भारतीय ज्योतिष में ग्रहों के बीच बनने वाले संबंधों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रत्येक ग्रह अपनी ऊर्जा और स्वभाव के अनुसार जातक के जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालता है. जब दो ग्रह एक-दूसरे से षष्ठ यानी छठे और अष्टम यानी आठवें स्थान पर स्थित होते हैं, तो इसे षडाष्टक योग कहा जाता है. यह योग सामान्यतः अशुभ और संघर्ष से भरा हुआ माना जाता है. जब यह योग मंगल और राहु जैसे ग्रहों के बीच बनता है, तो इसका प्रभाव और भी अधिक गहन और उग्र हो जाता है.
मंगल एक अग्नि तत्व ग्रह है, जिसे ऊर्जा, साहस, पराक्रम, युद्ध, क्रोध और तकनीकी कौशल का प्रतीक माना जाता है. राहु एक छाया ग्रह है, जो भ्रम, छल, आकस्मिकता, विदेश संबंध, राजनीति और विष का प्रतीक है. जब ये दोनों ग्रह षडाष्टक योग में आते हैं, तो एक प्रकार की असंतुलित और विस्फोटक ऊर्जा का निर्माण होता है. यह योग जातक के भीतर आंतरिक द्वंद्व, असहिष्णुता और संघर्ष की भावना को जन्म देता है.
मंगल और राहु का षडाष्टक योग प्रभाव
इस योग से प्रभावित व्यक्ति की लाइफ में बार-बार अकारण संकट उत्पन्न हो सकते हैं. राहु का भ्रम और मंगल की आक्रामकता मिलकर ऐसे निर्णयों की ओर ले जाते हैं जो पहले पहल सही लगते हैं, लेकिन आगे चलकर हानि का कारण बनते हैं. यह योग मानसिक रूप से अस्थिरता, संदेह और चिंता की भावना को बढ़ाता है. जातक का आत्मविश्वास टूटता है और वह हर चीज़ में उलझन महसूस करता है.
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह योग काफी मुश्किल होता है. विशेष रूप से रक्तचाप, चोटें, जलने या सड़क दुर्घटनाओं की संभावनाएँ बनी रहती हैं. राहु की प्रकृति गुप्त होती है, इस कारण व्यक्ति को त्वचा रोग, विषाक्तता या मानसिक रोग जैसे विकार भी हो सकते हैं. यह योग जातक को क्रोधी, आक्रामक और झगड़ालू बना सकता है, जिससे पारिवारिक जीवन में भी कलह उत्पन्न होती है.
वैवाहिक जीवन में यह योग विशेष रूप से हानिकर माना जाता है. राहु संदेह को जन्म देता है और मंगल अंहकार को. जब ये दोनों मिलते हैं तो दंपत्ति के बीच टकराव की स्थिति बनती है. छोटी-छोटी बातों पर विवाद होना, बातों को गलत समझना और एक-दूसरे पर संदेह करना इस योग के आम लक्षण होते हैं. कई बार यह योग तलाक या अलगाव का कारण भी बन सकता है.
व्यवसाय और करियर के क्षेत्र में भी यह योग व्यक्ति को स्थिरता नहीं देता. व्यक्ति बार-बार अपने काम बदलता है या फिर एक ही क्षेत्र में लंबे समय तक नहीं टिक पाता. राहु की प्रकृति जोखिम लेने की होती है और मंगल जल्दबाज़ी की. इस कारण जातक जल्द निर्णय लेता है और कई बार भारी आर्थिक हानि उठा लेता है. हालांकि यह योग तकनीकी क्षेत्र, रक्षा, पुलिस, खुफिया तंत्र और राजनीति में व्यक्ति को विशेष सफलता भी दे सकता है, अगर कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो.
मंगल और राहु का षडाष्टक योग पर दशा का असर
जब राहु और मंगल की दशा या अंतर्दशा एक साथ आती है, तो यह योग अपने चरम प्रभाव में होता है. जातक का मन और शरीर दोनों तनाव में आ जाते हैं. क्रोध बढ़ता है, नींद में कमी आती है, और व्यक्ति किसी न किसी बात से मानसिक रूप से व्यथित रहता है. ऐसे समय में ध्यान, योग और मानसिक शांति के उपाय अत्यंत आवश्यक होते हैं. यह योग मुख्यतः अशुभ माना गया है, लेकिन अगर शुभ ग्रह जैसे गुरु या शुक्र की दृष्टि हो, तो इसके नकारात्मक प्रभाव काफी हद तक कम हो सकते हैं.
राहु और मंगल दोनों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा दी जाए, तो यही योग व्यक्ति को आत्म-रक्षा, राजनीति, अनुसंधान और रहस्यवाद की दुनिया में उच्च स्तर तक ले जा सकता है. कई बार यह योग जातक को ऐसा नेतृत्व देता है जो परंपराओं को तोड़ता है और नया मार्ग प्रशस्त करता है.
अगर जन्मकुंडली में यह योग मौजूद न भी हो लेकिन दशा, अंतर्दशा या गोचर में मंगल और राहु षडाष्टक स्थिति में आएं, तो भी अशुभ फल मिलने लगते हैं. मंगल की दशा में राहु की अंतर्दशा या इसके उलट हो तो विशेष सावधानी आवश्यक है. गोचर में अगर राहु या मंगल 6वें या 8वें भाव में हों तो ये योग अस्थायी रूप से भी समस्याएं खड़ी कर सकता है.
मंगल और राहु का षडाष्टक योग उपाय
इस योग से बचाव के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं. मंगल और राहु के बीज मंत्रों का जाप, हनुमान जी की आराधना, चंद्रमा की शांति हेतु शिव पूजन इस योग के प्रभाव को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं. साथ ही राहुकाल में विशेष कार्यों से परहेज करना, क्रोध पर नियंत्रण रखना और मानसिक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है.
ज्योतिष में ग्रहों के आपसी संबंधों का गहन विश्लेषण किया गया है. जब दो ग्रह एक विशेष कोण या स्थान से परस्पर जुड़े होते हैं तो वे एक विशिष्ट योग का निर्माण करते हैं जो जातक के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है. जब मंगल और राहु इस तरह के षडाष्टक संबंध में आते हैं, तो यह योग एक अशुभ और चुनौतीपूर्ण योग माना जाता है. जब दो ग्रह एक-दूसरे से 6वें और 8वें भाव में स्थित होते हैं, तो उनके बीच का संबंध तनावपूर्ण और विरोधात्मक माना जाता है. यह संबंध उनके बीच संघर्ष, बाधा और मानसिक, शारीरिक कष्ट उत्पन्न कर सकता है. मंगल और राहु का षडाष्टक संबंध जातक के जीवन में अस्थिरता, दुर्घटनाओं, क्रोध, मानसिक भ्रम, और आत्मविकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है.
अंततः यह कहा जा सकता है कि मंगल और राहु का षडाष्टक योग जीवन में कई प्रकार की चुनौतियाँ लेकर आता है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि जीवन रुक जाता है. यह योग जातक को कठिन परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता भी देता है. यदि व्यक्ति स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रखे और उचित मार्गदर्शन ले, तो यह योग उसे साधारण जीवन से असाधारण उपलब्धियों की ओर भी ले जा सकता है.