से जुड़ा है जो हमें हर दिन प्रभावित करते हैं. वैदिक ज्योतिष अनुसार ग्रहों के बीच उतन्न प्रतिकूल स्थितियां कई तरह की बाधाओं को जन्म देने वाली होती हैं. इन्हीं के द्वारा कुंडली में दोष भी उत्पन्न होते हैं. कुंडली के बारह भावों में कोई भी ग्रह स्थिति हो सकता है और इन ग्रहों का प्रभाव शुभता एवं अशुभता का असर दिखाने वाला होता है. 

अमावस्या दोष क्या है?

जन्म कुण्डली में अमावस्या दोष का निर्माण चंद्र द्वारा ही बनता है. किसी भी राशि में सूर्य और चन्द्र की युति होती है तो यह अमावस्या दोष का निर्माण करने वाली स्थिति होती है. इस दोष का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि सूर्य के प्रभाव में चंद्रमा अपनी शक्ति और सकारात्मकता खो देता है और कमजोर हो जाता है. कुंडली में इस दोष के होने से जातक को कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अमावस्या के दिन चंद्रमा अपने सबसे कमजोर स्थिति में होता है, इसकी शक्ति में कमी देखने को मिलती है ऎसे में चंद्रमा के कमजोर होने पर जातक भी कमजोर प्रतीत होताहै.

चंद्रमा को ज्योतिष में मन एवं भावनाओं के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार माना गया है. चंद्र अमावस्या के समय जातक के मन को कमजोर कर देता है. भावनाओं पर अधिक नियंत्रण नहीं रह पाता है. इसके परिणामस्वरूप विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं, वित्तीय हानि, करियर में बाधा आदि उत्पन्न होती हैं. यह योग काफी मजबूत होता है और व्यक्ति के जीवन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता है. लेकिन ऐसे कई कारक हैं जो इस प्रभाव का परिणाम हैं. यह किसी की कुंडली में चंद्रमा की उचित स्थिति पर भी आधारित है. सूर्य चंद्र अमावस्या दोष के हानिकारक प्रभावों को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक सूर्य चंद्र अमावस्या दोष पूजा करना है.

अमावस्या दोष कैसे बनाता है?

सूर्य और चंद्रमा की युति को अमावस्या दोष के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस युति में एक बात ध्यान देने योग्य है की इस युति में जब दोनों की डिग्री में अंतर कम होगा तभी यह दोष निर्मित होता है. अन्यथा इस योग का भंग होना होता है. अमावस्या दोष तिथि से बनने वाले दोष के अंतर्गत आता है. तिथि और कुछ नहीं बल्कि अमावस्या या पूर्णिमा का समय होता है. यदि किसी व्यक्ति का जन्म अमावस्या जैसी तिथि को हुआ है तो उसे अमावस्या दोष होता है और यह बहुत ही अशुभ माना जाता है.

चंद्रमा, मन और भावनाओं का सूचक और सूर्य, जो किसी भी राशि में आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है, एक साथ आते हैं तो ऎसे में दोनों की उर्जाओं में घर्षण दिखाई देता है. यह अमावस्या दोष इन दोनों के मध्य अंशात्मक संबंधों पर ही बनता है. अमावस्या निर्माण शारीरिक और मानसिक अशांति को प्रभावित करने के लिए काफी शक्तिशाली भी माना जाता है. वैदिक ज्योतिष एक तिथि की गणना करते हैं तो चंद्रमा के सूर्य से 12 डिग्री पार करने पर एक तिथि का निर्माण होता है. अमावस्या दोष की तीव्रता सूर्य और चंद्रमा की युति की डिग्री के आधार पर भिन्न होती है. राहु अमावस्या तिथि पर अधिकार स्थापित करने वाला होता है, इसलिए जन्म कुंडली में अमावस्या दोष का होना अशुभ माना जाता है.

प्रत्येक राशि पर अमावस्या दोष का प्रभाव

मेष राशि

मेष राशि के जातकों के लिए यह दोष उनके निर्णय लेने और उनकी चंचलता में वृद्धि के लिए जिम्मेदार होता है. इस राशि में अमावस्या की उपस्थिति व्यक्ति को अस्थितरता का अनुभव देने वाली होती है. जातक एक स्थान पर रुक कर लम्बे समय तक रहना पसंद नहीं कर पाता है. 

वृषभ राशि 

वृषभ राशि में अमावस्या दोष का निर्माण होने पर स्थिति कुछ सकारात्मक रहती है क्योंकि चंद्रमा यहां पर बल को प्राप्त भी करता है. इसके प्रभाव द्वारा व्यक्ति में प्रतिकूल स्थितियों से निपटने का साहस होता है. उसका धैर्य कई बार स्थिति को नियंत्रित कर लेने में बहुत कारगर होता है. जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने में सक्षम हो पाता है. 

मिथुन राशि

मिथुन राशि पर इस दोष का निर्माण व्यक्ति को चंचलता दे सकता है. स्वभाव दोहरा होता है. जहां एक ओर किसी बात को लेकर उत्साहित रहता है, वहीं दूसरी ओर किसी बात को लेकर चिंतित भी रहेगा.

कर्क राशि 

कर्क राशि के लिए यह दोष भावनात्मक रुप से कमजोर बना सकता है. व्यक्ति में दूसरों पर विश्वास के कारण परेशानी की स्थिति अधिक प्रभावित करने वाली होती है. व्यक्ति को अपनों का अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है.

सिंह राशि 

सिंह राशि के लोगों के लिए अमावस्या सकारात्मक नहीं रहेगी और व्यक्ति दिवास्वप्नों में अधिक खोया रह सकता है. समस्याओं का समाधान आसानी से नहीं मिल पाता है. जीवन में बेचैनी अधिक रहती है. 

कन्या राशि 

कन्या राशि के लिए यह दोष परेशानी ओर कार्यकुशलता की कमी को दिखा सकता है. अपने पारिवारिक मामलों में उठा-पटक के लिए अधिक ज़िम्मेदार होंगे और समय बहुत कठिन रहेगा.

तुला राशि

तुला राशि के लिए यह दोष जीवन में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं. व्यक्ति अच्छी चीजों की आवश्यकता को लेकर अधिक आतुर रह सकता है. इच्छाओं की अधिकता किंतु असफलता का असर साथ साथ रहेगा. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि के लिए यह दोष अधिक परिश्रम देगा लेकिन लाभ की प्राप्ति कम रहने वाली है. चीजों को लेकर अधिकांश समय नाउम्मीद हो सकते हैं. जीवन में अचानक होने वाले बदलाव अधिक प्रभावित करेंगे. 

धनु राशि

धनु राशि के अंतर्गत बन रहे इस दोष का प्रभाव व्यक्ति को साहसिक गतिविधियों की ओर अधिक ले जाता है. व्यक्ति आकर्षण को लेकर उत्सुक होता है किंतु जल्द ही बदलाव की ओर भी अग्रसर रहता है. 

मकर राशि

मकर राशि के लिए इस योग का प्रभाव व्यक्ति को अधिक जिद्दी बना सकता है. व्यक्ति उन चीजों से जुड़ना अधिक पसंद करता है जिसमें उसे लाभ मिलेगा. करियर से जुड़े मुद्दे हमेशा परेशानी दे सकते हैं. 

कुंभ राशि

कुंभ राशि के लिए यह दोष अधिक विचारशील बनाता है. व्यक्ति समाज में बदलाव लाने के लिए अपनी योजनाओं को पूरा करना चाहेगा. जीवन में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. 

