पूर्वमध्यकाल अर्थात ई. 501 से 1000 तक का काल ज्योतिष के क्षेत्र में उन्नति और विकास का काल था. इस काल के ज्योतिषियों ने रेखागणित, अंकगणित और फलित ज्योतिष पर अध्ययन कर, अनेक शास्त्रों की रचना की. इस काल में फलित ज्योतिष
ज्योतिष के इतिहास से जुडे 18 ऋषियों में से एक थे ऋषि अत्रि. एक मान्यता के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के द्वारा हुआ था. भगवान श्री कृष्ण ऋषि अत्रि के वंशज माने जाते है. कई पीढीयों के बाद ऋषि अत्रि के कुल में ही
सिद्धान्त, संहिता और होरा शास्त्र ज्योतिष के तीन स्कन्ध ज्योतिष की तीन भाग है. इसमें भी सिद्वान्त ज्योतिष सर्वोपरि है. सिद्वान्त ज्योतिष को बनाने में पौराणिक काल के उपरोक्त 18 ऋषियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
ज्योतिष की इतिहास की पृष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्कराचार्य के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त
ज्योतिष के आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसके सिद्धान्तों में अनेक परिवर्तन हुए. ऋक ज्योतिष ग्रन्थ में युग, आयन, ऋतु, मास, नक्षत्र आदि के विषय में और मुहूर्त का विस्तार से वर्णन किया गया है. परन्तु इसमें ग्रहों व
ज्योतिष के प्रमुख 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का नाम भी आता है. ऋषि गर्ग ने ज्योतिष के क्षेत्र में आयुर्वेद और वास्तुशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया. गर्ग पुराण में ज्योतिष के मुख्य नियमों का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष
ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है. जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृ्गु के द्वारा लिखी गई भृ्गु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृ्गु संहिता के विषय में यह
ज्योतिष का आदिकाल ईं. पू़. 501 से लेकर ई़. 500 तक माना जाता है. यह वह काल था, जिसमें वेदांग के छ: अंग अर्थात शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छन्द पर कार्य हुआ. इस समयावधि में ज्योतिष का संम्पूर्ण प्रसार और
ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद
ब्रह्मगुप्त का नाम भारत के महान गणितज्ञों में लिया जाता है. इनके द्वारा दिए गए सूत्रों को आज भी उपयोग में लाया जाता है. ब्रह्म गुप्त न केवल गणित के जानकार थे बल्कि वे एक बहुत योग्य ज्योतिषी भी थे. उन्हों ने अपने ग्रंथों
ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों
ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना
भारत में ज्योतिष का प्रारम्भ कब से हुआ, यह कहना अति कठिन है. इसे प्रारम्भ करने वाले शास्त्री कौन से है. उनका उल्लेख स्पष्ट रुप से मिलता है. उनमें सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि,
प्राचीन काल में ज्योतिष अपने सर्वोत्तम स्तर पर था. मध्य काल में इस विद्या के शास्त्रों को न संभाल पाने के कारण उस समय के सही प्रमाण हमारे पास आज पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं है. उस समय के के शास्त्री ग्रहों कि गति, कालों
नारद और वशिष्ठ के फलित ज्योतिष सिद्धान्तों के संबन्ध में आचार्य पराशर रहे है. आचार्य पराशर को ज्योतिष के इतिहास की नींव कहना कुछ गलत न होगा. यह भी कहा जाता है, कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री नहीं हुआ.