वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का बहुत महत्व है. शनि जन्म कुंड्ली के जिस भाव में होगा उस भाव को काफी गहरे असर डालता है. कुंडली के पहले घर में शनि उन कुछ प्रभावों को देता है जिसके कारण उसका सारा जीवन प्रभावित होता है. शनि कुंडली के पहले भाव में अगर बैठता है तो यहां उसके फल भाव, राशि स्वामी के साथ मिलकर मिलते हैं. प्रथम भाव में शनि कुछ जीवन घटनाओं में देरी के लिए जिम्मेदार होता है इसका कारण शनि का धीमा होना है. लग्न में बैठते ही शनि गति को धीमी करने वाला होता है. शनि की स्थिति कि यह बात व्यक्ति के हर पहलू पर असर डालती है. शनि कई मायनों में लग्न को प्रभावित करता है. इस के कुछ मुख्य सूत्र शनि के निम्न प्रभावों से मिल सकते हैं :-
- शनि लग्न में स्थिति राशि अनुसार फल देगा.
- पहले भाव में शनि का अस्त फल
- पहले भाव में शनि का वक्री फल
- पहले भाव में शनि के उच्च और नीच का फल
- पहले भाव में शनि का ग्रह युति फल
- पहले भाव में मित्र राशि में शनि का फल
- पहले भाव में शत्रु राशि में शनि का फल
शनि का असर तब और अलग देखने को मिलेगा जब अलग-अलग राशियों में होता है. प्रथम भाव में वक्री शनि आपको धैर्य के साथ अधिक संभावनाओं के साथ काम करने के लिए प्रेरित करेगा, जबकि प्रथम भाव में अस्त शनि आपको जीवन में संतुलन बनाए रखना सिखाएगा. मित्र ग्रहों के साथ प्रथम भाव में शनि शुभ संयोग बनाता है, यह स्थिति सकारात्मक रूप में कार्य करती है और भाग्य को बदल देने वाली होती है.
शनि के महत्वपूर्ण ज्योतिष सूत्र
वैदिक ज्योतिष में शनि के फलों को जानने के लिए चाहिए की समझा जाए शनि को. शनि व्यवस्था, कानून और अनुशासन का प्रतिनिधित्व करता है. शनि को कठोर कार्य देने वाला माना जाता है. शनि सभी ग्रहों में सबसे अधिक कठोर परिणाम देने वाला ग्रह है. धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाने वाला शनि किसी भी कार्य को पूरा करने में बहुत समय लेता है. शनि धैर्य को दर्शाता है इसका मतलब है कि सफलता में देरी होगी और लेकिन परिश्रम निष्फल नहीं होगा और सफलता प्राप्त होगी.
शनि को एक धर्मी ग्रह माना जाता है और इसे न्याय का ग्रह माना जाता है.शनि, कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करता है. शनि अपने दृष्टिकोण में सख्त है और इसका बाहरी रूप कठोर है. शनि पर कर्म का एक महत्वपूर्ण प्रभाव है. अच्छे और बुरे कर्मों का शनि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. कर्म अनुकूल होंगे तब शनि पुरस्कृत करता है, गलत कर्म करते हैं तो कर्म का नकारात्मक प्रभाव होगा.
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पहले भाव में शनि का क्या महत्व है?
पहले भाव में शनि होता है, तो नियमों के अधीन रखता है. जन्म कुंडली में पहला भाव स्वयं, पूरे शरीर और समग्र जीवन का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव व्यक्ति के बाहरी व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, स्वभाव, ताकत और कमजोरियों को भी दिखाता है. यह भाव इस बात से जुड़ा होता है कि व्यक्ति दुनिया के सामने कैसा दिखता है. जो भी ग्रह पहले भाव को प्रभावित करता है, वह व्यक्तित्व, शरीर और व्यक्ति के पूरे जीवन को प्रभावित करेगा. पहला भाव व्यक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण भाव होता है.
प्रथम भाव में शनि जातक को मेहनती, अनुशासित, जिम्मेदार और ईमानदार बनाता है. जीवन में उनके पास बेहतरीन निर्णय कौशल और सकारात्मक मानसिकता होती है. ये व्यक्ति, बचपन में, अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तुलना में काफी परिपक्व होते हैं. जब शनि प्रथम भाव में होता है, तो शारीरिक बनावट, जैसे शरीर का प्रकार, शरीर की बनावट, व्यक्तित्व, व्यक्ति की परिपक्वता का स्तर और दूसरों के साथ उनका व्यवहार प्रभावित होता है.
सकारात्मक शनि
पहले भाव में सकारात्मक शनि माता-पिता, भाई-बहनों और दोस्तों के साथ संबंध को प्रभावित करता है. किसी भी स्थिति का विश्लेषण करने और उस पर काम करने, सही निर्णय लेने और सही काम करने के लिए तर्क और व्यावहारिक दिमाग प्रदान करेगा. यह काम को समय पर पूरा करने और किसी भी काम को अधूरा न छोड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित भी बनाता है. मेहनती बनाएगा और कार्यक्षेत्र में सफलता का योग देगा. शनि इस भाव में कुछ भी पाने के लिए तरीकों और विधियों को सीखने की क्षमता देगा. भरोसेमंद और एक अनुशासित व्यक्ति बनाएगा.
नकारात्मक शनि
पहले भाव में एक नकारात्मक शनि दृढ़ निर्णय लेने से रोकेगा, भ्रमित करेगा और फंसा हुआ महसूस कराएगा. मन को संदेह और भय से भर देगा. जीवन में आगे बढ़ने से डरेंगे. यह ऐसे लोगों से भी मिलवाएगा जो आपको गुमराह करेंगे. यह आपको अत्यधिक महत्वाकांक्षा और आलस्य के अधीन कर सकता है. अवसाद और मनोवैज्ञानिक बातें परेशानी देगी. अपने कार्य में असंतोष देगा हमेशा असुरक्षित महसूस करवाएगा. शादी में देरी होगी और आपके रिश्ते में कलह होगी. कठोर, जिद्दी हो सकते हैं.
पहले भाव में वक्री शनि
पहले भाव में वक्री शनि की स्थिति व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में, विशेष रूप से व्यवसाय क्षेत्र और दैनिक कार्यों में चिंतित और असुरक्षित महसूस करवा सकती है. अच्छे और बुरे निर्णयों के बीच अंतर नहीं कर पाते हैं लेकिन यह स्थिति वित्तीय विकास और अवसर भी देगी.
पहले भाव में अस्त शनि
पहले भाव में अस्त शनि की स्थिति जीवन में कई बार कोर्ट केस, पुलिस केस और कानूनी मुकदमेबाजी में फंसा सकती है. कई बार मामले बहुत गंभीर भी हो सकते हैं. यह पुरानी बीमारियों और अशुभ दोषों से भी पीड़ित कर सकता है.
शनि के पहले भाव में योग
शनि के पहले भाव में योग शश योग. यह योग तब बनता है जब शनि केंद्र में होता है और अपनी राशि या उच्च राशि में होता है. यह आपको दूसरों पर अधिकार जमाने, संगठन का नेतृत्व करने और राजा की तरह अधिकार करने वाला बनाता है.