मीन राशि

मीन राशि के लिए यह दोष व्यक्ति को अधिक निर्भर और भावनात्मक बना सकता है. भौतिकता के प्रति झुकाव देता है. 

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राहु काल: ज्योतिष में राहुकाल का महत्व और इसका प्रभाव

पंचांग निर्माण में ग्रहों एवं समय गणना के आधार पर कई तरह के योग एवं कालों का विभाजन संभव हो पाता है. इस में एक विशेष काल की गणना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है जिसे राहुकाल के नाम से जाना जाता है. सामान्य रुप से राहु काल को एक खराब समय के रुप में देखा जाता है. यह बुरा समय माना जाता है और इस समय के दौरान शुभ कार्यों को न करन अही हितकर माना जाता है. आमतौर पर लोग इससे डरते हैं. हिंदू वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यह शुभ समय नहीं होता है जिस प्रकार भद्रा काल समय को शुभ नहीं माना जाता है उसी प्रकार इस राहुकाल को भी शुभता में स्थान प्राप्त नहीं होता है. 

राहुकाल समय 

पंचांग अनुसार राहुकाल का समय प्रत्येक दिवस के लिए कुछ निश्चित समय सीमा पर बनता है. नियमित आधार पर, राहु हर दिन सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच लगभग नब्बे मिनट की अवधि को कवर करता है. राहु काल का अपना ज्योतिषीय महत्व है. ज्यादातर यह प्रतिकूल प्रभाव देता है. राहुकाल को समझने से पहले राहु ग्रह के ज्योतिषीय दृष्टिकोण को जान लेना भी उचित होता है. आइये जानते हैं राहु काल और हमारे जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक दिन में सूर्योदय और सूर्य के अस्त होने के बीच लगभग डेढ़ घंटा एक राहु काल होता है जिस पर दुष्ट ग्रह राहु का शासन होता है. राहु काल

इस दौरान कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं करना चाहिए और अगर शुरू किया जाए तो उसका अच्छा फल नहीं मिलेगा. पहले से चल रहा कार्य, यात्रा या व्यापार प्रभावित नहीं होगा.

आम तौर पर व्यक्ति को कोई नई यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए, इस समय के दौरान कार्य, नौकरी, साक्षात्कार, विवाह, व्यापार व्यवहार, किसी भी संपत्ति की बिक्री या खरीद इत्यादि से संबंधित काम मना होता है. 

राहु काल और दिन का भाग 

स्थानीय समय के अनुसार राहु काल के समय में थोड़ा सा अंतर होता है, जिसे आप स्थानीय पंचांग में देख सकते हैं.

राहु काल के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय को आठ भागों में बांटा जाता है और फिर उसमें से राहु काल निकाला जाता है.

राहु-काल सोमवार को दूसरा भाग होता है, मंगलवार को सप्तम भाव राहु काल का होता है, बुधवार को दिन का पांचवां भाग राहु काल का रहता है, गुरुवार को दिन का छठा भाग राहु काल का रहता है. शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहु काल का रहता है, शनिवार को तीसरा भाग राहु काल होता है. रविवार को राहु का अष्टम भाव होता है. 

राहु काल में क्या करना चाहिए 

राहु-काल के दौरान दुर्भाग्य को दूर करने के लिए विशेष उपाय किए जा सकते हैं. इस काल समय के दौरान दुर्गा एवं शिव पूजा करना शुभदायक होता है. इसके अतिरिक्त राहु मंत्र जाप करना भी उत्तम होता है. यदि जन्म कुंडली में राहु खराब है और आप किसी विशेष समस्या से गुजर रहे हैं तो देवी काली का पूजन करना उत्तम होता है. नींबू की माला अर्पित करना भी उचित माना जाता है. 

यदि नकारात्मक ऊर्जा का असर अधिक हो रखा होता है तो इस समय के दोरान चौमुखा दीपक जलाना चाहिए.  दीपक में अलसी के तेल का प्रयोग करना चाहिए. इस दीपक को पीपल के पेड़ के नीचे प्रज्जवलित करना भी अनुकूल माना जाता है. 

राहु काल के समय नारियल लेकर भैरव मंदिर में चढ़ाना अनुकूलता प्रदान करता है. इसे के अलावा राहु काल समय मंदिर में राहु मंत्र का जाप करना चाहिए. 

इन कुछ बातों का ध्यान रखकर राहुकाल के खराब असर से बचाव होता है.

राहुकाल वैदिक मुहूर्त ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण शब्द है. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार राहु ग्रह एक दुष्ट ग्रह है, इसलिए किसी भी शुभ और नए कार्य के लिए दिन में राहु ग्रह के गोचर से बचना चाहिए. राहु काल अक्सर अलग-अलग नामों के साथ पाया जाता है. राहुकाल को राहु काल, राहु कालम, राहुदोषम, राहु समय आदि के रूप में लिखा जाता है. राहुकाल सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच दिन के आठ भागों में से एक है. लोग आमतौर पर दिन की इस अवधि के दौरान शुभ कार्यों से बचते हैं. अधिकांश लोग स्टॉक, घर, सोना और कार आदि नहीं खरीदते हैं. बहुत से लोग आम तौर पर किसी भी प्रकार की शुभ गतिविधियों जैसे शादी, सगाई और यहां तक ​​कि कोई नया व्यवसाय शुरू करने से बचते हैं.

भारत में कई पंचांग देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित रहे हैं. ये पंचांग राहुआल के समय को दर्शाते हैं. राहु काल प्रतिदिन डेढ़ घंटे तक रहता है. विभिन्न स्थान समय के कारण इसमें थोड़ा परिवर्तन संभव हो सकता है. इसलिए, आपके शहर में राहु काल का सही समय बताने के लिए पंचांग एक मार्गदर्शक है. स्थानीय पंचांग न केवल भारतीय मानक समय बल्कि स्थानीय माध्य समय को भी ध्यान में रखकर बनाया गया है. 

राहु काल की गणना कैसे करें

राहु काल की गणना सरल है, यदि आपके पास पंचांग है तो कभी-कभी आपको गणना करने की भी आवश्यकता नहीं होती है. राहु काल का सही समय खोजने में आपकी मदद करने के लिए इंटरनेट भी एक सहायक बनता है. राहु काल गणना के पीछे थोड़ा ज्योतिषीय अंकगणित को समझने की आवश्यकता है.

राहु काल का समय यहां प्रत्येक दिन के लिए दिया गया है.

रविवार – शाम 4:30 बजे से शाम 6:00 बजे तक (8 वां मुहूर्त)

सोमवार – सुबह 7:30 से सुबह 9:00 बजे तक (दूसरा मुहूर्त)

मंगलवार- अपराह्न 3:00 बजे से सायं 4:30 (7वां मुहूर्त)

बुधवार- दोपहर 12 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक (पांचवां मुहूर्त)

गुरुवार – दोपहर 1:30 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक (छठा मुहूर्त)

शुक्रवार – सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे (चौथा मुहूर्त)

शनिवार – सुबह 9:00 बजे से सुबह 10:30 बजे तक (तीसरा मुहूर्त)

गणना सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच 12 घंटे का समय लेते हुए की जाती है. इस 12 घंटे को 8 भागों में बांटा गया है. उदाहरण के लिए, हमें रविवार को राहु काल की गणना करने की आवश्यकता है. राहुकाल शाम 4:30 बजे से शाम 6:00 बजे के बीच शुरू होता है जो दिन का 8 वां भाग है. यदि सूर्य सुबह 6 बजे उगता है और शाम 6 बजे अस्त होता है, तो हमें 12 घंटे को 8 से भाग देना होगा जो 12/8 बराबर 1.5 घंटे है. इसलिए राहुकाल दिन के आठवें भाग में शाम को पड़ता है. आप ऊपर दी गई तालिका का उल्लेख कर सकते हैं. स्थानीय समय के आधार पर राहुकाल का समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदल सकता है. इसलिए, स्थानीय पंचांग का उपयोग करना अनुकूल रहता है. 

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कुंभ राशि के लिए शनि साढ़ेसाती का प्रभाव

साढ़े साती से तात्पर्य साढ़े सात साल की अवधि से है जिसमें शनि तीन राशियों, चंद्र राशि, और एक राशि चंद्रमा से पहले और एक उसके बाद में चलता है. साढ़े साती तब शुरू होती है जब शनि जन्म चंद्र राशि से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है और तब समाप्त होता है जब शनि जन्म चंद्र राशि से दूसरी राशि छोड़ देता है. शनि को एक राशि को पार करने में लगभग ढाई साल लगते हैं जिसे शनि की ढैया कहा जाता है, इसलिए तीन राशियों को पार करने में लगभग साढ़े सात साल लगते हैं और इसीलिए इसे साढ़े साती के नाम से जाना जाता है.

कुंभ राशि के लिए साढ़े साती का फल

कुम्भ स्वयं शनि द्वारा शासित एक वायु राशि है इसलिए कुंभ राशि के जातकों के लिए साढ़े साती के परिणाम सहनीय होंगे. शनि अब चाहता है कि आप अपने पैसे पर नजर रखें. आपको अपनी आय के स्रोतों पर ध्यान देना चाहिए. आप समूह का हिस्सा बनाना पसंद कर सकते हैं लेकिन बहुत अधिक सामाजिक भागीदारी भी प्रगति के रास्ते में आ सकती है. आप भावनात्मक रूप से कमजोर हो सकता है. आप अपने दिल की बात किसी और पर भरोसा करने वाले के रूप में सामने आएंगे.

इस समय के दौरान दूसरों पर निर्भरता से बचना होगा. स्वयं को मजबूत बना कर आगे बढ़ना होगा. शनि का असर चाहता है कि आप खुद पर पकड़ बनाएं. इस शनि की साढ़े साती अवधि के दौरान, कुंभ राशि को व्यावहारिक और स्वतंत्र होने और विशेषताओं के अनुरूप आगे बढ़ने की आवश्यकता है. अपनी भावनाओं को सीमित करने और जीवन को पटरी पर लाने की जरूरत है. कुंभ राशि का जातक उन्मुक्त एवं स्वतंत्रविचारहशील व्यक्तित्व रखता है. शनि का असर आने पर उसे जिम्मेदार होने की जरूरत होगी. 

कुंभ राशि के लिए पहला चरण 

कुंभ राशि के लिए शनि साढ़े साती का पहला चरण तब शुरू होता है जब शनि का गोचर जन्म के चंद्रमा से बारहवें घर में होता है, जिसका अर्थ है मकर. चूंकि मकर राशि पर भी शनि का शासन है, इसलिए पहला चरण आमतौर पर अच्छा होता है. यह कभी-कभी चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन अगर व्यक्ति काफी मेहनत करते हैं, तो सफलता के कदम चूम पाएंगे. इस दौरान छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याएं बनी रह सकती हैं.  इस समय के दौरान व्यक्ति को अपनी इच्छाओं पर भी नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है.

व्यक्ति यदि वफादार और जिम्मेदार बन कर काम करता है तो बेहतर परिणाम पाता है. इस समय पर व्यक्ति भावुक, न्यायप्रिय और निष्पक्ष भी बनता है. सामाजिक कार्यों में भी शामिल हो सकता है और कई तरह की कल्याणकारी गतिविधों में शामिल होता है. इस समय पर जरुरी होता है कि एक बेहतर जीवन प्राप्त करने की दिशा में काम किया जाए. नई चीजें सीखने और नए अनुभव हासिल करने की इच्छा भी होती है. इस पहले चरण के दौरान जमीन से लाभ भी मिल सकता है. व्यक्ति अपने लिए मकान का सुख प्राप्त कर सकता है या भूमि से लाभ पाने में सफल होता है.

कुंभ राशि के लिए साढे़साती का दूसरा चरण

जब शनि का गोचर कुंभ में ही  चंद्र राशि में होगा, तो साढ़े साती का दूसरा चरण कुंभ राशि से शुरू होगा. शनि वैराग्य है और चंद्रमा भावना और विचार है, इसलिए स्वाभाविक रूप से, एक घर में चंद्रमा और शनि का एक साथ होना व्यक्ति को और अधिक गहरा और जिज्ञासु बनाता है. यह थोड़ा भ्रमित करने वाला समय भी होता है लेकिन सकारात्मक रुप से सहायक भी बनता है. यहां शनि अपनी राशि में होता है. इस चरण के दौरान व्यक्ति के प्रयास और कड़ी मेहनत रंग लाती है. राजनीति और लोक प्रशासन में आपको प्रसिद्धि मिल सकती है.सरकारी क्षेत्र में भी व्यक्ति को अवसर मिल सकते हैं. अपने कार्यक्षेत्र में वह नाम पाता है. इस दौरान सामाजिक कार्य करने में वह रुचि रख सकता है. व्यवसाय में कुछ नई चीजों की शुरुआत के लिए ये समय काफी बेहतर होता है. इस समय व्यस्तता अधिक हो सकती है. किसी न किसी कारण से काम का दबाव भी अधिक रह सकता है जिसके कारण मानसिक तनाव भी बनता है. 

कुंभ राशि  तीसरा चरण

इस तीसरे चरण के दौरान कुंभ शनि की साढ़े साती का प्रभाव तटस्थ रहने वाला हो सकता है क्योंकि शनि अब मीन राशि में है, जिस पर बृहस्पति का शासन है, जो शनि के साथ औसत संबंध भी बनाता है. इस समय व्यक्ति कुछ आध्यात्मिक क्षेत्र में रुझान दिखा सकता है. ध्यान, योग या अन्य प्रकार की प्राकृतिक चीजों की ओर जा सकता है. अध्यात्म की ओर काम कर सकता है. यात्रा करना और नवीन स्थानों का पता लगाने की इच्छा भी अधिक हो सकती है. इस दौरान व्यक्ति स्वभाव से कुछ काफी विनम्र, जानकार और व्यवहार कुशल बन सकता है. जीवन के कुछ क्षेत्रों में उपलब्धियों को प्राप्त करने की इच्छा भी बलवती होती है. अपने तरीके से तार्किक और वैज्ञानिक बनते हैं. वफादार व्यक्ति बनता है ओर अपनी बोलचाल के द्वारा लोगों के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की सफल कोशिशें भी करता है. 

कुम्भ शनि की मूल त्रिकोण राशि है, इसलिए शनि यहां अधिक खराब फल नहीं देता है. लेकिम  कुंडली के जिन क्षेत्रों पर शनि की दृष्टि होगी, उससे संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि शनि की दृष्टि कभी भी शुभ फल नहीं देती है. शनि यदि किसी भाव से अपने भाव को देखता भी है तो वह नकारात्मक प्रभाव डालता है. इसलिए शनि का असर मिला जुला होगा. कुम्भ राशि वालों को स्वास्थ्य, कर्ज, शत्रु, अत्यधिक खर्चे और कोर्ट-कचहरी के मामलों में परेशानी का सामना करना पड़ा था. ये सभी समस्याएं साढ़े साती के दूसरे चरण में समाप्त हो जाएंगी, जो कुंभ राशि के लोगों के लिए अच्छी खबर है. लेकिन शनि की तीसरी दृष्टि चंद्रमा से तीसरे भाव पर होगी. परिणामस्वरूप जातक को छोटी यात्राओं में परेशानी का सामना करना पड़ेगा. काम को लेकर भागदौड़ अधिक रहेगी. स्वास्थ्य सामान्य तौर पर पहले से बेहतर रहेगा, लेकिन अत्यधिक भागदौड़ से शारीरिक क्षमता में कमी आएगी. थकान और सुस्ती अधिक रहेगी.

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ग्रहों में दिशाओं की शक्ति और दिग्बल दिलाता है नई चेतना

जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह भी जब दिशा बल में होते हैं तो भी इस प्रभव के कारण वह कुछ सकारात्मक देने में कामयाब होते हैं. ग्रहों का दिगबाल ग्रहों की दिशा और आपके जन्म कुंडली में स्थान या घर में कुछ निश्चित दशाओं के आधार पर प्राप्त होने वाली.

ये ग्रह की अतिरिक्त शक्ति को दर्शाती है. ग्रहों का दिगबल ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण पहलू बनता है. यह उन दिशाओं या भावों को इंगित करता है जिनमें ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं. ग्रहों के दिग्बल का विश्लेषण करने और समझने से यह महसूस करने में मदद मिलती है कि कौन सी स्थिति ग्रहों को लगभग दोगुनी ताकत प्रदान करती है, जिससे यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाता है. 

ग्रहों का दिशा बल कहां कौन सा ग्रह होता है बली ?

जन्म में लग्न के स्थान को किसी भी कुंडली में पूर्व दिशा को दर्शाता है. बृहस्पति और बुध के दिगबल को यहां देखा जा सकता है. इन ग्रहों का यहां होना स्थितियों में असाधारण रूप से शक्ति को पाता है. सभी कुंडली में लग्न से दसवां भाव दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. यहां हम मंगल दिगबल और सूर्य दिगबली हो जाता है.

अब ये दोनों ग्रह यहां बहुत मजबूत होकर फल देते हैं. और इस क्षेत्र में अपनी दिशात्मक ताकत रखते हुए देखे जा सकते हैं. इसी तरह, किसी भी कुंडली में सप्तम भाव पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और  इस दिशा में शनि शक्तिशाली हो जाता है और दिशात्मक शक्ति प्राप्त करता है.

दिन और रात्रि में ग्रहों का बल 

अब जब ग्रह इन दिशाओं से विपरीत भावों में बैठते हैं. जब दिशाओं से संबंधित ग्रह जब अलग दिशा में बैठता है अपनी दिशात्मक शक्ति खो देतेहैं. इस भाव के ग्रह दिग्बल प्राप्त करेंगे. समय के अनुसार ग्रहों की शक्ति भी महत्वपूर्ण होती है. चंद्रमा, मंगल और शनि रात में शक्तिशाली होते हैं जबकि बुध हमेशा शक्तिशाली होते हैं. सूर्य दिगबली, बृहस्पति दिगबली और शुक्र दिगबली को दिन के समय देखा जा सकता है.

ग्रहों की सामान्य शक्ति यानि के सबसे मजबूत से सबसे कमजोर स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि शक्ति का क्रम इस प्रकार है. सूर्य, चंद्रमा, शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल और शनि. इसके अलावा, छाया ग्रह राहु और केतु जिस भाव में रहते हैं और उनके स्वामी के अनुसार फल देते हैं. इसलिए राहु दिग्बल उस भाव का परिणाम होगा जिसमें वह रहता है.

ग्रहों का अस्तगत प्रभाव 

कुंडली विश्लेषण के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक वैदिक ज्योतिष में ग्रहों काआस्त और उदय होना भी विशेष फल देने वाला होता है. अगर कोई ग्रह सूर्य से 5 अंश के भीतर हो तो उस ग्रह का बल सुर्य के सामने कमजोर होने लगता है और वह अस्त स्थिति को पाता है. यदि ग्रह यह 20 डिग्री के भीतर है, तो यह सामान्य अस्तगत प्रभाव को दिखाता है. यदि ग्रह 15 डिग्री के भीतर होता है, तो यह नाममात्र का अस्त होगा. अस्त में ग्रह अशुभ परिणाम देते हैं, और ऎसे में सावधान रहना चाहिए कि जहां ग्रहों का फल देखने के लिए जरूरी होता है. 

ग्रहों की प्रकृति और उनका फल 

एक विस्तृत और प्राचीन विज्ञान के रूप में ज्योतिष में बहुत से पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है. यहां के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक ग्रह प्रकृति है. आपको विभिन्न ग्रहों की प्रकृति के बारे में पता होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि यदि जीवन में सफल होना चाहते हैं और हानिकारक कष्ट की स्थिति से सुरक्षित रहना चाहते हैं तो ग्रह आपको कैसे प्रभावित कर सकते हैं. सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा सात्विक कर्मों वाले दिव्य ग्रह हैं. \

शुक्र और बुध स्वभाव से राजसिक माने जाते हैं. मंगल, शनि, राहु और केतु तामसिक ग्रह हैं. ग्रहों की प्रकृति यह भी बताती है कि वे कुछ स्थितियों में कैसे प्फल देंगे. ग्रहों के कारकों जानना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वे जीवन जीने या सफलता प्राप्त करने के तरीके पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.

ग्रहों को जब दिशा बल की प्राप्ति होती है तो वह अपने अच्छे असर को दिखाने में आगे रहते हैं. ग्रह का बल व्यक्ति के लिए काफी चीजों को देने में भी सफल होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति को प्राप्त कर लेता है. अपने आस-पास कि स्थिति का उसे सकारात्मक फल प्राप्त होता है. ग्रह अपनी प्रकृति अनुसार दिशा बल में फल को देने में सहायक होता है. यदि गुरु दिशा बल को पाता है तो वह राजसिक कार्यों में सफलता दिला सकता है. जातक को समाज में बेहतर स्थान मिलता है. वह अपने कार्यों से दूसरों को मार्गदर्शन देने में भी काफी बेहतरीन रोल निभा सकता है. 

शनि के दिशा बल को प्राप्त कर लेने से जातक सेवा कार्यों द्वारा अच्छे परिणाम दिलाता है. शनि व्यक्ति को सामाजिक रुप से जोड़ने तथा दूसरों के लिए काम करने से प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है. इसी प्रकार सूर्य के दिशा बल को पाने से राजकीय लाभ भ व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. 

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मंगल ग्रह का सभी लग्नों पर असर और इससे मिलने वाले फल

ज्योतिष में कर्म की अवधारणा काफी गहराई से समाहित है. यह एक कठिन अवधारणा है लेकिन जब कुंडली में इसे देखते हैं, तो पाते हैं की ये जातक के कर्म एवं उससे मिलने वाले परिणामों का विशेष संबंध दर्शाती है.  कुंडली का दसवां भाव कर्म का भाव है. जबकि नौवां घर संभावनाओं को दर्शाता है. जहां भाग्य विफल हो जाता है और सीमाएं सीमित हो जाती हैं, वहीं 10 वां घर हमारे सपने के पूरा होने की कड़ी भी है जिसे हम जीवन में अपनी स्थिति प्राप्त करने के लिए पूरा करने का प्रयास करते हैं. यह एक केंद्र की ताकत है जो हमें करियर के माध्यम से आगे बढ़ाती है, भौतिक लाभ अर्जित करने का एक तरीका है. यह प्रयास कितना फलीभूत होता है, यह बात ग्यारहवें भाव से पता चल पाती है. 

जन्म कुंडली के ये भाव ही जीवन का वास्तविक सार है. इस घर के कारक बुध, बृहस्पति, सूर्य और शनि हैं. दसवां भाव निश्चित रूप से करियर और स्थिति के संबंध में पूर्ण कार्यात्मक और सक्रिय जीवन का संकेत देता है. जब यहां पाप ग्रह होता है तो बहुत अच्छा करता है और मंगल जैसी ऊर्जा व्यक्ति के लिए करियर में प्रगति का मतलब हो सकती है. आइए जानते हैं की मंगल की कार्यात्मक ऊर्जा सभी लग्नों के लिए कैसे प्रभाव देने वाली हो सकती है :- 

विभिन्न लग्नों पर मंगल का प्रभाव 

मेष लग्न के लिए मंगल पहले और आठवें भाव का स्वामी होता है. अष्टम भाव अशुभ भाव है लेकिन लग्न प्रबल और शक्तिशाली होने के कारण मंगल पर इसका प्रभाव प्रबल होगा. इस प्रकार यह शुभ होता है. इसके साथ ही यह अन्य पाप प्रभावों से मुक्त होना चाहिए, अन्यथा परिणाम अनुकूल मिल पाना मुश्किल होगा. 

वृष लग्न के लिए मंगल बारहवें और सातवें भाव का स्वामी होता है. एक खराब स्थान और एक शुभ स्थान केंद्र के स्वामी के रूप में, मंगल मध्यम परिणाम देने वाला होता है. मंगल  पीड़ित न हो तो ही मध्यम फल देगा. मंगल एक उग्र ग्रह है और किसी भी प्रकार का खराब असर व्यक्ति के जीवन में पाप गुणों को बढ़ाने वाला हो सकता है. यह खराब होने पर आक्रामकता और उथल-पुथल का कारण बन सकता है. यदि इसके साथ अन्य ग्रह हों तो वो भी शांत नहीं रह पाते हैं. 

मिथुन लग्न के लिए मंगल छठे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. मंगल यहां शुभ ग्रह नहीं बन पाता है, लेकिन दोनों  भावों के स्वामी के रूप में, यदि समय और धैर्य के साथ काम लिया जाए तो आशाओं और सपनों को साकार कर सकते हैं. ग्यारहवां भाव आशाओं, सपनों और सभी प्रकार के लाभ का भाव है, एक शुभ मंगल ही यहां अच्छे होने का प्रमाण दे पाएगा अन्यथा व्यर्थ के विवाद बने रहेंगे. 

कर्क लग्न के लिए मंगल पंचम और दसवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल दो शक्तिशाली भावों का स्वामी है और इसे योग कारक कहा जाता है. यदि कुंडली में मंगल अच्छी स्थिति में हो और अच्छी दृष्टि में हो तो व्यक्ति के लिए बहुत संभावनाएं होती हैं. अगर इसमें लग्न का स्वामी चंद्रमा भी शुभ व मजबूत हो तब इस स्थिति में यह अप्रत्याशित परिणाम देने वाला होगा. चंद्र और मंगल ग्रह पर होने वाली पीड़ा मानसिक तनाव के साथ जीवन को पूरी तरह से उलट-पुलट कर देने की शक्ति रखती है.

सिंह लग्न के लिए मंगल चौथे और नौवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल दो शक्तिशाली भावों का स्वामी है और इसे योग कारक कहा जाता है. मंगल की दशा या मुख्य अवधि में धन और प्रसिद्धि का योग बनता है. अच्छा लाभ हो सकता है. मंगल के द्वारा अपार संभावनाएं मिल सकती हैं. यदि ग्रह शुभ है और सभी नकारात्मकता से मुक्त हो तब यह अपने बेहतर फल देने में सक्षम होता है. लग्न स्वामी सूर्य भी यदि बेहतर स्थिति में हो तो यह व्यक्ति के लिए विजय मार्ग को प्रशस्त करता है. 

कन्या लग्न के लिए मंगल तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. यहां का मंगल अशुभ है. यदि मंगल बलवान और पीड़ित न हो तो वह लंबी उम्र दे सकता है. यदि मंगल पर बृहस्पति की शुभ दृष्टि हो तो इस लग्न का परिणाम काफी हद तक बदल जाता है.

तुला लग्न के लिए मंगल दूसरे और सातवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल एक अशुभ भाव और एक शुभ भाव का स्वामी होता है. दूसरा भाव वाणी, जमा धन और सामान्य पारिवारिक सुख को दर्शाता है. सातवां भाव एक केंद्र स्थान है इसलिए एक शक्तिशाली स्थिति है. मंगल इस लग्न के लिए मिला जुला हो सकता है. एक मजबूत और अच्छी तरह से स्थित मंगल धन के मामले में, दूसरों के प्रयासों के मामले में अच्छा परिणाम देता है. जीवन शक्ति को बढ़ाता है.

वृश्चिक लग्न के लिए मंगल लग्न और छठे भाव का स्वामी होता है. लग्नेश के रूप में इसकी ऊर्जा सबसे अधिक लाभकारी होती है और छठे भाव के स्वामी के रूप में यह बढ़ जाती है. लड़ने की भावना और क्षमता को आसान बनाती है. एक अच्छी तरह से शुभ मंगल बेहतर परिणाम देने में सक्षम होता है. वृश्चिक लग्न के लिए एक अच्छी तरह से स्थित मंगल बहुत मजबूत शारीरिक कद काठी, जुनून को वश में करने वाला और छिपा हुआ ज्ञान देता है.

धनु लग्न के लिए मंगल पंचम और बारहवें भाव का स्वामी होता है. पांचवां भाव त्रिकोण घर है. इसलिए मंगल ग्रह बन जाता है. किंतु द्वादश भाव के स्वामी के रूप में यह इतना लाभकारी नहीं होता है. मंगल मुख्य अवधि या दशा के दौरान महान उपलब्धियों को दिलाने में सहायक हो सकता है. कुंडली में, सूर्य और बृहस्पति की शक्ति भी इसे नियंत्रित करने वाले बहुत महत्वपूर्ण कारक ग्रह के रुप में होती है.

मकर लग्न के लिए मंगल चौथे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. चौथा भाव केंद्र भाव है इसलिए मंगल एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. ग्यारहवें भाव के स्वामी के रूप में यह इतना अनुकूल नहीं हो पाता है. लेकिन ग्यारहवां भाव हमारी आशाओं और सपनों को दर्शाता है. इस लग्न के लिए मंगल मिश्रित परिणाम दे सकता है. लग्नेश शनि और मंगल के बीच संबंध अनुकूल न होने के कारण यह धीमे परिणाम देने वाला हो सकता है. 

कुंभ लग्न के लिए मंगल तीसरे और दसवें भाव का स्वामी होता है. दसवां भाव केंद्र स्थान है और इसलिए मंगल एक अनुकूल ऊर्जा बन जाता है. तीसरे घर के स्वामी के रूप में यह इतना अनुकूल  नहीं होता है. इस लग्न के लिए मंगल मिश्रित फल देता है. 

मीन लग्न के लिए मंगल दूसरे और नौवें भाव का स्वामी होता है. नवां भाव एक त्रिकोण स्थान है. इसलिए मंगल एक अच्छी शुभ ऊर्जा बन जाता है. व्यक्ति को धन और धार्मिक दिमाग रुप से समृद्ध कर सकता है. इस लग्न के लिए यदि मंगल कमजोर हो या पाप दृष्टि में हो तो धन की बड़ी हानि और पारिवारिक दुख दे सकता है. 

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राहु की महादशा में कैसा रहता है ग्रहों की अंतर्दशाओं का फल

राहु की महादशा लोगों के जीवन को कई अलग-अलग तरह से प्रभावित कर सकती है. यह कुछ के लिए अच्छे तो बहुतों के लिए खराब हो सकती है. राहु दशा के फल शुभ होंगे या अशुभ, यह पूरी तरह से राहु के कुंडली में स्थिति के अनुसार तय होता है, इसी के साथ अन्य ग्रहों और उनकी स्थिति निर्भर भी करता है. क्योंकि राहु दशा के समय अन्य ग्रहों की अंतरदशाओं का फल भी व्यक्ति भोगता है. जब व्यक्ति इस दशा से प्रभावित होता है, तो उसके भ्रमित रहने की बहुत संभावना होती है. गलत और खराब तरीकों के कारण घातक असर भी देख सकता है. 

राहु दशा 18 वर्ष की अवधि तक मानी गई है. यह लंबी अवधि व्यक्ति के लिए दिमागी रुप से काफी दबाव दिखाने वाली हो सकती है. इस दशा से गुजरते हुए जातक जीवन के अनेक अनुभवों से प्रभावित होता है. राहु की महादशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन को बदल देने जैसा होता है. राहु की महादशा में राहु यदि तीसरे, छठे या 11वें भाव में स्थान पाता है तो काफी कुछ सकारात्मक दिखा सकता है. यदि राहु सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है तो वह व्यक्ति सुख और सफलता के अच्छे समय का आनंद भी उठा सकता है. जब राहु तीसरे, चौथे, छठे, दसवें और ग्यारहवें घर में होता है तो इससे व्यक्ति के जीवन में धन, समृद्धि और खुशियां भी आती हैं.

राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा

यह अंतरदशा व्यक्ति को लाभ दे सकती है, छोटे संगठन का मेल और आजीविका में वृद्धि दिखा सकती है . जीवन में असंतोष रहता है. भौतिक कार्यों के प्रति झुकाव बढ़ता है. इस दौरान व्यक्ति को विदेश जाने का मौका मिलता है. इच्छाशक्ति और हिम्मत द्वारा सफलताएं प्राप्त होती हैं. विजय प्राप्त करने की शक्ति भी प्राप्त होती है. यह दशा अशुभ होने पर अनिर्णय, भ्रम, धन हानि और आजीविका में बाधा उत्पन्न कर सकती है. अचानक विफलताओं और घरेलू मुद्दों के कारण होने वाली समस्याएं व्यक्ति को तनाव दे सकती हैं. व्यक्ति को बीमारी या स्वास्थ्य में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है. कुंडली में राहु की स्थिति खराब हो तो इस महत्वपूर्ण निर्णयों को लेने से बचना चाहिए.

राहु महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा

यह अंतरदशा समग्र स्वास्थ्य मामलों में कुछ सकारात्मक रुख दे सकती है. बृहस्पति के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति की लोकप्रियता और इस अवधि में अच्छी होती है. सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव जीवन पर पड़ता है. आजीविका में विकास होता है. प्रसिद्ध लोगों से मिलने का अनुभव प्राप्त होता है. आध्यात्मिक यात्राएं करने के लिए यह एक अच्छा समय होता है. इस अंतर्दशा में विवाह होने पर व्यक्ति दूसरी जाति में विवाह कर सकता है. इस अवधि के दौरान विदेश में रहने वाले व्यक्ति अपनी भूमि पर वापस आ सकते हैं. यदि बृहस्पति अशुभ हो तो यह दशा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, धन की हानि, करियर में गिरावट और अलगाव को दिखा सकती है. 

राहु महादशा में शनि की अंतर्दशा

राहु और शनि ये दोनों ही ग्रह पाप प्रभाव युक्त होते हैं और इन दोनों ग्रहों को अशुभ माना जाता है. इसलिए इस अंतर्दशा में नकारात्मकता और संघर्ष की स्थिति बनी रह सकती है. इस समय आजीविका में रुकावटें महसूस हो सकती हैं. व्यर्थ की बदनामी हो सकती है, धन हानि हो सकती है, पद छूट सकता है. राजनीति में जीवन अधिक संघर्ष का रह सकता है. यह दशा दुर्घटना,  चिकित्सा समस्याओं को दर्शा सकती है. इस समय यदि शनि शुभस्थ हो कुंडली में तो कई चीजों में सकारात्मकता भी दे सकता है ओर जीवन में संघर्ष कुछ कम हो सकता है. 

राहु महादशा में बुध की अंतर्दशा

राहु में बुध अंतरदशा अनुकूल मानी जाती है. व्यक्ति करियर के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है. कार्यक्षेत्र में पदोन्नति और व्यापार में वृद्धि के अवसर भी प्राप्त हो सकते हैं. दाम्पत्य जीवन सुखमय बना रहता है. इस समय में वाहन का सुख भी प्राप्त हो सकता है. इस दशा अवधि में बौद्धिकता पर राहु का असर भी होता है जिसके कारण व्यक्ति कई नई चीजों से जुड़ सकता है. कुछ तेजी बनी रहती है. स्वभाव में जोश दिखाई देता है. परेशानियों से मुक्त होने का समय होता है. इस अवधि में धन और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार का भी संकेत मिलता है.

राहु महादशा में केतु की अंतर्दशा

इस दशा का समय अधिक अनुकूल नहीं माना जाता है. विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक नहीं मानी जाती है. दोनों पाप ग्रह होते हैं. स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के निदान में कठिनाई हो सकती है. इस अवधि के दौरान आर्थिक स्थिति कमजोर रह सकती है. अपने प्रियजनों के साथ दूरी उत्पन्न हो सकती है. मन में चीजों के प्रति वैराग्य की भावना का अनुभव हो सकता है. इस दशा में रोग, विष, अग्नि और शस्त्र से भय बना रह सकता है. 

राहु महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

राहु में शुक्र अंतर्दशा का समय काफी लम्बा रहता है. यह व्यक्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण समय होता है. चुनौतियों का सामना करना पड़ता है साथ ही इससे मुक्ति भी प्राप्त होती है. कुछ कठिनाइयाँ जीवन में काफी लम्बा असर डाल सकती हैं. इस समय व्यक्ति को आर्थिक लाभ मिल सकता है, कुछ महंगी वस्तुएं भी प्राप्त हो सकती हैं. स्वभाव में काफी बदलाव हो सकते हैं. यदि शुक्र शुभ हो तो व्यक्ति को सुख-सुविधाएं, वाहन और संपत्ति अवश्य प्राप्त करता है. इस समय पर जीवन में कड़ी मेहनत करने का समय होता है. इस दौरान करियर में प्रमोशन की भी संभावना है.

राहु महादशा में सूर्य की अंतर्दशा

राहु में सूर्य की अंतरदशा का होना काफी उतार-चढ़ाव वाला होता है. इस दशा में जीवन के कुछ मुद्दे अभी भी हल नहीं हो पाते हैं. राहु और सूर्य में विरोध का संबंध अधिक होता है. जिसके परिणाम स्वरुप जीवन में काफी तनाव का सामना करना पड़ सकता है. इस अवधि में नौकरी में परिवर्तन या स्थानांतरण का मौका मिल सकता है. इस दशा में स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है. मानसिक रुप से तनाव एवं क्रोध अधिक बना रहता है. मान सम्मान की प्राप्ति होती है. इस दशा काल में विदेश यात्रा भी हो सकती है. साहस और उत्साह भी इस दशा काल में अधिक दिखाई देता है

राहु महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा

चंद्रमा मन भावना का कारक होता है और जब यह राहु द्वारा प्रभावित होता है, तो यह काफी चिंताओं को दिखा सकता है. व्यक्ति बेचैनी और तनाव महसूस कर सकता है. इस समय जल से संबंधित चीजों के कारण रोग होने की संभावना अधिक रहती है. कार्यक्षेत्र में परेशानियों की अधिकता बनी रह सकती है. जीवन में कई बार चीजें दूर हो जाती है. आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं. 

राहु महादशा में मंगल की अंतर्दशा

राहु दशा में मंगल की अंतर्दशा काफी परेशानी ओर तनाव वाली हो सकती है. इस समय के दौरान अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है. इस अवधि में चोट लगने की संभावना रह सकती है. इस समय परिश्रम और संघर्ष अधिक बना रह सकता है. व्यक्ति परिवार और रिश्तों के साथ विवादों में लिप्त रह सकता है. इस अवधि में व्यक्ति को बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है. इस समय विशेष रुप से दुर्घटना या चोट लगने का भय अधिक रहता है. इसलिए चोटों से बचने के लिए सावधान रहना चाहिए. मंगल की अंतरदशा में कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए. 

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कुंडली में मेडिकल लाइन से संबंधित शिक्षा और नौकरी कैसे देखें

अपने करियर में जब कोई व्यक्ति चिकित्सा से जुड़े कार्य को चुनता है तो ऎसा होना उसकी कुंडली के कुछ विशेष योगों के द्वारा ही संभव हो पाता है. आज के समय में चिकित्सा के क्षेत्र में इतनी अधिक शाखाएं हैं जिन्हें लेकर कई तरह के ज्योतिष नियम काम करते हैं. विशेष रुप से चिकित्सा का कार्य एक ऎसा काम है जिसमें हृदय की मजबूती के साथ भावनाओं पर नियंत्रण का अच्छा योग होना जरुरी है. एक डाक्टर के कार्य को कर पाना आसान नहीं होता है इसमें जल्दी से फैसले लेने ओर उचित निर्णयों के साथ आगे बढ़ना आवश्यक शर्त होती है. अब ऎसे में एक उत्कृष्ट बौद्धिक एवं साहसिक दिल और दिमाग के साथ ही ऎसे काम हो पाते हैं. 

यह वास्तव में आपके जन्म पर आपकी ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है जो आपके चिकित्सा करियर को निर्धारित करता है. कुछ राशियों में कुछ लक्षणों के कारण चिकित्सक बनना तय दिखाई देता है. कई सारे नियम मिलकर ज्योतिष के क्षेत्र में व्यक्ति को सफलता दिला सकते हैम ओर कुछ ग्रह इस संदर्भ में कमाल का कार्य कर सकते हैं. आईये जानते हैं कि चिकित्सा क्षेत्र में कौन से योग सफलता दिला सकते हैं.

चिकित्सा करियर के लिए विशेष ग्रह

कुछ ग्रहों का प्रभाव चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष असर देने वाला होता है. इन सभी में सूर्य और बृहस्पति को विशेष स्थान प्राप्त होता है. सूर्य और बृहस्पति का योग एक चिकित्सक के रूप में करियर के लिए आशाजनक माना जाता है. इन दोनों ग्र्हों को वैद्य के रुप में भी जाना जाता है. अब इसके अतिरिक्त मंगल, चंद्रमा का प्रभाव साहस एवं भावना के क्षेत्र में काम करता है. इन ग्रहों के द्वारा व्यक्ति के डाक्टरी पेशे में जाने की अच्छे संभावनाएं दिखाई देती हैं.

सर्जनों के लिए मंगल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसी के साथ सर्जन डॉक्टर के लिए शुक्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इन ग्रहों के अलावा, सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा भी एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. बृहस्पति एक कारक है जो किसी व्यक्ति को ठीक से उपचार करने के लिए ज्ञान की शक्ति देता है. डॉक्टर बनने के लिए चंद्रमा को पीड़ित होना चाहिए या बृहस्पति पर अशुभ प्रभाव पड़ना चाहिए. यह योग एक व्यक्ति को रोगियों को ठीक करने के लिए मजबूत माना जाता है. सूर्य वह जो आत्मा को दर्शाता है, और यह रोगियों को ठीक करने और जीवन देने की क्षमता को दर्शाता है. एक सफल चिकित्सक बनने के लिए सूर्य का मजबूत स्थान में, वृश्चिक या धनु राशि में होना अच्छा होता है. शुक्र का ज्ञान इतना व्यापक है कि मृत व्यक्ति को ठीक करने का अधिकार देता है, और मंगल व्यक्ति को रक्त को संभालने और चीजों से निपटने का अधिकार देता है. तो इन ग्रहों की स्थिति को  कुंडली में देखने की आवश्यकता होती है.

चिकित्सा की कौन सी फील्ड में मिलेगी सफलता है

जब ग्रहों का योग देखा जाता है तब अन्य ग्रहों का सहयोग भी इसमें काम करता है. एक डॉक्टर का क्षेत्र कई चीजों से संबंधित होता है. अब आप इस क्षेत्र में कौन सी जगह अधिक अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं ये बातें अन्य ग्रहों के एवं योगों के द्वारा संभव होता है. यदि जन्म कुंडली में सूर्य और बृहस्पति की युति में शनि भी शामिल होता है तो होम्योपैथी का क्षेत्र व्यक्ति के लिए एक अच्छा क्षेत्र हो सकता है.

आपकी जन्म कुंडली के चौथे, पांचवें और दसवें भाव में राहु और केतु की स्थिति एक चिकित्सा करियर का संकेत देती है. यह आपके पांचवें घर में जितना अधिक प्रमुख होगा, डॉक्टर बनने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. दरअसल, पंचम भाव जातक की बुद्धि का द्योतक होता है इसलिए ग्रहों की युति आपके लिए मार्ग प्रशस्त करेगी. सूर्य का मकर या कुंभ राशि में होना समान रूप से अनुकूल माना जाता है. कुंडली में चंद्रमा और मंगल का योग मजबूत है तो ज्योतिष के अनुसार यह एक और महत्वपूर्ण कारक बनता है.

डॉक्टर से जुड़े करियर में किन भावों का होना आवश्यक है

पंचम भाव शिक्षा और बुद्धि को प्रदर्शित करता है.

दशम भाव नौकरी करियर, स्थिति, उपलब्धियों और मान्यता को दर्शाता है. 

द्वितीय भाव, नवम भाव और एकादश भाव सहायक भाव बनते हैं और बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा, मंगल या शुक्र का इन भावों और राशियों के साथ मजबूत संबंध होना चाहिए. डॉक्टर बनने के लिए इन भावों में ग्रहों की स्थिति मजबूत होनी चाहिए. 

सर्जन बनने के लिए ग्रहों की युति

मंगल, सूर्य और शनि की ग्रह स्थिति महत्वपूर्ण है और इसी से मंगल सर्जन बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. एक सफल सर्जन बनने के लिए सूर्य और मंगल का वृश्चिक राशि में दशम भाव में एक साथ होना चाहिए. यदि मंगल कर्क राशि में हो, शनि तुला राशि में हो तो सर्जन भी बन सकता है. लेकिन दोनों ग्रह केंद्र स्थान में हों जो पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में हों. जब लग्न से दशमेश मेष या वृश्चिक नवमांश में हो या चंद्रमा मेष या वृश्चिक नवमांश में हो, तो व्यक्ति एक सफल सर्जन हो सकता है.

डॉक्टर ऑफ मेडिसिन के लिए ग्रहों की युति

पंचम भाव या दशम भाव का स्वामी छठे या बारहवें भाव के स्वामी से जुड़ा हुआ हो. दृष्टि या स्थिति के कारण हो सकता है. पंचम भाव, दशम भाव, लग्न भाव के स्वामी के साथ बृहस्पति का प्रबल प्रभाव होना चाहिए. चन्द्रमा को पीड़त होना चाहिए. चंद्रमा और सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में होने चाहिए या इन भाव के स्वामियों के साथ संबंध होना चाहिए. मंगल ग्रह से चंद्रमा और सूर्य का प्रभाव होना चाहिए. सूर्य और शनि एक दूसरे के साथ हों या दृष्टि से संबंधित हों. सूर्य और शनि के बीच योग परिवर्तन को डॉक्टर से जुड़े करियर के लिए अच्छा माना जाता है. 

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अपनी कुंडली से जानें कौन से अशुभ भाव आपके जीवन में बनते हैं बाधा का कारण

ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली का विश्लेषण में बहुत सी चीजों पर आधारित होता है. कुंडली में कुछ स्थान शुभ होते हैं तो कुछ स्थान अशुभ माने जाते हैं. शुभता एवं शुभता की कमी के कारण ग्रहों का असर काफी गहरे प्रभाव डालने वाला होता है. जन्म कुंडली के खराब स्थानों को दुस्थान की संज्ञा दी गई है. जन्म कुंडली के केन्द्र त्रिकोण स्थानों को शुभ भाव के रुप में जाना जाता है. शुभ स्थान व्यक्ति के जीवन में प्रगति सुख शांति के लिए विशेष होते हैं तो दुस्थान जीवन में संघर्ष, चुनौतियों के लिए जिम्मेदार होते हैं.   

जन्म कुंडली में ग्रह जब इन भावों में बैठते हैं तो होते हैं कमजोर 

अपने शत्रुओं और जीवन में आने वाली प्रतिकूलताओं के लिए इन भावों का विशेष असर होता है. दुस्थानों में बैठे ग्रह उनके स्वामी सभी इस के अनुसार फल देने के लिए उत्तरदायी होते हैं. इन ग्रहों का असर चीजों को दोहराने की स्थिति को दर्शाता है. ये भाव हमारे सबसे बड़े शिक्षक भी बनते हैं, हमें जगाते हैं, हमें मजबूत करते हैं और जीवन में अपनी पूरी यात्रा में हमें जमीन पर रखते हैं. अगर सही भावना से इन्हें देखा जाए, तो वे हमें स्पष्ट संदेश भेजते हैं कि कैसे कार्य करना है और जीवन में किन चीजों से बचना है. यह हमारे कर्म का एक हिस्सा है जिसे हमें इस जीवनकाल में आत्मज्ञान का अनुभव करने के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है.

कुंडली के ये दुस्थान, जीवन में कठिनाई लाते हैं, हर क्षेत्र में कार्यों और रिश्तों में हस्तक्षेप करते हैं, जागने और आध्यात्मिक शक्तियों पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, चेतना के उन्नत स्तरों को प्रोत्साहित करते हैं. वैदिक ज्योतिष में भाव ग्रह व्यक्तियों के जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सभी भावों में से प्रत्येक भाव का जीवन की कई परिस्थितियों और स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली में एक विशिष्ट स्थान पर असर डालते हुए यह जीवन को प्रभावित करने वाला होता है. 

केंद्र भाव 1, 4, 7 और 10 . होते हैं

त्रिकोण भाव 1,5, और 9 होते हैं

दुःस्थान भाव  6, 8 और 12 होते हैं

उपचय भाव 3, 6 और 11 होते हैं

मारक भाव 2 और 7 होते हैं

दु:स्थान भाव और उनका ज्योतिष में महत्व

वैदिक ज्योतिष में दु:स्थान भाव जीवन के कष्ट उतार-चढ़ावों को दिखाता है. ये भाव जीवन में कष्ट, कठिनाई, पीड़ा लाते हैं. क्रांतिकारी और विनाशकारी प्रभाव डालते हैं. यह भाव चुनौतियों से  निपटने के लिए सबसे कठिन मार्ग भी बनते हैं. बीमारियों और दुर्घटनाओं का कारण बन सकते हैं. मृत्यु तुल्य कष्ट को दिखाते हैं. व्यक्ति को इन्हीं भाव एवं भाव स्वामियों के कारण अपने जीवनकाल में कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. जीवन में गंभीर हानि और नुकसान झेलना पड़ता है. 

छठा भाव 

यह भाव व्यक्ति के स्वास्थ्य और बीमारी, भोजन, नौकरी, रोजगार की स्थिति, संबंधों और जीवन के विकास में शुभता को नियंत्रित करता है. क्या खाते हैं और क्या नहीं खाते इसके आधार पर सेहत को प्रभावित कर सकता है. यह पेट की बीमारियों जैसे पाचन समस्याओं, फूड पॉइजनिंग और आंतों के विकारों का कारण बनता है. दूसरे शब्दों में, यह भोजन की आदतों और दैनिक दिनचर्या के आधार पर व्यक्ति के स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है. यह व्यक्तिगत मोर्चे पर संदेह, गलतफहमी, विवादों और संघर्षों का कारण बनता है. इस भाव के प्रभाव से व्यक्ति को कर्ज या बीमारी जैसी स्थिति से अधिक गुजरना पड़ सकता है. 

आठवां भाव

दु:स्थान की दृष्टि में अन्य महत्वपूर्ण भाव आठवां भाव स्थान है जो व्यक्ति की लंबी उम्र और मृत्यु के प्रकार पर प्रभाव डालता है. यह इस पर भी नियंत्रण रखता है कि व्यक्ति को धीमी या अचानक मौत मिलेगी या नहीं. यह एक अशुभ भाव स्थान है जो मानसिक तनाव, मन की शांति की कमी, पुरानी बीमारी और यौन समस्याओं जैसी स्वास्थ्य बीमारियों का कारण बनता है. आठवां घर दुख और रहस्य का घर होने के लिए प्रसिद्ध है और दुर्भाग्य और मानसिक चिंता लाता है.

बारहवां भाव 

दुस्थानों में, बारहवां घर वैराग्य और अकेलेपन एकांत का भाव है. बारहवें भाव को क्लेश मानसिक दुर्बलता, अवैध पदार्थों की लत, अस्पताल में भर्ती होने और अन्य दर्दनाक घटनाओं का कारण माना जाता है. बाधाएं किसी के रास्ते में आ सकती हैं और चिंता, अवसाद और मानसिक असंतुलन का कारण बन सकती हैं. प्रबुद्धता और मोक्ष चाहने वाले व्यक्तियों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाव स्थान होता है. घर में अपनों से अलगाव, दूरी का कारण बन सकता है. नींद में कमी, अवरोध पैदा कर सकता है. हर मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकार बारहवें घर के अशुभ प्रभावों से भी जुड़ा हो सकता है.

वैदिक ज्योतिष में दुःस्थानों के महत्व को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह हानिकारक प्रभाव लाता है. सही ग्रहों के प्रभाव से घर भी अनुकूल परिणाम देने में सक्षम होते हैं. इसलिए प्रत्येक भाव किसी न किसी रुप में अपने विशेष फल को दिखाता अवश्य है. 

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